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Thursday, May 31, 2012

Fwd: कितने सुरक्षित हैं अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक आधिकार !



---------- Forwarded message ----------
From: PVCHR ED <pvchr.india@gmail.com>
Date: 2012/5/31
Subject: कितने सुरक्षित हैं अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक आधिकार !
To: "Salar M.Khan" <salarnews@gmail.com>


http://networkedblogs.com/yeHyx

कितने सुरक्षित हैं अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक आधिकार !

By | May 31, 2012 at 9:06 pm | No comments | कुछ इधर उधर की

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

उत्पीड़न के शिकार  अहिंदू अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक आधिकार भारतीय गणतंत्र में कितने सुरक्षित है, इसकी कायदे से खोज पड़ताल की जाये तो हैरतअंगेज नतीजे सामने आते हैं। हिंदुत्व की विचारधारा सरकार और प्रशासन के हर स्तर पर इतने महीन तरीके से काम कर रही है कि वंचितों खासकर अल्पसंख्यकों और दलितों के लिए न्याय सबसे दुर्लभ हो गया है। असमानता और वैषम्य अपनी जगह है, लेकिन पीड़ितों के साथ भेदभाव की स्थिति सबसे भयावह है।

वैषम्य के खिलाफ स्वतंत्रता से पूर्व देश भर में दलित मूलनिवासी आंदोलन के तेज होने के बाद हिंदुत्व की विचारधारा सामने आयी जिसका अंतिम लक्ष्य हिंदू राष्ट्र है और घोषित शत्रू गैर हिंदू तमाम जमात शासकर मुसलमान और ईसाई है। पर वास्तव में यह मनुस्मृति व्यवस्था के लिए अछूतों और पिछड़ों के बिना शर्त समर्थन हासिल करने और उसे जायज ठहराने की अचूक रणनीति है। आरक्षण विरोधी आंदोलनों, सिखों के नरसंहार, राम मंदिर आंदोलन और गुजरात नरसंहार के जरिये हिंदुत्व की विचारधारा  और आंदोलन को नई शक्ति और ऊर्जा मिली है। बाबासाहेब अंबेडकर के आर्थिक विचारों का परित्याग करके आईडेंटीटी पालिटिक्स और सोशल इंजीनियरिंग में भागेदारी के परिमाम स्वरूप दलित और मूलनिवासी आंदोलन हाशिये पर है और अलग अलग द्वीपों में बंटा है, जिसका मामूली असर भी नहीं है। समाज और संस्कृति के ब्राह्मणीकरण, खुला बाजार की अर्थव्यवस्था और संसाधनों पर ब्राह्मणी वर्चस्व से अछूत, आदिवासी और पिछड़े समुदायों के बड़े अंश ने हिंदुत्व की विचारधारा के आगे आत्म समर्पण कर दिया है। इसलिए मनुस्मृति व्यवस्था पूरी तरह सुरक्षित हो गयी है और निशाने पर अल्पसंख्यक हैं। हिंदुत्व आंदोलन ने मुसलमानों और दीगर अल्पसंख्यकों के प्रति लगातार जो घृणा अभियान छेड़ा हुआ है, उससे सामाजिक न्याय और जाति उन्मूलन के मुद्दे गैर प्रासंगिक हो गये हैं। अंबेडकर की पूजा होती है जिससे हिंदुत्व के एजंडे को कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन अंबेडकर की विचारधारा को कचरापेटी में डाल दिये जाने के नतीजतन आज दलित आदिवासी और पिछड़े हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक मुसलमानों, ईसाइयों और  दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ लाम बंद हैं।

सरकारी कामकाज और प्रशसन के बर्ताव में इसका गहरा असर हुआ है। १९८४ में आपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखविरोधी हिंसा में इस प्रवृत्ति की खतरनाक अभिव्यक्ति हुई थी, जो गुजरात नरसंहार में दोहरायी गयीं। पर देश की सिविल सोसाइटी, मीडिया, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने लगता है कि हिंदुत्व की दलित आदिवासी पिछड़ा विरोधी मनुस्मृति पोषक हिंदुत्व की सांप्रदायिकता की मार्केटिंग का कायदे से विश्लेषम नहीं किया। उत्तर प्रदेश में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग से मनुस्मृति विरोधी राजनीति में हिंदुत्व का वर्चस्व कायम होने लगा है, जिससे उत्तर प्रदेश समेत समूचे उत्तर भारत में अल्पसंख्यकों का जीना हराम हो गया है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना ससंद के द्वारा 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के नियमन के साथ हुई थी। कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर पांच धार्मिक समुदाय यथा मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिषत 18.42 है ।
भारत के गृह मंत्रालय के संकल्प दिनांक 12.1.1978 की परिकल्पना के तहत अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गई थी जिसमें विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि संविधान तथा कानून में संरक्षण प्रदान किए जाने के बावजूद अल्पसंख्यक असमानता एवं भेदभाव को महसूस करते हैं । इस क्रम में धर्मनिरपेक्ष परंपरा को बनाए रखने के लिए तथा राश्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा उपायों को लागू करने पर विशेष बल दे रही है तथा समय-समय पर लागू होने वाली प्रशासनिक योजनाओं, अल्पसंख्यकों के लिए संविधान, केंद्र एवं राज्य विधानमंडलों में लागू होने वाली नीतियों के सुरक्षा उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु प्रभावषाली संस्था की व्यवस्था करना। वर्ष 1984 में कुछ समय के लिए अल्पसंख्यक आयोग को गृह म़ंत्रालय से अलग कर दिया गया था तथा कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत नए रूप में गठित किया गया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना ससंद के द्वारा 1992 के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के नियमन के साथ हुई थी। कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक समुदायों के तौर पर पांच धार्मिक समुदाय यथा मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी समुदायों को अधिसूचित किया गया था। 2001 की जनगणना के अनुसार देश की जनसंख्या में पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिषत 18.42 है ।
इस सिलसिले में मानवाधिकार जन निगरानी समिति के अध्ययन गौरतलब है:
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित विशेष कांग्रेस अधिवेशन को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सांप्रदायिक ताक़तों पर कटु हमला किया था. उन्होंने कहा था कि वे सभी संगठन, विचारधाराएं एवं व्यक्ति, जो हमारे इतिहास को तोड़ते-मरोड़ते हैं, धार्मिक पूर्वाग्रहों को हवा देते हैं और धर्म के नाम पर आमजनों को हिंसा करने के लिए उकसाते हैं, देश के लिए विनाशकारी हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने हमेशा हर प्रकार की सांप्रदायिकता से लोहा लिया है, चाहे उसका स्रोत कोई भी संगठन रहा हो। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों की सांप्रदायिकता में कोई फर्क़ नहीं है और देश के लिए दोनों ही बराबर ख़तरनाक हैं। सोनिया के इस बयान पर प्रसिद्ध चिंतक राम पुनियानी जी का मंतव्य गौर तलब है। उन्होंने कहा है कि यद्यपि यह वक्तव्य स्वागत योग्य है, परंतु अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक वर्गों की सांप्रदायिकता के बीच कोई विभेद न करने का सोनिया गांधी का दृष्टिकोण उचित नहीं जान पड़ता। सबसे पहले कांग्रेस अध्यक्ष को उनके पति के नाना एवं आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर लाल नेहरू के विचार याद दिलाना आवश्यक है। पंडित नेहरू ने कहा था कि यद्यपि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक, दोनों ही वर्गों की सांप्रदायिकता बुरी है, तथापि बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता देश के लिए कहीं अधिक घातक है, क्योंकि वह राष्ट्रवाद का लबादा ओढ़े रहती है। अल्पसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता अधिक से अधिक विघटनकारी प्रवृत्तियों को जन्म दे सकती है। वह बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता को भड़काती भी है और उसे वे बहाने देती है, जिनके सहारे उस वर्ग विशेष के सांप्रदायिक तत्व अपनी गतिविधियां बढ़ाते जाते हैं. लेकिन यह मानना अनुचित होगा कि अगर अल्पसंख्यक वर्ग न भड़काए तो बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिक ताक़तें निष्क्रिय रहेंगी। वे तब भी वही करेंगी, जो भड़काए जाने पर करती हैं.अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक सांप्रदायिकता को एक ही पलड़े पर तौलना कांग्रेस की उन धर्मनिरपेक्ष नीतियों के विरुद्ध है, जिनकी नींव पंडित नेहरू ने रखी थी। हमारे देश में सांप्रदायिक राजनीति और सांप्रदायिक हिंसा दोनों के पीछे बहुसंख्यक वर्ग की सांप्रदायिकता है। बहुसंख्यक सांप्रदायिकता का प्रभाव क्षेत्र अत्यंत व्यापक है, उसने समाज के सोचने के तरीक़े को बदल दिया है, उसने देश का ध्यान आम लोगों की मूल आवश्यकताओं से हटाकर राम मंदिर जैसे अनावश्यक मुद्दों पर केंद्रित कर दिया है। शाहबानो मामले को अल्पसंख्यक सांप्रदायिक ताक़तों ने बहुत उछाला था और इससे निश्चित रूप से देश को हानि हुई थी, परंतु यह हानि राम मंदिर आंदोलन के कारण देश को हुए नुक़सान के सामने कुछ भी नहीं थी। राम मंदिर आंदोलन ने पहले समाज को धार्मिक आधार पर विभाजित किया, फिर बाबरी मस्जिद को ढहाया और उसके बाद देश भर में मुसलमानों के ख़िला़फ भयावह हिंसा की। अलबत्ता दोनों प्रकार की सांप्रदायिकता में कुछ समानताएं भी हैं. दोनों ही सामंती और मध्यम वर्ग के हितों की पैरोकार हैं। ये वे वर्ग हैं, जो अपने विशेषाधिकार और समाज में अपनी उच्च स्थिति को बनाए रखना चाहते हैं।

इसके उलट हिंदुत्ववादी दलील कुछ इस तरह होती है:
आज इस्लाम को आतंकवाद के घिनौने शब्द से विश्व-बिरादरी जोड़कर देख रही है। विभिन्न हिस्सों में पनप रहे आतंक के स्वरूप में अधिकांश संगठन "जिहाद" के नाम पर, मजहब के नाम पर मुसलमानों के जहन में नफरत पैदा कर उन्हें अतिवादी सोच की ओर ढकेल रहे हैं। कभी पश्चिमी सभ्यता के खिलाफ, कभी भारतीय संस्कृति के खिलाफ बरगला कर अपने नापाक मन्सूबों को अन्जाम दे रहे हैं। चन्द कट्टरपन्थी तन्जीमे आतंकवादी घटनाओं के जरिये विश्व सभ्यता को नष्ट करने में जरा भी हिचक नहीं दिखा रही हैं। अधिकांश घटनाओं में मुस्लिम कट्टरपन्थी संगठनों का हाथ होने के कारण, विश्व के अधिकांश मुखिया इन्हें "इस्लामी आतंकवाद" का नाम देकर सारे मुसलमानों को एक ही नजरिये से देख रहे हैं।

हालांकि भारत में मुस्लिम वर्ग की स्थिति अन्य देशों से बेहतर है उन्हें लोकतन्त्र में सारे अधिकार प्राप्त है जो बहुसंख्यकों को मिले हुए हैं। बावजूद इसके कहीं न कहीं कट्टरपन्थियों का दबाव समाज पर कुछ हद तक अभी भी बरकरार है। इसी वजह से स्वतन्त्रता के पश्चात आज भी ये वर्ग कुछ खास तरक्की न कर सका। इस गंगा-जमुनी संस्कृति में समाज के अनेक पहलुओं पर बिना समझौता किए, विवेक व सहनशीलता के बिना सामाजिक समरसता व सामंजस्य स्थापित करना एक कठिन काम है।

यही मुस्लिम समाज की प्रगति में बाधक हो रहा है। इसके बिना इस एक तबके को मुख्य धारा में जोड़ना निश्चय ही एक विचारणीय प्रश्न है। जम्मू-कश्मीर में वर्षो से सीमापार आतंकवादी घटनाओं तथा पूर्व में मुंबई, हैदराबाद, अहमदाबाद, दिल्ली की तमाम वारदातों से भारतीय मुस्लिम समाज के अन्य तबकों से एक बार पुन: उपेक्षित सा हो गया है। लोगों में मुसलमानों के प्रति सदैव एक आशंका बनी रहती है, इसी कारण मुस्लिम भी अपने को असुरक्षित व असहज महसूस करने लगा है, उसके विश्वास में कमी आई है। अत: आवश्यकता है आज ऎसे मुस्लिम समाज की जो इस्लामिक शिक्षाओं का अनुकरण कर मानवीय मूल्यों पर आधारित ऎसा ढांचा तैयार करे जो अपने पड़ोसियों का दिल जीत सके। आपस में शांति व सहयोग के जरिये आत्मविश्वास जाग्रत कर सके। शंकाओं का निवारण मिल बैठ कर हो। जब भारत का संविधान अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक के समान सारे अधिकार देता है तो अल्पसंख्यकों को भी राष्ट्रीय मसलों पर बहुसंख्यक वर्ग की आस्था का ध्यान रखकर उसे राजनैतिक व सांप्रदायिक नजरिये से न देखते हुए देशहित में जो सही हो, उस पर हम सब की मंजूरी होना चाहिए।
भारत सरकार पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले पर तो मुखर हो जाती है पर भारत में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध निरंतर जारी घृणा अभियान और सांप्रदायिकता के खिलाफ खामोशी बरतते हुए नरम हिंदुत्व के जरिये वोट बैक राजनीति साधती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की घटनाएं भारत में मुसलमानों के प्रति हर बार नये सिरे से घृणा अभियान शुरू करने के मौके बनाती है। मसलन  पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर उनकी इच्छा के खिलाफ मुस्लिम लड़कों से शादी कराये जाने और मंदिर एवं गुरूद्वारों को अपवित्र करने की खबरों पर भारत ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह पड़ोसी देशों की सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे अल्पसंख्यकों और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभायें। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने इस बारे में लोकसभा में दिये बयान में कहा कि इस विषय को पड़ोसी देश की सरकार के साथ पुरजोर तरीके से उठाया जा रहा है। पाकिस्तान में, खासतौर पर सिंध प्रांत में अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न तथा उन्हें धमकाए जाने की घटनाओं की जानकारी मिली है।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


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