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Thursday, September 29, 2016

हमारी मुट्ठी में अब खून से लबालब सात समुंदर! पलाश विश्वास

हमारी मुट्ठी में अब खून से लबालब सात समुंदर!

पलाश विश्वास

पहलीबार टीवी पर युद्ध का सीधा प्रसारण खाड़ी युद्ध के दौरान अमेरिकी मीडिया ने किया अमेरिका के उस युद्ध को अमन चैन के लिए  इराक के खिलाफ पूरी दुनिया का युद्ध साबित करने के लिए।दुनियाभर का मीडिया उसीके मुताबिक विश्व जनमत तैयार करता रहा और तेल कुंओं की आग में तब से लेकर अबतक सारी दुनिया सुलग रही है।

नतीजतन आधी दुनिया अब शरणार्थी सैलाब से उसीतरह लहूलुहान है,जैसे हम इस महादेश के चप्पे चप्पे पर सन सैंतालीस के बाद से लगातार लहूलुहान होने को अभिशप्त हैं।अमेरिका के उस युद्ध की निरंतरता से महान सोवियत संघ का विखंडन हो गया और सारा विश्व ग्लोब में तब्दील होकर अमेरिकी उपनिवेश में तब्दील है।सारी सरकारें और अर्थव्यवस्थाएं अब वाशिंगटन की गुलाम हैं और उसीके हित साध रही हैं।

मनुष्यता अब पिता की हाथों से बिछुड़कर समुंदर में तैरती लाश है और फिंजा सरहदों के आर पार कयामत है।

सरकारी आधिकारिक बयान के अलावा अब तक किसी सच को सच मानने का रिवाज नहीं है और वाशिंगटन का झूठ ही सच मानती रही है दुनिया।दो दशक बाद उस सच के पर्दाफाश के पर्दाफाश के बावजूद  दहशतगर्दी और अविराम युद्धोन्माद, विश्वव्यापी शरणार्थी सैलाब,गृहयुद्धों और प्राकृतिक संसाधनों के लूटखसोट पर केंद्रित नरसंहारी मुक्तबाजार में कैद मनुष्यता की रिहाई के सारे दरवाजे खिड़किया बंद हैं और हम पुशत दर पुश्त हिरोशिमा और नागाशाकी,भोपराल गैस त्रासदी,सिख नरसंहार, असम त्रिपुरा के नरसंहार,आदिवासी भूगोल में सलवा जुड़ुम और बाबरी विध्वंस के बाद गुजरात प्रयोग की निरंतरता के मुक्तबाजार के तेल कुंओं में झलसते रहेंगे।मेहनतकशों के हाथ पांव कटते रहेंगे,युवाओं के सपनों का कत्लगाह बनता रहेगा देश,स्त्री दासी बनी रहेगी,बच्चे शरणार्थी होते रहेंगे और किसान खुदकशी करते रहेंगे।दलितों,आदिवासियों और आम जनता पर जुल्मोसिताम का सिलसिला जारी रहेगा।

इसलिए सर्जिकल स्ट्राइक के सच झूठ के मल्टी मीडिया फोर जी ब्लिट्ज और ब्लास्ट पर मुझे फिलहाल कुछ कहना नहीं है।मोबाइल पर धधकते युद्धोन्माद पर कुछ कहना बेमायने है।राष्ट्रद्रोह तो मान ही लिया जायेगा यह।

हम अमेरिकी उपनिवेश हैं और अमेरिकी नागरिकों की तरह वियतनाम युद्ध और खाड़ी युद्ध के विरोध की तर्ज पर किसी आंदोलन की बात रही दूर,विमर्श,संवाद और अभिव्यक्ति के लिए भी हम आजाद नहीं है क्योंकि यह युद्धोन्माद भी उपभोक्ता सामग्री की तरह कारपोरेट उपज है और हम जाने अनजाने उसके उपभोक्ता हैं। उपभोक्ता को कोई विवेक होता नहीं है।सम्यक ज्ञान और सम्याक प्रज्ञा की कोई संभावना कही नहीं है और न इस अनंत युद्धोन्माद से कोई रिहाई है।धम्म लापता है।

हम लोग ग्लोबीकरण की अवधारणा के तहत इस दुनिया को अपनी मुट्ठी में लेने की तकनीक के पीछे बेतहाशा भाग रहे हैं।यह वह दुनिया है जिसके पोर पोर से खून चूं रहा है।हमारी मुट्ठी में अब खून से लबालब सात समुंदर हैं।जिसमें हमारे अपनों का खून भी पल दर पल शामिल होता जा रहा है।अपनी मुट्ठी में कैद इस दुनिया की हलचल से लेकिन हम बेखबर हैं।खबरें इतनी बेहया हो गयी हैं कि उनमें विज्ञापन के जिंगल के अलावा जिंदगी की कोई धड़कन नहीं है।सच का नामोनिशां बाकी नहीं है।

1991 के बाद,पहले खाड़ी युद्ध के तुरंत बाद से पिछले पच्चीस सालों से हम अमेरिकी उपनिवेश हैं।हमें इसका कोई अहसास नहीं है।सूचना क्रांति के तिलिस्म में हम दरअसल कैद हैं और प्रायोजित पाठ के अलावा हमारा कोई अध्ययन, शोध, शिक्षा, माध्यम,विधा,लोक,लोकायत,परंपरा ,संस्कृति या साहित्य नहीं है।सबकुछ मीडिया है।

हालांकि उपनिवेश हम कोई पहलीबार नहीं बने हैं।फर्क यह है कि करीब दो सौ साल के ब्रिटिश हुकूमत का उपनिवेश बनकर इस महादेश का एकीकरण हो गया। अब अमेरिकी उपनिवेश बन जाने की वजह से गंगा उल्टी बहने लगी है।भारत विभाजन के बाद बचा खुचा भूगोल और इतिहास लहूलुहान होने लगा है और किसानों ,मेहनतकशों की दुनिया में नरसंहारी अश्वमेधी सेनाएं दौड़ रही हैं।साझा इतिहास भूगोल समाज और संस्कृति का ताना बाना बिखरने लगा है।उत्पादन प्रणाली ध्वस्त हो गयी है और औद्योगीकीकरण से जो वर्गीय ध्रूवीकरण की प्रक्रिया शुरु हो गयी थी,जो जाति व्यवस्था नये उत्पादन संबंधों की वजह से खत्म होने लगी थी,मनुस्मृति अनुशासन के बदले जो कानून का राज बहाल होने लगा था और बहुजन समाज वर्गीय ध्रूवीकरण के तहत आकार लेने लगा था,वह सबकुछ इस अमेरिकी उपनिवेश में अब खत्म है या खत्म होने को है।

ब्राह्मण धर्म जो तथागत गौतम बुद्ध की सामाजिक क्रांति से खत्म होकर उदार हिंदुत्व में तब्दील होकर ढाई हजार साल तक इस महादेश की विविधता और बहुलता को आत्मसात करते रहा है,फिर मुक्तबाजार का ब्राह्मणधर्म है,जो भारतीय संविधान की बजाय फिर मनुस्मृति लागू करने पर आमादा है।धम्म फिर सिरे से गायब है।

एकीकरण की बजाय अब युद्धोन्माद का यह मुक्तबाजार हिंदुत्व का ब्राह्मणधर्म है और हमारी राष्ट्रीयता कारपोरेट युद्धोन्माद है।महज सत्तर साल पहले अलग हो गये इस महादेश के अलग अलग राजनितिक हिस्से परमाणु युद्ध और उससे भी भयंकर जलयुद्ध के लिए निजी देशी विदेशी कंपनियों की कारपोरेट फासिज्म के तहत एक दूसरे को खत्म करने पर आमादा हैं जबकि विभाजन के सत्तर साल के बाद भी इन तमाम हिस्सों में संपूर्ण कोई ऐसा जनसंख्या स्थानांतरण हुआ नहीं है कि इस युद्ध में सीमाओं के आरपार बहने वाली खून की नदियों में हमारा वजूद लहूलुहान हो।अकेले बांग्लादेश में दो करोड हिंदू है तो भारत में मुसलमानों की दुनियाभर में सबसे बड़ी आबादी है और कुलस मिलाकर यह महादेश कुलमिलाकर अब भी एक सांस्कृतिक अविभाज्य ईकाई है,जिसे हम तमाम लोग सिरे से नजर्ंदाज कर रहे हैं।

कलिंग युद्ध से पहले,सम्राट अशोक के बुद्धमं शरणं गच्छामि उच्चारण से पहले सारा देश कुरुक्षेत्र का महाभारत बना हुआ था।सत्ता की आम्रपाली पर कब्जा के लिए हमारे गणराज्य खंड खंड राष्ट्रवाद से लहूलुहान हो रहे थे। दो हजार साल का सफर तय करने के बाद हमने बरतानिया के उपनिवेश से रिहा होकर अखंड भारत न सही,उसी परंपरा में नया भारतवर्ष  साझा विरासत की नींव पर बना लिया है।अबभी हमारा राष्ट्रवाद अंध खंडित राष्ट्रवाद युद्धोन्मादी है।धम्म नहीं है कहीं भी।

हमारी विकास यात्रा सिर्फ तकनीकी विकास यात्रा नहीं है और न यह कोई अंतरिक्ष अभियान है।हम इतिहास के रेशम पथ पर सिंधु घाटी से लेकर अबतक लगातार इस महादेश को अमन चैन का भूगोल बनाने की कवायद में लगे रहे हैं। तथागत गौतम बुद्ध ने जो सत्य अहिंसा के धम्म के तहत इस महादेश को एक सूत्र में बांधने का उपक्रम शुरु किया था,वह सारा इतिहास अब धर्मोन्मादी युद्धोन्माद है।

आज मुक्त बाजार का कारपोरेट तंत्र मंत्र यंत्र फिर उसी युद्धोन्माद का आवाहन करके हमें चंडाशोक में तब्दील कर रहा है और हम सबके हाथों में नंगी तलवारें सौंप रहा है कि हम एक दूसरे का गला काट दें।

ब्रिटिश राज के दरम्यान अफगानिस्तान से लेकर म्यांमर,सिंगापुर,श्रीलंका से लेकर नेपाल तक हमारा भूगोल और इतिहास की साझा विरासत हमने सहेज ली। सामंती उत्पादन प्रणाली के नर्क से निकलकर हम औद्योगिक उत्पादन प्रणाली में शामिल हुए।ब्रिटिश हुक्मरान ने देश के बहुजनों को कमोबेश वे सारे अधिकार दे दिये, जिनसे मनुस्मृति की वजह से वे वंचित रहे हैं।मनुस्मृति अनुशासन के बदले कानून का राज बहाल हुआ तो नई उत्पादन प्रणाली के तहत जनमजात पेशे की मनुस्मृति अनिवार्यता खत्म हुई और शिक्षा का अधिकार सार्वजनिक हुआ।

शूद्र दासी स्त्री की मुक्ति की खिड़कियां खुल गयीं।अछूतों को सेना और पुलिस में भर्ती करके उन्हें निषिद्ध शस्त्र धारण का अधिकार मिला।तो संपत्ति और वाणिज्य के अधिकार भी मिले।मुक्तबाजार अब फिर हमसे वे सारे हकहकूक छीन रहा है।

औद्योगीकरण और शहरीकरण के मार्फत नये उत्पादन संबंधों के जरिये मेहनतकशों का वर्गीय ध्रूवीकरण एक तरफ जाति व्यवस्था के शिकंजे से भारतीय समाज को मुक्त करने लगा तो वर्गीय ध्रूवीकरण के रास्ते देश भऱ में,बल्कि पूरे महादेश में बहुजन समाज का एकीकरण होने लगा और सत्ता में भागेदारी का सिलसिला शुरु हो गया।जो अब भी जारी है।जिसे खत्म करने की हर चंद कोशिश इस युद्धोन्मादी हिंदुत्व का असल एजंडा है।

आदिवासी और किसान विद्रोह के अविराम सिलसिला जारी रहने पर जल जंगल जमीन और आजीविका के मुद्दे,शिक्षा और स्त्री मुक्ति,बुनियादी जरुरतों के तमाम मसले अनिवार्य विमर्श में शामिल हुए,जिसकी अभिव्यक्ति भारत की स्वतंत्रतता के लिए पूरे महादेश के आवाम की एकताबद्ध लड़ाई है,आजाद हिंद फौज है।सामाजिक क्रांति की दिशा में संतों के सुधार आंदोलन का सिलसिला जारी रहा तो नवजागरण के तहत सामंतवाद पर कुठाराघात होते रहे और किसान आंदोलनों के तहत मेहनतकश बहुजनों का राजनीतिक उत्थान होने लगा।

यह साझा इतिहास अब हमारी मुट्ठी में बंद सात समंदर का खून है।

हमारे दिलो दिमाग में अब मुक्तबाजार का युद्धोन्माद है।

हम आत्मध्वंस के कार्निवाल में शामिल हम कबंध नागरिक हैं और इस युद्धोन्माद के खिलाफ अभिव्यक्ति की कोई स्वतंत्रता एक दूसरे को भी देने को तैयार नहीं है।फासिज्म की पैदल सेना में तब्दील हमारी देशभक्ति का यही युद्धोन्माद है।



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Friday, September 23, 2016

Thus, RAFALE deal struck!Thanks to Kashmir! Palash Biswas

Thus, RAFALE deal struck!Thanks to Kashmir!

Palash Biswas

It is unprecedented war campaign making in public opinion at home as well as worldwide for yet another Indo Pak clash in the border. It reminds the pattern of war campaign launched by Bush War Machine activated in United States of America as the corporate media worldwide campaign to build up a false resistance against so called weapons of mass destruction in Iraq to launch the war against the middle east to capture oilfields and resultant in Taliban to ISIS which made entire middle East And Africa subjected to American Spring.

Having signed nuclear deal with India,Bush injected the American Spring in Indian psyche to make Indian ocean peace zone a burning oil field for the survival of US War Economy in turmoil with the burns of wars since Vietnam and which have to be continued at any cost to bring home the dead soldiers and marines or those live dead humanity inflicted with personality disorder.

This war cry is being presented as a consumer product with strategic marketing in media and social media as the offspring of neoliberal reforms divested the unity and integrity of Indian nation, its democracy, its natural and human resources along with everything public including defence and internal security just to serve the interests of the desi videsi companies selling the weapons of mass destruction and we have been subjected to radioactive environment as nuclear plants have become viral in our veins so dangerously.This blind nationalism happens to be most antinational in this sense.

This war cry all on the name of false patriotism is nothing but simple business interests with huge stakes by those praivate companies around the world in the wide open Indian Weapon market.

Unfortunately,Indian people,specifically the people in Kashmir vally,a different demography with majority Muslim population  have to be the victims as well as those human beings across the borders who would be sacrificed in border clash which might well be resolved with diplomatic bilateral exercise.

Those vomiting venom against humanity and nature have not to pay anything,the taxpayers have to pay the bill of commission to be paid as it has been the story of all defence purchase.Millions of people around this geopolitics have to be desettled yet again as the partition holocaust continues. Specifically those,who have to lose their sons converted into martyrs.

No conscience seems to relevant as it was not there anywhere to skip the war in the oilfields and the media misled the humanity.


Media reports:

Rafale fighters are 4.5 generation jets and with the deal for 36 aircraft being signed today, the Indian Air Force's (IAF) combat power will be enhanced significantly. The Rafale fighter jet is equipped to carry out both air-to-ground strikes, as well as air-to-air attacks and interceptions during the same sortie. 


Rafale is an "omni-role" aircraft, with a full-range of advanced weapons such as Meteor Beyond-Visual-Range (BVR) missile, SCALP long-range missile, helmet mount system, AESA (Active Electronically Scanned Array) radar and latest warfare systems.


Dassault Aviation says that the aircraft has the ability to track targets and generate real time three-dimensional maps. It has a wing span of 10.90m; length of 15.30m; and a height of 5.30m.


The digital 'Fly-by-Wire' Flight Control System is aimed at providing longitudinal stability. But, more than anything else, it is the missiles that are integrated on the Rafale that add to the IAF's firepower.



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Wednesday, September 21, 2016

भारतीय रेल के लाइफ लाइन वजूद पर सवालिया निशान पलाश विश्वास

भारतीय रेल के लाइफ लाइन वजूद पर सवालिया निशान

पलाश विश्वास

indian railway के लिए चित्र परिणाम

रेल बजट का अवसान नवउदारवादी अर्थशास्त्री विवेक देवराय की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के मुताबिक हुआ है।देवराय नीति आयोग के सदस्य हैं।वे सिंगुर नंदीग्राम प्रकरण में वाम सरकार के खास सलाहकार थे,जिन्होंने डा.अशोक मित्र के सामाजिक अर्थशास्त्र से वामदलों के संबंध तड़ने में बड़ी भूमिका निभाई और बाकी इतिहास सबको मालूम है।हालांकि मीडिया के मुताबिक यह अर्थ व्यवस्था में सुधार की दिशा में  बहुत बड़ी छलांग है।


होगाो,इसमें दो राय नहीं।ब्रिटिश हुकूमत के बाद आजाद भारत में भी भारतीय रेल की देश की अर्थव्यवस्था में भारी योगदान रहा है और अर्थव्वस्था का समारा ढांचा ही भारतीय रेल से नत्थी रहा है।उसे तोड़कर कार्पोरेट अर्थव्यवस्था किसी राकेट की तरह हो सकता है कि हमें मंगल या शनिग्रह में बसा दें। लेकिन इसका कुल मतलब यह हुआ कि रेल अब सार्वजनिक परिवहन या देश की लाइफ लाइन या अर्थ व्यवस्था का बुनियादी ढांचा जैसा कोई वजूद भारतीय रेल का बिल्कुल नहीं रहने वाला है।


शिक्षा, चिकित्सा, ऊर्जा, बैंकिंग, बीमा,भोजन,पेयजल,आपूर्ति,सार्वजनिक निर्माण के निजीकरण के बाद भारतीय रेलवे के निजीकरण की दिशा में यह बहुत बड़ी छलांग है।


गौरतलब है कि 1923 में ब्रिटिश हुकूमत के अंतर्गत रेल बोर्ड के नये सिरे से गठन के साथ अलग रेल बजट की सिफारिश विलियम मिशेल ऐकओवार्थ कमिटी ने की थी। जिसके तहत 1924 से बजट के अलावा अलग रेल बजट का सिलसिला शुरु हुआ जो बहुत अरसे से मूल बजट से कहीं बड़ा हुआ करता था।


आजाद भारत में बजट भारी बना शुरु हुआ और बेतहाशा बढ़ते रक्षा खर्च,सड़क परिवहन, ईंधन व्यय और संरचना व्यय के मुकाबले भारतीय रेल के लिए अब बजट का कुल चार प्रतिशत ही खर्च हो पाता है।जबकि शुरुआत में भारतीय अर्थव्यवस्था भारतयी रेल को केंद्रित रही है और लंबे अरसे तक बजट का 75 से 80 फीसद भारतीय रेलवे पर खर्च होता रहा है,जो अब चार फीसद तक सिमट गया है।


अब भारतीय अर्थव्यवस्था कमसकम रेलवे पर निर्भर नहीं है।कच्चे माल की ढुलाई और सार्वजनिक परिवहने के सड़क परिवहन के विकल्प का हाईवे संस्कृति में बहुत विकास होता रहा है तो आम जनता की आवाजाही की,उनके रोजमर्रे की जिंदगी और आजीविका के सिलसिले में रेलवे की भूमिका 1991 से लगातार खत्म होती जा रही है और सार्वजनिक उपक्रम की बजाय रेलवे अब किसी कारपोरेट कंपनी की तरह मुनाफा वसूली का उपक्रम बनता रहा है। जिसका लोक कल्याण या देश की लाइफ लाइन के कोई नाता नहीं रह गया है।उसके नाभि नाल का संबंध भारतीय जनगण से नहीं, बल्कि शेचर बाजार में दांव पर रखे कारिपोरेट हितों के साथ है।


वैसे भी भारतीय संसद की नीति निर्माण में कोई निर्णायक भूमिका  रह नहीं गयी है और नवउदारवाद की वातानुकूलित संतानें कारपोरेट हितों के मुताबिक विशेषज्ञ कमिटियों के मार्फत नीतियां तय कर देती हैं और भारत सरकार सीधे उसे लागू कर देती है,जिसमें संसद की कोई भूमिका होती नहीं है।


रेल बजट के खात्मे के साथ सुधार का संबंध यही है कि रेलवे को सीधे बाजार के कारपोरेट हितों से जोड़ दिया जाये और मनाफावसूली भी किसी कारपोरेट कंपनी की तरह हो।रेलवे पर जनता के सारे हक हकूक एक झटके से खत्म कर दिये जायें।


रेल सेवाओं के लगातार हो रहे अप्रत्यक्ष निजीकरण की वजह से इस मुनाफ वसूली में कारपोरेट हिस्सेदारी बहुत बड़ी है।रेलवे के उस मुनाफे से देश की आम जनता को कोई लेना देना उसी तरह नहीं होने वाला है,जैसे मौजूदा भारतीय रेल का आम जनता के हितों से उतना ही लेना देना है,जितना किसी नागरिक की क्रय क्षमता से है।आम जनता की आवाजाही या देश जोड़ने के लिए नहीं,जो जितना खर्च कर सके,भारतीय रेल की सेवा आम जनता के लिए उतनी तक सीमित होती जा रही है।


जाहिर है कि भारतीय रेल में गरीबों के लिए अब कोई जगह उसी तरह नहीं बची है जैसे आम जनता के लिए चमकदार वातानुकूलित तेज गति की ट्रेनों में उनके लिए जनरल डब्बे भी नहीं होते।कुल मिलाकर,गरीबों के लिए रेलवे हवाी यात्रा की जैसी मुश्किल और खर्चीली होती जा रही है।अब संसद से भी रेल का नाता टूट गया है।


इस देश की गरीब आम जनता की लाइफ लाइन बतौर जिसतरह भारतीय रेल का इतिहास रहा है,वह सारा किस्सा खत्म है।अब भारतीय रेल स्मार्ट, बुलेट, राजधानी, दुरंतो, शताब्दी या पैलेस आन व्हील जैसा कुछ है,जो लोहारदगा रेलगाड़ी,कोंकन रेलवे जैसी मीठी यादों कोसिरे से दफन करने लगी है।


कारपोरेट बंदोबस्त करते हुए रेलवे के अभूतपूर्व  व्तार और विकास के मुकाबले रेल कर्मचारियों की संख्या सत्रह लाख से घटते घटते बहुत तेजी से दस लाख तक सिमट जाने वाली है और इसे अंततः चार लाख तक कर देने की योजना है।रेलबजट के बहाने भारतीय संसद में जो भारतीय रेल की दशा दिशा पर बहसें होती रही हैं और कुछ हद तक जनसुनवाई जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के जरिये कमोबेश होती  रही है,वह सिलसिला जाहिर है कि अब बंद है।


भारतीय रेल पर रेल बजट के अवसान के बाद संसद में या सड़क पर किसी सार्वजनिक बहस की फिर कोई गुंजाइश रही नहीं है।


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Thursday, September 15, 2016

Hastakshep:महत्वपूर्ण खबरें और आलेख रामदेव को जमीन देने के लिए आदिवासियों को उजाड़ता कथित वीडियो हो गया वायरल

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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

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मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

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Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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