बाजार के दबाव में ममता बनर्जी बंगाल की नई तानाशाह, जिसने कुचला लोकतंत्र के मौलिक अधिकारों को।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
ममता बनर्जी बंगाल की नई तानाशाह। जिसने कुचला लोकतंत्र के मौलिक अधिकारों को।नंदीग्राम, सिंगुर और लालगढ़ के जनांदोलनों का नेतृत्व करते हुए चौतीस साल के माक्सवादी दलतंत्र की जिस तानाशाही के विरोध का प्रतीक बनकर लोकप्रिय जनसमर्थन, मीडिया,बुद्धिजीवी वर्ग और बाजार की ताकतों के दमपर बंगाल में परिवर्तन लाने में बेमिसाल कामयाबी हासिल की कालीघाट की साधारण सी महिला ने,आज चौतरफा आर्थिक चुनौतियों से घिरकर,मां माटी मानुष की सरकार के प्रति उमड़ती जनआकांक्षाओं और बढ़ते हुए बाजार के दबाव के आगे मार्क्सवादियों की गलतियों को दुरंत गति से दोहरा रही है वह। लगातार तरह तरह के वायदे, राजस्व और राजकोष के संकट, बढ़ती हुई पूंजी की अनास्था , केंद्र से अपेक्षित सहयोग का अभाव और वित्तीय प्रबंधन में अदक्षता के कारण ममता बनर्जी की असहिष्णुता और त्वरित प्रतिक्रियाएँ उन्हें तेजी से तानाशाही की मुकाम की ओर धकेल रही है।बंगाल में ममता बनर्जी का एक साल पूरा हो गया।। इस एक साल के दौरान दानिश्वरों में बहुत फूट पड़ गई है जो किसी वक़्त तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की पुरज़ोर हिमायत करते थे।ममता बनर्जी अपने कड़े तेवर के लिए हमेशा से जानी जाती हैं। विरोधियों पर कड़े लहजे में हमला करना ममता की पुरानी आदत है।मुख्यमंत्री पद पर बैठने के बाद से उन्हें अपनी आलोचना तक बर्दाश्त नहीं हो रही है।बराबर धमकी देने और आक्रमक राजनीति करने वाली तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को इस बार कांग्रेस की तरफ से धमकी मिली है। कांग्रेसी सांसद अधीर चौधरी ने कहा है कि अगर ममता को यूपीए सरकार से इतनी ही परेशानी है तो समर्थन वापस क्यों नहीं ले लेतीं?गौरतलब है कि पेट्रोल मूल्यवृद्धि पर केंद्र सरकार को खरी-खोटी सुनाने और रेलमंत्री मुकुल रॉय से जुलूस निकलवाने के बाद तृणमूल सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शनिवार को खुद सड़क पर उतर पड़ीं।
जिन प्रबुद्धजनों के समर्थन से ममता बनर्जी की साख जनता में कायम हुई, उनकी अगुआ ज्ञानपीठ पुरस्कारविजेतासाहित्यकार महाश्वेता दे देवी न केवल कई दफा उन्हें तानाशाह कहा है बल्कि इस तानाशाही के विरुद्ध उन्होंने बांग्ला अकादमी के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देदिया।हिलेरिया से राइटर्स में ममता की सीधी बातचीत और टाइम में उनकी प्रशस्ति से तृणमूल समर्थक भले ही उत्साहित हो, पर ये वैश्विक पूंजी के अनंत दबाव के संकेत हैं, जो मार्क्सवाद के अवसान के बाद बंगाल को खुले बाजार की विश्व व्यवस्था का सिंहद्वार बनाने में के लिए आमादा है। इस कारपोरेट लाबिइंग में मीडिया का वह प्रभावशाली अंश भी शामिल है, जो कल तक ममता का गुणगान करते हुए अघाता नहीं था, पर पोपुलिस्ट ममता के सुधारविरोधी हरकतों से अब बाज आकर उनकी तीखी आलोचना पर उतारू है। अपनी छवि के प्रति बेहद संवेदनशील ममता के लिए यह बर्दाश्तेकाबिल नहीं है, इसकी प्रतिक्रिया में उनके कदम और तानाशाह होते जा रहे हैं। अभिव्यक्ति और लोकतांत्रक विरोध के मौलिक अधिकारों को कुचलने से वे बाज नहीं आ रही हैं। मार्क्सवादी हर संकट के लिए केंद्र को दोषी ठहराते रहे हैं, तो केंद्र के खिलाफ ममता दीदी ने मोर्चा खोल लिया और क्षत्रपों की स्वयंभू सिरमौर भी बन गयी। हर समस्या के लिए वे पिछली सरकार को जिम्मेवार ठहराती हैं, पर सालभर बीत जाने के बाद भी मां माटी मानुष की सरकार दिशाहीन नजर आती है। जिस बाजार ने इस सरकार की राह आसान बनायी, उसकी अनास्था ममता सरकार के लिए भारी पड़ने लगी है। बेताब बाजार तुरंत ही मुनाफा वसूल लेना चाहता है और ममता इस दिशा में कुछ नहीं कर पा रही है।
वित्तीय प्रबंधन के नाम पर केंद्र से ब्याज माफी, वित्तीय पैकेज की मांग और इसके साथ ही कांग्रेस और उसके नेता वित्तमंत्री प्रणव के सफाये के लिए गोलाबारी के अलावा कुछ नहीं हो रहा। दीदी ने राष्ट्रपति पद हेतु प्रणव की उम्मीदवारी खारिज करते हुए उन्हें विश्वपुत्र तक बता दिया। पर अपनी जनविरोधी हरकतों से वे लगातार भूमिपुत्री की भूमिका से हटकर बाजार की सौतेली बेची बनती जा रही हैं, जिन्हें बाजार ने जन्म तो दिया पर लावारिश छोड़ दिया। हिलेरिया की तारीफ से बंगाल में हालात नहीं बदल रहे हैं।ममता ने कहा कि नहीं, मैं यह नहीं कहूंगी, लेकिन यदि वह उम्मीदवार बनते हैं तो मैं इसका विरोध करने वाली कौन होती हूं, यह बहुमत पर निर्भर करता है। यह लोकतांत्रिक देश है। वह वित्त मंत्री हैं, प्रणव मुखर्जी के लिए मैं बहुत अधिक ईमानदार हूं। इसे लेकर मैं बहुत अधिक ईमानदार हूं। यह कांग्रेस पार्टी का निर्णय है कि कौन उम्मीदवार होगा। हम नहीं कह सकते। मैं कांग्रेस पार्टी के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।उन्होंने कहा कि लेकिन यदि आप मेरी पार्टी या व्यक्तिगत पसंद पूछेंगे तो मैं कहूंगी कि मैं मीरा कुमार को पसंद करती हूं। वह अनुसूचित जाति पृष्ठभूमि से आने वाली मृदृभाषी महिला हैं।परिवर्तन लाने में ममता बनर्जी की मदद करने वाले बुद्धिजीवी धीरे-धीरे उनके खेमे से रुखसत हो चुके हैं। वामपंथियों के कुएं से निकल कर तृणमूल कांग्रेस की खाई में गिरी बेबस जनता के पास कोई विकल्प नहीं है। बंगाल की अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के कगार पर खड़ी है, मगर सूबे का औद्योगिक कायाकल्प करने का नारा देने वाली ममता विकास का खाका बनाने के बजाय कांग्रेस के साथ लुकाछिपी खेलने में लगी हैं। सत्ता में आने के बाद से ही ममता बनर्जी बंगाल के लिए आर्थिक पैकेज की रट लगा रही हैं। पिछले दिनों उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस पैकेज पर फैसला करने के लिए पंद्रह दिनों का समय दिया।केद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल को आर्थिक पैकेज देने के संबंध मे स्पष्ट किया कि इसके लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही कोई फैसला किया जाएगा। ममता बनर्जी केंद्र पर बंगाल को वित्तीय संकट से उबारने में आर्थिक मदद नहीं करने का आरोप लगाया है।सवाल है कि यदि बंगाल को रियायत पाने का अधिकार है तो इसी समस्या से जूझ रहे पंजाब और केरल को भी रियायत क्यों नहीं मिलनी चाहिए?
कोलकाता की जाधवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा को हाल ही में ममता के आपत्तिजनक कार्टून इंटरनेट पर डालने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया, लेकिन देश भर में इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना हुई।
राइटर्स में खड़ा हो कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को तानाशाह बताने वाला कांग्रेस मंत्री मनोज चक्रवर्ती की इस्तीफा को हाईकमान ने मंजूर कर लिया। हाईकमान ने एक तरह से मनोज चक्रवर्ती के पक्ष में फैसला लिया।चक्रवर्ती के इस्तीफे पर पार्टी की मुहर लगने के बावजूद कांग्रेस ने उनकी जगह किसी दूसरे नेता को ममता मंत्रिमंडल में भेजने का संकेत नहीं दिया है।
अरसे से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आंखों में खटक रहे विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) अधिनियम 2003 को पश्चिम बंगाल सरकार ने रद्द कर ही दिया। इसके साथ ही दूसरी प्रोत्साहन योजनाओं का ऐलान करने का तृणमूल कांग्रेस सरकार का रास्ता भी साफ हो गया। लेकिन फैसले का सीधा असर आईटी दिग्गजों विप्रो और इन्फोसिस पर पड़ेगा, जो राज्य में परिसर खोलकर उन्हें सेज का दर्जा दिलाना चाह रही थीं। रद्द किया गया अधिनियम दरअसल 'पश्चिम बंगाल में सेज के विकास, परिचालन, रखरखाव, प्रबंध, प्रशासन और नियमन' में सहूलियत के लिए लागू किया गया था। लेकिन बनर्जी और उनकी पार्टी शुरू से ही इसका विरोध करती रही है। उनकी दलील है कि इससे कामगारों का शोषण होता है।ममता बनर्जी के विरोध-प्रदर्शन ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में टाटा मोटर्स के नेनो संयंत्र का परिचालन ठप्प कर दिया था और रतन टाटा ने बंगाल छोड़ने की घोषणा कर दी थी। टाटा प्रबंधन ने सिंगूर परियोजना की कुछ जमीन किसानों को लौटाने की पेशकश करते हुए ममता बनर्जी से बातचीत करने की कोशिश की, मगर सियासत के अपने सबसे उफानी दौर में हवा के घोड़े पर सवार ममता ने टाटा की मांग ठुकरा दी। उम्मीदों के मुताबिक ही रतन टाटा नेनो परियोजना को गुजरात के साणंद ले गए और कुछ समय बाद ममता बनर्जी ने कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में पहुंचने का अपना सपना पूरा कर लिया।किसी एक उद्योग या निवेशक का पलायन पूरी कारोबारी मानसिकता पर असर डालता है और इसके बाद छोटे-मोटे उद्योग भी उस खास जगह से चले जाते हैं। टाटा मोटर्स के पहुंचने से पहले साणंद देश के वाहन उद्योग के नक्शे पर कहीं नहीं था।
राज्य के वाणिज्य एवं उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्री पार्थ चटर्जी ने बताया, 'हमने पश्चिम बंगाल सेज अधिनियम रद्द करने का फैसला आज कैबिनेट बैठक के दौरान ले लिया।' उन्होंने कहा कि आईटी क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार नए उपाय करेगी। हालांकि सरकार के इस कदम का असर राज्य में पहले से मौजूद सेज इकाइयों पर नहीं पड़ेगा। लेकिन इससे उसका सेज विरोधी रुख पुख्ता हो गया है। इससे विप्रो और इन्फोसिस को सबसे तगड़ा झटका लगा है, जो कोलकाता के बाहर राजारहाट में 50 एकड़ में अपने परिसर बनाना चाहती हैं। इन दोनों कंपनियों और सरकार के बीच काफी समय से रस्साकशी चल रही है। दोनों अपने परिसरों को सेज का दर्जा दिलाना चाहती हैं, जो ममता सरकार को नामंजूर है। इस नामंजूरी पर सरकारी मुहर भी लग ही गई। विप्रो के उपाध्यक्ष और प्रमुख (कॉर्पोरेट मामले) पार्थसारथि गुहा पात्र ने कहा, 'मुझे फौरी तौर पर यही लगता है कि इस फैसले का असर पहले से मौजूद परिसरों पर नहीं पड़ेगा। लेकिन कुल मिलाकर उन्होंने वही बात दोहराई है, जो पहले भी हमसे कही जा चुकी है।'
इस बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता एवं बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने रविवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रशंसा की और कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में यदि तृणमूल कांग्रेस शामिल होती है तो उसका स्वागत है। मोदी ने कहा कि राजनीति में,कोई स्थायी दोस्त और स्थायी दुश्मन नहीं होता। कभी ममता बनर्जी राजग के साथ थीं। ममताजी यदि राजग में शामिल होती हैं तो हम हमेशा ममता जी की वापसी का स्वागत करते हैं।मोदी ने कहा कि ममता प्रशंसा पाने की योग्य हैं। सरकार की सहयोगी होते हुए भी उन्होंने उसकी जनता-विरोधी नीतियों का जिस तरीके से विरोध किया है, उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। मोदी बिहार के गठन के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह में शामिल होने के लिए कोलकाता में थे।हाल में पेट्रोल के मूल्यों में बढ़ोतरी और एनसीटीसी पर ममता के विरोध पर एक संवाददाता द्वारा पूछे जाने पर मोदी ने कहा कि वह प्रशंसा की पात्र हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस नीत सरकार के एक वर्ष के प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर मोदी ने सरकार के प्रदर्शन का आकलन करने से इंकार कर दिया, लेकिन उनकी 'ईमानदारी, लगन, कठिन परिश्रम' की सराहना की और कहा कि वह राज्य के भले के लिए काम कर रही हैं।
केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के विरोध में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उतर जाने से प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व क्षुब्ध है। निचले स्तर पर कुछ कांग्रेस कर्मियों ने अपने ढंग से ममता के खिलाफ विरोध जताया है। रविवार को ब्लाक स्तर पर तृणमूल कर्मियों के पेट्रोल के दाम घटाने की मांग पर विरोध- प्रदर्शन करने पर कांग्रेस नेताओं ने कुछ जगहों पर अपने स्तर पर इसका मुकाबला किया। दक्षिण कोलकाता जिला कांग्रेस नेताओं ने जवाबी हमले के तौर पर जुलूस निकाला। बाद में कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भंट्टाचार्य ने सार्वजनिक तौर पर राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ मोर्चा खोलने और आंदोलन पर उतरने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार में शामिल है तो इसका यह मतलब नहीं है कि अन्याय होने पर वह चुप रहेगी। श्री भंट्टाचार्य ने कहा कि केंद्र सरकार कोई भी निर्णय लेने से पहले सहयोगी दलों के साथ बैठक करती है। पेट्रोल के दाम घटाने के लिए जो बैठक हुई थी उसमें तृणमूल के प्रतिनिधि मौजूद थे। निर्णय से पहले चर्चा नहीं करने की जो बात मुख्यमंत्री ने कही है, वह गलत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अब्दुल मन्नान ने कहा कि तृणमूल अकेले चलना चाहती है तो कांग्रेस को इसकी परवाह नहीं है। कांग्रेस भी अकेले चलने और हर स्तर पर तृणमूल से मुकाबला करने के लिए तैयार है। राज्य सरकार की 'जनविरोधी' नीतियों के विरोध करने का कांग्रेस भी कोई मौका नहीं गंवाएगी।
उल्लेखनीय है कि सुश्री बनर्जी ने मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार सड़क पर उतरकर केंद्र की जनविरोधी नीतियों का विरोध किया। शनिवार को पेट्रोल के दाम बढ़ाने के खिलाफ वह दक्षिण कोलकाता के यादवपुर से हाजरा मोड़ तक लगभग पांच किलोमीटर तक जुलूस के साथ पैदल चलीं। उनके साथ जुलूस में रेल मंत्री मुकुल राय, उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी, शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम, आवास मंत्री अरूप विश्वास, विधानसभा उपाध्यक्ष सोनाली गुहा, मुख्य सचेतक शोभनदेव चटर्जी समेत तृणमूल कांग्रेस के अन्य नेता व पार्टी कार्यकर्ता शामिल थे। इससे पहले रेलमंत्री व तृणमूल के वरिष्ठ नेता मुकुल राय और परिवहन मंत्री मदन मित्रा के नेतृत्व में गुरुवार को हाजरा मोड़ से मेयो रोड स्थित गांधी मूर्ति तक जुलूस निकला था। शनिवार को ममता खुद जुलूस में शामिल हुईं। रविवार को ब्लाक स्तर पर तृणमूल कार्यकर्ताओं ने पेट्रोल की मूल्य वृद्धि वापस लेने की मांग पर जुलूस निकाला। प्रदेश कांग्रेस पहले से ही ममता के रवैये से क्षुब्ध है। सुश्री बनर्जी के केंद्र के खिलाफ खुलकर सड़क पर उतरने का जवाब भी कांग्रेस के नेता सड़क पर उतर कर देंगे। श्री भंट्टाचार्य ने इसका स्पष्ट संकेत दे दिया है।
शिल्पा कण्णण,बीबीसी संवाददाता, दिल्ली की यह रजट आंख कोलने वाली हैः
गुस्से से भरे मुनिमोहन बांगल बताते हैं- एक इलेक्ट्रिशियन के रूप में यहां मेरा कोई काम नहीं है, क्योंकि यहां फैक्टरी नहीं है और एक किसान के रूप में भी मेरा कोई काम नहीं हैं, क्योंकि अब मेरे पास जमीन ही नहीं बची है.
पश्चिम बंगाल के सिंगूर के 29 वर्षीय इस किसान के परिवार ने सात बीधा (लगभग 2.5 एकड़) जमीन अपने क्षेत्र की सबसे पहली औद्योगिक परियोजना के लिए दे दिया था.
वहां टाटा मोटर ने अपनी सबसे सस्ती कार नैनो की फैक्टरी लगाई थी और उनकी योजना उस फैक्टरी से हर साल 2,50,000 कार तैयार करने की थी.
शुरुआती पूंजी निवेश के बाद वहां वाहन बनाने वाली और कई छोटी-मोटी फैक्टरियां भी लगी थी, जो कार के लिए सहायक उपकरण तैयार करनेवाली थी.
उस क्षेत्र में लगातार निर्माण का काम हुआ और सैकड़ों ट्रकों से सीमेंट, ईंट और बालू की आवाजाही होने लगी.
लोगों में आशा
"हमारे लिए कमाई का एक मात्र जरिया यही जमीन थी, जिस पर अब भवन का निर्माण हो गया है, जिसपर अब खेती हो नहीं सकती है. हमने यह जमीन उस वायदे के बाद दी थी जिसमें कहा गया था कि वे मेरे और मेरे परिवार के बच्चों को रोजगार देगें, लेकिन अब तो हमारे पास कुछ रह ही नहीं गया है"
इससे उस क्षेत्र के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को आशा जगी कि उन्हें नौकरी मिलेगी.
उनमें बांगल जैसे कुछ खुशनसीब लोग भी थे जिन्हें काम भी मिल गया और उन्हें ट्रेनिंग दी जाने लगी. उन्हें एक कार की फैक्टरी में बतौर इलेक्ट्रिशियन नौकरी भी मिल गई.
फैक्टरी में नौकरी और पैसे के वायदे के बाद उन्होंने अपनी जमीन खुशी-खुशी बेच दी. लेकिन फैक्टरी सिर्फ दो महीने चली. हिंसक विरोध के बाद टाटा को उस जगह से निकल जाना पड़ा.
पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार ने 2006 में इस परियोजना के लिए एक हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था.
रूके हैं काम
नैनो बनाने वाली टाटा को सिंगुर से निकल जाना पड़ा
वहां कार फैक्टरी वाली जगह पर मशीनें तो पड़ी हैं लेकिन उसके आसपास घास उग आए हैं.
दस हजार से अधिक किसानों ने जमीन के बदले हर्जाना लिया था, लेकिन सिर्फ दो हजार लोगों ने हर्जाना लेने से इनकार किया है और वे अपनी जमीन वापस करने की मांग कर रहे हैं.
साल भर पहले ममता बनर्जी ने इतिहास रच दिया जब उन्होंने पश्चिम बंगाल में 34 साल पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया. उन्होंने घोषणा की थी कि सत्ता में आते ही वह राज्य में आर्थिक सुधार लागू करेंगी.
ममता का वायदा
देश की इस शक्तिशाली राजनेता ने चुनाव प्रचार के दौरान इस बात की घोषणा की थी कि चुनाव जीतते ही वह किसानों को उनकी जमीन वापस कर देंगी. क्षेत्र के किसानों ने उनके उस वायदे पर भरोसा किया और उनके पक्ष में जमकर मतदान किया.
साल भर बीत गए हैं, लेकिन अनेकों ऐसे किसान हैं जो अपनी जमीन वापसी की आस में टकटकी लगाए हुए हैं.
इस बीच टाटा अपनी नैनो की फैक्टरी को वहां से उठाकर गुजरात लेकर चला गया, लेकिन वहां भी जमीन अब कानूनी दाव-पेंच में फंस गया है.
बांगल का कहना है कि वे अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं.
जमीन वापसी नहीं
उनका कहना है, "हमारे पास अब इतनी ही जमीन बची है जिस पर हम अपने परिवार के लिए सब्जी उगा सकते हैं."
वे आगे बताते हैं, "हमारे लिए कमाई का एक मात्र जरिया यही जमीन थी, जिस पर अब भवन का निर्माण हो गया है, जिसपर अब खेती हो नहीं सकती है. हमने यह जमीन उस वायदे के बाद दी थी जिसमें कहा गया था कि वे मेरे और मेरे परिवार के बच्चों को रोजगार देगें, लेकिन अब तो हमारे पास कुछ रह ही नहीं गया है."
अब बहुत सी कंपनियों को लगने लगा है कि पूरा पश्चिम बंगाल ही राजनीति रूप से बीमार पड़ गया है.
बीबीसी
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Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
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By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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