इतिहास बना गया लातिन में चमका लाल सितारा
ह्यूगो शावेज का सामना न कर सका अमेरिका
विशेष लेख
अमेरिकी साम्राज्वाद के विरोध प्रतीक के रूप में स्थापित हो चुके 58 वर्षीय वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज के निधन से पूरी दुनिया के इंसाफपसंद लोग आहत हैं. भूमंडलीकरण और बाजार प्रभावी अर्थव्यवस्था के दौर में वेनेजुएला दुनिया के कुछेक देशों में है, जहां की आर्थिकी की प्राथमिकता में समाज के आखिरी पायदान के लोग हैं. ह्यूगो शावेज ने अपने 14 साल के कार्यकाल में वेनेजुएला को एक सामाजवादी मूल्यों वाले देश के रूप में विकसित किया, जिसकी शुरूआत वर्ष 1999 से हुई. अमेरिकी साम्राज्यवादी साजिशों से जूझते हुए समाजवादी-साम्यवादी शासन तंत्र के मूल्यों को स्थापित करने वाले शावेज दुनियाभर में कैसे एक उदाहरण बने, उन पहलुओं को समेटते हुए एक वृहद विश्लेषण :
अमरपाल
अमेरिका की लाख कोशिशों के बावजूद वेनेजुएला के अक्टूबर चुनाव शावेज की जीत हुई. वर्ष 1999 से अब तक ह्यूगो शावेज की यह चौथी जीत थी. चुनाव जीतने के बाद शावेज ने 10 लाख से भी अधिक समर्थकों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए कहा, 'मैंने आपको कभी धोखा नहीं दिया है, मैंने आपसे कभी झूठे वादे नहीं किये हैं. सीमोन बोलिवार के देश में क्रान्ति की जीत हुई है. योजना बनाने में पूरे देश को शामिल किया जायेगा और मैं वादा करता हूँ कि वेनेजुएला कभी भी नव उदारवाद के रास्ते पर नहीं जायेगा.'
यह शावेज का अब तक का सबसे कठिन चुनाव था. शावेज को सत्ता से बाहर करने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्रालय ही नहीं, बल्कि अमेरिकी मीडिया भी शावेज विरोधी पार्टियों का मुखपत्र बन गया. पूरे चुनाव के दौरान कार्टर सेन्टर के अधिकारियों और अमेरिकी मीडिया ने दुष्प्रचार किया कि शावेज के समर्थक हर हाल में चुनाव में धांधली करेगें और राजधानी कराकस की सड़कों पर वेनेजुएला के नेशनल गार्ड एके 47 के साथ गश्त कर रहे हैं. 7 अक्टूबर के चुनाव से पहले मीडिया ने इसे 'काँटे की टक्कर' या 'शावेज की तानाशाही' कहा.
यह भी झूठा प्रचार किया गया कि वेनेजुएला की स्थिति बहुत खराब है जिसके चलते वेनेजुएला की जनता ह्यूगो शावेज के खिलाफ है. इसे शावेज का अंतिम चुनाव बताते हुए वेनेजुएला में अमेरिकी पिट्ठू मीडिया के पंडितों ने ह्यूगो शावेज के दौर का अंत भी घोषित कर दिया था. पूरे पश्चिमी जगत और अमेरिकी मीडिया ने वेनेजुएला की जनता को और अन्य सभी देशों की जनता को भ्रमित करने के लिए बिना सिर–पैर की बातें फैलायी. ताकि शावेज को किसी भी कीमत पर हराया जा सके. अमेरिका ने सद्दाम और गद्दाफी से तो झुटकारा पा लिया, लेकिन जॉर्ज बुश प्रशासन द्वारा 2002 में तख्ता पलट की कोशिश के बावजूद शावेज को सत्ता से बाहर करने में उसे कामयाबी हाथ नहीं लगी.
तभी से इस क्षेत्र में अमेरिका की पकड़ कमजोर होती जा रही है. इसके लिए अमेरिका का सबसे महत्त्वपूर्ण एजेण्डा था कि एक ऐसा नेता तलाशा जाय, जो उन पुराने दिनों को वापस ला सके जिनमें व्यापारिक घरानों का कब्जा था और जिनकी चाबी अमेरिका के हाथ में रहती थी. शावेज विरोधी पार्टी में ऐसे नेताओं की भरमार है जो नवउदावादी नीतियों के समर्थक हैं. इसके लिए अमेरिका ने वेनेजुएला की शावेज विरोधी 30 पाटिर्यों को डेमोक्रेटिक यूनिटी राउण्ड टेबल (एमयूटी) नाम की पार्टी के झण्डे के नीचे एकत्रित कर एक समूह बनाया और हेनरिक केपरेल्स रदोनस्की को इसका नेता बनाकर एक अच्छे राजनेता के रूप में पेश किया. उसे ब्राजीली नेता लूला डिसिल्वा के समतुल्य बताया गया जबकि वह एक रईस परिवार की संतान है और अपनी जवानी के दिनों में ही कंजरवेटिव (घोर पूँजीपती) राजनीति का समर्थक रहा है.
हेनरिक के समर्थकों ने ही 2002–03 में 'मालिकों की हड़ताल' से वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने की कोशिश की थी. इस हड़ताल को गरीब, मजदूरों ने ही विफल किया था जो शावेज के समर्थक हैं और आज भी शावेज के साथ खड़े हैं. हेनरिक ने 2002 में अपने समर्थकों द्वारा शावेज का अपहरण करा कर तख्ता पलट करवाने में अमेरिका का साथ दिया था और क्यूबाई दूतावास के सामने हिंसक प्रदर्शन का नेतृत्व भी किया था. वह 1960–70 के दशक में दक्षिण अमेरिका के हिस्से पर काबिज सैनिक सत्ता का भी समर्थक रहा है. वह 29 हजार क्यूबाई डॉक्टरों और पैरा मेडिकल कर्मचारियों का भी विरोधी है. जो वेनेजुएला के गरीबों की सेवा में निशुल्क काम कर रहे हैं. हेनरिक कम विकसित और प्रतिबंधित देशों में सस्ते दामों में तेल देने का भी विरोधी है.
विकीलिक्स ने खुलासा किया है कि वेनेजुएला में शावेज विरोधी पार्टियाँ अमेरिकी दूतावास से सांगठनिक और वित्तीय सहायता पा रही है. मीडिया में हेनरिक केपरेल्स का एक दस्तावेज लीक हुआ जिसमें लिखा था कि अगर वह चुनाव जीत गया तो नवउदारवादी नीतियों को लागू करेगा. इस दस्तावेज में भोजन और गरीब इलाकों में स्थापित किये गये सामुहिक गोदामों पर से सरकारी सहायता समाप्त करने की बात कही गयी है. जबकि हेनरिक का चुनावी वादा था कि वह शावेज की अधिकतर घरेलु नीतियों को जारी रखेगा और गरीब लोगों को मकान भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी छूट रहेगी.
हेनरिक केपरेल्स के दस्तावेज लीक होने से उनकी करनी कथनी साफ समझ में आती है. पूरी कार्यवाही बहुत सड़यंत्र के साथ की गयी थी. इतनी की अपने मोर्चे में शामिल सभी पार्टियों को हेनरिक रदोनस्की अपनी नीतियाँ बताकर अपने विश्वास में नहीं लिया और उनसे भी झूठ बोला. इसका ताजा उदाहरण यह है कि चुनाव की पूर्व संध्या पर हेनरिक के दस्तावेज लीक होने वाले इस तथ्य की बात मोर्चे का हिस्सा रही. तीन पार्टियों ने उसे छोड़ दिया. इस तथ्य ने शावेज के विपक्षियों और अमेरिकी षड़यंत्र की पोल खोल दी है.
शावेज की जीत को स्वीकार करने के बजाय यह साम्राज्यवादी तंत्र अभी अपनी पूरी ताकत से पूरी दुनिया को गफलत में डालने और उन्हें भ्रमित करने के लिए और ह्यूगो शावेज की छवि खराब करने व दुनिया में बदनाम करने के लिए अपना प्रचार जारी रखे हुए है कि वेनेजुएला में मीडिया पर सरकारी एकाधिकार है जिसके चलते शावेज की जीत हुई है. हकीकत यह है कि वेनेजुएला की मीडिया पर 94 फीसदी कब्जा विरोधियों का है. देश के दो सबसे बड़े अखबार भी शावेज और उनकी सरकार के घोर विरोधी हैं. 88 फीसदी रेडियो स्टेशनों पर भी देश के पूँजीपतियों का कब्जा है जो शावेज से नफरत करते हैं. केवल 6 फीसदी इलैक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर और 12 फीसदी रेडियो स्टेशनों पर शावेज की सरकार या जनता का अधिकार है.
अमेरिकी मीडिया के इस दुष्प्रचार की पोल भी भूतपूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की संस्था 'कार्टर सेंटर' के द्वारा खुल जाती है. यह संस्था दुनिया के तमाम देशों के चुनाव को मॉनिटर करती है. इस चुनाव में भी 'कार्टर सेंटर' ने पर्यवेक्षक की भूमिका निभायी है और चुनाव के बाद वेनेजुएला की चुनावी व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए कहा कि 'सच्चाई यह है कि अब तक हमने दुनिया के 92 चुनावों को मॉनिटर किया है उनमें से वेनेजुएला के चुनावों की प्रक्रिया सर्वोतम दिखायी दी.'
इसके बाद भी अमेरिका ने अपनी खीज मिटाने के लिये वेनेजुएला की आम जनता को कोसना शुरू किया. अमेरिकी अखबार 'फाइनेंशियल' ने शावेज को दुबारा चुने जाने को देश के लिये एक 'गहरा आघात' बताया और एसोसियेट प्रेस ने अपनी खबर में बताया कि जनता राजनीतिक यथार्थ को समझने में नाकाम रही है. वेनेजुएला में 80 फीसदी मतदान हुआ है और अमेरिका में 62 फीसदी. फिर किस देश की जनता ने लोकतंत्र में ज्यादा भरोसा किया है. मतदान के इन आँकड़ों से हम समझ सकते हैं. जाहिर है कि मीडिया ने शावेज के खिलाफ पूरी दुनिया की जनता को भ्रमित करने की लगातार कोशिश की है.
पिछले 14 वर्षों में वेनेजुएला को जो उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं उन्हें आज कोई नकार नहीं सकता. शावेज ने जब पहली बार सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली तब वेनेजुएला की स्थिति बहुत ही खराब थी. देश की अर्थव्यवस्था विश्व बैंक और अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा संचालित थी और सभी कल्याणकारी योजनाओं पर रोक लगा दी गयी थी. सभी तरह की सबसिडी समाप्त कर दी गयी थी. वेनेजुएला में अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष की नीतियाँ चरम पर पहुँच रही थी और इन नीतियों का सीधा असर गरीब तबकों, मजदूरों, किसानों पर पड़ रहा था. 1989 में इन्हीं नीतियों के चलते देश में जन आन्दोलन पैदा हुए और इसी विद्रोह के बीच ह्यूगो शावेज का नेतृत्व पैदा हुआ.
वेनेजुएला में 1999 में ह्यूगो शावेज के आने के बाद वहाँ की स्थिति जिसे खुद अमेरिकी एजेन्सियों ने दर्शाया है.
पिछले डेढ दशक से वेनेजुएला में शावेज का शासन है और इसी का नतीजा है कि आज दक्षिण अमेरिका के अनेक देशों में ऐसी सरकारें हैं जो उदारवादी और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के खिलाफ हैं तथा एक हद तक समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपना रही हैं. ब्राजील में लूला डिसिल्वा और इनके बाद डिल्मा रूसेफ जिसके लिए शावेज ने खुद चुनाव प्रचार किया, जो आज ब्राजील की राष्ट्रपति है. जो खुलकर अमेरिकी नीतियों का विरोध करती हैं.
बोलिविया में इवो मोरेलेस समाजवादी हैं और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता रहे हैं इवो मोरेलेस खुद किसान परिवार से हैं. उन्होंने अमेरिका द्वारा बोलीविया में लागू किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ लम्बे समय तक संघर्ष किया है. वे ह्यूगो शावेज और फिदेल कास्त्रो को अपना आदर्श मानते हैं. उरूग्वे में जोसे मुजिका भी समाजवादी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं. वे पूर्व छापामार योद्धा हैं. वह अपने वेतन का सिर्फ 10 प्रतिशत लेते हैं और 90 प्रतिशत एक धर्मार्थ संस्था को दान कर देते हैं. अर्जेन्टीना की राष्ट्रपति क्रिस्टिना किर्चनर जनहित की नीतियों को लागू कर रही हैं.
ह्यूगो शावेज ने विदेश नीति के मोर्चे पर लातिन अमेरिका के राजनीतिक नक्शे को नया आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है. अमेरिका का एक समय पूरे लातिन अमेरिका के क्षेत्र पर दबदबा था जिसे 1999 के बाद बहुत छोटे–छोटे क्षेत्रीय संगठनों जैसे, –सीईएल ने अमेरिकी प्रभुत्व वाले समूह ओएएस को सीमित कर दिया है. 1999 में शावेज ने लीबिया के गद्दाफी और ईराक के सद्दाम हुसैन के साथ मिलकर ओपेक को पश्चिमी देशों के चंगुल से मुक्त कराया. इससे ओपेक देशों की आर्थिक अर्थव्यवस्था काफी मजबूत हुई. साम्राज्यवाद विरोधी देशों के समूह एलबा के निमार्ण में भी शावेज की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है.
अमेरिका, लातिन अमेरिकी देशों में अपने कम होते प्रभाव और वेनेजुएला के ह्यूगो शावेज और क्यूबा के फिदेल कास्त्रो की विचारधारा के बढ़ते प्रभाव से खिन्न और बेचैन है. इसलिए हर हाल में शावेज को हराना चाहता था. अगर जीत का अन्तर थोड़ा भी अस्पष्ट रहता तो तख्ता पलट की भी योजना थी. यह खुलासा पूर्व अमेरिकी राजदूत पैट्रिक डीडूडी ने विदेशी सम्बंधों की एक काउन्सिल के दस्तावेज में उद्घाटित किया कि अगर शावेज की जीत स्पष्ट होती है, तो उसके साथ समानहित के मुद्दों पर समझौतों की कोशिश की जाये और अगर अंतर जरा भी अस्पष्ट रहता है तो अन्तरराष्ट्रीय दबाव बनाकर उसकी सत्ता पलटने की कोशिश की जाय.
अमरपाल सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं.
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