मानवता और लोकतंत्र के अपराधी छुट्टा साँड़ और बेचारी जनता काली भैंस, यही है इस देश में कानून का राज!
इस धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का कमाल है कि पक्ष विपक्ष दोनों असमानता और अन्याय, भेदभाव और अस्पृश्यता, दमन और उत्पीड़न की मनुस्मृति व्यवस्था के धारक वाहक हैं, खुले बाजार के कारपोरेट राज के प्रति तन मन से प्रतिबद्ध है। राष्ट्रपति भवन हिंदुत्व का कारपोरेट आराधनास्थल है और जाति पर आधारित समाजव्यवस्था के विनाश के बजाय उसे मजबूत करने के खेल में कारपोरेट खुला बाजार के अश्वमेध यज्ञ में हजारों जातियों और संप्रदायों, क्षेत्रीय पहचान में बंटी जनता के प्रतिनिधि राजनेता इसी जातीय पहचान के जरिये धर्म राष्ट्रवाद के एजंडे को ही कामयाब बनाने में लगे हुए हैं, धर्मराष्ट्रवाद के विरुद्ध जिहाद के बहाने।गुजरात के तेल भंडार के बंदरबांट के मामले से साफ जाहिर है कि अनुसूचितों को हिंदुत्व की पैदल सेना बनाकर प्रकृतिक संसाधनों की खुली लूट कैसे चल रही है इस देश में! बेदखली के जाति समीकरण को भूल जाये,फर्जी भूमिसुधार, समाजवाद, लोककल्याण और समाज में नकदी का प्रवाह बढ़ाकर उपभोक्ता संस्कृति के जरिये बाजार को सर्वव्यापी बनाने का खेल तो अलग है ही।दो दिसंबर को देश नें आंखों में भरकर पानी भोपाल गैस त्रासदी पर रोने पीटने की रस्म अदायगी कर ली तो आज ६ दिसंबर को देश के तथाकथिक धर्मनिरपेक्ष चरित्र के विचलन पर लानत सलामत हो गयी। बुनियादी सवाल यह है कि अगर इस देश में न्याय व्यवस्था है, संविधान है, दंड संहिता है तो अपराधियों को सजा मिलने के बजाय उनका महिमामंडन क्यों हो रहा है? हालत तो यह है कि जो कसाब से भी बड़े आतंकवादी है,वे हमरे धर्मावतार हैं और हम उनके प्रति समर्पित हैं।देश की व्यवस्था की बागडोर भी उन्ही पुम्य हाथों में। वे हमारे सांस्कृतिक गौरव के मर्यादापुरुष और स्त्रियां हैं।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
मानवता और लोकतंत्र के अपराधी छुट्टा साँड़ और बेचारी जनता काली भैंस, यही है इस देश में कानून का राज!
मुंबई हमले में पाकिस्तानी अभियुक्त कसाब को फांसी पर चढ़ाने का क्षण हिंदुत्व राष्ट्रीयता और अंध देशभक्ति का चरमोत्तेजक उत्सव बनकर दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के लिए बेहद जरुरी उग्रतम धर्म राष्ट्रवाद का आवाहन बन गया। दावा किया जाता रहा कि देश में कानून का राज है, तभी न कसाब जैसे खतरनाक आतंकवादी को राष्ट्र ने फांसी देने में कामयाबी हासिल की। लेकिन १९८४ के सिख नरसंहार, १९७८ के मरीचझांपी नरसंहार,गुजरात नरसंहार, भोपाल गैस त्रासदी, बाबरी ध्वंस और उसके सिलसेले में देशव्यापी दंगों, मध्य भारत में जल जंगल जमीन नागरिकता और आजीविका से बेदखल आदिवासियों के विरुद्ध सलवाजुड़ुम और सतत युद्ध, कश्मीर और ममिपुर समेत समूचे पूर्वोत्तर में मानवाधिकार के हनन, दलित उत्पीड़न और अस्पृश्यता के मामलों में मानवता और लोकतंत्र के विरुद्ध, प्रकृति और प्रकृति से जुड़े समुदायों के विरुद्ध अपराध के अभियुक्त न सिर्फ छुट्टा साँड़ की तरह खुल्ला घूम रहे हैं, बल्कि दरहकीकत वे ही इस देश के भाग्यविधाता बने हुए हैं।इन मामलों की सुनवाई अनंतकाल तक जारी रहेगी, पर सजा किसी को नहीं होनी है।
इस धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का कमाल है कि पक्ष विपक्ष दोनों असमानता और अन्याय, भेदभाव और अस्पृश्यता, दमन और उत्पीड़न की मनुस्मृति व्यवस्था के धारक वाहक हैं, खुले बाजार के कारपोरेट राज के प्रति तन मन से प्रतिबद्ध है। राष्ट्रपति भवन हिंदुत्व का कारपोरेट आराधनास्थल है और जाति पर आधारित समाजव्यवस्था के विनाश के बजाय उसे मजबूत करने के खेल में कारपोरेट खुला बाजार के अश्वमेध यज्ञ में हजारों जातियों और संप्रदायों, क्षेत्रीय पहचान में बंटी जनता के प्रतिनिधि राजनेता इसी जातीय पहचान के जरिये धर्म राष्ट्रवाद के एजंडे को ही कामयाब बनाने में लगे हुए हैं, धर्मराष्ट्रवाद के विरुद्ध जिहाद के बहाने।गुजरात के तेल भंडार के बंदरबांट के मामले से साफ जाहिर है कि अनुसूचितों को हिंदुत्व की पैदल सेना बनाकर प्रकृतिक संसाधनों की खुली लूट कैसे चल रही है इस देश में! बेदखली के जाति समीकरण को भूल जाये,फर्जी भूमिसुधार, समाजवाद, लोककल्याण और समाज में नकदी का प्रवाह बढ़ाकर उपभोक्ता संस्कृति के जरिये बाजार को सर्वव्यापी बनाने का खेल तो अलग है ही।दो दिसंबर को देश नें आंखों में भरकर पानी भोपाल गैस त्रासदी पर रोने पीटने की रस्म अदायगी कर ली तो आज ६ दिसंबर को देश के तथाकथिक धर्मनिरपेक्ष चरित्र के विचलन पर लानत सलामत हो गयी। बुनियादी सवाल यह है कि अगर इस देश में न्याय व्यवस्था है, संविधान है, दंड संहिता है तो अपराधियों को सजा मिलने के बजाय उनका महिमामंडन क्यों हो रहा है? हालत तो यह है कि जो कसाब से भी बड़े आतंकवादी है,वे हमरे धर्मावतार हैं और हम उनके प्रति समर्पित हैं।देश की व्यवस्था की बागडोर भी उन्ही पुम्य हाथों में। वे हमारे सांस्कृतिक गौरव के मर्यादापुरुष और स्त्रियां हैं।विवादित ढांचा गिराए जाने से पूर्व अखबारों में प्रशासन के दावे हर दिन छप रहे थे कि अयोध्या में माहौल नियंत्रण में है, चिंता की कोई बात नहीं है, राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद ढाचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। इन सभी दावों के बावजूद छह दिसंबर, 1992 को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का ढाचा गिरा दिया गया।आजादी के बाद इसे देश का सबसे अहम और संवेदनशील मुद्दा माना जाता है। विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और भाजपा को इसके लिए जिम्मेदार माना जाता है। इन संगठनों से संबंधित कई नामचीन चेहरों ने विध्वंस की इस प्रक्रिया में महत्वूर्ण भूमिका निभाई थी।
बाबरी मस्जिद विवाद आजाद भारत का सबसे बड़ा विवाद है, जिसे आज तक पूरी तरह से हल नहीं किया जा सका है। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादित ढाचे को करीब डेढ़ लाख लोगों की भीड़ ने गिरा दिया था। इसके बाद देश में कई जगहों पर दंगे भड़क गए जिनमें दो हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इन दंगों की याद आज भी कई दिलों में ताजा है।लोकसभा में गुरुवार को बाबरी मस्जिद विध्वंस का मुद्दा उठा। वामपंथी दलों तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने केंद्र सरकार पर 20 साल पहले हुए बाबरी विध्वंस के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाते हुए हंगामा किया, जिसके कारण सदन की कार्यवाही बाधित हुई।सदन की कार्यवाही पूर्वाह्न् 11 बजे शुरू हुई। लेकिन हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे तक और फिर दो बजे तक स्थगित कर दी गई।मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन पार्टी के असदुद्दीन ओवैसी, बसपा के एक सांसद और वामपंथी दलों के सदस्यों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। उन्होंने छह दिसम्बर, 1992 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 16वीं सदी की मस्जिद को तोड़ने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए सरकार पर हमले किए।जवाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिवसेना के सदस्य भी अपनी सीट पर खड़े होकर बसपा, वामपंथी दलों के विरोध में नारेबाजी करने लगे।लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने सांसदों से शांत होने की अपील की, लेकिन हंगामा जारी रहा। इसके बाद उन्होंने सदन की कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे तक और उसके बाद दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी।दो बजे सदन की बैठक शुरू होते ही भाजपा सदस्य कसम राम की खाएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे नारे लगाने लगे। उधर, सपा और बसपा सदस्य भी अपने स्थान पर खड़े होकर भाजपा सदस्यों की नारेबाजी का विरोध करने लगे।इसी बीच उपाध्यक्ष करिया मुंडा ने नियम 377 के तहत मामले सदन के पटल पर रखवाए और विधायी कामकाज शुरू करवाने का प्रयास किया। उन्होंने वित्त मंत्री पी चिदम्बरम को प्रतिभूति हित का प्रवर्तन और ऋण वसूली विधि (संशोधन) विधेयक 2011 पेश करने को कहा। चिदम्बरम विधेयक पेश करने के लिए खड़े ही हुए थे कि भाजपा और सपा के सदस्य आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करने लगे।हंगामा बढ़ता देख उपाध्यक्ष ने बैठक कुछ ही देर बाद कल तक के लिए स्थगित कर दी।
बाबरी मस्जिद ढहाये जाने की 20वीं बरसी के ठीक पहले अयोध्या और फैजाबाद में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है तथा कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को संभालने के लिए करीब 10 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। राज्य पुलिस, त्वरित कार्रवाई बल (आरएएफ) और पीएसी के जवान सभी प्रमुख स्थानों पर तैनात किए गए हैं। इसके अलावा पीएसी की एक कंपनी 24 घंटे सरयू नदी की सुरक्षा कर रही है ताकि असामाजिक तत्वों को नदी के रास्ते आने से रोका जा सके। अयोध्या में विवादास्पद ढांचा गिराए जाने की 20वीं बरसी पर आज कड़ी सुरक्षा के बीच अयोध्या फैजाबाद में जहां मुस्लिम संगठनों ने काला दिवस मनाया वहीं हिन्दू संगठनो ने शौर्य दिवस मनाते हुए मंदिर निर्माण का संकल्प लिया।
अयोध्या फैजाबाद युग्म नगरों में मुस्लिम समुदाय से जुड़े व्यवासायिक प्रतिष्ठान बंद रहे, वही मस्जिदों पर काले काले झण्डे लगाकर विरोध जताया गया, जबकि कारसेवक पुरम में विश्व हिन्दू परिषद के लोगों ने हनुमान चालीसा का पाठ कर राम मंदिर के भव्य निर्माण का संकल्प व्यक्त किया।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि अयोध्या फैजाबाद में जन जीवन पूरी तरह सामान्य है और दोनों समुदाय के लोगों ने अपने अपने अंदाज में विरोध और शौर्य दिवस शांतिपूर्ण ढंग से मनाया, जबकि दोनो शहरों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम सुनिश्चित किये गये।
विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा ने बताया कि आज अयोध्या के कारसेवकपुरम में दोपहर मंहत नृत्यगोपाल दास की अध्यक्षता में 'धर्म जागृति सम्मेलन' का आयोजन किया गया है। जिसमें डा. राम विलास दास वेदांती, मंहत सुरेश दास एवं सियाकिशोरी शरण सहित कई प्रमुख धर्माचार्यों ने सम्मेलन में भव्य राम मंदिर निर्माण का संकल्प दोहराया । सम्मेलन के दौरान यह तय किया गया कि राम मंदिर निर्माण के बारे में इलाहाबाद में महाकुंभ के दौरान होने वाले धर्म सम्मेलन में विस्तार से चर्चा की जायेगी।
सम्मेलन में महंत नृत्य गोपालदास ने कहा कि राम भक्तों ने मस्जिद को नहीं गिराया । अगले वर्ष जनवरी में होने वाले महाकुंभ में मंदिर निर्माण की तिथि घोषित की जायेगी। बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के एक प्रमुख याची हाशिम अंसारी ने बताया कि हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी अपनी तरफ से विरोध और शौर्य दिवस मना रहे है लेकिन दोनो समुदायों के बीच किसी प्रकार की कोई कटुता अथवा तनाव जैसी कोई बात नहीं है।
अंसारी ने कहा कि बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर राजनैतिक खेल तो चल ही रहा है मगर हिन्दू मुस्लिम दोनो समुदाय से जुडे लोग शांति और अमन चाहते हैं और कहा कि दोनो ही समुदाय के लोगों को इस विवादित मुद्दे पर चल रही न्यायिक प्रक्रिया पर पूरा भरोसा है।
दरअसल ये मुद्दे और मामले अपने अपने वोटबैंक साधने की कवायद के अलावा कुछ नहीं है। न कारपोरेट राज के किलाफ और न धर्म राष्ट्रवाद के खिलाफ सामाजिक और उत्पादक शक्तियों को एकजुट करने में धर्मनिरपेक्ष क्षेत्रीय क्षत्रप, मूलनिवासी अस्मिता के झंडेवरदार, रंग बिरंगे वामपंथी, सत्तापरस्त समाजवादी और अंबेडकर के स्वयंभू अनुयायी कुछ बी करने को तैयार नहीं है। जुबानी जमाखर्च से नकद भुगतान हो जाये तो श्रम की क्या जरुरत बहुजन बहुजन चिल्लाने वाले लोग ही हबहुजनसमाज के नाम पर कमा खा रहे हैं, संतों महापुरुषों का अखंड जाप कर रहे हैं, बिना आयकर रिटर्न भरे ,बिना हिसाब किताब दिये, संगठनों और संसाधनों पर तानाशाही दखलदारी से सत्ता की मलाई काते हुए बहुजन समाज के चौतरफा सर्वनाश का चाकचौबंद इंतजाम कर रहे हैं।अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के काले दिन को बीते 20 साल पूरे हो गए। इन दो दशकों में सरयू नदी में काफी जल प्रवाहित हो चुका है। लेकिन न नदी का प्रवाह न समय का प्रवाह बाबरी विध्वंस के जख्मों को अपने साथ बहा ले जाने में सफल हुआ है। हिंदुस्तान का अलग-अलग तबका इस घटना को अपने-अपने नजरिए से याद कर रहा है। मोबाइल-फेसबुक युग में जीती आज की युवा पीढ़ी वैज्ञानिक प्रगति का भरपूर लाभ ले रही है, लेकिन उसकी सोच भी पूरी तरह वैज्ञानिक और धर्मनिरपेक्ष है, ऐसा भ्रम न पालना ही सही होगा।अयोध्या विवाद को दो दशक बीत गए हैं। इन दो दशकों में भारत में हुए राजनीतिक और सामाजिक बदलाव आज सभी के सामने हैं। अयोध्या मामले को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार में आने के बाद इस मसले पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी, लिहाजा ज्यादा नहीं चल सकी।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 जनवरी २०१२ को कहा कि बाबरी विध्वंस महज एक घटना है। इसमें विख्यात या कुख्यात जैसा कुछ भी नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की उस अर्जी पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे समेत 21 लोगों पर इस मामले में आपराधिक षडयंत्र का मुकदमा फिर चलाए जाने की मांग की गई है।
अदालत की कार्यवाही शुरू होते ही अतिरिक्त महाधिवक्ता ने पीठ से कहा, 'यह मामला मशहूर बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़ा है।' इस पर जस्टिस एचएल दत्तू और सीके प्रसाद की पीठ ने कहा, 'इसमें मशहूर जैसा क्या है? यह एक घटना थी और इससे संबंधित पक्ष हमारे सामने हैं। यह विख्यात या कुख्यात नहीं है।' यह बताए जाने पर कि कुछ पक्षकारों ने अभी अपने जवाब दाखिल नहीं किए हैं, पीठ ने सुनवाई 27 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी।कोर्ट ने सीबीआई की अर्जी पर पिछले साल 4 मार्च को आडवाणी, ठाकरे, कल्याण सिंह, उमा भारती, अशोक सिंहल और विनय कटियार समेत 21 लोगों को नोटिस जारी किए थे। नोटिस में कहा गया था कि बाबरी विध्वंस मामले में आपके खिलाफ आपराधिक षडयंत्र का मामला फिर से क्यों न शुरू किया जाए?कोर्ट ने 21 मई, 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली सीबीआई की अपील पर ये नोटिस जारी किए थे। हाई कोर्ट ने इन सभी के खिलाफ आरोप खारिज करने के विशेष अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।
भाजपा के एजेंडे में कभी सबसे ऊपर दिखाई देने वाला अयोध्या मामला अब या तो उनके एजेंडे में दिखाई ही नहीं देता है और अगर देता भी है तो वह सबसे आखिर में होता है। वहीं इस मामले पर हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद इस मसले पर सामाजिक दायरा भी पूरी तरह से बदल गया है। वह हिंदू जो कभी अयोध्या में कारसेवा के नाम पर खड़ा हो जाता है वह आज इस मुद्दे पर भड़कता नहीं है।हालाकि अति विवादित इस घटना के इतने वर्ष बीतने के बाद जो सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने में बदलाव आया है उसमें बहुत बड़ी भूमिका आधुनिक सूचना एवं संचार माध्यमों का भी है।
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए कहा है कि बाबरी मस्जिद को लेकर कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में कही गई बातें अदालत की अवमानना हैं और भाजपा इस मुद्दे पर कानूनी सलाह लेकर कार्यवाही करेगी।
गडकरी ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के आदेश से स्पष्ट है कि जिस जगह रामलला विराजमान हैं वह राम जन्मभूमि ही है। इसके बावजूद कांग्रेस उसे बाबरी मस्जिद बता रही है जो अदालत की अवमानना है।
उन्होंने कहा कि अदालत ने राम जन्मभूमि के बारे में स्पष्ट मत रखा है और अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। गडकरी ने कहा कि राम जन्मभूमि परिसर को विवादित स्थल का नाम देकर और उसकी सुरक्षा की बात करके कांग्रेस ने न्यायालय का अपमान किया है और यह अदालत की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की यह बात अदालत की अवमानना है और हम इस सिलसिले में कानूनी राय लेकर कार्रवाई करेंगे।
भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि भगवान राम पूरे देश की अखंडता का प्रतीक हैं, यह किसी हिंदू या मुस्लिम से जुड़ा मामला नहीं है। भाजपा की दृष्टि में अयोध्या में सभी वर्गो के सहयोग से भव्य राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। यह पूरे देश के लोगों की इच्छा है।
गौरतलब है कि कांग्रेस ने मंगलवार को जारी अपने चुनाव घोषणापत्र में कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद के न्यायसंगत समाधान की पैरवी की जाएगी। सभी दलों को अदालत के फैसले का पालन करना होगा।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद की विवादास्पद जमीन का एक इंच हिस्सा भी मुस्लिम समुदाय नहीं छोड़ेगा, यह कहना है सांसद असादुद्दीन अवेसी का। मजलिस-ए-इतेहादुल-मुस्लिमीन के अध्यक्ष अवेसी ने कहा कि बाबरी मस्जिद मामले में मुस्लिमों को प्रत्येक कदम पर धोखा दिया गया है, हमें लगता है कि देश की कानून व्यवस्था व शांति बनाए रखने लिए न्याय किया जाना चाहिए। ओवेसी आगामी 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की 20वीं सालगिरह के पहले रविवार की रात एमआइएम के मुख्यालय दारुसलेम में यूनाइटेड मुस्लिम एक्शन कमेटी की बैठक को संबोधित कर रहे थे। हैदराबाद के इस सांसद ने मुस्लिमों को सलाह दी की उन्हें कानूनी लड़ाई में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइॉएमपीएलबी) की सफलता के लिए दुआ करनी चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा गत 30 सितंबर वर्ष 2010 में सुनाए गए फैसले के खिलाफ एआइएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। पीठ ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को हिंदू-मुस्लिम में तीन हिस्सों में बांट दिया था। इसमें एक हिस्सा मुस्लिमों के पास है जबकि दो हिस्से हिंदू संगठनों को मिले हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण से सांठगांठ कर सांप्रदायिक शक्तियों ने विरासत संरक्षण नियमों का उलंघन करते हुए मंदिर का निर्माण कराया। यूनाइटेड मुस्लिम एक्शन कमेटी के संयोजक अब्दुल रहीम कुरैशी ने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस कर न्याय व धर्मनिरपेक्षता की हत्या की गई। मुस्लिम इसे कभी नहीं भूल सकते। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याल के प्रोफेसर व एआइएमपीएलबी के सचिव शकील समदानी ने कहा कि 6 दिसंबर,1992 की घटना ने देश के मुस्लिमों का दिल तोड़ दिया।
1992 में जय श्री राम की गूंज जहा कहीं भी सुनाई पड़ रही थी, टेलीविजन व रेडियो ने इसे कैद किया था। लेकिन 2010 में जब इस मामले पर वकील प्रेस को संबोधित कर रहे थे व मुकदमा जीतने की बाबत श्रेय का दावा कर रहे थे, उस दौरान कुछ लोगों के जय श्री राम के नारे लगाने को भी टीवी चैनलों ने इसे तवज्जो नहीं दी।
विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद से धार्मिक संस्थानों को फंड मुहैया कराने का मामला जाच के दायरे में है और इसमें मदरसा समेत अन्य संस्थान भी जाच के दायरे में शामिल है। 1992 के इस घटना के दौरान निश्चित तौर पर समय व वातावरण अलग था और आज इस घटना को लेकर सोच अलग बनी हैं। विश्व हिंदू परिषद आज महसूस करती है कि सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा की अगुआई वाली सरकार वैसा कुछ भी नहीं कर पाई जो वह कर सकती थी। वहीं, राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि आज के दौर में हिंदू ध्रुवीकरण का एक प्रमुख हिस्सा सामान्य तौर पर अशक्त हो रहा है।
वर्ष 2002 में जब बाबरी मस्जिद विध्वंस की दसवीं बरसी थी, लोगों ने गुजरात में गोधरा कांड का दंश झेला। इस साल (वर्ष 2012) बाबरी विध्वंस के बीस साल पूरे हो रहे हैं। अयोध्या और फैजाबाद के बुद्धिजीवियों का कहना है कि बाबरी विध्वंस जैसा माहौल बन रहा है। बीस साल बाद फैजाबाद में एक पीढ़ी जवान हो चुकी है जिसे मंदिर और मस्जिद से कुछ खास मतलब नहीं है। इसी पीढ़ी में दोबारा मंदिर और मस्जिद का मतलब भरने के लिए फैजाबाद में दंगा ''कराया'' गया। सांप्रदायिकता की इस जमीन को बनाने के लिए एक बार फिर से मस्जिद और मंदिर निर्माण का सहारा लिया गया है।
इसी साल रमजान के दूसरे दिन फैजाबाद के कैंटोमेंट थाना क्षेत्र के एक गांव की मस्जिद के बगल गैरकानूनी निर्माण की कोशिश की गई। गैरकानूनी निर्माण की यह कोशिश व्यक्तिगत थी, पर सांप्रदायिक संगठनों ने जोर शोर से उठाया। इसके बाद से उक्त जगह पर जुलाई से लेकर अभी तक पीएसी की एक कंपनी तैनात है। मीडिया को न तो वहां फोटो खींचने दी जा रही है, और न ही किसी ग्रामीण को बयान देने दिया जा रहा है। यही स्थिति फिलवक्त अयोध्या में विवादित स्थल पर है।
प्रदेश के आईजी कानून व्यवस्था बद्री प्रसाद सिंह ने बताया कि 6 दिसंबर को ध्यान में रखते हुए फैजाबाद को चार जोन और 14 सेक्टर में बांटा गया है, यहां पर्याप्त संख्या में पुलिस बल उपलब्ध है। इसमें करीब 12 कंपनी पीएसी भी है। यही नहीं किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए लखनऊ में 10 कंपनी पीएसी रखी गई है।
फैजाबाद के वरिष्ठ रंगकर्मी और बॉलीवुड में रामू कैंप में काम कर चुके जलाल अहमद का कहना है कि फैजाबाद में जो कुछ भी हुआ, उसे प्री प्लांड कहा जा सकता है। इसी साल फैजाबाद के कैंटोमेंट थाना क्षेत्र में आने वाले गांव मिर्जापुर में कुछ लोगों ने एक मस्जिद से सटाकर गैरकानूनी निर्माण करने की कोशिश की। प्रशासन ने इस हरकत पर वही किया, जो बाबरी मस्जिद विवाद के वक्त किया गया था। कैंटोमेंट थाना प्रभारी ने मस्जिद में ताला लगा दिया। बताते चलें कि जलाल अहमद का घर भी कैंटोमेंट थाना क्षेत्र में आता है।
बहुब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई)पर लोकसभा में मत विभाजन में जीत हासिल करने के बाद राज्य सभा में भी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग)की राह आसान हो गई है। बहुब्रांड खुदरा में एफडीआई का विरोध करते हुए मत विभाजन में हिस्सा नहीं लेने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती ने घोषणा की कि उनकी पार्टी राज्य सभा में सरकार का समर्थन करेगी। राज्यसभा में मनमोहन सरकार के लिए संकटमोचक बनीं मायावती बीजेपी से खासी नाराज दिखीं। सदन में बहस का मुद्दा मल्टि ब्रैंड रीटेल में एफडीआई था, लेकिन मायावती ने सीबीआई पर ज्यादा बोला।दूसरी ओर, भाजपा के साथ चार दशक पुराना संबंध तोड़ने के एक हफ्ते बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने गुरुवार को भाजपा को कांग्रेस और जद (एस) से ज्यादा बुरी पार्टी बताया। उन्होंने कहा कि वह कभी अपनी पुरानी पार्टी में नहीं लौटेंगे। येदियुरप्पा ने कहा, ''यह 100 फीसदी है। कांग्रेस और जद-एस से ज्यादा बुरी है भाजपा।'' येदियुरप्पा आगामी 9 दिसंबर को हावेरी में औपचारिक तौर पर अपनी क्षेत्रीय पार्टी कर्नाटक जनता पार्टी की शुरूआत करेंगे। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर सत्ता की खातिर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को कमजोर करने का आरोप लगाया। अन्ना ने कहा कि वह आम आदमी पार्टी को वोट नहीं देंगे क्योंकि ये पार्टी भी दूसरों की तरह सत्ता के जरिए धन के सिद्धांत पर आगे बढ़ रही है। अन्ना से जब पूछा गया कि वो मानते हैं कि उनके पूर्व सहयोगी अरविंद केजरीवाल सत्ता के लालची हो गए, अन्ना ने कहा ये सही है। अन्ना ने कहा कि मैंने सोचा था कि मैं आम आदमी पार्टी को वोट दूंगा, लेकिन ये पार्टी भी सत्ता के दम पर धन और धन के दम पर सत्ता के सिद्धांत की तरफ बढ़ रही है।
राज्यसभा में सरकार का साथ देने और एफडीआई के पक्ष में मतदान करने का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा कि वह ऐसा इसलिए कर रही हैं ताकि सांप्रदायिक दलों को राजनीति करने का मौका न मिले। सदन का कामकाज ठीक ढंग से चले। जो अहम विधेयक लंबित हैं उन्हें पारित कराया जा सके। उन्होंने एफडीआई की कमियां गिनाईं और सरकार से कहा कि वह इन पर गौर करे। मायावती ने यह भी कहा कि इस प्रस्ताव का सकारात्मक पक्ष यह है कि इसे राज्यों पर थोपा नहीं जाएगा।
इससे पहले मायावती ने चर्चा की शुरुआत सुषमा स्वराज और अरुण जेटली के बयानों से की। उन्होंने कहा कि दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं ने बीएसपी के बारे में बेबुनियाद बातें कहीं। मायावती ने कहा कि हम पर सीबीआई के दबाव का आरोप लगाना फैशन बन गया है। उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल बीजेपी ने किया था। 2003 में केंद में बीजेपी सरकार थी। तब बड़े बीजेपी नेताओं ने मुझे दिल्ली बुलाकर कहा था कि लोकसभा चुनाव जल्दी होने वाले हैं। हम चाहते हैं कि 80 में से 60 सीटों पर बीजेपी और 20 पर बीएसपी के प्रत्याशी उतारे जाएं। लेकिन मैंने ऐसा करने से मना कर दिया था। इसके बाद सीबीआई ने मेरे खिलाफ ताज कॉरिडोर प्रकरण और फिर आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया। तब मैंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, पर बीजेपी का साथ नहीं दिया।
मायावती की इस घोषणा के बाद सरकार ने राहत की सांस ली है क्योंकि राज्य सभा में उसके पास पर्याप्त संख्या नहीं थी और वहां मत विभाजन में उसके हारने की आशंका थी। इस बीच समाजवादी पार्टी (सपा) ने कहा कि उसके सदस्य कल होने वाले मत विभाजन में हिस्सा नहीं लेंगे यानी सरकार राज्य सभा में भी आसानी से जीत हासिल कर लेगी।
जब मायावती ने कहा कि वह राज्य सभा में इस प्रस्ताव का विरोध करेंगी क्योंकि वह 'सांप्रदायिक ताकतों के साथ खड़े हुए नहीं दिखना चाहती हैं, तो संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ और उनके कनिष्ठ सहयोगी राजीव शुक्ला के चेहरों पर मुस्कान बिखर गई व सत्ता पक्ष के सांसदों ने मेज थपथपाकर मायावती का अभिवादन किया। मायावती के बाद अगले वक्ता थे जनता दल यूनाइटेड के एन के सिंह। सिंह ने कहा कि उनकी पार्टी बहुब्रांड खुदरा में एफडीआई का विरोध करती है लेकिन उन्होंने इस पर सरकार को कुछ सुझाव भी दिए। सिंह ने इस क्षेत्र के लिए एक नियामक और किसानों व खुदरा कंपनियों के लिए मॉडल करार बनाने का भी सुझाव दिया।
हालांकि मायावती ने एफडीआई पर अपने संदेह को बयां करने में कोई कोताही नहीं बरती। लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि सरकार ने मायावती को कैसे मनाया। लेकिन इससे यह लगता है कि मायावती भविष्य में भी सरकार को समर्थन जारी रखेंगी, जिसकी सरकार को काफी जरूरत है क्योंकि आने वाले दिनों में वह कुछ अन्य वित्तीय क्षेत्र के विधेयक पेश करने वाली है।
ऐसा लगा कि लोकसभा में मत विभाजन में बसपा और सपा के शामिल नहीं होने पर भारतीय जनता पार्टी की नेता सुषमा स्वराज का बयान ही विपक्ष के खिलाफ चला गया। सुषमा स्वराज ने कहा था कि सपा और बसपा सीबीआई के डर के कारण मत विभाजन में शामिल नहीं हो रही हैं। इसके जवाब में मायावती ने स्वराज को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने भी अपने हित के लिए सीबीआई का इस्तेमाल किया था।
राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने अपने दमदार भाषण में संप्रग सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा, 'यह पूरी बहस गलत और भ्रमित करने वाले आंकड़ों पर आधारित है।' संप्रग पर 'अल्पमत वाली सरकार' की अगुआई करने का आरोप लगाते हुए जेटली और अन्ना द्रमुक के वी मैत्रेयन ने कहा कि सरकार लोकसभा में 272 के 'जादुई आंकड़े' को छूने में असफल रही है। जेटली ने कहा, 'आपको लोकसभा में बहुमत से 18 कम मिले। इसके बाद आप कामचलाऊ (लेमडक) सरकार हैं।' जेटली ने साफ कहा कि भले ही सरकार समर्थन जुटाने में कामयाब रही हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खामियों वाली एफडीआई नीति को खुला समर्थन मिला है। जेटली ने कहा, 'हर बदलाव सुधार नहीं होता है।' उन्होंने कहा, 'अब किफायती अर्थव्यवस्थाओं का पलड़ा भारी है और इसलिए खुदरा कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार से सामान खरीदती हैं न कि स्थानीय बाजारों से।'
खुदरा में एफडीआई के पक्ष में संप्रग के तर्क का जवाब देते हुए जेटली ने कहा, 'क्या शीत भंडारगृह बनाना नामुमकिन है? यह कोई रॉकेट साइंस तो है नहीं।' मैत्रेयन ने कहा कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी विपक्ष में थे, तब उन दोनों ने इसका विरोध किया था।
क्या है विवाद:
हिंदुओं के मुताबिक भारत के प्रथम मुगल सम्राट बाबर के आदेश पर 1527 में बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुजारियों से हिंदू ढाचे या निर्माण को छीनने के बाद मीर बाकी ने इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। 1940 से पहले, मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहा जाता था। हिंदुओं का तर्क है कि बाबर के रोजनामचा में विवादित स्थल पर मस्जिद होने का कोई जिक्र मौजूद नहीं है। लेकिन मुस्लिम समुदाय ऐसा नहीं है। उनके मुताबिक बाबर ने जिस वक्त यहा पर आक्रमण किया और मस्जिद का निर्माण करवाया उस वक्त यहा पर कोई मंदिर मौजूद नहीं था।
मुस्लिम समुदाय के मुताबिक 1949 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मस्जिद में रामलला की मूर्तिया रखवाने पर अपनी गहरी नाराजगी जताई थी और इस बाबत सूबे के मुखिया जेबी पंत को एक पत्र भी लिखा था। लेकिन पंत ने उनकी सभी आशकाओं को खारिज करते हुए अपना काम जारी रखा था।
1908 में प्रकाशित इंपीरियल गजेट ऑफ इंडिया में भी कहा गया है कि इस विवादित स्थल पर बाबर ने ही 1528 में मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस ढाचे को लेकर होने वाले विवाद के कई पन्ने भारतीय इतिहास में दर्ज किए जा चुके हैं। 1883, 1885, 1886, 1905, 1934 में इस जगह को विवाद हुआ और कुछ मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप भी करना पड़ा। आजाद भारत में 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाधी ने जब इस विवादित स्थल के ताले खोलने के आदेश दिए तो यह मामला एक बार फिर से तूल पकड़ गया। प्रधानमंत्री ने यहा पर कुछ खास दिनों में पूजा करने की अनुमति दी थी।
1989 में विश्व हिंदू परिषद को यहा पर मंदिर के शिलान्यास की अनुमति मिलने के बाद यह मामला हाथ से निकलता हुआ दिखाई दे रहा था। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने रामजन्म भूमि के मुद्दे को भुनाया भी। अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण को लेकर रथ यात्रा शुरू की। छह दिसंबर को डेढ़ लाख कारसेवकों की भीड़ ने इस विवादित ढाचे को जमींदोज कर दिया। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की और प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। राज्य में इस सरकार की कमान कल्याण सिंह के हाथों में थी।
-मामले में कब क्या हुआ
- विवाद की शुरुआत वर्ष 1987 में हुई। वर्ष 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं। वर्ष 1947 में भारत सरकार ने मुस्लिम समुदाय को विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया, जबकि हिंदू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा।
- विश्व हिंदू परिषद ने वर्ष 1984 में मंदिर की जमीन को वापस लेने और दोबारा मंदिर का निर्माण कराने को एक अभियान शुरू किया।
- वर्ष 1989 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। साप्रदायिक ज्वाला तब भड़की जब विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया। जब भारत सरकार के आदेश के अनुसार इस स्थल पर नए मंदिर का निर्माण शुरू हुआ तब मुसलमानों के विरोध ने सामुदायिक गुस्से का रूप लेना शुरू कर दिया।
- 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही यह मुद्दा साप्रदायिक हिंसा और नफरत का रूप लेकर पूरे देश में फैल गया। देश भर में हुए दंगों में दो हजार से अधिक लोग मारे गए। मस्जिद विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जाच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।
- वर्ष 2003 में हाईकोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरात्ताव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले। वर्ष 2003 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में 574 पेज की नक्शों और समस्त साक्ष्यों सहित एक रिपोर्ट पेश की गयी।
-हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला:
12 सितंबर 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल बाबरी मस्जिद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस स्थल को राम जन्मभूमि घोषित कर दिया। हाईकोर्ट ने इस मामले में बहुमत से फैसला करते हुए तीन हिस्सों में बाट दिया। विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि मानते जुए इसको हिंदुओं को सौंपे जाने का आदेश दिया गया। एक हिस्से को निर्मोही अखाड़े को देने का आदेश दिया गया। इस हिस्से में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल था। 90 वर्षीय याचिकाकर्ता हाशिम अंसारी ने इस फैसले पर खुशी जताते हुए कहा था कि अब इस फैसले के बाद इस मुद्दे पर सियासत बंद हो जाएगी।
तीसरे हिस्से को मुस्लिम गुटों को देने का आदेश दिया गया। अदालत का कहना था कि इस भूमि के कुछ टुकड़े पर मुस्लिम नमाज अदा करते रहे हैं लिहाजा यह हिस्सा उनके ही पास रहना चाहिए। तीन जजों की पूर्ण विशेष पीठ का यह पूरा फैसला लगभग दस हजार पन्नों में दर्ज है।
हाईकोर्ट की तीन जजों की पीठ में से एक ने सुन्नी सेन्ट्रल वक्फबोर्ड के अपने दावों को पूरी तरह से खारिज कर दिया था। फिर भी दो जजों न्यायमूर्ति एस यू खान और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने बहुमत से भगवान सिंह विशारद के मुकदमें में प्रतिवादी के नाते सुन्नी वक्फबोर्ड को एक तिहाई हिस्से का हकदार माना था।
December 5, 2012, 7:17 PM IST
अयोध्या, भारत की आत्मा के लिए संघर्ष: दूसरा अध्याय
-कृष्ण पोखरेल और पॉल बैकेट
(वॉल स्ट्रीट जर्नल की ये जांच श्रंखलाबद्ध ढंग से प्रकाशित की जा रही है। इस हफ्ते हर सुबह इंडिया रियल टाइम पर एक अध्याय पोस्ट किया जाएगा। अध्याय 1 यहां पढ़िए)
पॉल बैकेट/द वॉल स्ट्रीट जर्नल
राम की मूर्ति का प्रतिरूप 22 दिसबंर, 1949 को बाबरी मस्जिद में स्थापित किया गया। संबंधित स्लाइडशो के लिए यहां क्लिक करें।
भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मस्जिद में भगवान राम की मूर्ति रखे जाने पर काफी उद्विग्न हुए।
सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्म को लेकर संशयी, नेहरू राष्ट्र को आधुनिक समाजवाद और वैज्ञानिक सोच की तरफ ले जाने का प्रयत्न कर रहे थे। लेकिन अयोध्या की घटनाओं ने उन्हें हिंदू-मुस्लिमों के सदियों पुराने वैमनस्य के साथ नए सिरे से जूझने के लिए मजबूर किया-और इस धारणा के प्रसार का प्रतिवाद करने हेतु भी कि देवता रात के घुप्प अंधेरे में एकाएक प्रकट हुए।
स्टाफ/एजेसीं फ्रांस-प्रेस/गेटी इमेजेज़
जवाहरलाल नेहरू यूएस राष्ट्रपति हैरी ट्रमैन के साथ।
"मैं अयोध्या की घटनाओं से व्यथित हूं," नेहरू ने 26 दिसबंर, 1949 को संयुक्त प्रांत के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को भेजे एक टेलीग्राम में कहा। गौरतलब है कि उस वक्त संयुक्त प्रांत में मोटे तौर पर आज का उत्तर प्रदेश शामिल था। "मैं दृढ़तापूर्वक उम्मीद करता हूं कि आप व्यक्तिगत रूप से इस मुद्दे को देखेगें। वहां खतरनाक उदाहरण गढ़े गए हैं, जिनके खराब परिणाम होगें," उन्होंने लिखा।
प्रांतीय सरकार मूर्तियों को हटाना चाहती थी। फैज़ाबाद के ज़िला दंडाधिकारी के.के.नैयर, जो अयोध्या का प्रशासनिक कामकाज भी देखते थे, ने इससे इन्कार कर दिया। उन्होंने एक प्रांतीय अधिकारी को लिखा कि "मूर्ति को हटाना सार्वजनिक शांति के लिए बड़ा खतरा होगा और ये दहशत की आग की तरफ ले जाएगा," उनके संचार की एक कॉपी से पता चलता है।
उस दौरान, नगर दंडाधिकारी गुरु दत्त सिंह ने इस्तीफा दे दिया। उनके बेटे गुरु बसंत सिंह ने कहा कि उनके पिता ने नौकरी इसलिए छोड़ी क्योंकि 'उनका काम पूरा हो चुका था' और मूर्ति की स्थापना, जिसकी योजना श्री सिंह की मदद से बनी थी, सफल रही थी।
स्थानीय हिंदू मस्जिद में और ज्यादा धार्मिक साजो-सामान ले आए: ज्यादा मूर्तियां, छह शालिग्राम पत्थर, एक छोटा चांदी का सिंहासन, पूजा के लिए पीतल के बर्तन और देवता के लिए वस्त्र, बाद में संकलित एक आधिकारिक सूची में ऐसा उर्द्धत है।
स्थल पर मुस्लिम अवांछनीय थे। राम की मूर्ति की स्थापना के बाद सुबह स्थानीय दर्ज़ी मोहम्मद हाशिम अंसारी ने कुछ अन्य लोगों के साथ बाबरी मस्जिद का रुख किया, श्री अंसारी और उस वक्त वहां मौजूद अन्य स्थानीय मुस्लिमों ने कहा। पुलिस ने उन्हें प्रवेश द्वार पर ही रोक दिया। वे वापस घर लौट आए, श्री अंसारी ने बताया।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल/कोर्ट फाइल्स
1949 में बाबरी मस्जिद में स्थापित मूर्तियां, तस्वीर 1950 की है।
नेहरू दबाव डालते रहे। जनवरी की शुरुआत में, उन्होंने एक बार फिर मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को खत लिखा। इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री उनसे मिलने गए।
"पंत कार्यवाही के इच्छुक थे, लेकिन वो पहले कुछ मशहूर हिंदुओं को अयोध्या की स्थिति समझाना चाहते थे," नेहरू ने 7 जनवरी 1950 को भारत के गवर्नर जर्नल को एक अलग खत में लिखा।
हफ्तों बीत गए। मूर्ति जस की तस रही।
अयोध्या में मतभेदों ने भारत को एक ऐसा लोकतंत्र, जिसमें सभी आस्थाओं के प्रति एक जैसा सम्मान प्रकट किया जाता हो, बनाने की नेहरू की इच्छा को चुनौती दी। वो इस बात से भी भयभीत थे कि इसके नतीजे भारत और विशेष तौर पर कश्मीर (भारत और नए पाकिस्तान के बीच विवादास्पद क्षेत्र) में दिखाई देगें, उन्होंने 5 फरवरी, 1950 को पंत को भेजे खत में लिखा।
नेहरू ने जोड़ा कि वो दिल्ली से अयोध्या की 600 किलोमीटर लंबी यात्रा करना चाहते हैं, लेकिन ये भी कहा, "मैं काफी व्यस्त हूं।"
नेहरू वहां नहीं आए। मार्च में, वो परास्त महसूस कर रहे थे, क्योंकि स्थानीय अधिकारी लगातार मूर्ति को हटाने में ठिठक रहे थे।
"ये घटना दो अथवा तीन महीने पहले हुई और मैं इससे बहुत उद्विग्न हूं," उन्होंने महात्मा गांधी के एक सहयोगी के.जी.माशरूवाला को खत में लिखा।
नेहरू ने खेद व्यक्त किया कि उनकी कांग्रेस पार्टी में कई पाकिस्तान और भारत के मुस्लिमों के प्रति "सांप्रदायिक' बन गए हैं। "मैं नहीं जानता कि देश में बेहतर माहौल कैसे बनाया जाए," उन्होंने लिखा।
1952 में, नेहरू ने एक चुनाव में पंत के प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश का दौरा किया, उस शख्स के मुताबिक, जिसने उनका भाषण सुना। उन्होंने भीड़ को कहा: "अयोध्या के वाकयात ने मेरी गर्दन नीची कर दी है।"
**
जनवरी 1950 में, बाबरी मस्जिद को लेकर अयोध्या के हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच दशकों लंबी लड़ाई शुरू हो गई। पहला मामला फैज़ाबाद के विक्टोरियन गॉथिक जिला न्यायालय में एक हिंदू, गोपाल सिंह विशारद द्वारा दाखिल किया गया।
कृष्ण पोखरेल/द वॉल स्ट्रीट जर्नल
अयोध्या में गोपाल सिंह विशारद का घर।
श्री सिंह विशारद (हिंदू धर्मशास्त्रों में प्रवीण को विशारद कहते हैं) एक वकील थे, जो हिंदू पवित्र स्थान में रहने की ख्वाहिश के चलते अयोध्या बस गए थे, ऐसा उनके बेटे राजेन्द्र बताते हैं। राजेन्द्र वो स्कूली छात्र थे, जिन्होंने अभिराम दास को सुबह मस्जिद में राम के प्रकट होने की बात फैलाते हुए सुना था।
सख्त चेहरे, चौड़ी नाक और घनी मूंछों वाले श्री सिंह विशारद तब 42 वर्ष के थे, जो रूढ़िवादी हिंदू राजनीतिक पार्टी, हिंदू महासभा के अयोध्या सचिव थे। गौरतलब है कि ये पार्टी नेहरू की कांग्रेस का विरोध करती थी। श्री सिंह विशारद, जिला दंडाधिकारी श्री नैयर और नगर दंडाधिकारी श्री गुरु दत्त सिंह के करीबी थे, ऐसा राजेन्द्र सिंह बताते हैं।
श्री सिंह विशारद ने कुछ दिनों तक राम लल्ला की मूर्ति के प्रकट होने का जश्न मनाया था और उस जगह जाकर पूजा-अर्चना भी की थी, उनके बेटे ने कहा। लेकिन जब 14 जनवरी, 1950 को वो वहां गए, पुलिस ने उन्हें गेट पर ही रोक दिया।
अध्याय दो के प्रमुख लोगों के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें।
तब तक, एक अन्य स्थानीय दंडाधिकारी इमारत पर कब्ज़े के आदेश जारी कर चुके थे। एक अभिग्राही का नाम निर्धारित कर दिया गया था और श्रद्धालुओं के लिए वहां तालाबंदी कर दी गई। एक अंतरिम व्यवस्था के तहत, अभिग्राही ने पुजारियों की एक छोटी टीम का गठन किया, जो प्रतिदिन राम लला की देखभाल करती क्योंकि वो एक देवता थे, जिन्हें हिंदू मान्यताओं के मुताबिक खाने, नहलाने और वस्त्र पहनाने होते थे।
अपने अभियोग में, श्री सिंह ने बगैर किसी रोक-टोक के इमारत में देवता की पूजा के अधिकार का दावा किया, और सरकारी अधिकारियों को मूर्ति को हटाने से रोकने के लिए अस्थायी हुक्मनामा जारी करने को कहा।
न्यायाधीश ने हुक्मनामा दे दिया, लेकिन उनके पूजा के अधिकार पर कोई आदेश नहीं दिया।
अगले दिन, 30 वर्षीय अनीसुर रहमान ने भी अदालत में याचिका दाखिल कर दी-इस विवाद में मुस्लिमों की तरफ से पहली कानूनी झड़ी लगाई। श्री रहमान टीन के बक्से बनाते थे, जिसे वो अयोध्या के स्थानीय बाज़ार की एक दुकान से बेचते थे। वो बाबरी मस्जिद के नज़दीक अपने परिवार के साथ रहते थे।
मूर्ति स्थापित किए जाने के हफ्तों पहले, उन्होंने जिला अधिकारियों को संदेश भेजे थे कि उन्हें साधुओं के जमाव के चलते मस्जिद पर आगामी खतरा नज़र आता है, जिला दंडाधिकारी श्री नैयर के आधिकारिक रिकॉर्ड ऐसा कहते हैं।
श्री नैयर ने श्री रहमान को अयोध्या के मुस्लिमों में 'अपवाद' कहकर खारिज कर दिया, उन्होंने लिखा अयोध्या के मुस्लिम, 'एकदम उत्तेजित नहीं हैं,' रिकॉर्ड ऐसा बताते हैं।
राज्य के एक बड़े शहर इलाहबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर श्री रहमान ने बाबरी मस्जिद के अधिकार से जुड़े किसी भी मामले की सुनवाई अयोध्या और फैज़ाबाद से दूर कराने की मांग की।
उन्होंने दावा किया कि दो समुदायों के अत्यधिक तनावपूर्ण संबंधों और ज़िला प्रशासन द्वारा सांप्रदायिक असमानता के मद्देनज़र, अयोध्या के आसपास न्यायोचित सुनवाई की संभावना नहीं है।
कृष्ण पोखरेल/द वॉल स्ट्रीट जर्नल
अनीसुर रहमान को याद करते दुकानदार फारुख अहमद।
उन्होंने एक हलफनामे में ये भी कहा कि मूर्ति की स्थापना के बाद मस्जिद मुस्लिमों के सुपुर्द करने को लेकर जिला प्रशासन ने मदद हेतु कुछ नहीं किया है। इसकी बजाय उन्होंने इमारत पर कब्ज़ा कर लिया है।
श्री रहमान के प्रयासों का प्रत्युत्तर अयोध्या के करीब 20 मुस्लिमों ने दिया, जिन्होंने स्थानीय अदालत में एक से हलफनामों पर हस्ताक्षर किए।
उन्होंने कहा कि अगर हिंदू बाबरी मस्जिद को अपने अधिकार में रखते हैं, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। "बाबरी मस्जिद राम के जन्मस्थल मंदिर को तोड़कर बनाई गई, उन्होंने कहा। वहां पूजा करना इस्लामी कानूनों के खिलाफ है," हलफनामों में कहा गया।
श्री रहमान की याचिका खारिज कर दी गई। आज मुस्लिम वकील मुस्लिमों के हलफनामों की प्रामाणिकता पर शंका व्यक्त करते हैं।
श्री रहमान ने अपनी दुकान बेच दी। 1950 की शुरुआत में, वो अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए, ऐसा कई स्थानीय मुस्लिम कहते हैं। उनके वंशजों का पता नहीं चल पाया।
अयोध्या का एक मुस्लिम दुकानदार जाने से पहले श्री रहमान की ये बात याद करता है: "हमें यहां न्याय नहीं मिलेगा। कोई हमारी मदद नहीं करता।"
1950 के उत्तरार्ध में एक सक्रिय साधु ने गोपाल सिंह विशारद के समान ही मामला दाखिल किया। वो अयोध्या के मशहूर 'दिगंबर अखाड़े' (रामभक्त हिंदू साधुओं का समूह) से जुड़े थे।
हिंदुओं द्वारा दाखिल दोनों अभियोगों में बतौर प्रतिवादी पांच स्थानीय मुस्लिमों का नाम उर्द्धत किया और आरोप लगाया गया कि उन्होंने स्थानीय सरकारी अधिकारियों पर, "निराधार और बेईमान कथनों द्वारा', मूर्ति हटाने के लिए दबाव बनाया।
प्रतिवादियों में सबसे प्रमुख थे, हाजी फेंकू, उस वक्त अयोध्या के बड़े भू-मालिकों में एक।
पॉल बैकेट/द वॉल स्ट्रीट जर्नल
फैज़ाबाद ज़िला अदालत।
कानूनी कागज़ातों के मुताबिक अदालत में 65 वर्षीय श्री फेंकू और अन्य मुस्लिमों ने आरोपों से इन्कार किया। उन्होंने ये भी दावा किया कि बाबरी मस्जिद 1528 में निर्माण के बाद से मुस्लिमों द्वारा बतौर मस्जिद इस्तेमाल की जाती रही है। उन्होंने कहा कि मस्जिद निर्माण से पहले वहां कोई हिंदू मंदिर मौजूद नहीं था।
श्री फेंकू घोड़ागाड़ी में अपने घर से महीने में कम से कम एक दफा अयोध्या से अदालत जाया करते थे, जो करीब 10 किलोमीटर दूर था, उनके बेटे हाजी महमूद अहमद ने एक साक्षात्कार में कहा।
जब श्री फेंकू घर लौटते, वो अपने अनुभव बताते, अकसर निराशा के साथ। "न्यायाधीश ने एक बार फिर सुनवाई टाल दी और हमें अगली तारीख पर उपस्थित रहने को कहा है," श्री फेंकू ने बार-बार ऐसा कहा, उनके बेटे बताते हैं।
अग्रणी हिंदू याचिकाकर्ता गोपाल सिंह विशारद साईकिल से अदालत जाते। उन्होंने इस तथ्य से सब्र कर लिया कि ये विवाद लंबा होने वाला है क्योंकि वो मानते थे कि सरकार फैसले के प्रभावों से डील नहीं करना चाहती थी, उनके बेटे ऐसा कहते हैं।
बगैर ज्यादा आगे बढ़े, सुनवाई पूरे नौ वर्षों तक खिंच गई। तब 1959 में, साधुओं के एक दूसरे पंथ, निर्मोही अखाड़ा, द्वारा एक दूसरा अभियोग दाखिल किया गया।
इस अखाड़े के नाम से तात्पर्य, "बगैर लगाव वाले समूह' से है। इस तथ्य का एक उद्धरण कि 12,000 साधुओं ने, जैसा वो दावा करता है, अपने देवता राम के साथ के लिए भौतिक दुनिया का त्याग कर दिया। पंथ ने 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मस्जिद के नज़दीक मंदिर बनाने का प्रयास किया, लेकिन अदालत ने उसे रोक दिया।
पॉल बैकेट/द वॉल स्ट्रीट जर्नल
भास्कर दास।
भास्कर दास इस पंथ के प्रमुख हैं। अब वे 80 के मध्य में हैं, वो दुबले-पतले हैं और प्रभावशाली दिखाई देते हैं। उनका झुर्रीदार सिर मुंडा हुआ है और पीछे लंबे बाल चोटी में बंधे रहते हैं। उनके माथे में वाई आकार का सफेद टीका लगा रहता है, बीच में सिंदूरधारी रेखा नाक के बीच से शुरू होकर माथे की दो रेखाओं के बीच में रहती है।
श्री दास 1946 में 18 वर्ष की आयु में संस्कृत सीखने अयोध्या आए। जल्द ही, उन्होंने बाबरी मस्जिद के बाहरी अहाते में स्थित लकड़ी के मंच पर राम की मूर्ति के दर्शन किए, जहां हिंदू पूजा-अर्चना किया करते थे। निर्मोही अखाड़ा इस मंच का रख-रखाव देखता था।
"मैंने भगवान राम के साथ जुड़ाव महसूस किया और फैसला किया कि साधु के रूप में जीवन जीऊंगा," श्री दास ने फैज़ाबाद में पंथ के आश्रम में साक्षात्कार के दौरान कहा। सफेद रंग की चार मंजिला इमारत के संयोजन से बना ये आश्रम जिस गली में है, उसमें हमेशा काफी ट्रैफिक रहता है।
1959 की अपनी याचिका में, समूह ने दावा किया कि राम का जन्मस्थल, "इंसान की सप्राण स्मृति से पहले' वहां मौजूद था।
समूह ने ये दावा भी किया कि बाबरी मस्जिद इमारत कभी एक मस्जिद नहीं थी, बल्कि वहां प्राचीन काल में एक मंदिर हुआ करता था और उचित ढंग से उस पर निर्मोही अखाड़े का अधिकार होना चाहिए। अभियोग अन्य अभियोगों में शामिल हो गया।
दो वर्ष बाद, 1961 के दिसबंर में, स्थानीय मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों ने जवाब दिया।
कृष्ण पोखरेल/द वॉल स्ट्रीट जर्नल
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ़ बोर्ड।
मामले की अगुवाई कर रहा था, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ़ बोर्ड, भारतीय कानून द्वारा स्थापित एक इकाई जो वक्फ़ अथवा मुस्लिम धर्म और सांस्कृतिक स्थलों, की हिफाज़त और संरक्षण के लिए ज़िम्मेदार है।
उसने दर्ज़ी मोहम्मद हाशिम अंसारी और अयोध्या के अन्य मुस्लिमों को बतौर सह-याचिकाकर्ता सूचीबद्ध किया।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित बोर्ड ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद ने उसके पास बतौर सार्वजनिक मस्जिद पंजीकरण करवाया है और " अल्लाह में निहित' है।
1964 में, अदालत ने सभी चार अभियोगों को समाहित कर लिया-गोपाल सिंह विशारद, दिगंबर अखाड़े के साधु, निर्मोही अखाड़ा और वक्फ़ बोर्ड।
वादी देरी के आदी हो गए, जिससे आज भी भारत की अदालती व्यवस्था त्रस्त है। बाबरी मस्जिद स्थल के पहले अभिग्राही की मृत्यु के बाद दूसरे की नियुक्ति का विवाद सुलझाने में अदालत को ।
अदालत में, न्यायाधीश 15 मिनट सुनते, अगली सुनवाई के लिए तारीख मुकर्रर करते और कार्यवाही स्थगित होती, ऐसा मामले से जुड़े दो लोगों का कहना है।
"कई न्यायाधीश आए और गए, लेकिन मामले पर कोई फैसला नहीं आया," 74 वर्षीय हाजी महबूब अहमद ने कहा। 1960 में अपने पिता हाजी फेंकू की मृत्यु के बाद उन्होंने एक हिंदू अभियोग में प्रतिवादी के रूप में अपने पिता की जगह ली।
**
सिंह परिवार
गुरु दत्त (बाएं) और अटल बिहारी वाजपेयी।
गुरु दत्त सिंह और के.के. नैयर (मूर्ति स्थापना में अहम भूमिका निभाने वाले प्रशासक) ने राजनीति का रुख किया। उन्होंने आगे अयोध्या विवाद में कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं निभाई।
प्रशासनिक पद से इस्तीफा देने के छह महीनों के भीतर श्री सिंह हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी, भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए। पार्टी का गठन भारत की पहली रूढ़िवादी हिंदू पार्टी, हिंदू महासभा के एक पूर्व अध्यक्ष ने किया था।
1951 के राष्ट्रीय चुनावों में, जनसंघ ने ससंद की तीन सीटें जीतीं, जबकि नेहरू की कांग्रेस पार्टी ने 364 सीटें हासिल कीं। श्री सिंह फैज़ाबाद में जनसंघ के जिला प्रमुख बन गए, उनके बेटे ने कहा।
परिवार के फैज़ाबाद आवास के स्वागत कक्ष में लगी 1960 के उत्तरार्ध की एक तस्वीर में गुरु दत्त सिंह युवा अटल बिहारी वाजपेयी के साथ खड़े हैं, जो उस वक्त जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और बाद में भारत के प्रधानमंत्री भी बने।
1950 की शुरुआत में श्री नैयर को दूसरे पद के लिए स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। वो फैज़ाबाद में बस गए और अपनी पत्नी के साथ जनसंघ में शामिल हो गए। 1967 में, अयोध्या के निकट एक निर्वाचन क्षेत्र से वो संसद के लिए चुन लिए गए।
**
अयोध्या के साधुओं ने मूर्ति स्थापना का अत्यधिक समर्थन किया।
युवा साधु अक्षय ब्रह्मचारी, जिसने इस कदम का विरोध किया था, ने अन्य को दलील दी, "पूरा अयोध्या रामजन्मभूमि है," उनकी अनुयायी मीरा बहन और अन्य जानकारों ने कहा। उन्होंने पूछा: "तुम उनको मस्जिद में रखकर उनकी महिमा को कम क्यों कर रहे हो?"
उन पर हमला किया गया और साधु बिरादरी से निष्कासित कर दिया गया। वो लखनऊ गए और सरकार पर मूर्ति हटाने के लिए दबाव हेतु 30 जनवरी, 1950 से कई दफा अनशन पर बैठे। लेकिन राज्य सरकार के एक मंत्री ने इसका जवाब कुछ यूं दिया: "अयोध्या की स्थिति अब दुरुस्त है और फिलहाल मामला न्यायालय में लंबित है। अंतिम निर्णय अदालती फैसले के बाद ही लिया जा सकता है।"
कृष्ण पोखरेल/द वॉल स्ट्रीट जर्नल
मोहम्मद हाशिम अंसारी।
मस्जिद में राम की मूर्ति स्थापित करने में अगुवा अभिराम दास ने घटना के जश्न के लिए त्योहार आयोजित किए।
दिसबंर 1953 में उन्होंने एक प्रचार पुस्तिका प्रकाशित की, जिसमें विवादित स्थल पर अयोध्या के निवासियों से रामायण बांचने में भाग लेने हेतु आह्वान किया गया। एक अन्य प्रचार पुस्तिका में उनका हवाला राम जन्मभूमि के 'उद्धारक' के रूप में किया गया।
हिंदुओं के जगह पर कब्ज़े और अदालती कार्यवाही ना होने के कारण अयोध्या के मुस्लिम निराश हो गए। दर्ज़ी मोहम्मद हाशिम अंसारी ने कहा कि 1954 में वो और करीब 100 स्थानीय मुस्लिमों ने उक्त स्थल पर प्रार्थना की इजाज़त मांगी, जिसे ठुकरा दिया गया।
जब उन्होंने जबरन मस्जिद में घुसने की कोशिश की, उन्हें गिरफ्तार कर दो महीने जेल में बंद रखा गया, श्री अंसारी ने बाद में कोर्ट में गवाही दी।
http://realtime.wsj.com/india/2012/12/05/%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2-2/
**
युद्धभूमि अयोध्या
By विनोद उपाध्याय
6 दिसंबर 2012 को अयोध्या को विवाद बने दो दशक बीत गए। इन दो दशकों में भारत में हुए राजनीतिक और सामाजिक बदलाव आज सभी के सामने हैं। अयोध्या मामले को वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार में आने के बाद इस मसले पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी, लिहाजा ज्यादा नहीं चल सकी।
उसके बाद देश में अयोध्या मामले में आए फैसले के बाद पसरी शांति और सौहार्द के माहौल ने धर्म के तवे पर राजनीति की रोटी सेकने वालों के होश उड़ गए। देश में होने वाली अराजकता और उसमें गिरने वाली लाशों पर राजनीति करने की योजना बनाने वाले कुछ राजनीतिक दलों को अपनी जमीन खिसकती महसूस होने लगी। हालांकि आज भी कुछ राजनीतिक और धार्मिक संगठन अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए विध्वंसक बयानों को प्रसारित करने से बाज नहीं आते हैं। ऐसे संगठनों में कुछ खुद को हिन्दू समाज का पैरोकार बताते हैं तो कुछ खुद को इस्लाम का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। लेकिन इनकी वास्तविकता दोनों समाज के प्रबुद्ध लोगों को पता है।
अयोध्या यानी प्राचीन कौशल की राजधानी। दशरथनंदन राम की नगरी। सरयू किनारे बसी इस पवित्र पुरी को अयोध्या इसलिए कहा गया क्योंकि ये अजेय थी। इससे युद्ध संभव नहीं था लेकिन ये पुराणों की बात है। आज हम जिसे अयोध्या कहते हैं, वो साक्षात युद्धभूमि है। उसके नाम पर लड़ा जा रहा है आजाद भारत का सबसे बड़ा युद्ध, राजनीति और कानून के मोर्चे पर एक साथ। राजनीति के मोर्चे पर इसका असर सबने देखा है।
बाबरी मस्जिद का तोड़ा जाना भारत विभाजन के बाद दिलों को तोडऩे वाली सबसे बड़ी घटना थी। इसके लिए 6 दिसंबर यानी संविधान निर्माता डॉ.बीआर अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस का चुनाव यूं ही नहीं किया गया था। दरअसल, इसके जरिये संविधान में दर्ज उस सपने को आग में झोंकने की कोशिश हुई जिसका नाम है धर्मनिरपेक्षता। राम मंदिर के हिमायतियों का तर्क है कि मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके सिपहसालार मीर बाकी ने 1528 में रामजन्मभूमि मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई। लेकिन हैरानी ये है कि बाबर के समय के कवियों, संतों या इतिहासकारों ने इस घटना को कहीं दर्ज नहीं किया। और इनमें रामभक्ति के शिखर संत तुलसीदास भी हैं।
संवत सोरह सौ इकतीसा, करउं कथा हरि पद सीसा...गोस्वामी तुलसीदास ने इसी अयोध्या में संवत सोलह सौ इकतीस यानी सन 1574 में मानस की रचना शुरू की। ये जमाना अकबर यानी बाबर के पोते का था। लेकिन उन्होंने कहीं अपने आराध्य के मंदिर तोड़े जाने का जिक्र नहीं किया। उलटे अपने आलोचकों को जवाब देते हुए कवितावली में वे लिखते हैं—तुलसी सरनाम गुलामु है राम को जाके रुचे सो कहै कछु ओऊ, मांग के खाइबो मसीज में सोइबो, लैबै का एक, न देबै का दोऊ। ध्यान दीजिए, तुलसी मसीज यानी मस्जिद में सोने की बात कर रहे हैं। तो क्या उस समय अयोध्या के रामभक्तों की आंख में बाबरी मस्जिद खटकती नहीं थी।
इतिहास के जानकारों के अनुसार, ये मामला 1850 के आसपास पहली बार उठा जब अंग्रेज अवध को हड़पने की फिराक में थे। उन्होंने कही-सुनी बातों को हवा दी और 1853 में इसे लेकर टकराव भी हुआ। तब अवध पर नवाब वाजिद अली शाह का राज था, जिन्होंने बलवाइयों को सख्ती से कुचला था। यहां तक कि उनके सरगना अमेठी के मौलवी अमीर अली के कत्ल का हुक्म भी दे दिया था। 1857 में आजादी की पहली लड़ाई के साथ हिंदू-मुस्लिम एकता परवान चढ़ी। लेकिन अंग्रेज मसले का हल नहीं चाहते थे। उन्होंने ताज छीनकर नवाब को कलकत्ता भेज दिया और 18 मार्च 1858 को अयोध्या के कुबेर टीले के पास हनुमान गढ़ी के पुजारी बाबा रामचरण दास और फैजाबाद के अमीर अली को फांसी दे दी, जो हिंदू-मुसलमानों के बीच समझौते की अगुवाई कर रहे थे। 1885 में पहली बार ये मसला अदालत पहुंचा लेकिन मुकदमा बाबरी मस्जिद पर नहीं, बल्कि सामने बने चबूतरे पर छत डालने के लिए था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया।
बाद में आजादी की लड़ाई के तेज होने के साथ ये मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया। गांधी जी के रंगमंच पर आने के बाद तो सांप्रदायिक जहर घोलने की कोशिशें खासी कमजोर पड़ गईं। लेकिन आजादी मिलने के बाद राजनीतिक समीकरण बदलने लगे। उत्तर प्रदेश के 18 समाजवादी विधायकों ने आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में कांग्रेस और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। 1948 के आखिर में उपचुनाव हुए। आचार्य नरेंद्र देव अयोध्या से मैदान में थे। नरेंद्र देव को हराने पर आमादा कांग्रेस ने देवरिया के साधु बाबा राघवदास को मैदान में उतार दिया। इस चुनाव में आचार्य नरेंद्र देव के नास्तिक होने का सवाल उठाया गया। कहा गया कि ये धर्म और अधर्म की लड़ाई है। इसी में रामजन्मभूमि का मुद्दा भी उठा। नतीजा बाबा राघवदास चुनाव जीत गए। और इसी के साथ अयोध्या में सदियों से जले धर्म के दीए में राजनीति का तेल पड़ गया।
राम जन्मभूमि के मुद्दे में फिर से जान पड़ गई थी। सरकारी संरक्षण ने इसका रंग गाढ़ा कर दिया। नतीजतन, 22 दिसंबर 1949 की रात बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रख दी गईं। कांस्टेबल माता प्रसाद ने 23 दिसंबर को अयोध्या पुलिस थाने में घटना की एफआईआर दर्ज कराई। इसके मुताबिक 50-60 लोगों का एक गिरोह मस्जिद की चहारदीवारी का दरवाजा तोड़कर या सीढ़ी के सहारे दीवार फांदकर घुस आया। इन लोगों ने मस्जिद में भगवान की मूर्ति स्थापित कर दी। लेकिन मंदिरवादियों ने प्रचारित किया कि राम प्रकट हुए हैं।
बताते हैं कि बात प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक पहुंची। उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंदवल्लभ पंत को तार भेजकर मूर्तियां हटाने को कहा, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। उल्टे, फैजाबाद के जिलाधिकारी केके नैयर ने इमारत को विवादित घोषित कर ताला डलवा दिया और सरकारी कब्जे में ले लिया। 19 जनवरी 1950 को सिविल जज ने हिंदुओं को बंद दरवाजे के बाहर से भगवान के दर्शन-पूजन की इजाजत दे दी और मुसलमानों पर विवादित स्थल के 300 मीटर के दायरे में आने पर पाबंदी लगा दी। करीब 36 साल तक भगवान को ताले में बंद रख गया। 1986 में जिला जज केएम पांडेय ने ताला खोलने का आदेश दिया। 11 नवंबर 1986 को विश्व हिंदू परिषद ने शिलापूजन के जरिए इस मुद्दे को खूब गरमाया और समझौते की कोशिशें बेकार कर दी गईं।
1990 में मंडल कमीशन के बाद भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की। बीजेपी ने रामजन्मभूमि को एजेंडा बना लिया। इसके बाद से अयोध्या आंदोलनकारियों की बंधक बनती रही। आखिरकार 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई। उसके बाद देश में क्या हुआ सभी जानते हैं।
इसके बाद अयोध्या के तात्कालिक और दीर्घकालिक दो प्रभाव हुए। तात्कालिक तौर पर जो नफरत की लहर उठी उसने दीर्घकालिक तौर पर राजनीतिक और सामाजिक रूप से देश के दो वर्गों में विभाजक रेखा खींच दी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से खुद उसी अयोध्या में वही विभाजक रेखा दो दशकों तक कायम नहीं रह पाई है। अयोध्या के बाबू बाजार में पीढिय़ों से भक्तों के लिए खड़ाऊं बनाने वाले मो.सलीम कहते हैं कि अयोध्या पर हो रही राजनीति से डर सिर्फ मुसलमानों में ही नहीं है। यहां के हिन्दू भी घबराए हुए हैं। इसी बाजार में कपड़े की दुकान चलाने वाले अयोध्या पाल कहते हैं कि भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में रामलला का मंदिर बनवाने के लिए कई संगठनों, धर्माचार्यों और राजनीतिक पार्टियों द्वारा आंदोलन किया जाता रहा है, पर राम की समाधिस्थल गुप्तारघाट की सुध लेने वाला की कोई नहीं है। यहां के हालात देखकर लगता है कि भविष्य में यह प्राचीन धरोहर भी लुप्त हो जाएगा। बचेगा तो बस स्वामित्व को लेकर झगड़ा। ठीक वैसे ही राम की जन्मभूमि को लेकर है। शायद यही अयोध्या की नियति बन चुका है, जिससे मुक्ति मिलने की संभावना खुद अयोध्या को निकट भविष्य में दिखाई नहीं देती।
http://visfot.com/index.php/current-affairs/7884-%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%AE%E0%A4%BF-%E0%A4%85%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE.html
Current Real News
7 years ago
No comments:
Post a Comment