इसीके लिए सर्वदलीय सहमति की कवायद हो रही है!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश पर संसद ठप है और अब सरकार की गरज है कि लंबित वित्तीय विधेयकों को पारित कराने के लिए विपक्ष की मांग मुताबिक मतदान करा लें। हार भी जाये तो सरकार नहीं गिरेगी। लेकिन सरकार के कामकाज को संसद की हरी झंडी मिल जायेगी। बीमा विधेयक पास कराये बिना बीमा का पैसा बाजार में डालने में दिक्कत हो रही है तो बैंकिंग सुधार विधेयक भी स्टेट बैंक आफ इंडिया के विनिवेश के लिए बेहद जरूरी है। इससे आपकी जमा पूंजी बाजार में लगाने का काम आसान हो जायेगा। सरकार भूमि सुधार के बिना भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक भी पास कराने में अकुलाई हुई है। जहां तक भाजपा का सवाल है, खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी का विरोध वह अपने अटूट व्यापारी वोट बैंक को बनाये रखने के लिए कर रही है, बाकी सुधारों से उसे कोई एतराज नहीं है।रेलवे का निजीकरण का रास्ता खुल गया।दवाओं की कीमत बाजार की मर्जी मुताबिक हो गयी।विनिवेश की गाड़ी दनदनाकर चल पड़ी। अब सरकार को पर्यावरण के अड़ंगे को खत्म करके लंबित परियोजनाओं को हरी झंडी का इंतजाम करना है। इसीके लिए सर्वदलीय सहमति की कवायद हो रही है। वैसे संसद में मतदान हो भी गया, तो बहुमत का इंतजाम भी कर लिया गया है।एफडीआई के मुद्दे पर बीजेपी सदन में चर्चा नियम 184 के तहत कराने की मांग कर रही थी जबकि सरकार इसके लिए तैयार नहीं थी। इसी मांग को लेकर बीजेपी ने दो दिन से संसद ठप कर रखी है, लेकिन आज हुई कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक के बाद खबर आ रही है कि सरकार 184 के तहत चर्चा कराने को राजी हो सकती है।नियम 184 के तहत संसद में चर्चा के बाद वोटिंग होती है। अगर सरकार के पास पूरे नंबर ना हों तब भी सरकार तो नहीं गिरती लेकिन उसकी किरकिरी होने का पूरा खतरा रहता है।सरकार ने इस फांस को निकालने के लिए सोमवार को सर्वदलीय बैठक तो बुलाई है, लेकिन उसे भी अंदाजा है कि यह औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं होगी। विपक्ष झुकने को तैयार नहीं है। लिहाजा, सरकार अपने आंकड़े दुरुस्त करने की कवायद में जुट गई है। सफलता मिली तो वोटिंग पर भी सहमति बन सकती है।गौरतलब है कि लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की बैठक के बाद प्रधानमंत्री की डिनर डिप्लोमेसी भी विपक्ष को मनाने में नाकाम रही है।
शीतकालीन सत्र का दूसरा दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया।शीतकालीन सत्र के महत्वपूर्ण आर्थिक एजेंडे में बीमा विधेयक, बैंकिंग नियमन संशोधन विधेयक और प्रत्यक्ष कर संहिता शामिल है।विपक्ष के हंगामे के कारण लोकसभा को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया। राज्यसभा की कार्यवाही भी प्रभावित रही और सदन को ढाई बजे तक स्थगित किया गया। लगातार दो दिन तक संसद स्थगित रहने के बाद सरकार रिटेल में एफडीआई के फैसले पर वोटिंग कराने के लिए राजी हो सकती है। सरकार से जुड़े सूत्रों की मानें तो सरकार लोकसभा में वोटिंग के लिए तैयारी कर रही हैं और विभिन्न पार्टियों से बात करके वोटों का जुगाड़ किया जा रहा है। इसी सिलसिले में वरिष्ठ कांग्रेसी मंत्री कपिल सिब्बल रविवार को चैन्ने में एम करुणानिधि से मुलाकात करेंगे। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री की ओर से दिए गए डिनर में करुणानिधि ने कहा था कि सरकार को रिटेल में एफडीआई के मुद्दे पर वोटिंग से बचना चाहिए।इससे पहले शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी, कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-(एम) और तृणमूल कांग्रेस ने संसद में रिटेल में एफडीआई को लेकर अपना विरोध जारी रखा।
सरकार के लिए खास परेशानी का कारण यह है कि लगातार दूसरे दिन हंगामे की वजह से संसद का कामकाज ठप पड़ने की वजह से बाजार को निराशा हुई। सेंसेक्स और निफ्टी में करीब 0.25 फीसदी की गिरावट आई। मिडकैप शेयरों ने भी मजबूती गंवाई।संसद में गतिरोध बने रहने की वजह से रुपये में भारी कमजोरी आई, जिसकी वजह से बाजार दिन के निचले स्तरों पर पहुंच गए। सेंसेक्स 100 अंक से ज्यादा टूटा और निफ्टी 5600 के नीचे फिसला। मिडकैप शेयर 0.5 फीसदी टूटे।बाजार को आज भी आर्थिक सुधारों को लेकर राजनीतिक गतिरोध की चिंता सताती नजर आई। मजबूत अंतर्राष्ट्रीय संकेतों ने भी बाजारों का मूड नहीं सुधारा।
वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने गुरुवार को कहा कि परिव्यय को युक्तिसंगत बनाने के लिए किए गए आर्थिक उपायों के कारण सरकारी खर्च कम होने और युक्तिसंगत होने की उम्मीद है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ अन्य चीजों के अलावा सख्त मौद्रिक नीति के चलते भी आर्थिक विकास पर असर पड़ रहा है।
वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में बताया कि केंद्र ने व्यय को युक्तिसंगत बनाने और उपलब्ध संसाधनों का महत्तम उपयोग जैसे आर्थिक उपायों को लागू किया है, जिसका उद्देश्य व्यापक आर्थिक वातावरण में सुधार लाना है। वित्तमंत्री ने कहा कि सरकार का प्रयास केन्द्रीय सब्सिडी पर व्यय को सीमित करने का भी है।
सितंबर 2012 तक परिव्यय और प्राप्तियों का अंतर यानी राजकोषीय घाटा 3.37 लाख करोड़ रुपये है जो 2012.13 के पूरे वर्ष के लिए तय किये गये लक्ष्य का 65.6 प्रतिशत है।
दूसरी ओर, तमाम घोटालों के आरोपों से घिरी यूपीए सरकार कुछ समय पहले तक बैकफुट पर थी। लेकिन संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते-होते सरकार फ्रंटफुट पर आ गई है। संसद में मचे हंगामे और सीएजी को लेकर उठ रहे सवालों ने सरकार को मुस्कुराने का मौका दे दिया है। इस सत्र से पहले सरकार को काफी वक्त मिला था रणनीति बनाने का।सबसे बड़ी राहत तो सरकार को उस वक्त मिली जब लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया। ममता बनर्जी 50 सांसदों का समर्थन भी नहीं जुटा पाईं। सरकार पर हमला बोलने वाले किसी ने भी दल ममता का साथ नहीं दिया। अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सरकार भी कभी डरी हुई नहीं दिखी। संसद शुरू होने से पहले ही सरकार की तरफ से आए तमाम बयानों से साफ हो गया था कि सरकार के पास इससे निपटने की रणनीति तैयार है। विपक्षी पार्टियों ने ही ममता का साथ नहीं दिया।2जी पर सीएजी रिपोर्ट को लेकर टकराव बढ़ता जा रहा है। इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले सीएजी अधिकारी आर पी सिंह ने इसे बनाने से इनकार किया है। उन्होंने कहा है कि रिपोर्ट में 1.76 लाख करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन उनका नहीं है। आरपी सिंह का कहना है कि उन्होंने अपनी सीनियर्स के कहने पर रिपोर्ट पर दस्तखत किए थे।सीएजी में टेलीकॉम के डीजी आर पी सिंह ने कहा है कि वो इस रिपोर्ट से सहमत नहीं थे। उनका दावा है कि विवादित रिपोर्ट उनकी नहीं थी और सीएजी मुख्यालय ने उनसे रिपोर्ट में जबरन दस्तखत कराए गए। यही नहीं आर पी सिंह ने पीएसी के चेयरमैन मुरली मनोहर जोशी पर भी सीएजी की रिपोर्ट को प्रभावित करने का आरोप लगया है।इस नए रहस्योद्घाटन से कांग्रेस और बीजेपी ने राजनीति की नई बिसात बिछ गई है। बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी ने इस आरोप से इनकार किया है कि उन्होंने सीएजी रिपोर्ट को प्रभावित करने की कोशिश की है। जोशी ने ये भी आरोप लगाया कि आर पी सिंह सरकार से मिल गए हैं और वो सीएजी का नाम खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। उधर सोनिया गांधी का कहना है कि आर पी सिंह के ताजा बयान से बीजेपी का असली चेहरा लोगों के सामने आ गया है।सरकार को अच्छी तरह पता है कि विपक्ष बिखरा हुआ है। भले ही एनडीए, लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस सरकार पर हमला बोलने का कोई मौका नहीं चूकते हों, लेकिन जब बात आती है एकजुट होने की तो सभी दल अलग अलग सुर में बोलने लगते हैं। लगता है जैसे सरकार की अच्छी खासी मदद खुद बीजेपी ही कर रही है। बीजेपी ने ममता बनर्जी का तो साथ नहीं दिया, लेकिन वो नियम 184 के तहत एफडीआई पर बहस और वोटिंग पर जोर दे रही है। बीजेपी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि नियम 184 के तहत वोटिंग से आखिर हासिल क्या होगा? बीजेपी का नजरिया ही सरकार के गेम प्लान को कामयाब बनाने में सबसे बड़ा हथियार साबित हो रहा है। बीजेपी सिर्फ चिल्लाती रही और जब मौका आया सरकार को सबक सिखाने का तो उसने हाथ खींच लिए।सरकार के गेम प्लान को कामयाब बनाने में बड़ी भूमिका निभा रही है समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी। मुलायम सिंह यादव और मायावती ने हर मौके पर सरकार को बचाया है। जब ममता बनर्जी ने सरकार का दामन छोड़ दिया तब मुलायम मजबूती से सरकार का हाथ थामे रहे। उसका उदाहरण मिला राष्ट्रपति चुनाव के दौरान। मुलायम सिंह पहले तो ममता के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते रहे, फिर अचानक कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन का एलान कर दिया। एफडीआई पर भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला। माया और मुलायम संसद के बाहर पुरजोर तरीके से एफडीआई का विरोध करते रहे। लेकिन संसद के अंदर दोनों ने सरकार का साथ दिया। बेशक ये सब पर्दे के पीछे हुआ, लेकिन समझ सबको आ गया। आज भी जब संसद में एफडीआई पर घमासान मचा हुआ है तो मुलायम को रसोई गैस और माया को यूपी की कानून व्यवस्था याद आ रही है! इसी मुद्दे पर संसद में हंगामा भी खूब मच रहा है।
सन 96 से लेकर 2009 के बीच बिहार के तीन बड़े नेताओं नीतीश कुमार, लालू यादव और रामविलास पासवान ने अलग-अलग समय पर इसकी कमान थामी। एनडीए के कार्यकाल में यह सहयोगी दल जदयू के हिस्से में गया। बाद में यूपीए के शासनकाल में यह लालू और ममता का प्रिय विभाग रहा। बंसल को रेल मंत्रालय मिलने के बाद अब उम्मीद लगाई जा रही है कि सरकार अपने मनमुताबिक इस विभाग को चलाएगी। इस बीच सबसे ज्यादा अटकलें इसके निजीकरण की हैं. आने वाले दिनों में एफडीआई प्रेमी मनमोहन सिंह का रेल मंत्रालय पर रुख काबिलेगौर होगा।सरकार ने आज स्वीकार किया कि ताजा आंकड़ों के अनुसार रेलवे में करीब ढाई लाख पद रिक्त हैं हालांकि करीब दो लाख पदों को भरे जाने के लिए अधिूसचनाएं जारी कर दी गयी हैं। रेल मंत्री पवन कुमार बंसन ने थावरचंद गहलोत के सवालों के लिखित जवाब में राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ग्रुप सी के 2,44,098 पद और ग्रुप डी के 7232 पद रिक्त हैं।
महंगाई के इस दौर में एक अच्छी खबरयह बतायी जा रही है कि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के दाम 15 से 20 फीसदी तक कम हो जाएंगे। लेकिन नयी नीति से दरअसल दवाइयां अब तेल की तरह बाजार के हवाले की जा रही हैं।इससे एक ओर विदेशी पूंजी के मुकाबले देशी दवा कंपनियों का बाजा बज जायेगा, वहीं विदेशी कंपनियों से सस्ती दवाएं महंगी कीमत पर खरीदनी होगी।बहरहाल सरकार ने आवश्यक दवाओं की लिस्ट को 74 से बढ़ाकर 348 कर दिया है जिनकी कीमत भी सरकार ही तय करेगी। कैबिनेट ने गुरुवार को नई दवा मूल्य नीति को मंजूरी दे दी। फिलहाल इन दवाओं के अलग-अलग ब्रांड्स की कीमतों में भारी अंतर है।जानकारों का मानना है कि मंत्री समूह के इस फैसले से लोगों को फायदा तो होगा लेकिन सस्ती दवाइयों के दाम भी बढ़ेंगे। दरअसल कई सालों से लटकी इस दवा नीति को सरकार ने तब मंजूरी दी है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले से जुड़ी जनहित याचिका पर सरकार को जमकर फटकार लगाई थी। उसने नई नीति लागू करने के लिए 27 नवंबर तक की डेडलाइन तय कर दी थी।नई नीति के मुताबिक सभी ब्रांड्स की औसत कीमत निकाल कर उसे अधिकतम कीमत घोषित किया जाएगा। कैंसर और एड्स में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के अलावा इस लिस्ट में दर्द और अवसाद दूर करने वाली दवाओं के साथ-साथ स्टेरॉयड यानी ताकत की दवाएं भी शामिल हैं।सरकार का दावा है कि दवाओं की कीमत में कम से कम 15 से 20 फीसदी की कमी आएगी। फिलहाल आवश्यक दवाइयों की लिस्ट में सिर्फ 74 दवाएं हैं। सरकार का दावा है कि इस फैसले से आम आदमी को बड़ी राहत मिलेगी और दवाओं की बेतहाशा बढ़ती कीमतों पर ब्रेक लगेगा।पिछले 10 साल में दवाओं की कीमतों में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। रिकॉर्ड के मुताबिक 1996 से 2006 के बीच दवाओं की औसत कीमत में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है। जो दवाएं सरकारी नियंत्रण में थीं, उनमें सिर्फ 0.02 फीसदी का इजाफा देखा गया। जबकि आवश्यक दवाओं की लिस्ट में आने वाली दवाइयों की कीमत में 15 फीसदी बढ़ोतरी हुई। खुले बाजार की ऐसी दवाइयां, जो ना तो सरकारी कंट्रोल में आती हैं और ना ही आवश्यक दवाइयों की लिस्ट में हैं, उनके दामों में 137 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई।इससे पहले जीओएम ने सभी 348 आवश्यक दवाओं की कीमतें बाजार में 1 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी वाली दवाओं की औसत कीमत के आधार पर तय करने की सिफारिश की थी। वित्त मंत्रालय आवश्यक दवाओं की कीमतें बाजार आधारित फॉर्मूले के बजाए लागत आधारित फॉर्मूले के आधार पर तय किए जाने के पक्ष में है। वहीं, दवा उद्योग आवश्यक दवाओं की कीमतें तय करने के लिए बाजार आधारित फॉर्मूले का समर्थन कर रहा है। दवा उद्योग का कहना है कि लागत आधारित फॉर्मूले से बाजार में बिक रही 70 फीसदी दवाएं प्राइस कंट्रोल के दायरे में आ जाएंगी। इससे दवा कंपनियां इनोवेशन और नई दवाओं पर निवेश नहीं कर पाएंगी।
केंद्र सरकार ने कहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की 17 कंपनियां (पीएसयू) वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान कुल मिलाकर 1.63 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने जा रही हैं। इन कंपनियों में ओएनजीसी, ऑयल इंडिया व एनटीपीसी जैसी दिग्गज पीएसयू के नाम शामिल हैं। यह जानकारी गुरुवार को केंद्रीय भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उपक्रम मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी है।पटेल ने कहा है कि मौजूदा समय में केंद्रीय पब्लिक सेंटर एंटरप्राइजेज (सीपीएसई) के पास कुल मिलाकर 2,84,153.22 करोड़ रुपये की राशि नकदी व बैंक बैलेंस के रूप में है, जिसे निवेश किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इसी साल जनवरी में प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में 17 सीपीएसई ने 1,63,847 करोड़ रुपये की राशि का चालू वित्त वर्ष के दौरान निवेश करने का वादा किया था। हालांकि, सीपीएसई का निवेश करना उनकी कॉरपोरेट प्लान, विभिन्न प्रशासनिक क्लियरेंस, बाजार की परिस्थितियों और कंपनियों के प्रबंधन के फैसलों पर निर्भर करता है।
इन कंपनियों में से ओएनजीसी ने चालू वित्त वर्ष के दौरान कुल मिलाकर 40,975 करोड़ रुपये की पूंजी का निवेश करने का अनुमान जाहिर किया है। इसके साथ ही, एनटीपीसी द्वारा भी वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान कुल मिलाकर 10,378 करोड़ रुपये का निवेश किए जाने की संभावना है। वित्त वर्ष 2011-12 के आखिर की स्थिति के मुताबिक, देश की सभी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के पास 6,65,487.72 करोड़ रुपये की नकद राशि व अधिशेष था।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पहले ही कह चुके हैं कि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को इस बात का नोटिस दिया जा चुका है कि वह या तो अपनी अधिशेष पूंजी का निवेश करें या फिर इसे खोने के लिए तैयार रहें। चिदंबरम ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशकों (सीएमडी) के प्रदर्शन का आकलन करते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि उनके अधीन कंपनियों ने घोषित राशि में से कितना निवेश किया है।
ऑफर फॉर सेल के जरिए हिंदुस्तान कॉपर में 4 फीसदी विनिवेश की सरकार की कोशिश कामयाब रही है।कैबिनेट ने एनटीपीसी में 9.5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने को मंजूरी दे दी है। एनटीपीसी का विनिवेश भी ऑफर फॉर सेल यानी ओएफएस के जरिए किया जाएगा। इसमें एनटीपीसी के 78 करोड़ 30 लाख शेयरों की नीलामी की जाएगी।विनिवेश के बाद एनटीपीसी में सरकार की 75 फीसदी हिस्सेदारी रह जाएगी। सरकार को उम्मीद है कि इस विनिवेश से 13,168 करोड़ रुपये जुटाए जा सकते हैं।सरकार हिंदुस्तान कॉपर के विनिवेश के पहले चरण में 3.7 करोड़ शेयर बेचना चाहती थी, जिसके मुकाबले 5.16 करोड़ शेयरों की बोलियां मिली हैं। इस ऑफर का फ्लोर प्राइस 155 रुपये था, गुरुवार के शेयर के भाव से 42 फीसदी कम था।सूत्रों के मुताबिक ऑफर फॉर सेल में सबसे ज्यादा शेयर एलआईसी, एसबीआई और बैंक ऑफ इंडिया ने खरीदे हैं। विनिवेश के तहत सरकार हिंदुस्तान कॉपर की कुल 9.59 फीसदी बेचने वाली है। बाकी 5.1 करोड़ शेयरों का ऑफर फॉर सेल बाद में आएगा।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि हिंदुस्तान कॉपर के इश्यू से विनिवेश प्रक्रिया दोबारा शुरू हुई है। उन्होंने भरोसा जताया है कि इस वित्त वर्ष में 30000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य जरूर हासिल होगा।
दूसरे दिन की कार्यवाही शुरु होने के बाद से ही दोनों सदनों में हंगामा होता रहा। पहले लोकसभा और राज्यसभा को दोपहर 12 बजे तक स्थगित किया गया लेकिन बाद में लोकसभा को सोमवार तक और राज्यसबा को दोपहर ढाई बजे तक स्थगित कर दिया गया। विपक्ष रिटेल में एफडीआई पर वोटिंग की मांग कर रहा है।
शुक्रवार को कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी की अध्यक्षता वाली प्रवर समिति ने लोकपाल पर अपनी फाइनल रिपोर्ट राज्य सभा में पेश कर दी। वहीं यूपीए को बाहर से समर्थन दे रही सपा लोकपाल बिल का विरोध करने का ऐलान किया है। पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने कहा कि समाजवादी पार्टी लोकपाल बिल का विरोध करेगी।
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Save the Universities!
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जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।
#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি
अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास
ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?
Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
______________________________________________________
By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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