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Monday, July 31, 2017

भारत चीन विवादःअमेरिका और इजराइल के दम पर राष्ट्र कीएकता और अखंडता को दांव पर लगाने का यह खतरनाक खेल बी राष्ट्रद्रोह है। चीन के साथ व्यापक हो रहे सीमाविवाद के सिलसिले में नक्ललबाडी़ तक फैली दार्जिलिंग की हिसा का संज्ञान न भारत सरकार ले रही है और न भारत की संसद।ऐसे हालात में अगर युद्ध हुआ तो हिमालयऔर हिमालयी जनता का लहूलुहान होना तय है। पलाश विश्वास




भारत चीन विवादःअमेरिका और इजराइल के दम पर राष्ट्र कीएकता और अखंडता को दांव पर लगाने का यह खतरनाक खेल बी राष्ट्रद्रोह है।
 चीन के साथ व्यापक हो रहे सीमाविवाद के सिलसिले में नक्ललबाडी़ तक फैली दार्जिलिंग की हिसा का संज्ञान न भारत सरकार ले रही है और न भारत की संसद।ऐसे हालात में अगर युद्ध हुआ तो हिमालयऔर हिमालयी जनता का लहूलुहान होना तय है।
पलाश विश्वास

हमने जब दार्जिलिंग के पहाड़ों में संघ परिवार समर्थित गोरखालैंड आंदोलन के सिलसिले में भारत की एकता और अखंडता को गंभीर खतरे की चेतावनी दी और सिक्किम के साथ पूरे उत्तरपूर्व भारत के बाकी देश से कट जाने का अंदेशा जताया,तो इसकी प्रतिक्रिया में हमें देशद्रोही का तमगा दे दिया भक्तों ने।
हम हिमालय की बात कर रहे थे और यह बता रहे थे कि भारत सरकार को न हिमालय और न हिमालयी  जनता की कोई परवाह है और न भारत देश की।तो उत्तराखंड से पूछा जाने लगा कि हम ऐसा कैसे सोच लेते हैं।सत्तावर्ग,उनके हितों और सत्ता की राजनीति पर सवाल उठाने से सीधे कम्युनिस्ट कह दिया जाता है।
अब डोभाल की राजनय के बाद कहा जाने लगा कि प्रधान सेवक की चीन यात्रा के दौरान भार चीन में समझौता हो जायेगा और सिक्किम की सीमा पर मंडराते युद्ध के बादल छंट जायेंगे।
चीन का तेवर बदला नहीं है और भारत में भक्तजन मंत्रजाप,यज्ञ,होम की वैदिकी पद्धति से चीन को धूल चटाने की तैयारी कर रहे हैं।
इसी बीच उत्तराखंड में चीनी सेना की घुसपैठ की खबर आ गयी है।अरुणाचल से लेकर पाकिस्तान होकर अरब सागर तक चीन का युद्धक कारीडोर तैयार हो गया है।
कश्मीर के लगातार अशांत रहने और कश्मीर समस्या का हल न निकलने की वजह से पाकअधिकृत कश्मीर में चीनी सैना ने भारत के खिलाप मोर्चा बांध लिया है तो कश्मीर का एक हिस्से  पर 1962 की लड़ाई के बाद से चीन का कब्जा है,जिसे अक्साई चीन कहा जा सकता है।जिसके नतीजतन कश्मीर तीनों तरफ से चीनी मोर्चाबंदी से घिरा हुआ है,जहां उपद्रव,अशांति की वजह से अपनी सीमा के भीतर ही भारतीय सेना की मोर्चाबंदी कानून और व्यवस्था से निपटने के लिए कहीं ज्यादा है,चीन के मुकाबले की कोई तैयारी नहीं है।
दार्जिलिंग संकट की वजह से बंगाल में गृहयुद्ध के जैसे हालात है।पहाड़ से खुकरी जुलूस सिलिगुड़ी को कूच करने लगा है और भारतीय सेना की गाड़ियां आंदोलनकारियों के बंद की वजह से तीस्ता बैराज के नजदीक सुकना में अटकी हुई हैं।तो बाकी भारत को असम और उत्तर पूर्व भारत से जोड़ने वाला 18 किमी का चिकन नेक कारीडोर की भी नाकेबंदी हो गयी है क्योंकि गारखालैंड आंदोलन अलपुरदुआर के इस इलाके में फैल गया है और वहा हिंसा का तांडव है।
सिकिकम की नाकेबंदी तो जारी है ही,अलीपुर दुआर में फैली हिंसा की वजह से अब भूटान की भी नाकेबंदी हो गयी है।यह इलका बांग्लादेश से भी सटा हुआ है और भारत और भूटान के जंगल अल्फा उग्रवादियों के कब्जे में है।यह डोकलाम संकट से बड़ा संकट है।
कैलास मानसरोवर की यात्रा चीन ने रोकदी है और हिंदुत्व की राजनय इस समस्या को सुलझा नहीं सकी है।एवरेस्ट तक चीन की सड़कें पहुंच गयी हैं और ब्रह्मपु्त्र का पानी रोकने के चीनी उपक्रम का नमामि ब्रह्मपुत्र राजनीति से कोई लेना देना उसीतरह नहीं है जैसे नमामि गंगे का हिमालय की सुरक्षा से कुछभी लेना देना नहीं है।
हम बार बार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अपनी जनता को कुचलकर कोई युद्ध जीतना मुश्किल है।उत्तरपूर्व से लोकर कश्मीर तक भारत चीन सीमा के तमाम इलाके अशांत है  और पाकिस्तान के साथ चीन के आर्थिक सैन्य सहयोग के मुकाबले हिंदुत्व के एजंडे की वजह से भारत की कोई जवाबी मोर्चाबंदी हुई नहीं है।भाषण से चुनाव जीते जा सकते है,युद्ध नहीं।अफगानिस्तान,ईरान या रूस के साथ चीन के मुकाबले के लिए कोई समझौता तो हुआ ही नहीं है,तो नेपाल और बांग्लादेश के साथ संबंध भी तेजी से बिगड़ गये हैं और नेपाल,बांग्लादेश और श्रीलंका में भी चीन का असर बढञता जा रहा है।
पाकिस्तान की अर्थव्वस्था अगर चीनके कब्जे में हैं तो बारतीय बाजार में भी चीन की जबर्दस्त घुसपैठ है।संघी देशभक्त सरकार की चहेती कंपनियों के भारी कारोबारी समझौते चीन के साथ हुए हैं।मसलन फोर जी मोबाइल का ताजा किस्सा है।
अमेरिका और इजराइल के दम पर राष्ट्र कीएकता और अखंडता को दांव पर लगाने का यह खतरनाक खेल बी राष्ट्रद्रोह है।
चीने के साथ व्यापक हो रहे सीमाविवाद के सिलसिले में नक्ललबाडी़ तक फैली दार्जिलिंग की हिसा का संज्ञान न भारत सरकार ले रही है और न भारत की संसद।ऐसे हालात में अगर युद्ध हुआ तो हिमालयऔर हिमालयी जनता का लहूलुहान होना तय है।

Sunday, July 30, 2017

हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद के कट्टर विरोधी रवींद्र नाथ को निषिद्ध करके दिखाये,संघ परिवार को बंगाल की चुनौती पलाश विश्वास

हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद के कट्टर विरोधी रवींद्र नाथ को निषिद्ध करके दिखाये,संघ परिवार को बंगाल की चुनौती

पलाश विश्वास

संदर्भः आज रवींद्र नाथ को प्रतिबंधित करने की चुनौती देता हुआ बांग्ला दैनिक आनंद बाजार पत्रिका में प्रकाशित सेमंती घोष का अत्यंत प्रासंगिक आलेख,जिसके मुताबिक रवींद्र नाथ का व्यक्तित्व कृतित्व संघ परिवार और उसके हिंदू राष्ट्रवाद के लिए सबसे बड़ा खतरा है।उनके मुताबिक रवींद्रनाथ का लिखा,कहा हर शब्द विशुद्धता के नस्ली ब्राह्मणावादी हिंदू राष्ट्रवाद के खिलाफ है। रवींद्रनाथ ही इस अंध राष्ट्रवाद के प्रतिरोध में एक अजेय किला हैं और मोर्चा भी।जो बांग्ला पढ़ सकते हैं,वे अवश्य ही यह आलेख पढ़ें।


Rabindranath Tagore

নিষিদ্ধ করলেন না?

সেমন্তী ঘোষ

স্কুল সিলেবাসের বইপত্র খুঁটিয়ে পড়ে গোলমেলে জিনিসগুলো বাদ দেওয়ার দায়িত্ব পড়েছিল বত্রা মশাই-এর উপর। তিনি একটা পাঁচ-পাতা জোড়া লম্বা নিষেধাজ্ঞা ফিরিস্তি বানিয়ে দিয়েছেন, মির্জা গালিব, এম এফ হুসেন, আকবর, আওরঙ্গজেব, আমির খুসরু, কত নাম তাতে। এই বৃহৎ ও সমৃদ্ধ লাল-তালিকাটির বেশ উপরের দিকেই ছিলেন রবি ঠাকুর।

भारतीयता और भारत की कल्पना रवींद्र नाथ की गीतांजलि के बिना असंभव है,जिसे संघ परिवार भागवत गीता के महाभारत में बदलने की कोशिश कर रहा है।

रवींद्र नाथ सिर्फ हिंदुत्व के खिलाफ ही नहीं,हिंदू राष्ट्रवाद के खिलाफ ही नहीं,राष्ट्रवाद के खिलाफ भी थे।उनका कहना था कि राष्ट्रवाद मनुष्यता का अपमान है।रवींद्र नाथ ने जब यह बात कही थी,तब हिटलर मुसोलिनी के अंध राष्ट्रवाद से पूरी दुनिया जख्मी और लहूलुहान थी।लातिन अमेरिका,यूरोप और चीन,रूस,जापान की यात्रा के दौरान बी रवींद्रनाथ लगातार इस राष्ट्रवाद के खिलाफ बोलते लिखते रहे हैं।

हम आज के संदर्भ में राष्ट्रवाद के केसरियाकरण के बाद कश्मीर, मध्यभारत और आदिवासी भूगोल, असम,मणिपुर,समूचे पूर्वोत्तर भारत,दार्जिलिंग, तमिलनाडु और समूचे दक्षिण भारत के खिलाफ लामबंद राष्ट्रवादी बजरंगी सेना,साहित्य.संस्कृति और इतिहास के केसरियाकरण के संदर्भ में राष्ट्रवाद का महिमामंडित वीभत्स चेहरा देख सकते हैं।यह राष्ट्रवाद विशुद्धता का नस्ली फासिस्ट राष्ट्रवाद है जिसके तहत नागरिकों को अपनी देह,मन,मस्तिष्क,विचारों और ख्वाबों पर भी कोई अधिकार नहीं है।यह सैन्य पारमाणविक राष्ट्र की गुलाम प्रजा का राष्ट्रवाद है,जो नागरिकता और मानवाधिकार के विरुद्ध है।

यही वजह है कि जहां बंकिमचंद्र,उनके आनंद मठ और वंदेमातरम के महिमामंडन से हिंदुत्व के अश्वमेधी अभियान को सुनामी में तब्दील करने पर लगा है संघ परिवार,तो वहीं रवींद्रनाथ के रचे राष्ट्रगान में विविधता और बहुलता के जयगान के खिलाफ है बजरंगी सेना।

संजोगवश बांग्लादेश में भी कट्टरपंथी इस्लामी राष्ट्रवाद रवींद्रनाथ,रवींद्र रचनासमग्र, बांग्लादेश के रवींद्र रचित राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला और रवींद्रनाथ के मानवता वादी विश्वबंधुत्व के दर्शन के खिलाप संघ परिवार की तरह लामबंद है।

तब हम भाषाबंधन के संपादकीय में कृपाशकंर चौबे और अरविंद चतुर्वेद के साथ थे।महाश्वेता देवी प्रदान संपादक थीं।नवारुण दा संपादक।भारतीय भाषाओं के साहित्य के सेतुबंधन के उद्देश्य लेकर निकली इस पत्रिका के संपादक मंडल में वीरेन डंगवाल, मंगलेश डबराल और पंकज बिष्ट जैसे लोग थे।

नवारुण दा शब्दों के आशय और प्रयोग को लेकर बेहद संवेदनशील थे।उन्होंने ही ग्लोबेलाइजेशन का अनुवाद ग्लोबीकरण बताया क्योंकि उनके नजरिये से यह वैश्वीकरण नहीं है,बल्कि वैश्वीकरण के खिलाफ मुक्तबाजार की नरसंहार संस्कृति के कारपोरेट वर्चस्व है यह।

रवींद्रनाथ की अंतरराष्ट्रीय नागरिकता के मानवतावाद को हमारे नवारुण भट्टाचार्य  हिंदुत्व के राष्ट्रवाद की जगह असल वैश्वीकरण ,ग्लोबेलाइजेशन मानते थे,जो मुक्तबाजारी कारपोरेट एकाधिकार के साम्राज्यवाद के उलट है तो सैन्य राष्ट्रवाद के खिलाफ भी।

महाश्वेता दी ने भी अपनी सारी रचनाओं में इस सैन्य राष्ट्रवाद के खिलाफ आदिवासियों,किसानों और महिलाओं के जल जंगल जमीन के हक हकूक की जनांदोलनों की बात की है।

गौरतलब है कि पंडित जवाहरलाल नेहरु भी रवींद्र दर्शन के मुताबिक राष्ट्रवाद की विशुद्धता के विपरीत पंचशील के विश्वबंधुत्व,विविधता और बहुलता के पक्षधर थे,जिन्हें संघ परिवार ने भारतीय इतिहास से गांधी के साथ मिटाने का बीड़ा उठा लिया है।गांधी नेहरु चूंकि राजनीति की वजह से हाशिये पर डाले जा सकते हैं लेकिन जहां बंगाल और बांग्लादेश में हर स्त्री की दिनचर्या में रवींद्र संगीत रचा बसा है,वहां रवींद्रनाथ को मिटाना उसके बूते में नहीं है।

बंगाल के खिलाफ ताजा वर्गी हमले के प्रतिरोध में अकेले रवींद्रनाथ काफी हैं।

अस्पृश्यता के खिलाफ,सामाजिक बहिस्कार के खिलाफ,नस्ली विशुद्धता के खिलाफ बौद्धमय भारत के प्रवक्ता रवींद्रनाथ के मुताबिक भारतवर्ष हिंदुस्तान नहीं है,यह भारत तीर्थ है,जहां विश्वभर से मनुष्यता की विविध धाराओं का विलयहोकर एकाकार मनुष्यता की संस्कृति है।

रवींद्र की यह संस्कृति संघ परिवार के आनंद मठ  नस्ली राष्ट्वाद के खिलाफ है।इसलिए अंबेडकर को आत्मसात कर लेने के बावजूद रवींद्र के दलित विमर्श को आत्मसात करना संघ परिवार के लिए असंभव है।   

सेमंती घोष के मुताबिक रवींद्रनाथ की हर रचना,उनके तमाम पत्र,उनका संगीत,उनके वक्तव्य और उनका व्यक्तित्व संघ परिवार के हिंदुत्व के एजंडे के खिलाफ है।लेकिन मरे हुए रवींद्रनाथ का कम से कम बंगाल में सर्वव्यापी असर इतना प्रबल है कि संघ परिवार उन्हें प्रतिबंधित करने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहा है।

नवजागरण की विरासत को समझे बिना रवींद्र साहित्य,रवींद्र दर्शन को समझना असंभव है।हिंदी के आलोचक डा.शंभूनाथ ने नवजागरण की विरासत पर महत्वपूर्ण शोध किया है,लगता है कि सरकारी खरीद के अलावा यह अत्यंत महत्वपूर्ण शोध आम हिंदी पाठकों तक नहीं पहुंचा है।

रवींद्रनाथ के पिता देवर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर ब्रह्मसमाज आंदोलन में प्रमुख थे और इस आंदोलन का केंद्र ठाकुरबाड़ी जोड़ासांको था,जो स्त्री मुक्ति आंदोलन का केंद्र भी था। कुलीन, सवर्ण हिंदुओं के लिए ब्रह्मसमाजी मुसलमानों, ईसाइयों और अछूतों के बराबर अस्पृश्य शत्रु थे।

यही वजह रही है कि बंगाली भद्रलोक विद्वतजनों ने नोबेल पुरस्कार पाने से पहले रवींद्रनाथ को कभी कवि माना नहीं है।

दूसरी ओर,उनकी रचनाओं और जीवन दर्शन में महात्मा गौतम बुद्ध का सर्वव्यापी असर है और उनकी समूची रचनाधर्मिता अस्पृश्यता के नस्ली हिंदुत्व के खिलाफ निरंतर अभियान है।

हमने अछूत रवींद्रनाथ के इस दलित विमर्श पर करीब दस बारह साल पहले कवि केदारनाथ सिंह के कहने पर सिलसिलेवार काम किया था।महज तीन महीने के भीतर एक किताब की पांडुलिपि उन्हें सौंपी थी,जिसे उन्होंने प्रकाशन के लिए दरियागंज , दिल्ली के प्रकाशक हरिश्चंद्र जी को सौंपी थी।हमने केदारनाथ जी से निवेदन किया था कि वह पांडुलिपि वे संपादित कर दें।हरिश्चंद्र जी ने छापने का वायदा किया था।लेकिल दस बारहसाल से वह पांडुलिपि उनके पास पड़ी है।मेरे पास जो मूल पांडुलिपि थी,वह बाकी चीजों,संदर्भ पुस्तकों और प्रकाशित सामग्री के साथ चली गयी।

अब बेघऱ, बेरोजगार हालत में नये सिरे से काम करना मुश्किल है हमारे लिए।भारतीय भाषाओं के युवा रचनाकार,आलोचक इस अधूरे काम को पूरा कर दें तो रवींद्र  ही नहीं,भारत और भारतीय दर्शन परंपरा को समझने,विविधता,बहुलता और सहिष्णुता की परंपरा को मजबूत करने में मदद मिलेगी।मेरे पास न वक्त है और न संसाधन।


उत्तर भारत में रवींद्र नाथ के साथ मिर्जा गालिब,अमीर खुसरो, प्रेमचंद, पाश जैसे रचनाकारों के खिलाफ संघ परिवार के फतवे और पाठ्यक्रम बदलकर साहित्य और इतिहास को बदलने के केसरिया उपक्रम के खिलाफ साहित्यिक सांस्कृतिक जगत में अनंत सन्नाटा है।

इसके विपरीत बंगाल में इसके खिलाफ बहुत तीखी प्रतिक्रिया है रही है और संस्कृतिकर्मी सड़कों पर उतरने लगे हैं।

गायपट्टी के केसरिया मीडिया के विपरीत बंगाल के सबसे लोकप्रिय दैनिक भी इस मुहिम में शामिल है।बाकी मीडिया भी हिंदुत्वकरण के खिलाफ लामबंद है।

आज ही आनंदबाजार में नवजागरण के मार्फत विशुद्धता के हिंदुत्व पर कुठाराघात करने वाले ईश्वरचंद्र विद्यासागर का वसीयतनामा छपा है,जिसमें उन्होंने अपने पुत्र को त्याग देने की घोषणा की है।उन्होंने परिवार और महानगर कोलकाता छोड़कर आखिरी वक्त आदिवासी गांव और समाज में बिताया।

नवजागरण की विरासत में शामिल विद्यासागर,राजा राममोहन राय,माइकेल मधुसूदन दत्त के सामाजिक सुधारों के चलते भारतीय समाज आधुनिक बना है,उदार और प्रगतिशील भी।

माइकेल के मेघनाद वध काव्य और रवींद्रनाथ के खिलाफ संघियों ने बंगाल में घृणा अभियान चलाने की कोशिश की तो उसका तीव्र प्रतिरोध हुआ।लेकिन बाकी भारत में साहित्य,संस्कृति और इतिहास के केसरियाकरण की कोई प्रतिक्रिया नहीं है।

मैंने इससे पहले लिखा है कि बंगाली दिनचर्या में रवींद्रनाथ की उपस्थिति अनिवार्य सी है,  जाति,  धर्म,  वर्ग, राष्ट्र, राजनीति के सारे अवरोधों के आर पार रवींद्र बांग्लाभाषियों के लिए सार्वभौम हैं, लेकिन बंगाली होने से ही लोग रवींद्र के जीवन दर्शन को समझते होंगे, ऐसी प्रत्याशा करना मुश्किल है।

इसके बावजूद संघ परिवार के रवींद्र और दूसरे भारतीय लेखकों के खिलाफ,साहित्य और संस्कृति के केसरियाकरण खिलाफ जो तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है,उससे साफ जाहिर है कि संस्कृति विद्वतजनों की बपौती नहीं है।


बत्रा साहेब की मेहरबानी है कि उन्होंने फासिज्म के प्रतिरोध में खड़े भारत के महान रचनाकारों को चिन्हित कर दिया।इन प्रतिबंधित रचनाकारों में कोई जीवित और सक्रिय रचनाकार नहीं है तो इससे साफ जाहिर है कि संघ परिवार के नजरिये से भी उनके हिंदुत्व के प्रतिरोध में कोई समकालीन रचनाकार नहीं है।

उन्हीं मृत रचनाकारों को प्रतिबंधित करने के संघ परिवार के कार्यक्रम के बारे में समकालीन रचनाकारों की चुप्पी उनकी विचारधारा,उनकी प्रतिबद्धता और उनकी रचनाधर्मिता को अभिव्यक्त करती है।


गौरतलब है कि मुक्तिबोध पर अभी हिंदुत्व जिहादियों की कृपा नहीं हुई है।शायद उन्हें समझना हर किसी के बस में नहीं है,गोबरपंथियों के लिए तो वे अबूझ ही हैं।


उन्हीं मृत रचनाकारों को प्रतिबंधित करने के संघ परिवार के कार्यक्रम के बारे में समकालीन रचनाकारों की चुप्पी उनकी विचारधारा,उनकी प्रतिबद्धता और उनकी रचनाधर्मिता को अभिव्यक्त करती है।




गौरतलब है कि मुक्तिबोध पर अभी हिंदुत्व जिहादियों की कृपा नहीं हुई है।शायद उन्हें समझना हर किसी के बस में नहीं है,गोबरपंथियों के लिए तो वे अबूझ ही हैं।अगर कांटेट के लिहाज से देखें तो फासिजम के राजकाज के लिए सबसे खतरनाक मुक्तिबोध है,जो वर्गीय ध्रूवीकरण की बात अपनी कविताओं में कहते हैं और उनका अंधेरा फासिज्म का अखंड आतंकाकारी चेहरा है।शायद महामहिम बत्रा महोदय ने अभी मुक्तबोध को कायदे से पढ़ा नहीं है।

बत्रा साहेब की कृपा से जो प्रतिबंधित हैं,उनमें रवींद्र,गांधी,प्रेमचंद,पाश, गालिब को समझना भी गोबरपंथियों के लिए असंभव है।

जिन गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस के रामराज्य और मर्यादा पुरुषोत्तम को कैंद्रित यह मनुस्मृति सुनामी है,उन्हें भी वे कितना समझते होंगे,इसका भी अंदाजा लगाना मुश्किल है।

कबीर दास और सूरदास लोक में रचे बसे भारत के सबसे बड़े सार्वजनीन कवि हैं,जिनके बिना भारतीयता की कल्पना असंभव है और देश के हर हिस्से में जिनका असर है। मध्यभारत में तो कबीर को गाने की वैसी ही संस्कृति है,जैसे बंगाल में रवींद्र नाथ को गाने की है और उसी मध्यभारत में हिंदुत्व के सबसे मजबूत गढ़ और आधार है।

ঠিকই তো, সংঘের পক্ষে রবীন্দ্রনাথকে হজম করা অসম্ভব

নিষিদ্ধ করলেন না?

সেমন্তী ঘোষ

না — মেনে নেওয়া যাচ্ছে না। রবীন্দ্রনাথের এই হাঁড়ির হাল মেনে নেওয়া অসম্ভব। কী করি! দীননাথ বত্রাকে একটা ফোন করব? বলব, মশাই দেখুন একটু, আপনিই পারেন আমাদের বাঁচাতে! এই তো সে দিন আপনি বললেন, রবীন্দ্রনাথের লেখা স্কুল সিলেবাস থেকে বাদ দেওয়া হবে। কেন তবে আপনার কথা না শুনে ওরা এখন পিছু হটছে? কেন মিথ্যে করে বলছে, আপনার শিক্ষা সংস্কৃতি উত্থান ন্যাসকে না কি আরএসএস-এর অংশ বলা যায় না? সে দিন আবার শুনলাম, পশ্চিমবঙ্গের আরএসএস ক্যাপটেন বিদ্যুৎ মুখুজ্জে বলছেন, অমন কথা নাকি ন্যাস বলেনি। দেখুন তো, কী কাণ্ড, সাজিয়ে গুছিয়ে দিনকে রাত করে রবি ঠাকুরকে লাস্ট মোমেন্টে বাঁচিয়ে দেওয়া? না, এ সব সহ্যের অতীত! আপনার উচিত, সোজা মাঠে নেমে ব্যাপারটা নিজে সামলানো। শুধু রবীন্দ্রনাথের লেখাপত্র নয়, রবীন্দ্রনাথ নামে লোকটাকেই এক ধাক্কায় নিষিদ্ধ করে দেওয়া। এর পর থেকে যেন ওঁকে 'বিপ' ঠাকুর ছাড়া আর কিছু না বলা হয়।

স্কুল সিলেবাসের বইপত্র খুঁটিয়ে পড়ে গোলমেলে জিনিসগুলো বাদ দেওয়ার দায়িত্ব পড়েছিল বত্রা মশাই-এর উপর। তিনি একটা পাঁচ-পাতা জোড়া লম্বা নিষেধাজ্ঞা ফিরিস্তি বানিয়ে দিয়েছেন, মির্জা গালিব, এম এফ হুসেন, আকবর, আওরঙ্গজেব, আমির খুসরু, কত নাম তাতে। এই বৃহৎ ও সমৃদ্ধ লাল-তালিকাটির বেশ উপরের দিকেই ছিলেন রবি ঠাকুর। কে জানে এখন কী অবস্থা, বকুনি খেয়ে নামটা তালিকা থেকে কাটা যাচ্ছে কি না! অথচ ন্যাস-প্রধান ওরফে সংঘ-নেতা বত্রা তো ঠিকই ধরেছিলেন, সংঘীয় জাতীয়তাবাদ আর বিজেপীয় হিন্দুত্ববাদের ঘোর শত্রু বলে যদি বিশ শতকের ভারত থেকে মাত্র একটি লোককেও বেছে নিতে বলা হয়, প্রথম নামটাই হওয়া উচিত রবীন্দ্রনাথ। আরএসএস-ই যদি রবীন্দ্রনাথকে বাদ না দেয়, আর কে দেবে? উচিত তো ছিল, এখনই জোড়াসাঁকো শান্তিনিকেতন সব ব্যারিকেড দিয়ে ঘিরে দেওয়া, নোটিস সেঁটে দেওয়া— ডেঞ্জার জোন, নো এনট্রি ইত্যাদি। এমনিতেই বাঙালির গোটা তিনেক প্রজন্ম ইতিমধ্যে রবীন্দ্রনাথের কুপ্রভাবে ফর্দাফাঁই। এখনই সাবধান না হলে মানবতাবাদ ইত্যাদি হাবিজাবি দিয়ে আরও কত সুকুমারমতি বালকবলিকার ব্রেনওয়াশ হবে, কে জানে!

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নিষিদ্ধ করতে গিয়ে বত্রা 'ন্যাশনালিজম' প্রবন্ধের যে বাক্যগুলি বেছেছেন, সেগুলো কিন্তু মোক্ষম। পড়লেই ভারতের সব সংঘবাদী বুঝে যাবেন, কী বিপজ্জনক লোককে এত দিন মাথায় তোলা হচ্ছিল। সত্যি তো, যে লোকটা এক গোঁ ধরে লিখে যায় যে, জাতীয়তাবাদ আর মানবতাবাদের মধ্যে প্রবল বিরোধিতা আছে, আর তাই মানবতাবাদকে বাদ দিয়ে যে জাতীয়তাবাদটা পড়ে থাকে, সেটা সাংঘাতিক বিপজ্জনক— তাকে কি এক্ষুনি 'বিপ' করা উচিত না? দীননাথ বত্রা মশাইয়ের মতামতটাই ধরা যাক না কেন। ২০১৪ সালে গুজরাতের জন্য গোটা ছয়েক টেক্সট বই লিখেছিলেন তিনি। সেখানে প্রাচীন ভারতের অসামান্য কৃতিত্বের অজানা সব তথ্য পরিবেশন করেছিলেন, সংঘীয় মতে যাতে নতুন প্রজন্ম সুশিক্ষিত হয়। লিখেছিলেন, প্রাচীন ভারতই প্রথম গাড়ি আবিষ্কার করে, বিমানও। এমনকী রকেটও। গোটা বিশ্বের জ্ঞানভাণ্ডার প্রাচীন ভারত থেকেই টুকলি করা বলে অন্য কোনও দেশের সংস্কৃতি, জ্ঞানবিজ্ঞান না জান়লেই চলে, এ কথাই কত সুন্দর করে বুঝিয়েছিলেন বত্রা। আর সেখানে দেখুন, রবীন্দ্রনাথ কী জিনিস। আজ কেন, সেই পরাধীন দেশেও প্রাচীন ভারতের জয়গান তাঁর সহ্য হয়নি, এমনকী গ্যালভানিক ব্যাটারি যে গল্বন ঋষির আবিষ্কার, সেই মহান্ সত্যটি নিয়েও তিনি ব্যঙ্গবিদ্রুপ করে প্রবন্ধ লিখেছিলেন, অহো, কী দুঃসহ স্পর্ধা! আবার, গাঁধীজির অসহযোগ নীতিকেও তিনি পাত্তা দেননি, স্বাধীনতা আর আত্মশক্তির নামে বেশি বেশি স্বদেশিপনা তাঁর না-পসন্দ্। স্বদেশি আন্দোলনের পিছনপানে চাওয়া দেশপ্রেম তাঁর পোষাচ্ছিল না বলে লিখেছিলেন: 'আমাদের অতীত তাহার সম্মোহনবাণ দিয়া আমাদের ভবিষ্যৎকে আক্রমণ করিয়াছে।' তাঁর কড়া সমালোচনা শুনে গাঁধী বা দেশবন্ধুর মতো নেতারা কেবল তর্ক করে পার পাননি, নিজেদের মত চুপচাপ খানিক পাল্টেও নিয়েছিলেন। রবীন্দ্রনাথের পাল্লায় পড়ে তাঁদের জাতীয়তাবাদের জানলাগুলো একটু খুলে দিতে হয়েছিল, ভারতীয়ত্ব বস্তুটিকে একটু বড় করে দেখতে হয়েছিল। দেখুন কাণ্ড। গাঁধী যাঁকে সামলাতে পারেননি, বত্রাদের আগমার্কা জাতীয়তার সিলেবাসে তাঁর নামের পাশে লালকালির ঢ্যাঁড়া পড়বে না, এও কি হয়?

তাঁর জাতীয়তাবাদ-বিরোধিতা শুনে সে দিন বিদেশেও লোকজনের চোখ কপালে। এই তো ঠিক একশো বছর আগে, ১৯১৬-১৭ সালে কী কাণ্ডই না হল তাঁর 'জাতীয়তাবাদ' বক্তৃতা নিয়ে, আমেরিকা জাপান চিনে! আমেরিকা সফরের পর বলাবলি হল, ছেলেপিলের মাথা খাচ্ছেন প্রাচ্যের সাধু-টাইপ লোকটি, নয়তো কেউ বলতে পারে, জাতি নিয়ে গর্ব করাটা আসলে 'ইনসাল্ট টু হিউম্যানিটি'? চিনে রটে গেল, একটা পরাধীন হতভাগ্য দেশের মানুষ বলেই এই ভারতীয় কবি অমন মিনমিনে, কেবল শান্তি ঐক্য এই সব ন্যাকা-কথা। জাপানে যখন তিনি পৌঁছলেন, ভিড়ে ভিড়াক্কার। আর সফরশেষে, তাঁর জাতীয়তাবাদ-তর্জন শোনার পর ফেরার দিন বিদায় দিতে এলেন মাত্র জনা দুই-তিন! তাদের মতে, দেশ ও জাতির জন্য কাজ যে লড়াই দিয়েই শুরু করতে হয়, সেটাও লোকটা বোঝে না। বড় বড় চিন্তাবিদরা এ দিকে রবীন্দ্রনাথের কথা শুনে মুগ্ধ, সে-ও ভারী বিপদ! টেগোর না কি ভবিষ্যৎ-দ্রষ্টা, prescient! আর দেশের মাটিতে জওহরলাল নেহরু কী বললেন, সেটা নিশ্চয়ই বত্রাদের মনে করাতে হবে না! নেহরুর মতে, রবীন্দ্রনাথ হলেন 'ইন্টারন্যাশনালিস্ট পার এক্সেলেন্স', শ্রেষ্ঠ আন্তর্জাতিকতাবাদী, যিনি একাই ভারতের জাতীয়তাবাদের ভিতটাকে চওড়া করে দিয়েছেন!—জাতীয়তাবাদের ভিত চওড়া! তবেই বুঝুন! নেহরুকে মোদীরা নির্বাসন দিলেন, আর নেহরুর রবীন্দ্রনাথকে এখনও দিলেন না?

একটা সন্দেহ হচ্ছে। সিলেবাসে 'ন্যাশনালিজম' লেখাটি ছিল বলে ওইটাই বত্রা ব্রিগেড বেশি করে খেয়াল করেছেন। কিন্তু ভদ্রলোকের সব লেখাই যে আরএসএস-এর 'বিপ' পাওয়ার যোগ্য, সেটা এখনও ওঁরা বোঝেননি! আরে মশাই, একটু উল্টে দেখুন ভারতবর্ষীয় সমাজ, হিন্দু-মুসলমান নিয়ে প্রবন্ধগুলো, গোরা, ঘরে বাইরে, উপন্যাস ক'টা। খেয়াল করে দেখুন গাদা গাদা গান-কবিতায় কী সব বলেছেন উনি। শুধু জাতীয়তাবাদ নয়, হিন্দু ভারত ব্যাপারটাই মানেন না ভদ্রলোক! আর্য-অনার্য-হিন্দু-মুসলমান-শক-হূণ-পাঠান-মোগল, সব নিয়ে নাকি ভারত বানাতে হবে, এই তাঁর আবদার। জাতিভেদ, বর্ণাশ্রম তো একদম উড়িয়ে দিয়েছেন। কত বড় দুঃসাহস যে বলেছেন, ব্রাহ্মণরা যেন মন শুচি করে তবেই এগিয়ে আসেন 'ভারততীর্থ' তৈরির কাজে। স্পষ্টাস্পষ্টি বলেছেন, আর্য দ্রাবিড় হিন্দু মুসলমান ইত্যাদি 'বিরুদ্ধতার সম্মিলন যেখানে হইয়াছে সেখানেই সৌন্দর্য জাগিয়াছে।' ভারতবর্ষ বলতে মিলন মিশ্রণ সম্মিলন— ঘ্যানঘ্যান করে সেই এক কথা, সারা জীবন। রাষ্ট্র বলতেই যদি একচালা একরঙা কিছু তৈরি হয়, সেই ভয়ে সমানে বলে গিয়েছেন, ছোট ছোট সমাজ নিজেরাই রাষ্ট্র গড়বে, ছোট গ্রাম, ছোট পল্লি, ছোট গোষ্ঠী, সম্প্রদায়।— এ সব পড়লে বত্রা-রা পারবেন স্থির থাকতে? রাষ্ট্রীয় স্বয়ংসেবক সংঘের সেবক তাঁরা, তাঁরা না শপথ নিয়েছেন যে তাঁদের রাষ্ট্র মহৎ বৃহৎ হিন্দু রাষ্ট্র, উচ্চবর্ণের পবিত্র ব্রাহ্মণ্য হিন্দুত্ব ছাড়া সব সেখানে অশুচি, অগ্রাহ্য এবং হন্তব্য? তাঁদের ভারতবর্ষ আর রবীন্দ্র ঠাকুরের ভারতবর্ষের মধ্যে এ রকম মুখোমুখি সোজাসুজি সংঘর্ষ, তবু লালকালির ঢ্যাঁড়া পড়বে না? যিনি বলেন 'মুক্ত যেথা শির', যিনি 'তুচ্ছ আচারের মরুবালুরাশি'তে এত কাঁড়ি কাঁড়ি আপত্তি তোলেন, এই নতুন গোরক্ষক ভারত সে লোকের মাথায় ঘোল ঢেলে বিদেয় দেবে না?

শুধু লেখাপত্র নয়, লোকটার গোটাটাই বেদম গোলমেলে। নিজের বেঁচে থাকাটাই কেমন একটা ভাঙাভাঙি দিয়ে গড়া। বাড়িটাও কেমনধারা, এক দিকে বেম্মপনা, অন্য দিকে বিলিতি দোআঁশলাপনা, গানবাজনায় বিলিতি ছাপ, পোশাকআশাকে মুসলমানি আদল। আর তিনি নিজে? কোনও একটা ছাঁচে তাঁকে কেউ না ফেলতে পারে, এই হল তাঁর জীবনভ'র লড়াই। আইডেন্টিটি দেখলেই সেটাকে ভেঙেচুরে নতুন করে গড়ে নাও, তবেই না কি বিশ্বমানবের দিকে এগিয়ে যাওয়া— আরে, সংঘবাদের সাক্ষাৎ অ্যান্টিথিসিস তো এই লোকটাই! দিবে আর নিবে, মেলাবে মিলিবে, কথাটার মধ্যে কী সাংঘাতিক অন্তর্ঘাত, ভেবে দেখেছেন এক বার? তাই বলছিলাম, নতুন ভারততীর্থে রবীন্দ্রনাথ মানুষটাকেই নিষিদ্ধ করা হোক।

http://www.anandabazar.com/editorial/rss-affiliated-body-recently-suggested-removal-of-works-of-rabindranath-tagore-from-school-textbook-1.649946?ref=editorial-new-stry


Friday, July 28, 2017

फिर दर्द होता है तो चीखना मजबूरी भी है।


फिर दर्द होता है तो चीखना मजबूरी भी है।
शायद जब तक जीता रहूंगा मेरी चीखें आपको तकलीफ देती रहेंगी,अफसोस।
जो बच्चे 30-35 साल की उम्र में हाथ पांव कटे लहूलुहान हो रहे हैं,उनमें से हरेक के चेहरे पर मैं अपना ही चेहरा नत्थी पाता हूं।
बत्रा साहेब की मेहरबानी है कि उन्होंने फासिज्म के प्रतिरोध में खड़े भारत के महान रचनाकारों को चिन्हित कर दिया।इन प्रतिबंधित रचनाकारों में कोई जीवित और सक्रिय रचनाकार नहीं है तो इससे साफ जाहिर है कि संघ परिवार के नजरिये से भी उनके हिंदुत्व के प्रतिरोध में कोई समकालीन रचनाकार नहीं है।
उन्हीं मृत रचनाकारों को प्रतिबंधित करने के संघ परिवार के कार्यक्रम के बारे में समकालीन रचनाकारों की चुप्पी उनकी विचारधारा,उनकी प्रतिबद्धता और उनकी रचनाधर्मिता को अभिव्यक्त करती है।
जैसे इस वक्त सारे के सारे लोग नीतीश कुमार के खिलाफ बोल लिख रहे हैं।जैसे कि बिहार का राजनीतिक दंगल की देश का सबसे ज्वलंत मुद्दा हो।
डोकलाम की युद्ध परिस्थितियां, प्राकृतिक आपदाएं,किसानों की आत्महत्या,व्यापक छंटनी और बेरोजगारी, दार्जिंलिंग में हिंसा, कश्मीर की समस्या, जीएसटी, आधार अनिवार्यता, नोटबंदी का असर , खुदरा कारोबार पर एकाधिकार वर्चस्व, शिक्षा और चिकित्सा पर एकाधिकार कंपनियों का वर्चस्व, बच्चों का अनिश्चित भविष्य, महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचार,दलित उत्पीड़न की निरंतरता,आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नरसंहार संस्कृति जैसे मुद्दों पर कोई बहस की जैसे कोई गुंजाइश ही नहीं है।
गौरतलब है कि मुक्तिबोध पर अभी हिंदुत्व जिहादियों की कृपा नहीं हुई है।शायद उन्हें समझना हर किसी के बस में नहीं है,गोबरपंथियों के लिए तो वे अबूझ ही हैं।
पलाश विश्वास
सत्ता समीकरण और सत्ता संघर्ष मीडिया का रोजनामचा हो सकता है,लेकिन यह रोजनामचा ही समूचा विमर्श में तब्दील हो जाये,तो शायद संवाद की कोई गुंजाइश नहीं बचती।आम जनता की दिनचर्या,उनकी तकलीफों,उनकी समस्याओं में किसी की कोई दिलचस्पी नजर नहीं आती तो सारे बुनियादी सवाल और मुद्दे जिन बुनियादी आर्थिक सवालों से जुड़े हैं,उनपर संवाद की स्थिति बनी नहीं है।
हमारे लिए मुद्दे कभी नीतीशकुमार हैं तो कभी लालू प्रसाद तो कभी अखिलेश यादव तो कभी मुलायसिंह यादव,तो कभी मायावती तो कभी ममता बनर्जी।हम उनकी सियासत के पक्ष विपक्ष में खड़े होकर फासिज्म के राजकाज का विरोध करते रहते हैं।
जैसे इस वक्त सारे के सारे लोग नीतीश कुमार के खिलाफ बोल लिख रहे हैं।जैसे कि बिहार का राजनीतिक दंगल की देश का सबसे ज्वलंत मुद्दा हो।
डोकलाम की युद्ध परिस्थितियां, प्राकृतिक आपदाएं,किसानों की आत्महत्या,व्यापक छंटनी और बेरोजगारी, दार्जिंलिंग में हिंसा, कश्मीर की समस्या, जीएसटी, आधार अनिवार्यता, नोटबंदी का असर , खुदरा कारोबार पर एकाधिकार वर्चस्व, शिक्षा और चिकित्सा पर एकाधिकार कंपनियों का वर्चस्व, बच्चों का अनिश्चित भविष्य, महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचार,दलित उत्पीड़न की निरंतरता,आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ नरसंहार संस्कृति जैसे मुद्दों पर कोई बहस की जैसे कोई गुंजाइश ही नहीं है।
लोकतंत्र का मतलब यह है कि राजकाज में नागरिकों का प्रतिनिधित्व और नीति निर्माण प्रक्रिया में जनता की हिस्सेदारी।
सत्ता संघर्ष तक हमारी राजनीति सीमाबद्ध है और राजकाज,राजनय,नीति निर्माण,वित्तीय प्रबंधन,संसाधनों के उपयोग जैसे आम जनता के लिए जीवन मरण के प्रश्नों को संबोधित करने का कोई प्रयास किसी भी स्तर पर नहीं हो रहा है।
सामाजिक यथार्थ से कटे होने की वजह से हम सबकुछ बाजार के नजरिये से देखने को अभ्यस्त हो गये हैं।
बाजार का विकास और विस्तार के लिए आर्थिक सुधारों के डिजिटल इंडिया को इसलिए सर्वदलीय समर्थन है और इसकी कीमत जिस बहुसंख्य जनगण को अपने जल जंगल जमीन रोजगार आजीविका नागरिक और मानवाधिकार खोकर चुकानी पड़ती है,उसकी परवाह न राजनीति को है और न साहित्य और संस्कृति को।
हम जब साहित्य और संस्कृति के इस भयंकर संकट को चिन्हित करके समकालीन संस्कृतिकर्म की प्रासंगिकता और प्रतिबद्धता पर सवाल उठाये,तो समकालीन रचनाकारों में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई है।
बत्रा साहेब की मेहरबानी है कि उन्होंने फासिज्म के प्रतिरोध में खड़े भारत के महान रचनाकारों को चिन्हित कर दिया।
इन प्रतिबंधित रचनाकारों में कोई जीवित और सक्रिय रचनाकार नहीं है तो इससे साफ जाहिर है कि संघ परिवार के नजरिये से भी उनके हिंदुत्व के प्रतिरोध में कोई समकालीन रचनाकार नहीं है।
उन्हीं मृत रचनाकारों को प्रतिबंधित करने के संघ परिवार के कार्यक्रम के बारे में समकालीन रचनाकारों की चुप्पी उनकी विचारधारा,उनकी प्रतिबद्धता और उनकी रचनाधर्मिता को अभिव्यक्त करती है।


गौरतलब है कि मुक्तिबोध पर अभी हिंदुत्व जिहादियों की कृपा नहीं हुई है।शायद उन्हें समझना हर किसी के बस में नहीं है,गोबरपंथियों के लिए तो वे अबूझ ही हैं।अगर कांटेट के लिहाज से देखें तो फासिजम के राजकाज के लिए सबसे खतरनाक मुक्तिबोध है,जो वर्गीय ध्रूवीकरण की बात अपनी कविताओं में कहते हैं और उनका अंधेरा फासिज्म का अखंड आतंकाकारी चेहरा है।शायद महामहिम बत्रा महोदय ने अभी मुक्तबोध को कायदे से पढ़ा नहीं है।
बत्रा साहेब की कृपा से जो प्रतिबंधित हैं,उनमें रवींद्र,गांधी,प्रेमचंद,पाश, गालिब को समझना भी गोबरपंथियों के लिए असंभव है।
जिन गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस के रामराज्य और मर्यादा पुरुषोत्तम को कैंद्रित यह मनुस्मृति सुनामी है,उन्हें भी वे कितना समझते होंगे,इसका भी अंदाजा लगाना मुश्किल है।
बंगाली दिनचर्या में रवींद्रनाथ की उपस्थिति अनिवार्य सी है,  जाति,  धर्म,  वर्ग, राष्ट्र, राजनीति के सारे अवरोधों के आर पार रवींद्र बांग्लाभाषियों के लिए सार्वभौम हैं,लेकिन बंगाली होने से ही लोग रवींद्र के जीवन दर्शन को समझते होंगे,ऐसी प्रत्याशा करना मुश्किल है।
कबीर दास और सूरदास लोक में रचे बसे भारत के सबसे बड़े सार्वजनीन कवि हैं,जिनके बिना भारतीयता की कल्पना असंभव है और देश के हर हिस्से में जिनका असर है। मध्यभारत में तो कबीर को गाने की वैसी ही संस्कृति है,जैसे बंगाल में रवींद्र नाथ को गाने की है और उसी मध्यभारत में हिंदुत्व के सबसे मजबूत गढ़ और आधार है।
निजी समस्याओं से उलझने के दौरान इन्हीं वजहों से लिखने पढ़ने के औचित्य पर मैंने कुछ सवाल खड़े किये थे,जाहिर है कि इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई है।
मैंने कई दिनों पहले लिखा,हालांकि हमारे लिखने से कुछ बदलने वाला नहीं है.प्रेमचंद.टैगोर,गालिब,पाश,गांधी जैसे लोगों पर पाबंदी के बाद जब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा तो हम जैसे लोगों के लिखने न लिखने से आप लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।अमेरिका से सावधान के बाद जब मैंने साहित्यिक गतिविधियां बंंद कर दी,जब 1970 से लगातार लिखते रहने के बावजूद अखबारों में लिखना बंद कर दिया है,तब सिर्फ सोशल मीडिया में लिखने न लिखने से किसी को कोई फ्रक नहीं पड़ेगा।
कलेजा जख्मी है।दिलोदिमाग लहूलुहान है।हालात संगीन है और फिजां जहरीली।ऐसे में जब हमारी समूची परंपरा और इतिहास पर रंगभेदी हमले का सिलसिला है और विचारधाराओं,प्रतिबद्धताओं के मोर्टे पर अटूट सन्नाटा है,तब ऐशे समय में अपनों को आवाज लगाने या यूं ही चीखते चले जाना का भी कोई मतलब नहीं है।
जिन वजहों से लिखता रहा हूं,वे वजहें तेजी से खत्म होती जा रही है।वजूद किरचों के मानिंद टूटकर बिखर गया है।जिंदगी जीना बंद नहीं करना चाहता फिलहाल,हालांकि अब सांसें लेना भी मुश्किल है।लेकिन इस दुस्समय में जब सबकुछ खत्म हो रहा है और इस देश में नपुंसक सन्नाटा की अवसरवादी राजनीति के अलावा कुछ भी बची नहीं है,तब शायद लिखते रहने का कोई औचित्य भी नहीं है।
मुश्किल यह कि आंखर पहचानते न पहचानते हिंदी जानने की वजह से अपने पिता भारत विभाजन के शिकार पूर्वी बंगाल और पश्चिम पाकिस्तान के विभाजनपीड़ितों के नैनीताल की तराई में नेता मेरे पिता की भारत भर में बिखरे शरणार्थियों के दिन प्रतिदिन की समस्याओं के बारे में रोज उनके पत्र व्यवहार औऱ आंदोलन के परचे लिखते रहने से मेरी जो लिखने पढ़ने की आदत बनी है और करीब पांच दशकों से जो लगातार लिख पढ़ रहा हूं,अब समाज और परिवार से कटा हुआ अपने घर और अपने पहाड़ से हजार मील दूर बैठे मेरे लिए जीने का कोई दूसरा बहाना नहीं है।
फिर दर्द होता है तो चीखना मजबूरी भी है।
शायद जब तक जीता रहूंगा,मेरी चीखें आपको तकलीफ देती रहेंगी,अफसोस।
अभी अखबारों और मीडिया में लाखों की छंटनी की खबरें आयी हैं।जिनके बच्चे सेटिल हैं,उन्हें अपने बच्चों पर गर्व होगा लेकिन उन्हें बाकी बच्चों की भी थोड़ी चिंता होती तो शायद हालात बदल जाते।
मेरे लिए  रोजगार अनिवार्य है क्योंकि मेरा इकलौता बेटा अभी बेरोजगार है।इसलिए जो बच्चे 30-35 साल की उम्र में हाथ पांव कटे लहूलुहान हो रहे हैं,उनमें से हरेक के चेहरे पर मैं अपना ही चेहरा नत्थी पाता हूं।
अभी सर्वे आ गया है कि नोटबंदी के बाद पंद्रह लाख लोग बेरोजगार हो गये हैं।जीएसटी का नतीजा अभी आया नहीं है।असंगठित क्षेत्र का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है और संगठित क्षेत्र में विनिवेश और निजीकरण के बाद ठेके पर नौकरियां हैं तो ठीक से पता लगना मुश्किल है कि कुल कितने लोगों की नौकरियां बैंकिंग, बीमा, निर्माण,  विनिर्माण, खुदरा बाजार,संचार,परिवहन जैसे क्षेत्रों में रोज खथ्म हो रही है।
मसलन रेलवे में सत्रह लाख कर्मचारी रेलवे के अभूतपूर्व विस्तार के बाद अब ग्यारह लाख हो गये हैं जिन्हें चार लाख तक घटाने का निजी उपक्रम रेलवे का आधुनिकीकरण है,भारत के आम लोग इस विकास के माडल से खुश हैं और इसके समर्थक भी हैं।
संकट कितना गहरा है,उसके लिए हम अपने आसपास का नजारा थोड़ा बयान कर रहे हैं।बंगाल में 56 हजार कल कारखाने बंद होने के सावल पर परिव्रतन की सरकार बनी।बंद कारखाने तो खुले ही नहीं है और विकास का पीपीपी माडल फारमूला लागू है।कपड़ा,जूट,इंजीनियरिंग,चाय उद्योग ठप है।कल कारखानों की जमीन पर तमाम तरहके हब हैं और तेजी से बाकी कलकारखाने बंद हो रहे हैं।
आसपास के उत्पादन इकाइयों में पचास पार को नौकरी से हटाया जा रहा हो।यूपी और उत्तराखंड में भी विकास इसी तर्ज पर होना है और बिहार का केसरिया सुशासन का अंजाम भी यही होना है।
सिर्फ आईटी नहीं,बाकी क्षेत्रों में भी डिजिटल इंडिया के सौजन्य से तकनीकी दक्षता और ऩई तकनीक के बहाने एनडीवी की तर्ज पर 30-40 आयुवर्ग के कर्मचारियों की व्यापक छंटनी हो रही है।
सोदपुर कोलकाता का सबसे तेजी से विकसित उपनगर और बाजार है,जो पहले उत्पादन इकाइयों का केद्र हुआ करता था।यहां रोजाना लाखों यात्री ट्रेनों से नौकरी या काराबोर या अध्ययन के लिए निकलते हैं।चार नंबर प्लैटफार्म के सारे टिकट काउंटर महीनेभर से बंद है।आरक्षण काफी दिनों से बंद रहने के बाद आज खुला दिखा।जबकि टिकट के लिए एकर नंबर प्लेटफार्म पर दो खिडकियां हैं।
सोदपुर स्टेशन के दो रेलवे बुकिंग क्लर्क की कैंसर से मौत हो गयी हैा,जिनकी जगह नियुक्ति नहीं हुई है।सात दूसरे कर्मचारियों का तबादला हो गया है और बचे खुचे लोगं से काम निकाला जा रहा है।
आम जनता को इससे कुछ लेना देना नहीं है।
आर्थिक सुधारों,नोटबंदी,जीएसटी,आधार के खिलाफ आम लोगों को कुछ नहीं सुनना है।उनमें से ज्यादातर बजरंगी है।
बजरंगी इसलिए हैं कि उनसे कोई संवाद नहीं हो रहा है।
बुनियादी सवालों और मुद्दों से न टकराने का यह नतीजा है,क्षत्रपों के दल बदल, अवसरवाद जो हो सो है,लेकिन जनता के हकहकूक के सिलसिले में सन्नाटा का यह अखंड बजरंगी समय है।

Thursday, July 27, 2017

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में ओबीसी कार्ड और जयभीम कामरेड पलाश विश्वास

मनुस्मृति नस्ली  राजकाज राजनीति में ओबीसी कार्ड और जयभीम कामरेड
पलाश विश्वास
अब तक संघ परिवार के खिलाफ विपक्ष की सारी राजनीति ओबीसी क्षत्रपों की मोर्चाबंदी की रही है,जो मनुस्मृति की अश्वमेधी सेना के खिलाप रेत के किले के सिवाय़ कुछ नहीं है।जाति और पहचान के वोटबैंक समीकरण से सबसे बड़ी अस्मिता और पहचान हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला असंभव है,इस सच का सामना बार बार हो रहा है।
एक के बाद एक क्षत्रप भारतीयलोकतंत्र और आम जनता के साथ विश्वासगात कर रहे हैं लेकिन वोटबैंक समीकरण की इस राजनीति के अलावा नस्ली कारपोरेट फासिज्म के मुकाबले के बारे में सोचने से बी हम लगातार इंकार करते हुए संघ परिवार की राजनीति को ही मजबूत बनाने में लगे हैं क्योंकि ओबीसी संघ परिवार का ट्रंप कार्ड है,जिसे हम सिरे से नजरअंदाज कर रहे हैं।
सत्ता के लिए ही नीतीश कुमार और लालू का गठबंधन बना है और इस कथित महागठबंधन के बावजूद नीतीश कुमार और शरद यादव उसीतरह संघपरिवार के कारिंदे बने रहे हैं,जैसे मुलायमसिंह यादव।बिहाल में जो हुआ या होगा,उसपर चौंकेने की गुंजाइश नहीं है।मेघालय समेत पूरब और पूर्वोत्तर में बंगाल में ही अब भाजपा सरकार बनने की देरी है,जहां केसरिया सेना मजबूती के साथ मोर्चा संभाले हुए है।बिहार के पतन के बाद बंगाल जीत लेने के बाद संघ परिवार को रोकना बेहद मुश्किल होगा और हम अब भी इस सच का मुकाबला करने को तैयार नहीं है।
नीतीश को लेकर रोना गाना बंद करके सच का सामना करने की पहल तो करें।

अस्मिता और पहचान की राजनीति के तहत क्षत्रपों ने भारतीय लोकतंत्र का गुड़ गोबर कर दिया है और इसमें  भी ओबीसी क्षत्रपों का रोल सबसे ज्यादा भयंकर है।मनुस्मृति विधान के हिंदू राष्ट्र में ओबीसी कार्ड का इस्तेमाल संघ परिवार किस तरह करता रहा है,इसपर जय भीम कामरेड,आनंद पटवर्धन की बहुचर्चित फिल्म और छात्र युवाओं के आंदोलन की पृष्ठभूमि में पिछले साल हमने एक वीडियो अपलोड किया था।ओबीसी देश की सबसे बड़ी जनसंख्या है जो बजरंगी पैदल सेना बन गयी है और इस वजह से संघ परिवार को हिंदू कारपोरेट राष्ट्र बनाने में इतनी भारी कामयाबी मिल रही है।नीतीश कुमार को सारे लोग इस वक्त गरिया रहे हैं लेकिन ओबीसी कार्ड में तब्दील सारे क्षत्रपों की भूमिका पर चर्चा बेहद जरुरी है और इस सिलसिले में पहचान की राजनीति के तिलिस्म को तोड़कर प्रतिरोध की जमीन तैयार करना उससे भी जरुरी है।इस बहस के लिए मैं अपना वह पुराना वीडियो जो पूरे देश को संबोधित करने के लिए अंग्रेजी में है,आज फेसबुक पर लगा रहा हूं।

Sunday, July 23, 2017

RSS intends to Kill Rabindranath,the dead poet walking live after Gandhi! RSS is greater threat than any foreign invasion because it is killing Indian civilization and the history of India and not to mention the traditional Hindu religion so democrat and tolerant! Hindutva brigaed seems to be admant to wipe out Bengali nationalism,Bengali identity and Bengali connectivity with the universe and civilization.Without Rabindranath neither Bengal nor Bangaldesh may have any identity whatsoever. May we imagine Hindi without Urdu words?If Hindi is to be yet another gomata,the sacred cow,how it would include the non Hindi non Hindu demography to become national or global language, Batra may not be expected to have the vision. Palash Biswas


RSS intends to Kill Rabindranath,the dead poet walking live after Gandhi!


RSS is greater threat than any foreign invasion because it is killing Indian civilization and the history of India and not to mention the traditional Hindu religion so democrat and tolerant!


Hindutva brigade seems to be adamant to wipe out Bengali nationalism,Bengali identity and Bengali connectivity with the universe and civilization.Without Rabindranath neither Bengal nor Bangaldesh may have any identity whatsoever.


May we imagine Hindi without Urdu words?If Hindi is to be yet another gomata,the sacred cow,how it would include the non Hindi non Hindu demography to become national or global language, Batra may not be expected to have the vision.


Palash Biswas


Dina Nath Batra again: He wants Tagore, Urdu words off school texts.Mind you,Dinanath Batra is a retired school teacher and the founder of educational activist organisations Shiksha Bachao Andolan Samiti and Shiksha Sanskriti Utthan.


Bengal is flodded. It is raining heavily for three days and It would be raining heavily for next 48 hours.Kolakata and Howrah waterlogged. Rest of Bengal is also waterlogged.


But Hindutva brigade seems to be adamant to wipe out Bengali nationalism,Bengali identity and Bengali connectivity with the universe and civilization.


Without Rabindranath neither Bengal nor Bangaldesh may have any identity whatsoever.


Not only Bengalies worldwide,the citizens of Indian civilization owe much to Rabindranath for his idea of India which is all about unity in diversity and humanity ultimate.


It is perhaps the greatest attack on Indian civilization after the demise of Mohanjodaro and Harrapaa.Greater than the foreign attack against the integrity and unity of Indian humanity because it is going to disintegrate the social fabrics to make in digital Hindu Nation.It would kill Indian Nation, its constitution and Secular democracy,Unity in diversity.It is the agenda of racist ethnic cleansing in digital corporate Hindu Nation as majority people are subjected to monopolistic Racist Genocide.


It is borgi attack all round yet again as Along with five pages of recommendations, the Nyas, headed by Dina Nath Batra, a former head of Vidya Bharati, the education wing of the RSS, has attached pages from several NCERT textbooks, with the portions that it wants removed marked and underlined.


We may hate English just because the history of British Imperialist Raj in India.But the fact remains that English remains most inclusive.Even now,in free India,we have to interact in English to touch every corner of India.


We may not interact with rest of humanity without English.English diction has included every foreign sound meaning something different and we have words from south Asia abundant in English.It also included French, Roman, Latin, German  with other European languages as well as African and Latin American dialects.


English is enhanced by a number of Indian writers.While English writers contribute English from every part of India.


How many Non Hindi language Indian writers and poets have been included in Hindi literature?


We talk so mush so for making Hindi National language.The slogan for Hindu nation is Hindu,Hindi and Hindustan.We want to compete with English making Hindi a global language.


May we imagine Hindi without Urdu words?


If Hindi is to be yet another gomata, the sacred cow,how it would include the non Hindi non Hindu demography to become national or global language, Batra mayenot be expected to have the vision.

Have we?


Rabindra Nath compoesed Natinal anthem of India and Bangaldesh freedom struggle inspired by his poem Amaar Sonar Bangla aami tomay Bhalobasi,which is finally the national anthem of Bangladesh.Indian traditional philosophy,its culture,folk and spritualism have been the theme of Rabindra works more tahn any one else.


Geetanjali is all about India,Indian philosophy of life and Indian nationalism which consists of diverse streams of humanities merged on the soil of Bharat Teerth.


Now,the worshippers of Godse, Golvalkar, Savarkar and Hitler intend to Kill Rabindranath,the dead poet walking live in every sphere of India civilization after they killed someone like Gandhi who united Indian people in freedom struggle against British rule.


RSS is greater threat than any foreign invasion because it is killing Indian civilization and the history of India and not to mention the traditional Hindu religion so democrat and tolerant!


An education body affiliated to ruling BJP's ideological parent RSS wants to "sanitise" NCERT's Class 1-12 Hindi textbooks by removing Urdu and Persian words.


The Shiksha Sanskriti Utthan Nyas, under RSS ideologue Dinanath Batra, also wants to remove verses of Mirza Ghalib and other Urdu poets from the books.


RSS activist Dinanath Batra, who heads the Shiksha Sanskriti Utthan Nyas, has sent recommendations to the NCERT to remove some portions of school textbooks.

These recommendations include removal of English, Urdu and Arabic words, references to Mughal emperors as generous, former Prime Minister Manmohan Singh's apology over the 1984 riots, and the sentence that around 2000 Muslims were allegedly killed in the Gujarat riots, according to the Indian Express.

The Nyas has sent about five pages of such recommendations along with pages from the NCERT books with highlighted portions of what to remove, the report says. Atul Kothari, Nyas's secretary and former RSS missionary told IE that this kind of content in textbooks was a sort of appeasement and it was uninspiring to teach children about riots. He said that histories of Indian kings like Shivaji and Maharana Pratap, Hindu monk Vivekananda and Indian nationalist Subhas Chandra Bose do not find such a place in the textbooks.

Earlier, Nyas had campaigned for the removal of A K Ramanujan's essay Three Hundred Ramayanas: Five Examples and Three Thoughts on Translation from the University of Delhi's syllabus. It had also moved court to demand removal of The Hindus by Wendy Doniger.

Nyas has marked portions from textbooks for their removal. For instance, from Class XII Political Science book, Nyas wants the mention of National Conference of J&K as a secular organisation removed.


With the NCERT revising its textbooks, the Nyas has written to the government to "clean" Hindi books of words such as Eeman, Rujhan, Shiddat and Taaqat.


The organisation has come up with a booklet, a copy of which is with DNA, in which it has mentioned various examples from the books. One of the examples is a verse of Ghalib, which is taught to students in one of the Hindi chapters. 


The verse, from Jamun Ka Ped, reads: "Hum ne mana ki tagaful na karoge lekin khak ho jayenge ham tum ko khabar hone taq." 


Dinanath Batra, who is often criticised for "saffronising" education, has in the past also written to the government to change content in texts, specially History ones.


He has been advocating that the use of foreign languages in schools should be banned. In his suggestions to the government on the New Education Policy, he had written that Hindi should be made the medium of instruction, instead of English.


"I have read all Hindi textbooks from Class 1 to 12 and found a number of errors. The usage of Urdu, Persian and even English words in Hindi books has made the language very heavy and created a challenge for students. Instead of being a source of entertainment and learning, Hindi chapters have become uninteresting for students," Batra told DNA.


"We have approached the HRD Ministry and have also been taking up this issue with NCERT that they should remove all non-Hindi words from their Hindi textbooks. Now that they are revising their textbooks, we have demanded that these changes should be made," he added.


He said that his earlier suggestions of changes in History textbooks were considered but it's the changes in Hindi that the council is not ready to change.


NCERT officials refused to comment on the issue.

Indian Express reports this morning:Remove English, Urdu and Arabic words, a poem by the revolutionary poet Pash and a couplet by Mirza Ghalib; the thoughts of Rabindranath Tagore; extracts from painter M F Husain's autobiography; references to the Mughal emperors as benevolent, to the BJP as a "Hindu" party, and to the National Conference as "secular"; an apology tendered by former prime minister Manmohan Singh over the 1984 riots; and a sentence that "nearly 2,000 Muslims were killed in Gujarat in 2002". These are some of the many recommendations the RSS-affiliated Shiksha Sanskriti Utthan Nyas has sent to the National Council of Educational Research and Training (NCERT), which recently sought suggestions from the public on reviewing school textbooks of all classes.

http://indianexpress.com/article/india/dina-nath-batra-again-he-wants-tagore-urdu-words-off-school-texts-4764094/

Saturday, July 22, 2017

Our girls are alread world champions irrespective of Lords result,they defeated patriarchy! They have to defeat the patriarchal Khap Panchayti psyche of the society also!

Our girls are alread world champions irrespective of Lords result,they defeated patriarchy!
They have to defeat the patriarchal Khap Panchayti psyche of the society also!

Palash Biswas

It is most important that after Harmanpreet Kaur's ton, mother reminds India of 'Save girl child' motto,as media reports.

I must add that our girls without the support of the patriarchy of BCCI which is all about IPL corporate profit making corporate economy has reached the destination to make in a profeesional team,in which every girl has a role.

It is not all about some Mithali Raj,Jhulan Goswami,Harman Preet or Smriti Mandhana.

Every girl is a perfect icon.

Harmanpreet Kaur hit 171* as India defeated defending champions Australia in the second semi-final of the ICC Women's Cricket World Cup 2017. 

Her mother Satinder Kaur urged all Indians to give their daughter a chance to live their dream!

This statement explains everything.Most of them belong to small town and may not speak English and Veda has to be play translator for them while they become player of the match.

We have individual girls in athletics, tennis, badminton, archery , wrestling,TT, gymanatic, hockey, football who represented India and fetched medals,awards in Olympics, SAF,Commonwealth,Asiad and International events as exception.But neither the society nor the nation ever tried to promote girls at any level to rise for the occasion.

If the girls are not subjected to gender bias and have equal opportunity and support,our girls may certainly compete Chinese,Japanese,Koran and European, Latin American, African and American girls as some girls already proved in sports.

Indian Woman Cricket is the best example of the gendre bias as we have seen in SRK film Chak De India.Dangal also explained the patriarchal Khap Panchayti psyche of the society.

Harmanpreet Kaur hit 171* as India defeated defending champions Australia in the second semi-final of the ICC Women's Cricket World Cup 2017.

 Her mother Satinder Kaur urged all Indians to give their daughter a chance to live their dream.

Her mother, however, took the opportunity in reminding fellow Indians the need to empower their daughters.

"I just want to say other women that the way my daughter has made us proud, they should also give their daughter a chance to live their dream and shouldn't kill them in the womb," Harmanpreet Kaur's mother Satinder Kaur told ANI.

Thursday, July 20, 2017

साहित्य और कला माध्यमों का माफिया मीडिया तो क्या राजनीति के माफिया का बाप है। --पलाश विश्वास

सबसे बड़ा सच यही है मीडिया तो झूठन है,जिसे पेट खराब हो सकता है,लेकिन दिलों और दिमाग को बिगाड़ने में साहित्य और कला माध्यम निर्णायक है और वहां बी संघ परिवार का वर्चस्व है।संघ परिवार के लोग ही धर्निरपेक्ष प्रगतिशील भाषा और वर्तनी में आम जनता के केसरियाकरण का अभियान चलाये हुए हैं।
साहित्य और कला माध्यमों का माफिया मीडिया तो क्या राजनीति के माफिया का बाप है।

--पलाश विश्वास
समय की चुनौतियों के लिए सच का सामना अनिवार्य है।आम जनता को उनकी आस्था की वजह से मूर्ख और पिछड़ा कहने वाले विद्वतजनों को मानना होगा कि हिंदुत्व की इस सुनामी के लिए राजनीति से कहीं ज्यादा जिम्मेदार भारतीय साहित्य और विभिनिन कलामाध्यम हैं।राजनीति की जड़ें वहीं हैं।भारत में हिंदुत्व की राजनीति में गोलवलकर और सावरकर की बात तो हम करते है,लेकिन बंकिम के महिमामंडन से चूकते नहीं है।गोलवलकर,सावरकर,हिंदू महासभा और संघ परिवार से बहुत पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के राज के पक्ष में बंकिम ने आदिवासी किसान बहुजनों के विरोध में जिस हिंदुत्व का आवाहन किया,वही रंगभेदी दिंतुत्व की राजनीति और सत्ता का आधार है।
ताराशंकर बंद्योपाध्याय जमींदारों और राजा रजवाड़ों के सामंती वर्चस्व के वर्णव्यवस्था समर्थक कांग्रेसी नर्म हिंदुत्व के साहित्य के सर्जक है।
अब यह कहना कि बंकिम और विवेकानंद संघ परिवार के न हो जायें तो हमें अपने पाले में बंकिम और विवेकानंद चाहिए और हम उन्हें धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील हिंदुत्व का आइकन बना दें या ताराशंकर जैसे साहित्यकार को हम संघ के पाले में जाने न दें।
जो जनविरोधी उपभोक्तावादी जनपद और जड़ों से कटा साहित्य है,उसका महिमामंडन करने से हालात नहीं बदलेंगे।अगर हालत बदलने हैं तो प्रतिरोध की परंपरा की पहचान जरुरी है और उसे मजबूत करना,आगे बढ़ाना अनिवार्य है।
हिंदी के महामहिम लोग अपने गिरेबां में पहले झांककर देखे कि हमने प्रेमचंद और मुक्तिबोध की परंपरा को कितना मजबूत किया है।
संघ परिवार साहित्यऔर कला माध्यमों में कहीं नहीं है और सिर्प केसरिया मीडियाआज के हालात के लिए जिम्मेदार है,कम से कम मैं यह नहीं मानता।अभी तो ताराशंकर और बंकिम की चर्चा की है,आगे मौका पड़ा तो बाकी महामहिमों के सच की चीरफाड़ और उससे कहीं ज्यादा समकालीनों के मौकापरस्त सुविधावादी  साहित्य का पोस्टमार्टम भी कर दूंगा।
उतना अपढ़ भी नहीं हूं।मेरे पास कोई मंच नहीं है।इसलिए यह न समझें कि कहीं मेरी बात नहीं पहुंचेगी।सच के पैर बहुत लंबे होते हैं।
सबसे बड़ा सच यही है मीडिया तो झूठन है,जिसे पेट खराब हो सकता है,लेकिन दिलों और दिमाग को बिगाड़ने में साहित्य और कला माध्यम निर्णायक है और वहां बी संघ परिवार का वर्चस्व है।संघ परिवार के लोग ही धर्निरपेक्ष प्रगतिशील भाषा और वर्तनी में आम जनता के केसरियाकरण का अभियान चलाये हुए हैं।
साहित्य और कला माध्यमों का माफिया मीडिया तो क्या राजनीति के माफिया का बाप है।

Wednesday, July 19, 2017

No Parliamentary relief for Darjeeling Hills and Indian politics shows unprecedented apathy against the Himalayan region and its people under serious threat of greater calamity! Palash Biswas

No Parliamentary relief for Darjeeling Hills and Indian politics shows unprecedented apathy against the Himalayan region and its people under serious threat of greater calamity!
Palash Biswas

No end of violence in Darjeeling Hills.Protesters torch police vehicle, set govt buildings on fire!No Parliamentary relief for Darjeeling Hills and Indian politics shows unprecedented apathy against the Himalayan region and its people under serious threat of greater calamity!
According to police reports, century-old community hall and a TMC party office in the Darjeeling hills were set ablaze by pro-Gorkhaland supporters earlier in the day as the indefinite shutdown for a separate state entered its 35th day.
Parliament session is not going to help the common people of Darjeeling.Mamata Banerjee wrote about her concern on chicken corridor which connects Assam and Northeast with rest of India.Mamata as well as Mahbooba Mufti have spoken a lot about Chinese hand in Kashmir and Darjeeling hills.
Meanwhile,Netaji Mulayam Singh Yadav declared rather quite unexpectedly that China is the enemy of India,not Pakistan.
Sikkim stand off is still heralding greater challeng to India`s security,unity and integrity while the entire Himalayan range has become quite volatile.It is reported in media that Bhutan has demanded via diplomatic channels that India and China ,both should remove ther armies frmom Dokalm.It is not official however.But it seems taht bilateral border issue between China and Bhutan has ironically become the bone of contention to create major calamity in the Himalayan region accross the border.
On the other hand ,Darjeeling burns have no impact in power circles in New Delhi as well as Kolkata even if human rights are killed,the game should contnue.
ABP Anand reports:
দার্জিলিং: অশান্তির বিরাম নেই পাহাড়ে। লেগেই আছে ভাঙচুর, আগুন। ফের পুড়িয়ে দেওয়া হল পুলিশের গাড়ি। হামলা চলল কার্শিয়ঙের শতাব্দী প্রাচীন কমিউনিটি হলে। প্রতিটি ক্ষেত্রেই মোর্চার বিরুদ্ধে অভিযোগ উঠলেও, তা অস্বীকার করেছে মোর্চা। ২১ জুলাই পাহাড়ে ধিক্কার দিবসের ডাক নারী মোর্চার।
একদিকে, বনধে অনড় মোর্চা। অন্যদিকে, পাহাড় জুড়ে অশান্তির আগুন। সব মিলিয়ে বিপর্যস্ত পাহাড়বাসীর জনজীবন। মঙ্গলবারের ধুন্ধুমারের পর পরিস্থিতি বদলাল না বুধবারও। মঙ্গলবার গভীর রাতে দার্জিলিংয়ের জজবাজারে তৃণমূলের পার্টি অফিস ভাঙচুরের পর আগুন লাগিয়ে দেওয়া হয়। আর বুধবার সকালে, ওই জায়গায় পোড়ানো হয় পুলিশের গাড়ি।
অশান্তি চলেছে পাহাড়ের অন্য অংশেও। মঙ্গলবার গভীর রাতে কার্শিয়ঙের শতাব্দীপ্রাচীন, রাজ রাজেশ্বরী কমিউনিটি হলে আগুন লাগিয়ে দেওয়া হয়। দমকলের ২টি ইঞ্জিন ঘটনাস্থলে পৌঁছনোর আগেই পুড়ে ছাই হয়ে যায় গোটা কমিউনিটি হলটি।
ওই একই সময় কার্শিয়ঙেই, রাজ্য সরকারের একটি ট্যুরিস্ট লজের রান্নাঘরে আগুন লাগানো হয়। শুধু তাই নয়, রাতের অন্ধকারে দুষ্কৃতীরা আগুন লাগায়, কালিম্পঙের আলগারার কাগ এলাকার পঞ্চায়েত অফিসে!
এদিন সকালে পোখরিয়াবঙ্গে পুলিশের সঙ্গে গোর্খাল্যান্ড আন্দোলনকারীদের সংঘর্ষ বাঁধে! প্রতিটি ক্ষেত্রেই মোর্চার বিরুদ্ধে অশান্তি পাকানোর অভিযোগ উঠলেও, তা উড়িয়ে দিয়েছে তারা। গোর্খা জনমুক্তি মোর্চার কেন্দ্রীয় কমিটির সদস্য সুষমা রাইয়ের দাবি, পাহাড়ে আগুন, অশন্তির নেপথ্যে মোর্চার হাত নেই, সরকারের ব্যাপার, কারা করছে দেখুক।
এই প্রেক্ষাপটে দলীয় সমর্থকদের মৃত্যুর প্রতিবাদে এদিন দার্জিলিঙে মিছিল করে নারী মোর্চা। চকবাজারে একটি সমাবেশ করা হয়। আগামী ২১ জুলাই, কলকাতায় যখন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় শহিদ সমাবেশ করবেন, তখন পাহাড়ে ধিক্কার দিবস পালন করবে নারী মোর্চা। সুষমা রাই বলেন, পাহাড়ে অশান্তি ৯ জন আন্দোলনকারী মারা গেছে, যার জন্য ২১ তারিখ নারী মোর্চার তরফে ধিক্কার দিবস পালন করা হবে। মৃত্যুর কারণ খুঁজতে সিবিআই চাই। মমতার শহিদ দিবস পালনের অধিকার নেই।
কী হবে পাহাড়ের ভবিষ্যত? কবেই বা শান্তি ফিরবে? এখন সেই প্রশ্নগুলিই ঘোরাফেরা করছে সাধারণ পাহাড়বাসীর মনে।

Tuesday, July 18, 2017

प्रांजय को हटाने के पीछे अडानीवाला केस तो बहना है,असल वजह तेल की धार है पलाश विश्वास

प्रांजय को हटाने के पीछे अडानीवाला केस तो बहना है,असल वजह तेल की धार है
पलाश विश्वास
भड़ासी यशवंत के सौजन्नय से खबर यह है कि एक बड़ी खबर ईपीडब्ल्यू (इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली) से आ रही है। कुछ महीनों पहले इस मैग्जीन के संपादक बनाए गए जाने माने पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। माना जा रहा है कि अडानी ग्रुप केे गड़बड़ घोटाले से जुड़ी एक बड़ी खबर छापे जाने और इस खबर पर अडानी ग्रुप द्वारा नोटिस भेजे जाने को लेकर परंजॉय के साथ EPW के प्रबंधन का मतभेद चल रहा था।

समझा जाता है कि प्रबंधन के दबाव में न झुकते हुए परंजॉय गुहा ठाकुरता ने संपादक पद से त्यागपत्र दे दिया। इस घटनाक्रम को कारपोरेट घराने और केंद्र सरकार द्वारा मिलकर EPW प्रबंधन पर बनाए गए दबाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सच कहने सच लिखने वाले पत्रकारों पर हाल के वर्षों में प्रबंधन का काफी दबाव पड़ता रहा है जिसके फलस्वरूप ऐसे पत्रकारों को इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ा है।

यशवंत ने हाल में घोषणा की है कि भड़ास बंद करने जा रहे हैं।इस खबर के खुलासे से जाहिर है कि वे अपनी आदत से बाज नहीं आयेंगे और मालिकान का सरदर्द बने रहेंगे।प्रांजय को हटाये जाने का अफसोस है।प्रभाष जोशी जब किनारे कर दिये गये और प्रतिबद्ध पत्रकारों का गला जिसतरह काटे जाने का सिलसिला चला है,इसमें नया कुछ नहीं है।बहरहाल यशवंत के जरुरी भड़ासीपन के जारी रहने की उम्मीज जगने से मुझे खुशी है।

 नब्वे दशक की शुरुआत में भी पत्र पत्रिकाओं में संपाद सर्वसर्वा हुआ करते थे।आर्थिक सुधारों में शायद सबसे बड़ा सुधार यही है कि संपादक अब विलुप्त प्रजाति है।बिना रीढ़ की संपादकी निभाने वाले बाजीगरों की बात अलग है,लेकिन प्रबंधन का हिस्सा बनने के सिवाय अभिव्यक्ति की कोई आजादी संपादक को भी नहीं है।

1970 में आठवीं में ही तराई टाइम्स से लिखने की शुरुआत करने के बाद आज 2017 में भी हम जैसे बूढ़े रिटायर पत्रकार की कोई पहचान,इज्जत ,औकात नहीं है क्योंकि संपादकीय स्वतंत्रता खत्म हो जाने के बाद पत्रकारिता की साख ही सिरे से खत्म है।

ईपीडब्लू के गौरवशाली इतिहास और भारतीय पत्रकारिता में उसकी अहम भूमिका के मद्देनजर उसके संपादक के ऐसे हश्र के बाद मिशन के लिए पत्रकारिता करने का इरादा रखने वाले लोग दोबारा सोचें।पत्रकार के अलावा कुछ भी बनें तो कूकूरगति से मुक्ति मिलेगी।

प्रांजय हिंदी में ईपीडब्लू निकालने की तैयारी कर रहे थे।इस सिलसिले में उनसे संवाद भी हुआ है।उनकी पुस्तक गैस वार अत्यंत महत्वपूर्ण शोध है और भारत के राष्ट्रीय संसाधनों की खुली लूट की अर्थव्यवस्था को समझने के लिए यह पुस्तक जरुरी है।

मैंने थोड़ा बहुत कांटेंटशेयर करने की कोशिश की थी,जिसके तुरंत बाद वह सारा का सारा रोक दिया गया।इस पुस्तक का सर्कुलेशन भी रोक दिया गया है।

जाहिर है कि मामला सिर्फ अडानी का केस नहीं है,इसमें तेल की धार का भी कुछ असर हो नहो,जरुर है।यही तेल की धार देश की निरंकुस सत्ता है।

मुश्किल यह है कि प्रबुद्ध जनों को सच का सामना करने से डर लगता है और वे अपने सुविधाजनक राजनीतिक समीकरण के मुताबिक सच को देखते समझते और समझाते हुए झूठ के ही कारोबार में लगे हैं।
--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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