Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Sunday, May 18, 2014

अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों! नीले झंडे और लाल रिबन का प्रयोग पहले ही हो चुका है दोस्तों! लाल झंडे के साथ नीला रिबन देखने की अब बारी है।

अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों!

नीले झंडे और लाल रिबन का प्रयोग पहले ही हो चुका है दोस्तों!

लाल झंडे के साथ नीला रिबन देखने की अब बारी है।


पलाश विश्वास


कांशीराम का फार्मूला पूरी तरह फेल हो गया।पचासी फीसद का समीकरण संघी छापामार हमले में ध्वस्त है।संघ परिवार ने ओबीसी मास्टरकार्ड से बहुजन आंदोलन को वामपंथियों के साथ साथ जमींदोज कर दिया है।


जात पांत अस्मिता की राजनीति करने वाले सारे क्षत्रप धराशायी हो गये और उनका अब तक साथ निभाकर भारतभर में  कम्युनिस्ट विचारधारा और आंदोलन को फर्जी धर्मनिरपेक्षता से सत्तासुख हेतु खत्म करने के लिए हरसंभव जुगत लगाने वाले वामपंथी भी खेत रहे।


ध्यान रहे कि केसरिया सुनामी के मुकाबले साबुत बचे नवीन पटनायक और ममता बनर्जी की राजनीति अस्मितावाचक नहीं है।


नवीन कारपोरेट के लिए कारपोरेट दवारा कारपोरेट का राज चलाकर कायम हैं तो ममता वामविरोधी महाचंडिका हैं।मुक्त बाजार की महानायिका हैं।


दक्षिण में जयलिलता अन्नाद्रमुक के जरिये कोई पेरियार का आंदोलन नहीं चला रहीं है।


तीनों जात पांत से ऊपर ओड़िया,बंगाली और तमिल राजनीति कर रहे हैं।अब संघ ही उनका इलाज करेगा।


बंगाल में सामाजिक परिदृश्य में बदलाव इसलिए असंभव है क्योंकि यहां अस्पृश्यता का रसायन अत्यंत वैज्ञानिक है।सत्तावर्ग में ब्राह्मणों के साझेदार कायस्थ और वैद्य हैं तो पिछड़ों की पूरी जमात सत्तावर्ग के साथ नत्थी है।


बंगाल में दलितों,मुसलमानों और आदिवासियों की दुकानें अलग अलग हैं।बाकी देश में भी संघ परिवार ने ये ही हालात बना दिये हैं।


यही राम राजत्व का आधार है।


संख्या में भारी पिछड़े अगर किसी बदलाव में भाग नहीं लेते तो बदलाव हो नहीं सकता।पिछड़े अगर बदलाव की ठान लें तो बदलाव होकर रहेगा।


विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल रपट लागू करके पिछड़ों को साधने का नाकाम अभियान चलाकर खुद फेल होकर देश को नवउदारवादी महाविध्वंस के हवाले कर गये तो संघ परिवार ने कमंडल आंदोलन में पिछड़ों को ऐसे जोत लिया कि नतीजा सामने है।


अब बहुजन सिर्फ नारा है,बहुजनों में पिछड़े हरगिज नहीं है और न होंगे।पिछड़े सत्तावर्ग में शामिल हैं और सत्ता वे न दलितों के साथ शेयर करेंगे और न मुसलमानों के साथ।


2014 का सबसे खतरनाक नतीजा यह है।


पिछड़ी जमात का सत्तावर्ग में सामूहिक स्थानांतरण।


इसीलिए बेहद जतन से ओबीसी ब्रांडइक्विटी के साथ नमो मिथक रचकर देश उनके हवाले कर दिया गया।


यह सबसे बड़ी सोशल इंजीनियरिंग है।


इसमें मुद्दे की बात यह है कि उत्तरप्रदेश की तैंतीस सीटों में दूसरे नंबर पर आने के बावजूद खिंसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोंचती मायावती के लिए शायद सांत्वना पुरस्कार है कि उनकी सोशल इंजीनियरिंग कोई फेल नहीं हुई है,बस उनके खिलाफ ही इस्तेमाल हो गयी।


सवर्णों को गुलाम बनाकर बहुजनों के साथ नत्थी करने का बदला सवर्णों ने चुका ही दिया।उत्तरप्रदेश में दशकों बाद संपूर्ण सवर्ण सत्ता के पूरे आसार दीखने के बाद सवर्ण फिरभी मायावती को वोट देते,ऐसा असंभव हुआ नहीं है।


वोटों के प्रतिशत से चौतरफा हार के बावजूद आज की तारीख में भी मायावती ही दलितों की एकमात्र नेता हैं,इसका उनको आभार मानना चाहिए।


अब जनम क्या,मरण क्या,कुछ खेती की सेहत का बंदोबस्त करो दोस्तों!


नीले झंडे और लाल रिबन का प्रयोग पहले ही हो चुका है दोस्तों!


लाल झंडे के साथ नीला रिबन देखने की अब बारी है।


अब जाहिर है कि बहुजन राजनीति पहचान के आधार पर हो ही नहीं सकती और वाम आंदोलन भी बहुजन नेतृत्व के बिना असंभव है,इस हकीकत को समझो दोस्तों!


मायावती में राजनीतिक दृष्टि हो तो पहल करें सबसे पहले वे।


वामपंथी फिर प्रासंगिक होना चाहते हैं तो बहुजन नेतृत्व को मानें सबसे पहले।


सवर्म वर्ण  नस्ल  लिंग वर्चस्व को तोड़ें और मुकम्मल परिवर्तन के लिए सड़क पर उतरने से पहले बहिस्कृत जमात को  साथ लेकर चलना सीखें संघ परिवार की तरह ।


हां,संघ परिवार की तरह।


जिसने एक तेली को प्रधानमंत्री बनाया अपना अंतिम लक्ष्य हिंदू राष्ट्र को हासिल करने के लिए।


जनपक्षधरों की समाजिक बदलाव की चिंता है तो दोनों परस्परविरोधी समूहों को गोलबंद की पहल करें सबसे पहले।


कांशीराम ने अंबेडकरी आंदोलन को भटकाया अस्मिता राजनीति में तो मायावती ने कांशीराम को उनके जीते जी खारिज करके बहुजन समाज के विस्तार सर्वजनहिताय मार्फत करने की सोशल इंजीनियरंग करके दिखा दी।एकबार पूर्ण बहुमत अकेले दम हासिल करके भी दिखा दिया।


अब उन्हींकी सोशल इंजीनियरिंग में बंगाली तड़का लगाकर सवर्णों और पिछड़ों को एकसाथ केसरिया बनाकर गायपट्टी के साथ साथ संघ परिवार ने पूरा देश जीत लिया तो कम से कम मायावती को शिकायत नहीं करनी चाहिए।


कायदे से अंबेडकरी आंदोलन और सर्वस्वहाराओं की लड़ाई में वामपंथियों को बहुजन नेतृत्व में प्रतिरोध की राजनीति करनी चाहिए थी तो इस आत्मघाती सोशल इंजीनियरिंग के फंदे से बच जाते।


अब भी वक्त है दोस्तों,केसरिया कारपोरेट राज के मुकाबले कांग्रेस कोई विकल्प है नहीं,जाहिर सी बात है।


उसकी शिकस्त के लिए हमें संघ परिवार का आभार मानना चाहिए।


कल रात बारह बजे मैं आनलाइन था तो गुगल पर डुडल में बर्थडे केक सजा मिला।यह वर्च्युअल जन्मदिन है।जन्मदिन का केक भी वर्च्युअल।बधाइयां भी थोक भाव से मिली आभासी दुनिया में।


सुबह से किसी ने आमने सामने जन्म दिन मुबारक नहीं कहा,न फोन पर किसी ने ऐसा कहा।सविता को मैंने दोपहर बाद गुगल का डुडल दर्शन कराया तो बोली,अच्छा आज जन्मदिन है।


हमारे क्लास में जन्मदिन मरणदिन नाम का कुछ भी नहीं होता।


इस देश में किसान परिवारों में जन्म मृत्यु समान है।


न खुशी मनाने का मौका होता है और न गम।


मेरा जन्म शरणार्थी आंदोलनों से लेकर ढिमरी ब्लाक किसान विद्रोह के मध्य हुआ है।टाइमिंग मालूम है सबको।मेरे गांव बसंतीपुर वालों को बस इतना मालूम है कि 1956 में आंदोलन के बाद बीच जंगल में जो गांव बसा,उसमें मैं,टेक्का और हरि पहले साल की फसल हैं।हममें से किसी की कोई कुंडली नहीं है।


हमारे सारे सगे,चचेरे तहेरे भाइयों बहनों के यहां एक या दो बच्चे का फार्मुला है,बड़ी दीदी मीरा का विवाह 1960-61 में हुआ तो उनके चार बेटे हुए और उनमें से भी बड़े और मंझले का निधन हो गया।


संयुक्त परिवार में हमारी तेरह बहनें हैं।मेरे तीन,तहेरे एक और चचेरे दो भाई है।कुनबा अब तीसरी चौथी पीढ़ी में है।वे लोग जिन ग्रामीण समाज में जीते हैं,वहां पैसा बहुत मायने रखता है।


औकात पैसे से आंकी जाती है।हम अब रिश्तेदारियों के जाल में फंसे अपने घर जाने से हिचकते हैं इसलिए कि उनकी चाहत की रोशनी में खुद के नंगे हो जाने का डर लगा रहता है।


अब नैनीताल समेत तमाम बहनों के यहां आने जाने लेन देन की लागत तीस से पचास हजार है,जो मेरी औकात से बाहर है।जाना है तो सबके यहां जाना भी है।बिना लेन देन के वे मानने वाले भी नहीं हैं।


हम कोलकाता में निपट अकेले हैं।किराये के मकान में रहे हैं।किताबों और कंप्युटर के अलावा कोई आसबाब नहीं है।


मेरी कोई महत्वाकांक्षा बची नहीं है।

सविता की एक ही आशंका है कि सड़ सड़कर मरना न पड़े।


मेरे पिता अपढ़ थे।लेकिन पढ़ते रहते थे।पढ़े लिखे की ताकत जानते थे और आजादी का मोल भी खूब समझते थे।


उन्होंने हमारी जन्मकुंडली नहीं बनवायी।हमें अच्छी शिक्षा दिलाने की भरसक कोशिश की क्योंकि वे शरणार्थी और किसान के अलावा मतुआ भी थे।


मतुआ आंदोलन का सार है रोटी से भी बड़ी चीज है शिक्षा।उन्होंने हमें अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने की पूरी छूट दी।


हम पढ़े लिखे नहीं होते तो अपने खेत खलिहान में धूप पानी में गल रहे होते और शायद ही अपने गांववालों के अलावा किसी के मुखातिब हो पाते।हमारे लोगों के मुकाबले ,इस देश के वंचित करोड़ों लोगों के मुकाबले हमें बहुत ज्यादा मिला है।बोनस में मिला है अथाह प्यार,जो अप्राप्त म्मान,मान्यता और पुरस्कार प्रतिष्ठा से बेशकीमती है।


कल रात से उस प्यार का हाथ छूट ही नहीं रहा है।गुगल को धन्यवाद।धन्यवाद हमारे प्राइमरी टीचर पीतांबर पंत जी को जिन्होंने यह तिथि हमारे प्लेट में सजाकर रख दी।धन्यवाद फेसबुक का,जिसके जरिये इतने लोगों का देश भर से संदेश आया।


हम अलग अलग सबको जवाब नहीं दे सकते।


जिनका संदेश टाइम लाइन पर दिखा,उन्हें आभार कह दिया।


बाकी मात्र संख्या है संदेश देने वालों की।जो आभासी है।


सबका आभार।

बेहद कठिन समय है।डगर मुश्किल, आगे की राह आपदाएं ही आपदाएं सर्वग्रासी।


हमें उम्मीद है कि शुभकामनाों तक सीमाबद्ध नहीं रहेंगे सारे मित्र।उनमे से दो चार जो हमसे सहमत भी हों,हमारी मुहिम में हमारा साथ भी देंगे,ऐसी उम्मीद का दुस्साहस की इजाजत भी दें।


जनम मरण तो लगा रहता है लेकिन खेती चौपट नहीं होनी चाहिए,ऐसा हमारे गांव के बुजुर्ग कहते थे।


लेकिन हम हैं कि खेती की क्या कहें,गांव देहात,खेत खलिहान से कटे लोग हैं हम,जड़ों तक उड़ान भर ही नहीं सकते।


पांख हैं ही नहीं,हजार मजबूरियां काँख में हैं।


मित्रों, देश में परिवर्तन भी माफ करें,हमारे जन्मदिन की तरह आभासी है।


बार बार हम इस आभासी परिवर्तन से ठगे जाते रहे हैं।


देश अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त हुआ तो हम जनगण मन विधायक गाते हुए सावधान मुद्रा में गदगदाये रहे।


सात दशक बीतने को चला और आजादी सिरे से लापता है।


साठ के दशक में राज्यों में कांग्रेस का पतन हुआ तो हमें लगा कि परिवर्तन होने लगा है।


साठ सत्तर के दशक में भारी उथल पुथल क्रांति के स्वप्न को लेकर मची जिसमें हमारी युवा पीढ़ी मशगुल रही और देखते देखते संपूर्ण क्रांति में निष्णात होते हुए हममें से ज्यादातर जिस व्यवस्था को बदलने की कसम खाकर चले थे,उसीमें समाहित हो गये।


1975 में आपातकाल आया तो लगा आपातकाल का अंत ही परिवर्तन है।अंत भी हुआ।आम चुनाव में हारीं इंदिरा गांधी। कांग्रेस का देशव्यापी प्रथम पराभव हुआ।सारे रंग एकाकार हो गये।लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात।


फिर हर गैरकांग्रेसी सत्ता को हम बारंबार  परिवर्तन का अग्रदूत मान कर चलते रहे और हर बार मायूस अंगूठा चूसते रहे।


1984 में हिंदू हितों की सरकार बनी संघी तत्परता से सिखों के नरसंहार के बाबत,लोगों ने उसे भी परिवर्तन माना।


इसीतरह गुजरात में 2002 के नरसंहार के बाद नमो निरंतराता को भी परिवर्तन मानकर गुजरात माडल अपना लिया है देश ने।


1991 में आर्थिक सुधारों के नाम पर परिवर्तनों का सैलाब अभी थमा नहीं है और न थमने के आसार हैं।


कारपोरेट राज अब मुकम्मल हिंदू राष्ट्र है।


बंगाल में वाम पंथ के अवसान को बंगाली जनता ने हरित क्रांति मान ली तो गाय पट्टी और बाबासाहेब की कर्मभूमि महाराष्ट्र में भी नीली क्रांति का पटाक्षेप हो गया।


समाजवादी खेमा भी ध्वस्त है।चारों तरफ केसरिया आधिपात्य है।


ऐसी पृष्ठभूमि में क्या तो जन्मदिन और क्या तो मरणदिन।


अपनी अपनी अस्मिता का तमगा धारण किये देश के चौतरफा सत्यानाश के एटीएम से नकद लेने की मारामारी है।रातोंरात लोगो की विचारधाराएं और प्रतिबद्धताएं बदल गयीं।वक्तव्य बदल गये।


सबसे बड़ा परिवर्तन तो यह सूर्य प्रणाम है।


रामराज्य में लाल नीले असुरों का वध संपन्न है और शेयर बाजार धायं धायं है।


इकानोमिक टाइम्स और तमाम अंग्रेजी अखबारों में रोज सिलसिलेवार तरीके से छप रहा है कि कैसे अब तक 22 हजारी से पच्चीस हजारी पार शेयर सूचकांक तीसहजार कैसे और कब होना है,नीफ्टी कैसे डाबल होने जा रही है।कैसे छह महीने में अर्तव्यवस्था का कायाकल्प हो जायेगा।कैसे निवेशकों के हित सुरक्षित किये जाते रहेंगे।विनिवेश निजीकरण की प्राथमिकताएं भी उदात्त घोषणाएं हैं।


गायपट्टी में सवर्ण अछूतों और पिछड़ों के सत्ताबाहर हो जाने और फिर आर्यावर्त के पुनरूत्थान से बल्ले बल्ले है तो क्रांतिभूमि बंगाल केसरिया है।इतना अधिक केसरिया कि 42 में से 34 लोकसभा सीटें जीतकर जयललिता के 36 के मुकाबले कांग्रेसी शिकस्त की वजह से प्रधानमंत्रित्व की दौड़ में मोदी से चार इंच पिछड़ने वाली ममतादीदी उनको कमर में रस्सी डालकर घुमा कर जेल तो नहीं ही भेज सकीं,बल्कि उनके शब्दों में दंगाबाज पार्टी उनके अपने विधानसभा क्षेत्र कोलकाता के भवानीपुर में उनकी पार्टी पर बढ़त बनाकर दूसरे नंबर पर रह गयी।


कोलकाता की दूसरी सीट पर भी दूसरे नंबर पर।दोनों सीटों पर पच्चीस फीसद से द्यादा केसरिया वोट।राज्य में सर्वत्र लाल नील गायब।


हरे के मुकाबले केसरिया ही केसरिया।


विधानसभा चुनावों में भीरी खतरा है दीदी को।


एक परिवर्तन मुकम्मल न होते होते दूसरे परिवर्तन की तैयारी।


कट्टर हिंदुत्ववादी अछूत पिछड़ी बिरादरी के सत्ता बाहर होने से खुश हैं तो पिछड़े आमोखास ओबीसी राजनीति के  केसरियाकरण के चरमोत्कर्ष पर नमोनमो जयगान के साथ गायत्री जाप कर रहे हैं।


कश्मीर में भी केसरिया तो तमिलनाडु,बंगाल और असम में भी केसरिया,फिर अरुणाचल और अंडमान में भी।केसरिया राष्ट्रवाद की ऐसी बहार ने किसी ने देखी और न सुनी।


बंगाल में बड़ी संख्या में लोग उत्सुक है कि वायदे के मुताबिक प्राण जाये तो वचन न जाये तर्ज पर नमो कब कैसे मुसल्लों को यानी बांग्लादेशी घुसपैठियों को कैसे भारत बाहर कर देंगे।


बेचारे शरणार्थी हिंदुत्व की दुहाी देकर विबाजन के बाद भारत आये तो अब भी वहीं हिंदुत्व उनकी रही सही पूंजी है और उम्मीद बांधे हुए हैं कि अब उनका भाग्य परिवर्तन होगा और भारत विभाजन के सातवें दशक में भारतीय नागरिक बतौर उनके हक हकूक बहाल होंगे।


ज्यादा पढ़े लिखे इंटरनेटी मतवालों को भरोसा है कि छप्पन इंच की छाती की गरज से भारत विभाजन का इतिहास पलट जायेगा और बाबरी विध्वंस की नींव पर भव्य राम मंदिर की तरह अखंड भारत का भूगोल तामीर होगा और चक्रवर्ती सम्राट पुष्यमित्र शुंग की तरह नमो सम्राट भारतभर में एक मुश्त सत्य त्रेता द्वापर का सनातन हिंदुत्व की विजयध्वजा फहराकर भारतीय संविधान को गंगा में बहाकर मनुस्मृतिराज और संस्कृत राष्ट्रभाषा का दिवास्वप्न साकार कर देंगे।


इस संप्रदाय की इतिहास अर्थशास्त्र में उतनी ही रुचि है जितनी आम जनता की।


इतिहास उनके लिए उपनिषद पुराण रामायण महाभारत की कथाएं और मिथक हैं।तो अब तक का सबसे बड़ा मिथक तो रच ही दिया गया है।उसी मिथक के मुताबिक हर संभव परिवर्तन की उम्मीद है लोगों की।


जय हो।जयजयजय हो।जयगाथा गाते चलें कि जनम मरण से आता जाता कुछ भी नहीं।


No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk