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Monday, September 30, 2013

अब बुद्धदेव भी माकपा नेतृत्व पर बरसे

अब बुद्धदेव भी माकपा नेतृत्व पर बरसे


केंद्र के खिलाफ जिहाद की नेता ममता और स्थानीय, राज्य स्तरीय मुद्दों को लेकर आंदोलन की वामपंथियों की आदत ही नहीं


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


बंगाल में वाम पंथियों के आंदोलन की एक ही दिशा रही है,केंद्र के खिलाफ सर्वात्मक आंदोलन की दिशा। वाम शासन के 35 सालों में जाने अनजाने बंगाल,केरल और त्रिपुरा की सरकारें बचाने की कवायद में जनांदोलनों से परहेज करते रहनो को अभ्यस्त हो गये हैं वामपंथी। सत्ता दल बतौर केंद्र की वंचना वामपंथियों का प्रिय मुद्दा रहा है  और कर्मचारी,छात्र, महिला,युवा, किसान संगठन केंद्र के खिलाफ ही सड़कों पर उतरते रहे हैं। राज्य स्तर की और स्थानीय समस्याओं को वामपंथियों ने कभी तरजीह ही नही दी। साम्राज्यवाद सामंतवाद विरोधी प्रदर्शनों तक सीमित रह गया वामपंथी आंदोलन।खुद वामपंथी इस देश में जनांदोलन की विरासत से बेदखल होने के जिम्मेदार हैं और कोई नहीं। आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जो अजेय साख और छवि बनी है,लगातार दो दशक तक हर मुद्दे को लेकर उनके सिलसिलेवार आंदोलनों की पृष्ठभूमि है उसके पीछे। बंगाल और देशभर में भूमिआंदोलन की प्राचीन वामपंथी विरासत को अपनाने के कारण लोग उन्हें ही असली वामपंथी मानने लगे हैं। अब केंद्र विरोधी आंदोलन में जब दीदी लगातार आक्रामक होती जा रही हैं, विडंबना यह है कि इसके विपरीत वामपंथी बंगाल में सत्तासमीकरण के मद्देनजर फिर कांग्रेस के साथ गठजोड़ के फिराक में ज्वलंत मुद्दों पर बयानबाजी के अलावा किसी भी स्तर पर आंदोलन में नहीं हैं वामपंथी।


नेता नहीं हैं, नेतृत्व परिवर्तन कैसा


नेता एक दिन में बनता नहीं है। वामपंथी तमाम बुजुर्ग और दिवंगत नेता ममता बनर्जी से भी धारदार आंदोलनों की आग में झुलसकर तैयार हुआ। आंदोलन की आदत छूट जाने से परवर्ती पीढ़ियों में नेतृत्व की कोई लाइन ही नहीं बनी।अब वामपंथी तमाम नेता नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।


माकपा में ज्यादा खलबली


रज्जाक अली मोल्ला ने चेहरे बदलने दलने की मांग की तो पुराने घिसे पिटे चेहरों की ही नुमाइश शुरु हो गयी। नेताओं को कबाड़खाने से निकालकर झाड़ पोंछकर नेतृत्व के लिए पेश करके सांगठनिक कवायद शुरु हो गयी। लेकिन ममता के मुकाबले जुझारु जननेता खोजने की माकपाइयों  की बेसब्र तलाश इसीलिए पूरी हो ही नहीं रही है। जुझारु नेता बाजार में नहीं मिलते। लगभग चार दशक से नेता बनाने के वामपंथी कारखाने में तालाबंदी है।जब नेता हैं ही नहीं तो नेतृत्व परिवर्तन कैसा।बाकी वामपंथी दलों के मुकाबले माकपा ही खोये हुए जनाधार वापस हो न हो,सत्ता में वापसी के लिए बेचैन है। बिना संघर्ष का रास्ता अख्तियार किये माकपाई शार्ट कट से फिर सत्ता में लौटने की जुगत में पुरानी बेड पार्टनर कांग्रेस से प्रेम की पींगे बढ़ा रही हैं।


बुद्धदेव भी नेतृत्व के आलोचक


रज्जाक अली मोल्ला और  बहिस्कृत नेता सोमनाथ चटर्जी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य भी अब खुलकर नेतृत्व की आलोचना करने लगे हैं। फेल माकपाई सांगठनिक कवायद कवायद के दौरान चर्चा गर्म रही कि बुद्धदेव विमान बोस को राज्य सचिव के पद से हटाकर गौतम देव को उनकी कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं। कोलकाता में पिछले रविवार को प्रमोद दासगुप्त भवन में पार्टी की बंद दरवाजा बैठक में विमान बोस की मौजूदगी में बुद्धदेव ने नेतृत्व की कड़ी आलोचना यह कहकर की कि ढेरों ज्वलंत मुद्दे गर्म होने के बावजूद पार्टी नेतृत्व आंदोलन छेड़ने में नाकाम है।पार्टी संगठन की भी उन्होंने जमकर खिंचाई की।बंगाल में निरंकुस आतंक राज के खिलाफ वे तुरंत जंगी आंदोलन चाहते हैं और शिकायत करे रहे हैं कि पार्टी संगठन आंदोलन चलाने काबिल ही नहीं है।राज्य कर्मचारियों के मंहगाई भत्ता का अड़तीस फीसद बकाया है लेकिन कर्मचारी संगठन खामोश  हैं,ऐसी उनकी शिकायत है।उन्होंने गरीबों और असंगठित जनता के मधय जाकर छोटे छोटे आंदोलन तेज करने की फौरी जरुरत भी बतायी।


वोट बायकाट की आलोचना

बंगाल माकपा नेतृत्व पालिका चुनाव के दौरान बर्दमान और चाकदह में अपने सारे उम्मीदवार वापस ले लेने के लिए कटघरे में है।मुकाबले के बजाय कायराने ढंग से ममता बनर्जी के आगे आत्मसमर्पण करने की इस ऐतिहासिक भूल की दिल्ली में बैठे जड़ जमीन से अलग थलग पार्टी पोलित ब्यूरो ने भी आलोचना की है। अब पूर्व मुख्यमंत्री भी इसके लिए सीधे राज्य नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं। उन्होंने कहा कि माकपा में जनता की आस्था लौटने लगी है लेकिन बिना मुकाबला मैदान छोड़कर राज्य नेतृत्व ने जनता के प्रति ही अनास्था जताकर राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को एकतरफा जीत दिला दी है।नगरपालिका चुनाव में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने आठ और कांग्रेस ने दो पद जीते। जबकि वाम मोर्चा ने सिर्फ एक नगरपालिका जीती।


सोमनाथ की युक्ति को बल मिला


बुद्धदेव बाबू अपने मुख्यमंत्रित्व के दौर में परमामु संधि के मुद्दे पर केंद्र सरकार  से समर्थन वापस लेने के खिलाफ थे। पूरा राज्य नेतृत्व इसके खिलाफ था।बुद्धदेव खासतौर पर इसी मुद्दे पर सोमनाथ चटर्जी के बहिस्कार के सख्त खिलाफ रहे हैं। बाद में लगातार बुद्धदेव की अगुवाई में सोमनाथ को पार्टी में वापस लने की मुहिम चलती रही है।इस सिलसिले में ध्यान देने योग्य बात यह है कि बुद्ध बाबू नेतृत्व परिवर्तन के मामले में सोमनाथ के सुर में सुर मिला रहे हैं। गौरतलब है कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने बुधवार को कहा कि पश्चिम बंगाल में वाम दलों को नेतृत्व बदलने पर विचार करना चाहिए। उन्होंने उदारण देते हुए कहा कि टीम के खराब प्रदर्शन पर कोच को बर्खास्त कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि राज्य में वामपंथी राजनीति कमजोर पड़ गई है। मेरा वामदलों से आग्रह है कि सत्ता के भविष्य के लिए एक समीक्षा करें।चटर्जी ने कहा कि प्रत्येक स्तर पर जीत जनरल, कप्तान और नेता पर निर्भर करती है। मैंने खेल में देखा है कि अगर टीम अच्छा प्रदर्शन करने में असफल होती है तो कोच को जूते पड़ते हैं। कुछ ऐसा ही किए जाने की जरूरत है। मार्क्स वादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पूर्व नेता चटर्जी राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों में वाम मोर्चा के पिटने के एक दिन बाद यह बात कही।


सही वाम राजनीति की सबसे ज्यादा जरुरत


गौरतलब है कि साल 2008 में पार्टी से निष्कासित किए जाने से पूर्व चटर्जी कई दशकों तक माकपा के शीर्ष नेता रहे। बुधवार को  एक कार्यक्रम के मौके पर मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि हितों की रक्षा के लिए हमें वास्तविक वाम राजनीति की जरूरत है। लेकिन यह राजनीति कमजोर हो गई है। उसके बाद रविवार को संयोग से बुद्धदेव भी उसी लाइन  का अनुसरण करके बोले।


विमान बोस के लिए मुश्किल

समझा जा रहा था कि राज्य नेतृत्व में विमान बोस को राज्य सचिव और वाममोर्चा चेयरमैन बनाये रखने पर कमोबेस सहमति होगी। पीठ पीछे जो चल रहा था,वह अलग मुद्दा है। लेकिन विमानदा की मौजूदगी में कोई और नहीं खुद बुद्धदेव की ओर से राज्य नेतृत्व पर धुआंधार बमबारी के बाद अब इन पदों पर विमान बोस के बने रहने के औचित्य पर सवालिया निशान तो लग ही गया है बल्कि उनकी कुर्सी को लेकर छीनाझपटी हो जाने की आशंका पैदा हो गयी है।


अब दीदी दिल्ली में केंद्र के खिलाफ धरने पर बैठेंगी

केंद्र के खिलाफ जिहादी तेवर के अलावा केंद्र को चुनौती पेश करने में ममता वामपंथियों से कहीं आगे हो गयी हैं। खुदरा कारोबार में एफडीआई के खिलाफ केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेकर कांग्रेस के साथ कोई नरमी नहीं दिखा रही हैं दीदी।आर्थिक सुधारों के खिलाफ देशभर में मात्र वे ही बोल रही हैं।वाम स्वर कहीं सुनायी ही नहीं पड़ रहा है। चारा घोटाले में लालू को जल पर दीदी ने साफ कह दिया कि लालच बुरी बला है। रेल राज्यमंत्री को उन्हेंने लाइन पर लगा दिया है। वामपंथी इस मामले में भी स्टैंड लेने से पीछे रहे।तेल कीमतों में लगातार वृद्धि की दीदी लगातार विरोध कर रही हैं। पर वामपंथी आंदोलन नही कर सकें। अब रघुराजन पैनल के मुताबिक विकास इंडेक्स के आधार पर बंगाल और दूसरे राज्यों के साथ भेदभाव के खिलाफ पपेसबुकिया विरोध के बाद अब केंद्र की वंचना के खिलाप दिल्ली में धरने पर बैठेंगी दीदी। क्या करेंगे वामपंथी,लाख टकेका सवाल है।


Convicted Lalu dispatched to Jail as Union Cabinet to meet on October 2, to decide on controversial ordinance. Media spares Jagannath Mishra in limelight.Adhir to wait for bailout. दागियों को बचाने अब क्या क्या गुल खिलेंगे सत्ता बगीचे में, देखते रहिये चारा घोटाले के फैसले मद्देनजर आनन फानन जारी आर्डिनेंस फेल दोषी लालू जमकर सत्ता जीमने के बाद आराम करने चल दिये जेल ओबीसी को घेरने का आदर्श वक्त है सत्ता वर्चस्व के लिए सुर्खियों में लालू हैं सर्वत्र जगन्नाथ मिश्र हैं नहीं পশুখাদ্যে দোষী সাব্যস্ত লালুপ্রসাদ, সাজা ৩ অক্টোবর

Convicted Lalu dispatched to Jail as Union Cabinet to meet on October 2, to decide on controversial ordinance. Media spares Jagannath Mishra in limelight.Adhir to wait for bailout.


दागियों को बचाने अब क्या क्या गुल खिलेंगे

सत्ता बगीचे में, देखते रहिये

चारा घोटाले के फैसले मद्देनजर

आनन फानन जारी आर्डिनेंस फेल

दोषी लालू जमकर सत्ता जीमने

के बाद आराम करने चल दिये जेल

ओबीसी को घेरने का आदर्श

वक्त है सत्ता वर्चस्व के लिए

सुर्खियों में लालू हैं सर्वत्र

जगन्नाथ मिश्र हैं नहीं

পশুখাদ্যে দোষী সাব্যস্ত লালুপ্রসাদ, সাজা ৩ অক্টোবর



Palash Biswas

दागियों को बचाने अब क्या क्या गुल खिलेंगे

सत्ता बगीचे में, देखते रहिये

चारा घोटाले के फैसले मद्देनजर

आनन फानन जारी आर्डिनेंस फेल

दोषी लालू जमकर सत्ता जीमने

के बाद आराम करने चल दिये जेल

ओबीसी को घेरने का आदर्श

वक्त है सत्ता वर्चस्व के लिेए

सुर्खियों में लालू हैं सर्वत्र

जगन्नाथ मिश्र हैं नहीं



सुप्रीम कोर्ट के आदेश मुताबिक

लालू की सांसदी खारिज है

अब चुनाव भी नहीं लड़ सकते

फिर तुरंत अधीर की बारी है

बाहुबलियों की जमात में

खलबली भारी है, इस पर

तुर्रा यह कि ईवीएम पर

होगा खारिज करने का

अधिकार वटन वोटरों के लिए


राजमाता ने साफ साफ कह

दिया है कि अध्यादेश

फटा नहीं है,युवराज के
फाड़ो फतवे के बावजूद

लागू हुआ सुप्रीम कोर्ट

का आदेश और लागू हो

गया संविधान और कानून

का राज तो कालेधन के

कारोबार का होगा क्या

खुले बाजार के लिए

अनिवार्य अश्वमेध का होगा क्या

जल जंगल जमीन के अध्यादेश

का भी क्या होना है, चिंता भारी है


जो प्रहार कर रहे थे मनमोहन पर

वे मनमोहन के हक में

खूब तेज बोल रहे हैं

अमेरिका में जाकर जो

देश बेचने का सिलसिला है


चारा घोटाला बच्चा है

उसकी तुलना में कच्चा है

लालू तो चले गये जेल

अब कालिया तेरा क्या होगा


राजमाता कह रही है कि

पार्टी और सरकार है

प्रधानमंत्री के साथ


विपक्ष को भी अपने

धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद

की नैतिकता के बजाय


प्रधानमंत्री के सम्मान की

ज्यादा परवाह है


बहुत ज्यादा उछलिये

मत जनाब, अब भी


आम आदमी की कोई

रपट न दर्ज होती है थाने में

न मीडिया में और न साहित्य में


सत्ता वर्चस्व की खातिर

काला धन की खातिर

खुले बाजार की खातिर


देखते रहिये जनाब

कैसे लोग पैंतरे बदलते हैं


कैसे बदल लेते हैं

बिस्तर के संगी अनेक


सिंहद्वार पर दस्तक तेज है

बहुत तेज है दस्तक भइया

जाग सको तो

जाग जाओ भइया


इस खेल में पहले भी

सुर्खियों के बेताज बादशाह

काट चुके हैं  जेल

क्या हुआ,राबड़ी भाभी ने

खूब संभाला राजपाट

बन गये रेलमंत्री

जब मिल गयी जेल से बेल


सारे के सारे जेल परिंदे

इन दिनों अश्वमेधी घोड़े

के रखवाले हैं

जिनकी अकूत संपत्ति तो है ही

फर्जी अस्मिताओं के बहाने

चलंत वोटबैंक भी है

जो जारी है नरसंहार की

अबाध संस्कृति

जो निनानब्वे फीसद

की रोज रोज की आफत है

जो डिजिटल बायोमेट्रिक

यह नागरिकता है

अल्पमत जनादेश का

जो अवैध सत्ता गठजोड़ हैं

वे सारे के सारे जेल परिंदे

और खांचे में बंद तमाम

तोते उनके रखवाले

सुधार के खिलाफ

चूं भी कर दी तो पड़ जाये कोड़े

वे ही इस कारपोरेट राज

के असली तरणहार

वे ही तमाम अस्मिताओं के

मसीहा और ठेकेदार

उन्हीकी वजह से

देश में कहीं कोई

आंदोलन नहीं राष्ट्रव्यापी

न कोई प्रतिरोध

और महिषासुर वध जारी


सिंहद्वार पर दस्तक तेज है

बहुत तेज है दस्तक भइया

जाग सको तो

जाग जाओ भइया



Lalu Prasad was convicted by the court in the fodder scam, where money was illegally withdrawn from the treasury by Animal Husbandry Department when he was the chief minister of Bihar.
Union Cabinet is meeting on October 2 to take a call on possible withdrawal of the controversial Ordinance on convicted lawmakers. (IE Photo)

এই সময় ডিজিটাল ডেস্ক - পশুখাদ্য কেলেঙ্কারি মামলায় দোষী সাব্যস্ত হলেন প্রাক্তন কেন্দ্রীয় রেলমন্ত্রী লালুপ্রসাদ যাদব। পশুখাদ্য কেলেঙ্কারিতে আরও ৪৫ জনকেও দোষী সাব্যস্ত করেছে রাঁচির বিশেষ সিবিআই আদালত। ৩ অক্টোবর লালুপ্রসাদের সাজা ঘোষণা হবে।


আইনজীবীর বক্তব্য অনুযায়ী, ৩ থেকে ৭ বছরের কারাদণ্ডে দণ্ডিত হওয়ার সম্ভাবনা লালুপ্রাসদের। এদিন আদালত চত্বরে বিশেষ নিরাপত্তার ব্যবস্থা করা হয়েছিল। ৯৫০ কোটি টাকার এই পশুখাদ্য কেলেঙ্কারি মামলা চলছে দীর্ঘদিন ধরে। ১৯৯৬ সালে চাইবাসা ট্রেজারি থেকে গবাদি পশুর খাবার কেনার নামে তুলে নেওয়া হয় ৩৭ কোটি সত্তর লক্ষ টাকা। বিহারের প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী লালুপ্রসাদ যাদব ও আরও এক প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী জগন্নাথ মিশ্র সহ একাধিক ব্যক্তির বিরুদ্ধে এফআইআর দায়ের হয়। পাটনা হাইকোর্ট এই ঘটনার সিবিআই তদন্তের নির্দেশ দেয়। ২০০১ সালে রাঁচির সিবিআই আদালতে মামলা স্থানান্তরিত হওয়ার পর আদালতে আত্মসমর্পণ করেন লালুপ্রসাদ যাদব।


কিছুদিন আগেই দাগী সাংসদদের ভোটে দাঁড়ানো ও সাংসদ পদ বাতিল করার নির্দেশ দিয়েছে সুপ্রিম কোর্ট। দাগী সাংসদদের বাঁচাতে কেন্দ্রের আনা অর্ডিন্যান্সে এখনও সই করেননি রাষ্ট্রপতি প্রণব মুখোপাধ্যায়। অর্ডিন্যান্সের তীব্র বিরেধিতা করেছেন কংগ্রেসের সহ সভাপতি রাহুল গান্ধি। এই অবস্থায় অর্ডিন্যান্স বাতিল হওয়ারই সম্ভাবনা। তাই লালু প্রসাদের তিন থেকে সাত বছর কারাদণ্ড হলে তাঁর সাংসদ পদ খারিজ হতে পারে।

Convicted Lalu dispatched to Jail as Union Cabinet to meet on October 2, to decide on controversial ordinance. Media spares Jagannath Mishra in limelight.At the same time,Union state minister of Raiway Mr. Adhir Ranjan Chowdhari has to wait of  bailout for whom the ordinance bell tolls for.However,Adhir accuses Mamata of framing him in murder case!


Indian Express reports aptly,in a body blow to RJD before next year's Lok Sabha polls, its President Lalu Prasad was on Monday convicted by a special CBI court here in the fodder scam corruption case that disqualifies him from Parliament and renders him ineligible for contesting elections for at least six years.

Quick Edit: After Lalu's conviction, Cong explores option

Another 44 accused, including former Bihar Chief Minister Jagannath Mishra, six politicians and four IAS officers, were also convicted by court of Pravas Kumar Singh for fraudulent withdrawal of Rs 37.7 crore from Chaibasa treasury.

Lalu Prasad to appeal in HC, family alleges 'conspiracy'

The court fixed October three for pronouncement of sentence against Yadav, Mishra and others. The RJD chief was taken to the Birsa Munda Central Jail in Ranchi after being convicted by the court.

Related: Fodder Scam Timeline

The RJD chief faces immediate disqualification as Lok Sabha member under a recent Supreme Court order that an MP or MLA would stand disqualified immediately if convicted by a court for crimes with punishment of two years or more and under some other laws even without jail sentence.

The August judgement of the Supreme Court struck down a provision in the electoral law that provided protection to sitting MPs and MLAs by allowing them to continue in their posts if they appeal against a lower court conviction and secure a stay of the order.

From the archives: Once there was a scam

Lalu would have got protection from disqualification if the ordinance promulgated by the Centre was cleared by President Pranab Mukherjee but he is said to have some reservations and raised questions over it.

Meanwhile, Rahul Gandhi has compounded problems by attacking the ordinance and calling for its withdrawal, virtually sealing its fate.




The Union Cabinet is meeting on October 2 to take a call on possible withdrawal of the controversial Ordinance on convicted lawmakers, whose fate appears to have already been sealed after Rahul Gandhi's strong denunciation of the measure.

Rahul tears ordinance and the PM

Government sources on Monday said that a meeting of the Union Cabinet has been convened on October 2 to deliberate on the Ordinance that seeks to protect convicted lawmakers by circumventing a Supreme Court order.

Rahul has written to me on ordinance issue, will discuss it with Cabinet: PM

Congress Vice President Rahul Gandhi has forced the Congress to have a relook at the Ordinance after he called it a "complete nonsense" and said that it should be "torn up and thrown away."

The Ordinance is currently before President Pranab Mukherjee who is leaving on a foreign tour on October 2.

The President has already met Home Minister Sushil Kumar Shinde, Parliamentary Affairs Minister Kamal Nath and Law and Justice Minister Kapil Sibal to seek clarifications about the Ordinance.

Opposition rubbishes Rahul's blunt attack on ordinance, BJP calls it belated

An indication about the likely fate of the Ordinance was available when Nath said that Gandhi expressed the view of many many people in the party, obviously suggesting that the government should have a "re-look" into it. His deputy in the ministry Rajiv Shukla had also insisted that the party's job is to give direction to the government.

UPA may recall ordinance on convicted lawmakers as Rahul calls it 'nonsense'

"In the last six decades, there have been a number of occasions, when party has got the government's stand changed. Party's job is to give direction to the government," Shukla said.


Meanwhile,union minister of state for Railways Adhir Ranjan Chowdhury Sunday accused CM Mamata Banerjee of getting a supplementary chargesheet filed against him in a two year old case so that he was "put behind the bars and the Congress in the state got weakened".

"The CM has become both malicious and vindictive. Malicious, because of my performance in railways and vindictive, because of my politics. In fact, she is trying to misuse the Supreme Court ordinance on banning tainted people's representatives,'' Chaudhury told The Indian Express from Delhi.

Adhir, against whom a non-bailable arrest warrant has been issued for alleged conspiracy in a murder case, was chargesheeted by the police in a Murshidabad court Saturday. The charge sheet alleged that Chowdhury conspired in the murder of Trinamool Congress worker Kamal Sheikh in Golabazar area of the district in 2011. Ten people have been named of which eight have been arrested, while two others, including Adhir, have been been mentioned as 'absconding.'

चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में यहां सीबीआई की विशेष अदालत ने आज बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद नेता लालू प्रसाद तथा पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र समेत सभी 45 आरोपियों को दोषी करार दिया। इनमें से सात लोगों को जहां आज ही 3 साल तक की कैद की सजा सुना दी गई वहीं शेष 38 लोगों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए आगामी 3 अक्तूबर को सजा सुनाई जाएगी। जिन सात लोगों को आज सजा सुनाई गई उनमें दो राजनीतिज्ञ ध्रुव भगत और बिहार के पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद तथा एक आईएएस अधिकारी और चार आपूर्तिकर्ता शामिल हैं। अदालत ने यह फैसला 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले से जुड़े चाईबासा कोषागार से फर्जी ढंग से 37.7 करोड़ रुपये निकालने के मामले में सुनाया है।


दोषी ठहराए जाने के बाद अदालत से बाहर आते हुए लालू (65) शांत नजर आ रहे थे। उन्होंने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया और अपनी कार से रांची के बाहरी इलाके में तथा राष्ट्रीय खेलगांव के नजदीक स्थित जेल चले गए। इसके पूर्व सफेद एंबेसडर कार से अदालत पहुंचे लालू सहज नजर आए और पार्टी समर्थकों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया। जब न्यायाधीश ने उनके खिलाफ फैसला पढ़ना शुरू किया तो लालू अदालत कक्ष में दूसरी पंक्ति में बैठे थे।


बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद को दोषी ठहराए जाने के साथ ही उनके सामने सांसद के रूप में अयोग्य होने का खतरा पैदा हो गया है । इसके साथ ही इस बात का भी खतरा पैदा हो गया है कि वह कम से कम छह साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे । अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद लालू प्रसाद को बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल ले जाया गया ।


उच्चतम न्यायालय के हाल में आए फैसले के मद्देनजर राजद प्रमुख के सामने लोकसभा सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराए जाने का तत्काल खतरा पैदा हो गया है । शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी अदालत द्वारा दो साल या इससे अधिक की सजा वाले किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है तो वह तत्काल अयोग्य माना जाएगा।


सीबीआई के विशेष न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने लंबे समय से चल रहे इस मामले में बहस पूरी हो जाने के बाद इस वर्ष 17 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। लालू प्रसाद आज का फैसला सुनने के लिए अपने लाव लश्कर के साथ कल शाम पटना से विमान के जरिए रांची पहुंचे थे। इस मामले में लालू के वकील सुरेन्द्र सिंह ने नौ सितंबर को अपनी अंतिम बहस शुरू की थी। बहस के अंतिम दिन 17 सितंबर को भी वकील ने दावा किया था कि बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ इस मामले में अभियोजन की स्वीकृति राज्यपाल ने असंवैधानिक ढंग से दी थी और इसके लिए उन्होंने बिहार मंत्रिपरिषद् से सलाह नहीं ली थी। उन्होंने दावा किया था कि इस मामले में चूंकि लालू के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति ही गलत ढंग से दी गयी थी, अत: उनके खिलाफ पूरा अभियोजन ही अवैध है।


दूसरी ओर, केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने लालू के इस दावे को खारिज करते हुए दलील दी थी कि बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ने इस मामले में अभियोजन की जो स्वीकृति दी थी, वह बिल्कुल वैध थी और इसके लिए मंत्रिपरिषद् से सलाह लेना जरूरी नहीं था।


उच्चतम न्यायालय ने इस वर्ष अगस्त में चुनाव कानून के एक प्रावधान को खारिज कर दिया था जिसके तहत निचली अदालत के फैसले के खिलाफ अपील किए जाने या फैसले पर स्थगन हासिल कर लेने के बाद वर्तमान सांसदों और विधायकों को पद पर बने रहने के लिए संरक्षण प्राप्त था। यदि केंद्र सरकार द्वारा इस संबंध में लाए गए अध्यादेश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी मंजूर कर लेते तो लालू को अयोग्यता से संरक्षण मिल जाता। समझा जाता है कि राष्ट्रपति ने अध्यादेश पर कुछ आपत्ति तथा सवाल उठाए हैं।


इस बीच, राहुल गांधी ने अध्यादेश वापस लेने की मांग कर इसके भाग्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। राजद प्रवक्ता मनोज झा ने कहा कि सजा सुनाए जाने के बाद फैसले को उच्च अदालत में चुनौती दी जाएगी। सत्रह साल पुराने इस मामले में दोषी ठहराने का फैसला सुनाए जाने से पूर्व लालू प्रसाद यहां विशेष सीबीआई अदालत पहुंचे। अदालत ने 17 सितंबर को मामले में फैसला सुनाने के लिए आज की तारीख निर्धारित की थी। दोषी ठहराए गए अन्य लोगों में आईएएस अधिकारी महेश प्रसाद, फूलचंद सिंह, बेक जुलेअस, के. अरूमुगम, आयकर अधिकारी एसी चौधरी, पूर्व एएचडी अधिकारी और चारा आपूर्तिकर्ता शामिल हैं।


उच्चतम न्यायालय ने लालू की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने वर्तमान विशेष अदालत से मामला किसी दूसरी अदालत में भेजे जाने का आग्रह किया था। इसके बाद लालू ने 9 सितंबर को बहस शुरू की थी जो 17 सितंबर को पूरी हुई। चारा घोटाले के चलते लालू प्रसाद को बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।


मुख्यमंत्री के पद पर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बैठाकर लालू ने 31 जुलाई 1997 को पटना की एक अदालत में समर्पण कर दिया था। बाद में वह अदालत के इस आदेश पर रांची पहुंचे थे कि मामला रांची अदालत के अधिकारक्षेत्र में आता है। उनके लिए मेकोन गेस्ट हाउस को कैम्प जेल में तब्दील कर दिया गया था। इसके बाद उन्हें यहां सकरुलर रोड पर स्थित पुरानी बिरसा मुंडा जेल स्थानांतरित कर दिया गया था।


पंद्रह नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड के नया राज्य बनने के बाद मामला इस बात के फैसले के लिए उच्चतम न्यायालय पहुंचा कि प्रकरण अविभाजित बिहार का होने के कारण पटना उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है या नहीं । इस तरह मुकदमा काफी समय तक स्थगित रहा।


उच्चतम न्यायालय ने नवंबर 2001 में आदेश दिया कि मुकदमा रांची में विशेष अदालतों में चलेगा। रांची में सात विशेष अदालतों में मार्च 2002 में मुकदमा शुरू हुआ। मामले में 15 मई से बचाव पक्ष की दलीलें शुरू हुईं और लालू के वकील ने उनके पक्ष में 29 गवाहों से जिरह की।


लेकिन जब बचाव पक्ष तारीखों पर लगातार अनुपस्थित होता रहा तो अदालत ने फैसला सुनाने के लिए 15 जुलाई की तारीख निर्धारित की और आरोपियों से 1 जुलाई तक जिरह पूरी करने को कहा। बाद में लालू उच्चतम न्यायालय पहुंचे और राजनीतिक साजिश की आशंका जताते हुए मामला प्रवास कुमार सिंह की अदालत से स्थानांतरित करने का आग्रह किया जिसे शीर्ष अदालत ने नामंजूर कर दिया। इसके साथ ही लालू के खिलाफ पहला फैसला आने का मार्ग प्रशस्त हो गया था।


इस मामले में 56 लोग आरोपी बनाए गए थे। सुनवाई के दौरान सात आरोपियों की मौत हो गई, दो वायदा माफ गवाह बन गए और एक ने आरोप स्वीकार कर लिया और एक को आरोप मुक्त करार दिया गया। इस घोटाले में आरोपी बनने के बाद लालू प्रसाद को 1997 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। यह घोटाला 1996 में सामने आया था। घोटाले से संबंधित 61 में से 54 मामले वर्ष 2000 में पृथक राज्य के रूप में गठित होने के बाद झारखंड स्थानांतरित कर दिए गए थे।

चारा घोटाला

http://hi.wikipedia.org/s/97q

मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से



इसे पशुपालन घोटाला ही कहा जाना चाहिए क्योंकि मामला सिर्फ़ चारे का नहीं है. असल में, यह सारा घपला बिहार सरकार के ख़ज़ाने से ग़लत ढंग से पैसे निकालने का है. कई वर्षों में करोड़ों की रक़म पशुपालन विभाग के अधिकारियों और ठेकेदारों ने राजनीतिक मिली-भगत के साथ निकाली है.

घपला रोशनी में धीरे-धीरे आया और जांच के बाद पता चला कि ये सिलसिला वर्षों से चल रहा था. शुरूआत छोटे-मोटे मामलों से हुई लेकिन बात बढ़ते-बढ़ते तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार तक जा पहुंची.

इस घोटाले के आरोपी एसबी सिन्हा के बयान के अनुसार चारा घोटाले का पैसा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी मिला था। एके झा ने सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश आरआर त्रिपाठी की अदालत में बताया कि घोटाले के आरोपी एसबी सिन्हा से बयान लिया गया था। इसी बयान में इसकी पुष्टि हुई है। एसबी सिन्हा ने बताया था कि 1995 के लोकसभा चुनाव में चारा घोटाले के आरोपी विजय कुमार मल्लिक द्वारा एक करोड़ रुपये नीतीश कुमार को भिजवाया गया। यह पैसा उन्हें दिल्ली के एक होटल में दिया गया। नीतीश ने पैसे लेकर धन्यवाद भी कहा। कुछ दिनों बाद फिर घोटाले के आरोपी एसबी सिन्हा ने नौकर महेंद्र प्रसाद के हाथ 10 लाख रुपये पटना में विधायक सुधा श्रीवास्तव के घर पर नीतीश कुमार के लिए भेजे। घोटाले के आरोपी आरके दास ने भी कोर्ट में दिये बयान में बताया था कि उसने पांच लाख रुपये नीतीश कुमार को दिये हैं। नीतीश कुमार 1995 में समता पार्टी के नेता थे। वह एसबी सिन्हा को कहते थे कि पैसा नहीं देने पर मामला उजागर कर दिया जाएगा। तत्कालीन विधायक शिवानंद तिवारी, राधाकांत झा, रामदास एवं गुलशन अजमानी को भी पैसा देने की बात सामने आई है।[1]

मामला एक-दो करोड़ रूपए से शुरू होकर अब 360 करोड़ रूपए तक जा पहुंचा है और कोई पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि घपला कितनी रक़म का है क्योंकि यह वर्षों से होता रहा है और बिहार में हिसाब रखने में भी भारी गड़बड़ियां हुई हैं.

मामले के जाल में फंसे लालू यादव को इस सिलसिले में जेल जाना पड़ा, उनके ख़िलाफ़ सीबीआई और आयकर की जांच हुई, छापे पड़े और अब भी वे कई मुक़दमों का सामना कर रहे हैं. आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में सीबीआई ने राबड़ी देवी को भी अभियुक्त बनाया है.

घपले की पोल बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्ज़ी बिलों के ज़रिए करोड़ों रूपए की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए.रातो-रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई सौ कर्मचारी गिरफ़्तार कर लिए गए, कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और राज्य भर में दर्जन भर आपराधिक मुक़दमे दर्ज किए गए.

राब़ड़ी देवी भी लपेटे में लेकिन बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, राज्य के विपक्षी दलों ने मांग उठाई कि घोटाले के आकार और राजनीतिक मिली-भगत को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई से कराई जाए.सीबीआई ने मामले की जांच की कमान संयुक्त निदेशक यू एन विश्वास को सौंपी और यहीं से जांच का रुख़ बदल गया.

शातिर कारगुज़ारी सीबीआई ने अपनी शुरुआती जांच के बाद कहा कि मामला उतना सीधा-सादा नहीं है जितना बिहार सरकार बता रही है.सीबीआई का कहना है कि चारा घोटाले में शामिल सभी बड़े अभियुक्तों के संबंध राष्ट्रीय जनता दल और दूसरी पार्टियों के शीर्ष नेताओं से रहे हैं और उसके पास इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि काली कमाई का हिस्सा नेताओं की झोली में भी गया है. सीबीआई के अनुसार, राज्य के ख़ज़ाने से पैसा कुछ इस तरह निकाला गया- पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने चारे, पशुओं की दवा आदि की सप्लाई के मद में करोड़ों रूपए के फ़र्जी बिल कोषागारों से वर्षों तक नियमित रूप से भुनाए.

विपक्ष ने चुनावी मुद्दा बनाया जांच अधिकारियों का कहना है कि बिहार के मुख्य लेखा परीक्षक ने इसकी जानकारी राज्य सरकार को समय-समय पर भेजी थी लेकिन बिहार सरकार ने इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया.

राज्य सरकार की वित्तीय अनियमितताओं का हाल ये है कि कई-कई वर्षों तक विधानसभा से बजट पारित नहीं हुआ और राज्य का सारा काम लेखा अनुदान के सहारे चलता रहा है.

सीबीआई का कहना है कि उसके पास इस बात के दस्तावेज़ी सबूत हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री को न सिर्फ़ इस मामले की पूरी जानकारी थी बल्कि उन्होंने कई मौक़ों पर राज्य के वित्त मंत्रालय के प्रभारी के रूप में इन निकासियों की अनुमति दी थी.

जांच के दौरान सीबीआई ने ये दावा भी किया लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी अपनी घोषित आय से अधिक संपत्ति रखने के दोषी हैं.

व्यापक षड्यंत्र सीबीआई का कहना रहा है कि ये सामान्य आर्थिक भ्रष्टाचार का नहीं बल्कि व्यापक षड्यंत्र का मामला है जिसमें राज्य के कर्मचारी, नेता और व्यापारी वर्ग समान रूप से भागीदार है. मामला सिर्फ़ राष्ट्रीय जनता दल तक सीमित नहीं रहा. इस सिलसिले में बिहार के एक और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र को गिरफ़्तार किया गया. राज्य के कई और मंत्री भी गिरफ़्तार किए गए. सीबीआई के कमान संभालते ही बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियां हुईं और छापे मारे गए. लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ सीबीआई ने आरोप पत्र दाख़िल कर दिया जिसके बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा और बाद में सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिलने तक वे कई महीनों तक जेल में रहे. मामले के तेज़ी से निबटारे में बहुत सारी बाधाएं आईं. पहले तो इसी पर लंबी क़ानूनी बहस चलती रही कि बिहार से अलग होकर बने झारखंड राज्य के मामलों की सुनवाई पटना हाईकोर्ट में होगी या रांची हाईकोर्ट में.

सीबीआई ने ज़्यादातर मामलों में आरोप पत्र दाख़िल कर दिए हैं और जांच समाप्त हो गई है लेकिन मुक़दमों की सुनवाई शुरू होने में अभी वक्त लगेगा.





चारा घोटाला: लालू यादव दोषी करार, जेल भेजे गए

सोमवार, 30 सितंबर, 2013 को 18:07 IST तक के समाचार

बिहार के चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में सीबीआई अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव को दोषी ठहराया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार अदालत के फैसले के बाद लालू प्रसाद यादव को रांची के बिरसा मुंडा को जेल ले जाया गया.

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टॉपिक

इस मामले में 44 अन्य अभियुक्त भी थे और सभी को अदालत ने दोषी ठहराया है. सज़ा का ऐलान तीन अक्तूबर को होगा.

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सीबीआई के वरीय अभियोजक बीएमपी सिंह ने राँची में पत्रकारों को बताया कि लालू यादव और जगन्नाथ मिश्र को अधिकतम सात साल की सज़ा हो सकती है.

लालू प्रसाद यादव को दोषी ठहराए जाने के फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी ने कहा है कि ये फ़ैसला देर से तो आया है, लेकिन सही है.

जनता दल (यूनाइटेड) के नेता साबिर अली ने कहा है कि इस फ़ैसले के बाद लोगों की न्यायपालिका पर आस्था बढ़ेगी, जो ये मानते थे कि नेताओं को कभी सज़ा नहीं मिलती.

रांची की सीबीआई अदालत ने 17 सितंबर को इस मामले में फ़ैसला सुरक्षित रखा था.

क्लिक करेंचारा घोटाला: कब क्या हुआ

इस मामले में जज बदलने की लालू यादव की अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट ने 13 अगस्त को ख़ारिज कर दी थी.

लालू यादव ने अपनी याचिका में ट्रायल कोर्ट के जज पीके सिंह पर भेदभाव बरतने का आरोप लगाया था.

मामला

लालू प्रसाद और 44 अन्य लोगों को चाइबासा कोषागार से 90 के दशक में 37.7 करोड़ रुपए निकालने के मामले में अभियुक्त बनाया गया था.

चाइबासा तब अविभाजित बिहार का हिस्सा था. चारा घोटाले में विशेष अदालतें 53 में से 44 मामलों में पहले ही फ़ैसले सुना चुकी हैं.

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, पूर्व मंत्री विद्या सागर निषाद, आरके राणा और ध्रुव भगत भी इस मामले में दोषी ठहराया गया है.

राणा और भगत को मई में एक केस में पहले ही दोषी करार दिया जा चुका है. चाइबासा कोषागार से कथित फ़र्ज़ी बिल देकर 37.7 करोड़ रुपए निकालने का ये मामला जब सामने आया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने ध्रुव भगत और जगदीश शर्मा की सदस्यता वाली विधानसभा समिति से इसकी जांच कराने के आदेश दिए थे.

इस मामले में शिवानंद तिवारी, सरयू रॉय, राजीव रंजन सिंह और रविशंकर प्रसाद ने पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. पटना हाईकोर्ट ने 11 मार्च 1996 को 950 करोड़ रुपए के कथित चारा घोटाले के मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया था.

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