Monday, May 21, 2012
लू और कालबैशाखी के मध्य तैंतीस साल बाद एक मुलाकात!
लू और कालबैशाखी के मध्य तैंतीस साल बाद एक मुलाकात!
पलाश विश्वास
आज के दिन मुझे कोलकाता में व्यस्त रहना था। ऐसा ही तय था। पर पिछले दो दिनों में जो हालत हुई है, आज घर से निकलने की हालत में नहीं हूं। कल शाम दफ्तर पहुंचकर दोनों कन्धे पर पेन किलर स्प्रे करके कम्प्यूटर पर बैठा था। आज भी पीसी के मुखातिब होने की हालत नहीं है। पर कल शाम अचानक आयी कालबैशाखी की तरह बीता हुआ समय दिलोदिमाग पर ऐसा हावी है कि उससे मुक्ति पाने के लिए लिखने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
कोलकाता में इन दिनों हमारे उत्तर भारत की तरह लू चल रही है। अप्रैल में दनादन चली कालबैशाखी से गर्मी और उमस से निजात मिल गयी थी कुछ। पर मई में लगातार ताप प्रवाह। दफ्तर भी अब पातालपुर में हैं। कहने को धर्मतल्ला से कोना एक्सप्रेसवे होकर तीस चालीस मिनट या फिर डनलप से मुंबई रोड होकर करीब चालीस मिनट की दूरी पर है अंकुरहाटी चेकपोस्ट। सोदपुर में घर के सामने से सीधी बस बारासात धूलागढ़ मिल जाये तो पचास मिनट का वक्त लगता है। पर असल में एक्सप्रेस वे को तमाम लिंक रोड से जोड़ने का अंजाम क्या होता है, इसे जाने बगैर हालात का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
रोजाना दुर्घटना, बस या ट्रक का फूंका जाना, हिंसक भीड़ और उससे ज्यादा ट्राफिक पहेली बूझने के लिए रैफ यानी दंगा नियंत्रण वाहिनी का हाजिर होना आम है। शलप पुल का एक हिस्सा न जाने कब से ढहा हुआ है, आधी सड़क की सुरंग से तमाम बड़ी बड़ी गाड़ियों का आना जाना। ओवरलोडिंग पर कोई नियंत्रण नहीं। रोशनी नहीं। ट्रेफिक पुलिस नदारद। कोई गाड़ी उलट जाये कि रास्ता ऐसा जाम कि निकलना असंभव।ममताराज में हालात बदलने के बजाय सड़क पर शक्ति प्रदर्शन के रिवाज से इस गर्मी में हालत नर्क है।
शुक्रवार को रात दो बजे के आसपास दफ्तर से निकले तो शलप पुल पहुंचने से पहले सड़क जाम। वापस कोना एक्सप्रेस होकर हावड़ा बरास्ते निकलने का उपाय भी नहीं। पीछे गाड़ियों की कतारें बेतरतीब। घंटाभर फंसे रहने के बाद किसीतरह जुगाड़ लगाकर ट्रकों की कतार को आगे पीछे धकेलकर डिवाइडर जम्प करके निकले तो हावड़ा नागेरबाजार होकर घर पहुंचते पहुंचते साढ़े चार बज गये।
शनिवार शाम तक रास्ता क्लीअर नहीं हुआ। सोदपुर और डनलप में सवा घंटा बरबाद होने के बाद डनलप से धर्मतल्ला की ओर चले तो मां माटी मानुष की सरकार के पक्ष में उमड़े जनसैलाब से सामना हो गया। हर कहीं रास्ता घेरकर सरकार का साल पूरा होने का उत्सव। गाड़ियां चीटीं की तरह रेंग रही थीं। आधे घंटे के बजाय ढाई घंटे में जब धर्मतल्ला पहुंचे, तब तक तमाम अंतिम बसें रवाना हो चुकी थीं। एक बस आमता के लिए मिली ठसाठस भरी हुई। किसी तरह अंदर दाखिल हुए। बस कोना एक्सप्रेस पर फर्राटा लेकर चल पड़ी। पर रास्ते में कुछ लड़कों से कंडक्टर की कहासुनी हो गयी। जब विद्यासागर सेतु पार करके रात के करीब नौ बजे सांतरागाछी पहुंचे, वहां लड़कों का हुजूम इंतजार में था, जिन्हें मोबाइल काल के जरिये बुला लिया गया था। वे अब बस फूंक डालें कि तब और हमारे लिए बस से निकलने का कोई जुगाड़ नहीं। पर ड्राइवर ने किसी तरह बस निकाल ली। मीलभर जाने के बाद बस की टंकी लीक हो गयी और हम सड़क पर आ गये। किसी तरह एक चलती हुई टाटा मिनी ट्रक पर लद गये और रात साढ़े नौ बजे दप्तर पहुंचे। वापसी के वक्त तक रास्ता क्लीअर नहीं हुआ था। लिहाजा कोना एक्सप्रेस होकर हावड़ा कोलकाता दमदम होकर घर लौटे।
शरीर का पोर पोर दुख रहा था। पर दिल्ली से रामराज को फोन आया था कि रविवार की सुबह दस बजे से य़ूनिवर्सिटी इंस्टीच्यूट में उनका कार्यक्रम है। हम लोग १९७९ में दिसंबर महीने में आखिरी बार मिले थे इलाहाबाद में। मैं सितंबर में एमए पास करते ही डा. बटरोही और अंग्रेजी की हमारी मैडम मधुलिका दीक्षित की सलाह पर पहाड़ छोड़कर मैदान की तरफ निकल पड़े थे। उस दिन भी पहाड़ों में घनघोर वर्षा हो रही थी। भूस्खलन से आगे पीछे रास्ता जाम था और बरेली पहुंचकर हमें इलाहाबाद की ट्रेन पकड़कर शैलेश मटियानी जी के घर पहुंचना था। क्योंकि हमने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में शोध करना तय किया था। डा. मानसमुकुल दास से नैनीताल में हमारी मैराथन बहस हुई थी कविता पर, मधुलिका जी के कहे मुताबिक हमें उनके निर्देशन में ही शोध करना था। बटरोही जी साठ के दशक में मटियानी जी के यहां जिस कमरे में ठहरे थे, उसी में हमें ठहरना था। घर को हमने खबर नहीं की। नये कालेजों में पोस्टिंग की परवाह नहीं की। जेब में पैसे थे नहीं। आते वक्त शेखर पाठक से डेढ़ सौ रुपये ले आये थे।घर की हालत चूंकि बहुत नाजुक थी , इसलिए बीए पास करने के बाद से घर से हमने मदद लेना बंद कर रखा था।तब तक खूब छपने लगा था और जरुरत के वक्त मदद करनेवाले मित्र हमें हमेशा मिलते रहे हैं। आज मैं जो कुछ हूं, उन अनगिनत मित्रों के कारण। पिताजी कहा करते थे कि जितनी बड़ी संख्या में हो सकें मित्र बनाओ। लाखों मित्र भी कम पड़ते हैं। पर कही कोई अकेला दुशमन बन गया तो समझो, तुम्हें बरबाद करने के लिए अकेला वह काफी है।
सुबह सुबह शैलेश जी के घर पहुंचे तो वहां उनका वह कमरा खाली नहीं था। शैलेश जी ने कहा कि रहने के बारे में बाद में सोचना, पहले विश्वविद्यालय जाकर पता करो कि हाल क्या है।विश्वविद्यालय में जाकर सबसे पहले डा. रघुवंश से मिले तो वे हिंदी में एमए करने की सलाह देने लगे। मुझे जो मंजूर नहीं था। वहीं शैलेंद्र से हिंदी विभाग में मुलाकात हो गयी। पिछले २१ साल से शैलेंद्र और हम जनसत्ता में साथ साथ हैं।अंग्रेजी विभाग में पहुंचे तो डा. दास से मिलकर पता चला कि उनका कोटा खत्म हो गया है ।पर उन्होंने डा. मालवीय से कहकर हमारे शोध के लिए इंतजाम कर दिया।
शैलेश जी के वहां से किताबें और बिस्तर जो मेरा कुल सामान था, उठाकर मैं १००, लूकरगंज शेखर जोशी के घर बिना सूचना दिये पहुंच गया और पहुंचते न पहुंचते उस परिवार का हिस्सा बन गया, जो आज भी हूं। तब प्रतुल जो आजकल आकाशवाणी लखनऊ में है ,थोड़ा बड़ा था। पर संजू, आज का फिल्म निर्माता और विदुषी बंटी बेहद छोटे थे। लूकरगंज के उस घर से मेरा विश्वविद्यालय आना जाना, सिविल लाइंस काफी हाउस, अमृतप्रभात और माया प्रकाशन को केंद्रित फ्रीलांसिंग। शेखरजी के कारण पूरा साहित्यजगत में मैं पारिवारिक सदस्य था। मार्कंडेयजी. भैरव जी, अमरकांत जी, नरेश मेहता जी से लेकर मंगलेश और वीरेनदा तक लंबी चौड़ी दुनिया। पैदल ही पूरा इलाहाबाद नाप लेता था। संगम तक। भूख लगी तो एक रुपये में छह रोटियां कहीं भी मिल जाती थीं। एक रुपया न हो तो कंपनी बाग में दस पैसे में एक अमरूद पेट भरने के लिए काफी था। हौसला हमारा बुलंद था और ख्वाब थे समुंदर की मौजों की तरह ठाठें मारते हुए।
विश्वविद्यालय में गौतम गांगुली और गायत्री गांगुली से दोस्ती हो गयी। वे भाई बहन थे और रेलवे क्वार्टर में रहते थे।मित्रों की टोली ने चौक में मेरे लिए ट्यूशन की जुगाड़ किया था। मास्टर, जिनसे बाद में गायत्री ने विवाह किया, ममपोर्डगंज में रहते थे। उनके मकान की छत पर एक कमरा था, जहां मैं लूकरगंज से शिफ्ट हो गया।
ममफोर्डगंज में ही एक कमरा किराये पर लेकर डीके और उनके दोस्त रहते थे। वे सब मेजा तहसील के थे। ज्यादातर गरीब दलित किसान परिवार से। उनमें रामराज भी थे। उस वक्त वे बीए में पढ़ते थे। मुझे उन सबकी अंग्रेजी में मदद करनी थी।
विश्वविद्यालय, अमृतप्रभात, माया प्रकाशन, ट्यूशन और दोस्ती के बीच धरना, प्रदर्शन, छात्र आंदोलन, नुक्कड़ नाटक के जरिए मैं आहिस्ता आहिस्ता इलाहाबादिया बनता जा रहा था। तमाम बड़े लोगों से संपर्क होने के बावजूद ममफोर्डगंज के देहाती दलित लड़कों के साथ ही हमारी अंतरंगता ज्यादा थी। रामराज इनमें से सबसे ज्यादा सीधा सादा, सबसे ज्यादा ईमानदार था। वह बीच बीच में मेजा अपने गांव चला जाता राशन पानी ले आता। खाना भी वह अच्छा बनाता था। अक्सर हम भी वहां उनके साथ खाते थे।
इलाहाबाद में सबकुछ ठीकठाक चलने ही लगा था कि अमृतप्रभात की भरती परीक्षा में मैं फेल हो गया। मंगलेश लखनऊ रवाना होने लगे तो उन्हें हमारी चिंता सताने लगी। उधर गाइड से हमारी जम नहीं रही थी। इसी बीच जेएनय़ू से उर्मिलेश आ धमके और रातोंरात तय हो गया कि हमारे लिए जेएनयू से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती। तब तक मित्रमंडली में नीलाभ, रामजीराय, केडी यादव, अनुग्रहनारायण सिंह जैसे लोग भी शामिल हो गये थे। ज्यादातर लोग इस फैसले के खिलाफ थे। विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग के मित्र भी पक्ष में न थे। रामराज, डीके और मास्टर बहुत दुखी हो गये। लेकिन मैं उनको पीछे छोड़कर दिल्ली चला गया। फिर तेजी से जिंदगी बदल गयी। हम कोयलांचल जाकर पत्रकार बन गये। इलाहाबाद के बाकी लोगों से तो फिर भी कमोबेश संपर्क बना रहा, पर ममफोर्डगंज और मेजा के साथियों से फिर कभी संपर्क न हो सका।
कई साल पहले इलाहाबाद से लौटकर शैलेंद्र ने बताया कि लोग कहते हैं कि जो उदित राज हैं, वही हमारा रामराज है। पर मामला कनफर्म नहीं है।
मामला कनफर्म हुआ तमिलनाडु के कुन्नूर में। ऊंटी के पास आयुध कारखाने में २०१० के जाड़ों में हम मंगेश कुमार से मिलने गये थे। वहां कर्मचारी संगठन का चुनाव चल रहा था। एससीएसटी एम्प्लाइज कानफेडरेशन के लिए काम करते हैं मंगेश कुमार। उन्होंने ही उदित राज से बात करायी और यह पुष्ट हो गया कि वे हमारे रामराज ही हैं। फिर बीच बीच में बातें होती रहीं फोन पर। चूंकि शरणार्थियों का मामला उन्होंने अब तक नहीं उठाया और निजीकरण के हम सख्त खिलाफ हैं, इसलिए निजी क्षेत्र में आरक्षण को लेकर उनका आंदोलन भी हमें जमता नही है। मामला आगे नहीं बढ़ रहा था। हालांकि दलित मूलनिवासी आंदोलन के धड़ों में बंटे होने से हम हमेशा दुखी रहे हैं, पर अंबेडकर परवर्ती दलित मूलनिवासी आंदोलन का मुख्य अंतर्विरोध यही है, जिसे चाहकर भी हम बदल नहीं सकते। उदितराज से मिलने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं थी और न हम उन्हें संवाद के लिए अस्पृश्य ही मान रहे थे। चूंकि चुनाव की राजनीति में हमारी कोई आस्था नहीं है और उदित राज की जस्टिस पार्टी चुनाव की राजनीति में शामिल है, हम चाहकर भी अपने पुराने अंतरंग मित्र उदितराज से मिल नहीं पा रहे थे।
शारीरिक रुप से पस्त मैं रविवार को करीब साढ़े तीन बजे यूनिवर्सिटी इंस्टीच्यूट में पहुंचा और सामने की कतार में बैठ गया। मुझ वहां कोई पहचानने वाला नहीं था। रामराज भी इतने दिनों बाद हमें पहचान नहीं सकते थे। पहलीबार मैं उदितराज के आरक्षण बचाओ आंदोलन की बहस के बीचोंबीच था। बिना उसमें शिरकत किये। जिलों और राज्य के नेताओं को सुन रहा था। इसमें कोई दो राय नहीं कि आरक्षण खत्म करने के लिए ही निजीकरण और विनिवेश का यह अभियान है, जिसे किसी भी स्तर पर रोकने का अब कोई उपाय नहीं दीख रहा।
प्रतिनिधियों को सुनते सुनते दिमाग में यह बात कौंध गयी कि अगर निजीकरण और विनिवेश , पीपी माडल को हम रोक नहीं सकते और खुला बाजार की अर्थ व्यवस्था एक हकीकत है तो सैद्धांतिक पचड़े में न पड़कर हमें क्यों नहीं निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए आंदोलन करना चाहिए? संविधान और आरक्षण बचाओ आंदोलन का बात तो हम हमेशा करते हैं।उदित राज ने हमसे फोन पर कहा था कि अंबेडकर का आंदोलन राजनीतिक था और दलितों के लिए राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए था। वे नास्तिक नहीं थे । धार्मिक थे। चूंकि जाति को नष्ट करने के अभियान में उन्हें कामयाबी नहीं मिली , इसलिए हिंदुत्व को खारिज करके उन्होंने बौद्धधर्म अपनाया। उनके इस वक्तव्य में असहमति की गुंजाइश है और नहीं भी।पर हमने उनसे बहस
नहीं की।
तमाम प्रतिनिधि अपनी समस्याएं रख रहे थे और संचालक उदित राज उसके जवाब में संगठन और आंदोलन मजबूत करने की बात कर रहे थे। उन्होंने जब कहा कि राजनीति और सत्ता बाजार के नियंत्रण में हैं, यह हमारी ही बात हुई। फिर उन्होंने बंगाल से डा. अंबेडकर के चुने जाने का बार बार उल्लेख किया। बंगाल के मूलनिवासी आंदोलन की विरासत और अपनी पहचान कायम करने की बात बतायी, जोगेंद्रनाथ मंडल की भूमिका की चर्चा की , ये हमारी ही बातें थीं। लेकिन जब प्रतिनिधियों ने शरणार्थी समस्या, नागरिकता संशोधन कानून और शरणार्थियों के देशनिकाले की चर्चा की तो वे खामोश रहे। हालांकि प्रतिनिधि बांग्ला में बात कर रहे थे पर हिंदी में कोई तो उन्हें बतलाता और संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बतौर प्रतिनिधियों के उठाये मुद्दों को समझने की जिम्मेवारी उनकी थी। उनके बगल में बैठी थीं यूथिका भट्टाचार्य, जो संगठन की परामर्शदाता हैं और दो दिवसीय कैडर कैंप भी लेंगी। वे जाहिरा तौर पर ब्राह्मण हैं और तमाम प्रतिनिधि, खुद उदितराज ब्राह्मणवादी वर्चस्व तोड़ने की बात कर रहे थे।इस अंतर्विरोध के बावजूद आगे अगर उदितराज हमारी समस्याओं की सुनवाई करेंगे तो मुझे पता नहीं कि हमें क्या फैसला करना पड़ जायें।
वक्त खत्म हो रहा था तेजी से । सवा चार बजे के करीब मैं मंच पर गया और कहा कि मैं कौन हैं। तब अध्यक्षीय भाषण शुरू कर चुके थे उदितराज। भाषण बीच में रोककर कहा कि हम सुबह से इंतजार कर रहे थे। तैंतीस साल बाद हम मिल रहे हैं। हम आपको सुनना चाह रहे थे। उन्होंने परिचय कराते हुए इलाहाबाद के दिनों का जिक्र किया और इंतजार की बात भी कहीं।
सम्मेलन समाप्त होने के बाद उनकी सांगठनिक बैठक होनी थी। मुझे दफ्तर पहुंचना था। विदा लेते वक्त उदितराज कहीं नही थे। पूरा का पूरा रामराज हमारे मुखातिब। रुआंसा चेहरा। रुंध हुए गले से बार बार कहते रहे कि इतने दिनों बाद मिले कोई बात ही नहीं हो पायी। उन्होंने हमसे शैलेंद्र का फोन नंबर मांगा। हम दे नहीं पाये। बोले दफ्तर में पहुंचकर एसएमएस कर दूंगा।
लू को झेलते हुए रामराज से मिलने पहुंचा । हाल से निकलकर धर्मतल्ला से बस में चढ़ते न चढ़ते काल बैसाखी शुरू हो गयी। बसअड्डे पर सहकर्मी रामाशीष मिल गये। उनसे शैलेंद्र का फोन नंबर लेकर एसएमएस भी कर दिया।
दफ्तर पहुंचा तो तब भी बारिश हो रही थी। इसी बीच शैलेंद्र का फोन आ गया और वह भी हमारी तरह भावुक था। बोला यह तो अपना पुराना रामराज है!
अगर वह पुराना रामराज ही है तो हम उससे मिलने, बतियाने से क्यों कतराते हैं हम?
क्यों हम मित्रों ने मेजा के उन दलित लड़कों की आज तक खोज खबर नहीं की?
क्या हम अपने ही दलित अछूत चेहरे से भागते रहे इतने दिनों तक?
या फिर अपना रामराज बौद्ध हो गया और राजनीतिक भी, इसलिए हमें उससे परहेज करना चाहिए?
ये सवाल खुद से हैं और आपसे भी! उन सबसे, जो राजनीति और समाज पर बाजार के वर्चस्व के खिलाफ होते हुए भी अलग अलग द्वीपों में कैद हैं।
इस बीच शायद एक गैर प्रसंगिक सूचना। रविवार की शाम हमारे मोहल्ले में महिलाओं और बच्चों का सालाना सांस्कृतिक कार्क्रम आयोजित था। सविता और उसकी सहेलियां महीनों से तैयारियों में लगी थीं।अंकुरहाटी पहुंचकर जब उससे फोन पर बात हुई तो उसने कहा कि कालबैशाखी ने सबकुछ तहस नहस कर दिया। पंडाल उखड़ गया। फिर उसने कहा कि हम सब मिलकर फिर पंडाल लगा रहे हैं । मंच तैयार कर रहे हैं।रात के बारह बजे फिर उसने सूचना दी कि प्रयास का शानदार कार्यक्रम हुआ। क्या दलित मूलनिवासी आंदोलन को ऐसी छोटी छोटी मामूली सामाजिक घटनाओं से कुछ सबक लेना चाहिए?
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হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!
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In conversation with Palash Biswas
Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg
Save the Universities!
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जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।
#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি
अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास
ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?
Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
Tweet Please
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
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By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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