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Saturday, April 20, 2013

हमारे बुद्धीजीवी आंबेडकरवाद को एक गतिशील दर्शन के तौर पर स्थापित करणे के लिये सार्थक प्रयास करणे की बजाय भावनात्मक प्रतिक्रियावाद में उलझ जाते है


हमारे बुद्धीजीवी आंबेडकरवाद को एक गतिशील दर्शन के तौर पर 


स्थापित करणे के लिये सार्थक प्रयास करणे की बजाय 


भावनात्मक प्रतिक्रियावाद में उलझ जाते है!

परिवर्तनकारी उमदा सोच रखनेवाले आंबेडकरवादी बुद्धीजीवीयोन्की कमी नही है.लेकिन अक्सर ये देखा गया है की,हमारे बुद्धीजीवी आंबेडकरवाद को एक गतिशील दर्शन के तौर पर स्थापित करणे के लिये सार्थक प्रयास करणे की बजाय भावनात्मक प्रतिक्रियावाद में उलझ जाते है.भारत में जैसे-जैसे आंबेडकरवादी दर्शन दृढमूल होता जा रहा है उसी अनुपात में जाती को विखंडीत करनेवाले जातीसंघर्ष तीव्रतम गती से बढ रहे है.परिणामस्वरूप जातीय आधार पर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव से ग्रस्त लोग अपनी जातीय अस्मिता को दोय्यम स्थान पर रखके दलित नाम से एक वर्ग में गोलबंद हो रहे है.फलस्वरूप वह कई प्रांतो में यह वर्ग सत्ता के प्रतियोगी वर्ग बनकर उभरे है.मंडलोत्तर काल के पिछले तीन दशको यह प्रक्रिया तेज हुई है. ब्राह्मीनवादी समाजव्यवस्था को इस प्रक्रिया से सबसे बडा खतरा पैदा हुआ है.इस प्रक्रिया को प्रतिक्रांती में तबदील करणे के उद्देश्य से ब्राह्मिन्वादी बुद्धीजीवियोने तीन सिरे पर काम करना शुरू किया है.१)सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को आक्रमक तरीके से प्रचारित करना (RSS,BJP और उनके छत्रछाया में पलने वाले विभिन्न NGO के द्वारा ) २)वैश्विकरण को अनिर्बंध तरीके से अपनाकर सार्वजनिक उप्क्रमो का विनियंत्रण करना और जातीय पून्जीवाद को बढावा देना.(RSS,BJP और CONGRESS CPI ,CPM और बुर्ज्वा कृषक जातियो द्वारा चलाये जाने वाली क्षेत्रीय पार्टीयो के द्वारा ) ३) सामाजिक अस्मिता के आधार पर गोलबंद होकर "दलित" नाम से सत्ता के प्रतियोगी वर्ग में तबदील होने के प्रयासो को असफल बनाना ( सशस्त्र क्रांती के समर्थक कम्युनिस्ट ग्रुप CPI (Marxist-Leninist ),CPI-Liberation,CPI(Maoist) Neo socialist ये तीनो तबके दिखावा के तौर पर भले हि अपनी अलग पहचान दिखते है. लेकिन उनके सामाजिक संस्कार,सोचने का तरीका,वाद-विवाद की शैली इसमे आश्चर्यकारक समानता है.इन तबको की अगुवाई करणेवाले बुद्धीजीवी युवा सामाजिक तथा आर्थिक समानता के घोर विरोध की शिक्षा देनेवाली भारतीय उच्च शैक्षिक संस्थाये जैसे की IITs,IIMS,AIMS,JNU,DU तथा देश के बडे शहरो में स्थित विश्वविद्यालयो में शिक्षित हुए है.इसलिये उनकी मानसिकता सामाजिक तथा आर्थिक समानता प्रस्थापित करणे के प्रयासो का घोर विरोध करनेवाली है.ये बुद्धीजीवी युवा जातीविरोधी संघर्ष के सबसे बडे हथियार आरक्षण तथा जातीविरोधी संघर्ष के सबसे के सबसे परिणामकारी दर्शन आंबेडकरवाद के घोर विरोधी है.ये साबित करता है की उनका Motivational Force ब्राह्मीनवाद ही है.इनमे से तिसरा गुट, जो जातीय आधार पर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव से ग्रस्त लोगो द्वारा अपनी जातीय अस्मिता को दोय्यम स्थान पर रखके "दलित" नाम से सत्ता के प्रतियोगी वर्ग में तबदील होने के प्रयासो को असफल बनाने की रणनीती पर अंमल करता है, ( सशस्त्र क्रांती के समर्थक कम्युनिस्ट ग्रुप CPI (Marxist-Leninist ),CPI-Liberation,CPI(Maoist) Neo socialist,etc. ) हमारा सबसे बडा दुश्मन है.ये गुट Methodological आधार पर बहस करणे का दिखावा करता है.जाती के प्रश्न को अहमियत देणे का दावा करता है.जाति-उन्मूलन की ऐतिहासिक-वैज्ञानिक, तर्कसंगत परियोजना प्रस्तुत करणे का दावा करता है.लेकिन जाती उन्मूलन के प्रयास करनेवाले फुले-पेरियार-डॉ.आंबेडकर इनके समुचे अस्तित्व को नकारते है.इनके अनुसार डॉ.आंबेडकर ने इतिहास, दर्शन, राजनीति, अर्थशास्त्र -- इन सभी क्षेत्रों का गहराई से अध्ययन नही किया था. डॉ.आंबेडकर का समुचा चिन्तन अमौलिक था, अगम्भीर था, अन्तरविरोधों से भरा था और ग़लत था.इस गुट के इन उक्साने वाले टिप्पणीयो पर हमे ध्यान देणे की जरुरत नही है.क्योकी उनका उद्देश ही हमे हमारे बुनियादी संघर्ष से ध्यान हटाकर निरर्थक बहस में उल्झाना है..इन तथ्यो को ध्यान में रख कर मै आंबेडकर वादी बुद्धीजीवियो से अपील करता हू की अरविंद ट्रस्ट के मुटठीभर अभिभावी(hegemonic) ब्राह्मीनवादी गुट के पूर्वनिर्धारित तथ्यो को थोपनेवली बहस में हिस्सा न लेते हुए हमे बदलते परिवेश तथा ज्ञान-विज्ञान की तरक्की को देखते हुए हमे आंबेडकरवाद को तर्कपूर्ण दृष्टी से परिभाषित करना होगा.आंबेडकरवाद एक विश्व दृष्टीकोन है यह साबित करना होगा. भारत की भौतिक,सामाजिक स्थिती का वैज्ञानिक अध्ययन कर आज की समस्याओ को छुडाने के लिये आंबेडकरवाद की उपयुक्तता को प्रस्थापित करना होगा — with S.r. Darapuri and 18 others.
12Like ·  · 
  • 21 hours ago · Like · 1
  • Chaman Lal भारत में फुले-आंबेडकर दर्शन को छोड़कर बाकी सभी दर्शन ब्राह्मणवादी व्यवस्था को यथास्थिति में बनाए रखने के लिए ब्राह्मणवाद दर्शन के सहयोगी दर्शन मात्र हैं !
    20 hours ago · Like · 1
  • Amar Tirpude sochne wali bat hai.
  • Sunil Khobragade अरविंद ट्रस्ट के गुट द्वारा प्रस्तुत जाती उन्मूलन के फौरी कार्यक्रम मे जातियो का मूलतः उच्छेद करणे कि कोई परियोजना नही है.ये गुट धर्मशास्त्रो धिक्कारते नही है.ये गुट जातिगत आंतर्विवाह पर कानूनी रोक लगाने के हिमायती नही है.भारतीय क्रांती कि राह जाती के विनाश के रास्ते से होकर गुजरती है.जातियो के पुन:रोद्भव का सबसे बडा स्त्रोत हिंदू धर्म है.इसलिये जिन्हे क्रांती के राह पर चलना है उन्हे सबसे पहले हिंदू धर्म को त्याग कर धर्मविहीन बनना होगा.लेकिन अरविंद ट्रस्ट के कार्यकर्ता भारत कि सबसे बडी समस्या हिंदू धर्म है इस बात पर विश्वास रखते नही दिखते है.मूलतत्ववादी हिंदू मानसिकता से ग्रस्त लोग क्रांती की सफल अगुवाइ नही कर सकते इस बात को भारत मे कम्युनिस्ट आंदोलन के 90 वर्षो के इतिहास ने सिद्ध किया है.इनका उद्देश्य केवल जाती संघर्ष को रोककर जातिगत पून्जीवाद और ब्राह्मिनवाद कि संरक्षा करना है.
    17 hours ago · Edited · Like · 1
  • Satyajit Maurya Dear Sunil Khobragadeji : 
    आंबेडकरवाद एक विश्व दृष्टीकोन है....लेकिन डॉ. अमर्त्य सेन यह कहते है की बुद्धवाद ही विश्व दृष्टीकोन है..और इसके ठोस उदहारण भी देता है.. डॉ. अमर्त्य सेन विश्व विद्धवानो के सूचि में 50 वे क्रमांक में है और उसी सूचि में बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर 6 क्रमांक में है...... आप बताये अगर आंबेडकरवाद एक विश्व दृष्टीकोन है...इसका सामजिक आर्थिक समानता स्थापित करने के लिए व्यवहारी आधार क्या है ?
  • Jitandra Gaikwad Jay bhim walo ka jivan sanghars sa bhra hua ha
    17 hours ago via mobile · Like · 1
  • Sunil Khobragade Satyjitaji Dr.Ambedkar ne Buddhawad me state socialism ki jod dekar Buddhawad ko aadhunik yuganukool banaya hai.Ambsdkarwad Buddhwad ka parishkrut rup hai.
    16 hours ago · Like · 2
  • Satyajit Maurya tate socialism ki jod dekar Buddhawad ko आधुनिक्किया है ? कुछ उदहारण दीजिये......जैसे अमर्त्य सेन कहते है की बुद्ध के नैतिक आचार सहिंता की सहिसुनता से अशोक ने जातिविहीन सामजिक और आर्थिक समानता विकसित किया था......
  • Sunil Khobragade satyajitaji I M writing series of articles on this topic.you may get most of the possible answers arose in your mind.I M also planning to publish a book of these articles.it is premature to indulge with your points
  • Satyajit Maurya Thanks ! For kind information My Point already include in the book of "To Uphold the world A call for a New Global ethic from Ancient India" by Bruce Rich..and My book 'The Great Ashoka & worldly brotherhood will publish soon........
    14 hours ago · Like · 1
  • DrSandeep N. Nandeshwar 100 % Agree sir ji...

    Ambedkarwad ki paribhasha ko drudhmay karane ke sankalp se hame in tathyo par kam karna jaruri hai.

    great going sir ji.
    4 hours ago · Like · 1

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