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Tuesday, June 2, 2015

मजबूरी का नाम बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकर पलाश विश्वास

मजबूरी का नाम

बाबासाहेब डा.भीमराव अंबेडकर

पलाश विश्वास

जबूत कर रहे हैं।

आरएसएस, भाजपा और भारतीय राज्य एक बार फिर बाबासाहेब आंबेडकर को अपनी राजनीति को जायज ठहराने के लिए उनको 'अपनाने' की कोशिश कर रहा है. उन्हें एक 'हिंदू राष्ट्रवादी' बताना इसी साजिश का हिस्सा है. लेकिन जातियों के उन्मूलन और ब्राह्मणवाद के ध्वंस के लिए लड़ने वाले  बाबासाहेब का जीवन, चिंतन, उनके संघर्ष और उनका लेखन उन सभी चीजों के खिलाफ खड़ा है, जिनका प्रतिनिधित्व संघ, भाजपा या भारतीय राज्य करते हैं. मिसाल के लिए देखिए कि उन्होंने हिंदू राज के बारे में क्या कहा था. उनकी किताब पाकिस्तान ऑर द पार्टीशन ऑफ इंडिया से. बाबासाहेब की जयंती पर उन्हें याद करते हुए.


''अगर हिंदू राज असलियत बन जाता है, तो इसमें संदेह नहीं कि यह इस देश के लिए सबसे बड़ी तबाही होगी. हिंदू चाहे जो कहें, हिंदू धर्म स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए खतरा है. इस लिहाज से यह लोकतंत्र के साथ नहीं चल सकता. हिंदू राज को किसी भी कीमत पर रोकना होगा.''- डॉ. बी.आर. आंबेडकर


मित्रों,माफ करना कि बाबासाहेब की 125वीं जयंती के वार्षिक उत्सव के सत्तावर्गीय आयोजन और सत्तावर्ग में बाबासाहेब के दखल के लिए मचे घमासान महाभारत के मृग मरीचिका माहौल को साफ करने के लिए हमें ऐसा कहना लिखना पड़ रहा है।


बाबासाहेब हमारे वजूद में हैं और बाबासाहेब उनके लिए मजबूरी है क्योंकि अंधी पागल दौड़ के इस मुक्त बाजार में गांधी और गोलवलकर के नाम वोट नहीं मिल सकते,राम मंदिर के नाम पर भी बहुजनों के वोट नहीं मिल सकते,वोट मिलेंगे तो बाबासाहेब के नाम पर।


बाबासाहेब का नाम उनकी मजबूरी है और बाबासाहेब हमारा वजूद है।


अब हम तय करें कि हम अपना वजूद किस हद तक इस जनसंहारी गरम नरम हिंदुत्व के द्वैत अद्वैत वैदिकी प्रभूव्रग के मनुस्मृति शासन के हवाले करने को तैयार हैं।


आज अरसे बाद आदरणीय डा. आनंद तेलतुंबड़े के साथ घंटे भर की बातचीत हुई।वे नेशनल प्रोफेसर हैं और उन्हें फुरसत में पकड़ना बेहद मुश्किल होता है


वैसे मैं कद काठी से बौना हूं और नैनीताल में तो भौगोलिक समस्या हो जाती थी।शेखर पाठक जैसे साढ़े छह फुट ऊंचाई के विद्वान प्रोफेसर के साथ खड़े होने में।वह तो उमा भाभी हमारे कद की हैं तो हमारी हिम्मत बंधी।संजोगवश देशभर में हमारे मित्रों की हैसियत और ऊंचाई हमसे लाख गुणा बेहतर हैं।


हम चूंकि मौजूदा स्ताई बंदोबस्त को हिंदू राष्ट्र मानकर जाति उन्मूलन की एजंडा की बात कर रहे हैं,हम चूंकि अस्मिताओं और भाषाओं की दीवारें तोड़कर सत्तावर्ग की वर्तनी,व्याकरण,सौंदर्यबोध और बाजार के नियमों और सत्ता के अनुशासन के खिलाफ देश जोड़ने और एक फीसद से कम मिलियनर बिलियनर सत्तावर्ग के खिलाफ देश की बाकी जनता को लामबंद करके परिवर्तन के जरिये समता और सामाजिक न्याय की बात कर रहे हैंः


हम चूंकि हिंदू राष्ट्र की बुनियाद पुणे करार को मान रहे हैं और मान रहे हैं कि आरक्षण ग्लोबीकरण उदारीकरण और निजीकरण के इस नरसंहारी समय में वैश्विक पूंजी के इस अनंत वधस्थल पर उत्पादक समुदायों और समूहों के अनिवार्य मृत्यु उत्सव में वैदिकी कर्मकांड के मंत्रोच्चार के बराबर फर्जीवाड़ा के सिवाय कुछ नही है,जिसे आधार मानकर हत्यारों की जमात छह हजार से ज्यादा जातियों में बंटे बहुजनों को लाखों अस्मिताओं में खंडित करके तमाम संसाधनों पर काबिज होकर देश बेचो कार्निवाल में शत प्रतिशत हिंदुत्व का नरसंहार महोत्सव मना रहा है और जाति संघर्ष जाति अस्मिता को सत्ता की चाबी मानकर मिथ्या आरक्षण को कामयाबी का एक मात्र रास्ता मानकर आपस में महाभारत के जरिये गुलामी के स्थाई बंदोबस्त में आजाद और खुशहाल मान रहे हैं वध्य जनताः

तो इस घनघोर वैदिकी हिंसा के मध्य बाबासाहेब की प्रासंगिकता पर बहस और संवाद सबसे जरुरी है।


बार बार, बार बार गरम और नरम हिंदुत्व का विकल्प चुनकर जो यह सिस्टम फेल हैः

फेल है धर्मनिरपेक्षता,

फेल है अर्थ व्यवस्था,

फेल है संविधान,

फेल हैं लोकतंत्र और लोक गणराज्य,

फेल हैं नागरिक और मानवाधिकार,

फेल हैं मनुष्यता और सभ्यता,

पेल है प्रकिति और पर्यावरण,

फेल है समता और न्याय के सिद्धांत,

और फेल है बदलाव के तमाम सपने,

फेल हैं जनमत जनादेश और जनांदोलन,

और बार बार धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण के मार्फत जो जनमत जनादेश का खेल मजबूत बना रहा है मनुस्मृति शासन मध्ये हिंदुत्व का यह नर्क,उसकी चीरफाड़ अब बेहद अनिवार्य है।


जो बदलाव का ख्वाब नहीं देख सकते। जिनकी इंद्रियां विकल हैं और जिनके रगों में मनुष्यता के लिए कोई खून बचा नहीं है,जो सत्तावर्ग के सामने आत्मसर्पण करके बाजार के सारे मजे लूटकर राम से हनुमान बनने को तत्पर है,जाहिर है कि यह बहस और संवाद उनके लिए नहीं हैं।ऐसे लोग हमें खारिज करें या हमें गालियों से नवाजे या हमारे खिलाफ फतवे जारी करें, या सीधे हमला करें, हमें इससे कुछ फर्क पड़ता नहीं है।


बदलाव के लिए किसी धर्मोन्मादी बजरंगी सेना की जरुरत नहीं होती और दुनिया के इतिहास ने बार बार साबित कर दिखाया है कि सत्ता के खिलाफ लड़ने का कलेजा बहुत कम लोग होता है,उन चंद लोगों की बदौलत इस कायनात की तमाम बरकतें और नियामतें दुनियाभर की शैतानी ताकतों के गठबंधन के बावजूद अब भी बची हुई हैं और हम दरअसल अपने देश में सचमुच के बदलाव के उन चंद बंदों की तलाश में हैं जो गरम हिंदुत्व और नरम हिंदुत्व के ताने बाने से बने इस हिंदू राष्ट्र को फिर वही सचमुच का भारतवर्ष बना दें।


मुझे अपनी प्रतिभा, अपनी शिक्षा दीक्षा और अपनी योग्यता की सीमाएं मालूम हैं और इसलिए हमेशा देशभर में अपने सबसे काबिल मित्रों से संवाद करके अपने विचारों को तराशने का काम करता रहता हूं।


मुझे डर यह था दरअसल कि जो मैं लिख रहा हूं,उसका अंबेडकरी विचारों से कोई अंतर्विरोध तो नहीं है और इसलिए हफ्तों से तेलतुंबड़े से बात करने का बेसब्र इंतजार कर रहा था।


तो आज घंटे भर की बातचीत के बाद हम लोगों ने तय किया है कि जब सत्ता वर्ग के दोनों खेमे हमारे बाबासाहेब के दखल के लिए छननी लेकर देश के समझदार बहुजनों का शिकार को निकले हैं कि बाबासाहेब के मंत्र जाप से उनके सत्ता समीकरण सध जायें,तो हम सच का सामना करेंगे और अपने इस निन्यानब्वे फीसद भारतीय प्रजाजनों को लागातार इस जन्नत का हकीकत बताते रहेंगे।


आज इस लंबी बातचीत का कुल जमा निष्कर्ष निकला- मजबूरी का नाम डा. भीमराव बाबासाहेब अंबेडकर।


हमने जब आनंद जी से निवेदन किया कि आज इसी शीर्षक से रोजनामचे की शुरुआत करता हूं तो वे बोले कि ऐसा लिख दोगे तो अंबेडकरी जनता बहुत नाराज हो जायेगी।


इस पर हमने कहा कि अंबेडकर का हर अनुयायी अब मुकम्मल देवदास है जो आत्मध्वंस का जलता हुआ प्रतीक है।वह नाराज हो या खुश,सच का सामना करने के सिवाय इस गैस चैंबर में रास्ता तोड़ निकालने का कोई उपाय नहीं है।पानी सर से ऊपर है और सारी हदें पार हैं,या तो जीना है या मरना है।अग मगर ,किंतु परंतु से काम लेकिन चलेगा नहीं।


दरअसल भारत में विकास गाथा और समरसता, समावेश, समायोजन  का कुल जमा यही है कि पहले मजबूरी का नाम महात्मा गांधी था,तो अब मजबूरी का नाम महात्मा गांधी है।


समता सामाजिक न्याय लोकतंत्र कानून का राज,नागरिक मानवाधिकार श्रम उत्पादन अर्थव्यवस्था राजकाज राजकरण प्रकृति और पर्यावरण,जलवायु और मौसम,जल जमीन जंगल नागरिकता और आजीविका के हकहकूक के तमाम मसलों के मद्देनजर भारतीय लोकतंत्र का सफर का दायरा गांधी और अंबेडकर का फासला है।


बाकी कुछ भी न बदला है और न बदलने जा रहा है क्योंकि सड़े हुए पानी में जीने की अब्यस्त हो गयी हैं मछलियां,और मछलियों को इस तालाब में किसी किस्म की हलचल से डर लगता है।


हमने अभी लिखना शुरु ही किया है।आपके कुछ उच्च विचार हों इस सिलसिले में तो हम इसे एक संवाद में भी बदल सकते हैं।लिखते हुए आपके लिखे का भी इंतजार रहेगा और इसलिए लिख लिखकर आंखरों की बौछार फेसबुक चौपाल पर करता जा रहा हूं।ताकि आप सुभीधे के मुताबिक अपनी राय दें चाहे आपकी भाषा कुछ भी हों।


यह सच है कि समान अवसरों के लिए अजा अजजा को आरक्षणा का स्थाई संवैधानिक व्यवस्था बाबासाहेब कर गये तो बाबासाहेब की ही सिफारिश पर अमल करते हुए अब पिछड़ों को भी आरक्षण है।आरक्षण महिलाओं को भी मिल रहा है।


आरक्षण से महिलाओं का सशक्तीकरण जरुर हुआ है लेकिन पुरषवर्चस्व के इस किले में स्त्री की दासी भोग्या शरीर सर्वस्व दशा और उसके रंगभेदी उपभोग के स्थाई बंदोबस्त को तोड़कर सही मायने में स्त्री मुक्ति जैसे इस मनुस्मृति शासन के अंत के बिना नहीं हो सकता,उसी तरह सारे के सारे कायदे कानून,संवैधानिक प्रावधान और लोकतंत्र और इंसानियत की महक से अलहदा मुक्तबाजार के इस जल्लादी धर्मोन्मादी जमींदारी विरासत में प्रजाजनों को सिर्फ आरक्षण से मुक्ति नहीं मिल सकती,जबकि ग्लोबीकरण उदारीकरण और निजीकरण के बारे में कोई जनचेतना नहीं है,जनांदोलन तो दूर की कौड़ी है।मुक्तबाजार में आरक्षण का धोखा है।नौकरियां खत्म है।


मेहनतकशों के हक हकूक खत्म हैं।बाबासाहेब के सारे श्रमकानून खत्म हैं।उत्पादनप्रमाली खत्म हैं।खुदरा कारोबार खत्म हैं।कृषि खत्म है।रोटी नही।रोजगार नहीं।पैसे हैं तो मौज करो।वरना न शिक्षा है,न रोजगार,न बिजली है ,न राशन पानी।न चिकित्सा है।यह हम सिलसिलेवार बता रहे हैं।बाजारों से लेकर उद्योगों तक,खेतों से लेकर चायबागानों तक,कलकारखानों में विदेशी पूंजी की एफडीआई तंत्रसाधना कर रहे हैं रंगबिरंगे कापालिक और नागरिकों की हैसियत शवसाधना में इस्तेमाल की जाने की लाश है और तमाम समूह और समुदायों में कबंधों का अनंत जुलूस हैं।


जल जंगल जमीन पहाड़ समुंदर नदियां मरुस्थल रण खनिज से लेकर पर्यावरण मौसम और जलवायु तक बाजार के हाथों में बेदखल है और हमारे हिस्से में भूकंप, भूस्खलन, अकाल, सूखा, बाढ़, दुष्काल, कुपोषण, भुखमरी, बीमारियों और आपदा का जो अनंत सिलसिला है वह सत्तावर्ग का सृजन है,उनका रचनाकौशल है और उनके लिए शेयर बाजार के भाव हैं राजकाज और राजकरण।


जब हम ऐसा कह रहे हैं तो इस मनुस्मृति बंदोबस्त के खिलाफ जनता को लामबंद करने के बजाये अंबेडकरी सौदागर तमाम हमें कटघरे में खड़ा करके आखिर इसी मुनाफावसूली के तंत्र को ही मजबूत कर रहे हैं और हमारे खून पसीने ,हमारी हड्डियों के टुकड़ों का ही कारोबार चला रहे हैं वे लोग।वही लोग सत्ता वर्ग के अलग अलग हिस्सों को नुमािंदगी करके पहले गांधी,मार्क्स लेनिल और लोहिया के विचारों की जुगाली करते हुए हिंदू राष्ट्र के सिपाह सालार औरमनसबदार बनते रहे हैं और अब वे अंबेडकर की नामावली ओढ़कर खूंखार भेड़ियों की फौज लेकर दलितों की बस्तियों में आखेट को निकले हैं।

मनुष्यता और सभ्यता के खिलाफ,प्रकृति और पर्यावरण के खिलाफ युद्धअपराधियों के हाथों बेदखल हैं बाबासाहेब बीमराव अंबेडकर।


हम सिर्फ तमाशबीन धर्माध भीड़ में तब्दील हिंदू राष्ट्र की पैदल सेनाएं हैं जो अश्वमेध के घोड़ों की टापों में खुशहाली खोजते हैं।


हमारे लोग तब बहुत नाराज होते हैं,जब हम मुक्त बाजार के बंदोबस्त में पुणे करार के तहत सत्तावर्ग के मिलियनरों बिलियनरों में शामिल रामों और हनुमानों की मलाईकथा कहते हुए बताते हैं कि बहुजनों को दरअसल आरक्षण से मिला  होगा जो कुछ,अब लेकिन कुछ नहीं मिलने वाला है और आरक्षण के जरिये सबकुछ हासिल कर लने के खातिर अपनी अपनी जाति को मजबूत बनाने की लड़ाई दरअसल मनुस्मृति शासन को मजबूत ही कर रही है, जो जाति की बुनियाद पर है और बहुजन जाति व्यवस्था को मजबूत करते हुए दरअसल हिंदुत्व की नर्क ही चुन रहे हैं ,जो उनकी गुलामी की वजह है और जिसके कारण लोक परलोक सुधारने की गरज से बाहुबलि हिंदुत्व के तंत्र मंत्र यंत्र को बनाये रखने में बहुजन हिंदू राष्ट्र की पैदल सेना बनकर अपने ही स्वजनों के नरसंहार में शामिल हैं।


हमने डा.आंनद तेलतुबड़े जो अंबेडकर के तमाम लिखे को डिजिटल बना चुके हैं और बाबासाहेब के ग्रांड सन इन ला हैं,उनसे निवेदन किया है कि वे जो सन 1991 के बाद आरक्षण के स्टेटस  पर लगातार शोध करते रहे हैं कि कितना आरक्षण लागू है ौर कितना नहीं है ,कितना वायदा है और कितना धोखा है,किन पदों पर प्रोन्नतियां मिली है और किन किन सेक्टरों में कितना आरक्षण मिला है,किन्हें आरक्षण मिला है और किन्हें नहीं मिला है,यह सारा सचआंकड़ों समते सारवजनिक कर दें,ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये और हमारे लोगों की आंकों पर बंधी हिंदू राष्ट्र की गुलामी की पट्टियां हट जायें।

आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल पर लगी पाबंदी पर अरुंधति रॉय का बयान

Posted by Reyaz-ul-haque on 5/30/2015 03:46:00 PM


कार्यकर्ता-लेखिका अरुंधति रॉय ने यह बयान आईआईटी मद्रास द्वारा छात्र संगठन आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्किल पर लगाई गई पाबंदी (नामंजूरी) के संदर्भ में जारी किया है. एक दूसरी खबर के मुताबिक, एपीएससी को लिखे अपने पत्र में भी उन्होंने यही बात कही है कि 'आपने एक दुखती हुई रग को छू दिया है – आप जो कह रहे हैं और देख रहे हैं यानी यह कि जातिवाद और कॉपोरेट पूंजीवाद हाथ में हाथ डाले चल रहे हैं, यह वो आखिरी बात है जो प्रशासन और सरकार सुनना चाहती है. क्योंकि वे जानते हैं कि आप सही हैं. उनके सुनने के लिहाज से आज की तारीख में यह सबसे खतरनाक बात है.'



एक ऐसे वक्त में, जब हिंदुत्व संगठन और मीडिया की दुकानें आंबेडकर का, जिन्होंने सरेआम हिंदू धर्म को छोड़ दिया था, घिनौने तरीके से खास अपने आदमी के रूप में प्रचार कर रही हैं, एक ऐसे वक्त में जब हिंदू राष्ट्रवादी घर वापसी अभियान (आर्य समाज के 'शुद्धि' कार्यक्रम का एक ताजा चेहरा) शुरू किया गया है ताकि दलितों को वापस 'हिंदू पाले' में लाया जा सके, तो ऐसा क्यों है कि जब आंबेडकर के सच्चे अनुयायी उनका नाम या उनके प्रतीकों का इस्तेमाल करते हैं तो उनकी हत्या कर दी जाती है, जैसे कि खैरलांजी में सुरेखा भोटमांगे के परिवार के साथ किया गया? ऐसा क्यों है कि अगर एक दलित के फोन में आंबेडकर के बारे में एक गीत वाला रिंगटोन हो तो उसे पीट पीट कर मार डाला जाता है? क्यों एपीएससी को नामंजूर कर दिया गया?


ऐसा इसलिए है कि उन्होंने इस जालसाजी की असलियत देख ली है और मुमकिन रूप से सबसे खतरनाक जगह पर अपनी उंगली रख दी है. उन्होंने कॉरपोरेट भूमंडलीकरण और जाति के बने रहने के बीच में रिश्ते को पहचान लिया है. मौजूदा शासन व्यवस्था के लिए इससे ज्यादा खतरनाक बात मुश्किल से ही और कोई होगी, जो एपीएससी ने की है- वे भगत सिंह और आंबेडकर दोनों का प्रचार कर रहे थे. यही वो चीज है, जिसने उन्हें निशाने पर ला दिया. यही तो वह चीज है, जिसे कुचलने की जरूरत बताई जा रही है. उतना ही खतरनाक वीसीके का यह ऐलान है कि वो वामपंथी और प्रगतिशील मुस्लिम संगठनों के साथ एकजुटता कायम करने जा रहे हैं.

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  15. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) कहीं अधिक उत्साह से मना रही है तो इसके राजनीतिक कारण है. इसी मौके पर ... उन्होंने लिखा, 'मैं बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती पर उनके आगे शीश झुकाता हूं. जय भीम.'.

  16. Story image for बाबासाहेब की 125वीं जयंती आरएसएस, भाजपा from दैनिक जागरण

  17. बाबा साहेब अंबेडकर सही दृष्टिकोण वाले ...

  18. दैनिक जागरण-10-Apr-2015

  19. बाबा साहेब अंबेडकर सही दृष्टिकोण वाले राष्ट्रवादी थे: आरएसएस. Publish Date:Sat ... नई दिल्ली। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की विरासत को हथियाने के लिए कांग्रेस और भाजपा के बीच होड़ मची है। ... इसके लिए उनकी 125वीं जयंती पर संघ अपने मुख पत्रों का उन पर संग्रहणीय संस्करण प्रकाशित करना चाहता है।

  20. Story image for बाबासाहेब की 125वीं जयंती आरएसएस, भाजपा from ABP News

  21. ABP स्पेशल: किसके हैं आंबेडकर?

  22. ABP News-13-Apr-2015

  23. डॉक्टर आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष की शुरूआत के उपलक्ष्य में RSS के मुखपत्र पांचजन्य और organiser ने बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर पर एक विशेषांक निकाला है. ... तो इसलिए मैं नहीं समझता कि जो तर्क आरएसएस दे रहा है उसमें कोई सच्चाई है." .... बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के 125वीं जयंती वर्ष के समारोह के लिए कांग्रेस ने बाकायदा 21 सदस्यों की कमेटी बनाई है.

  24. Story image for बाबासाहेब की 125वीं जयंती आरएसएस, भाजपा from Palpalindia

  25. कांग्रेस का डर, कहीं आंबेडकर पर भी 'कब्जा' ना कर ले ...

  26. Palpalindia-05-Apr-2015

  27. कांग्रेस पार्टी बाबा साहेब की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में पूरे एक साल कार्यक्रमों का आयोजन करेगी. इतने बड़े ... भीमराव आंबेडकर की थाती पर कहीं भाजपाकब्जा ना कर ले, जैसा कि वह सरदार पटेल के मामले में कर चुकी है. दूसरी बात यह ...

  28. Story image for बाबासाहेब की 125वीं जयंती आरएसएस, भाजपा from Sahara Samay

  29. अंबेडकर को मदर टेरेसा से दस साल बाद भारत रत्न क्यों ...

  30. Sahara Samay-14-Apr-2015

  31. अंबेडकर की 125वीं जयंती पर आरएसएस ने दलित नेता की तुलना आरएसएस के संस्थापक केशव बलराम हेडगेवार से की और दावा किया कि उनकी राय ... उन्होंने इस आरोप को खारिज किया कि चुनावों को देखते हुए भाजपा और आरएसएसअंबेडकर की प्रशंसा कर रहे हैं. अंबेडकर ... बाबासाहेब एक बार आरएसएस कैंप में आए भी थे.

  32. Story image for बाबासाहेब की 125वीं जयंती आरएसएस, भाजपा from दैनिक जागरण

  33. दलितों से दिल मिलाने निकला संघ

  34. दैनिक जागरण-26-Apr-2015

  35. नाम दिया है बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की 125 वीं जयंती पर प्रकाशित पांचजन्य विशेषांक का लोकार्पण समारोह, लेकिन असलियत में ये ... संघ ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के साहित्य को दलित-स्वर्ण की खाई पाटने का माध्यम बनाया है।


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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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