Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Thursday, December 13, 2012

भूमि अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी! सवाल है कि अब क्या करेंगी दीदी?एक हजार करोड़ या इससे अधिक लागत की बड़ी परियोजनाओं को पर्यावरण हरी झंडी के बिना चालू करने की तैयारी!

भूमि अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी! सवाल है कि अब क्या करेंगी दीदी?एक हजार करोड़ या इससे अधिक लागत की बड़ी परियोजनाओं को पर्यावरण हरी झंडी के बिना चालू करने की तैयारी!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

केंद्र ने भमि भूमि अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी दे दी है। इसके साथ ही एक हजार करोड़ या इससे अधिक लागत की बड़ी परियोजनाओं को पर्यावरण हरी झंडी के बिना चालू करने की तैयारी कर ली है। खुदरा कारोबार में बिदेशी निवेश का विरोध करने वाली भाजपा बैंकिंग संशोधन कानून के लिए तैयार​ ​ है।दूसरे वित्तीय विधेयकों को भी भाजपाई समर्थन मिलने की पूरी संभावना है। जिनमे पेंशन और बीमा को विदेशी पूंजी के लिए खोलने ​​संबंधी विधेयक भी शामिल हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आर्तिक सुधारों को जनविरोधी नीतियां बताते हुए केंद्र से समर्थन वापस लेकर बगावत कर दी थी। बंगाल में भुमि अधिग्रहण विरोधी सिंगुर व नंदीग्राम जनविद्रोह की लहर पर सवार होकर कांग्रेस के साथ मोर्चा बनाकर ​​वे सत्ता में आयीं और मां माटी मानुष की सरकार का निर्माण किया। कांग्रेस न केवल इस सरकार से अलग हो गयी, बल्कि ममता राज के विरोध में उसके तेवर माकपा से कहीं ज्यादा तीखे हैं। दीदी ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि जोर जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण नही किया जायेगा। राज्य की आर्थिक हालत बहुत खराब है।ऐसे में राज्य को सबसे ज्यादा जरुरत है निवेश की । पर एक तरफ राजनीतिक हिंसा और अराजकता, बिल्डर प्रोमोटर राज, जबरन वसूली, पार्टी में अंतर्कलह से वे बुरी तरह घिरी हुई हैं। विधानसभा तक में हिंसा हो गयी। दूसरी ओर, जमीन अधिग्रहण के मुद्दे​ ​ पर यहां कोई उद्यम लगाने के लिए या निवेसके लिे तैयार नहीं है। ऐसे में केंद्र की ओर से लंबित परियोजनाएं चालू करने और भूमि​ ​ अधिग्रहण समेत आर्थिक सुधारों को लागू करने का जो मुहिम तेज हो गया है, जिसे संसद में  अविश्वास प्रस्ताव के जरिये रोकने की भी उन्होने नाकाम कोशिश की,अब सवाल है कि दीदी  इस  विकट परिस्थित से निपटने के लिए क्या रणनीति अपनाती है। राष्ट्रीय राजनीति में अपना ​​कद बढ़ाने के अलावा अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाये रखने और बंगाल में अपनी सत्ता कायम रखते हुए परिवर्तन जारी रखने की उनके सामने जो चुनौती है, बाकी राजनेताओं के सामने ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। सवाल है कि अब क्या करेंगी दीदी? पश्चिम बंगाल में राजनीति गरम हो रही है। सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में बगावत की अफवाह जोर पकड़ रही है। इस बीच, पार्टी ने अपनी एक विधायक को निलंबित कर दिया है। वहीं, विधानसभा में मंगलवार को मारपीट के बाद बुधवार को भी गरमागरमी रही। विधानसभा में बुधवार को कांग्रेस विधायकों ने हेलमेट पहन कर विरोध जताया। वे मंगलवार को विधानसभा में हुई हरकत का विरोध कर रहे थे। मंगलवार को विधानसभा में जो कुछ भी हुआ, उसके बाद ऐसी अटकलें जोर पकड़ रही हैं कि ममता बनर्जी के तख्तापलट की साजिश रची जा रही है। कहा जा रहा है कि जल्द ही तृणमूल कांग्रेस दो फाड़ हो सकती है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आखिरकार गुरुवार को विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी दे दी। विधेयक में निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण होने पर क्षेत्र के 80 प्रतिशत लोगों की सहमति लेने का अनिवार्य प्रावधान किया गया है।आर्थिक वृद्धि को गति देने और निवेश के रास्ते में आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिये सरकार ने बड़ी परियोजनाओं को जल्द मंजूरी देने को लेकर मंत्रिमंडल की निवेश समिति गठित करने और औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिये भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे को गुरुवार को मंजूरी दे दी।सार्वजनिक-निजी साझीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं के मामले में क्षेत्र के 70 प्रतिशत लोगों की सहमति लेने का प्रावधान किया गया है। विधेयक के प्रारुप के अनुसार क्षेत्र के जिन लोगों की जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा उनमें से 70 प्रतिशत की सहमति जरुरी होगी। विधेयक को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अंतिम रूप दिया गया, जिसमें संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के सुझावों को शामिल किया गया है।

117 साल पुराने भूमि अधिग्रहण कानून 1894 के अनुसार सार्वजनिक उद्देश्य के तहत किसी भी जमीन को बगैर बाजार मूल्य के मुआवजा चुकाए सरकार अधिग्रहण कर सकती है। इसमें 'सार्वजनिक उद्देश्य' की परिभाषा के तहत शैक्षणिक संस्थानों का निर्माण, आवासीय या ग्रामीण परियोजनाओं का विकास शामिल है। इसके लिए एक अधिसूचना पर्याप्त होती है। भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 में संशोधन के लिए 2007 में एक विधेयक संसद में पेश किया था। हालाकि यह विधेयक लैप्स हो चुका है। मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून की खामियों को दुरुस्त करने के लिए फिर से इस तरह के संशोधन बिल पेश किए जाने की बात की जा रही है। सभी राज्य विधायी प्रस्तावों में संपत्ति के अधिग्रहण या माग के विषय पर कोई अधिनियम या अन्य कोई राज्य विधान, जिसका प्रभाव भूमि के अधिग्रहण और माग पर है, में शामिल हैं, इनकी जाच राष्ट्रपति की स्वीकृति पाने के प्रयोजन हेतु धारा 200 (विधयेक के मामले में) या संविधान की धारा 213 (1) के प्रावधान के तहत भूमि संसाधन विभाग द्वारा की जाती है। इस प्रभाग द्वारा समवर्ती होने के प्रयोजन हेतु भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 में संशोधन के लिए राज्य सरकारों के सभी प्रस्तावों की जाच भी की जाती है, जैसा कि संविधान की धारा 254 की उपधारा (2) के अधीन आवश्यक है।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में मध्यम स्तर के उद्योगों की स्थापना करके एक करोड़ रोजगार सृजन का वादा किया। ... लेकिन भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों के कारण उद्यमी राज्य में निवेश करने से हिचक रहे हैं। बंगाल में भूमि अधिग्रहण संबंधित समस्याएं अक्सर उत्पन्न होती हैं जो चिंताजनक है। मुख्यमंत्री बनर्जी ने हाल ही में कहा था कि पश्चिम बंगाल भूमि सुधार अधिनियम-1995 की धारा 14-वाई के तहत भूमि अधिगृहित करने की अनुमति तब दी जा सकती है जब कोई उद्योगपति वार्ता और शातिपूर्ण तरीके से उसकी खरीदारी सीधे किसानों से करे। इसके साथ ही हलफनामों के माध्यम से किसानों को घोषणा करनी होगी कि वे जमीन स्वेच्छा से दे रहे हैं।सरकार ने इसी वर्ष कई औद्योगिक मामलों में भूमि हदबंदी को हटाने के लिए प्रो-इंडस्ट्री बिल अधिनियम की धारा 14- वाई में संशोधन के लिए विधेयक पारित दिया था। भूमि अधिग्रहण समस्या पर नजर रखने के लिए फिक्की ने टास्क फोर्स गठित किया था। सिंगुर मुद्दे पर अदालत के फैसले के बाद मंत्रियों की टिप्पणी करने पर विचार पूछे जाने पर राज्यपाल ने यह कह कर कोई टिप्पणी करने के इंकार कर दिया कि यह मामला न्यायालय के अधीन है।

पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भंट्टाचार्य ने स्वीकार किया है कि भूमि अधिग्रहण में गलती हुई हालांकि औद्योगीकरण की उनकी राह सही थी। 34 वषरें के वाममोर्चा के साशन में स्वास्थ्य, शिक्षा, और कृषि में बहुत काम हुआ। औद्योगिक विकास में भी सफलता मिल रही थी लेकिन भूमि अधिग्रहण में गलती हुई। औद्योगिकरण की रहा सही थी लेकिन सिंगुर और नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण में चुक हुई।

भूमि की सीधी खरीद की कोशिश असफल होने के बाद एनटीपीसी अब 9,600 करोड़ रुपये की कटवा परियोजना के आकार कम करने या दो अलग अलग स्थानों पर परियोजना के बांटे जाने के विकल्प पर विचार कर रही है।

बिजली  कंपनी अब कटवा के बाहर ऐश हैंडलिंग इकाई स्थापित करने पर विचार कर रही है, जिसे पाइपलाइन के जरिये जोड़ा जाएगा। शनिवार को राज्य सरकार की बैठक के दौरान परियोजना का आकार 1600 (800 मेगावाट के  दो) मेगावाट से कम किए जाने पर भी विचार किया गया। ममता बनर्जी द्वारा सत्ता संभालने के बाद इस परियोजना का भविष्य अधर में लटका है, क्योंकि राज्य सरकार किसी भी औद्योगिक परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण नहीं किए जाने की नीति अपना रही है।

एनटीपीसी के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अरुप रॉयचौधरी ने कहा, 'हम यहां परियोजना स्थापित करना चाहते हैं। अगर इस स्थान पर जमीन उपलब्ध नहीं होती है तो हम कटवा के बाहर इसके लिए जमीन देखेंगे। कर्मचारियों के लिए कॉलोनी बनाने, रेलवे साइडिंग, पानी संग्रहीत करने के लिए और जमीन की जरूरत होगी। राज्य सरकार सकारात्मक रुख अपना रही है और हम उम्मीद करते हैं कि वह जरूरी कदम उठाएगी। इस परियोजना के लिए कुल 1200 एकड़ जमीन की जरूरत है, जो प्रति मेगावाट 0.7 एकड़ के नियम के मुताबिक है।'

इस परियोजना के लिए पश्चिम बंगाल बिजली विकास निगम (डब्ल्यूबीपीडीसीएल) ने करीब 556 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है, जबकि शेष जमीन खरीत का मसला एनटीपीसी पर छोड़ दिया गया है, जिस पर किसानों को सीधे भुगतान कर परियोजना का काम तेज करने के लिए दबाव है। उन्होंने कहा कि हमने किसानों को सीधे भुगतान की योजना त्याग दी है, राज्य सरकार की मदद के बगैर अधिग्रहण असंभव है। बहरहाल इस परियोजना के सामने कोल लिंकेज को लेकर एक नया संकट भी है। रॉयचौधरी कहा, 'हमें कोयला ब्लाक की जरूरत है। राज्य सरकार ने केंद्र को धामागरिया की खदान दी है, जो हमें उपलब्ध कराई जानी है।' रॉयचौधरी ने कहा कि इस प्रस्तावित संयंत्र के लिए सालाना 75 लाख टन कोयले की जरूरत होगी।

राज्य के औद्योगिक विकास में भूमि अधिग्रहण अभी भी समस्या है लेकिन यहां निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल है। राज्यपाल एमके नारायणन ने इनफोकाम के उद्घाटन अवसर पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि राज्य में उद्योग का अनुकूल माहौल होने के बाद भी भूमि समस्या मुद्दा बनी हुई है। इसके समाधान पर सरकार ध्यान दे रही है। हालांकि उन्होंने संबंधित विषय पर राज्य सरकार की ओर से उठाए गए कदम के बारे में विस्तार से बताने से इंकार कर दिया।

सूबे में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत कई सड़कों का विकास पिछले पाच साल से बाकी है। इसके अलावा राजमार्गों का विस्तार भी आशानुरूप नहीं हो पाया है। राजमार्गो के विस्तार में भूमि अधिग्रहण बड़ी समस्या खड़ी कर रही है। राज्य में बारासात से बनगाव (बाग्लादेश की सीमा) तक 60 किलोमीटर लंबी चार लेन सड़क बनने की परियोजना के लिए जमीन नहीं मिलने की वजह से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने खुद को अलग कर लिया है जिसके चलते अब शायद ही वह सड़क बन सके। इससे पूर्व इसी जिले में बारासात से रायचक तक बनने वाला हाईवे भी भूमि विवाद की भेंट चढ़ चुका है।

दूसरी ओर एशियाई विकास बैंक (एडीबी) द्वारा दिए जाने वाले पैसे से 232 किलोमीटर के प्रदेश राजमार्ग (एसएच) के साथ-साथ गावों तक पहुंचाने वाली सड़कों का निर्माण होना था। परियोजना को 2007 के जून तक पूरा किया जाना था लेकिन ठेकेदारों के खराब प्रदर्शन की वजह से परियोजना में देरी होती चली गई। यह परियोजना अधूरी रह गई।

पश्चिम बंगाल परियोजना क्रियान्वयन इकाई (पीआईयू) ने एडीबी के पास 2,270 करोड़ रुपये की सड़क परियोजना के खातिर प्रोजेक्ट प्लानिंग और तकनीकी सहयोग (पीपीटीए) के लिए प्रस्ताव भेजा है। प्रस्ताव को आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) द्वारा मंजूर किया गया है और तकनीकी सहयोग हासिल करने के लिए इसे एडीबी के पास भेजा गया है। दो लेन वाली 271 किलोमीटर सड़क का निर्माण 2,270 करोड़ रुपये की लागत होगा। इस परियोजना के तहत एनएच-60 को मोरग्राम से एनएच-6 के साथ मेछोग्राम में जोड़ा जाएगा और इसके बीच में आरामबाग और व‌र्द्धमान में एनएच-2 भी आपस में जुड़ेंगे। इस परियोजना से राज्य के उत्तरी और दक्षिण हिस्से को जोड़ने के लिए एक वैकल्पिक सड़क उपलब्ध हो जाएगी और इससे कई मामलों में बहुत सुविधा होगी।

भूमि अधिग्रहण विधेयक इससे पहले पिछले साल भी संसद में पेश हुआ था। बाद में स्थायी समिति ने इसमें कई बदलाव की सिफारिश की थी। तब पेश किए गए विधेयक में अधिग्रहण के लिए सिर्फ 68 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति की अनिवार्यता रखी गई थी। स्थायी समिति ने बदलाव करते हुए जमीन के मालिकों के साथ-साथ उस पर आश्रित 80 फीसदी भूमिहीनों की सहमति को भी जरूरी करने का सुझाव दिया था। उधर, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कहा था कि 68 फीसदी जमीन मालिकों की जगह कम से कम 80 फीसदी की मंजूरी को अनिवार्य किया जाए। जाहिर है, स्थायी समिति की जगह सोनिया गांधी की मांग को तवज्जो दी गई है। नए विधेयक में कुछ और बदलाव भी हैं।इसके मुताबिक जिन मामलों में अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है, उनमें मुआवजा नए कानून के हिसाब से बांटा जाएगा। जहां अधिग्रहण और मुआवजा देने की प्रक्रिया पूरी हो गई है, वहां अगर पांच साल के अंदर परियोजना का काम शुरू नहीं हुआ, तो अधिग्रहण निरस्त मान लिया जाएगा। ग्रामीण क्षेत्र में बाजार भाव का चार गुना और शहरी क्षेत्र में बाजार भाव का दोगुना मुआवजा मिलेगा। मुआवजे के हकदार जमीन पर आश्रित लोग भी होंगे। चर्चा है कि इसी शीतकालीन सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक संसद में पेश कर दिया जाएगा लेकिन जिस तरह जमीन पर आश्रितों की मंजूरी के सवाल को दरकिनार किया गया है, उस पर हंगामा होना तय है।

कांग्रेस पार्टी नए साल से 51 जिलों में कैश सब्सिडी ट्रांसफर योजना को शुरू करने जा रही है लेकिन जिलों के चयन को लेकर पार्टी की मंशा पर सवाल उठने लगे है।

लोगों के हाथ तक पैसा पहुंचाने का दावा कर रही कांग्रेस इस स्कीम के ज़रिए पार्टी का हाथ भी मजबूत करना चाहती है ताकि लोकसभा चुनाव 2014 में पार्टी की जीत रास्ता साफ हो सके।

सीएनबीसी आवाज़ ने कैश सब्सिडी योजना की शुरुआत के लिए चुने गए 51 में से 43 जिलों का अध्ययन किया और पाया कि 43 में से 27 जिले ऐसे है जहां कांग्रेस पार्टी की पकड़ बेहद मजबूत है यानि कि इन 27 ज़िलों में कांग्रेस पार्टी नम्बर 1  पर है। इन में से 14 जिलों में पार्टी की कांग्रेस पार्टी नम्बर 2 पर है।

हालांकि कांग्रेस इन 51 जिलों के चुनाव के पीछे किसी राजनीति से इनकार किया है लेकिन बीजेपी के लिए तो ये कांग्रेस पर हमला करने का मौका है।

मकसद चाहे जो भी लेकिन इतना तो साफ है कि कांग्रेस पार्टी इस योजना को बाजी पलटने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती है और ये ऐलान खुद कांग्रेस पार्टी खुलेआम कर भी चुकी है।

सीएनबीसी आवाज को एक्सक्लूसिव जानकारी मिली है कि जल्द ही रसोई गैस का सिलेंडर 109 रुपये महंगा हो जाएगा। सूत्रों का कहना है कि अगर सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या बढ़ाई गई तो सब्सिडी वाले सिलेंडर भी 100 रुपये से ज्यादा महंगे हो जाएंगे।

सूत्रों के मुताबिक रसोई गैस के सिलेंडर के दाम बढ़ने की वजह सब्सिडी वाले सिलेंडर की संख्या 6 से 9 करना है। गुजरात चुनाव के बाद सब्सिडी वाले सिलेंडर की संख्या 6 से 9 होगी। सिलेंडरों की संख्या 6 से 9 करने से सरकार पर 9,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। लिहाजा 9,000 करोड़ रुपये का बोझ खत्म करने के लिए ही दाम बढ़ाने की तैयारी की जा रही है।

सूत्रों की मानें तो इसी हफ्ते कांग्रेस की कोर कमेटी में रसोई गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाए जाने पर राजनीतिक फैसला लिए जाने की संभावना है। कांग्रेस कोर कमेटी में फैसला लेने के बाद रसोई गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाए जाने पर अंतिम फैसला कैबिनेट में लिया जाएगा। आचार संहिता के कारण गुजरात चुनाव के बाद ही रसोई गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाए जाने पर फैसला होगा।

मंत्रिमंडल ने तीन सर्किलों में 1800 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के लिए सरकार द्वारा तय किए गए आधार मूल्य में 30 फीसदी कटौती कर उसकी दोबारा नीलामी को भी अनुमति दे दी। इससे उम्मीद है कि सरकार राजकोषीय घाटे का अंतर पाटने के लिए थोड़ी ज्यादा कमाई कर पाएगी।

इसके अलावा आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने यूरिया पर नई निवेश नीति को भी हरी झंडी दे दी, जिससे सरकार अतिरिक्त 35,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है। प्रस्तावित एनआईबी को अब निवेश पर कैबिनेट समिति ने नाम से जाना जाएगा और यह 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को जल्दी अनुमति दिलाने का काम करेगी। इस समिति के अध्यक्ष प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह होंगे। इस समिति के गठन का फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब योजना आयोग ने 12वीं पंचवर्षीय योजना (वित्त वर्ष 2013-2017) के  तहत बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 56,14,730 करोड़ रुपये के निवेश का अनुमान लगाया है। इससे पहले मंत्रिमंडल ने ऐसे एक प्रस्ताव को खारिज कर दिया था क्योंकि वन एवं पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने एनआईबी के गठन का विरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इस बोर्ड के पास उनके मंत्रालय से ज्यादा अधिकार हो जाएंगे। आज उन्होंने कहा, 'इस बारे में मेरी सभी चिंताओं का समाधान कर दिया गया है। मैं संतुष्ट हूं।'

हाल में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि विभिन्न कारणों से 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की करीब 100 परियोजनाएं अटकी हुई हैं। उन्होंने कहा था, 'हमारी समस्या परियोजनाओं की संकल्पना नहीं है बल्कि इन पर समय से काम शुरू करने के लिए जरूरी अनुमति नहीं मिलना है।' मसलन विभिन्न वजहों से एनटीपीसी की 11000 मेगावाट क्षमता की परियोजना अटकी पड़ी है। मंत्रिमंडल ने भू अधिग्रहण विधेयक में संशोधन को भी अनुमति दी। मंत्रिमंडल द्वारा पारित विधेयक के अनुसार अब सार्वजनिक-निजी भागीदारी के आधार पर बनने वाली परियोजनाओं के लिए 70 फीसदी भू मालिकों की सहमति आवश्यक होगी। हालांकि अन्य परियोजनाओं के लिए 80 फीसदी स्थानीय लोगों की सहमति मिलना जरूरी है।

सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी मंत्रिसमूह के उस प्रस्ताव के पक्ष में नहीं थी जिसमें कहा गया था कि उद्योगों एवं पीपीपी परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण के वास्ते जिन लोगों की भूमि का अधिग्रहण होगा उनमें से दो.तिहाई लोगों की सहमति पर्याप्त होगी।

मंत्री समूह ने निजी परियोजनाओं और पीपीपी परियोजनाओं के लिये सहमति के नियम में 67 प्रतिशत लोगों की सहमति लिये जाने का सुझाव दिया था। सरकार ने मत्रिमंडल की बैठक में कुछ मंत्रियों द्वारा कड़ी आपत्ति किये जाने के बाद अलग मंत्री समूह का गठन किया था।

ग्रामीण विकास राज्यमंत्री लालचंद कटारिया ने राज्यसभा को बताया कि सरकार शीतकालीन सत्र में ही लोकसभा में भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास एवं पुनस्र्थापना विधेयक, 2011 में आधिकारिक संशोधन पेश करना चाहती है।

कटारिया ने संवाददाताओं को यह भी बताया था कि विधेयक में इस्तेमाल नहीं की गई जमीन लौटाने का भी प्रावधान है। भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 में इस्तेमाल नहीं की गई जमीन लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इसके साथ ही यूरिया क्षेत्र के लिये नई निवेश नीति को भी हरी झंडी दे दी। इस नीति में मौजूदा यूरिया कारखानों के विस्तार और नये उर्वरक संयंत्रों को लगाने के लिये उद्यमियों को प्रोत्साहन मिलेगा।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में आज दिल्ली और मुंबई सहित शेष बचे चार सर्किलों में स्पेक्ट्रम नीलामी के लिये आधार मूलय में 30 प्रतिशत कटौती के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी गई।

सरकार के ये फैसले अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये पिछले कुछ महीनों में किये गये अनेक प्रयासों को और मजबूती देते हुये सामने आये हैं। निवेशकों के विश्वास को मजबूत करने के लिये सरकार ने पिछले दिनों कई कदम उठाये हैं।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि 1,000 करोड़ रुपये अथवा इससे अधिक की बड़ी परियोजनाओं के निवेश प्रस्ताव को मंजूरी देने के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की निवेश संबंधी समिति के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। इस समय 1,000 करोड़ रुपये से अधिक निवेश वाली करीब 100 निवेश परियोजनायें लटकी पड़ी हैं।

वित्त मत्री पी. चिदंबरम ने सबसे पहले इस तरह के एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति के गठन का प्रस्ताव किया था। उन्होंने इसे राष्ट्रीय निवेश बोर्ड का नाम दिया था। मंत्रिमंडल ने हालांकि, इसके नाम को बदलते हुये इसे मंत्रिमंडल की निवेश मामलों की समिति नाम दिया है।

बहरहाल, मंत्रिमंडल ने प्रस्तावित एनआईबी का नाम मंत्रिमंडल की निवेश समिति करने का निर्णय किया। समिति में बुनियादी ढांचा क्षेत्रों से जुड़े विभागों के मंत्री इसके सदस्य होंगे। पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने इस बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर एनआईबी गठित करने को लेकर अपनी आपत्ति जतायी थी। उन्होंने कहा था कि ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए जिससे बड़ी परियोजनाओं के लिये जरूरी हरित मंजूरी को नजअंदाज किया जाए।

सीसीआई गठित करने के निर्णय पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि जो प्रतिबद्धता जतायी गयी थी, पूरी हुई है। संवाददाताओं से बातचीत में सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि मंत्रिमंडल की निवेश समिति को 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश वाली परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार दिया गया है। इसका उद्देश्य परियोजनाओं को मंजूरी देने की प्रक्रिया में तेजी लाना है। इसके अलावा मंत्रिमंडल ने विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी दे दी। विधेयक में निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण होने पर क्षेत्र के 80 प्रतिशत लोगों की सहमति लेने का अनिवार्य प्रावधान किया गया है।

सार्वजनिक.निजी साझीदारी परियोजनाओं के मामले में क्षेत्र के 70 प्रतिशत लोगों की सहमति लेने का प्रावधान किया गया है। विधेयक के प्रारुप के अनुसार क्षेत्र के जिन लोगों की जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा उनमें से 70 प्रतिशत की सहमति जरुरी होगी।

जहां एक तरफ उद्योग जगत ने मंत्रिमंडल के इस निर्णय का स्वागत किया है वहीं रीयल एस्टेट कंपनियों ने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। रीयल एस्टेट कंपनियों का कहना है कि सहमति का प्रावधान कड़ा है और इससे जमीन की कीमत बढ़ेगी।

साथ ही मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने यूरिया निवेश से संबद्ध नई नीति को मंजूरी दे दी। इसके तहत उर्वरक कंपनियों को नया कारखाना लगाने तथा मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा। देश अपनी कुल जरूरत का 30 प्रतिशत से अधिक यूरिया आयात करता है और नई निवेश नीति का उद्देश्य आयात पर निर्भरता कम करना है। नीति से मौजूदा कीमतों पर प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है।

इसके अलावा मंत्रिमंडल ने दिल्ली और मुंबई सहित चार सर्किलों में दूरसंचार स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए आधार मूल्य में 30 प्रतिशत की कटौती का प्रस्ताव मंजूर कर लिया। पिछली नीलामी में इन सर्किलों में स्पेक्ट्रम के लिए कोई बोली नहीं मिली थी।

पिछले महीने कराई गयी नीलामी में दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक और राजस्थान में स्पेक्ट्रम का कोई लिवाल सामने नहीं आया था। कंपनियों को शिकायत थी कि इन सर्किलों में आधार मूल्य बहुत उंचा रखा गया।

उसके बाद, एक मंत्रिस्तरीय समिति ने इन चार सर्किलों में 1,800 मेगाहट्र्ज बैंड में स्पेक्ट्रम के लिए आधार मूल्य में 30 प्रतिशत कटौती की सिफारिश की थी।

साथ ही सीसीईए ने सार्वजनिक क्षेत्र की फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स आफ ट्रावनकोर :फैक्ट: को जून 2013 तक अतिरिक्त सब्सिडी देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

मंत्रिमंडल की बुनियादी ढांचा समिति ने सड़क परियोजनाओं को तेजी से आवंटित करने के लिये प्रक्रियाओं को सरल बनाने का निर्णय किया है।

No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk