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Thursday, November 8, 2012

जाहिर है, विचारधारा यानी बहुचर्चित हिंदू राष्ट्रवाद के बजाय भारतीय दक्षिणपंथ भी कारपोरेट हितों का नया अवतार होगा!

जाहिर है, विचारधारा यानी बहुचर्चित हिंदू राष्ट्रवाद के बजाय भारतीय दक्षिणपंथ भी कारपोरेट हितों का नया  अवतार होगा!

दक्षिणपंथी विचलन का सर्वोत्तम उदाहरण स्वामी विवेकानंद पर भाजपा के नितिन गडकरी का बयान है। हालांकि शूद्र विवेकानंद पर इस टिप्पणी से संघ परिवार या बाजपायी विचलित हैं, गडकरी को तुरंत हटाकर इसका कोई सबूत नही दिया गया। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर फर्जी फर्मो के मालिक होने का आरोप लगा है। गडकरी ने महाराष्ट्र का लोक निर्माण मंत्री रहते हुए इन फर्मो को पैसा बनाने के लिए बनाया था। आरोप इतने गंभीर हैं कि संघ सूत्रों ने भी कहा है कि इससे भाजपा की छवि बुरी तरह धूमिल हुई है।  इसपर तुर्रा यह कि गडकरी के खिलाफ जिहाद की अगुवाई करने वाले राम जेठमलानी ने तो हिंदू राष्ट्रवाद के पुलरूत्थान और मनुस्मृति के धारक वाहक मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा पर ही प्रश्न चिह्न ​​लगा दिये। सभी भारतीय इस हिंदू राष्ट्रवाद के पक्ष में नहीं हैं जो अस्पृश्यता, भेदभाव, वर्चस्व और बहिष्कार के सिद्धांतों की नींव पर भारत का कायाकल्प करने पर अमादा हो। पर जिनकी आस्था है, उनके प्रति हिंदुत्व के झंडेवरदार कितने ईमानदार हैं और ऐसे पाखंड की बदौलत​​ सत्ता में  आने वाले दक्षिणपंथी भविष्य भारत राष्ट्र और भारतवासियों का क्या हश्र होगा, इसपर अवश्य ही विचार होना चाहिए।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

मिट रोमनी की हार ने साबित किया कि आधुनिक राष्ट्र व्यवस्था में दक्षिणपंथ के लिए कोई जगह नहीं है। दक्षिणपंथी विचारों के प्रतिरोध ​​में गोलबंद सामाजिक व उत्पादक शक्तियों के बहुजन समर्थन से ही बराक ओबामा के जरिये पूंजीपति इजराइल परस्त कारपोरेट पसंदीदा रोमनी को मुंह की खानी पड़ी और श्वेत वर्चस्व की बहाली हो नहीं सकी। इसके विपरीत भारत में आगामी लोकसभा चुनावों में देश का भविष्य ​​दक्षिणपंथी प्रगतिविरोधी कारपोरेट हिंदू राष्ट्रवाद नजर आ रहा है तो इसकी वजह यह है कि अमेरिका में जो बहुजन समाज का अघोषित उत्थानहो गया, भारत में जाति उन्मूलन, मनुस्मृति विरोधी जिहाद और महापुरुषों की नामावली के निरंतर जाप के बावजूद, बहुजन मूलनिवासी बाजारू राजनीति की वजह से वह अब भी असंभव है आर्थिक सुधारों के अश्वमेध अभियान के जरिये जितना नहीं, भ्रष्टाचार की काली कोठरी में फंसकर कांग्रेस जनआस्था खो चुकी है और तीसरा कोई विकल्प नहीं है।ऐसी हालत में इजराइल समर्थक संघ परिवार ही राष्ट्र के नये प्रधानमंत्री का चेहरा तय करने जा रहा है। संघ परिवार के दोनों वरिष्ठतम परिचित चेहरे अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवामी के मैदान से रिटायर हो जाने की वजह से कारपोरेट नयनतारा गुजरात नरसंहार के मसीहा नरेंद्र मोदी के मार्फत भारत के दक्षिणपंथ के गर्त में लुढ़कने के पूरे आसार है।संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में नरेंद्र मोदी का न सिर्फ स्वागत किया, बल्कि यह घोषणा भी की कि गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी में नरेंद्र मोदी का कद बढ़ाया जाएगा। इससे इस बात की एक बार फिर पुष्टि हो गई कि भाजपा पर वास्तविक नियंत्रण किसका है। हालाकि पार्टी नेताओं के अपमान को कम करने के लिए भागवत ने यह जरूर कहा कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन करना पार्टी का काम है।ब्रिटेन ने हाल ही में कहा है कि वह मोदी के कामों का समर्थन नहीं करता, फिर भी वह उनके साथ रिश्ता बनाना चाहता है। ब्रिटेन के ऐसा कहने मात्र से लोगों की नजर में मोदी की छवि स्वच्छ नहीं हो जाएगी। ब्रिटेन ने अपने उच्चायुक्त जेम्स बिवन को मोदी के पास भेजकर पहल की है। जबकि पिछले एक दशक से वह मोदी के साथ अछूत वाला रिश्ता बनाए हुए था। आने वाले समय में अमेरिका या दूसरे देश भी इसका अनुसरण करेंगे । इससे भ्रष्टाचार और कालाधन से देश को कितनी राहत मिलेगी, नितिन गडकरी के प्रकरण में संघी रक्षा कवच के चमत्कार से वह जगजाहिर है। विडंबना है कि संघी खेमे में अपनी विचारधारा और हिंदुत्व के प्रति प्रतिबद्धता पर भी शीर्ष स्तर पर सवालिया निशान लग रहे हैं। बंगाल के मार्क्सवादियों ने विकास का पूंजीवादी माडल अपनाने की अंधी दौड़ में विचारधारा की ऐसी तैसी कर ही चुके हैं। अब संघियों की बारी है। संघी नेता ही हिंदुत्व पर सबसे तीखे हमले बोलने लगे हैं। जाहिर है, विचारधारा यानी बहुचर्चित हिंदू राष्ट्रवाद के बाजाय भारतीय दक्षिणपंथ भी कारपोरेट हितों का नया  अवतार होगा।

अमेरिका में दक्षिणपंथी रुझान का प्रतिरोध किसी मार्टिन लूथर किंग या फिर बाराक ओबामा के उदात्त विचारों और करिश्माई नेतृत्व की ​​वजह से हुआ है, ऐसा मान लेना गलत होगा। अगर श्वेत वर्चस्व टूटा है तो उसके पीछे  अमेरिकी स्त्री शक्ति की सबसे बड़ी भूमिका है। अगर ​​अमेरिका वैविध्य का जयपताका लहराकर बहुजनसमाज का निर्माण हुआ है तो निश्चय ही उसका नेतृत्व स्त्री शक्ति के हाथों में है और वह​​ कोई अकेली मिशेल ओबामा नहीं है।युवाओं और शरणार्थियों आप्रवासियों, अश्वेतों और युवाओं के यह बहुजन समाज अ्मेरिकी स्वप्न कका साकार वास्तव है, जो कारपोरेट साम्राज्यवाद के मुकाबले युद्धविरोधी अमेरिका की सही तस्वीर है। भारत में स्त्री को देवी कहते रहने के बावजूद उसकी सामाजिक स्थिति में शूद्र  अवस्थान कतई नहीं बदला है। स्त्री सशक्तीकरण उपभोक्ता संसकृति के मूल्यों के मुताबिक हुआ है, जिसका ​​प्रतिनिधित्व मीडिया पर छाती कन्याएं खूब कर रही हैं। पर नारीवादी आंदोलन के बावजूद भारतीय बहुजन समाज का नेतृत्व करने की स्थिति में भारतीय स्त्री शक्ति असमर्थ है और इसीलिए आधी आबादी की ताकत कको नजरअंदाज करते हुए हम भारत में बहुजनसमाज की कल्पना ही नहीं कर सकते। हमें कारपोरेट राज या फिर हिंदुत्व के दक्षिणपंथी कारपोरेट राज के बीच चुनाव करना है। विडंबना है कि दोनों समावेशी विकास और सामाजिक समरसता का छलावा करते हुए वर्चस्ववादी अल्पमत के मनुस्मृति तंत्र को मजबूत करते हुए लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता ही नहीं, लोकतंत्र, नागरिकता, मानव अधिकार, संसद और संविधान ककी हत्या में समान रुप से तत्पर है।

बारह साल से लगातार विशेष सैन्य कानून के विरु्द्धध आमरण अनशन करने वाली इरोम शर्मिला हो या फिर मणिपुर में सैनिक शासन के खिलाफ नग्न प्रदर्शन करने वाली माताएं, उनकी प्रशंसा के अलावा उनके आंदोलन और प्रतिरोध में हमारा योगदान क्या है, उसका मूल्यांकन होना​ ​ बाकी है। स्त्री की ताकत का अंदाजा तो बंगाल में ३५ साल के वामपंथी राज को खत्म करनेवाली ममता के चमत्कार और भारतीय राजनीति में अपरिहार्य बन चुकी मायावती और जय.ललिता की उपस्थिति से ही हो जाना चाहिए था। पर इस सत्य का साक्षात्कार करने का सत्साहस है हममें?

ऐसा लगता है कि गुजराती मोदी को फिर से चुन लेंगे। गुजराती पिछले करीब 15 सालों से देश को चुनौती देते आ रहे हैं कि संविधान के सिद्धातों से बंधे राष्ट्र से ज्यादा महत्वपूर्ण राज्य सरकार है। गुजरातियों के लिए कानून के सामने सभी के बराबर होने और सरकार और राजनीति को अलग रखने की बात महज कागज पर रह गई है, क्योंकि उनके मुख्यमंत्री मोदी इन सिद्धातों को ठेंगा दिखाने को उतारू रहे हैं। यह 2002 में साफ तौर पर दिखा था, जब करीब 2000 मुसलमानों को निर्दयतापूर्वक मार डाला गया था, क्योंकि उन्हें बराबरी का नहीं माना गया और धर्म और शासन में घालमेल करने का तरीका मोदी ने खोज निकाला।

दक्षिणपंथी विचलन का सर्वोत्तम उदाहरण स्वामी विवेकानंद पर भाजपा के नितिन गडकरी का बयान है। हालांकि शूद्र विवेकानंद पर इस टिप्पणी से संघ परिवार या बाजपायी विचलित हैं, गडकरी को तुरंत हटाकर इसका कोई सबूत नही दिया गया। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर फर्जी फर्मो के मालिक होने का आरोप लगा है। गडकरी ने महाराष्ट्र का लोक निर्माण मंत्री रहते हुए इन फर्मो को पैसा बनाने के लिए बनाया था। आरोप इतने गंभीर हैं कि संघ सूत्रों ने भी कहा है कि इससे भाजपा की छवि बुरी तरह धूमिल हुई है।  इसपर तुर्रा यह कि गडकरी के खिलाफ जिहाद की अगुवाई करने वाले राम जेठमलानी ने तो हिंदू राष्ट्रवाद के पुलरूत्थान और मनुस्मृति के धारक वाहक मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा पर ही प्रश्न चिह्न ​​लगा दिये। सभी भारतीय इस हिंदू राष्ट्रवाद के पक्ष में नहीं हैं जो अस्पृश्यता, भेदभाव, वर्चस्व और बहिष्कार के सिद्धांतों की नींव पर भारत का कायाकल्प करने पर अमादा हो। पर जिनकी आस्था है, उनके प्रति हिंदुत्व के झंडेवरदार कितने ईमानदार हैं और ऐसे पाखंड की बदौलत​​ सत्ता में  आने वाले दक्षिणपंथी भविष्य भारत राष्ट्र और भारतवासियों का क्या हश्र होगा, इसपर अवश्य ही विचार होना चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जहां फिल्म में राधा को सेक्सी बताने के मुद्दे को संसद में उठाने की तैयारी कर रही है, वहीं उसके ही राज्य सभा सांसद राम जेठमलानी ने भगवान राम के बारे में एक विवादित बयान दे डाला है। जेठमलानी ने कहा कि भगवान राम एक बेहद बुरे पति थे और उनके भाई लक्ष्मण तो उनसे भी बुरे थे।

विवाद और राम जेठमलानी का रिश्ता बड़ा करीबी है. एक विवाद से पीछा छूटा नहीं कि दूसरा विवाद. गुरुवार को जेठमलानी ने ये कहकर बीजेपी को परेशान कर दिया कि भगवान राम बुरे पति थे, उन्होंने सीता के साथ अच्छा नहीं किया.
राम मंदिर बनाने का वादा करने वाली पार्टी के लिए राम जेठमलानी का ये बयान किसी सदमे से कम नहीं. जिस राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बताकर बीजेपी ने राजनीति की सबसे लंबी उड़ान भरी उन्हीं राम पर पार्टी के राम ने सवाल उठा दिया है. राम जेठमलानी ने एक बैठक में कहा राम भगवान चाहे जैसे हों लेकिन पति तो वो बेहद बुरे थे.

जेठमलानी ने कहा, 'राम बहुत बुरे पति थे. मैं उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करता. वो किसी मछुआरे के कहने पर सीता को वनवास कैसे दे सकते हैं.' राम जेठमलानी देश के दिग्गज वकील हैं और बीजेपी से राज्यसभा के सदस्य भी. लेकिन उनकी इस दलील पर बीजेपी परेशान हो उठी है कि रामराज में सीता के अधिकारों पर सबसे करारी चोट की गई थी. वो भी बिना किसी गवाह या सबूत के.

जेठमलानी के बयान को महिला संगठन पलकों पर सजा सकते हैं लेकिन बीजेपी की सियासत को ये नागवार गुजर सकता है. इतना नागवार कि उसे जवाब देने से पहले सौ बार सोचना पड़े.

राम जेठमलानी के विवादास्पद बयान पर प्रतिक्रिया आनी भी शुरू हो गई है. कांग्रेस नेता रशीद मसूद का कहना है कि इस बयान के लिए राम जेठमलानी को माफी मांगनी चाहिए.



और भी... http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/712613/Ram-was-a-bad-husband-says-Ram-Jethmalani.html


राम जेठमलानी ने शुक्रवार शाम को स्त्री-पुरुष संबंधों पर लिखी किताब के विमोचन पर कहा, 'राम बेहद बुरे पति थे। मैं उन्हें बिल्कुल ...बिल्कुल पसंद नहीं करता। कोई मछुवारों के कहने पर अपनी पत्नी को वनवास कैसे दे सकता है।'

जेठमलानी ने आगे कहा, 'लक्ष्मण तो और बुरे थे। लक्ष्मण की निगरानी में ही सीता का अपहरण हुआ और जब राम ने उन्हें सीता को ढूंढने के लिए कहा तो उन्होंने यह कहते हुए बहाना बना लिया कि वह उनकी भाभी थीं। उन्होंने कभी उनका चेहरा नहीं देखा, इसलिए वह उन्हें पहचान नहीं पाएंगे।' जेठमलानी के इस बयान पर अभी तक बीजेपी के किसी नेता की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

अब ताजा खबर यह है कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) के नेता अरविंद केजरीवाल अपने 'पोल खोल अभियान' को जारी रखते हुए दिवाली से पहले एक और धमाका करने जा रहे हैं। आईएसी के मुताबिक शुक्रवार को भ्रष्टाचार से जुड़ा एक बड़ा खुलासा किया जाएगा। आईएसी का यह चौथा खुलासा होगा। आईएसी के पिटारे में इस बार क्या है, इस पर सभी की निगाहें टिक गई हैं।आईएसी ने शुक्रवार दोपहर 1 बजकर 30 मिनट पर दिल्ली के प्रेस क्लब में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई है। आईएसी ने गुरुवार को मीडिया को इस बाबत एक संक्षिप्त जानकारी दी। बीते तीन खुलासों में आईएसी के निशाने पर राजनेता और उद्योगपति आ चुके हैं। इस बार अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में टीम किस पर तीर छोड़ेगी, इसे लेकर भी कयासों का दौर गर्म है।इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने पहली बार सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर खुलासा किया था। इसके बाद आईएसी के निशाने पर गडकरी आए। गडकरी के बाद आईएसी ने उद्योगपति मुकेश अंबानी और कांग्रेस-बीजेपी के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया।

तनिक इस पर भी गौर करें!

सिद्धू ने बिग बॉस छोड़ने का फैसला किया!

रिएलिटी शो बिग बॉस में एक महीना बिताने के बाद क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू शुक्रवार को बिग बॉस को अलविदा कह देंगे.

सिद्धू भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं और उनकी पत्नी का कहना है कि पार्टी चाहती है कि सिद्धू गुजरात चुनावों के दौरान प्रचार में हिस्सा लें.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने उनकी पत्नी नवजोत कौर के हवाले से बताया, ''कल तक मुझे इस बात का विश्वास था कि वो शो पर लंबे समय तक रहेंगे लेकिन आज मुझे पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी की ओर से फोन आया कि गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए पार्टी को सिद्धू की ज़रूरत है.''

गुजरात चुनाव

"कल तक मुझे इस बात का विश्वास था कि वो शो पर लंबे समय तक रहेंगे लेकिन आज मुझे पार्टी प्रमुख नितिन गडकरी की ओर से फोन आया कि गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए पार्टी को सिद्धू की ज़रूरत है."
नवजोत कौर सिद्धू

नवजोत कौर ने यह भी कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खासतौर पर आग्रह किया है कि उन्हें गुजरात चुनाव में सिद्धू की बेहद जरूरत है इसलिए वो जल्दी से जल्दी बिग बॉस से बाहर आ जाएं.

नवजोत कौर के मुताबिक गडकरी से बात करने के बाद उन्होंने टेलिविज़न चैनल से बात की और उन्हें उम्मीद है कि सिद्धू गुजरात प्रचार के लिए हामी भरेंगे.

नवजोत कौर के मुताबिक सिद्धू पार्टी से इजाज़त लेने के बाद ही बिग बॉस में गए थे.

चैनल के मुताबिक सिद्धू की पत्नी ने उनसे अनुरोध किया, इसके बाद उन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू से बातचीत की और उन्हें शो छोड़ने की इजाज़त दे दी गई.

नवजोत कौर के मुताबिक सिद्धू के लिए पार्टी की ज़िम्मेदारियां निजी चुनावों से बढ़कर है.
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/11/121108_siddhu_bigboss_election_campaign_pa.shtml


अब फिल्‍मों में भगवान के नाम को लेकर सियासत
रीमा पराशर/आजतक ब्यूरो | नई दिल्‍ली, 8 नवम्बर 2012 | अपडेटेड: 23:45 IST

फिल्मों में देवी देवताओं के इस्तेमाल के मुद्दे ने सियासी रंग ले लिया है. बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने फिल्म 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' में राधा के नाम के इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई है.
इससे पहले फिल्म 'ओ माइ गॉड' को लेकर भी विवाद हो चुका है. सवाल ये है कि फिल्मों में भगवान के नाम पर ऐतराज क्यों?

नई पीढ़ी झूम उठी थी 'स्टूडेंट ऑफ द इयर' इस गीत के बोल पर. इस लल्लन टॉप संगीत पर दीवानों की टांगों में पहले कंपन हुई थी और फिर टूटते चले गए थे कत्थक के मुहावरे. गीतकार ने द्वापर युग के आध्यात्मिक इतिहास से उद्धरण उठाए थे, सोचा था कि उसकी कल्पना का कमाल धमाल मचा देगा. आखिर धंधे का सवाल था. लेकिन उसे क्या पता था कि बवाल मच जाएगा. सियासत जो न कराए. राधा के इस कलियुगी रास में बीजेपी बवाली बास सूंघ रही है. वो कह रही है कि इस गीत नहीं है हिंदुत्व की गली का भारी गुनाह है.

ये लो, सारी सियासत हो गई अब बीजेपी की. घूस, घपला, भ्रष्टाचार, अत्याचार सबसे फुर्सत है अब ज्ञान शील एकता की नौजवानी पर खड़ी हुई पार्टी. लेकिन दूसरी बिना झंडे वाली में राधा का राग आग लगा रहा है.

वैसे श्री कृष्ण का आख्यान तो उदारता का आख्यान है. प्रेम की अंतहीनता व्याख्यान है. शर्तहीन संवेदना की सीमाहीनता का सम्मान है. राधा उनकी नायिका हैं. लेकिन द्वापर से कलियुग की यात्रा में बीजेपी ने इस चरित्र को एक नाम में समेटकर रख देना चाहती है.

इतना ही नहीं बीजेपी को तो ईश्वरीय आस्था के आयामों को खोलने से भी परहेज़ है. आप सिर्फ इतना कह सकते हैं ओह माई गॉड. बीजेपी कहती है कि राम, राधा, सीता, सावित्री इन सबको रामायण, महाभारत, दुर्गा सप्तशती और हनुमान चालीसा जैसे गल्प ग्रंथों तक ही रहने दो. खबरदार जो दुनियादारी में इसका इस्तेमाल किया.

वैसे बीजेपी ने ये साफ नहीं किया है कि कैकेयी, शूर्पनखा और मंथरा जैसी पात्रों के बारे में उसके विचार क्या हैं. वैसे ऐसा कतई नहीं है कि सुषमा स्वराज को नृत्य संगीत से कोई परहेज़ है. बात सिर्फ इतनी है कि थिरकना उनके लिए वर्जना चौहद्दी के अंदर की चीज है.

अब ये नहीं पता कि सनातन धर्म की दीवारें क्या इतनी खोखली हैं कि सरगम के धक्के से उसकी सियासत की चूलें चरमरा उठी हैं. ये भी पता होना बाकी है कि ये कवियों के लिए चुनौती है या चेतावनी. लेकिन रचनाशीलता के संसार का ये सनातन सत्य पूरी कायनात को पता है कि शर्तों के बंधन में संवेदना भी मर जाती है और संगीत भी.



और भी... http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/712614/Sushma-red-faced-over-Bollywood-films-for-hurting-Hindu-sentiments.html


फरीदाबाद, रविवार, 14 अक्टूबर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि हिन्दुत्व ही समस्त विश्व को एक सूत्र में पिरोने का मार्ग है और विविधता में एकता का आधार है।

यहां दशहरा मैदान में संघ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भागवत ने कहा कि चीन का आम आदमी भारत को अपना सांस्कृतिक गुरु मानता है, लेकिन चीन की सरकार का रवैया पूर्णतया साम्राज्यवादी एवं भारत विरोधी ही रहा है।

उन्होंने आरोप लगाया कि हमारे लिए दुनिया बाजार नहीं बल्कि हमारा कुटुंब है, लेकिन चीन की नीयत साफ नहीं है, उसने हमारी जमीन पर कब्जा किया हुआ है। तिब्बत को हड़प रखा है और हमारे कई क्षेत्रों में वह अपना अधिकार जताता है।

देश की सीमाओं का जिक्र करते हुये उन्होंने कहा कि हमारे देश की सीमायें सुरक्षित नहीं हैं। हमारी सीमाओं पर जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम आदि रास्तों से घुसपैठ हो रही है।

भागवत ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान के साथ बार-बार दोस्ती का हाथ बढ़ाए जाने के बावजूद वह देश में आतंकवादी भेज रहा है। सुरक्षा एजेंसियों एवं राज्यपालों की रिपोर्ट पर भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है, जिसकी वजह से असम में भयंकर हिंसा जैसे परिणाम सामने आते हैं।

संघ परिवार की गड़बड़ी हैं गडकरी
By प्रेम शुक्ल 07/11/2012 11:34:00

वह भी नवंबर का ही महीना था जब 1995 में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन मुंबई के रेसकोर्स पर आयोजित किया गया था। भाजपा और संघ परिवार के लोग प्रमोद महाजन को पता नहीं किस नजर से देखते हैं, पर 1990 के दशक की राजनीति को जिस किसी ने भी करीब से देखा होगा वह प्रमोद महाजन के भीतर कूट-कूट कर भरी गई 'शोमैन शिप' की गुणवत्ता को मानने से इनकार नहीं कर सकता। प्रमोद महाजन ने अधिवेशन स्थल का नामकरण 'यशोभूमि' किया था। महाजन विश्वास से लबरेज होकर अधिवेशन को सफल बनाने की तैयारियां कर रहे थे, पर संघ परिवार का एक खेमा महाजन की शोमैन स्टाइल के खिलाफ शोर मचाने पर आमादा था।
उन्हीं दिनों मोबाइल फोन नया-नया लांच हुआ था। प्रमोद महाजन ने किसी मोबाइल सर्विस ऑपरेटर कंपनी से समन्वय कर आयोजन से जुड़े प्रमुख पदाधिकारियों को मोबाइल सेट दिया था। संघ परिवार का बड़ा वर्ग महाजन के इस तकनीक प्रेम को संघवालों के त्यागी वृत्ति में भोगी का व्यभिचार सिद्ध कर रहे थे। महाजन ने किसी की परवाह नहीं की, उन्हें भाजपा के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी का पूर्ण समर्थन प्राप्त था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया तथा सरकार्यवाह हो.वे. शेषाद्री का पूर्ण विश्वास हासिल था। संघ के कुछ प्रचारक महाजन की शैली का विरोध कर रहे थे, पर पूरी पार्टी और परिवार एक सुर में साथ खड़ा था। उस अधिवेश में जो कुछ हुआ वह अगले एक दशक के लिए भाजपा का भाग्य बन गया। समझा जा रहा था कि उस अधिवेशन में आडवाणी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया जाएगा।
आडवाणी का त्याग: 1988 से 1995 के दौर में भाजपा में लालकृष्ण आडवाणी सर्वशक्तिमान नेता बनकर उभरे थे। सोमनाथ से मधेपुरा तक की उनकी रथयात्रा ने भारत की लोकसभा में पहली बार भाजपा को मुख्य विपक्षी दल का सम्मान दिलाया था। प्रमोद महाजन, गोविंदाचार्य, नरेंद्र मोदी, कल्याण सिंह, भैरोंसिंह शेखावत, वेंकैया नायडू जैसे भाजपा की दूसरी पंक्ति के तमाम नेता आडवाणी के प्रश्रय से ही राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आए थे। वाजपेयी अब तक संघ परिवार में सेकुलर साबित हो गए थे। 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी ढांचा ढहा तो दिल्ली की एक चौक सभा में उसे 'दुर्भाग्यपूर्ण' घोषित करने पर परिवार के कार्यकर्ता वाजपेयी पर अपना रोष सार्वजनिक कर चुके थे। पूरा संघ परिवार आडवाणी को 'लौहपुरुष' करार दे रहा था। मुख्यधारा की मीडिया कह रही थी कि संघ परिवार प्रधानमंत्री पद के लिए आडवाणी के अलावा किसी और नाम पर सहमत ही नहीं होगा। राष्ट्रीय अधिवेशन के आखिरी दिन स्वयं लालकृष्ण आडवाणी उठे और भावी प्रधानमंत्री पद के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का नाम प्रस्तावित कर दिया। उस समय संघ परिवार के आम कैडर ने इसे आडवाणी का त्यागी माना था और आडवाणी का राजनीतिक कद परिवार में ठोस हो गया था।
वाजपेयी का अग्निधर्मा 'हिन्दुत्व': 'यशोभूमि' का यह प्रस्ताव प्रथम स्वयंसेवक के प्रधानमंत्री पद के शपथ में रूपांतरित होता उसके पहले एक दिन मुंबई के संघ कार्यालय 'नवयुग निवास' में रज्जू भैया के इंटरव्यू का समय मिल गया। तमाम सवालों के बीच जब उनसे कट्टर हिंदुत्ववादी लालकृष्ण आडवाणी की बजाय उदारवादी अटल बिहारी वाजेपीय को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानने को संघ परिवार किस मजबूरी में राजी हुआ तो रज्जू भैया मेरे अज्ञान पर हंस पड़े और उलटे पूछा कि आपने यह निष्कर्ष किस आधार पर निकाल लिया कि आडवाणी कट्टरपंथी और वाजपेयी उदारवादी? मैंने उन्हें बाबरी कांड के बाद वाजपेयी के बयान और उस पर संघ परिवार की प्रतिक्रिया का हवाला दिया। उन्होंने नई दिल्ली के सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एक पर्चा मेरे हाथ में दे दिया और उस पर्चे पर छपी काव्य पंक्तियों को जोर से पढ़ने को कह दिया। वह पंक्तियां आज भी याद है-
'मैं वीर-पुत्र मेरी जननी के जगती में जौहर अपार
अकबर के पुत्रों से पूछा- क्या याद उन्हें मीना बाजार?
क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलनेवाली आग प्रखर?
जब हाय सहस्त्रों माताएं तिल-तिल जलकर हो गईं अमर
वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे संजोए हूं,
यदि कभी अचानक फूट पड़े, विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?'
आग लगा देने वाली इन पंक्तियों का रचयिता कौन है? क्या आप जानते हैं? रज्जू भैया के इस सवाल का मैं जवाब सोच भी पाता तब तक उन्होंने वह संकेत दे दिया जिससे न केवल उनके द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर मिल गया था बल्कि मेरे तमाम सवाल पलभर में हल हो गए थे। उन्होंने पूछा था जिस व्यक्ति ने हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान अपनी कविता में यह अग्निधर्मा प्रश्न पूछा हो क्या उसके 'हिंदुत्व' पर संदेह किया जा सकता है?
...और बुझ गई वाजपेयी के प्रज्वलंत राष्ट्रवाद की ज्वाला: साफ बात थी कि संघ परिवार का नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी के 'हिंदुत्व' के प्रति कहीं से सशंकित नहीं था। उसकी कार्य योजना में 1990 के दशक में आडवाणी की कट्टर छवि पेश करने और वाजपेयी की उदार छवि को सरकार गठन के सर्वस्वीकार्य चेहरे के रूप में उभारने की थी। तब आडवाणी के पास संगठन के समग्र सूत्र तथा वाजपेयी के साथ प्रमोद महाजन जैसों की एक टीम जोड़ दी गई थी जो सरकार संरचना के संसाधन जुटा सके। यह फॉर्मूला काम आया। आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे, जनाकृष्णमूर्ति, जे.पी. माथुर, सुंदर सिंह भंडारी, कल्याण सिंह आदि कट्टरवादी चेहरों के साथ-साथ वाजपेयी के साथ जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, जॉर्ज फर्नांडिस, राम जेठमलानी जैसों का एक उदारवादी धड़ा खड़ा हो गया था। जिसके चलते वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए रामविलास पासवान, चंद्रबाबू नायडू, शरद यादव, करुणानिधि, जयललिता, नवीन पटनायक आदि सेकुलर धड़े जुटाए जा सके। जिन वाजपेयी से 'हिंदुत्व' और राष्ट्रवाद के रक्षार्थ संघ परिवार ने पूरे 5 दशकों तक विप्लव की उम्मीद की थी वही वाजपेयी कंधार अपहरण कांड के बाद राष्ट्रवादियों को घुटने टेके नजर आए। जिस पल अमृतसर से अपहृत विमान को उड़ने का अवसर तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्रा ने दिला दिया उसी पल वाजपेयी के प्रज्वलंत राष्ट्रवाद की ज्वाला बुझ गई। उसी साल सरसंघचालक पद पर कुप. सुदर्शन आए और उन्होंने पहले ही इंटरव्यू में वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य पर वह आरोप दागा जो आरोप 12 साल बाद जब अरविंद केजरीवाल दोहरा रहे हैं तो नई पीढ़ी के भाजपाई विस्मित नजर आ रहे हैं।
चला संघ का 'सुदर्शन' चक्र: सुदर्शन नागपुर के रेशमबाग स्थित संघ मुख्यालय से 2000 से 2004 के बीच हर दिन भाजपा में वाजपेयीवाद के खात्मे का फरमान जारी करते थे। संघ के फरमान पर ही आडवाणी को वाजपेयी का उपप्रधानमंत्री बनाया गया। सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले पर परिवार की तीसरी पंक्ति के नेता बंगारू लक्ष्मण भाजपा अध्यक्ष नियुक्त हो गए। संघ के निर्देश पर जसवंत सिंह को वित्तमंत्री पद से हटाकर यशवंत सिन्हा को प्रभार सौंपा गया और गुरुमूर्ति देश का बजट ड्राफ्ट करने लगे। वाजपेयी सरकार के इसी कार्यकाल में संघ और भाजपा में सत्तोन्मुखी खींचतान बढ़ी। संघ ने 2004 का चुनाव आते-आते वाजपेयी को लगभग निवृत्त कर दिया। आडवाणी प्रधानमंत्री बनने की रिहर्सल पूरी कर पाते तब तक सरकार भाजपा से सरक कर सोनिया गांधी के आंचल में जा गिरी। पूरा राजनीतिक घटनाक्रम संघ परिवार के लिए अप्रत्याशित था। आडवाणी ने अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू, अनंत कुमार आदि नेताओं केा महत्व देकर खुद को वाजपेयी के उदारवादी चेहरे में फिट करने की कवायद शुरू कर दी। 2002 में गुजरात दंगों के बाद 'हिंदुत्व' के क्षितिज पर नरेंद्र मोदी का उदय हो चुका था। आडवाणी परंपरागत ढंग से गांधी नगर से लोकसभा पहुंच रहे थे सो उन्होंने मोदी को 'हिंदुत्व' के रथ पर चढ़ा खुद वाजपेयीब्रांड सत्ता के पुष्पक विमान पर चढ़ना तय किया। उनकी पाकिस्तान यात्रा में उनकी कृपा से 'टीम वाजपेयी' के लेखक रहे सुधींद्र कुलकर्णी ने मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर इतनी सेकुलर श्रद्धांजलि अर्पित करा दी कि रेशमबाग के भगवाध्वजधारी आडवाणी के सिर पर जिन्नावाद की हरी टोपी देखने लगे। फिर सुदर्शन के निर्देश तथा वाजपेयीवादी गुट की चाल से आडवाणी को अध्यक्ष पद के तीसरे कार्यकाल में जबरन हटा कर राजनाथ सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया।
दूसरी पंक्ति पर भाजपा का दारोमदार: 2005 की पहली तिमाही में मुंबई में भाजपा का रजत जयंती समारोह आयोजित हुआ। पूरे 9 साल बाद एक बार फिर बड़े आयोजन का जिम्मा प्रमोद महाजन पर था। आयोजन के संदर्भ में बांद्रा हिंदू एसोसिएशन के हॉल में एक पदाधिकारी बैठक आहुत थी। जैसे ही महाजन वहां पहुंचे 'हिंदू एसोसिएशन' के पदाधिकारियों ने अपनी संस्था के वार्षिकोत्सव का प्रारू दिखाकर उस कार्यक्रम के लिए वाजपेयी अथवा आडवाणी को लाने की विनती की। महाजन ने उन सबको लगभग फटकारते हुए कहा- 'अरे हम लोगों को इन सबकी जगह कब बुलाओगे?' महाजन उस समय समग्र पात्रता के बावजूद अध्यक्ष पद की रेस में अपने जूनियर राजनाथ सिंह से पिछड़ने पर खफा थे। उनसे मैंने पूछा कि 'आप पर संघ परिवार नाराज क्यों रहता है?' उनका जवाब था- 'समझ का फेर है। 1995 में जब मैं पदाधिकारियों को मोबाइल फोन दे रहा था तब संघ वाले इसे मेरा विचारों से समझौता करार दे रहे थे, आज (2005 में) संघ का ऐसा एक पदाधिकारी नहीं जो खुद मोबाइल न रखता हो।' रजत जयंती समारोह की समापन सभा शिवाजी पार्क में हुई। वाजपेयी के राजनीतिक जीवनकाल की वह आखिरी विशाल सभा रही। जिसमें वाजपेयी ने आडवाणी को भाजपा का नया 'राम' और प्रमोद महाजन को 'लक्ष्मण' कहा था। राजनाथ सिंह नए अध्यक्ष घोषित हो चुके थे, पर महाजन ने मुंबई में उनके स्वागत में एक बैनर नहीं लगने दिया था। दुर्भाग्यवश कुछ माह बाद भाजपा का 'लक्ष्मण' एक अप्रत्याशित घटना में मारा गया। संघ और आडवाणी के रिश्तों में सुधार नहीं आया। महाजन के दिवंगत होते ही केंद्रीय भाजपा में आडवाणी की चौकड़ी बनाम राजनाथ सिंह एवं संघ परिवार में अनबन बढ़ती गई। फिर सरसंघचालक कुप. सुदर्शन की जगह मोहनराव भागवत बन गए।
गडकरी और गड़बड़ी: 2009 का लोकसभा चुनाव हारते ही आडवाणी को रिटायर करने पर संघ आमादा हो गया। भाजपा को गुटमुक्त करने की योजना के तहत भागवत के संकेत पर महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व पा गए। गडकरी नागपुर के सत्ता समीकरण के समग्र समर्थन के बावजूद नई दिल्ली की भाजपा सत्ता प्रणाली में बाहरी बने रहे। आडवाणी लोकसभा और राज्यसभा के प्रतिपक्ष के नेता अपनी मर्जी का बैठा ले गए। गडकरी केंद्र में बैठ भले गए पर न तो केंद्रीय नेता और न ही प्रादेशिक क्षत्रप उनके नेतृत्व को स्वीकार पाए। कर्नाटक गए तो वहां येदियुरप्पा-अनंत कुमार में वह चयन नहीं कर पाए। यूपी में राजनाथ-कलराज-टंडन तिकड़ी का तिलिस्म उनकी समझ से परे रहा। उत्तराखंड में जब तक वे रमेश पोखरियाल को बदलते तब तक सरकार का पतन सुनिश्चित हो चुका था। झारखंड में सरकार भी बनवाई तो अजय संचेती की सरकार गठन में भूमिका ने सवाल खड़े कर दिए। गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, बिहार जहां भी भाजपा सत्ता में है प्रादेशिक क्षत्रप उनके नेतृत्व कौशल को बौना सिद्ध करता रहा। गोवा जैसे छोटे राज्य का मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर भी गडकरी को सुनने को राजी नहीं। गृह प्रदेश में गोपीनाथ मुंडे की मुंडी जब भी टेढ़ी हुई गडकरी के फैसले का शीर्षासन हुआ।
...और अब गडकरी की कंपनी पूर्ति समूह के दस्तावेजों को उनकी पार्टी के लोगों ने मीडिया को आपूर्ति कर दी। 1995 से 2012 के इन 17 वर्षों में भाजपा में क्या बदला है? तब संघ नेतृत्व और भाजपा नेतृत्व दिल्ली से गल्ली तक एक ही सुर में बोलता था। अब नागपुर से नई दिल्ली तक ऐसी कोई गल्ली नहीं बची जब संघ परिवार का सुर एक हो और जहां उसका कदमताल बिगड़ा न हो। तब वाजपेयी के 'हिंदुत्व' पर संघ के सत्ताधीशों को रंचमात्र भी संदेह नहीं था। आडवाणी और वाजपेयी का नेतृत्व और कृतित्व संदेह के दायरे से परे था। आज 'हिंदुत्व' के ताजे ब्रांड नरेंद्र मोदी पर संघ परिवार को विश्वास नहीं और संगठन के सूत्रधार नितिन गडकरी की ईमानदारी पर मोहनराव के प्रमाणपत्र की प्रामाणिकता पर भी संदेह प्रकट हो रहा है। क्या सत्य परिस्थितियों का समग्र मूल्यांकन पूरे परिवार के लिए अनिवार्य नहीं?
http://visfot.com/index.php/current-affairs/7629-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%98-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%97%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%97%E0%A4%A1%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80.html


हिन्दू राष्ट्रवाद:भाजपा के लिए 'अवसरवाद'

अरुण जेटली और अमरीकी राजनयिक राबर्ट ब्लेक के बीच ये बातचीत साल 2005 में हुई थी.

अंग्रेज़ी अख़बार हिंदू में छपे विकीलीक्स के ताज़ा दस्तावेज़ो के मुताबिक़ भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली मानते हैं कि हिंदू राष्ट्रवाद उनकी पार्टी के लिए अवसरवादिता का मुद्दा है.

हालांकि अरूण जेटली ने इसपर अपनी सफाई देते हुए कहा है कि उन्होंने अपनी बातचीत में अवसरवादिता शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था.

भाजपा ने कहा है कि हो सकता है कि इस शब्द का इस्तेमाल अमरीकी राजनयिक ने किया हो.

विकीलीक्स के मुताबिक जेटली ने ये बयान अमरीका के दिल्ली दूतावास के कुछ अधिकारियों के साथ अपनी बातचीत के दौरान कहा था.

लेख में ये भी कहा गया है कि पार्टी नेता ने ये भी कहा था कि "हिन्दू राष्ट्रवाद भारतीय जनता पार्टी के हमेशा एक मुद्दा बना रहेगा."

ये दस्तावेज़ छह मई 2005 को अरुण जेटली की अमरीकी राजनयिक रॉबर्ट ब्लेक के साथ को हुई बातचीत पर आधारित है.

उदाहरण के तौर पर पूर्वोत्तर भारत में हिन्दूत्व का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योकि वहाँ की जनता बांग्लादेश से आने वाले मुसलमान घूसपैठियो को लेकर चिंतित है.
अरुण जेटली, विकीलीक्स में छपे बयान
दस्तावेज़ के मुताबिक़ अरुण जेटली ने इस संबंध में उहादरण भी दिए थे जिसमें उन्होंने कहा था कि "उदाहरण के तौर पर पूर्वोत्तर भारत में हिन्दूत्व का मुद्दा काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योकि वहाँ के लोग बांग्लादेशी मुसलमान घूसपैठियों को लेकर चिंतित हैं."

अरुण जेटली ने माना कि भारत-पाक के सुधरे रिश्तों की बदौलत हिन्दू राष्ट्रवाद का मूद्दा कुछ धीमा पड़ा है लेकिन साथ ही उनका कहना था कि ये स्थिति सीमा पार से एक आतंकवादी हमले के साथ ही बदल सकती है.

अरुण जेटली से बातचीत के बाद अमरीकी राजनयिक रॉबर्ट ब्लेक अपने आंकलन मे लिखते है, "इससे लगता है कि जेटली के आर एस एस के साथ संबंध बहुत गहरे नहीं हैं और उनके लिए भाजपा के कार्यकर्ताओं को संगठित कर पाना आसान नहीं होगा."

अरुण जेटली ने बड़े शांत स्वभाव से कहा कि लाल कृष्ण आड़वाणी अगले दो-तीन साल तक पार्टी का नेतृत्व करेगें और उसके बाद अगली पीढी के पाँच नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू होगी.

माना जाता है कि पार्टी के इन नए नेताओं में एक वो ख़ुद भी हैं.

नरेन्द्र मोदी को अमरीकी वीज़ा ना दिए जाने के मुद्दे पर शिकायत करते हुए अरुण जेटली ने कहा कि जिस पार्टी ने अमरीका- भारत के रिश्ते को मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाई उसके एक नेता के खिलाफ़ अमरीका का रवैया उनकी समझ से परे है.

जब रोबर्ट ब्लेक ने इस फ़ैसले के पीछे की वजहो और क़ानूनी तर्कों का हवाला दिया तो अरुण जेटली ने माना कि नरेन्द्र मोदी की छवि ध्रुर्वीकरण करने वाली है.

अरुण जेटली की सलाह थी कि नरेन्द्र मोदी को वीज़ा दे दिया जाना चाहिए था. ऐसा करने पर कुछ लोग अमरीका में नरेन्द्र मोदी का विरोध करते और बात खत्म हो जाती.

इस संदेश के अंत में आंकलन करते हुए राबर्ट ब्लेक लिखते है "अरुण जेटली नरेन्द्र मोदी को वीज़ा ना दिए जाने से आहत है लेकिन उन्होंने काफ़ी खुले मन से बातचीत की. वो अमरीका के साथ व्यापारिक और निजी रिश्तों का सम्मान करते हैं. आगे जैसे भी भाजपा में नेतृत्व के लिए होड़ होगी तो अरुण जेटली के टेलीवीज़न पर सुंदर दिखनेवाले चेहरे और दिल्ली की राजनीति पर मज़बूत पकड़ का उन्हें फायदा होगा."
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/03/110326_wiki_arun_jetly_pn.shtml

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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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