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Wednesday, September 26, 2012

अब बिजली गिरेगी आम आदमी पर​! बिजली ग्रिड फेल होने का हादसा याद है?

अब बिजली गिरेगी आम आदमी पर​! बिजली ग्रिड फेल होने का हादसा याद है?

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

लगभग पूरे देश में बिजली ग्रिड फेल होने का हादसा याद है? इसका मतलब अब समझ में आयेगा। दुनियाभर में निजी बिजली कंपलियां इसी ङथकंडे के सहारे बिजली की कीमत बढ़ाने का लक्ष्य हासिल करती हैं।राज्यों की पॉवर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को कर्ज से उबारने के लिए सरकार ने जो नई योजना तैयार की है उसका एक अहम हिस्सा राज्य स्तर पर बिजली की दरों में हर साल बढ़ोतरी करना है।राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को बकाया कर्ज के भुगतान के लिए राहत पैकेज दे कर केंद्र सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन इसका बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। इस पैकेज की शर्तो के तहत उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा सहित सात राज्यों को बिजली की दरों में सालाना 15 से 17 फीसद तक की बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री वीरप्पा मोइली ने इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि जो राज्य पैकेज का फायदा उठाएंगे उन्हें हर वर्ष बिजली दरों को समायोजित करना पड़ेगा।देश में निवेश को आकर्षित करने और कई सुधारवादी कदम उठाने के बाद सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों के कर्ज पुनर्गठन प्रस्ताव को हरी झंडी दिखा इस क्षेत्र को बड़ी राहत दी है। करीब एक दशक पहले भी केंद्र सरकार इसी तरह की पहल करते हुए राज्य बिजली बोर्डों के बकाया के लिए एक बारगी निपटान योजना लाई थी। आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के कर्ज पुनर्गठन प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इसके तहत वितरण कंपनियों का आधा कर्ज राज्य सरकार को लघु अवधि ऋण के तहत वहन करना होगा जबकि कर्जदाता शेष ऋण का पुनर्गठन करेंगे। इस पुनर्गठन का हिस्सा बनने के लिए राज्यों को कुछ अनिवार्य शर्तों का पालन करना होगा मसलन बिजली दरों में सालाना बढ़ोतरी, ऋण को इक्विटी में तब्दील करना और निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी को बढ़ावा देना। इसके बदले केंद्र, राज्यों को वित्तीय प्रोत्साहन देगा। विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों के साथ करीब एक साल तक चले विचार-विमर्श के बाद पुनर्गठन योजना तैयार की गई है। सरकारी नियंत्रण वाली वितरण कंपनियों के 1.9 लाख करोड़ रुपये मूल्य के ऋण पुनर्गठन करने की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है।
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​जल जंगल जमीन से बेदखल हो गये। खेती चौपट कर दिया।आजीविका छीन ली। ईंधन का मोहताज बना दिया। मिठास की किल्लत कर​ ​ दी।उपभोक्ता संस्कृति में निष्मात कर दिया।उपभोक्ता बाजार के विस्तार के लिए सामाजिक योजनाओं में सरकारी खर्च बढ़ा दिया।कृषि ​​संकट से निपटने के बजाय खाद्य सुरक्षा बिल का गाजर दे दिया। अब गांव हो या महानगर, खाना पीना न हो तो चलेगा, पर बिजली तो ​​चाहिए ही। आर्थिक सुधारों के दूसरे चरण में इसीलिए आम आदमी पर बिजली गिराने की पूरी तैयारी है। यह ऊर्जा सुधार है।डीजल की कीमतों ने तो देश को झटका दे दिया है और अब बिजली भी झटका देने की तैयारी में है।

बीस साल झेलते रहे हैं। सरकारें बदलती रहीं और महंगाई,मुद्रास्फीति बढ़ती रही। वित्तीय घाटा कम करने के बहाने हर बार गरीबों की गर्दन ​​रेंती गयीं।मंदी के बहाने पूंजीपतियों को लाखों करोड़ की छूट, सहूलियतें दी जाती रहीं।विदेशी पींजी के अबाध प्रवाह की आड़ में बिल्डर प्रोमोटर राज कायम हो गया। विकास के लिए आर्थिक सुधारों के बहाने सर्वदलीय सहमति से नरसंहार का दौर थमता नजर नहीं आता। केंद्र हो या राज्य,​​ घोटालों की काली कोठरी में हर चेहरा काला। पर लीपापोती एकदम संसदीय, लोकतांत्रिक। जनता को भूलते देरी नहीं लगती। कोलगेट और ​​स्पेक्ट्रम का नाटक का पटाक्षेप नहीं हुआ,तो लवासा और आदर्श हाउसिंग वाले महाराष्ट्र में नये घोटाले के बहाने हिंदुत्व की जयजयकार है।विकास का मडल जस का तस रखते हुए, सुधारों की बेशर्म पैरवी करते हुए अब मुख्य विपक्षी दल कह रहा है कि वोट उसे दिया जाये, तो पांच करोड़ व्यापारी परिवारों की जान बच सकती है।भाजपा सत्ता में आयी तो वापस होगा रिटेल एफडीआई।जो व्यापारी नहीं हैं, वे अपनी जान की खैर मनायें।हजारों करोड़ रुपये के सिंचाई घोटाले के आरोपों में घिरे महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने मंगलवार को पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राज्य में सियासत गरमा गई है। एनसीपी के विधायकों ने एक सुर में पार्टी नेतृत्व से कहा है कि वह सरकार से हट जाए और उसे बाहर से समर्थन दे।एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने मंगलवार को कहा कि मैंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दिया है। वह इसे राज्यपाल को भेज देंगे। हालांकि उन्होंने कहा कि जब तक एनसीपी विधायकों का समर्थन उन्हें हासिल है, वह पार्टी के विधायक दल के नेता बने रहेंगे।

केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि केन्द्र द्वारा वित्तीय घाटे से जूझ रहे राज्य बिजली बोर्डों को घाटे से उबारने के लिये दिया जाने वाला वेलआउट पैकेज उनके प्रदर्शन पर निर्भर करेगा। उन्होने कहा कि अब तक के घाटे को पाटने के लिये केन्द्र ने यह पैकेज दिया है लेकिन आगे से राज्य बिजली बोर्डों को प्रतिवर्ष 20 प्रतिशत घाटे को कम करना होगा। मतलब साफ है कि आने वाले दिनों में लोगों को बिजली के जोरदार झटके के लिये तैयार रहना चाहिये। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि राज्य बिजली बोर्डों की जवाबदेही तय करने के लिये केन्द्र सरकार आने वाले दिनों में राज्य बिजली वितरण जवाबदेही बिल लायेगी। उन्होने कहा कि राज्य के ऊर्जा मंत्रियों के साथ सलाह मशविरा कर इस बिल को अंतिम रूप दिया जायेगा. राज्यों को  बिल को एक साल के भीतर लागू करना होगा।अचानक यह तथ्य जब बम की तरह फूटता है कि सभी राज्य बिजली बोर्डों को मिलाकर कुल चार लाख करोड़ का लोचा सरकारी खजाने पर आ रहा है, तो हैरानी से एक-दूसरे का मुंह ताकने के सिवा कोई चारा नहीं बचता। ब्यौरे में जाएं तो सारे बोर्ड अभी एक लाख करोड़ के घाटे में हैं और सरकारी बैंकों व नॉन-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं का तीन लाख करोड़ रुपया कर्ज भी उन्हें चुकता करना है। मौजूदा ढर्रे पर चलते हुए कर्जे की अदायगी तो दूर, अपने रनिंग घाटे की भरपाई वे कर ले जाएं, इसका भी कोई चांस नहीं है। ऐसे में बोर्डों की तरफ से लगातार एसओएस आने के बावजूद उन्हें बचाने के लिए कोई एक चवन्नी भी अपनी जेब से देने को तैयार नहीं है।

पिछले एक साल में हरियाणा ने बिजली दरों में 19 फीसद, पंजाब ने 11 फीसद, राजस्थान ने 7.2 फीसद, तमिलनाडु ने 37 फीसद और आंध्र प्रदेश ने 20 फीसद की वृद्धि की है। उत्तर प्रदेश में भी अधिकांश वर्ग में बिजली की दरें बढ़ाई गई हैं। इसके बावजूद इनकी माली स्थिति नहीं सुधर पाई है। इसकी मुख्य वजह यह है कि इनके राजस्व का एक बड़ा हिस्सा (25 से 40 फीसद) कर्ज का ब्याज चुकाने में चला जाता है।केंद्र सरकार के पैकेज के मुताबिक राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों पर बकाया कर्ज के आधे हिस्से के बराबर बांड राज्यों को जारी करने होंगे। इस बांड पर जो ब्याज दिया जाएगा उसका भुगतान राज्य सरकारें करेंगी। इस हिसाब से राज्यों को ब्याज भुगतान के लिए दरों में वृद्धि करनी पड़ सकती है।

केंद्रीय ऊर्जा मंत्री वीरप्पा मोइली ने इस बात की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि जो राज्य पैकेज का फायदा उठाएंगे उन्हें हर वर्ष बिजली दरों को समायोजित करना पड़ेगा। बिजली मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश को हर वर्ष बिजली कीमतों में वृद्धि करनी ही पड़ेगी। दरअसल, देश की तमाम बिजली वितरण कंपनियों पर बकाया 1.90 लाख करोड़ रुपये का 70 फीसद इन सात राज्यों से संबंधित है।अधिकारियों के मुताबिक इन राज्यों के पास इस पैकेज को स्वीकार करने के अलावा और कोई चारा नहीं है। अगर ये पैकेज को स्वीकार नहीं करेंगे तो इन राज्यों में बिजली की स्थिति और खराब होगी। बिजली वितरण कंपनियों पर बकाया राशि का बोझ बढ़ता जाएगा और आमदनी का बहुत बड़ा हिस्सा बकाया कर्ज का ब्याज चुकाने में ही चला जाएगा। पैकेज स्वीकार करने की प्रमुख शर्त यही है कि राज्यों को हर साल बिजली दरों को बिजली की लागत के मुताबिक बदलना होगा।

राज्य बिजली बोर्डों पर शिंकजा कसते हुये केन्द्र सरकार ने यह भी निर्णय लिया है कि वेलआऊट पैकेज की शर्तों के क्रियान्वयन पर निगरानी के लिये ऊर्जा मंत्रालय दो निगरानी समिति का भी गठन करेगा।राज्यों के लिये केन्द्र के पैकेज को स्वीकार करने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर तक है। मोइली ने बताया कि सात राज्यों मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब , हरियाणा और तमिलनाडु अभी आगे आये हैं।इन राज्यों को बिजली के वितरण के लिये दिये गये अल्पकालिक ऋण से 1.9 लाख करोड़ रुपये ले लिये। राज्यों को सस्ती दर पर बिजली देने के लिये मना किया गया है। मोइली का मानना है कि राजनीतिक लाभ के लिये कुछ राज्यों द्वारा कम कीमत पर बिजली देने के चलते भी बिजली बोर्डों का घाटा बढ़ा है. पैकेज की शर्तों में एक शर्त यह भी है।इसके अलावा राज्य बिजली बोर्डों से कहा गया है कि वे अपने यहां पारेषण और वितरण में हो रहे नुकसान को कम करने के लिये प्रभावी उपाय करें।कुल मिलाकर केन्द्र सरकार इस बार पैकेज के मामलें में रियायत बरतने को तैयार नहीं है। 31 मार्च, 2012 तक राज्य बिजली बोर्डों का घाटा 2.46 लाख करोड़ का है, जबकि 31 मार्च, 2011 को यह राशि 1.9 लाख करोड़ थी।

इसी के मध्य बढ़े हुए बिजली बिलों की शिकायतों के बाद दिल्ली बिजली नियामक आयोग (डीईआरसी) ने बिजली दरों की संरचना में कुछ समायोजन करने का प्रस्ताव दिया है। इसे उपभोक्ताओं को काफी राहत मिल सकती है। डीईआरसी ने अब वास्तविक दर संरचना को पलटने का प्रस्ताव दिया है जिससेे 201-204 यूनिट खपत दायरा फिर प्रभाव में जाएगा। नियामक ने जून में घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरें बढ़ाने के समय यह दायरा समाप्त करने की घोषणा की थी। यह दायरा खत्मक रने और 0-400 यूनिट का दायरा बनाने से उन उपभोक्ताओं के बिजली बिलों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी जिनकी खपत 200 यूनिट पार कर गई थी।

परमाणु बिजली की सौगात से बिजली संकट से राहत देने का दिलासा दिया जा रहा है। जल सत्याग्रह के बावजूद कुड़नकुलम परियोजना ​​रुकी  नहीं।जैतापुर में परमाणु बिजलीघर संकुल बन रहा है। भारत ्मेरिकी परमाणु समझौते के बाद बिजली अब परमाणु बिजली है। अब ताजा खबर है किऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड के 15 अक्तूबर से शुरू हो रहे तीन दिवसीय भारत दौरे पर दोनों देशों के बीच परमाणु करार पर मुहर लग सकती है। पिछले साल दिसंबर में गिलार्ड के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ लेबर पार्टी ने भारत को यूरेनियम की आपूर्ति संबंधी रास्ता साफ कर दिया था।इस मुद्दे पर पार्टी की 46वीं नेशनल कांफ्रेंस के दौरान लंबी बहस हुई, जिसके बाद यह फैसला किया गया। ऑस्ट्रेलिया दुनियाभर में यूरेनियम के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है। ऐसे में भारत लंबे समय से इस समझौते पर हस्ताक्षर होने की प्रतीक्षा कर रहा है। ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री बॉब केर ने भी अपने भारतीय समकक्ष एस. एम. कृष्णा को संदेश दे दिया था कि भारत को यूरेनियम की आपूर्ति में आने वाली रुकावटों को ऑस्ट्रेलिया दूर करने की कोशिश कर रहा है।

खुशी मनायें कि भारत को अपने परमाणु कार्यक्रम के लिए वर्ष 2020 तक 20,000 मेगावाट और 2032 तक 63,000 मेगावाट परमाणु क्षमता हासिल करने की उम्मीद है। देश को 2050 तक 25 प्रतिशत बिजली की सप्लाई न्यूक्लियर पावर के जरिए करने का भी भरोसा है। इसके लिए भारत को यूरेनियम की जरूरत होगी। परमाणु करार के साथ ही दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार और कई अन्य रणनीतिक समझौते भी हो सकते हैं।

आयातित कोयले से देश में बिजली कहीं और महंगी न हो जाए, यह डर बिजली कंपनियों के साथ राज्यों को भी खाए जा रहा है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को यह आश्वासन देने का फैसला किया है कि आयातित कोयले की वजह से उन्हें बिजली को बहुत ज्यादा महंगा नहीं करना पड़ेगा। केंद्र का आकलन है कि आयातित कोयले से घरेलू बिजली दरों में पांच से सात पैसे प्रति यूनिट से ज्यादा का फर्क नहीं पड़ेगा। मंगलवार को राज्यों के बिजली मंत्रियों के साथ होने वाली बैठक में इस मुद्दे पर फैसला होने के आसार हैं।

दरअसल, देश में कोयले के उत्पादन के मुकाबले बिजली क्षेत्र की मांग में तेजी से वृद्धि को देखते हुए केंद्र सरकार कोयला आयात करने की एक रणनीति बना रही है। इसके तहत आयातित और घरेलू स्तर पर उत्पादित कोयले का एक 'पूल' [स्टॉक] बनाया जाएगा। इस स्टॉक की कीमत तय की जाएगी, जिससे विभिन्न राज्य स्थिति बिजली संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति की जाएगी। चूंकि विदेशी बाजारों में कोयला घरेलू बाजार से काफी महंगा है। इसलिए राज्य केंद्र के इस सुझाव का विरोध कर रहे हैं कि इससे राज्यों की बिजली बोर्डो पर बिजली की दरें बढ़ाने का दबाव बढ़ जाएगा। अधिकांश राज्यों के बिजली बोर्ड पहले से ही घाटे में चल रहे हैं।

कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने बताया, 'हम कोयला उत्पादन बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन बिजली क्षेत्र की जरूरत हमारे उत्पादन से काफी ज्यादा होने की संभावना है। ऐसे में आयातित कोयला ही आसरा है। कोयले का 'पूल' बनाने के केंद्र के प्रस्ताव का राज्यों को स्वागत करना चाहिए। केंद्र इस बात का पूरा ख्याल रखेगा कि राज्यों के बिजली बोर्डो पर अतिरिक्त बोझ न पड़े।' कोयला आपूर्ति पर प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से पिछले हफ्ते हुई बैठक में भी इस प्रस्ताव पर विचार किया गया था। इस बैठक में कोयला मंत्रालय ने कोयला आयात करने को लेकर एक ठोस नीति बनाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह सरकारी कोयला कंपनियों की ओर से कोयला आयात के पक्ष में नहीं है। यह जिम्मेदारी एमएमटीसी और एसटीसी को दी जानी चाहिए। चालू वित्त वर्ष के दौरान बिजली संयंत्रों के लिए 4.5 करोड़ टन कोयला आयात करने की जरूरत है।

इसी बीच डीईआरसी ने 201-400 यूनिट के बीच प्रति यूनिट 5.70 रुपये शुल्क लेने का प्रस्ताव दिया है। इस बारे मेंं डीईआरसी के चेयरमैन पी डी सुधाकर ने कहा, 'हमने वास्तविक दायर फिर से लागू करने का प्रस्ताव दिया है जिसका मतलब है कि 201-400 यूनिट का दायर पुन: प्रभाव में आज जाएगा और 0-400 यूनिट का दायरा समाप्त हो जाएगा।' उन्होंने कहा कि डीईआरसी इस पर सभी पक्षों की राय लेने के लिए एक 8 अक्टूबर को सार्वजनिक सुनवाई करेगा जिसके बाद कोई अंतिम निर्णय लिया जाएगा। जब दरें बढ़ाई गईं तो नियामक ने इसे दायरे में बदलाव को 1 जुलाई से लागू करने का फैसला किया था।
मौजूदा स्लैब के अनुसार अगर कोई उपभोक्ता 200 यूनिट से अधिक बिजली का उपभोग करता है तो उन्हें पूरे उपभोग के लिए प्रति यूनिट 4.80 रुपये का भुगतान करता है जबकि पहले पहले 200 यूनिट के लिए अलग दर और अगली 200 यूनिट के लिए अलग दर ली जाती थी।  

अब घरेलू उपभोक्ता को पहले 200 यूनिट तक 3.70 रुपये प्रति यूनिट का भुगतान करना होगा, जबकि यह पहले 3 रुपये प्रति यूनिट था। जो उपभोक्ता 400 यूनिट से ज्यादा मासिक बिजली की खपत करते हैं उनसे 4.80 रुपये प्रति यूनिट शुल्क लिया जाएगा। अगर नया प्रस्ताव लागू हो जाता है तो पहले 200 यूनिट के लिए 3.70 रुपये प्रति यूनिट और 201 से 400 यूनिट तक के लिए 5.70 रुपये प्रति यूनिट वसूला जाएगा।

सुधारों की मौजूदा लहर में यूपीए सरकार ने बिजली बोर्डों को, और उनसे ज्यादा उनके कर्जदाताओं को दिवालिया होने से बचाने के लिए एक बेलआउट पैकेज का प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव यह है कि उनके आधे कर्ज की अदायगी कुछ साल के लिए टाल दी जाए और बाकी आधे को संबंधित राज्य सरकारें अपने खाते में लेकर उसके एवज में आम जनता के लिए सरकारी बॉन्ड जारी कर दें। इस उपाय से बोर्डों की दिवालिया छवि जाती रहेगी और तात्कालिक खर्चे पूरे करने के लिए उन्हें नए कर्जे भी मिलने लगेंगे। इस पैकेज के साथ सरकार ने कुछ शर्तें जोड़ रखी हैं। मसलन, सभी बिजली बोर्ड बिजली के प्रॉडक्शन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन को प्रफेशनल बनाएं। साथ ही बिजली की कीमत इस तरह तय करें कि उसमें ईंधन और मशीनरी जैसे लागत खर्चों के बढ़ते भाव की समाई हो जाए। दूसरे शब्दों में कहें तो बिजली क्षेत्र का ऊपर से नीचे तक निजीकरण करें और महंगी बिजली का बोझ सरकारी खजाने पर लेने के बजाय सीधे उपभोक्ताओं पर डालें।

ये शर्तें सुनने में ठीक लगती हैं, लेकिन इन्हें लागू करने में राज्य सरकारों का दम फूल जाता है। 2002-03 में एनडीए सरकार ने मोंटेक सिंह अहलूवालिया की देखरेख में ऐसे ही उपाय कमोबेश इन्हीं शर्तों के साथ लागू किए थे। लेकिन बीते दस सालों में हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते ही चले गए। अभी हालत यह है कि एक भी नया बिजलीघर खड़ा करने में दस तरह के विरोध का सामना करना पड़ता है। ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन के निजीकरण का जिक्र उठते ही कर्मचारी हंगामा कर देते हैं। सरकार बनाने से पहले ही राजनीतिक पार्टियां मुफ्त बिजली बांटने का वादा कर आती हैं, जैसे बिजली कोई इंडस्ट्रियल प्रॉडक्ट नहीं, धूप और हवा की तरह दुनिया को भगवान की देन हो।

योजना आयोग की चली तो अगली पंचवर्षीय योजना में राज्यों को पानी और बिजली की दरों में वृद्धि करनी पड़ सकती है। आयोग का मानना है कि राज्यों में भूमिगत जल के अंधाधुंध दोहन को रोकने के लिए ऐसा किया जाना जरूरी है। शनिवार को होने वाली राष्ट्रीय विकास परिषद [एनडीसी] की बैठक में आयोग राज्यों को इस बात के लिए राजी करने की कोशिश करेगा।

यह बैठक बारहवीं योजना के दृष्टिपत्र [एप्रोच पेपर] के मसौदे को मंजूरी देने के लिए बुलाई गई है। इसमें योजना आयोग का जोर राज्यों को यह समझाने पर होगा कि देश के सतत विकास में पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों का अहम स्थान है। लिहाजा इनके अंधाधुंध दोहन को रोका जाना बेहद जरूरी है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में होने वाली एनडीसी की बैठक में 28 राज्य और सातों केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे।

बैठक की पूर्व संध्या पर संवाददाताओं से बात करते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि पानी की बर्बादी एक बड़ी समस्या है। इसे रोकने के लिए पानी पर शुल्क बढ़ाना होगा। इसका योजनाबद्ध तरीके से वितरण बेहद जरूरी है। एप्रोच पेपर के मुताबिक पिछले दशक में भूमिगत जल दोहन में 70 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इसे रोकने के लिए आवश्यक है कि सभी राज्य सरकारें भूमिगत जल निकालने के लिए इस्तेमाल हो रही बिजली पर अतिरिक्त शुल्क लगाएं।

एनडीसी की बैठक में योजना आयोग के गरीबी रेखा के मानक पर भी चर्चा होने की संभावना है। आयोग सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में गांवों में रहने वालों के लिए 26 रुपये प्रतिदिन और शहरी लोगों के लिए 32 रुपये प्रतिदिन खर्च की सीमा गरीबी रेखा के लिए तय की थी। योजना आयोग के इस मानक का चौतरफा विरोध हुआ है। माना जा रहा है कि राज्य भी बैठक में इस मुद्दे को उठाएंगे। बिहार समेत कई राज्य पहले ही यह आशंका व्यक्त कर चुके हैं कि गरीबी रेखा का यह मानक राज्यों को मिलने वाली केंद्रीय सहायता में कटौती कर देगा।

बैठक में अर्थव्यवस्था की धीमी होती रफ्तार पर भी बातचीत होने की उम्मीद है। महंगाई की दर पहले ही दहाई के अंक के आसपास घूम रही है। ऊपर से इसे काबू में करने के लिए रिजर्व बैंक के ब्याज दर बढ़ाने के कदम औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार को प्रभावित कर रहे हैं। 12वीं योजना के दृष्टिपत्र के मसौदे में आर्थिक विकास का एक खाका खींचा गया है। इस मसौदे को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में पूर्ण योजना आयोग से 20 अगस्त को और कैबिनेट से 15 सितंबर को मंजूरी मिल चुकी है।

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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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