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Sunday, November 4, 2012

सैंडी ने बताया कि राज्य को लोक लोककल्याणकारी क्यों होना चाहिए​!!

सैंडी ने बताया कि राज्य को लोक लोककल्याणकारी क्यों होना चाहिए​!!
​​
​पलाश विश्वास

अमेरिका में आये भयानक तूफान से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के समीकरण बदलते हुए नजर आ रहे हैं।अमेरिका में वैसे भी अर्ली वोटिंग के तहत मतदान शुरू हो चुका है! लोककल्याणकारी राज्य की ​​ अवधारणा प्राकृतिक आपदा से निपटने में कितनी कारगर होती है, राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे साबित करने का भरसक प्रयत्न करते ​​हुए यहूदी हिंदू लाबी और आक्रामक अमेरिकी राष्ट्रवाद के रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोमनी ही नहीं, खुले बाजार के वर्चस्व और सरकार व राष्ट्र  भूमिका खत्म करने वाले साम्यवादविरोधी उत्तरआधुनिकतावाद को करारा जवाब दिया है। साम्यवाद भी राष्ट्रहीन व्यवस्था को क्रांति का ​​अंतिम लक्ष्य मानता है क्योंकि उसके मुताबिक राष्ट्र सत्ता वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करता है और उसमें सर्वहारा का प्रतिनिधित्व ​​असंभव है। दूसरी ओर, उत्तरआधुनिकतावाद साम्यवाद के अंत की घोषणा कर चुका है। बाजार के वर्चस्व के लिए राष्ट्र की भूमिका सीमाबद्ध करना वैश्विक अर्थव्यवस्था की सर्वोच्च प्राथमिकता है। अमेरिका दुनियाभर में साम्यवाद के अवसान के बाद समूचे युरोप में अपनी तरह के ​​लोकतंत्र की स्थापना में कामयाबी पाने के बाद अफ्रीका, लातिन अमेरिका, एशिया और अरब में लोकतंत्र का निर्यात करने लगा है। अमेरिकी वर्चस्व वाले वैश्विक आर्थिक संस्थानों विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन. यूनेस्को, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के कारिंदे कारपोरेट मदद से दुनियाभर की सरकारें चला रहे हैं। दुनियाभर में वित्तीय और नागरिकता कानून अमेरिकी हितों के मद्देनजर बाजार और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा अभियान के तहत मूलनिवासी बहुसंख्य जनता की जल, जंगल, जमीन, आजीविका और नागरिकता से बेदखली के अश्वमेध कर्मकांड बतौर, जनसंहार की नीतियों को आर्तिक सुधार बताकर संसद और संविधान की हत्या करके बदला जा रहा है। नीति निर्धारण में जनता का प्रतिनिधित्व​​ खत्म है तो कारपोरेट प्रायोजित सिविल सोसाइटी परिवर्तन के झंडेवरदार बतौर उभर रहे हैं।तूफान सैंडी ने इस खुले बाजार के वर्चस्व और निजीकरण  के धमाके के मुकाबले चुनी हुई सरकार की भूमिका को नये सिरे से स्थापित किया है, जिससे कारपोरेट खेल के उलट ओबामा की स्थिति मजबूत हुई है।अमेरिका में एक ओर राष्ट्रपति चुनाव को लेकर महज कुछ ही घंटे बचे हैं वहीं बराक ओबामा और उनके प्रतिद्वंद्वी रोमनी महत्वपूर्ण राज्यों में मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अंतिम कोशिश में जुटे हैं। व्हाइट हाउस को लेकर जंग में मंगलवार को चुनाव से पहले अंतिम सप्ताहांत में अमेरिकी राष्ट्रपति और उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी के बीच कांटे की टक्कर चल रही है, लेकिन अभी भी कुछ स्पष्ट उभरकर सामने नहीं आया है। वाशिंगटन पोस्ट-एबीसी न्यूज की ताजा राष्ट्रीय रायशुमारी में काफी निकट का मुकाबला रहने की उम्मीद है।

वाशिंगटन पोस्ट-एबीसी न्यूज की ताजा राष्ट्रीय रायशुमारी में काफी निकट का मुकाबला रहने की उम्मीद है। ओबामा और रोमनी दोनों को 48-48 फीसदी वोट हासिल हो सकता है। हालांकि,चुनाव पंडितों ने अहम मुकाबले में मौजूदा राष्ट्रपति को हल्की बढ़त दी है। चुनाव में काफी नजदीकी मुकाबला देखने को मिलेगा।सुस्त अर्थव्यवस्था और विपक्ष की ओर से तमाम तरह के हमलों का सामना कर रहे 51 वर्षीय ओबामा अपने अधूरे काम को पूरा करने के लिए एक और कार्यकाल चाहते हैं।ओबामा पूर्व रिपब्लिकन प्रशासन की गलत नीतियों की शिकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ और समय की मांग कर रहे हैं वहीं रोमनी मतदाताओं को यह समझाने में जुटे रहे कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था गलत पटरी पर है और इसमें पूरी तरह से बदलाव की जरूरत है।सबसे नवीनतम सीएनएन सर्वेक्षण में ओबामा केवल एक अंक से रोमनी पर भारी पड़े। ओबामा को 48 और रोमनी को 47 प्रतिशत वोट के साथ मुकाबला काफी नजदीकी रहने की उम्मीद जताई गई।

बीबीसी संवाददाता पॉल एडम्स का कहना है, "दस दिन पहले, पहली बहस के समय तक, तक लग रहा था कि मिट रोमनी का प्रचार तेज हो रहा है. लेकिन अब मतदान से कुछ ही दिन पहले लगता है कि स्थिति कुछ बदल रही है." उनका ये भी कहना है कि रोमनी के पक्ष में पर्याप्त संख्या में स्विंग स्टेट्स नहीं जा रहा है जिनके आधार पर हार-जीत का फैसा होना है. बराक ओबामा ने पिछले हफ्ते में खासा अच्छा प्रदर्शन किया है." पॉल एडम्स का कहना है कि तूफान सैंडी की तबाही के बाद राहत कार्यों और कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति ओबामा की सराहना हुई है हालाँकि अब भी लाखों लोग सैंडी से हुई तबाही के परिणामों से जूझ रहे हैं.  

व्हाइट हाउस ने कहा है कि ओबामा ने शनिवार को एक आपदा घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर भी किये।राष्ट्रपति चुनाव के चुनाव प्रचार के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तूफान सैंडी से प्रभावित हुये इलाकों में राहत कार्रवाई पर नजर रखे हुये हैं।इस तरह का तूफान कहीं और हुआ होता तो तबाही इससे कई गुना ज्यादा होती। प्रलयकारी सैंडी आने वाला है और इससे भारी तबाही होगी, इसकी सूचना अमेरिका के लोगों को पहले से थी। प्रभावित इलाकों में सभी तैयार थे। चूंकि सैंडी की सूचना पहले से थी, इसीलिए वहां तैयारी पहले हो चुकी थी। तैयारी जिस अवधारणा से हो रही थी उसका नाम था 'फेलिंग सेफली' यानी सावधानी से फेल होना। सब-वे सिस्टम बंद कर दिए गए। तूफान के बाद आने वाली बाढ़ में लोगों को बिजली का करेंट न लगे,इसीलिए बिजली के ग्रिड बंद कर दिए गए। राहत कैंप तैयार हो गए। ओबामा ने ओहायो जाने से पहले फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी के मुख्यालय का दौरा किया। प्रवक्ता जोशुआ अर्नेस्ट ने बताया कि राष्ट्रपति ने फोन पर न्यूयार्क, न्यूजर्सी और कनेक्टीक्ट के गवर्नर और मेयर से वार्ता की। यह आपदा घोषणा पत्र तूफान सैंडी के कारण इस सप्ताह तेज हवाओं व बाढ़ से प्रभावित रोड द्वीप के इलाकों के लिए है।

तूफान सैंडी की वजह से अमेरिका में जलवायु, पर्यावरण, पारिस्थितिकी और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे गर्मा गये हैं। यहां तक कि इसके असर में रिपब्लिकन मेयर और गवर्नर तक को ओबामा की तारीफ करनी पड़ रही है।एक अप्रत्याशित राजनीतिक घटनाक्रम में न्यूयार्क के मेयर माइकल ब्लूमबर्ग ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बराक ओबामा का समर्थन करने का ऐलान किया है।कभी ओबामा के कट्टर आलोचक रहे ब्लूमबर्ग ने अपने इस फैसले का कारण यह बताया है कि वह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में बराक ओबामा की सेवाओं से बहुत खुश हैं। ब्लूमबर्ग के इस निर्णय पर मंगलवार की रात को अमेरिका के पूर्वी तट पर आए विनाशकारी तूफान सैंडी के बाद बराक ओबामा द्वारा उठाए गए कारगर कदमों ने भी प्रभाव डाला है।इससे पहले यह बताया गया था कि ओबामा सरकार ने न्यूजर्सी, न्यूयॉर्क और कनेक्टिकट में तूफान से पीड़ित निवासियों की मदद के लिए 34 लाख डॉलर आवंटित किए हैं।उल्लेखनीय है कि सन् 2010 में ब्लूमबर्ग की एक बार अर्थव्यवस्था के हालात पर चर्चा के दौरान ओबामा से जिरह हो गई थी। इसके बाद ब्लूमबर्ग ने कहा था कि ओबामा बेहद घमंडी व्यक्ति हैं। उस वक्त ओबामा छुट्टिया बिताने विनयार्ड में थे। इस दौरान ब्लूमबर्ग और ओबामा ने 15 मिनट तक बात की थी। समाचार पत्र ऑस्ट्रेलियन फाइनेंसियल रिविव के अनुसार मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डाक ने इस बातचीत के बारे में बताया था ओबामा से बात करने के बाद ब्लूमबर्ग ने कहा कि मैं इस तरह के घमंडी इंसान से कभी नहीं मिला।

इसके विपरीत हमारे यहां प्रधानमंत्री खुलेआम अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह और निवेश का माहौल बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण, खनन अधिनियम, पर्यावरण और वनाधिकार कानून के तहत किसी भी  नियंत्रण को खत्म करने की वकालत कर रहे हैं।प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट के लिए बायोमैट्रिक डिजिटल नागरिकता का इंतजाम किया गया है ताकि​ ​ बहुसंख्यक बहिष्कृत समुदायों को जल जंगल और जमीन से बेदखल किया जाये।अभयारण्य और समुद्तरतट तक  परमाणु संयंत्रों और​ ​ सेज की बलि चढ़ाये जा रहे हैं। तेल और कोयला जैसी प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े मंत्रालयों के मंत्री तक कारपोरेट तय करते हैं। पर्यावरण मंजूरी न मिली तो पर्यावरण मंत्री बदल दिये जाते हैं।रविवार को रामलीला मैदान पर कांग्रेस की महारैली में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, कोई भी देश तेज आर्थिक विकास के बिना गरीबी, बेरोजगारी और अशिक्षा जैसी समस्याओं के छुटकारा नहीं पा सका। कड़े फैसले किए बिना रोजगार के अवसर पैदा नहीं किए जा सकते। देश में निवेश को बढ़ाया जाए हमने इस दिशा में बराबर कोशिशें की हैं और हमें कामयाबी भी मिली है। हमने आर्थिक विकास का रेकॉर्ड बनाया है। हमने इस पर खास ध्यान दिया है। तेज आर्थिक विकास का फायदा सबको मिलना चाहिए, गांवों तक पहुंचना चाहिए। हमारी पार्टी और सरकार का मानना है कि देश की तरक्की होनी चाहिए।हमारी सरकार का मानना है कि ये फैसला हमारे हित में है, इसलिए आम जनता औऱ किसानों दोनों को फायद होगा। आज किसानों की फसल का हिस्सा इसलिए बर्बाद हो जाता है क्योंकि स्टोरेज नहीं होता। लेकिन हमने इन सुविधाओं को बढ़ाने के लिए प्रावधन किया है। हमारे फैसले के बारे में कहा जा रहा है कि छोटे व्यापारियों को नुकसान होगा। ऐसा जनता को गुमराह करने के लिए कहा जा रहा है, या समझ न होने की वजह से कहा जा रहा है। हमने समझदारी से फैसला लिया।1991 में FDI के बारे में जरूरी फैसले किए थे, उसके अच्छी नतीजे साफ दिखाई देते हैं। विरोध करने वालों में फर्क इस मुद्दे पर है कि हम किस तरह से देश का निर्माण करना चाहते हैं। हम फैसले में बदलाव भी ला सकते हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विकास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण की मंजूरी लेने को निवेश की राह में रुकावट बताया है. (http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/11/121101_manmohan_environment_clearance_aa.shtml)


ओबामा ने कहा कि इस सप्ताह कम तापमान के कारण तूफान के दौरान शिविरों में गए लोगों को अस्थायी घरों में स्थानांतरित करने के लिए एक अभियान शुरू किया गया, ताकि वे अपेक्षाकृत थोड़ा सहज महसूस कर सकें।न्यूयॉर्क की नाक में दम कर देने वाले सैंडी के सैलाब ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या इनके पीछे जलवायु में बदलाव की भी कोई भूमिका है! इसके साथ ही एक बड़ा सवाल यह भी है कि यही तूफान एशियाई शहरों में आए तो?अगर आंधियों के आवेग की बात हो तो पर्यावरण में बदलाव के असर के मुद्दे पर विज्ञान में ज्यादा सहमति दिखती है।सैंडी की लहरें संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी आईपीसीसी के बनाए स्केच से बहुत हर तक मेल खाती हैं। यह स्केच मार्च में छपा थी जो आईपीसीसी ने मौसम की बड़ी घटनाओं के बारे में बनाई रिपोर्ट में शामिल किया था।सैंडी का कहर झेलने में न्यूयॉर्क जैसे विकसित शहर का भी बैंड बज गया है जहां शानदार तकनीक, बढिया प्रशासन और दुनिया की सबसे अमीर अर्थव्यवस्था है।सोच कर देखिये,ऐसे तूफान एशियाई शहरों में आएं तो उनका क्या हाल होगा? 2007 में ओईसीडी ने आबादी के आधार पर सागर किनारे बसे 20 ऐसे शहरों को चुना था, जो आने वाले पांच छह दशकों में सबसे ज्यादा संकटों का सामना करेंगे। इनमें सबसे ज्यादा 15 शहर एशिया से थे. इनमें पहले आठ जगहों में कोलकाता, मुंबई, ढाका, गुआंगझू, हो ची मिन्ह सिटी, शंघाई, बैंकॉक और रंगून शामिल हैं।

सैंडी और नीलम जैसे चक्रवातीय तूफान के लिए वैश्विक जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है। पिछले सौ सालों में वैश्विक तापमान में हुई वृद्धि चिंताजनक है। वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड और समुद्र के स्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। यह आने वाले आपदा का संकेत है।यह बात नेशनल एसोसिएशन ऑफ 'योग्राफर इंडिया(नागी) के तत्वावधान में आयोजित 34 वां भारतीय भूगोल कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए दक्षिण अफ्रीका के भूगोलविद् और अंतरराष्ट्रीय भूगोल संघ के महासचिव माइकल मीडोस ने कही।

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चक्रवाती तूफान सैंडी से पीड़ित राज्यों को सभी आवश्यक मदद देने की गारंटी दी है। इस तूफान के कारण कम से कम 100 लोग मारे गए और पूर्वी तट पर व्यापक तबाही हुई।सौ साल के इतिहास में पहली बार हुआ कि न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज को लगातार दो दिन प्राकृतिक विपदा की वजह से बंद करना पड़ा।पूरे न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी और दूसरी जगहों पर यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप पड़ गई थी और लगभग अस्सी लाख लोगों को बगैर बिजली के घंटों रहना पड़ा।तेल की जबरदस्त कमी हो गई है।सैंडी के चलते सेल फोन सेवाएं बाधित होने और बिजली आपूर्ति प्रभावित होने से आईपैड, कम्प्यूटर्स और अन्य प्रौद्योगिकियों के ठप्प हो जाने के बाद लोग अपने परिवार व दोस्तों से सम्पर्क करने के लिए सार्वजनिक फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।  सैंडी तूफान से हुए आर्थिक नुकसान का ठीक-ठीक आकलन करने में हालांकि अभी कुछ वक्त लगेगा, मगर यह बीस अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर सकता है। तूफान के बाद की साफ-सफाई और निर्माण कार्य में बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ेगी। समाचार एजेंसी ईएफई के अनुसार, ओबामा ने संघीय आपात प्रबंधन एजेंसी की बैठक में हिस्सा लिया और स्वीकार किया कि हमें यह सुनिश्चित कराने के लिए अभी काफी कुछ करना है कि न्यूजर्सी, कनेक्टिकट, न्यूयॉर्क और आसपास के कुछ इलाकों के लोगों की बुनियादी जरूरतें पूरी की जाएं और हम वापस सामान्य स्थित बहाल कर लें।ओबामा ने कहा कि प्रभावित इलाकों में विद्युत बहाल करने, पानी निकालने, पीड़ितों की बुनियादी जरूरतें पूरी करने और जरूरत पर प्रतिक्रिया के लिए नेशनल गार्ड की तैनाती जैसे कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं।

राष्ट्रपति बतौर ओबामा की यह गारंटी लोककल्याणकारी राज्य की  अवधारणा को मजबूत करती है जिसे कारपोरेट लाभ नुकसान से कोई ​​मतलब नहीं है। इसीलिए राष्ट्रपति ने कहा कि इस समय सबसे जरूरी काम यथासम्भव जल्द से जल्द विद्युत बहाल करने का है। सैंडी के कारण 15 राज्यों में 82 लाख से अधिक घरों की बिजली गुल हो गई थी, लेकिन बिजली विभाग से प्राप्त ताजा आंकड़े के अनुसार शुक्रवार तक 48 लाख उपभोक्ताओं की बिजली बहाल हो गई थी।मालूम हो कि अमेरिका में बिजली जैसी जरूरी सेवाएं निजी क्षेत्र के अंर्तगतत आती है, पर राष्ट्रपति प्राकृतिक आपदा के बहाने कारपोरेट का खुल्ला खेल फर्रूकाबादी की इजाजत नहीं दे रहे हैं। इसी संदर्भ में भारत में आपदा प्रबंधन की परंपरा को याद करें तो इसका सही तात्पर्य समझ में आ​​ जायेगा। कारपोरेट और निजी संस्थाओं की क्या कहें, सरकारी महकमे और राजनीतिक दल तक ऐसे मौके पर क्या भूमिका अपनाते हैं, ​​इस पर चर्चा बेमायने है क्योंकि जनता सबकुछ जानती है।लोगों को विपदा के समय में सूचना कैसे पहुंचाई जाएगी, इसकी तैयारी कर ली गई। बेघर हुए लोगों तक शुद्ध खाना और पानी कैसे पहुंचाया जाए, इसकी तैयारी हो गई थी। और यह तय हो गया था कि बड़े-छोटे फैसले कैसे होंगे और कौन लेगा। इन सारी तैयारियों में अरब डॉलर का खर्च नहीं आता है और न ही महंगे सामान खरीदने होते हैं। जरूरत होती है प्लानिंग की और उसे लागू करने की ईमानदारी की। छह नवम्बर को अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं, जिसमें डेमोक्रेट बराक ओबामा और रिपब्लिकन मिट रोमनी के बीच कांटे की टक्कर है। लेकिन सैंडी तूफान में सारे मतभेदों को भुला दिया गया। बराक ओबामा ने घोषणा की कि राहत के काम को कोई अडंगा लगाता है तो कोई भी उन्हें सीधे फोन करके इसकी सूचना दे सकता है। वे सीधी कार्रवाई करेंगे।


तूपान सैंडी  का कमाल है कि न्यूयॉर्क के मेयर माइकल ब्लूमबर्ग ने बराक ओबामा का समर्थन किया है।उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर फैसले लेने के लिए ओबामा सही उम्मीदवार हैं।शुक्रवार को बेरोजगारी के आंकड़े ओबामा के लिए राहत और मुसीबत बन कर आए। अक्टूबर के आंकड़ों के हिसाब से हजारों नौकरियां पैदा हुईं, लेकिन इसके बावजूद बेरोजगारी बढ़ी है। हालांकि इससे शेयर बाजार के ग्राफ में कोई उत्साह नहीं देखा गया।कहा जा रहा है कि मंदी से उबरने के लिए ओबामा ने अपने कार्यकाल में जितने रोजगार पैदा नहीं किये, सैंडी तूफान की वजह से लोककल्यणकारी राज्य ने  उससे ज्यादा रोजगार पैदा कर दिये। अमेरिकी चुनावों में बेरोजगारी और स्वास्थ्य बड़े मुद्दे हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के ओबामा ​​के प्रयास इन मुद्दों में शामिल है। इसके अलावा आर्थिक व विदेश नीति इस चुनाव के नतीजे तय करेंगे। इसके उलट हमारे यहां चुनावों के ​​मुद्दे क्या हैं? क्या भूमि सुधार के मुद्दे पर कोई चुनाव लड़ा गया? रोजगार और विस्थापन के मुद्दे पर स्वास्थ्य, शिक्षा और खाद्य, जरूरी सेवाओं व बुनियादी जरुरतों के मुद्दे पर नवउदारवाद के बीस साल पूरे हो गये तो हरित क्रांति के पचास साल, आर्थिक नीतियों पर क्या कोई चुनाव लड़ा गया? चीन युद्द जैसे विचित्र अनुभव और बांग्लादेश मुक्ति संग्राम जैसी उपलब्धि, सोवियत संघ का अवसान, भारत अमेरिकी परमाणु संधि या भारत इजराइल​​ रक्षा संबंध पर क्या हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहस की गुंजाइश है?इसके उलट ओबामा के उत्तान के पीछ इराक युद्ध में स्वाहा अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की सबसे बड़ी भूमिका थी। ​​रेगिस्तान में भटक रहे अमेरिका को निकालने में ओबामा की कामयाबी उनके पुनर्निर्वाचन की सबसे बड़ी कसौटी है। ईरान, मध्यपूर्व,​​ भारत , पाकिस्तान, चीन, अरब, मध्यपूर्व और इजराइल के संदर्भ में विदेश नीति की कसौटी पर प्रतिद्वंद्वियों को कस रहा है लोकतंत्र। जहां ईरान पर अमेरिका हमला करें या न करें, फिलीस्तीन मुद्दे पर इजराइल का किस हद तक साथ दिया जाये, ऐसे मुद्दे निर्मायक होने जा रहे हैं। हमने भारत सोवियत मैत्री के उलट अमेरिका का पिछलग्गू बनना क्यों मंजूर किया, आजतक यह सार्वजनिक जीवन में कोई मुद्दा क्यों नहीं बन सका? निर्गुट आंदोलन का अगुवा होने के बावजूद विकासशील देशों में और खास तौर पर दक्षिण एशिया में हम अलग थलग क्यों हैं, इस पर क्या हमने कोई बहस की है?



सैंडी के झोंकों का कहर थमने के बाद अमेरिका फिर राजनीति का तूफान देख रहा है।मंगलवार को होने वाले चुनावों के लिए डैमोक्रेट राष्ट्रपति बराक ओबामा और रिपब्लिकन मिट रोमनी दोनों ही चुनावी अभियान पर लौट गए हैं।सैंडी तूफान की तबाही से उबरने के लिए राहत के वादों के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा न्यू जर्सी के दौरे के बाद चुनावी अभियान को आखिरी ताकत देने निकल गए हैं। उधर सैंडी तूफान से प्रभावित इलाकों में अभी भी करीब 40 लाख लोग बिना बिजली के हैं। आने वाले दिनों का मौसम ठंडा रहने का अनुमान है। बाहर भले ही सर्दी हो लेकिन राजनीति का मौसम चुनावी गर्मी से उबल रहा है। दोनों उम्मीदवार आखिरी के पांच दिन स्विंग स्टेट्स को अपनी ओर खींचने की कोशिश करेंगे।ओबामा ने विस्कॉन्सिन से चार राज्यों का दौरा शुरू किया है।यहां से वह नेवादा, कोलोराडो होते हुए फिर ओहायो जाएंगे।

डेमोक्रेट राष्ट्रपति ने कहा, "जब भी आपात स्थिति आती है, अमेरिका बेस्ट होता है।जो भी छोटे छोटे मतभेद हमें अलग कर रहे होते हैं, वे अचानक खत्म हो जाते हैं। किसी तूफान के दौरान कोई डैमोक्रेट या रिपब्लिकन नहीं होता। वह सिर्फ अमेरिकी होते हैं।"ओबामा ने अपने प्रतिद्वंद्वी को "चेंज" अभियान हाइजैक करने के लिए घेरा है। ग्रीन बे में अपने समर्थकों के सामने उन्होंने कहा, "अभियान के आखिरी सप्ताह में रोमनी एक विक्रेता के तौर पर अपने सारे तरीके आजमा रहे हैं।वह उन सारी नीतियों का प्रचार कर रहे हैं जिन्हें हम पिछले चार साल से हटाने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने हमारे देश को विफल किया है। अब वह उन्हें बदलाव के नाम पर बेच रहे हैं। गवर्नर जो पेश कर रहे हैं वह बदलाव तो निश्चित ही नहीं है। सबसे बड़े बैंकों को ज्यादा ताकत देना कोई बड़ा बदलाव नहीं है। और लाखों लोगों को बिना स्वास्थ्य बीमा के रखना कोई बदलाव नहीं है।


उधर रोमनी गुरुवार को चुनावी हवा बदलने वाले राज्य वर्जीनिया में थे। वहां उन्होंने रोएनोके में कहा कि ओबामा को चार और साल रखना अमेरिकी अर्थव्यवस्था का नुकसान करेगा।हम अगले चार साल पिछले चार सालों की तरह नहीं रह सकते। मैं जानता हूं कि ओबामा चार साल का गाना गा रहे हैं। हमारा मंत्र है पांच और दिन. रोमनी ने कहा, "मुझे नहीं लगता कि कैबिनेट में एक और कुर्सी बढ़ाने से सड़कों पर लाखों की नौकरियां आएंगी। हमें बिजनेस समझने के लिए बिजनेस मंत्री की जरूरत नहीं। हमें एक राष्ट्रपति चाहिए जो बिजनेस समझता हो।"

चुनाव में इस बार कांटे की टक्कर है और एक-एक वोट बेहद कीमती है। ऐसे में राष्ट्रपति बराक ओबामा तथा उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी, दोनों ने ही भारतीय मूल के अमेरिकी समुदाय को अपनी अपनी नीतियों और कार्यक्रमों से रिझाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
   
ताजा जनगणना के अनुसार, अमेरिका में भारतीय लोगों की आबादी 30 लाख से अधिक है और ओबामा तथा रोमनी के चुनाव प्रचार अभियान दलों ने स्थानीय भारतीय-अमेरिकी समुदाय से संबंधित समाचारपत्रों में पूरे पूरे पन्नों के विज्ञापन दिए हैं।
   
ओबामा के प्रचार अभियान दल ने हिंदी भाषी लोगों को लेकर विशेष प्रकार के विज्ञापन तैयार करवाए हैं, जिनका वितरण ईमेल या प्रकाशित विज्ञापनों के रूप में किया जा रहा है।
  
ग्रेटर वाशिंगटन इलाके से प्रकाशित होने वाले इंडिया दिस वीक और एक्सप्रेस इंडिया में ओबामा के अभियान दल द्वारा प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया है कि बराक ओबामा केवल हमारे राष्ट्रपति नहीं हैं, बल्कि वह हम सभी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


वाशिंगटन, मैरीलैंड और वर्जीनिया में भारतीय समुदाय के लोगों की आबादी सर्वाधिक है। वर्ष 2010 की जनगणना के अनुसार इस इलाके में एक लाख 25 हजार से अधिक भारतीय अमेरिकी रहते हैं।
  
उधर वेस्ट कोस्ट से प्रकाशित होने वाले भारतीय-अमेरिकी समाचारपत्र इंडिया वेस्ट में मिट रोमनी के समर्थकों ने एक पूरे पन्ने का विज्ञापन प्रकाशित किया गया है। यह विज्ञापन कहता है,  काम को तैयार है। अमेरिका के लिए बेहतर दृष्टिकोण। राष्ट्रपति पद के लिए मिट रोमनी को वोट दें।


अमेरिका में तबाही मचा रहा तूफान सैंडी क्या जलवायु में बदलाव की वजह से आया है?तबाही के केंद्र में रहे न्यूयॉर्क राज्य के गवर्नर एंड्र्यू कुओमो का कहना है, "अगर कोई सोचता है कि मौसम के रवैये में बदलाव नहीं आ रहा है तो वह सच्चाई को झुठलाने की कोशिश कर रहा है।"हाल के वर्षों में एक के बाद एक आए कई भयानक बाढ़ और सूखे के बारे में सोचें तो कई पर्यावरण वैज्ञानिक को कुओमो की इस दलील से सहमत होंगे।

जब तूफान की बात हो तो जानकार इस पर कुछ साफ साफ नहीं कह सकते। मौसम विज्ञान के लिए यह सबसे जटिल विषय है. उष्णकटिबंधीय तूफान समंदर की गर्मी से ऊर्जा पाते हैं।ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सागर का तापमान बढ़ने पर तूफान का आना भी बढ़ेगा और उनकी तबाही भी।पर यह सिद्धांत पूरी तरह से सही है यह कहना मुश्किल है। 1970 के दशक से ही सागर का तापमान बढ़ रहा है और ऐसे में हर साल आने वाले तूफान की संख्या काफी ज्यादा बढ़नी चाहिए थी लेकिन यह हर साल 90 पर ही टिका हुआ है।


हालांकि अमेरिका के नेशनल ओशेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि केवल अटलांटिक में ही बड़ी आंधियां 1995 के बाद से ज्यादा आने लगी हैं और इनकी तीव्रता भी काफी बढ़ी है। इस एजेंसी का यह भी कहना है कि फिलहाल विज्ञान यह ठीक ठीक नहीं बता सकता कि कितना बदलाव पर्यावरण में स्वाभाविक तौर पर हुआ है और कितना इंसानी गतिविधियों के कारण पैदा हुई उष्मा से. इस सदी के भविष्य के लिए भी जानकारों ने जो आकलन किया है वो बहुत उलझाने वाला और अस्पष्ट है।

ब्रिटेन के ओवरसीज डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट में क्लाइमेट चेंज के प्रमुख टॉम मिशेल का कहना है, "ऐसे कुछ सबूत मिले जिनसे पता चलता है कि पर्यावरण में बदलाव के साथ हम हवाओं का मजबूत और तेज होने देख सकते हैं लेकिन संपूर्ण रूप से चक्रवातों में कोई बड़ा परिवर्तन होगा ऐसा नहीं लगता बल्कि यह कम भी हो सकते हैं।" फ्रांस में मौसम का पूर्वानुमान बताने वाली एजेंसी मेट्रो फ्रांस ने बताया कि यह तस्वीर इतनी धुंधली क्यों है!मेट्रो फ्रांस के मुताबिक, "चक्रवात केवल समुद्र की सतह के तापमान पर ही नहीं,बल्कि यह वायुमंडल की हर परत पर हवा की संरचना पर भी पर भी निर्भर करता है। इसका मतलब है कि यह पर्यावरण में बदलाव के हिसाब से सीधे सीधे नहीं जुड़ा है।"

तूफान सैंडी के असर के कारण न्यूयॉर्क ने अपनी वार्षिक मैराथन दौड़ को रद्द कर दिया है। शहर के मेयर माइकल ब्लूमबर्ग ने कल अपने बयान में कहा, पिछले 40 वर्षों से यह दौड़ न्यूयार्क का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इस कार्यक्रम में न्यूयार्क के हजारों लोग भाग लेते हैं और लाखों लोग इसे देखते हैं। यह मैराथन हमारे शहरवासियों को एकजुट होने का मौका देती है। इस दौड़ का आयोजन रविवार को होना था और ब्लूमबर्ग इसे निर्धारित तिथि पर कराने के लिए प्रतिबद्ध थे लेकिन सोमवार की रात आए भयंकर तूफान से मची तबाही के बाद इसे स्थगित करना पड़ा है ।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विकास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण की मंजूरी लेने को निवेश की राह में रुकावट बताया है. (http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/11/121101_manmohan_environment_clearance_aa.shtml)

जानी मानी पर्यावरणविद् वंदना शिवा ने प्रधानमंत्री के इस बयान पर कड़ा विरोध जताया है.

मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद गुरुवार को अपने मंत्रियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि बुनियादी विकास के ढांचे में निवेश बढ़ावा सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है. सरकार ने इससे जुड़े क्षेत्रों पर बारहवीं पंचवर्षीय योजना में एक खरब डॉलर के निवेश का लक्ष्य निर्धारित किया है.

प्रधानमंत्री ने कहा, "हमें कई तरह की बाधाओं को दूर करना होगा, जो निवेश को रोक रही हैं या उनकी रफ्तार को धीमा कर रही हैं. इनमें ईंधन आपूर्ति व्यवस्था, सुरक्षा और पर्यावरण मंजूरियां शामिल हैं. साथ ही वित्तीय मुश्किलें भी बाधक बन रही है."

बयान पर नाराजगी

"पर्यावरण मंजूरी को जो वो बाधा बता रहे हैं, वो हमारे जीवन का बुनियादी ढांचा है. ये पारिस्थितिकीय का बुनियादी ढांचा है जो हमें पानी देता है, हवा देता है. इससे हमारे किसानों और आदिवासियों को जीविका मिलती है."
वंदना शिवा, पर्यावरणविद्

पर्यावरणविद वंदना शिवा ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "पर्यावरण मंजूरी को जो वो बाधा बता रहे हैं, वो हमारे जीवन का बुनियादी ढांचा है. ये पारिस्थितिकीय का बुनियादी ढांचा है जो हमें पानी देता है, हवा देता है. इससे हमारे किसानों और आदिवासियों को जीविका मिलती है."

किसी भी औद्योगिक या व्यावसायिक परियोजना के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी हासिल करनी जरूरी होती ताकि पर्यावरण पर उसके असर को नियंत्रित किया जा सके.

वंदना शिवा के अनुसार, "पर्यावरण मंजूरी इसलिए भी जरूरी है कि कहीं पैसा बनाने के लिए हम अपने जंगलों, नदियों और अपने जीवन के आधार को खत्म न कर दें. ऐसा होगा तो इससे समाज को भी हानि है और भविष्य को भी हानि है."

वंदना शिवा ने कहा है कि अगर वाणिज्य पर्यावरण या पारिस्थितिकी को कमजोर करता है तो ये संविधान में दिए गए जीवन के अधिकार से जुड़े अनुच्छेद 21 पर एक हमला है.


भारत में कुलनकुलम जैसी कई परियोजनाओं का खासा विरोध होता रहा है
वहीं एक अन्य मशहूर पर्यावरणविद् सुनीता नारायण का कहना है कि आज जो पर्यावरण मंजूरियां दी जा रही हैं, उनका पर्यावरण पर अच्छा असर नहीं हो रहा है.

लेकिन वो प्रधानमंत्री के बयान से सहमति जताते हुए कहती हैं कि पर्यावरण मंजूरियों में सुधार की जरूरत है ताकि उनके पर्यावरणीय प्रभाव का भी आकलन किया जा सके.

'मुश्किल आर्थिक हालात'

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में मुश्किल आर्थिक परिस्थितियों का जिक्र करते हुए कहा, "पूरी दुनिया में आर्थिक हालात मुश्किल हो रहे हैं. परिणाम स्वरूप हमारी वृद्धि दर भी घट रही है, हमारा निर्यात कम हो रहा है और वित्तीय घाटा बढ़ रहा है."

"प्रधानमंत्री सही कह रहे हैं कि इन मंजूरियों को न सिर्फ उद्योगतियों बल्कि पर्यावरण के लिए भी प्रभावी बनाना है."
सुनीता नारायण, पर्यावरणविद्

मनमोहन सिंह के अनुसार बढ़ते घाटे के कारण देश में होने वाले घरेलू और विदेशी निवेश पर बुरा असर हो रहा है. लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि निराश होने की जरूरत नहीं, सरकार तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है.

वंदना शिवा पर्यावरण मंजूरियों के बारे में प्रधानमंत्री के बयान को पूरी तरह उद्योगपतियों की तरफदारी मानती हैं, उनका कहना है, "पर्यावरण ही हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है. जिसे ये रुकावट कह रहे है, उसे बचाकर ही इनकी अर्थव्यवस्था भी चल सकती है."

लेकिन सुनीता नारायण इसे उद्योगपतियों के हक दिया बयान नहीं मानतीं. वो कहती हैं, "प्रधानमंत्री सही कह रहे हैं कि इन मंजूरियों को न सिर्फ उद्योगतियों बल्कि पर्यावरण के लिए भी प्रभावी बनाना है."

मनमोहन सिंह की सरकार पर देश की गिरती विकास दर के कारण बहुत दवाब है. बढ़ती महंगाई और भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सरकार अपनी नीतियों में नई जान फूंकना चाहती है.

समुद्री शैतान से सहमा सुपर पावर
Posted On November - 4 - 2012

कभी इरीना, कभी कैटरीना और अब सैंडी। इन नामों में चाहे जितनी मिठास हो, इनका कहर खौफ को रीढ़ की हड्डी तक धंसाता है।  सवाल है यह सैंडी है क्या? सैंडी एक उष्णकटीबंधीय साइक्लोन या समुद्री तूफान है जो दक्षिणी अटलांटिक महासागर, कैरेबियाई महासागर, मैक्सिको की खाड़ी और पूर्वी प्रशांत महासागर में उठते हैं। इन तूफानों में भयानक आंधी आती है और गरज के साथ झमाझम बारिश होती है। ऐसी स्थिति में उत्तरी गोलार्ध में धरती की सतह पर घड़ी की सूइयों के उलट दिशा में तेज हवाएं चला करती हैं।

अभी तक का जो अनुभव है, उसके मुताबिक इस तरह के तूफान शुरू होकर शांत होने तक में 7 से 10 दिन तक का समय ले लेते हैं।  पर आमतौर पर ये तूफान चार दिन से तो ज्यादा के ही होते हैं। ये तूफान आमतौर पर 15 मई से 30 नवंबर के बीच आते हैं; क्योंकि इस दौरान यहां मौसम में काफी गर्माहट होती है। ऐसे तूफानों से अटलांटिक महासागर और मैक्सिको की खाड़ी के तटीय इलाकों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है । सच बात तो यह है कि इनके प्रभावित इलाकों में लोग समुद्री तूफानों के साथ गुजर- बसर करने को भी आदी हो गए हैं। लेकिन सैंडी ऐसा नहीं था कि उसके साथ आप निबाह सकें। सैंडी अब तक के खौफनाक से खौफनाक समुद्री तूफान से भी ज्यादा खौफनाक था।

सवाल है सैंडी इतने गुस्से में क्यों हैं? दो चीजे हैं। इसके आतंक का एक बड़ा कारण इसका आकार है। आमतौर पर तूफान 1500 से ज्यादा 1600 किलोमीटर के दायरे को ही अपने में समेटते हैं। लेकिन सैंडी ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 3200 किलोमीटर के दायरे को समेट रखा था यानी एक समय में इतने बड़े क्षेत्रफल में इसका हाहाकार मौजूद था। चूंकि सैंडी उष्णकटिबंधीय चक्रवाती तूफान है, इस कारण यह भयानक बारिश का भी कारण बनता है जिस वजह से इसके खौफ में दो गुना इजाफा हो जाता है।

कोढ़ में खाज यह है कि इसी समय पूर्व का बर्फीला तूफान भी उभार में है। यह विनटर स्टॉर्म, समुद्री ज्वार, आर्कटिक हवाएं सब मिलकर इस सैंडी को भयानक तूफान में परिवर्तित कर देती हैं।  सैंडी जबरदस्त बारिश का कारण बना रहा। समुद्र के तटीय इलाके कीचड़ और दलदल के कहर से महीनों नहीं उबर पाएंगे।

निनाद गौतममहाबली अमेरिका पिछले दिनों अभूतपूर्व संकट में रहा है। जिस समय ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं, उस समय तक 32 लाख से ज्यादा अमेरिकी घर अंधकार में डूब चुके हैं और आशंका है कि जब तक ये पंक्तियां छपेंगी, अंधकार में डूबे अमेरिकी घरों की तादाद 1 करोड़ से ऊपर निकल जाएगी। अमेरिका की ताकत का सबसे बड़ा प्रतीक न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज 9/11 के बाद पहली बार पूरी तरह से बंद रहा और 12500 से ज्यादा उड़ानें 30 अक्तूबर, 2012 की सुबह तक रद्द हो चुकी थीं। जिसमें 7200 उड़ानें तो सिर्फ विदेशी हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अमेरिका इतिहास के कितने बड़े संकट से दो-चार हुआ।अमेरिका जिस शैतान के चंगुल में फंसा, उसे सैंडी कहा गया। सैंडी भयानक समुद्री तूफान था। अमेरिका के मौसम इतिहास में इतना खौफनाक तूफान अब के पहले कभी नहीं आया। मीडिया की खबरें बता रही हैं, सैंडी 130 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार पार कर गया। यह 2000 किलोमीटर से ज्यादा चौड़े क्षेत्रफल को अपने चंगुल में फंसाए हाहाकारी अंदाज में न्यूजर्सी के तट से महज कुछ सौ किलोमीटर दूर ही था जब ये सब लिखा जा रहा है। अमेरिका में आमतौर पर ऐसा कभी नहीं होता कि एक साथ रेल, मेट्रो, बस सेवाएं और हवाई जहाज सबके सब ठप हो जाएं। पर इस बार ऐसा ही हुआ। अमेरिका के 12 राज्य इसके अभूतपूर्व हाहाकारी अंदाज से कांपे। अगर कारोबार के आइने में देखें तो हर दिन महज आयात-निर्यात गतिविधियों के ठप हो जाने से ही अमेरिका में प्रतिदिन 2000 डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ और अगर सभी तरह के नुकसानों को जोड़ दिया जाए तो कल्पना करना कठिन है कि जब तूफान थमा तो वह अमेरिका के लिए कितनी बड़ी टीस देकर गया।अमेरिका के मौसम इतिहास का यह सबसे भयानक चक्रवाती तूफान था जो सघन आबादी वाले पूर्वी तटीय इलाके और बड़े शहरों में रहने वाली तकरीबन 25 फीसदी अमेरिकी जनता को अपनी चपेट में ले चुका था। इसके हाहाकारी अंदाज का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 450 किलोमीटर दूर न्यूजर्सी के न्यूक्लियर प्लांट बंद कर दिए गए हैं। जापान में भूकंप के दौरान न्यूक्लियर प्लांट तबाही से जिस तरह दो चार हुए थे, इतिहास उससे दोबारा रूबरू नहीं होना चाहता। अमेरिका का नेशनल हरीकेन सेंटर कहता रहा है कि जब यह शैतान पूर्वी तट की तरफ मुड़ेगा, इसकी गति और तेज हो जाएगी; क्योंकि इस तूफान में पूर्वी बर्फीले तूफान की भी मिलावट हो जाएगी। यूं तो अमेरिका पिछले दो दशकों में कई भयानक तूफानों से दो चार हो चुका है और हाल के सालों में ही कैटरीना और इरिना को याद करके खौफ से भर जाने वाले तूफानों को झेल चुका है। लेकिन सैंडी ने अपने खौफ से इतिहास के सभी तूफानों को बौना बना दिया है। मौसम वैज्ञानिकों को आशंका जताते रहे यह तूफान एक सप्ताह से ज्यादा समय तक भी कहर बरपा सकता है।अमेरिका में महज एक सप्ताह के अंदर राष्ट्रपति पद के चुनाव होने थे। मगर अचानक आयी इस महाविपदा के कारण सब कुछ अस्तव्यस्त हो गया। सियासत ठंडी हो गयी है। झंडे उड़ गए हैं। राष्ट्रपति, राहत कार्यों की देखरेख में लगे रहे और उनके प्रतिद्वंदी उस सुराख को ढूंढ़ रहे हैं, जिससे इस तूफान से होने वाला नुकसान ओबामा को हो। 9/11 के बाद से पहली बार समूचा अमेरिका हाई एलर्ट है और लगता है जब यह शांत होगा 9/11 से ज्यादा दुखांतिकाएं छोड़ जाएगा। इस तूफान के चलते समुद्र की लहरें आठ मीटर से ज्यादा ऊंचे उठ गयी। अमेरिका आमतौर पर राहत कार्यों के लिए नहीं जाना जाता। लेकिन इस समय आधे से ज्यादा अमेरिका में या तो राहत कार्य चलते रहे या राहत कार्यों के जल्द से जल्द शुरू होने की उम्मीद है। आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों का अनुमान है अगले दिनों में यह भयानक तूफान 5 करोड़ से ज्यादा अमेरिकियों को अपनी चपेट में ले सकता है। तकरीबन 2 करोड़ से ज्यादा लोग न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी और आसपास के इलाकों में ही इसकी चपेट में या तो आ चुके है। आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों का मानना है कि जब ये तूफान शांत होगा तो उसके द्वारा की गयी तबाही से निपटने को अमेरिका को 10 साल से भी ज्यादा समय तक दिन-रात एक करना होगा। ऐसा नहीं है कि अमेरिका इस तूफान की आशंकित तबाही से बिल्कुल अनभिज्ञ था। आखिर 3 हफ्ते पहले इसको नाम दिया जा चुका था। इसलिए अमेरिका में निपटने की तैयारी थी। कुल 76 से ज्यादा रेस्क्यू सेंटर बनाए गए थे।अमेरिका ने न्यूयॉर्क में 1100 नेशनल गार्ड तैनात कर दिये गये थे। लेकिन बाद में लगा कि 11000 नेशनल गार्ड भी कम हैं। कुल 400 से ज्यादा गार्ड आइलैंड में लगाए गए थे; लेकिन सब असरहीन और मामूली लग रहा है। यह तूफान इसलिए भी भयानक था क्योंकि जहां इसकी प्रभावी गति 130 किलोमीटर से भी ऊपर थी, वहीं इसकी आगे बढऩे की रफ्तार सिर्फ 25 किलोमीटर प्रतिघंटा ही रही। मतलब यह कि यह भयानक तूफान धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है, जिस कारण एक जगह में काफी देर रुककर तबाही करता रहा। शुरू में लग रहा था कि यह तूफान सिर्फ 1500 किलोमीटर क्षेत्रफल को अपने शिकंजे में कसेगा। लेकिन लेख लिखे जाने तक 3218 किलोमीटर का क्षेत्रफल इसके जबड़े के दायरे में आ चुका है। अनुमान है कि यह तूफान पहले की तमाम आशंकाओं से 2000 फीसदी ज्यादा तबाही करने वाला साबित होगा।स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी अभी इसी हफ्ते सार्वजनिक दर्शन के लिए खोली गयी थी और अब हर दिन 340 लोगों को इसे देखने की अनुमति भी दी गयी थी। मगर सैंडी के खौफ से स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी को अगली सूचना तक के लिए बंद कर दिया गया। तकरीबन 3 दर्जन देशों के वाणिज्यिक दूतावास या कूटनीतिक मिशन बंद हो गए थे। अनुमान है कि बड़ी संख्या में लोग इस तूफान की भेंट चढ़े और जब यह तूफान थम जाएगा, तब जाकर पता चलेगा कि कितने हजार जानवर और कितने लोग इसकी बलि चढ़ गए। अब तक 36 इंच से ज्यादा इस तूफान के कारण बारिश हो चुकी है और अनुमान है कि जब बर्फीले तूफान भी इसमें घुलमिल जाएंगे तो 60 सेंटीमीटर से ज्यादा बर्फबारी होगी। आमतौर पर महाबली अमेरिका को कुदरत के सामने अकड़कर खड़े होने वाले देश के रूप में जाना पहचाना जाता है। जिस तरह से ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर उसका उपेक्षापूर्ण रवैया रहा है, उससे भी यह बात साबित होती रही है कि वह कुदरत के कहर से ज्यादा चिंतित नहीं होता। बराक ओबामा से लेकर जॉर्ज बुश तक जिस तरह सीएफसी गैसों की कटौती को लेकर पूरी दुनिया को तो उपदेश झाड़ते रहे हैं, मगर खुद के लिए कोई ऐसी सीमा रेखा नहीं बनाते रहे, उससे भी यह संदेश जाता था कि अमेरिका को न सिर्फ दुनिया की चिंता नहीं है बल्कि कुदरत की भी चिंता नहीं है। लेकिन 6 सालों के अंदर आए चार बड़े समुद्री तूफानों ने यह साबित कर दिया है कि कोई भी देश खुद को कितना ही बड़ा क्यों न मानता हो, कुदरत के सामने सब बच्चे हैं। हाल के तूफानी चुनावी अभियान में पर्यावरण का मुद्दा अव्वल तो बहुत स्पष्ट नहीं रहा और अगर दोनों राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों ने इस मुद्दे को छेड़ा भी है तो खानापूर्ति के अंदाज में ही। अब जबकि चुनाव इसी तूफान के साये में होंगे, दोनों ही उम्मीदवार को अगर मौका मिला तो पर्यावरण की, ग्लोबल वॉर्मिंग की दृढ़ता से बात करनी होगी। वास्तव में यही अमेरिका को आने वाले सालों में कुदरत के कहर से भी बचाएगा और उसकी महाशक्ति को मान्यता भी देगा। सैंडी जैसे तूफान चेतावनी हैं कि हम जितना जल्दी हो सके, पूरी दुनिया के लोग कुदरत के साथ किए गए अपने खिलवाड़ को सुधार लें वरना जो कुदरत अमेरिका को सबक सिखा सकती है, उसके लिए बाकी देश क्या मायने रखते हैं?
http://dainiktribuneonline.com/2012/11/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B6%E0%A5%88%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AA/


चुनाव अभियान के अंतिम चरण में ओबामा, रोमनी

वाशिंगटन: राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी अपने चुनाव अभियान के अंतिम चरण में पहुंच गए हैं. ऐसे में दो छोटे चुनावी राज्यों में कराए गए एक नए सर्वेक्षण से पता चला है कि एक राज्य में तो दोनों उम्मीदवारों के बीच कांटे की लड़ाई है, जबकि दूसरे राज्य में ओबामा पांच बिंदु आगे हैं.

डेस मोइनेस रजिस्टर आयोवा सर्वेक्षण के अनुसार, आयोवा में छह इलेक्टोरल वोट हैं और यहां ओबामा सम्भावित मतदाताओं में मिट रोमनी से आगे हैं. यहां ओबामा को 47 प्रतिशत समर्थन प्राप्त हुआ है, तो रोमनी को 42 प्रतिशत.

लेकिन चार इलेक्टोरल वोट वाले न्यू हैम्पशायर में लड़ाई बराबरी पर बनी हुई है. डब्ल्यूएमयूआर ग्रेनाइट स्टेट सर्वेक्षण के अनुसार यहां ओबामा और रोमनी दोनों को सम्भावित मतदाताओं में 47-47 प्रतिशत समर्थन प्राप्त है.

सीएनएन की रपट के अनुसार, यह पूछे जाने पर कि किसके तरफ उनका झुकाव है, अनिर्णय की स्थिति में पड़े राज्य के सम्भावित मतदाताओं ने इस प्रश्न पर अलग-अलग राय दी.

सीएनएन/ओआरसी अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण सहित ओहायो के पहले के दो नमूने ओबामा को यहां आगे बताते हैं. जबकि फ्लोरिडा में एक सर्वेक्षण में रोमनी को आगे बताया गया है और एक दूसरे सर्वेक्षण में ओबामा को आगे बताया गया है.

आयोवा के 10 मतदाताओं में से चार से अधिक मतदाता वोट डाल चुके हैं, और पड़ चुके इन वोटों में ओबामा को 22 बिंदु से बढ़त हासिल है.

सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि जो लोग मतदान के दिन वोट डालने वाले हैं, उनमें रोमनी को आठ बिंदु की बढ़त हासिल है. रिपब्लिकन के प्रभाव वाले राज्य के पश्चिमोत्तर इलाकों में मतदान दिवस से पूर्व कम मतदान हुआ है.

2008 में आयोवा काकस में जीत हासिल करने के बाद डेमोक्रेटिक की उम्मीदवारी हसिल करने और व्हाइट हाउस का रास्ता तय करने वाले ओबामा सोमवार को डेस मोइनेस में अपनी अंतिम चुनावी रैली करेंगे. उसके बाद वह शिकागो चले जाएंगे, जहां वह चुनाव परिणाम का इंतजार करेंगे.




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हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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