Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Friday, April 4, 2014

क्रोनी पूंजीवाद और सांप्रदायिकता का गठबंधन

क्रोनी पूंजीवाद और सांप्रदायिकता का गठबंधन

Author:  Edition : 

मोदी ने पार्टी को जिस तरह से कब्जे में कर लिया है वह अपने किस्म का निर्मम व्यक्तिवाद है। संभावित प्रतिद्वंद्वियों को रास्ते से हटाने या कमजोर करने को इसी आलोक में देखा जाना चाहिए।

पूरे राजनीतिक परिदृश्य में जो बातें स्पष्ट होती जा रही हैं वे काफी हद तक इस माह होने जा रहे संसदीय चुनावों के बाद का संकेत मानी जा सकती हैं। पहले इन्हें देखा जाए।

पहली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पूरी तरह से व्यक्ति केंद्रित हो चुकी है। एक छोटी-सी घटना इसका बड़ा-सा प्रमाण है। पिछले दिनों पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने ट्वीट किया अब की बार भाजपा सरकार। मोदी के समर्थकों ने उन पर तत्काल हमला बोला और सिंह साहब को उसे बदल कर कुछ ही देर में अबकी बार मोदी सरकार करना पड़ा। यह घटना बतलाती है कि मोदी ने पूरी पार्टी को किस तरह से कब्जे में कर लिया है या करने की कोशिश कर रहे हैं और वहां उनके अलावा किसी और का नाम नहीं लिया जा सकता। (क्या यहां किम जांग-उन की छाया नहीं नजर आ रही है? ) भाजपा के उन सभी नेताओं को रास्ते से हटाने या कमजोर कर देने, अपमानित कर उनकी सीटों को बदलने के प्रयत्नों में यह प्रवृत्ति स्पष्ट है। इस संदर्भ में जसवंत सिंह का यह कहना कि नमो नमो करना व्यक्तिवाद को बढ़ावा देना है, कोई गलत नहीं है। इसी के तहत बाहर से आए लोगों को टिकट देने में उदारता बरती जा रही है क्यों कि वे मोदी के लिए किसी भी तरह की चुनौती नहीं हो पाएंगे। पर यह खेल भितरघात के खतरों के चलते मोदी के मनसूबों पर पानी फेरने में देर नहीं लगानेवाला है। जानकारों का मानना है कि इससे भाजपा 20 से 30 सीट तक गंवा सकती है। इस पर भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मोदी की स्थिति को सुनिश्चित करने में लगा है क्योंकि वह उन्हें 2002 के दंगों के परिप्रेक्ष्य में हिंदुत्व के प्रचार का प्रभावशाली माध्यम मानता है। यही कारण है कि आरएसएस भी इस व्यक्तिवाद का ज्यादा विरोध नहीं कर रहा है इसके बावजूद की वह संघ के प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं को एक के बाद एक ठिकाने लगाने पर जुटे हैं। क्या यह मोदी के आरएसएस की पकड़ से बाहर हो जाने का संकेत है? संभवत: हां। अब तक इस हिंदू फासीवादी संगठन का पहले जनसंघ और आपात काल के बाद भाजपा के नाम से जानी जानेवाली पार्टी में अप्रत्यक्ष ही सही पर प्रभावशाली नियंत्रण रहा है। स्वयं नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनवाने और फिर प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खड़ा करने में भी संघ का स्पष्ट हाथ है। लगता है भस्मासुर अपने देवता को ही निगलने जा रहा है।

संघ परिवार में क्या होगा, यह उसका मामला है पर प्रश्न है हिंदूवादी ताकतों का केंद्र की सत्ता के दरवाजे पर इस तरह दस्तक देने की स्थिति में आना संभव कैसे हुआ। इसके कई कारण हैं, जिनमें निश्चय ही सबसे बड़ा कांग्रेस का अवसरवाद है। दूसरा महत्त्वपूर्ण कारक वामपंथ की राजनीतिक संकीर्णता माना जा सकता है। देखने की बात यह है कि कांग्रेस और वाम के पतन के समानांतर आरएसएस और उसका राजनीतिक मुखौटा भाजपा प्रबल होती गई है। वाम की आत्ममुग्धता और उसके, विशेषकर हिंदी पट्टी में, असफल या निष्क्रिय होते चले जाने से हिंदू राष्ट्रवादी तत्त्वों को उस स्पेस को घेरने में आसानी हुई जिसे कांग्रेस के भ्रष्ट शासन, परिवारवाद, दरबारी संस्कृति और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों ने तैयार किया था। निश्चय ही इस दौरान क्षेत्रीयता और पहचान की राजनीति करनेवाले दलों का उदय हुआ पर वे उस स्पेस को भरने की स्थिति में नहीं थे जिसे कांग्रेस एक लंबे समय तक अपनी सब को खुश रखने वाली नीति के कारण बनाए हुए थी। कांग्रेस के मध्यमार्गी या छद्म प्रगतिवादी रुझान ने वाम को आत्मतुष्ट और निष्क्रिय करने में निर्णायक भूमिका निभाई। उसके नेतृत्व ने कभी ऐसी दूरगामी नीति के तहत काम नहीं किया जो पूरे देश को ध्यान में रखती हो। दूसरी ओर आरएसएस के झंडे तले एकत्रित हिंदू प्रतिक्रियावादी तत्त्वों ने बेहतर रणनीतिक कुशलता, दृढ़ता और दूरदर्शिता का परिचय दिया। नवउदारवाद की नीतियों से उपजी आकांक्षा, असुरक्षा और अनिश्चितता ने मध्यवर्ग व निम्न मध्यवर्ग को तथाकथित दृढ़ नेतृत्व और हिंदूवाद की ओर बड़े पैमाने पर आकर्षित किया।

साफ है कि पूंजीपतियों ने मध्यवर्ग की महत्त्वाकांक्षाओं, मानसिक रुझान, बेहतर शासन तथा अनुशासन की चाह का लाभ उठाते हुए अपने हित के लिए मोदी को एक कुशल और दृढ़ प्रशासक के रूप में गढऩे में निर्णायक भूमिका निभाई। यह काम पिछले दस वर्षों में बहुत चतुराई और नियोजित तरीके से किया गया। देश के कारपोरेट जगत के एक प्रभावशाली हिस्से द्वारा मोदी को बढ़ाने का मूल कारण यह रहा है कि वह जानता है कि अब उसके हित कांग्रेस के माध्यम से नहीं साधे जा सकते। ऐसा करने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों, पर्यावरणीय चिंताओं और वंचितों को दरकिनार करना होगा। गुजरात में विगत एक दशक में यही किया गया है। अन्यथा मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन देना कोई बहुत तार्किक नहीं लगता। गुजरात भारत को देखते हुए एक छोटा-सा राज्य है, जनसंख्या और आकार में भी। वह अपनी जनसंख्या में ही उत्तरप्रदेश से तीन गुना या बिहार से दो गुना छोटा है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गुजरात सदा से विकसित और व्यापारिक राज्य रहा है। इसलिए ऐसा भी नहीं है कि पिछले एक-डेढ़ दशक में वहां कोई क्रांतिकारी परिवर्तन जैसा कुछ हुआ हो। आज भी वह विकास दर में कई राज्यों से पीछे है। उल्टा वहां बड़े पैमाने पर पर्यावरण विनाश, रोजगार का खात्मा और विस्थापन हुआ है। तीसरा, मोदी को केंद्र में काम करने का एक दिन का अनुभव नहीं है। वह कभी सांसद तक नहीं रहे हैं। चौथा, मोदी के साथ जो सबसे नकारात्मक बात जुड़ी है वह है उनका मुस्लिम विरोधी माना जाना। यह ऐसा कारण है जो देश के एक बड़े वर्ग को उनके प्रति सशंकित रखने में महत्त्वपूर्ण घटक माना जा सकता है। इसका दुष्परिणाम मुसलमानों को विकास के लाभ से वंचित रखने और उनके बड़े पैमाने पर अलगाववाद का शिकार होने की पूरी संभावना तो है ही यह औद्योगिक शांति और बाजारों के लिए भी हानिकारक है। इससे जो तनाव उत्पन्न हो सकते हैं वे देश को अस्थिर करने में महत्त्वपूर्ण कारक बन सकते हैं। ऐसे में नीतीश कुमार का यह कहना गलत नहीं है कि प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी से ज्यादा कई अनुभवी लोग हैं।

इस संदर्भ में सबसे निर्णायक बात है पूंजी की 'लोकतंत्र के नाच' (तांडव?) में भूमिका। यह छिपा नहीं है कि मोदी को विकल्प के तौर पर जिस नियोजित तरीके से प्रस्तुत किया गया है वह असामान्य है। पर शायद इससे भी बड़ी बात यह है कि किसी एक व्यक्ति को प्रोजेक्ट करने में इस तरह से विज्ञापन और मीडिया का इस्तेमाल भी पहले कभी नहीं किया गया। भारतीय कारपोरेट जगत, बल्कि कहना चाहिए कुछ बड़े पूंजीपतियों ने, जिनकी जड़ें विशेषकर गुजरात में हैं, यह काम जांच-परख कर किया है। मोदी ने मुख्यमंत्री के तौर पर सारे नियमों और नीतियों को ताक पर रख कर, जिस तरह से अडाणी, अंबानी और टाटा को पिछले एक दशक में लाभ पहुंचाया है उन कामों ने सिद्ध कर दिखाया कि वह पूंजीपतियों के हित में सबसे कारगर व्यक्ति साबित होंगे, मनमोहन सिंह से भी आगे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह वैश्विक पूंजी, नवउदारवाद और हिंदू फासीवाद का खुल्लम-खुल्ला गठबंधन है। निश्चय ही पिछले दशक में गुजरात में निवेश हुआ है पर सवाल है कि उससे आम आदमी कितना लाभान्वित हुआ है। राज्य में रोजगार के अवसर नहीं बढ़े हैं। अर्द्ध रोजगार की भरमार है। किसानों की बेदखली बढ़ी है और गरीबों में कुपोषण रिकार्ड स्तर पर है। पर जैसा कि स्पष्ट है, मोदी की सफलता कारपोरेट घरानों के लिए राज्य के दरवाजों को पूरी तरह खोल देने में छिपी है।

यह अनुमान का विषय है कि मोदी को गढऩे में कितना पैसा लगाया गया है। जो भी हो यह खासी बड़ी राशि है। मार्च के अंतिम सप्ताह में टीवी चैनल सीएनएन-आईबीन के साक्षात्कार में चुनावों की घोषणा होते ही सेंसेक्स के मोदी के प्रधानमंत्री बनने की अपेक्षा से उछाल खाने पर केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि कारपोरेट सेक्टर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के प्रचार अभियान को चला रहा है। यह वह इसलिए कर रहा है क्योंकि वह नरेंद्र मोदी से उसी तरह की, जिस तरह की उन्होंने गुजरात में दी, मुफ्त की सुविधाएं पाने की उम्मीद में है। उन्होंने यह भी कहा कि यही कारण है कि गुलाबी अखबार यानी वाणिज्यिक अखबार मोदी के साथ हैं। जब उनसे साक्षात्कारकर्ता ने पूछा कि क्या वह आरोप लगा रहे हैं तो सिब्बल का उत्तर था, नहीं वह यह सब जानते हैं।

इसी तरह उनसे एक दिन पहले 22 मार्च को पुणे में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार ने कहा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया मोदी की 'पेड पब्लिसिटी' (पैसा लेकर प्रचार) कर रहा है। मोदी के हर भाषण का सीधा प्रसारण राजनीति पर पैसे के बल पर हावी होने का प्रयत्न है।

प्रश्न है कांग्रेसी यह सब इतनी देर में क्यों कह रहे हैं? संभवत: वे उम्मीद कर रहे थे कि मोदी के पक्ष में हवा इस तरह नहीं बन पाएगी। दूसरा यह भी छिपा नहीं है कि कांग्रेस अपनी आर्थिक नीतियों में आज किसी भी रूप में भाजपा से अलग नहीं रही है। कांग्रेस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे उस कारपोरेट सेक्टर पर सीधे आक्रमण करें जिसे मोदी ने फलने-फूलने का मौका दिया है और बदले में उन्होंने मोदी को बढ़ाया है। इनमें से सबसे बड़े घराने अंबानी देश को कांग्रेस की ही देन हैं। वह यों ही कांग्रेस को 'अपनी दुकान' नहीं कहते। यह कांग्रेस अब सब कुछ हाथ से निकल जाने की हताशा के अलावा आम आदमी पार्टी (आप) के द्वारा मोदी और मीडिया पर किए गए सीधे हमले के कारण मजबूरी में कर रही है। आपके आक्रमण ने भाजपा, मीडिया और कारपोरेट सेक्टर तीनों को हिला दिया है। यह कम मजेदार नहीं है कि मीडिया चालित बहसों में भाग लेनेवाले भाजपा के प्रतिनिधि कहते हैं कि केजरीवाल के पास सिवाय मोदी पर आक्रमण करने के और कोई मुद्दा नहीं है। प्रश्न है मोदी अपने भाषणों में किस तरह की बातें करते हैं? आखिर विकास और देशभक्ति क्या कोई अमूर्त चीजें हैं? इन्हें परिभाषित किया जाना जरूरी है। क्या उन्होंने आर्थिक नीतियों, बेरोजगारी, समानता सांप्रदायिकता जैसे विषयों पर बात की है? स्वयं मीडिया भी इसका कम बड़ा दोषी नहीं है। यहभाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के विचारों की वास्तविकता को छिपाए रखने के लिए सुविचारित रणनीति के तहत किया जा रहा है।

मोदी का उस उस मीडिया से बचना जिसके लिए वह अवतार से कम नहीं हैं, क्या आश्चर्यजनक नहीं है? विशेषकर भारतीय मीडिया को वह घास नहीं डालते। जो भी बात उन्होंने की है विदेशी मीडिया से की है। कभी अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को 'पैकेज्ड प्रेसीडेंट', यानी ऐसा राष्ट्रपति जिसे पूंजी और मीडिया ने अपनी जरूरतों के मुताबिक गढ़ा हो, कहा गया था। निश्चय ही मोदी में कमोबेश उसी तरह से भारत का पहला 'पैकेज्ड प्राइममिनिस्टर' होने की संभावना जरूर नजर आ रही है। यह उस नयी परंपरा की शुरुआत है जिसमें अब वही प्रधानमंत्री बनेगा जो कारपोरेट सेक्टर चाहेगा। दूसरे शब्दों में पूंजी की नजर में विश्वसनीय होगा।

यह भाजपा के उस चेहरे का भी अंत है जो उदार माना जाता था। मोदी के उत्थान से देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण निश्चय ही तेज होगा। वह जिस तरह से अपने प्रतिद्वंद्वियों को पाकिस्तान का एजेंट कह रहे हैं या उन्होंने बनारस को चुनावों के लिए चुना है, बतलाता है कि भविष्य में भी उनके एजेंडे में सांप्रदायिकता महत्त्वपूर्ण हथियार बना रहेगा। वह विकास के अपने एजेंडे को व्याख्यायित नहीं करते। गुजरात का विकास क्रोनी पूंजी और सांप्रदायिकता का मिश्रण है। (क्रोनी का शाब्दिक अर्थ यारबाज या चमचा है पर यह ऐसी पूंजीको रेखांकित करता है, जो सत्ता के साथ मिल कर गलत तरीकों से लाभ उठाती है)। पर जिस तरह से मोदी अपने दल में सफाई का काम कर रहे हैं उसने इसमें एक और तत्त्व मिला दिया है और वह है अधिनायकवाद। चिंता की असली बात यह है कि अक्सर पूंजी और धार्मिक कट्टरता मिल कर संहारक पेय में बदल जाती है। अधिनायकवादी प्रवृत्ति आग में घी का काम करती है।

इस पर भी इस अंग्रेजी कहावत को याद किया जा सकता है कि चाय के प्याले और होंठों के बीच कई फिसलनें हैं। ऊंट किस करवट बैठेगा, भविष्य बतलाएगा।

No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk