Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Tuesday, May 13, 2014

तेरी तलवार और नफरत से ज़्यादा ताकतवर हथियार मौजूद हैं हमारे पास ओ हत्यारे

तेरी तलवार और नफरत

से ज़्यादा

ताकतवर हथियार मौजूद हैं हमारे पास

ओ हत्यारे

पलाश विश्वास

विवाह के बाद पहलीबार अपने गृहनगर नैनीताल में झील किनारे हमदोनों।

बसंतीपुर में झोपड़ियों के मध्य हमारा घर और घर के लोग।मेरे दोनों भाई पद्दोलोचन और पंचानन,मेरे ताउजी,मेरे पिताजी और मां के साथ हम सभी।

ढिमरी ब्लाक किसान विद्रोह के नेता मेरे पिता जो रीढ़ में कैंसर लेकर सीमाओं,समूहों,समुदायों और नस्लों के आरपार लाखों मील पैदल,साइकिल,बस ट्रेन यात्रा मार्फत दौड़ते रहे बिना वोट मांगे और उनके साथ मेरी मां,जिन्होंने बसंतीपुर नाम का गांव अपने नाम कर दिये जाने के बाद दोबोरा अपने मायके भी नहीं गयीं और उस गांव के लोगों की होकर गैंगरीन की शिकार हो गयीं।

यह आलेख पढ़ने से पहले पढ़ लेंः

मनमोहन की आर्थिक नीतियों को सही ठहराते हुए जेटली ने शान में पढ़े कसीदे - See more at: http://www.hastakshep.com/hindi-news/%e0%a4%b2%e0%a5%8b%e0%a4%95%e0%a4%b8%e0%a4%ad%e0%a4%be-%e0%a4%9a%e0%a5%81%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b5-2014/2014/05/13/%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a4%ae%e0%a5%8b%e0%a4%b9%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%86%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a5%e0%a4%bf%e0%a4%95-%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%a4%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82#.U3JAbIGSxCE



सबसे पहले एक खुशखबरी।हमारे आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े को मैसूर में कर्नाटक ओपन यूनिवर्सिटी से मानद डीलिट की उपाधि दी गयी है।हम उम्मीद करते हैं कि इससे उनकी कलम और धारदार होगी और वे निरंतर संवाद कीपहल करते रहेंगे।दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन में आनंद ने उच्चशिक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और ज्ञानबाजार के खिलाफ युद्धघोषणा की है।हमने अंग्रेजी में उनके मूल वक्तव्य और दक्षिण भारत के अखबारों में व्यापक कवरेज पहले ही साझा कर दिया है।यह सामग्री हिंदी में आने पर इसपर भी हम संवाद की कोशिश करेंगे।आनंद जी को हमारी बधाई।

हमारे गांधीवादी अग्रज,ख्यातिलब्ध हिमांशु कुमार की ये पंक्तियां शेयरबाजारी जनादेश के मुखोमुखी देश में हो रहे उथल पुथल को बहुत कायदे से अभिव्यक्त करती हैं।


हम हिमांशु जी के आभारी है कि जब हमें मौजूदा परिप्रेक्ष्य में चौराहे पर खड़े मुक्तिबोध के अंधेरे को जीने का वर्तमान झेलना पड़ रहा है,तब उन्होंने बेशकीमती मोमबत्तियां सुलगा दी है।


कांग्रेस को क्या एक किनारे कर दिये गये प्रधानमंत्री के दस साला अश्वमेधी कार्यकाल में हम फिर सत्ता में देखना चाहते थे,अपनी आत्मा को झकझोर कर हमें यह सवाल अवश्य करना चाहिए।


क्या हम धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील राजनीतिक खेमे के पिछले सत्तर साला राजनीतिक पाखंड से ऊबे नहीं हैं अबतक और नवउदारवादी साम्राज्यवादी नस्ली जायनवादी कारपोरेट राज में सत्ता शेयर करने खातिर मेहनतकश सर्वस्वहारा बहुसंख्य भारतीयों के खिलाफ उनके संशोधनवादी दर्शन को हम तीसरा विकल्प मानकर चल रहे थे,हकीकत की निराधार जमीन पर,इसका आत्मालोचन भी बेहद जरुरी है।


फिर क्या हम उन सौदेबाज मौकापरस्त अस्मिता धारक वाहक क्षत्रपों से उम्मीद कर रहे थे कि कल्कि अवतार के राज्याभिषेक क वे रोक देंगे और हर बार की तरह चुनाव बाद या चुनाव पूर्व फिर तीसरे चोथे मोर्चे का ताजमहल तामीर कर देंगे,इस पर भी सोच लें।


या फर्जी जनांदोलन के फारेन फंड,टीएडीए निष्णात एनजीओ जमावड़े से हम उम्मीद कर रहे थे कि वे फासीवाद का मुकाबला करेंगे विश्वबैंक,अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष,यूरोपीय समुदाय के सीधे निर्देशन और नियंत्रण में और मौजूदा भ्रष्ट धनपशुओं के करोड़पति तबके के खिलाप भारतीय जनता के गहरे आक्रोश,सामाजिक उत्पादक शक्तियों और खासतौर पर छात्रों,युवाजनों और स्त्रियों की बेमिसाल गोलबंदी को गुड़गोबर कर देने के उनके एकमात्र करिश्मे,प्रायोजित राजनीति के एनजीओकरण से हम अपनी मुक्ति का मार्ग तलाश रहे थे।

असल में हमने धर्मन्मादी ध्रूवीकरण की आग को हवा देकर कल्कि अवातर के लिए पलक पांवड़े बिचाने का काम किया चुनाव आने तक इंतजार करते हुए वोट समीकरण के अस्मिता पक्ष की गोलबंदी पर दांव लगाकर,जमीन पर आम जनता की गोलबंदी की कोशिश में कोई हरकत किये बिना।

संविधान पहले से देश के वंचित अस्पृश्य बहिस्कृत भूगोल में लागू है ही नहीं।कानून का राज है ही नहीं।नागरिक मानव और मौलिक अधिकारों का वजूद है नहीं।लोकतंत्र का मतलब सिर्फ पांच साला मताधिकार है।सारा कुछ बाजार में तब्दील है।पूरा सत्यानाश तो पिछले तेइस साल में हो ही चुका है।कल्कि अवतार बाकी अधूरे बचे कत्लेआमएजंडे को अंजाम देंगे, बिना शक।लेकिन राष्ट्र व्यवस्था का जो तंत्र मंत्र यंत्र है,उसमें वैश्विक जायनवादी मनुस्मृति व्यवस्था के इस साम्राज्य में कल्कि अवतरित न भी होते तो क्या बच्चे की जान बच जाती,इसे तौलना बेहद जरुरी है।खासकर तब जब जनादेश से तयशुदा खारिज कांग्रेस की सरकार जिस तरह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से लेकर पूंजी के हित में ताबड़तोड़ फैसले थोंप रही है एकदम अनैतिक तरीके से जाते जाते,समझ लीजिये कि यह सरकार वापस लौटती तो अंजामे गुलिस्तान कुछ बेहतर हर्गिज नहीं होता।

हमने आगे की सोचा ही नहीं है और इस दो दलीय कारपोरेट राज को मजबूत बनाकते तंत्र मंत्र यंत्र को तोड़ने के सिलसिले में अब तक कोई पहल ही नहीं की है।

शेयरबाजारी मीडिया सुनामी के मध्य कल्कि अवतार के राज्याभिषेक के इंतजार में पलक पांवड़े बिछाये धर्मोन्मादी पैदल सेनाओं के मुकाबले जनविरोधी कांग्रेस की शर्मनाक विदाई पर विलाप करने वाले हमारे लोग दरअसल एक समान हैं जो जाने अनजाने इस कारपोरेट कारोबार को जोरी रखना चाहते हैं।

तानाशाही है,तो लड़ना होगा साथी।लेकिन हम पिछले सात दशकों में मुफ्त में मिली आजादी की विरासत को लुटाने के सिवाय राष्ट्रहित में जनहित में जनता के मध्य किसी तरह की कोई पहल करने से नाकाम रहे और हर बार वोट के फर्जी हथियार से तिलिस्म तोड़ने का सीधा रास्ता अख्तियार करके अंततः अपने ही हित साधते रहे।अपनी ही खाल बचाते रहे।

तानाशाह कोई व्यक्ति हरगिज नहीं है,तानाशाह इस सैन्य राष्ट्र का चरित्र है,जिसने लोकगणराज्य को खा लिया है।फासीवादी तो असल में वह कारपोरेट राज है जिसे बारी बारी से चेहरे भेष और रंग बदलकर वर्स्ववादी सत्तावर्ग चला रहा है और हम भेड़धंसान में गदगद वधस्थल पर अपनी गरदन नपते रहने का इंतजार करते हुए अपने स्वजनों के खून से लहूलुहान होते रहे हैं।प्रतिरोध के बारे में सोचा ही नहीं है।

गांधीवादी हिमांशु जी की ये पंक्तियां इसीलिए गौर तलब है।

मैं सदा हत्यारे शासकों के खिलाफ रहा

जब शासक कर रहे थे जन संहार

और शासक चाहते थे कि मैं हत्याओं के बारे न लिखूं

और सभी कवि बस

रेशम और प्रेम के गीत लिखें

उस दौर में मैंने जान बूझ कर हत्याओं के खिलाफ लिखा

जब हत्यारे शासकों ने अपनी हत्यारी कीर्ति को अमर करवाने के मकसद से

चाहा कि मैं उनके द्वारा की गयी हत्याओं के बारे में लिखूं तब मैंने जान बूझ कर

प्रेम के गीत गाये

हत्यारे शासक चाहते थे कि शासकों द्वारा अजन्मे बच्चों की हत्याओं

के बारे में कवि गीत लिखें ताकि

नाफिज़ हो सके खौफ

रियाया के दिलों में

तब मैंने जान बूझ कर

गर्भ में पलते अजन्मे बच्चों

के लिए आशीर्वाद के गीत गाये

ओ हत्यारे शासक

मेरे सारे प्रेम गीत

तेरे द्वारा करी गयी हत्याओं के विरोध में लिखे गए हैं

मेरी कविताओं की चिडियाँ ,फूल और बच्चे

अवाम को तेरी हत्याओं के खौफ से लड़ने का हौसला देंगे

तेरी तलवार और नफरत

से ज़्यादा

ताकतवर हथियार मौजूद हैं हमारे पास

ओ हत्यारे

मैं सदा हत्यारे शासकों के खिलाफ रहा   जब शासक कर रहे थे जन संहार   और शासक चाहते थे कि मैं हत्याओं के बारे न लिखूं   और सभी कवि बस   रेशम और प्रेम के गीत लिखें   उस दौर में मैंने जान बूझ कर हत्याओं के खिलाफ लिखा     जब हत्यारे शासकों ने अपनी हत्यारी कीर्ति को अमर करवाने के मकसद से   चाहा कि मैं उनके द्वारा की गयी हत्याओं के बारे में लिखूं तब मैंने जान बूझ कर   प्रेम के गीत गाये      हत्यारे शासक चाहते थे कि शासकों द्वारा अजन्मे बच्चों की हत्याओं   के बारे में कवि गीत लिखें ताकि   नाफिज़ हो सके खौफ   रियाया के दिलों में   तब मैंने जान बूझ कर   गर्भ में पलते अजन्मे बच्चों   के लिए आशीर्वाद के गीत गाये     ओ हत्यारे शासक   मेरे सारे प्रेम गीत   तेरे द्वारा करी गयी हत्याओं के विरोध में लिखे गए हैं   मेरी कविताओं की चिडियाँ ,फूल और बच्चे  अवाम को तेरी हत्याओं के खौफ से लड़ने का हौसला देंगे     तेरी तलवार और नफरत   से ज़्यादा   ताकतवर हथियार मौजूद हैं हमारे पास   ओ हत्यारे


संजोग से आज सविता और मेरे विवाह की बत्तीसवीं सालगिरह है जिसे हर बार मैं भूल जाता हूं और सविता एकतरफा याद रखती है।इसबार उनका उलाहना गजब है कि बत्तीस साल के वैवाहिक जीवन में हमने बत्तीस सौ भी नहीं जोड़ा।हम दुःखी होने के बजाय खुश हुए यह समझकर कि कम से कम इस मामले में तो हम अपने दिवंगत पिता के चरणचिन्ह पर चल रहे हैं जो हमारे लिए आंदोलन और संघर्ष की विरासत के अलावा कुछ भी नहीं छोड़ गये।उनकी जुनून की हद तक की प्रतिबद्धता,अपने मेहनतकश सर्वस्वहारा के हालात बदलने के लिए सदाबहार बेचैन सरोकार के आसपास भी नहीं हैं हम,आज पहलीबार इस शर्मींदगी से राहत मिली।


इससे पहले हम लिख चुके हैं लेकिन हिमांशु जी की इन पंक्तियों के आलोक में फिर दोहरा रहे हैं कि अगर आप नजर अंदाज कर चुके हैं तो फिर गौर करने की कोशिश जरुर करेंः


मुसलमानों का अल्लाह एक है।उपासना स्थल एक है।उपासना विधि एक है। अस्मिता उनका इस्लाम है।जनसंख्या के लिहाज से वे बड़ी राजनीतिक ताकत है।


रणहुंकार चाहे जितना भयंकर लगे,देश को चाहे दंगों की आग में मुर्ग मसल्लम बना दिया जाये,गुजरात नरसंहार और सिखों के नरसंहार की ऐतिहासिकघटनाओं के बाद अल्पसंख्यकों ने जबर्दस्त प्रतिरोध खड़ा करने में कामयाबी पायी है।


जिस नागरिकता संशोधन विधेयक पर बहुसंख्यकों ने भारत विभाजन के बलि करोड़ों हिंदू शरणार्थियों के देश निकाले के फतवे का आज तक विरोध नही किया, मोदी के मुसलमानों के खिलाफ युद्धघोषणा के बाद उस पर चर्चा केंद्रित हो गयी है।


अब हकीकत यह है कि कारपोरेट देशी विदेशी कंपनियों की पूंजी जिन आदिवासी इलाकों में हैं,वहां आदिवासियो के साथ हिंदू शरणार्थियों को बसाया गया।इन योजनाओं को चालू करने के लिए हिंदुओं को ही देश निकाला दिया जाना है,जैसा ओडीशा में टाटा,पास्को ,वेदांत साम्राज्य के लिए होता रहा है।



आदिवासी  इलाकों में मुसलामानों की कोई खास आबादी है नहीं।जाहिर है कि इस कानून के निशाने पर हिंदू शरणार्थी और आदिवासी दोनों हैं।


कल्कि अवतार और उनके संघी समर्थक हिंदुओं को मौजूदा कानून के तहत असंभव नागरिकता दिलाने का वादा तो कर रहे हैं लेकिन नागरिकता वंचित ज्यादातर आदिवासी नागरिकों की नागरिकता और हक हकूक के बारे में कुछ भी नहीं कह रहे हैं।जबकि आदिवासी बहुल राज्यों मध्य प्रदेश,झारखंड,छत्तीसगढ़,गुजरात और राजस्थान में सेलरिया हुकूमत है जहां बेरोकटोक सलवा जुड़ुम संस्कृति का वर्चस्व है।


खुद मोदी गर्व से कहते हैं कि देश की चालीस फीसदी आदिवासी जनसंख्या की सेवा तो केसरिया सरकारें कर रही हैं।



अब विदेशी पूंजी के अबाध प्रवाह, रक्षा,शिक्षा, स्वास्थ्य, उर्जा, परमाणु उर्जा, मीडिया, रेल मेट्रो रेल,बैंकिंग,जीवन बीमा,विमानन, खुदरा कारोबार समेत सभी सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश,अंधाधुंध विनिवेश और निजीकरण के शिकार तो धर्म जाति समुदाय अस्मिता और क्षेत्र के आर पार होंगे।


खेत और गांव तबाह होंगे तो न हिंदू बचेंगे ,न मुसलमान, न सवर्णों की खैर है और न वंचित सर्वस्वहारा बहुसंख्य बहुजनों की।


इस सफाये एजंडे को अमला जामा पहवनाने के लिए संवैधानिक रक्षा कवच तोड़ने के लिए नागरिकता और पहचान दोनों कारपोरेट औजार है।


अब खनिजसमृद्ध इलाकों में प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूटखसोट की तमाम परियोजनाओं को हरीझंडी देना कारपोरेट केसरिया राज की सर्वोच्च प्राथमिकता है और इसके लिए सरकार को ब्रूट,रूथलैस बनाने का ब्लू प्रिंट तैयार है । इसके साथ ही पुलिस प्रशासन और सैन्य राष्ट्र की पाशविक शक्ति का आवाहन है।


अब मसला है कि हिंदुओं और मुसलमानों,आदिवासियों, तमाम जातिबद्ध क्षेत्रीय नस्ली अस्मिताओं कोअलग अलग बांटकर वोटबैंक समीकरण वास्ते कारपोरेट हाथों को मजबूत करके अग्रगामी पढ़े लिखे नेतृत्वकारी मलाईदार तबका आखिर किस प्रतिरोध की बात कर रहे हैं, विचारधाराों की बारीकी से अनजान हम जैसे आम भारतवासियों के लिए यह सबसे बड़ी अनसुलझी पहेली है।


यह पहेली अनसुलझी है।लेकिन समझ में आनी चाहिए कि इस देश के शरणार्थी हो या बस्तीवाले,आदिवासी हों या सिख या मुसलमान, वे अपनी अपनी पहचान और अस्मिता में बंटकर बाकी देश की जनता के साथ एकदम अलगाव के मध्य रहेंगे और सत्तावर्ग प्रायोजित पारस्पारिक अंतहीन घृणा और हिंसा में सराबोर रहेंगे,तो वध स्थल पर अलग अलग पहचान,अलग अलग जाति, वर्ग ,समुदाय,नस्ल,भाषा,संस्कृति के लोगों की बेदखली और उनके कत्लेआम का आपरेशन दूसरे तमाम लोगों की सहमति से बेहद आसानी से संपन्न होगी।


जो पिछले सात दशक के वर्णवर्चस्वी राजकाज का सारसंक्षेप है।फर्क सिर्फ मुक्तबाजार में इस तंत्र यंत्र मंत्र और तिलिस्म के ग्लोबीकरण और सूचना निषेध का है।कुलमिलाकर जिसे सूचना और तकनीकी क्रांति कहा जाता है और जिसका कुल जमा मकसद गैर जरुरी जनता और जनसंख्या का सफाया हेतु आधार कारपोरेट प्रकल्प है।


इसलिए धर्म और जाति और नस्ल के नाम पर घृणा और हिंसा का यह कारोबार सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता का मामला ही नहीं है,यह सीधे तौर पर आर्थिक नरसंहार का मामला है।


साफ तौर पर समझा जाना चाहिए के आदिवासी  वन इलाकों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट के समांतर गैरआदिवासी शहरी और देहात इलाकों में सबसे ज्यादा वार अल्पसंख्यक, दलित,पिछड़ा और वंचित सर्वस्वहारा समुदाय ही होगें जो भूमि सुधार कार्यक्रम की अनुपस्थिति में उतने ही असहाय हैं जितने कि आदिवासी और हिंदू बंगाली शरणार्थी।


अब चूंकि देशज अर्थव्यवस्था और संस्कृति दोनों का कत्ल हो चुका है और उत्पादन प्रणाली ध्वस्त हो जाने से उत्पादन संबंधों के जरिये संगठित और असंगठित क्षेत्रों में तमाम अस्मिताओं की गोलबंदी मुश्किल है,जाति धर्म अस्मिता के खांचे मजबूत करने के केसरिया अश्वमेध का तात्पर्य भी समझना बेहद जरुरी है।


हम उन्हींकी भाषा में अलगाव की चिनगारियां सुलगाकर कहीं प्रतिरोध की रही सही संभावनाएं खारिज तो नहीं कर रहे।


भले ही मुसलमानों,सिखों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों,क्षेत्रीय भाषायी नस्ली राष्ट्रीयता की राजनीतिक ताकत बेहद शख्तिशाली हो,केवल इस आधार पर  हम धर्मोन्मादी बहुसंख्य घृणा और हिंसा के मध्य कारपोरेट जनसंहार अभियान से बच नहीं सकते।


इसी लिए ब्रूट,निर्मम,हिंसक,पाशविक राजकाज के लिए कल्कि अवतार का यह राज्याभिषेक।धर्मनिरपेक्षता,समरसता और डायवर्सिटी जैसे पाखंड के जरिये इस कारपोरेट केसरिया तिलिस्म में हम अपने प्राण बचा नहीं सकते।


नई सरकार बनते ही सबसे पहले बाजार पर रहा सहा नियंत्रण खत्म होगा।सारी बचत,जमा पूंजी बाजार के हवाले होगी। बैंकिंग निजी घरानों के होंगे।सारी जरुरी सेवाएं क्रयशक्ति से नत्थी होंगी।


करप्रणाली का सारा बोझ गरीबी रेखा के आरपार के सभी समुदायों के लोगों पर होगा और पूंजी कालाधन मुक्त बाजार में हर किस्म के उत्तरदायित्व,जबावदेही और नियंत्रण से मुक्त।


अंबानी घराने के मीडिया समूह ने जो केसरिया सुनामी बनायी है और देशभर के मीडियाकर्मी जो कमल फसल लहलहाते रहे हैं,उसकी कीमत दोगुणी गैस कीमतों के रुप में चुनाव के बाद हमें चुकानी होगी और हम यह पूछने की हालत में भी नही होंगे कि भरत में पैदा गैस बाग्लादेश में दो डालर की है और भारत में आठ डालर की,इसके बावजूद गैस की कीमते क्यों बढ़ायी जायेंगी।


आरक्षण और कोटा अप्रासंगिक बना दिये जाने के बाद भी हम लगातार कुरुक्षेत्र में एक दूसरे का वध कर रहे हैं,लेकिन बेरोजगार करोड़ों युवाजनों के अंधेरे भविष्य के लिए हम एक दिया भी नहीं जला सकेंगे।


उपभोक्ताबादी मुक्त बाजार में सबसे शोषित सबसे वंचित सबसे ज्यादा प्रताड़ना,अत्याचार और अन्याय की शिकर महिलाों और बच्चों को अलग अलग अस्मिता में बांदकर न हम उन्हें इस पुरुषवर्चस्वी वर्ण वरस्वी यौनगंधी गुलामी से आजाद कर सकते हैं और न उन्हें प्रतिरोध की सबसे बेहतरीन और ईमानदार ताकत बतौर गोलबंद कर सकते हैं।



दरअसल मुसलमानों,ईसाइयों और सिखों की राजनीतिक ताकत की असली वजह उनमें जाति व्यवस्था और कर्मकांड संबंधी भेदाभेद नगण्य होना है और जब आंच दहकने लगती है तो वे प्रतिरोध में एकजुट हो जाते हैं।


छह हजार जातियों में बंटा हिंदू समाज में कोई भी जनसमुदाय देश की पूरी जनसंख्या के मुकाबले में दो तीन प्रतिशत से ज्यादा नहीं है।


जिनकी आबादी इतनी भी है,वे तमाम शासक जातियां हैं चाहे सवर्ण हो या असवर्ण।


इसके बरखिलाफ शोषित वंचित हिंदू समुदायों और जातियों की अलग अलग जनसंख्या शून्य प्रतिशत के आसपास भी नहीं है।


मुक्त बाजारी स्थाई बंदोबस्त के खिलाफ वे चूं नहीं कर सकते।हिंदू शरणार्थी देश भर में बंगाली,सिख ,तमिल ,कश्मीरी मिलाकर दस करोड़ से कम नही हैं।


मुक्त बाजार के देशी विदेशी कारपोरेट हित साधने के लिए कल्कि अवतार इसीलिए।


मसलन शरणार्थी केसस्टडी ही देखें, डा. मनमोहन सिंह,कामरेड ज्योति बसु और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता हिंदू शरणार्थी समुदायों से हैं।लेकिन शरणार्थी देश भर में अपनी लड़ाई अपनी अपनी जाति,भाषा और पहचान के आधार पर ही लड़ते रहे हैं।


पंजाबियों की समस्य़ा सुलझ गयी तो पंजाबी शरणार्थी नेताओं ने बंगाली शरणार्थियों की सुधि नहीं ली,यह बात तो समझी जा सकती है।


बंगाल की शासक जातियों का जिनका जीवन के हर क्षेत्र में एकाधिकार है,उन्होंने बंगाल से सारे के सारे दलित शरणार्थियों को खदेड़ ही नहीं दिया और जैसा कि खुद लालकृष्ण आडवाणी ने नागरिकता संसोधन कानून पास होने से पहले शरणार्थियों की नागरिकता और पुनर्वास  के मसले पर बंगाली सिख शरणार्थियों में भेदाभेद पर कहा,हकीकत भी वही है,बंगाल और त्रिपुरा के मुख्यमंत्रियों के अलावा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बंगाली सुचेता कृपलानी रही हैं, जिनके जमाने में 64 में पूर्वी बंगाल में अल्पसंख्यक उत्पीड़न के बाद बंगाली हिंदू शरणार्थियों का बहुत बड़ा हुजूम उत्तर प्रदेश भी पहुंच गया थे, उनमें से किसी ने बंगाली हिंदू  शरणार्थियों के पुनर्वास और उनकी नागरिकता के लिए कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभायी ।


विभिन्न राज्यों से चुने जाने वाले बंगाली सांसदों ने,जिनमें आरक्षित इलाकों के वे सांसद भी हैं,जिनकी जातियों के लोग सबसे ज्यादा शरणार्थी हैं,उन्होंने भी इन शरणार्थियों के हक में आवाज नहीं  उठायी।


आडवाणी पंजाबी शरणार्थियों के साथ बंगाली शरणार्थियों के मुकाबले आरोपों का जवाब दे रहे थे और गलत भी नहीं थे।


बंगालियों के मुकाबले पंजाबी राष्ट्रीयता शरणार्थी समस्या पर एकताबद्ध रही है और बंगाल के मुकाबले कहीं ज्यादा खून खराबे के शिकार विभाजित पंजाब के शरणार्थियों की समस्या तुरंत युद्धस्तर पर सुलटा दी गयी।उन्हें तुरंत भारत की नागरिकता मिल गयी।


पंजाब से आये शरणार्थी एकताबद्ध होकर पंजाबी और सिख राष्ट्रीयताओं को एकाकार करके विभाजन की त्रासदी से लड़े,इसके विपरीत पूर्वी बंगाल से आये सारे शरणार्थी अकेले अकेले लड़ते रहे।


बंगाली राष्ट्रीयता शरणार्थियों से पीछा छुड़ाने का हर जुगत करती रही। पढ़े लिखे संपन्न तबके पश्चिम बंगाल में समायोजित होत गये,चाहे जब भी आये वे।लेकिन चालीस पचास के दशक में आये मुख्यतंः किसान,दलित,पिछड़े और अपढ़ लोग न सिर्फ बंगाल के भूगोल से बल्कि मातृभाषा और इतिहास के बाहर खदेड़ दिये गये।


बंगाल में बड़ी संख्या में ऐसे केसरिया तत्व हैं जो विभाजन पीड़ितों के साथ किसी भी तरह की सहानुभूति के विरुद्ध हैं और शुरु से उन्हें वापस सीमापार भेज देना चाहते हैं।कमल ब्रिगेड का असली जनाधार बंगाल में वहीं है,जिसे कल्कि अवतार ने धर्मेन्मादी बना दिया है।इस तबके में बंगाल के शरणार्थी समय के मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय, वाम शासन काल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु,जिन्होने दंडकारण्य से आये शरणार्थियों का मरीचझांपी में कत्लेआम किया और प्रणवमुखर्जी जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून और निलेकणि आधार परियोजना लागू की, सिपाहसालार रहे हैं।


बंगाली शरणार्थियों की दुर्दशा के लिए सिख और पंजाबी शरणार्थी जिम्मेदार नहीं हैं।यह तथ्य पिताजी ने बखूब समझाया जो सिखों और पंजाबियों के भी उतने बड़े नेता तराई में थे,जितने बंगालियों के।तराई विकास सहकारी संघ के उपाध्यक्ष, एसडीएम पदेन अध्यक्ष वे साठ के दशक में निर्विरोध चुने गये थे।


विडंबना यह कि बंगाल में शरणार्थी समस्या की चर्चा होते ही मुकाबले में पंजाब को खड़ा कर दिया जाता है।बहुजन राजनीति के सिसलिले में महाराष्ट्र को खड़ा कर दिया जाता है।हमारे लोग दूसरों को शत्रु मानते हुए अपने मोर्चे के असली गद्दारों के कभी पहचान ही नहीं सकें।




आडवाणी के मुताबिक बंगाली शरणार्थियों के पुनर्वास और नागरिकता के मामले में बंगाल की कोई दिलचस्पी नही रही है।


मैं कक्षा दो पास करने के बाद से पिताजी के तमाम कागजात तैयार करता रहा क्योंकि पिताजी हिंदी ठीकठाक नहीं लिख पाते।वे किसानों,शरणार्थियों,आरक्षण और स्थानीय समस्याओं के अलावा देश के समक्ष उत्पन्न हर समस्या पर रोज राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सारे के सारे केंद्रीय मंत्री,सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, सभी मुख्यमंत्रियों और ज्यादातर सांसदों को पत्र लिखा करते थे।


वैसे किसी पत्र का जवाब बंगाल से कभी आया हो,ऐसा एक वाकया मुझे याद नहीं है।


बाकी देश से जवाब जरुर आते थे।राष्ट्रपित भवन,राजभवन और मुख्यमंत्री निवास से रोजाना जवाबी पत्र आते थे,लेकिन उन पत्रों में कोलकाता से कभी एक पत्र  नहीं आया।


आडवाणी आंतरिक सुरक्षा के मुकाबले शरणार्थी समस्या को नगरिकता संशोधन विधेयक के संदर्भ में तुल नहीं देना चाहते थे।उनका स्पष्ट मत था कि घुसपैठिया चाहे हिंदू हो या मुसलमान,उनका देश निकाला तय है।


विभाजन के बाद भारत आये पूर्वी बंगाल के हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने की बात तब संसद में डा. मनमोहन सिंह और जनरल शंकर राय चौधरी ने ही उठायी थी।


लेकिन संसदीय समिति के अध्यक्ष बंगाली नेता प्रणव मुखर्जी ने तो शरणार्थी नेताओं से मिलने से ही,उनका पक्ष सुनन से ही साफ इंकार कर दिया था और बंगाली हिंदू शरणार्थियों के लिए बिना किसी प्रावधान के वह विधेयक सर्वदलीय सहमति से पास हो गया।


यूपीए की सरकार में डा.मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनें तो प्रणवदादा की पहल पर 2005 में इस कानून को नये सिरे से संशोधित कर दिया गया और इसके प्रवधान बेदखली अभियान के मुताबिक बनाये गये।


पिताजी अखिल भारतीय उद्वास्तु समिति के अध्यक्ष थे आजीवन तो भारतीय किसान समाज और किसानसभा के नेता भी थे।ढिमरी ब्लाक किसान विद्रोह के भी वे नेता थे।


हमसे उनकी बार बार बहस होती रही कि जैसे तराई में वे सिख और बंगाली शरणार्थियों के मसलों को एकमुस्त संबोधित कर लेते थे,उसीतरह क्यों नहीं वे सर्वभारतीय कोई शरणार्थी संगठन बनाकर बंगाली,बर्मी,तमिल पंजाबी सिख,सिंधी और कश्मीरी शरणार्थियों की समस्याएं सुलझाने के लिए कोई आंदोलन करते।


हकीकत तो यह है कि वे सर्वभारतीय नेता रहे हैं लेकिन बंगाल में उनका कोई सांगठनिक असर था नहीं। उन्होंने अखिल भारतीय बंगाली समाज की स्थापना की ,जिसमें सभी राज्यों के लोग थे,लेकिन बंगाल के नहीं।जब बंगाली शरणार्थी ही एकताबद्ध नहीं रहे तो सारे शरणार्थियों को तरह तरह की पहचान और अस्मिता के मध्य उनके बड़े बड़े राष्ट्रीय नेताओं की साझेदारी के बिना कैसे एकजुट किया जा सकता था,पिताजी इसका कोई रास्ता निकाल नहीं सके।हम भी नहीं।


लेकिन अब मुक्त बाजारी स्थाई कारपोरेट बंदोबस्त के खिलाफ किसी शरणार्थी संगठन से या इस तरह के आधे अधूरे पहचानकेंद्रिक आंदोलन के जरिये भी हम बच नहीं सकते।


वह संगठन कैसा हो,कैसे बने वह संगठन,जिसमें सारे के सारे सर्वस्वहारा,सारी की सारी महिलाएं,सारे के सारे कामगार,सारे के सारे छोटे कारोबारी,सारे के सारे नौकरीपेशा लोग,सारे के सारे छात्र युवा लामबंद होकर बदलाव के लिए साझा मोर्चा बना सके,अब हमारी बाकी जिंदगी के लिए यह अबूझ पहेली बन गयी है।


हम शायद बूझ न सकें ,लेकिन जो बूझ लें वे ही बदलाव के हालात बनायेंगे,इसी के सहारे बाकी जिंदगी है।


No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk