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Monday, November 12, 2012

मंहगाई के साथ साथ उत्पादन प्रणाली के ध्वस्त होने के साथ साथ सरकार पर बढ़ते कारपोरेट दबाव के मध्य यह अभूतपूर्व दिवाली है बनाना रिपब्लिक के मैंगो मैन के लिए!

मंहगाई के साथ साथ उत्पादन प्रणाली के ध्वस्त होने के साथ साथ सरकार पर बढ़ते कारपोरेट दबाव के मध्य यह अभूतपूर्व दिवाली है बनाना रिपब्लिक के मैंगो मैन के लिए!

बाराक ओबामा की जीत की वजह से अमेरिकी विदेश नीति पर इजराइल का कब्जा तो हो नहीं सका, लेकिन मध्यपूर्व में उसकी सैनिक कार्रवाई शुरू हो गयी। इजरायल की सेना की एक चौकी पर हुए मोर्टार हमले के जवाब में वहां की सेना ने रविवार को 1973 के बाद पहली बार सीरियाई क्षेत्र में गोलीबारी की। समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती ने सेना के एक प्रवक्ता के हवाले से बताया कि सीरिया की ओर से किए गए विस्फोट में कोई भी घायल नहीं हुआ और न ही कोई नुकसान हुआ। वहीं इजरायल की ओर से सीरिया पर की गई गोलीबारी में हुए नुकसान की कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। मैंगोमैन के लिए मद्यपूर्व के तेलयुद्ध के मद्देनजर यह अत्यंत खतरनाक स्थिति है।इजराइल को खुला खेलने का मौका मिला तो फिर नये सिरे से तेल संकट आसन्न है और जाहिर है इसके बहाने पूंजीपतियों को और छूट के बदले मैंगो मैन पर करों का बोझ और बढ़ेगा। गुजरात के चुनावों के लिए राजनीतिक दलों को चंदा देने की कीमत वसूलने में पहले से कारपोरेट इंडिया ने अपनी सक्रियता दिखा दी, जो लोकसभा चुनावों का ड्रेस ​​रिहर्सल है। एसोचैम ने चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के लिए अपना पंद्रह सूत्री एजंडा जारी कर दिया और राजनीतिक दलों को इसे अपने चुलनाव घोषणापत्र में शामिल करने की हिदायत दे दी। अब समझ लिजीये, किसकी सरकारें केंद्र और राज्य में आपका प्रतिनिधित्व करेंगी!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

घोटालों का पर्दाफाश करने वाले कैग पर शिकंजा कसने का मामला फंस गया तो भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के खिलाफ तप दागने वाले दिग्विजय सिंह के खिलाफ राखी सावंत पचास करोड़ का दावा ठोंकने की तैयारी कर रही हैं। दीवाली के पटाखे खूब छूट रहे हैं। केशरिया ब्रिगेड की ताजा परेशानी यह है कि गडकरीविरोधी  अभियान के पीछे जाने माने संघी ने प्रधानमंत्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी का हाथ बता दिया।प्रधानमंत्री डा. मनमोहनसिंह दीवाली के मौके पर शुभकामना संदेश के जरिये भ्रष्टाचार की कालिख मिटाने की कवायद करते रहे। दूसरी ओर, परदे की आड़ में अर्थ व्यवस्था और ​​नीति निर्दारण के कारपोरेट प्रबंधक दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों का रोडमैप बना रहे हैं। जिसके लिए प्रधानमंत्री की रसोई के जायकेदार व्यंजन सहयोगियों और शरीकों को पटाने का काम कर रहे हैं। मंहगाई के साथ साथ उत्पादन प्रणाली के ध्वस्त होने के साथ साथ सरकार पर बढ़ते कारपोरेट दबाव के मध्य यह अभूतपूर्व दिवाली है बनाना रिपब्लिक के मैंगो मैन के लिए!बाराक ओबामा की जीत की वजह से अमेरिकी विदेश नीति पर इजराइल का कब्जा तो हो नहीं सका, लेकिन मध्यपूर्व में उसकी सैनिक कार्रवाई शुरू हो गयी। इजरायल की सेना की एक चौकी पर हुए मोर्टार हमले के जवाब में वहां की सेना ने रविवार को 1973 के बाद पहली बार सीरियाई क्षेत्र में गोलीबारी की। समाचार एजेंसी आरआईए नोवोस्ती ने सेना के एक प्रवक्ता के हवाले से बताया कि सीरिया की ओर से किए गए विस्फोट में कोई भी घायल नहीं हुआ और न ही कोई नुकसान हुआ। वहीं इजरायल की ओर से सीरिया पर की गई गोलीबारी में हुए नुकसान की कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। मैंगोमैन के लिए मद्यपूर्व के तेलयुद्ध के मद्देनजर यह अत्यंत खतरनाक स्थिति है।इजराइल को खुला खेलने का मौका मिला तो फिर नये सिरे से तेल संकट आसन्न है और जाहिर है इसके बहाने पूंजीपतियों को और छूट के बदले मैंगो मैन पर करों का बोझ और बढ़ेगा।इन दिनों, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस चल रही है। जिस पर अनेकों विदेशी मीडिया का ध्यान जुटा हुआ है। बहुत सी विदेशी मीडिया ने अपनी निगाह चीन के आर्थिक क्षेत्र पर केन्द्रित की है। बहुत से विश्लेषकों का मानना है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस की रिपोर्ट में प्रस्तुत चीनी अर्थ नीति से चीन और सारी दुनिया तक के आर्थिक विकास पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। गुजरात के चुनावों के लिए राजनीतिक दलों को चंदा देने की कीमत वसूलने में पहले से कारपोरेट इंडिया ने अपनी सक्रियता दिखा दी, जो लोकसभा चुनावों का ड्रेस ​​रिहर्सल है। एसोचैम ने चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के लिए अपना पंद्रह सूत्री एजंडा जारी कर दिया और राजनीतिक दलों को इसे अपने चुलनाव घोषणापत्र में शामिल करने की हिदायत दे दी। अब समझ लिजीये, किसकी सरकारें केंद्र और राज्य में आपका प्रतिनिधित्व करेंगी!

जाने माने ज्योतिष बेजान दारुवाला का कहना है कि बराक ओबामा की अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर दूसरी पारी भारत के लिए अच्छी रहेगी। बराक ओबामा द्वारा आउटसोर्सिंग पर रोक लगाए जाने की संभावना कम है।कंपनियों के नतीजों का सिलसिला खत्म हो गया है और दिवाली आ गई है। त्यौहारी सीजन में बाजार के मजबूत रहने की उम्मीद जताई जा रही है। ज्यादातर जानकार बाजार की चाल संसद की कार्यवाही पर निर्भर रहने की बात कर रहे हैं। लिहाजा अगर संसद में बड़े फैसले लिए जाते हैं तो अगले 3 महीने में बाजार में रौनक लौटती नजर आएगी। आने वाले 3-4 महीनों में सरकार की ओर से और कड़े कदम उठाए जाने की उम्मीद है। हालांकि संसद के आने वाले सत्र में बीजेपी रिटेल एफडीआई का विरोध करेगी लेकिन इस बार संसद की कार्रवाई स्थगित नहीं होने की उम्मीद है, जो बाजार के लिए अच्छा संकेत हो सकता है। दिसंबर-जनवरी के दौरान ब्याज दरों में कटौती का अहम फैसला हो सकता है। लिहाजा दिसंबर तक निफ्टी के 6,000 तक पहुंचने की पूरी उम्मीद बनी हुई है। अब तो संसद की कार्रवाई स्थगित होने पर भी बाजार की चाल कोई असर नहीं पड़ने वाला है।

बेजान दारुवाला के मुताबिक मनमोहन सिंह के लिए बराक ओबामा का फिर से राष्ट्रपति चुने जाना बेदह अच्छा है। अगले 4 साल में भारत-अमेरिका के रिश्ते बेहतर होंगे।

बेजान दारुवाला का नए संवत के पहले 6 महीनों में यानी जून तक शिक्षा, आईटी और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को फायदा होगा। रिटेल और एविएशन में एफडीआई का राह साफ होगी।


बेजान दारुवाला के मुताबिक जून के बाद बाजार में अच्छा उछाल नजर आएगा और अगली दिवाली इस दिवाली से भी बेहतर होगी।

जीएएआर और पिछली तारीख से टैक्स के मामले में जल्द फैसला होने की उम्मीद बढ़ गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुताबिक बजट में इनके ऐलान से निवेशकों के बीच खराब संदेश गया है।प्रधानमंत्री ने ये भी बताया कि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को रफ्तार देने की कोशिश हो रही है। अपनी सरकार की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री ने ये कहा कि इकोनॉमी में छाई मायूसी अब काफी कम हो गई है। अब विदेशी निवेशकों के लिए माहौल सुधर गया है और मंत्रालयों के बीच तालमेल भी बेहतर हुआ है।आईआईपी, रिटेल महंगाई और व्यापार घाटे के निराशाजनक आंकड़ों ने बाजार का मूड खराब किया। सेंसेक्स 13 अंक गिरकर 18670 और निफ्टी 2 अंक गिरकर के 5684 पर बंद हुए। मिडकैप 0.5 फीसदी चढ़े। छोटे शेयर 0.25 फीसदी तेज हुए।

सोने के दाम ऊंचे होने के बावजूद रविवार को धनतेरस के शुभ अवसर पर सोने की बिक्री में 30 प्रतिशत तक उछाल दर्ज किया गया। शादी ब्याह के लिए आभूषण खरीदने वाले ग्राहकों ने भी धनतेरस के मौके पर ही खरीदारी करना बेहतर समझा और वह सराफा बाजार की तरफ खिंचे चले गए।इस बार त्योहार पर पटाखे इतने महंगे हो गए है कि अगर आप रोशनी वाले पटाखे लेने आए हैं तो दस हजार रुपये में भी बहुत कम रोशनी के पटाखे मिल पाएंगे। रोशनी वाले पटाखों को लोग ज्यादा पसंद करते हैं और इनकी कीमत भी ज्यादा होती है। वैसे बहुत ग्राहक दिवाली के दिन का इंतजार कर रहे हैं कि उस दिन पटाखे का दाम लुढ़क जाते हैं। शायद कुछ् ग्राहक उसी दिन खरीदें।पटाखों में ग्रीन कॉस्को, सिक्सटी स्काई ब्रेकर्स, पांच हजारा लड़ी, पैराशूट रॉकेट की मांग खूब है। पांच हजारा लड़ी 1,250 के बजाय 1,400 रुपये तक हो गई हैं। दस हजार चटाई लड़ी का दाम 2,500-3,000 रुपये के बीच है वहीं मल्टीकलर अनार और टू इन वन पैक का दाम 200 रुपये है। इस पैक में दस अनार उपलब्ध हैं।

इनकम टैक्स रिटर्न पहली बार भरने में अगर आपने जानबूझकर कम आमदनी दिखाई तो आपको जुर्माना भरना पड़ सकता है। सीएनबीसी आवाज को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक सरकार रिवाइज्ड इनकम टैक्स रिटर्न के नियम सख्त करने जा रही है। और इसे अगले कारोबारी साल से लागू भी किया जा सकता है।

सूत्रों का कहना है कि रिवाइज्ड इनकम टैक्स रिटर्न में आमदनी बढ़ाना मुश्किल होगा। अगर जानबूझ कर कम आमदनी दिखाई है तो जुर्माना लगाया जाएगा। माना जा रहा है कि 100-300 फीसदी तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने रिवाइज्ड इनकम टैक्स रिटर्न के प्रस्ताव को अंतिम रूप दे दिया है। इस प्रस्ताव पर कानूनी राय ली जा रही है। दरअसल रिवाइज्ड इनकम टैक्स रिटर्न में कम आमदनी दिखाने से सरकार को राजस्व का नुकसान होता आया है। वित्त मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक अभी 3,000 करोड़ रुपये की देनदारी अटकी है। अभी कारोबारी साल खत्म होने के 2 साल बाद तक इनकम टैक्स रिटर्न भरने की छूट का प्रावधान है।

आज से शुरू हुए 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के 4 दौर खत्म हो गए हैं। हालांकि कंपनियों की तरफ से रिस्पॉन्स ठंडा ही दिख रहा है। टेलिकॉम कंपनियों की दिलचस्पी महंगे स्पेक्ट्रम में काफी कम है।टॉप आधा दर्जन सर्किलों में 2जी स्पेक्ट्रम के लिए बोलियां नहीं लगी हैं। सिर्फ 2 सर्किलों में 2जी स्पेक्ट्रम की मांग नजर आई है। दिल्ली और मुंबई जैसे प्राइम सर्किल के लिए कोई बोली नहीं लगी है।साथ ही कर्नाटक और राजस्थान सर्किल के लिए भी बोली नहीं लगी है। हालांकि उत्तर प्रदेश (पूर्व) और गुजरात के लिए जोरदार बोली लगी है। उत्तर प्रदेश (पूर्व) के लिए रिजर्व प्राइस 14 करोड़ रुपये और गुजरात के लिए रिजर्व प्राइस 43 करोड़ रुपये तय किया गया है। कंपनियां रिजर्व प्राइस के स्तर पर बोली लगा रही हैं।पूरे देश के लिए रिजर्व प्राइस 14,000 करोड़ रुपये प्रति 5 मेगाहर्ट्ज रखा गया है। नीलामी में भारती एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया, वीडियोकॉन, टेलिनॉर शामिल हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस कथन पर यकीन करना मुश्किल है कि वह हाल के फैसलों के जरिये निराशा और उदासी के माहौल को दूर करने में सफल हो गए हैं। ऐसा कोई आकलन वास्तविकता से दूर नजर आता है। पिछले कुछ महीनों से कथित निराशावाद के माहौल को लेकर चिंतित प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दीवाली के अवसर पर यह उम्मीद जताई है कि देशवासियों के लिए 'आशावाद का नया दौर' शुरू होगा। दीवाली के बधाई संदेश में मनमोहन ने लोगों के लिए शांति एवं समृद्धि की कामना की। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में उन्होंने उम्मीद जताई कि इस साल प्रकाशपर्व हर देशवासियों के लिए आशावाद के नए दौर का प्रतीक होगा। मनमोहन सरकार भ्रष्टाचार के कई आरोपों से जूझ रही तथा खुदरा क्षेत्र में एफडीआई जैसे आर्थिक फैसलों पर उसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर पचास साल तक गुलाबी बनी रहेगी, मगर अधिकतर लोगों के चेहरों पर कोई रंगत नहीं होगी। देश के विकास की यह तस्वीर ओईसीडी ने उकेरी है। अमीर देशों के इस संगठन ने अपनी ताजा रिपोर्ट में यह दावा किया है कि भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष 2011 से 2060 तक विश्व में सबसे तेज रफ्तार से विकास करेगी। यह सिक्के का चमकदार पक्ष है। इसका दुखद पहलू यह है कि तब भी यहां की आबादी आमदनी के लिहाज से दुनिया में निचले पायदान पर होगी।आर्थिक सहयोग और विकास संगठन [ओईसीडी] की रिपोर्ट के मुताबिक इन पचास वर्षो के दौरान देश की सालाना औसत विकास दर 4.9 फीसद होगी। संतोषजनक बात यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की यह रफ्तार अभी सबसे तेज दौड़ रहे चीन के मुकाबले ज्यादा होगी। इस अवधि में चीन की विकास दर 3.9 फीसद रहेगी। वैसे, इस दौरान भारत का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] भी बढ़कर सात गुना हो जाएगा। इसके बावजूद वर्ष 2060 में भारतीयों की यह औसत आमदनी विश्व में इंडोनेशिया के बाद सबसे निचले पायदान पर होगी। भारतीय अभी प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से सबसे निचले पायदान पर है। भले ही चीन की रफ्तार तब भारत से कम होगी, मगर औसत आय की नजर से वहां के लोग भारत से 14 पायदान ऊपर होंगे। फिलहाल चीन प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से नीचे से तीन पायदान ऊपर है।अमीर देशों का यह संगठन मानता है कि आर्थिक विकास की इस रफ्तार का फायदा ज्यादातर लोगों को नहीं मिल पाएगा। इसी वजह से औसत प्रति आय सात गुना बढ़ने के बावजूद भारतीयों का जीवन स्तर अमेरिकियों के मौजूदा जीवन स्तर के आधे पर ही पहुंच पाएगा। चीन के लोग अमेरिका के मौजूदा आय स्तर से 25 फीसद ऊपर पहुंच जाएंगे।

आर्थिक सुधारों के नाम पर कड़े फैसले अब बहुत हो चुके। अगले डेढ़ साल में सरकार को कांग्रेस की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का एजेंडा पूरा करना होगा। सूरजकुंड में कांग्रेस की संवाद बैठक से सरकार के लिए यह संदेश निकला है। पूरे दिन चली बैठक में कांग्रेस नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि आम आदमी के नारे से पीछे नहीं हटा जा सकता। कड़े आर्थिक फैसलों के लिए मनमोहन सरकार को हरी झंडी इसी शर्त के साथ मिली थी कि सामाजिक योजनाओं के लिए जरूरी धन की व्यवस्था हो सके। आने वाले समय में गरीबों को सब्सिडी के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा विधेयक और हर ब्लाक में एक मॉडल स्कूल जैसे फैसले अमल में लाने होंगे। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने कांग्रेस अध्यक्ष से साफ कहा है कि इन सामाजिक योजनाओं के लिए सरकार को एक लाख करोड़ से ज्यादा की जरूरत है। इसके लिए निवेश जरूरी है। उसके बाद ही एफडीआइ समेत डीजल, एलपीजी के दाम बढ़ाने जैसे तमाम फैसले लिए गए।

अब आम आदमी के सब्र का पैमाना छलकते देख संगठन भी अधीर हो रहा है। मनमोहन, चिदंबरम व योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की तरफ से लगातार कड़े फैसलों का अलाप पार्टी को बिल्कुल नहीं भा रहा है। अब सरकार से उसकी अपेक्षा महंगाई के जख्म से कराह रही जनता के घावों पर सामाजिक योजनाओं के लिए जल्द से जल्द मरहम जुटाने की है। इस आशय का इजहार सोनिया के सबसे करीबी और रक्षा मंत्री एके एंटनी ने एक तरह से मनमोहन सरकार की आर्थिक नीतियों को संवाद के दौरान कठघरे में रखकर दिया। उन्होंने जब आम आदमी के प्रति सरकार को ज्यादा जवाबदेह होने और कांग्रेस की विचारधारा का सवाल उठाया तो इसका मंतव्य यही था। यहां तक कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी सरकार की आर्थिक नीतियों का समर्थन करती नहीं दिखीं। अलबत्ता प्रधानमंत्री की जरूर सराहना की और संगठन को सरकार के साथ दिखाने की जरूरत बताई। साथ ही पार्टी के लोगों की भावनाओं और जनता की जरूरतों का ध्यान रखने की हिदायत भी दे दी। उन्होंने तमाम फैसलों के समय पर भी सवाल उठा दिए। हिमाचल चुनाव के पहले गैस सिलेंडर के दाम 25 रुपये बढ़ाने की तरफ उनका इशारा था। पार्टी मान रही है कि रोलबैक के बावजूद इसका नुकसान हुआ। इसीलिए, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सरकार से साफ कहा है कि चुनाव में संगठन को जाना होता है। जनता को आर्थिक सुधार नहीं समझाए जा सकते। उसके लिए कुछ ठोस करना होगा और अब इन कड़े आर्थिक फैसलों के बाद उन्हीं की तरफ ध्यान देना होगा।

वर्ल्ड इकानामिक फोरम के सम्मेलन में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वर्तमान परिस्थिति, जी-20 समूह के शक्तिशाली, सतत एवं संतुलित वृद्धि के लिए ढांचे, वित्तीय संस्थाओं में सुधार, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संरचना, ऊर्जा एवं प्रमुख तिजारती मालों के बाजार और जलवायु-परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय प्रयासों पर विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन के बाद एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गई।सम्मेलन का मानना है कि वर्तमान काल में वैश्विक आर्थिक पुनरुद्धान धीमी गति से हो रहा है और इसमें गिरावट की संभावना बनी रही है। यूरोप को अब भी कर्ज-संकट से निपटने वाले कदमों के क्रियान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, अमेरीका में बड़े पैमाने पर राजकोषीय संकोचन की संभावना देखी गई है और कई नवोदित देशों में आर्थिक विकास की रफतार धीमी पड़ गई है।सम्मेलन में यह विचार प्रकट किया गया कि वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिए जी-20 देशों को लोस काबोस कार्यवाही-योजना में निर्धारित संबंधित नीतियों के प्रति अपने वचनों का पालन करना चाहिए, यूरोप को ढांचागत एवं वित्तीय सुधार को आगे बढ़ाना चाहिए, जिसमें एकल बैंकिंग नियामक व्यवस्था को जल्द ही लागू करना और बैंकों में यूरोपीय स्थिरता वाली प्रणाली के सीधे पूंजी-निवेश के लिए तकनीकी तैयारी पूरी करनी शामिल है। इस के अलावा विकसित देशों को टोरेंटो शीर्ष सम्मेलन में प्रस्तुत मध्यावधि वित्तीय योजना के अनुसार सार्वजनिक वित्त के सतत विकास का लक्ष्य पूरा करना चाहिए। विभिन्न देशों को श्रमिक उत्पादकता और रोजगार बढाने के लिए ढांचागत सुधार को सक्रियता से आगे ले जाना चाहिए।
 

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी के झूठ की कलई समाचार एजेंसी पीटीआई ने खोल दी है। एजेंसी ने अपने रिपोर्टर के साथ मंत्री की हुई बातचीत का वह टेप सोमवार को जारी कर दिया जिसमें मंत्री यह कहते सुने जा सकते हैं कि सरकार सीएजी को बहुसदस्यीय बनाने के प्रस्ताव पर सक्रियता से विचार कर रही है। अरविंद केजरीवाल से अपनी तुलना पर गुस्साई आइटम गर्ल राखी सावंत कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह पर 50 करोड़ रुपये का दावा ठोकने की तैयारी कर रही हैं। राखी ने मुंबई पुलिस आयुक्त और महाराष्ट्र के गृह सचिव को पत्र लिखकर दिग्विजय के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग की है। दिग्विजय की टिप्पणी से आहत राखी ने बताया कि उन्होंने अपने वकील से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को मानहानि का नोटिस जारी करने को कहा है। आइटम गर्ल ने दिग्विजय की टिप्पणी को अपने आदर्श चरित्र पर हमला बताया है।दूसरी ओर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े बुद्धिजीवी एमजी वैद्य ने कहा है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी विवाद के पीछे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के होने की संभावना है। रविवार को प्रकाशित अपने निजी क्लिक करें ब्लॉग में वैद्य ने लिखा- विरोधी पार्टिंयॉं और मुख्यत: कांग्रेस को, गडकरी भ्रष्टाचारी है, यह दिखाने में इसलिए दिलचस्पी है कि, ऐसा कर उन्हें भाजपा भी उनकी ही पार्टी के समान भ्रष्टाचार में सनी पार्टी है, यह लोगों के गले उतारना है।वैद्य ने अपने ब्लॉग के माध्यम से कहा है कि गडकरी अगर पद पर बने रहेंगे तो मोदी को प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी में परेशानी हो सकती है।हालांकि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने स्वयंसेवक संघ [आरएसएस] विचारक एमजी वैद्य की ओर से की गई टिप्पणी को सिरे से खारिज करते हुए इसे निराधार बताया है।उल्लेखनीय है कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को लेकर पार्टी में उठे विवाद के बीच आरएसएस के पूर्व प्रवक्ता ने इसके लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया है।संघ के पूर्व प्रवक्ता एमजी वैद्य ने आज कहा कि गडकरी को पद से हटाए जाने के खिलाफ पिछले कुछ दिनों से चल रहे अभियान का केंद्र गुजरात है। उन्होंने कहा कि मोदी निहित स्वार्थ के लिए भाजपा के राज्यसभा सांसद राम जेठमलानी का इस्तेमाल कर रहे हैं और उनके जरिये गडकरी पर निशाना साध रहे हैं।भाजपा अध्यक्ष ने सोमवार को एक बयान जारी कर वैद्य की टिप्पणियों को सिरे से नकार दिया है। उन्होंने कहा, वैद्य का ब्लॉग निराधार है। हमारी पार्टी में ऐसी बातों के लिए कोई जगह नहीं है। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी के सभी मुख्यमंत्री एवं नेता मिलकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूरी पार्टी मोदी के साथ हैं और हम फिर गुजरात चुनाव जीतेंगे।

गौरतलब है कि रविवार को यह विवाद उस समय पैदा हुआ जब नारायणसामी ने पीटीआई की उस रिपोर्ट का खंडन कर दिया जिसमें एजेंसी ने उनके हवाले से बताया था कि सीएजी को बहुसदस्यीय बनाया जा सकता है। इस खबर के आते ही राजनीतिक हलकों में विवाद शुरू हो गया। सीएजी की हाल की कुछ रिपोर्टों से सरकार की काफी किरकिरी हुई है। 2जी घोटाला के चलते तो यूपीए सरकार के मंत्री को भी जेल जाना पड़ा। सीएजी के इस कथित कड़े रुख ने सरकार की जान आफत में डाल रखी है। ऐसे में इस बात को स्वाभाविक माना गया कि सरकार सीएजी को 'साधने' की कोशिश करे। मगर, बहुसदस्यीय बनाने से इस संस्था के बेकार हो जाने का डर था और इसलिए नारायणसामी के इस बयान की खबर आते ही सरकार पर चौतरफा दबाव पड़ना शुरू हो गया।

थोड़ी ही देर में नारायणसामी ने इस खबर का खंडन कर दिया। उन्होंने जारी बयान में कहा,'मैंने कभी किसी को यह बात नहीं कही है कि सरकार सीएजी को बहुसदस्यी बनाने पर विचार कर सकती है। एजेंसी ने मेरे बयान को गलत ढंग से पेश किया।'मगर, पीटीआई ने मंत्री के इस खंडन को स्वीकार नहीं किया। रविवार को मंत्री के खंडन की खबर में भी समाचार एजेंसी ने ऐलान कर दिया था कि वह अपनी खबर पर कायम है और उसके पास मंत्री के साथ हुई उसके रिपोर्टर की बातचीत के ऑडियो टेप मौजूद हैं।सोमवार को जब मंत्री ने अपना खंडन वापस नहीं लिया तो पीटीआई ने वह टेप जारी कर दिया। हमारे सहयोगी समाचार चैनल टाइम्स नाउ ने यह टेप प्रसारित किया। टेप में मंत्री यह कहते सुने जा रहे हैं कि सरकार इस प्रस्ताव (सीएजी को बहुसदस्यीय बनाने के प्रस्ताव) पर सक्रियता से विचार कर रही है।

अर्थव्यवस्था के तीव्र वृद्धि की राह पर लौटने की उम्मीदें सोमवार को उस समय धूमिल पड़ती दिखीं जब दिवाली की पूर्व संध्या पर जारी सरकारी आंकड़ों में औद्योगिक उत्पादन और निर्यात में गिरावट तथा खुदरा बाजार की महंगाई में वृद्धि दर्ज की गई। बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में भी उत्साह नहीं दिखाई दिया। पहले दिन दूरसंचार कंपनियों ने ज्यादा रुचि नहीं दिखाई। ऐसे में स्पेक्ट्रम नीलामी से सरकार को 40,000 करोड़ जुटा लेने की उम्मीदें भी सिरे चढ़ती नजर नहीं आतीं हैं। अर्थव्यवस्था के निराशाजनक आंकड़ों की वजह से दलाल स्ट्रीट संवत 2068 की समाप्ति पर कमजोरी के साथ बंद हुई। सोमवार को बाजार में गिरावट का लगातार तीसरा सत्र रहा। इस दिन बंबई शेयर बाजार [बीएसई] का सेंसेक्स 13.34 अंक टूटकर 18670.34 पर आ गया। बीते दो सत्रों में यह 219 अंक फिसला था। इसी प्रकार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज [एनएसई] का निफ्टी 2.55 अंक की मामूली गिरावट के साथ 5683.70 पर बंद हुआ। वैसे कुल मिलाकर संवत 2068 के दौरान इस सूचकांक में करीब 8.2 फीसद की तेजी आई है। खुदरा महंगाई के बढ़ने और औद्योगिक उत्पादन व निर्यात में गिरावट ने निवेशकों को निराश किया।वाणिज्य सचिव एसआर राव ने आंकड़े जारी करते हुए संवाददाताओं को बताया कि विश्व व्यापार निरंतर सिकुड़ रहा है। विश्व के साथ हमारा जुड़ाव बढ़ा है, इसलिए किसी भी घटनाक्रम का भारत के व्यापार पर असर पड़ेगा।

फिर राष्ट्रपति बने बराक ओबामा, इससे कुछ नेता खुश हुए तो कुछ ने सीधे आर्थिक सुधार की बात कही है। वहीं, शेयर बाजार ओबामा से ज्यादा खुश नहीं लग रहा है।

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का कहना है कि वह और राष्ट्रपति ओबामा अपने अपने देशों के बीच साझेदारी को आगे बढ़ा सकेंगे। "मैं इस साझेदारी को आगे बढ़ाना चाहती हूं ताकि दोनों देश साझी विदेशी और आर्थिक चुनौतियों का एक साथ सामना कर सके।" मैर्केल आर्थिक संकट, अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय सेना और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को संबोधित कर रही थीं।
फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने भी ओबामा की जीत के बारे में कहा है कि इससे अमेरिका अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपना काम जारी रखेगा, "ओबामा के चुने जाने का मतलब है कि हमारी साझेदारी बढ़ेगी और हमारे देशों में फिर आर्थिक विकास होगा, बेरोजगारी के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा और मध्यपूर्व जैसे संकटों के लिए सुझाव ढूंढने की कोशिश जारी रहेगी।"
जर्मनी, फ्रांस सहित ब्रिटेन भी ओबामा के दोबारा चुने जाने से काफी खुश है। यूरोपीय संघ के वित्त मंत्रियों के प्रमुख ज्यां क्लोद युंकर ने कहा कि जब भी कोई अमेरिकी राष्ट्रपति दोबारा चुना जाता है तो उनके साथ काम करना आसान हो जाता है।
युंकर का कहना है कि राष्ट्रपति अपने पहले कार्यकाल के दौरान ज्यादातर घरेलू और राजनीतिक मुद्दों पर ध्यान देते हैं लेकिन दूसरे कार्यकाल में यूरोप और अमेरिका को और करीब लाने की कोशिश की जा सकती है।


लेकिन शेयर बाजार भी ओबामा के दोबारा चुने जाने पर ज्यादा खुश नहीं नजर आ रहा।दलालों का मानना है कि ओबामा के कार्यकाल के दौरान अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेड अपनी ढीली मुद्रा नीति जारी रखेगा और बाजार में अरबों पैसे डाले जाते रहेंगे।
अगर अमेरिकी कांग्रेस आने वाले दिनों में देश के खर्चे पर एकमत नहीं हो पाई तो सरकारी खर्चे में बड़ी कटौती करनी होगी जो अमेरिका में दोबारा मंदी की लहर लाएगी और विश्व अर्थव्यवस्था को धीमा करेगी।


विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन से सितंबर माह में औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) में 0.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई जबकि एक साल पहले इसी महीने में आईआईपी में 2.5 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी।एक महीना पहले अगस्त, 2012 में औद्योगिक उत्पादन में सालाना आधार पर 2.3 प्रतिशत वृद्धि रही थी। देश के निर्यात कारोबार में भी गिरावट का दौर रहा। एक साल पहले की तुलना में अक्टूबर 2012 में निर्यात में 1.63 प्रतिशत गिरावट आ गई। और व्यापार घाटा 21 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। हालांकि, पिछले माह की तुलना में यह गिरावट कुछ कम रही है।

आम आदमी को बढ़ती मुद्रास्फीति से कोई राहत नहीं मिली। चीनी, दाल, सब्जियों तथा कपड़े जैसे जरूरी सामान की बढ़ती कीमतों से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति में बढ़त दर्ज की गई। अक्टूबर में खुदरा मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर 9.75 प्रतिशत पर पहुंच गई। एक महीना पहले यह 9.73 प्रतिशत पर थी।

पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में आर्थिक वृद्धि दर घटकर नौ साल के निचले स्तर  6.5 प्रतिशत तक नीचे आ गई। मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह 5.5 प्रतिशत रही जिससे भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल यानी 2012-13 का वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने सितंबर में औद्योगिक उत्पादन में गिरावट को निराशाजनक बताया है। अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में सुस्त मांग के चलते देश के निर्यात में लगातार छठे महीने गिरावट दर्ज की गई है। अक्टूबर में निर्यात बीते साल की तुलना में 1.63 प्रतिशत घटकर 23.2 अरब डॉलर रहा। सितंबर में निर्यात 11 प्रतिशत घटा था।

चालू वित्ता वर्ष 2012-13 के बाकी महीनों की तरह अक्टूबर में भी निर्यात की रफ्तार दक्षिण में ही बढ़ी। इस महीने निर्यात में 1.6 प्रतिशत की कमी हुई है। इस महीने देश से 21 अरब डॉलर का निर्यात किया गया। बीते वित्ता वर्ष इसी महीने 23 अरब डॉलर का निर्यात हुआ था। वैसे, सितंबर में निर्यात में आई कमी के मुकाबले अक्टूबर में गिरावट की रफ्तार कुछ थमी है। सितंबर में निर्यात 11 प्रतिशत गिरा था।

इसके उलट आयात में बढ़ोतरी का सिलसिला बना हुआ है। अक्टूबर में आयात में 7.37 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इस महीने 44.2 अरब डॉलर का आयात हुआ। यह पिछले 18 महीनों में सर्वाधिक है। आयात में वृद्धि चालू खाते के घाटे के लिए खतरनाक स्थिति पैदा कर रही है, क्योंकि अक्टूबर में विदेश व्यापार का घाटा 21 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है। यह स्थिति बनी रही तो चालू खाते का घाटा अनुमान से काफी ऊपर रह सकता है। बीते वित्ता वर्ष चालू खाते का घाटा 4.2 प्रतिशत के खतरनाक स्तर तक पहुंच गया था।

अप्रैल को छोड़कर इस वित्ता वर्ष किसी भी महीने निर्यात में सकारात्मक वृद्धि नहीं हुई है। सात महीनों में से छह महीने लगातार निर्यात में कमी आई है। सात महीने का कुल व्यापार घाटा 110 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। वाणिज्य मंत्रालय की कोशिश इसे 180 अरब डॉलर के आसपास रोकने की है। लेकिन निर्यात में हो रही लगातार गिरावट के चलते अब ऐसा होना संभव नहीं दिख रहा है। सरकार के निर्यात बढ़ाने के उपायों का भी कोई लाभ नहीं हो रहा है। आगे भी वैश्विक बाजार में मंदी के रहते निर्यात में वृद्धि की गुंजाइश नहीं दिखती।

दूसरी तरफ आयात में लगातार वृद्धि हो रही है। अक्टूबर में भी सोना और पेट्रोलियम आयात वृद्धि की भूमिका अहम रही। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में कमी ने तेल आयात के बिल में तेज वृद्धि की है। अक्टूबर के महीने में कुल आयात बिल का 30 प्रतिशत हिस्सा तेल आयात का रहा।

कारखानों में ठप पड़ने लगा कामकाज

महंगे कर्ज और मांग में कमी ने औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को अक्टूबर में भी धीमा रखा है। मैन्यूफैक्चरिंग और कैपिटल गुड्स की धीमी रफ्तार के चलते इस महीने औद्योगिक उत्पादन में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई है। औद्योगिक उत्पादन में कमी ने रिजर्व बैंक पर ब्याज दरों में कमी का दबाव और बढ़ा दिया है।

इस साल अगस्त में ही औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार में कुछ सकारात्मक रुख देखने को मिला था। इस महीने औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 2.3 प्रतिशत रही थी। लेकिन अगले ही महीने अक्टूबर में स्थिति बदल गई। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का हाल बेहाल है। इस महीने इसके उत्पादन में 1.5 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। जबकि अगस्त में इसके बढ़ने की रफ्तार 3.1 प्रतिशत थी। औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक में सबसे अधिक योगदान मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का ही होता है।

इसके अलावा कैपिटल गुड्स क्षेत्र की हालत भी बेहद पतली है। सितंबर में इसके उत्पादन में 12.2 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इस क्षेत्र में गिरावट का साफ अर्थ है कि घरेलू उद्योगों में विस्तार की योजनाओं पर काम की रफ्तार बेहद धीमी है। अप्रैल से सितंबर तक पहली छमाही में इस क्षेत्र का उत्पादन 13.7 प्रतिशत गिरावट हुई है।

महंगाई की लपट और तेज

ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक की असमंजसता आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है। एक तरफ औद्योगिक क्षेत्र की सुस्ती दूर होती नहीं दिख रही, वहीं दूसरी तरफ महंगाई की स्थिति भी नहीं सुधर रही। अक्टूबर, 2012 में खुदरा महंगाई की दर बढ़कर 9.75 फीसद पर पहुंच चुकी है। इस वजह से केंद्रीय बैंक के लिए ब्याज दरों को कम करना फिर मुश्किल हो जाएगा।

सोमवार को सरकार की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि खुदरा महंगाई की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। चीनी, खाद्य तेलों और दालों की कीमतों में काफी वृद्धि हुई है। चीनी की खुदरा कीमत तो 19 फीसद से ज्यादा बढ़ चुकी है, जबकि खाद्य तेल 18 फीसद और दाल 15 फीसद तक महंगी हुई हैं। मांस-मछली की कीमतें 12 फीसद और सब्जियों की कीमतों में 10.74 फीसद तक की वृद्धि हुई है। कपड़े व जूते भी इस महीने काफी महंगे हो गए हैं।

जानकारों का कहना है कि आरबीआइ के लिए इस आंकड़े के बाद ब्याज दरों में कटौती करना और मुश्किल हो जाएगा। उन चीजों में ज्यादा महंगाई देखी गई है जिनकी आपूर्ति सुधार कर स्थिति को संभाला जा सकता था। केंद्रीय बैंक लगातार कहता रहा है कि सरकार को आपूर्ति पक्ष पर ज्यादा ध्यान देते हुए महंगाई पर काबू पाने की कोशिश करनी चाहिए। वार्षिक मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही समीक्षा के दौरान इस आधार पर ही बैंक ने ब्याज दरों में कोई राहत नहीं दी थी। कारण यह बताया गया था कि महंगाई की स्थिति ठीक नहीं है। आरबीआइ ने यह भी कहा है कि अगर महंगाई की दर घटती है तो वह जनवरी, 2013 में ब्याज दरों को कम करने पर विचार कर सकता है। ब्याज दरों में कमी नहीं होने पर वित्ता मंत्री पी. चिदंबरम ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी। उद्योग जगत ने भी इसकी काफी निंदा की थी।

गुजरात देश में सबसे ज्यादा निवेश आकर्षित करने वाला राज्य है। इंडस्ट्री बॉडी एसोचैम के एक सर्वे के मुताबिक गुजरात ने जून 2012 तक की अवधि में करीब 15 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा निवेश आकर्षित किया,जो पूरे देश में हुए निवेश का 10.6 फीसदी है।

पूरे देश में जून 2012 तक करीब 140 लाख करोड़ रुपये का नया निवेश आया। गुजरात में हुए कुल निवेश में से 10.3 लाख करोड़ रुपये प्राइवेट कंपनियों ने किए, जबकि सरकारी कंपनियों ने 4.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया। जिन सेक्टरों में गुजरात में निवेश आए उनमें फाइनेंस, मैन्युफैक्चरिंग, रियल एस्टेट और सिंचाई शामिल हैं।

एसोचैम के मुताबिक प्रशासनिक कुशलता, बेहतर बुनियादी सुविधाएं और जमीन मिलने में आसानी जैसी वजहों ने गुजरात को देश का फेवरेस्ट इन्वेस्टमेंट डेस्टिनेशन बनाया है। सर्वे में सामने आया कि निवेश आकर्षित करने के मामले में गुजरात के बाद महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश,उड़ीसा और कर्नाटक का नंबर है।

अधिकतर कार्य स्थलों पर दीवाली के उपलक्ष्य में काम के घंटे कम होने के कारण नवंबर 2012 के दौरान उत्पादकता में कमी दर्ज की गई है। दीवाली के पूर्व और बाद में होने वाले सेलिब्रेशन के चलते अधिकतर कार्यस्थलों पर पांच में एक कर्मचारी द्वारा अपने कार्य समय में कटौती किए जाने के कारण औद्योगिक उत्पादकता पर असर पड़ा है। प्रमुख औद्योगिक संगठन एसोचैम की ओर से किए गए सर्वे में यह पाया गया है कि दीवाली के अवसर पर कर्मचारियों की ज्यादा छुट्टियों के कारण औद्योगिक उत्पादन प्रभावित होना तय है।


दीवाली सप्ताह के दौरान उत्पादकता में कमी पर एसोचैम की ओर से किए गए सर्वे में पाया गया कि इस अवसर पर देश में औद्योगिक उत्पादन में 25 फीसदी तक की गिरावट रह सकती है। यह गिरावट चालू महीने में कार्यस्थलों पर कर्मचारियों की उपलब्धता नहीं होने तथा कार्य समय 8 घंटे की अपेक्षा 4 घंटे ही रहने के कारण होने की संभावना है। एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि पारंपरिक तौर पर त्योहारी सीजन देश के औद्योगिक उत्पादन के लिए मंदी का समय रहता है। इस दौरान देश की आईआईपी ग्रोथ सालभर की कुल ग्रोथ की तुलना में काफी कम रहती है।



एसोचैम के अनुमान के मुताबिक नवंबर 2012 के शुरुआती दस दिनों के भीतर 40 करोड़ लोगों द्वारा काम के घंटों में की गई कमी का घाटा कंपनियों को उठाना पड़ा है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक दिवाली के दौरान करीब 5 से 8 लाख कर्मचारी छुट्टी लेंगे जिससे कुल उत्पादकता में कमी आई है। विश्लेषकों के मुताबिक नवंबर मध्य तक उत्पादकता में कमी जारी रहने का अनुमान है। सर्वे में यह भी बताया गया है कि इस दौरान 20-35 फीसदी कर्मचारियों ने अपने कार्य समय का पूर्ण उपयोग नहीं किया है।


एसोचैम की ओर से दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, चंडीगढ़ और देहरादून जैसे शहरों के 200 कर्मचारियों (प्रत्येक शहर) पर किए गए सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी से अधिक कर्मचारी 7-10 दिन के अवकाश पर रहे हैं। इसके अलावा आधे से ज्यादा कर्मचारियों ने कार्य समय में कटौती कर 3-4 घंटे ही काम किया है।



अमेरिकी ट्रेजरी के फॉरेन अकाउंट टैक्स कॉम्पैंस एक्ट (एफएटीसीए) जिसे 'फटका' भी कहा जाता है, पर भारतीय रिजर्व बैंक ने अपना एतराज जताया है। आरबीआई ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को एफएटीसीए पर अपना एतराज जताते हुए अपना प्रस्ताव भेज दिया है। रिजर्व बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय राजस्व विभाग की ओर से आए एफएटीसीए प्रावधान पर हमने अपनी आपत्ति जताई है।  

अधिकारी ने बताया कि यदि एफएटीसीए के तहत भारतीय बैंकों को अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय राजस्व विभाग के साथ समझौता करना पड़ा तो हमें अपनी बैंकिंग प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन करने पड़ेंगे। इसके अलावा, बैंकों को 'अपने ग्राहक को पहचानें' (केवाईसी) नियमों में भी बदलाव करना होगा। ग्राहकों के लेन-देन की जानकारी देने का मतलब ग्राहकों की सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करना भी है। अधिकारी ने यह भी बताया कि यदि हम जानकारी दे भी देते हैं तो हमें इसके दूरगामी परिणामों के बारे में भी सोचना पड़ेगा। हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि ग्राहकों के खाते का गलत इस्तेमाल न हो। इसे १ जनवरी २०१३ से लागू करना था जिसे एक साल के लिए बढ़ा दिया है।

क्या है एफएटीसीए  
फॉरेन अकाउंट टैक्स कॉम्पैंस एक्ट (एफएटीसीए) विदेशी परिसंपत्तियों और बाहरी खातों में शामिल टैक्स अनुकूलता को बेहतर करने के लिए बनाया गया। 'फटका' के तहत, विदेशी वित्तीय परिसंपत्तियों वाले अमेरिकी करदाता, जिनका लेन-देन एक सुनिश्चित सीमा से ज्यादा होने पर अपने खाते की जानकारी आईआरएस को देनी होगी। इसके अलावा, एफएटीसीए में अमेरिकी करदाता द्वारा विदेशों में खोले गए खाते के बारे में विदेशी वित्तीय संस्थानों को इसकी सीधी जानकारी आईआरएस को देनी होगी। साथ ही, विदेशी कंपनियों में अमेरिकी करदाताकी हिस्सेदारी या पर्याप्त स्वामित्व अधिकार है तो भी उसके लेन-देन की जानकारी अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय राजस्व विभाव को देनी होगी।  वित्तीय संस्थानों पर असर  मान लीजिए भारत का कोई बैंक अमेरिका में निवेश या कारोबारी सौदे में शामिल है और उसे अमेरिका के साथ कारोबारी लेन-देन जारी रखना है तो उसे एफएटीसीए के तहत इंफॉमेंशन रिपोर्टिंग एग्रिमेंट पर हस्ताक्षर करना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करता तो उस पर अमेरिकी कंपनी से मिले सभी प्रकार के भुगतान पर 30 फीसदी विदहोल्डिंग टैक्स जुर्माना लगाया जाएगा। भुगतानों में लाभांश, रॉयल्टी, रेंट, वार्षिय आय आदि शामिल है। एक और उदाहण, अगर एक भारतीय वित्तीय संस्थान ब्रिटेन की एक संस्थान में निवेश करता है, लेकिन आगे चलकर ब्रिटेन की वह संस्थान अमेरिका में निवेश करती है, तो भी भारतीय संस्थान पर एफएटीसीए का प्रभाव पड़ेगा। इस मामले, ब्रिटिश और भारतीय दोनों कंपनियों को विदहोल्डिंग टैक्स के ३० फीसदी जुर्माने की तलवार लटकी रहेगी।

अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने कहा कि चीनी नेतृत्व दल आर्थिक विकास पर जो महत्व देता है और लम्बे अरसे से स्थानीय आर्थिक विकास के क्षेत्र में काम करने से उन्हें जो अनुभव प्राप्त हुए है, वे चीन के लिए स्थिरता के साथ विश्व आर्थिक संकट से निपटने की अहम गारंटी है। अमेरिकी एसोसिएटेड प्रेस का कहना है कि बहुत से चीनी लोगों के लिए चीन अभी मोड़ के दौर से गुजर रहा है। चीन सरकार के नेतृत्व में चलाए आर्थिक वृद्धि के फार्मुले से दसियों करोड़ लोगों को गरीबी से छुटकारा मिला है और चीन विश्व का एक बड़ा आर्थिक देश बन गया है। लेकिन उस के विकास के फार्मुले को विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के सामने चुनौति का सामना करना पड़ रहा है। भविष्य में चीन की अर्थव्यवस्था का सुधार किस तरह हो रहा है और चीन बाजारीकृत सुधार की दिशा पर कायम रहेगा कि नहीं, इस पर बाह्य दुनिया का ध्यान केन्द्रित है।

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि अर्थव्यवस्था सुधार का केन्द्रीय मामला सरकार व बाजार के बीच के संबंधों का अच्छा निपटारा है, इसलिए बाजार नियम का सम्मान किया जाना चाहिए और सरकार की भूमिका और अच्छी तरह अदा की जानी चाहिए। इन शब्दों से चीन के अर्थव्यवस्था सुधार की दिशा जाहिर हुई है और इसने बाह्य दुनिया के संदेश का जवाब भी किया है। चीनी वित्त मंत्रालय के वित्तीय अनुसंधान प्रतिष्ठान के अध्यक्ष चा खांग ने कहा कि 18वीं कांग्रेस की रिपोर्ट में चीन के अर्थव्यवस्था सुधार की दिशा और भावी आर्थिक विकास के तौर तरीके में होने वाले परिवर्तन पर अहम व्याख्यान किया गया है। उन के विचार में चीन बाजारीकृत सुधार के रास्ते पर कायम रहेगा जो पार्टी की बुनियादी कार्य दिशा और सुधार व खुले द्वार की नीति पर कायम रहने का ठोस रूप है। उन्होंने कहाः

सुधार व खुले द्वार की नीति में चर्चित सुधार असल में बाजार आधारित है। पिछली सदी के नबे वाले दशक में चीनी शीर्ष नेता तेंग शाओफिंग ने अपनी दक्षिण चीन के कार्य दौरे में जो बयान दिए थे, उसमें बाजार अर्थव्यवस्था का लक्ष्य व फार्मुला निश्चित हुआ है, यह चीन की बुनियादी कार्यदिशा का एक मुख्य विषय है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 18वीं कांग्रेस की रिपोर्ट में आर्थिक विकास के बारे में जो चर्चा की गयी है, उससे अर्थव्यवस्था सुधार की दिशा व लक्ष्य पर कायम रहने का संकल्प प्रकट हुआ है, साथ ही यह संदेश भी दिया गया है कि चीन के आर्थिक विकास के फार्मुले में बड़ा बदलाव आएगा। रिपोर्ट में यह मांग की गयी है कि देश विदेश की आर्थिक परिस्थिति में आए नए बदलाव के अनुरूप आर्थिक विकास के नए तौर तरीके को पक्का किया जाएगा और विकास का जोर क्वालिटी व लाभांश पर लगाया जाएगा। इससे जाहिर है कि चीन की अर्थव्यवस्था रूपांतरण के कुंजीभूत दौर में आया और तेज आर्थिक वृद्धि का तर्ज बदलेगा। यानिकि चीन का आर्थिक विकास मात्रा की जगह क्वालिटी की उन्नति के दौर में आया है और विकास के अन्तर्गर्भित विषय में बदलाव आया है।

इस प्रकार के परिवर्तन का एक अहम लक्षण यह है कि पिछले 10 सालों की औसत 10.7 प्रतिशत की वृद्धि दर अब बदलकर दो अंक से कम वृद्धि दर हुई है। इसके बारे में श्री चा खांग ने 18वीं कांग्रेस की रिपोर्ट का यह उल्लेख ले लिया कि वर्ष 2020 में चीन की सकल घरेलू उत्पाद मूल्य और शहरी व ग्रामीण निवासियों की औसत आय वर्ष 2010 से दुगुनी होगी। श्री चा खांग ने कहाः

सकल उत्पाद की दुगुनी वृद्धि के साथ औसत व्यक्ति आय की दुगुनी वृद्धि का जो लक्ष्य पेश हुआ है, वह एक नयी चीज है, क्योंकि इसमें जनसंख्या में नयी वृद्धि का भी ख्याल किया गया है। जनसंख्या के बढ़ने की हालत में सकल उत्पाद मूल्य से औसत व्यक्ति आय की वृद्धि और अधिक मुश्किल है, इसकेलिए आर्थिक वृद्धि दर 7.2 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए।

अमेरिका के जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बॉटेलियर का कहना है कि अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संकट पैदा होने के बाद चीन हमेशा विश्व अर्थव्यवस्था के लिए अहम भागीदार रहा है। चीन की बाजार की मांग से विश्व आर्थिक बहाली को प्रेरणा मिली है, चीन की स्थिर आर्थिक वृद्धि विश्व अर्थतंत्र को मंदी से बाहर ले जाने की एक अहम प्रेरक शक्ति बनेगी।

फ्रांसीसी पैरिस बरक्लैज बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े आर्थिक देशों की पंक्ति में खड़े होने के बाद चीन के आर्थिक विकास का फार्मुला आर्थिक चमत्कार से बदलकर सामान्य विकास के रूप में आएगा। चीन का नेतृत्व दल चीन की अर्थव्यवस्था को परिपक्व विकास के रास्ते पर ले जाएगा और विश्व के आर्थिक विकास केलिए नया योगदान देगा।

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