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Tuesday, December 11, 2012

बंगाल विधानसभा में हिंसा आकस्मक नहीं है, अभूतपूर्व हिंसा का अशनि संकेत है यह!

बंगाल विधानसभा में हिंसा आकस्मक नहीं है, अभूतपूर्व हिंसा का अशनि संकेत है यह!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

अराजक बंगाल त्रिमुखी सत्तासंघर्ष में विकास से कोसों दूर है। अर्थव्यवस्था का कोई अस्तित्व  ही नहीं है। निवेश का कोई माहौल नहीं है। सच में यहां राजनीति के अलावा कुछ भी संभव नहीं है।सामाजिक समरसता तो है ही नहीं , राजनीतिक और सांप्रदायिक ध्रूवीकरण में उत्पादनप्रणाली और आजीविका का घनघोर संकट है। अवदमित घृणा और हिंसा अब राजनीति का नाम है।दुनियाभर में शहरी आबादी बढ़ रही है, पर कोलकाता एक अकेला शहर है जिसकी ाबादी घट रही है। पलायन के सिवाय़ इस दमघोंटू हिंसक परिवेश से बचने का उपाय नहीं है ,जहां प्रकृति और पर्यावरण में भी राजनीति अभिव्यक्त होती है। दुर्गोत्सव को सांसकृतिक मानने वाला बंगाल अब अपने हर विरोधी को असुर मानता है और उसके निधन पर ही शांति हो सकती है। यह एक ऐसा वधस्थल बन गया है ,जहां हर कोई हर किसी के​​ लिए वध्य है। यहां सबसे प्रचलित धंधा और उद्योग है नशा, अपराध और लड़कियों की तस्करी। य़ह चित्र न मुख्यमंत्री के परिवर्तन ब्रेगेड को दिखता है और न उन्हें बेदखल करने के लिए बेताब विपक्ष में, विडंबना यही है।बंगाल में 520 किलमीटर तक बहती बड़े भूभाग का जीवन चलाती गंगा जब सागर से मिलने को होती है तो गति थामकर डेल्टा का रूप अख्तियार कर लेती है पर उत्तराखंड से निकलते ही उपेक्षा और दुर्व्यवहार झेलती गंगा का दर्द यहां बालू, पत्थर और वन माफिया और बढ़ा जाते हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एन्वायरमेंटल स्टडीज की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार, कोलकाता के 114 में से 78 वार्ड इलाकों के नलकूपों के पानी में आर्सेनिक पाया गया है। 32 वार्ड इलाकों के नलकूपों में आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानक से बहुत अधिक प्रतिलीटर 50 माइक्रोग्राम पाई गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानक प्रति लीटर 10 माइक्रोग्राम है। आर्सेनिक-दूषण दक्षिण कोलकाता, दक्षिण के उपनगरीय इलाके और मटियाबुर्ज के इलाकों में ज्यादा मिला है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा में मंगलवार को उस समय अराजक माहौल पैदा हो गया, जब वाम मोर्चा और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों के बीच शुरू हुई हाथापाई ने हिंसक रूप ले लिया। मारपीट में तीन विधायक घायल हो गए। जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अन्य तीन विधायकों को सदन से निलंबित कर दिया गया है।विवाद तब शुरू हुआ जब वाम मोर्चा ने राज्य सरकार पर राज्य में चिट फंड कंपनियों पर अंकुश लगाने में विफल रहने का आरोप लगाते हुए कार्यस्थगन प्रस्ताव लाने की अनुमति मांगी। विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने जब कार्यस्थगन प्रस्ताव लाने की मांग खारिज कर दी तो दोनों पक्ष के विधायक आपस में भिड़ गए। दोनों पक्षों में हाथापाई और मारपीट हो जाने पर सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।वाम मोर्चा के तीन विधायक- अमजद हुसैन, नजीबुल हक और सुशांता बेसरा को विधानसभा अध्यक्ष ने एक दिन के लिए निलंबित कर दिया। विपक्षी वाम मोर्चा ने यह आरोप लगाते हुए कि लड़ाई तृणमूल विधायकों ने शुरू की। उन्होंने दावा किया कि उसका विधायक घायल हो गया। वहीं सत्ताधारी पार्टी ने इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि वाम मोर्चा की 'गुंडागर्दी' के कारण उसके दो विधायक घायल हो गए।

बंगाल के वर्चस्ववादी समाज में सामाजिक न्याय, समता और लोकतंत्र का कोई स्थान नहीं है। सत्तादखल के त्रिमुखी संघर्ष में कैसी कैसी खतरनाक बारुदीसुरंगों पर स्थगित धमाकों की कगार पर जी रहा है बंगाल, इसका किसी को अंदाज नहीं है। अराजकता का चरमोत्कर्ष आज बंगाल ​​विधानसभा में जो दिखा, वह कोई आकस्मिक घटना नहीं है।सत्ता असहिष्णु है, यह सर्वविदित है , पर वर्चस्ववादी सत्ता कितनी खतरनाक है , बंगाल में राजनीतिक हिंसा की निरंतरता ने बार बार साबित किया है। जब राजनीति बाहुबल और धनबल के जरिये की जारही हो, जब राजनीतिक सत्ता का मतलब है कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर राज, तब खुले बाजार के आलम में अभूतपूर्व हिंसा के नजारे सामान्य हैं।राजनीति की भाषा कितना हिंसक हो सकती है, यह बंगाल के अखबारों और टीवी चैनलों में रोज अभिव्यक्त हो रही है। जब खुले आम प्रतिद्वंद्वी दल के समरथकों के विरुद्ध प्रतिशोध का संकल्प व्यक्त किया जा रहा हो, जब दूसरी पार्टी के लोगों से किसी भी तरह के सामाजिक संबंध का निषेध हो, जब राजनीतिक तो क्या सामाजिक​​ सांस्कृतिक संवाद में भी हिंसा और वर्चस्व का सैलाब उमड़ रहा हो,तब विधानसभा इस पूरी प्रक्रिया से अछूती कैसे रह सकती है। नंदीग्राम के अभूतपूर्व हिंसा की नींव पर परिवर्तन के दुर्ग बनाये गये तो वममोर्चे के ३५ साल पुराने स्ताकिले की नींव में मरीचझांपी जैसे नरसंहार की गूंज हो, राजनीतिक हिंसा में नक्सली दौर से लेकर अबतक रोजाना किसी न किसी दल के समर्थकों के मारे जाने वाले अनसुलझे प्रकरण हों, केशपुर, नानुर सेलेकर न जाने कितने ही नरसंहार कांड हों, तो र्कतपात को कौन रोक सकता है। राज्य में पंचायत चुनाव आसन्न है। भूख और बेरोजगारी से जूझते राज्य​ ​ में कारोबार उद्योग धंधे राजनीतिक अराजकता के शिकार हो गये हैं। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। प्रतिभा पलायन हो रहा है। मानवाधिकार हनन पर कोई सुनवाई नहीं होती। अस्पृश्यता, भेदभाव, घृणा अभियान कायम है। लोग बुरी तरह पार्टीबद्ध हैं। सेवाओं और प्रतिष्ठानों में राजनीति का ​​असर है। समाज और सड़कों में अपराधी राजनीति के झंडेवरदार हैं और आम आदमी कहीं भी कभी भी सुरक्षित नहीं है, तो जनप्रतिनिधियों तक तो इस गृमा और इस हिसां की आंच पहुंचनी ही थी।

बहुत पहले पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा से वह बहुत दुखी हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु को याद करते हुए उन्होंने कहा कि बसु ने ऐसी हिंसा की हमेशा निंदा की थी।राष्ट्रपति चुनाव से पहले तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने गुरुवार को पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जतायी।कलकत्ता चेंबर ऑफ कॉमर्स के एक कार्यक्रम में चिदंबरम ने कहा कि पश्चिम बंगाल में वर्ष 2010-11 के मुकाबले हिंसा की घटनाओं में कमी आयी है, पर इसके बावजूद इस वर्ष जून तक राज्य में हिंसा की 455 घटनाएं हुई हैं, जिनमें 82 लोगों की मौत हुई है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि सबसे खतरनाक बात यह है कि राज्य में राजनीतिक संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं।455 में अधिकतर राजनीतिक हिंसा की घटनाएं हैं। हिंसा की संस्कृति लोकतंत्र के लिए अच्छा लक्षण नहीं है। चिंदबरम ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को हिंसा बंद करने के लिए पहल व उपाय करने होंगे। उन्होंने कहा कि जो राजनीतक दल माओवादियों को हथियार डाल कर बातचीत शुरू करने का परामर्श दे रहे हैं, उन दलों को पहले स्वयं हिंसा बंद कर हथियार डालना होगा, तभी लोकतंत्र मजबूत होगा।


ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच आई लीग फुटबॉल टूर्नामेंट के मैच को दर्शकों के हंगामे के बाद हिंसा की वजह से रद्द करना पड़ा। सॉल्ट लेक स्टेडियम में रविवार को होने वाले मैच के दौरान वहां मौजूद दर्शक बेकाबू हो गए और उन्होंने मैदान पर पथराव शुरू कर दिया।हिंसा खेल के मैदानों से राजनीति के मैदान में, यहां तक कि विधानसभा तक में संक्रमित हो गयी।फुटबॉल टूर्नामेंट के मैच के दौरान हुई हिंसा में 40 लोग घायल हो गए जिससे ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच इस मुकाबले को रद्द करना पड़ा। हालांकि स्टेडियम में हालात काबू कर लिए गए जिससे बड़ी दुर्घटना होने से बच गयी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक घायलों में 20 पुलिसकर्मी शामिल हैं।सूत्रों के मुताबिक विधाननगर पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार भी घायल हो गए। उनके गाल पर खरोंच आई है। इस घटना के लिए तीन लोगों को हिरासत में लिया गया है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पोलित ब्यूरो के सदस्य और विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्र ने कहा कि जन-महत्व वाले महत्वपूर्ण मुद्दे पर कार्यस्थगन प्रस्ताव लाने की हमारी मांग एक बार फिर खारिज कर दी गई। तृणमूल सरकार जब से सत्ता में आई है हमारे सभी कार्यस्थगन प्रस्तावों को सारहीन आधारों पर खारिज किया जाता रहा है।

मिश्र ने कहा कि तृणमूल सदस्यों ने विधानसभा में मारपीट की। जिसके बाद उनकी पार्टी के विधायक गौरांग चट्टोपाध्याय को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। उन्होंने कहा कि न केवल चट्टोपाध्याय की पिटाई की गई, बल्कि हमारी पार्टी की महिला विधायक देबोलीना हेम्ब्रम के साथ भी हाथापाई की गई और उनके खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया। एसएसकेएम राजकीय अस्पताल में प्रवेश करने से पूर्व चट्टोपाध्याय ने कहा कि मेरे सिर पर किसी भारी चीज से बार-बार प्रहार किया गया।
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस नेता और राज्य के संसदीय कार्य मंत्री पार्थ चटर्जी ने मिश्रा के दावे को खारिज कर दिया और कहा कि तृणमूल के दो विधायकों महमूदा होसैन और पुलक रॉय की एमसीपी सदस्यों ने गंभीर रूप से पिटाई कर दी। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस बीच वाम मोर्चा ने अपने तीन विधायकों के निलंबन को 'असंवैधानिक' बताया और निलंबन खत्म करने की मांग करते हुए विधानसभा के बाहर धरना दिया।

उधर, कांग्रेस नेता मानस भुइयां ने कहा कि हमारे कुछ सदस्य रो रहे थे। हम अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित थे, इसलिए हमने सदन का बहिष्कार किया। लोकतंत्र के मंदिर को प्रदूषित और अपवित्र किया जाना सचमुच आश्चर्यजनक है।भुइयां के नेतृत्व में कांग्रेसी विधायकों के प्रतिनिधिमंडल और एमसीपी नेता अनीसुर रहमान के नेतृत्व में वाम मोर्चा के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार की शाम राज्यपाल एमके नारायणन से मुलाकात की और उन्हें विधानसभा में हुईं घटनाओं से अवगत कराया।

राज्य में चिटफंड कंपनियों की बढ़ती संख्या पर वामपंथी सदस्य स्थगन प्रस्ताव की माग करते हुए विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के आसन तक चले गए और वहीं खड़े होकर नारेबाजी करने लगे, इससे माहौल गरमा गया। करीब आधा घंटे चले हंगामे के बीच माकपा विधायक नजमुल हक ने स्पीकर का माइक छीनने की कोशिश की। तब स्पीकर ने सदन की कार्यवाही दोपहर 1.30 तक के लिए स्थगित कर दी।

विधानसभा में मंगलवार को जो कुछ हुआ उससे बंगाल दुनिया में कलंकित हुआ है। इसके लिए सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को कभी माफ नहीं किया जाएगा। उक्त बातें मंगलवार को सिलीगुड़ी में पत्रकारों से बात करते हुए वाममोर्चा चेयरमैन विमान बोस ने कहा। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने के साथ ही तृणमूल कांग्रेस विरोधियों पर दलतंत्र का अंकुश लगाने का प्रयास करती रही है। विरोधी विधायकों को सदन के अंदर बोलने की आजादी छीनी जाती है। विधानसभा की कार्रवाई या फैसला को सदन में नहीं बोलकर मुख्यमंत्री उसे सचिवालय में बोलने का काम करती है। यह गणतंत्र के लिए ठीक नहीं है। बोस ने कहा कि सदन से वामपंथी तीन विधायक को निलंबित किया गया? यह क्या ठीक था? विधानसभा का अर्थ होता है जनता का प्रतिनिधि सदन। यहां राज्य के लिए कानून तैयार किया जाता है। वहीं कानून को हाथ में लेकर जिस प्रकार विधायकों की पिटाई हुई इसकी जितनी निंदा की जाए कम है। कोलकाता जाने के बाद वाममोर्चा की बैठक में इसपर गंभीरता से चर्चा होगी। जरुरत पड़ी तो इस मुद्दे को लेकर राज्यव्यापी आंदोलन किया जाएगा। पंचायत चुनाव को लेकर जिला कमेटी की बैठक पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि त्रिपस्तीय पंचायत चुनाव के लिए वाममोर्चा पूरी तरह तैयार है। जैसे ही घोषणा होती है हम प्रत्याशियों की सूची जारी कर चुनाव मैदान में होंगे। वाममोर्चा पहले से भी ज्यादा अटूट है। हमारा गठबंधन परिवर्तन की सरकार जैसा नहीं। पंचायत चुनाव के लिए जिला नेताओं को सभी प्रकार के निर्देश दिए गये है। वाममोर्चा गांव के सभी वर्ग के लोगों के पास जाएगी और उसकी समस्याओं को लेकर जरुरत पड़ी तो सड़क तक आंदोलन करेगी। उन्होंने कहा कि पंचायत चुनाव में वाममोर्चा को कुछ ज्यादा नहीं करना है। परिवर्तन की सरकार को आमलोग पूरी तरह जानने लगी है। उन्होंने कहा कि वाममोर्चा लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा लोगों को बताया था कि झूठ ज्यादा दिन तक नहीं चलती। हिल्स में माकपा छोड़कर गोजमुमो में शामिल होने वाली घटनाओं पर पूछने पर कहा कि वामपंथी कभी पार्टी छोड़कर एक जगह से दूसरी जगह नहीं जाते। वे वैसे कार्यकर्ता होते है जो निहित स्वार्थ के लिए स्वयं को वामपंथी होने की बात करते है। विमान बोस जिला बैठक के बाद कोलकाता के लिए लौट गये।

सदन की कार्यवाही जब दोबारा शुरू हुई तो संसदीय कार्यमंत्री ने स्पीकर बिमान बनर्जी के काम में बाधा डालने तथा उन्हें शारीरिक रूप से आघात पहुंचाने का हवाला देते हुए माकपा विधायक नजमुल हक, अमजद हुसैन और सुशांत बेसरा के खिलाफ कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखा, जिसका विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा ने कड़ा विरोध किया। विपक्षी सदस्य अपनी सीट से उठकर शोर मचाने लगे। स्पीकर ने चटर्जी के प्रस्ताव पर रूलिंग देते हुए तीनों विधायकों को निलंबित कर दिया। स्पीकर के फैसला सुनाते ही विपक्षी सदस्य भड़क उठे और विरोध जताने के लिए वेल में उतरे तो सत्तारुढ़ दल के सदस्य उनसे भिड़ गए। माकपा की देवलीना हेंब्रम और तृणमूल कांग्रेस की महमूदा बेगम के बीच भी हाथापाई हुई। माकपा की देवलिना हेंब्रम और गौरांग चटर्जी धक्कामुक्की के शिकार होकर गिर गए और कुछ देर तक फर्श पर भी पड़े रहे।

इसके बाद विपक्षी सदस्यों ने तोलाबाजी सरकार आर नेई दरकार [रंगदारी वसूलने वाली सरकारी अब नहीं चलेगी] का नारा लगाते हुए सदन का बहिष्कार कर दिया। सायंकाल विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा के नेतृत्व में वाममोर्चा विधायकों ने राज्यपाल एमके नारायणन को ज्ञापन सौंप कर सदन में अपनी सुरक्षा के लिए गुहार लगाई। संसदीय कार्यमंत्री पार्थ चटर्जी और विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा ने एक-दूसरे के सदस्यों पर हमला करने का आरोप लगाया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 में भी विधानसभा के अंदर हंगामे और तोड़फोड़ की घटना हुई थी।

भारत के प्रागैतिहासिक काल के इतिहास में भी बंगाल का विशिष्‍ट स्‍थान है। सिकंदर के आक्रमण के समय बंगाल में गंगारिदयी नाम का साम्राज्‍य था। गुप्‍त तथा मौर्य सम्राटों का बंगाल पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। बाद में शशांक बंगाल नरेश बना। कहा जाता है कि उसने सातवीं शताब्‍दी के पूर्वार्द्ध में उत्तर-पूर्वी भारत में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके बाद गोपाल ने सत्ता संभाली और पाल राजवंश की स्‍थापना की। पालों ने विशाल साम्राज्‍य खड़ा किया और चार शताब्‍दियों तक राज्‍य किया। पाल राजाओं के बाद बंगाल पर सेन राजवंश का अधिकार हुआ, जिसे दिल्‍ली के मुस्‍लिम शासकों ने परास्‍त किया। सोलहवीं शताब्‍दी में मुगलकाल के प्रारंभ से पहले बंगाल पर अनेक मुस्‍लमान राजाओं और सुल्तानों ने शासन किया।

मुगलों के पश्‍चात् आधुनिक बंगाल का इतिहास यूरोपीय तथा अंग्रेजी व्‍यापारिक कंपनियों के आगमन से आरंभ होता है। सन् 1757 में प्‍लासी के युद्ध ने इतिहास की धारा को मोड़ दिया जब अंग्रेजों ने पहले-पहल बंगाल और भारत में अपने पांव जमाए। सन् 1905 में राजनीतिक लाभ के लिए अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया लेकिन कांग्रेस के नेतृत्‍व में लोगों के बढ़ते हुए आक्रोश को देखते हुए 1911 में बंगाल को फिर से एक कर दिया गया। इससे स्‍वतंत्रता आंदोलन की ज्‍वाला और तेजी से भड़क उठी, जिसका पटाक्षेप 1947 में देश की आजादी और विभाजन के साथ हुआ। 1947 के बाद देशी रियासतों के विलय का काम शुरू हुआ और राज्‍य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की सिफारिशों के अनुसार पड़ोसी राज्‍यों के कुछ बांग्‍लाभाषी क्षेत्रों को भी पश्‍चिम बंगाल में मिला दिया गया।

बंगाल मुग़ल साम्राज्य के अन्तर्गत आने वाले प्रान्तों में सर्वाधिक सम्पन्न था। अंग्रेज़ों ने बंगाल में अपनी प्रथम कोठी 1651 ई. में हुगली में तत्कालीन बंगाल के सूबेदार 'शाहशुजा' (शाहजहाँ के दूसरे पुत्र) की अनुमति से बनायी तथा बंगाल से शोरे, रेशम और चीनी का व्यापार आरम्भ किया। ये बंगाल के निर्यात की प्रमुख वस्तुऐं थीं। उसी वर्ष मुग़ल राजवंश की एक स्त्री की, डाक्टर बौटन द्वारा चिकित्सा करने पर उसने अंग्रेज़ों को 3,000 रु. वार्षिक में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति प्रदान की। शीघ्र ही अंग्रेज़ों ने कासिम बाज़ार, पटना तथा अन्य स्थानों पर कोठियाँ बना लीं।

सूबेदारों की स्वतंत्रता

बंगाल के नवाब
नवाब शासन काल
मुर्शीदकुली ख़ाँ 1717-1727 ई.
शुजाउद्दीन 1727-1739 ई.
सरफ़राज ख़ाँ 1739-1740 ई.
अलीवर्दी ख़ाँ 1740-1756 ई.
सिराजुद्दौला 1756-1757 ई.
मीर ज़ाफ़र 1757-1760 ई.
मीर कासिम 1760-1763 ई.
मीर ज़ाफ़र (दूसरी बार) 1763-1765 ई.
नजमुद्दौला 1765-1766 ई.
शैफ-उद्-दौला 1766-1770 ई.
मुबारक-उद्-दौला 1770-1775 ई.

1658 ई. में औरंगज़ेब ने मीर जुमला को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया। उसने अंग्रेज़ों के व्यापार पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया, परिणामस्वरूप 1658 से 1663 ई. तक अंग्रेज़ों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। किन्तु 1698 ई. में सूबेदार अजीमुश्शान द्वारा अंग्रेज़ों को सूतानाती, कालीघाट एवं गोविन्दपुर की ज़मींदारी दे दी गयी, जिससे अंग्रेज़ों को व्यापार करने में काफ़ी लाभ प्राप्त हुआ। 18वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दौर में यहाँ के सूबेदारों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर नवाब की उपाधि धारण की। मुर्शीदकुली जफ़र ख़ाँ, जो औरंगज़ेब के समय में बंगाल का दीवान तथा मुर्शिदाबाद का फ़ौजदार था, बादशाह की मुत्यु के बाद 1717 में बंगाल का स्वतंत्र शासक बन गया। मुर्शीदकुली ख़ाँ ने बंगाल की राजधानी को ढाका से मुर्शिदाबाद हस्तांतरित कर दिया। उसके शासन काल में तीन विद्रोह हुए-

सीतारात राय, उदय नारायण तथा ग़ुलाम मुहम्मद का विद्रोह,
शुजात ख़ाँ का विद्रोह,
नजात ख़ाँ का विद्रोह, इसको हराने के बाद मुर्शीदकुली ख़ाँ ने उसकी जमीदारियों को अपने कृपापात्र रामजीवन को दे दिया।

भू-राजस्व बन्दोबस्त
मुर्शीदकुली ख़ाँ ने नए सिरे से बंगाल के वित्तीय मामले का प्रबन्ध किया। उसने नए भू-राजस्व बन्दोबस्त के जरिए जागीर भूमि के एक बड़े भाग को खालसा भूमि बना दिया तथा 'इजारा व्यवस्था' (ठेके पर भू-राजस्व वसूल करने की व्यवस्था) आरम्भ की। 1732 ई. में बंगाल के नवाब द्वारा अलीवर्दी ख़ाँ को बिहार का सूबेदार नियुक्त किया गया। 1740 ई. में अलीवर्दी ख़ाँ ने बंगाल के नवाब शुजाउद्दीन के पुत्र सरफ़राज को घेरिया के युद्ध में परास्त कर बंगाल की सूबेदारी प्राप्त कर ली ओर वह अब बंगाल, बिहार और उड़ीसा के सम्मिलित प्रदेश का नवाब बन गया। यही नहीं, इसने तत्कालीन मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह से 2 करोड़ रुपये नज़राने के बदलें में स्वीकृति भी प्राप्त कर लिया। उसने लगभग 15 वर्ष तक मराठों से संघर्ष किया। अलीवर्दी ख़ाँ ने यूरोपियों की तुलना मधुमक्खियों से करते हुए कहा कि 'यदि उन्हें छेड़ा न जाय, तो वे शहद देंगी और यदि छेड़ा जाय तो काट-काट कर मार डालेंगी।'

1756 ई. में अलीवर्दी ख़ाँ के मरने के बाद उसके पौत्र सिराजुद्दौला ने गद्दी को ग्रहण किया। पूर्णिया का नवाब 'शौकतजंग' (सिराज की मौसी का लडका) तथा घसीटी बेगम (सिराज की मौसी), दोनों ही सिराजुद्दौला के प्रबल विरोधी थे। उसका सबसे 'प्रबल शत्रु' बंगाल की सेना का सेनानायक और अलीवर्दी ख़ाँ का बहनाई-मीरजाफ़र अली था। दूसरी ओर, चूंकि अंग्रेज़, फ़्राँसीसियों से भयभीत थे, अतः उन्होंने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की फ़ोर्ट विलियम कोठी की क़िलेबन्दी कर डाली। अंग्रेज़ों ने शौकतजंग एवं घसीटी बेगम का समर्थन किया। अंग्रेज़ों के इस कार्य से रुष्ट होकर सिराजुद्दौला ने 15 जून, 1756 को फ़ोर्ट विलियम का घेराव कर अंग्रेज़ों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। अन्ततः नवाब ने कलकत्ता मानिकचन्द्र को सौंप दिया और स्वयं मुर्शिदाबाद आ गया। यही वह समय था, जब बंगाल में 'ब्लैक होल घटना' (कालकोठरी) घटी, जिसके लिये नवाब सिराजुद्दौला को ज़िम्मेदार ठहराया गया।

बंगाल का विभाजन

(1905), भारत के ब्रिटिश वाइसरॉय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा भारतीय राष्ट्रवादियों के भारी विरोध के बावजूद बंगाल का विभाजन किया गया था। इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मध्यमवर्गीय दबाब समूह से बढ़कर राष्ट्रीय स्तर के जन आंदोलन का रूप ले लिया। 1755 ई. में डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल में श्रीरामपुर में अपनी बस्ती स्थापित की। 1765 से ब्रिटिश भारत में बंगाल, बिहार और उड़ीसा संयुक्त रूप से एक ही प्रांत थे। 1900 तक यह प्रांत इतना बड़ा हो गया के इसे एक प्रशासन के अंतर्गत रखने में परेशानी होने लगी। अलग-अलग होने और संचार-साधनों के अभाव में पश्चिम बंगाल तथा बिहार की तुलना में पूर्वी बंगाल की उपेक्षा होने लगी।

कर्ज़न ने विभाजन के कई तरीक़ों में से एक को चुना: असम को, जो 1874 तक इस प्रांत का एक हिस्सा था, पूर्वी बंगाल के 15 ज़िलों के साथ मिलाकर 3 करोड़ 10 लाख की आबादी वाला नया प्रांत बनाया। इसकी राजधानी ढाका थी और जनता मुख्यत: मुसलमान थी।पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने, जो बंगाल के अधिकांश वाणिज्य, व्यवसाय और ग्रामीण जीवन पर नियंत्रण रखते थे, शिकायत की कि बंगाल क्षेत्र के दो भागों में बंट जाने से वे बिहार और उड़ीसा समेत बचे हुए प्रांत में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उन्होंने इसे बंगाल में राष्ट्रीयता का गला घोटने की कोशिश माना, जहाँ यह अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक विकसित थी।

आन्दोलन

विभाजन के ख़िलाफ़ आंदोलन के लिए जनसभाएं, ग्रामीण आंदोलन और ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के बहिष्कार के लिए स्वदेशी आंदोलन छेड़ा गया। तमाम आंदोलनों के बावजूद विभाजन हुआ और चरमपंथी विरोधी आतंकवादी आंदोलन चलाने के लिए भूमिगत हो जए। 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले जाई गई, तो पूर्व और पश्चिम बंगाल पुन: एक हो गए, असम एक बार फिर अलग मुख्य प्रांत बन गया और बिहार व उड़ीसा को अलग करके नया प्रांत बना दिया गया। इसका उद्देश्य प्रशासनिक सुविधा के साथ-साथ बंगालियों की भावनाओं को तुष्ट करना भी था। कुछ समय तक तो इस लक्ष्य की प्राप्ति हो गई, लेकिन विभाजन से लाभान्वित हुए बंगाली मुसलमान नाराज़ और निराश थे।

वाम, वाम कत्लेआम

रतन टाटा ने कहा है कि अगले साल जनवरी के मोटर शो में वे अपनी लखटकिया कार को सबके सामने प्रस्तुत कर देंगे. काम चल रहा है और कार फैक्टरी उसी सिंगूर में बन रही है जहां तापसी मलिक के साथ बलात्कार हुआ और उसकी इतनी निर्मम हत्या हुई थी कि पढ़कर रोंया-रोंया कलप उठता है. सिंगूर और नंदीग्राम पर प्रसिद्ध शिक्षाविद सुनंद सान्याल का एक लेख-

18 दिसंबर 2006 को मुंह अंधेरे तापसी मलिक रोज की भांति घर से निकली थी ताकि उजाला होने से पहले वह दिशा मैदान से निपट ले. तापसी निकली ही थी कि कुछ लोगों ने उसे घेर लिया. उसका हाथ-पैर-मुंह बांध दिया गया. वामपंथी गुंडों ने बारी-बारी से उसके साथ बलात्कार किया. फिर उसे एक जलती भट्टी में डाल दिया गया. तापसी मलिक का अंत हो गया लेकिन उसके इस दुखद अंत से बंगाल में वह गुस्सा नहीं फूटा जिसे माकपा गंभीरता से लेती. इसलिए नतीजा हुआ नंदीग्राम.

नंदीग्राम में राहत कार्य में लगी डॉ शर्मिष्ठा राय कहती हैं कि नंदीग्राम में हिंसा के दौरान औरतों की योनि को खासकर निशाना बनाया गया है. औरतों की योनि में गोली मारी गयी और कई मौकों पर उनकी योनि में माकपा काडर ने लोहे की छड़ घुसा दी. इस बात की शिकायत राज्यपाल को मेधा पाटेकर ने भी की थी. एक 35 वर्षीय महिला कविता दास को दो खंबों से बांधकर सामूहिक बलात्कार किया गया. उसके पति ने उसे बचाने की कोशिश की तो माकपा काडर ने उसके बच्चे को रौंदकर मार देने की धमकी दी. अपने बच्चे की खातिर उस व्यक्ति को अपनी पत्नी का बलात्कार सहना पड़ा. 20 मार्च को एक 20 वर्षीय माकपा कार्यकर्ता को सोनचुरा में गिरफ्तार किया गया. उसने स्वीकार किया कि 14 मार्च 2007 को हुए नंदीग्राम गोलीकांड के दौरान उसने एक 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार किया था.14 मार्च की गोलीबारी एक पुल के पास हुई थी. सीबीआई को शिकायत की गयी थी कि इस पुल के पास शंकर सामंत के घर में 14 औरतों को उठाकर ले जाया गया था. सीबीआई ने अपनी जांच में उस खाली पड़े घर से औरतों के आंतरिक कपड़ों के टुकड़े मिले जिसमें खून के धब्बे लगे हुए थे. गांव के लोगों ने बताया कि उन्होंने उस दिन कई घंटे इस घर में चीख-पुकार सुनी थी. लेकिन घर के चारों ओर माकपा काडरों का मुस्तैद काडर मौजूद था. इसलिए वे लोग वहां नहीं जा सके.

मैं खुद गणमुक्ति परिषद के सदस्यों के साथ तामलुक अस्पताल गया था. वहां एक किसान की पत्नी से मिला. मुझे देखकर वह 25-26 साल की लड़की फूट-फूट कर रोने लगी. शायद एक बुजुर्ग को अपने सामने देख उसके सब्र का बांध टूट गया था. उसने बताया कि उसके साथ पुलिस की मौजूदगी में बलात्कार किया गया. माकपा काडर ने उसके ब्लाउज फाड़ डाले और उसके निप्पल काट लिये. उसके साथ एक दूसरी औरत जो अस्पताल में इलाज करा रही थी उसका एक गाल माकपा काडर ने काट खाया था. बाद में डोला सेन ने राज्यपाल को जो शिकायत की थी उसमें उन्होंने कहा था कि माकपाई गुण्डों द्वारा इस तरह क्षत-विक्षत की गयी औरतों की संख्या सैकड़ों में है.दूसरी बार नंदीग्राम में जब झड़प हुई तो माकपा कैडर ने एक बच्चे को गोली मार दी. एक महिला उसको बचाने के लिए दौड़ी तो उसको लाठियों से पीटा गया. महिला भाग गयी. इसके बाद माकपा कॉडर ने यह मानकर कि बच्चा उनकी गोली से मर चुका है उन्होंने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. ऐसा उन्होंने लाश को हटाने के लिए किया या फिर अपनी मौज के लिए, पता नहीं. ऐसी कुछ लाशों को उन्होंने वहां दफना दिया और कंक्रीट के स्लैब से ढंक दिया. अन्य लाशों के पेट फाड़ डाले गये ताकि उन्हें पानी में फेंकने पर वे पानी पर तैरने न लगें. काटे गये सिरों को बोरियों में भरा और ले जाकर नहर में फेंक दिया.

यह कहना कि सरकार को कुछ पता नहीं था, ठीक नहीं है. नंदीग्राम का पूरा आपरेशन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और निरूपम सेन की दिमाग की उपज थी. और लक्ष्मण सेन, विनय कोनार, विमान बोस जैसे मंत्रियों और नेताओं ने पार्टी मशीनरी के स्तर पर उन्हें मदद भी मुहैया कराई थी. मुख्यमंत्री भले ही झूठ बोले कि उन्हें इसका तनिक अंदेशा नहीं था लेकिन गृहसचिव प्रसार रंजन रे ने कहा है कि "हमने खुफिया रपटों के आधार पर ही पुलिस बल तैनात किये थे. बेशक मुख्यमंत्री को इसकी पूरी जानकारी थी." वैसे भी मुख्यमंत्री के खिलाफ यह आरोप लगता रहा है कि वे "आदतन पक्के झूठे" हैं. आरएसपी की एक नेता क्षिति गोस्वामी ने सार्वजनिक तौर कहा था कि बुद्धदेव के दो चेहरे हैं, उसमें एक मुखौटा है.

लेकिन बुद्धदेव की सरकार रहते नंदीग्राम का पूरा सच कभी सामने नहीं आ पायेगा. तभी विमान बोस को लगता है कि लोग नंदीग्राम की बातों को जल्दी भूल जाएंगे. लेकिन नंदीग्राम में हत्या, बलात्कार, आगजनी का जो सिलसिला अभी भी छुटपुट चल रहा है उसे वहां के बच्चे भी देख रहे हैं. क्या समय के साथ उनकी स्मृति से भी यह बात मिट जाएगी कि बंगाल का समाज लुटेरों, पेशेवर हत्यारों और बलात्कारियों से भरा पड़ा है.

सच तो यह है कि माकपा की अगुवाई में चल रही राज्य सरकार पिछले तीस सालों से सड़ रहे नासूर का मवाद है. यह जिस तरह की राजनीति करती है वह एक स्थाई बुराई है. यह पूरे समाज को दो हिस्सों में बांटकर देखती है. "हम" और "वे" की इस राजनीति में समाज का एक हिस्सा कोलकाता के आलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित माकपा मुख्यालय के आदेशों का पालन करनेवाले हैं. शेष अन्य "वे" हैं यानि पराये.


यह कथा है सिंगुर की


Sep 08, 12:19 pm
कोलकाता, [जागरण ब्यूरो]। कोलकाता से 45 व हावड़ा स्टेशन से 34 किलोमीटर दूर सिंगुर की आबादी 2001 की जनगणना के अनुसार 19539 है। इसमें पुरुष 51 प्रतिशत जबकि महिला 49 प्रतिशत हैं। साक्षरता दर 76 प्रतिशत रही। टाटा के लिए 997.11 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गयी है। इसमें 404 एकड़ भूमि का विरोध हो रहा है।

जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होते ही बवाल खड़ा हो गया जो आज तक चल रहा है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ने टाटा मोटर्स के कारखाने के सामने 24 अगस्त 2008 से बेमियादी धरना शुरू कर दिया है। दुर्गापुर एक्सप्रेस वे जाम है। ममता के इस आंदोलन में मेधा पाटकर, समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह, कांग्रेस से अलग हुए सौमेन मित्र शामिल हैं और अब राज्य के बुद्धिजीवियों ने भी इसमें शामिल होने की घोषणा कर दी है। इसके पहले भी राज्य के बुद्धिजीवी सिंगुर आंदोलन में ममता के पक्ष में थे। सिंगुर मामले को हल करने व उद्योगपतियों को आश्वस्त करने के लिए उद्योगमंत्री निरुपम सेन ने बैठक भी की है। कुल मिला कर राज्य की राजधानी कोलकाता और उपनगरीय क्षेत्र सिंगुर को लेकर माहौल गरमा गया है। ममता के आंदोलन को लेकर महानगर में सब्जी, मछली व अन्य खाद्य पदार्थो की आपूर्ति ठप है। सरकार ने वार्ता के लिए आमंत्रण दिया है लेकिन मामला ठस से मस होने का नाम नहीं ले रहा है। कहा जाता है कि वाममोर्चा सरकार को पिछले तीन दशक के शासनकाल में जमीन अधिग्रहण को लेकर इतने बड़े आंदोलन का सामना नहीं करना पड़ा था। तृणमूल कार्यकर्ताओं ने सिंगुर को घेर लिया है। माहौल को देखते हुए दो सप्ताह पूर्व कोलकाता दौरे के दौरान टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने विरोध को लेकर सिंगुर से लौटने की बात कही थी। फिर बवाल खड़ा हो गया। मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने भी घोषणा कर दी है कि हर हाल में टाटा की फैक्ट्री लगेगी। ममता का कहना है कि सरकार अनिच्छुक किसानों के चार सौ एकड़ भूमि वापस करे। टाटा सिंगुर से लौटेंगे या रहेंगे। यह सरकार समझे। नंदीग्राम की घटना का खामियाजा भुगत रही सरकार अब सिंगुर में वैसा कुछ होने नहीं देना चाहती।

10 मार्च 2006 को सिंगुर में टाटा के कारखाना के लिए 997.11 एकड़ भूमि का करार हुआ था। 20 मई 2006 को सातवीं बार वाममोर्चा सरकार के शपथ ग्रहण करने के बाद शाम को टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा ने मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य से राइटर्स बिल्डिंग में भेंट की थी और राज्य में लखटकिया कार के लिए कारखाने का कार्य शुरू करने की घोषणा की। वाममोर्चा सरकार के मुखिया बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने राज्य के लोगों के लिए अपने नये कार्यकाल का तोहफा करार दिया। जून 2006 से सिंगुर में कारखाने को लेकर तृणमूल कांग्रेस ने कृषि भूमि बचाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। सिंगुर के किसानों को लेकर विरोधी दलों ने सिंगुर कृषि जमीन रक्षा कमेटी का गठन किया। जून 2007 में टाटा समूह के प्रतिनिधि सिंगुर में निरीक्षण करने गये थे। तभी उन्हें किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा था। गांव वालों ने प्रतिनिधियों को खदेड़ दिया था। एक तरफ सरकार जहां टाटा के कारखाने को यहां लगाने पर अडिग रही, वहीं दूसरी तरफ राज्य के विरोधी दल उग्र होते गये। कृषि जमीन अधिग्रहण करने के विरोध में बार-बार तृणमूल कांग्रेस व कांग्रेस की ओर से सभा की गयी और रैलियां निकाली गयी। ममता बनर्जी के अलावा केंद्रीय मंत्री प्रियरंजन दासमुंशी, कांग्रेस नेता सुब्रत मुखर्जी, सौमेन मित्रा के अलावा कई हेवीवेट नेताओं ने आंदोलन में भाग लिया। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रकाश जावेडकर ने भी सिंगुर में जाकर किसानों से मिले और इसका विरोध किया। जैसे-जैसे कारखाने के निर्माण की गति तेज हुई, उसी रफ्तार से तृणमूल कांग्रेस का आंदोलन भी तेज होता गया। उसी वर्ष 25 सितंबर 2006 को अधिगृहित जमीन का किसानों को चेक दिया जा रहा था, उसी समय गड़बड़ी की शिकायत पर विरोधी दलों ने प्रखंड अधिकारी कार्यालय में जोरदार हंगामा किया। शाम को ममता बनर्जी अपने सहयोगियों के साथ वहां पहुंची और जिलाधिकारी और बीडीओ का घेराव कर बैठी। पुलिस ने बल प्रयोग कर वहां से ममता व आंदोलनकारियों को हटाया। इसके अगले दिन कोलकाता के मेयो रोड में गांधी मूर्ति के समक्ष ममता धरने पर बैठ गयीं। इसके बाद से सिंगुर का मुद्दा गरमा गया। इस आंदोलन के बाद से नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर व लेखिका महाश्वेता देवी ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जहां कृषि जमीन पर विरोधी दलों द्वारा कारखाना लगाये जाने का विरोध किया जा रहा था। वहीं वाममोर्चा की ओर इसके पक्ष में सभा की गयी। 09 अक्टूबर 2006 सिंगुर मुद्दे पर तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल बंद का आह्वान किया। 30 नवंबर 2006 को जब ममता बनर्जी को सिंगुर जाने के रास्ते में पुलिस ने रोका, तो तृणमूल के विधायकों ने विधानसभा में जमकर तोड़फोड़ की। 1 दिसंबर 2006 को सिंगुर में पुलिस बल तैनाती के साथ धारा 144 लागू कर जमीन घेरने का काम शुरू किया गया। 02 दिसंबर 2006 सिंगुर में जमीन को घेरा जा रहा था, उस समय गांववालों की ओर से पुलिस पर पथराव किया गया। कार्रवाई में पुलिस ने गांववालों को लाठीचार्ज व आंसू गैस के गोले दाग कर शांत किया और वहां की 997 एकड़ जमीन को घेर दिया। 03 दिसंबर 2006 से ममता बनर्जी ने धर्मतल्ला में बेमियादी अनशन शुरू किया। इस बीच अनशन तोड़ने को लेकर मुख्यमंत्री ने कई बार पत्र लिखे जिसे ममता ने ठुकरा दिया। 12 दिसंबर 2006 को अनशन तोड़ने को लेकर प्रधानमंत्री के पत्र को भी नकार दिया। 18 दिसंबर 2006 को कृषि जमीन रक्षा कमेटी की कार्यकर्ता तापसी मल्लिक की रहस्यमय हालत में टाटा के अधिगृहित जमीन में जली हुई लाश मिली। 19 दिसंबर 2006 को ममता ने एक बार फिर 48 घंटे बंगाल बंद की घोषणा कर दी। बाद में स्थिति सामान्य हुयी लेकिन ममता का अनशन जारी रहा। ममता बनर्जी का अनशन लगातार 25 दिनों तक चला। इस बीच राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी, मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह समेत विभिन्न नेताओं ने ममता को मनाने की कोशिश की। स्वयं मुख्यमंत्री ने तीन बार व्यक्तिगत व सरकारी पत्र लिख कर उनसे अनशन खत्म कर वार्ता करने का आमंत्रण दिया लेकिन ममता जबरन ली गयी जमीन वापस करने के मुद्दे पर अड़ी रहीं। अंत में 25 दिनों के बाद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व पूर्व प्रधानमंत्री ने उनसे अपील की। शीर्षस्थ नेताओं की अपील पर ममता ने न्याय की उम्मीद में अनशन खत्म करने की घोषणा की। इसके बाद 21 जनवरी 2007 से टाटा मोटर का निर्माण कार्य सिंगुर में शुरू हो गया लेकिन दूसरी ओर विरोध भी होता रहा। कई बार ग्रामीणों ने टाटा मोटर की दीवार तोड़ने की कोशिश की। इस दौरान पुलिस के साथ ग्रामीणों की कई बार झड़प हुयी लेकिन निर्माण का काम होता रहा। 10 फरवरी 2007 ममता समर्थक बुद्धिजीवियों की रैली को सिंगुर जाने से रोका गया। 24 फरवरी 2007 सिंगुर मुद्दे पर हाईकोर्ट में सुनवाई और सरकार से हलफनामा तलब किया। 18 जनवरी 2008 टाटा मोटर्स के लिए जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया को अदालत में चुनौती देने वाली याचिका खारिज की गयी। 13 अगस्त 2008 को सिंगुर में टाटा की निर्माणाधीन फैक्ट्री के निकट सभा व जुलूस पर रोक लगी। उसी दिन ममता ने कैंप बनाने का निर्देश दिया। 18 अगस्त 2008 मुख्यमंत्री ने ममता को सिंगुर मुद्दे पर पत्र लिख बातचीत के लिए फिर आमंत्रित किया। 19 अगस्त को ममता बनर्जी ने वाणिज्य मंडलों के साथ बैठक की। 20 अगस्त को तृणमूल नेताओं के साथ मुख्यमंत्री व उद्योगमंत्री की राइटर्स में बैठक बेनतीजा रही। 22 अगस्त को रतन टाटा ने सिंगुर से कारखाना हटाने की धमकी दी। 24 अगस्त से सिंगुर में ममता बनर्जी का अनिश्चितकालीन धरना शुरू हुआ। 25 अगस्त को मुख्यमंत्री ने ममता बनर्जी को पत्र लिख कर पुन: बातचीत का न्योता दिया। धरने की वजह से दुर्गापुर एक्सप्रेस वे जाम रहा तथा 25 हजार ट्रक फंसे रहे। 29 अगस्त से टाटा कारखाने में काम ठप रहा तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को हाईवे से जाम हटाने का निर्देश दिया। 30 अगस्त को एनएचएआई के प्रोजेक्ट निदेशक ने सिंगुर का दौरा किया तथा प्रशासनिक अधिकारियों व ममता के साथ बैठक की। 31अगस्त को पार्थ चटर्जी के नेतृत्व में कृषि जमीन जीविका रक्षा कमेटी के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से भेंट की। उधर केन्द्र ने मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी। उसी दिन माकपा ने आपातकालीन बैठक करके सर्वदलीय बैठक की दिशा में पहल की। 2 सितम्बर को मुख्यमंत्री राज्यपाल से मिलने राजभवन गये। उसी दिन टाटा ने फैक्ट्री में कार्य-निलम्बन की घोषणा की। 4 सितम्बर को राजभवन में राज्यपाल ने राज्य सरकार एवं तृणमूल के प्रतिनिधियों से अलग-अलग बातचीत की। 5 सितम्बर एवं 6 को दोनों पक्षों में फिर बैठक हुई। 7 सितम्बर को राजभवन में मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य एवं तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी में बातचीत हुई।
http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4797670.html

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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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