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Sunday, June 28, 2015

तालिबानी हिन्दू बनाने की मुहिम-5

तालिबानी हिन्दू बनाने की मुहिम-5

    14 जनवरी 2001 वह तारीख है जब डायमण्ड इण्डिया का पहला अंक प्रकाशित हुआ, शुरू-शुरू में लोगों को लगा कि यह कोई हीरा पन्ना विक्रेताओं की पत्रिका है, बिल्कुल व्यावसायिक नाम, लेकिन अन्दर सारी सामग्री बाजार और बाजारीकरण के खिलाफ! इसे जल्दी ही लोकप्रियता हासिल हो गई, हमारी टीम के सहज और देशज लेखन को लोगों ने पसंद किया, हमने कई खोजपरक रिपोर्टें छापीं, घटनाओं परिघटनाओं को दूसरे नजरिए से देखने की तीसरी दृष्टि को जनता ने हाथों हाथ लिया। लोग कहते थे कि जब वे डायमण्ड इण्डिया पढ़ते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे हमसे बातें कर रहे हैं, हमने छोटे-छोटे गाँवों तक इसे पहँुचाया, यहाँ भी संघ परिवार से पंगा बरकरार रहा, राजस्थान में आरएसएस का मुखपत्र 'पाथेयकण' गाँव गाँव पहँुचता है, उसमें संघ अपनी विचारधारा के अनुसार सारा प्रोपेगंडा जन-जन तक पहँुचाने में सफल रहता है। किसी ने भी उसको काउन्टर करने की कोशिश नहीं की, लेकिन डायमण्ड इण्डिया ने यह करना शुरू किया, हमने उनके सघन प्रभाव वाले गाँवों में अपने लिए बड़ी संख्या में पाठक ढूँढ़े, लोगों के पास अब दोनों तरह की आवाजें पहँुच रही थीं, इसे एक विकल्प के रूप में भी स्वीकार किया जा रहा था। हमने साम्प्रदायिकता और जातिवाद पर चोट करने में कभी कोताही नहीं बरती। पत्रिका की माँग लगातार बढ़ रही थी, हम उत्साहित थे, हमने 'डायमण्ड कैसेट्स' नाम से एक ऑडियो डिवीजन भी खोल दिया, उस वक्त तक कैसेट्स का बड़ा जोर था, लोग टेप रिकार्ड्स के जरिये इन्हें सुनते-सुनाते थे, हमारा पहला कैसेट निकला भारत पुत्रों जागो। यह एक लम्बा भाषण था, जो मैंने आरएसएस और अन्य हिन्दू एवं मुस्लिम कट्टरपंथियों के खिलाफ दलित आदिवासी युवाओं के एक कैडर कैम्प में दिया था, निसंदेह मेरा भाषण काफी उत्तेजक और भड़काऊ किस्म का था ( मैं भी क्या करूँ संघ से मिले कट्टरता के संस्कार मेरा आज तक पीछा नहीं छोड़ रहे हैं) इस भाषण के कैसेट ने काफी हंगामा मचाया, यह वह दौर था जब संघ परिवार द्वारा देश भर में घुमा घुमा कर विषवमन कर रही दो महिला साध्वियों के भाषण काफी तहलका मचाए हुए थे, मेरे भाषण को उनका जवाब माना गया, मजेदार स्थितियाँ यह थीं कि बहुत सारे चैराहों पर एक तरफ फायरब्रांड हिंदुत्ववादी ऋतम्भरा और उमा भारती के कैसेट्स चीखते थे तो दूसरी तरफ पान की केबिनों पर मेरा कैसेट चिल्लाता था, थक हार कर संघ समर्थकों ने अपने कैसेट्स वापस ले लिए, तो मेरे समर्थकों ने भी मेरा भाषण 'भारत पुत्रों जागो' बजाना बंद कर दिया, इस तरह हमने उग्रपंथी तत्वों को उन्हीं की जबान और भाषा शैली में जवाब दे दिया था, डायमण्ड इण्डिया के जरिये हम मुद्रित अक्षरों के जरिये लड़ाई पहले से ही छेड़े हुए थे।
    मेरे बाकी के साथियों को विचारधारा इत्यादि से ज्यादा मतलब नहीं था, वे तो लोगांे द्वारा मिल रहे रिस्पांस से ही बेहद खुश थे, मगर यह खुशी अस्थाई साबित हुई, आरएसएस का जाल इतना फैला हुआ है कि उसका कई बार तो अंदाजा लगाना ही कठिन हो जाता है, अब तक उन्होंने मेरी हरकतों को या तो नजरंदाज किया था। अथवा उन पर छोटी मोटी प्रतिक्रियाएँ दी थी, लेकिन इस बार उन्होंने संगठित वार किया, उन्हें मालूम था कि डायमण्ड इण्डिया का पूरा समूह सरकारी नौकरीपेशा है, इसलिए उन्होंने हमारे बाकी साथियों को पकड़ना प्रारंभ किया। चूँकि मैं नौकरी छोड़ चुका था, शेष सभी सरकारी सेवा में थे, इसलिए चिंता होना स्वाभाविक ही था। आने वाला समय उनके लिए मुश्किलात भरा हो सकता है, यही सोच कर हमने तय किया कि पैसा तो सभी साथियों का लगा रहेगा लेकिन नाम हटाये जाएँगे, ताकि उन पर कोई विपत्ति ना आ पड़े।
    अब डायमण्ड इण्डिया की पूरी जिम्मेदारी मेरे कन्धों पर ही आ गई थी, लेकिन बाकी साथी भी गाहे बगाहे मदद कर देते थे। दूसरी तरफ संघ परिवार के लोग हमारे प्रकाशन के खिलाफ जगह-जगह आग उगलने लग गए थे, वे लोगांे को सदस्य नहीं बनने के लिए भड़काते रहते थे। उनका एक ही उद्देश्य था कि किसी तरह यह पत्रिका बंद हो जाए। आगे का समय डायमण्ड इण्डिया के लिए काफी कष्टप्रद साबित होने जा रहा था, अब संघी हमारे विचारों की हत्या करने पर उतारू हो गए थे। हमारे खिलाफ ऐसा दुष्प्रचार किया गया कि उसका जवाब देते-देते हमारी जान निकलने लगी। इसी ऊहापोह में अप्रैल का महीना आ गया, इस माह का अंक निकाल कर मैं भीलवाड़ा स्थित ऑफिस में बैठा हुआ अखबार पढ़ रहा था। आज की 'राजस्थान पत्रिका' में एक खबर छपी थी कि राजसमन्द की जनावद ग्राम पंचायत में 'मजदूर-किसान शक्ति संगठन' ने एक जनसुनवाई आयोजित की है, जिसमें लाखों रुपये का घोटाला ग्रामीण विकास के कामों में उजागर हुआ है, मुझे जनसुनवाई की इस अद्भुत तकनीक के बारे में और भी जानने की इच्छा पैदा हुई। खबर के मुताबिक अगले दिन ब्यावर के सुभाष गार्डन में 'सूचना के अधिकार पर पहला राष्ट्रीय अधिवेशन' होने जा रहा था, मैंने इसमें जाने का फैसला किया। कल सुबह जल्दी वहाँ जाना है।
चोरीवाड़ो घणों होग्यो रे, 
कोई तो मुंडे बोलो 

    6 अप्रैल 2001 को सूचना के अधिकार के पहले राष्ट्रीय अधिवेशन की रिपोर्टिंग करने के लिए पहँुचा। पत्रकार होने के सम्पूर्ण अहंकार के साथ मैं ब्यावर पहँुचा, सोचा कि मीडिया के लिए बैठने के लिए अलग व्यवस्था होगी, लेकिन वहाँ तो ऐसा कुछ भी नहीं था, बड़े से मंच पर बहुत सारे लोग बैठे थे, जिनमें से लोकसभा के अध्यक्ष रहे रवि राय, हिंदी पत्रकारिता के दिग्गज प्रभाष जोशी और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मैं पहचान पाया, बाकी के रंग बिरंगे मंचासीनों को पहली ही बार देखा था। नीचे पंडाल में हजारों लोग मौजूद थे, कई सारे स्टाल लगे हुए थे, जिनमें साहित्य और खाने पीने के सामान बिक रहे थे, मेले का सा दृश्य था।
    मैंने संचालन कर रही टीम के पास पहँुच कर बात करने का प्रयास किया, तीन चार लोग मिलकर मंच चला रहे थे, उनमें एक लड़की भी थी, साड़ी पहने हुए, मैंने उसे अपना परिचय दिया, डायमण्ड इण्डिया की एक प्रति भी दी और प्रेसनोट भेजने का आग्रह किया। उक्त लड़की ने कोई खास रुचि नहीं दिखाई, पत्रिका हाथ में ले ली और हाँ हूँ में जवाब दे कर मुझे वहाँ से टरका दिया। मुझे अजीब सा लगा, पहले तो मैंने उसे ही अरुणा रॉय समझ लिया था, उसके उपेक्षापूर्ण व्यवहार से मुझे निराशा हुई, बाद में पता चला कि उन मोहतरमा का नाम सौम्या किदाम्बी है, जो उस दिन किसी घमंड की वजह से नहीं बल्कि अपनी अतिव्यस्तता और काम के अत्यधिक बोझ के चलते मुझसे शीघ्रातिशीघ्र पिंड छुड़वाने की कोशिश में थीं। बाद के दिनों में इस पहली मुलाकात को याद करके हम लोग काफी हँसे।
    सूचना के अधिकार के इस प्रथम अखिल भारतीय सम्मलेन में शिरकत करना मेरे लिए अच्छा और नया अनुभव था, मैंने प्रचुर मात्रा में वहाँ से साहित्य खरीदा, कई लोगों से मुलाकात की और भीलवाड़ा लौट आया। मई के अंक में हमारी कवर स्टोरी थी 'चोरीवाड़ो घणों होग्यो रे, कोई तो मुंडे बोलो' (चोरियाँ और घोटाले बहुत हो गए हैं, कोई तो इनके खिलाफ मुँह खोलो और जोर लगा कर बोलो) दरअसल यह एक बहुत ही शक्तिशाली मारवाड़ी गीत था, जिसे मजदूर-किसान शक्ति संगठन के लोगों ने मंच से गाया था। गीत गाँव के छोटे चोर से लेकर दिल्ली में बैठे बड़े बड़े घोटालेबाजों का पर्दाफाश करते हुए लोगों से अपनी खामोशी तोड़ने का आह्वान करने वाला था, उफ इतनी ताकतवर प्रस्तुति! मेरे लिए इसे सुनना एक युग की यात्रा करने जैसा था, राजस्थानी भाषा की मिठास लिए यह गीत मेरे मन और मस्तिष्क पर कई दिनों तक छाया रहा। इतनी कड़वी हकीकत और नंगी सच्चाई बयान की गई थी कि उसकी प्रशंसा के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं थे, जिन महानुभाव की अगुवाई में इसे गाया गया, उनका नाम शंकर सिंह बताया गया था, ब्यावर के ही निकटवर्ती लोटियाना गाँव के निवासी प्रसिद्ध रंगकर्मी। मैं तो इस आदमी के गाने के तौर तरीके का दीवाना होकर लौटा। मन ही मन सोच लिया कि इनसे तो फुरसत से फिर मिलना है, कब, कहाँ और कैसे अभी तय नहीं था, लेकिन मिलन की अदम्य लालसा जरूर गहरे में उतर चुकी थी। इसी अधिवेशन में पहली बार मंच पर अरुणा रॉय को बोलते सुना और निखिल डे को मंच के नीचे से संचालन करते देखा और उनकी आवाज भी सुनी। मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका, कुछ भी हो लेकिन ये लोग बड़े ही पावरफुल अंदाज में अपनी बातें पूरी निर्भीकता से रख रहे थे। मैंने वापस आकर इस 
अधिवेशन पर 12 पेज की स्टोरी छापी, उस अंक की 10 कॉपी देव डूंगरी नामक गाँव में भेजी जो कि मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) का मुख्यालय है।
    इसी बीच हमने 11 मई को अपने मित्र घीसूलाल विश्नोई के बुलावे पर दरीबा ग्राम पंचायत की जनसुनवाई कर डाली, जनहित संघर्ष समिति के बैनर तले हुई इस जनसुनवाई में पैनल मेम्बर के रूप में मैं भी शामिल हुआ, हमें कोई आइडिया तो था नहीं कि जनसुनवाई कैसे की जाती है, फिर भी कर डाली, वह भी रात के वक्त! घीसू लाल विश्नोई के घर का चबूतरा ही जन सुनवाई का मंच बन गया, तकरीबन 300 ग्रामीणों की मौजूदगी में तीन घंटे तक यह प्रक्रिया चली। सरपंच बंसीलाल के कार्यकाल में कराये गए विकास कार्यों में हुई अनियमितताओं की परत दर परत पोल खुलने लगी। रात 11 बजे जनसुनवाई खत्म करके जब हम लोग विश्नोई के मकान की छत पर बैठकर खाना खा रहे थे, तब नीचे जनसुनवाई स्थल पर सरपंच समर्थक और सरपंच विरोधी लोगों में लाठी भाटा जंग प्रारम्भ हो गई, जब वे आपस में लड़ लिए तो उन्हें हमारी याद आई। उन्हें अचानक ज्ञान हो गया कि वहाँ के लोग तो वर्षों से मिल जुल कर साथ-साथ रह रहे हैं, पर हम जैसे बाहरी तत्वों की वजह से गाँव वाले परस्पर लड़ रहे हैं, बाद में पुलिस ने आ कर हमें बचाया और वहाँ से बड़ी मुश्किल से भीलवाड़ा पहँुचाया। हालाँकि यह एक जोखिम भरा अनुभव था, लेकिन भ्रष्टाचार के जो मामले उजागर हुए, उनकी विस्तृत रिपोर्ट विकास अधिकारी, पंचायत समिति-सुवाना को कार्यवाही की मांग के साथ हमने भिजवाई, इस रिपोर्ट की एक प्रति मजदूर किसान शक्ति संगठन को भी भेजी गयी।
    सूचना के अधिकार अधिवेशन पर कवर स्टोरी वाला डायमण्ड इण्डिया का अंक और दरीबा ग्राम पंचायत की जनसुनवाई रिपोर्ट जब देवडूंगरी पहँुची तो यह मजदूर किसान शक्ति संगठन के लोगों के लिए कौतूहल और आश्चर्य का विषय हो गया, चर्चा हुई कि हमारे कार्यक्षेत्र में ये कौन लोग थे जो जातिवाद, भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता के खिलाफ इतने मुखर तरीके से आवाज उठाते हुए लिख रहे हैं। मजदूर किसान शक्ति संगठन की सेंट्रल कमेटी ने तय किया कि डायमण्ड इण्डिया निकालने वाले लोगों से कोई कार्यकर्ता जाकर मिले और उनके साथ काम का एक रिश्ता बनाया जाए। दूसरी तरफ हम लोग भी चाह रहे थे कि इन लोगों के साथ मिल कर कुछ काम किया जाए। दोनों तरफ इच्छा थी मिलने मिलाने की, ध्येय भी एक ही था, मंजिल की ओर सफर हम सब लोगों को एक ही तरफ ले जा रहा था, लेकिन राहें अभी तक एक ना थी, अभी तो ढंग से मुलाकात भी नहीं हुई थी, लेकिन मुलाकात होनी ही थी, उसे कौन टाल सकता था।
    खैर, उस वक्त तो बात आई गई हो गई, हम भी अपने आप में मस्त और वे लोग भी अपने काम में व्यस्त, लेकिन मिलन का संयोग जल्दी ही बन गया और एक साम्प्रदायिक घटना की बदौलत हम मिल गए। हुआ यह कि भीलवाड़ा जिले की आसीन्द तहसील मुख्यालय पर स्थित गुर्जर समाज के अंतर्राष्ट्रीय धर्मस्थल सवाईभोज मंदिर परिसर में 400 साल से मौजूद रही एक कलंदरी मस्जिद को आरएसएस से प्रभावित उग्र गुर्जर युवाओं के एक समूह ने ढहा दिया आसीन्द अयोध्या बनने की राह पर था।
आसीन्द बना अयोध्या: बाबरी से बराबरी 
   आसीन्द के निकटवर्ती गाँव गोविन्दपुरा में गुर्जर समाज के आराध्य एवं राजस्थान के सुप्रसिद्ध लोकदेवता देवनारायण का भव्य मंदिर बना हुआ है, यहीं पर बगडावत महाभारत हुआ था, जहाँ पर देवनारायण के पूर्वजों ने अपने दुश्मनों से लम्बी लड़ाई लड़ी थी, इस जगह पर कभी किसी मुगल बादशाह ने अपने संक्षिप्त प्रवास के दौरान नमाज अदा करने के लिए एक मस्जिद निर्मित करवाई थी, जो अब तक मौजूद थी। इस बारे में राजस्थानी की प्रख्यात लेखिका स्वर्गीय लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत ने अपने विशाल ग्रन्थ' बगडावत महाभारत' में एक जगह लिखा है कि-'मुझे सवाईभोज मंदिर समूह के बीचों बीच मस्जिद का होना आश्चर्यजनक लगता है' मतलब यह है कि मस्जिद के अस्तित्व को सवाईभोज पर प्रामाणिक ग्रन्थ लिखने वाली लेखिका भी स्वीकार कर रही थीं। इस मस्जिद में वर्षों से शायद ही कभी नमाज पढ़ी गई थी, लेकिन वह वहाँ मौजूद थी, लेकिन जैसे-जैसे गुर्जर समाज में राजनैतिक और सामाजिक चेतना आने लगी और उनका भगवाकरण हुआ वैसे-वैसे इस मस्जिद का ढाँचा कतिपय युवाओं को अखरने लगा, वहाँ के लोगो ने इस जीर्ण शीर्ण धर्म स्थल का विध्वंस करने की तैयारी कर ली और मई जून 2001 को एक दिन यह कर भी दिया। मैंने कई बार सवाईभोज मंदिर को देखा था और उस मंदिर समूह के मध्य स्थित उक्त मस्जिद को भी देखा था।
    मुझे जैसे ही मस्जिद को गिरा दिए जाने की खबर मिली, मैं सवाईभोज जा धमका, जब मैं पहँुचा, तब तक मस्जिद पूरी तरह से तोड़ी जा चुकी थी और उसका मलबा पास में ही स्थित तालाबनुमा गड्ढे में डाल कर पानी भर कर उसे छिपा लिया गया था। अब कलंदरी मस्जिद की जगह पर पीर पछाड़ हनुमान (बजरंग बली) की मूर्ति स्थापित की जा चुकी थी, मैंने जल्दी से कुछ फोटो ली और भीलवाड़ा लौट आया। जब इस विध्वंस की खबर मीडिया तक पहँुची और आसीन्द के मुस्लिम समाज ने इसके विरोध में आवाज उठाई, तो देश भर में यह बात फैलने लगी। कई सारे चैनल्स और अखबारों के प्रतिनिधि आसींद पहुँचने लगे, आसींद एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा हो गया, उन दिनों प्रतिदिन मैं भी आसींद जाता था। आसीन्द उस वक्त अयोध्या बना हुआ था और कलंदरी मस्जिद बाबरी मस्जिद की बराबरी कर रही थी, हंगामा तो होना ही था। आखिर यहाँ भी एक मस्जिद शहीद की गई थी अयोध्या की ही भाँति। मीडिया का बढ़ता दबाव और प्रशासनिक अदूरदर्शिता के चलते क्षेत्र में भयंकर तनाव फैल चुका था। वैसे भी भीलवाड़ा जिला गुर्जर समाज के लोगों की बहुलता वाला जिला है। वे जो कर दें वह सही माना जाता है, अब यह जो हुआ उसे भी अधिसंख्य लोग मौन स्वीकृति दिए हुए थे, सेकुलर किस्म के लोग भी चुप ही थे, कुछ तो वोट के डर से और कुछ लट्ठ के डर से। कौन पंगा ले? मैं जानता था कि यह कृत्य सम्पूर्ण गुर्जर समाज का नहीं है, इसमें अगुवाई संघ परिवार से जुड़े गुर्जर यूथ की अग्रणी भूमिका रही है। मैंने निश्चय किया कि कोई और बोले या नहीं बोले मुझे इस पर अपनी राय स्पष्ट रखनी होगी। मैं जरुर बोलूँगा, पर सवाल यह था कि किसके सामने?  मैं इसी ऊहापोह में आसींद पहँुचा ही था कि पता चला कि किन्ही मानवाधिकार संगठनांे की एक टीम आई हुई है और डाक बंगले में जिला कलेक्टर के साथ बातचीत करने गई है। मैं भी वहाँ पहँुचा, खिड़की से जो पहला चेहरा दिखा, वह पहचान में आ गया था, अरे ये तो मजदूर किसान शक्ति संगठन वाले लोग हैं, बाद में मिलने और परिचय से पता चला कि यह पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की फैक्ट फाइंडिंग टीम है, जो मस्जिद गिराई जाने की सच्चाई का पता लगाने पहँुची है। इसमें नीलाभ मिश्र, कविता श्रीवास्तव, निखिल डे और शंकर सिंह इत्यादि लोग शामिल हैं। उनकी खबर पाकर वहाँ पर कुछ अखबारों के प्रतिनिधि और टी.वी. चैनल्स के स्ट्रिंगर्स भी आ गए। जिला कलेक्टर और मीडिया कर्मियों से फ्री होने के बाद हम लोगों ने विस्तृत बातचीत की, मैंने उन्हें बताया कि इस सवाईभोज मंदिर परिसर में सदियों से बिना किसी तकलीफ के यह प्राचीन मस्जिद मौजूद रही है, जिसे अकारण ही तोड़ दिया गया और उस स्थान पर पीरपछाड़ हनुमानजी स्थापित किए जा चुके हैं, मैं इस घटना के तुरंत बाद घटनास्थल पर पहँुचा हूँ।
    मैंने मानवाधिकार संगठनों की इस टोली को वहाँ मस्जिद के होने से सम्बंधित कई दस्तावेज और फोटो उपलब्ध करवाए, क्यांेकि मंदिर ट्रस्ट ने वहाँ कभी भी कोई मस्जिद होने की बात को सिरे से ही नकार दिया था। मैंने यह भी कहा कि आज भी मंदिर परिसर में लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत की किताब बिक रही है, उसमें भी इस मस्जिद का जिक्र है। मैंने यह भी कहा कि कलंदरी की इस शहादत का सबसे प्रमुख आरोपी कांग्रेस के एक बड़े नेता का बेहद नजदीकी है, संयोग से ये नेताजी आजकल राजस्थान कांग्रेस के खेवनहार हैं। कभी-कभी जातिवाद का जोर इतना हो जाता है कि जातिहित में लोग अपनी विचार धाराओं का भी त्याग कर देते हैं। सवाई भोज मस्जिद मामले में गुर्जर समाज पूरी तरह एकजुट था, किसी भी पार्टी या विचारधारा से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति क्यों ना हो, वह अपनी जाति के लिए कुर्बान होने को तैयार था। उन दिनों मुझे आसीन्द का यह मंदिर अकाल तख्त की याद दिलाता था, लोग चीखती हुई खाड़कू जबान में धमकियाँ देते थे कि जो भी मस्जिद की बात करेंगे, उन्हें काट डाला जाएगा। मैंने हर बार की तरह इस बार भी किसी की परवाह नहीं की, मैंने सच को उजागर करने की कोशिशंे जारी रखीं और अपनी हैसियत के मुताबिक आवाज भी बुलंद करने की कोशिश की। मैंने मानवाधिकार संगठनों की तथ्यान्वेशी टीम को यह भी बताया कि यहाँ पर कट्टरपंथियों ने ना केवल मस्जिद गिराई है, बल्कि अब इसी इलाके में स्थित बाडिया दरगाह पर हर साल होने वाला उर्स भी नहीं होने दे रहे हैं। मैंने यह भी आशंका प्रकट की कि अगर कोई अल्पसंख्यक भूलवश भी सवाईभोज क्षेत्र में चला जाए तो उसकी जान खतरे में पड़ सकती है, क्योंकि यहाँ पर इस वक्त देश भर से कई बाहुबलियों ने डेरा डाल रखा है और यह बात सच भी थी। किसी आम आदमी को अकेले इस परिसर में जाने से ही भय लगने लगा था, इस दौरान कई मीडियाकर्मी और पुलिसकर्मी उग्र युवाओं के हाथों पिट चुके थे। कुल मिलाकर आतंक का जबरदस्त माहौल था, ऐसे में अकेले ही जूझना पड़ रहा था, अंजाम तो साफ दिखता था पर अंजाम की फिक्र किसे थी। सदैव की तरह वही तसल्ली थी कि जो भी होगा सो देखा जाएगा, हालाँकि कुछ भी हुआ नहीं, मेरी अलोकप्रियता में थोड़ी बढ़ोत्तरी जरूर हो गई और हिन्दू 
विरोधी होने का प्रमाणपत्र भी हासिल हो गया। कहते हैं कि कालांतर में सवाईभोज के इस मंदिर के पुजारी दलित हुआ करते थे, आज भी ज्यादातर देवनारायण मंदिरों के पुजारी दलित समुदाय के ही लोग होते हैं, लेकिन पिछले एक दशक से उन्हें मंदिरों से हटाया जा रहा है। ऐसे ही इस सबसे बड़ेे मंदिर से भी दलित बाहर कर दिए गए, अब तो दलित भी इस मंदिर से दूर ही रहते है, कभी कभार कोई भूला भटका मंदिर देखने चला जाए तो वह अलग बात है। हालाँकि दलित पुजारियों के पास राजशाही काल का ताम्रपत्र भी है। आजकल ग्रामीण भारत के कथित धार्मिक स्थल दलितों के भेदभाव के सबसे बड़ेे अड्डे बन गए है। 
    कलंदरी कांड के बाद इस जगह को पवित्र करने के लिए किए गए अश्वमेध यज्ञ में दलितों की भागीदारी के सवाल को बहुत ही अपमानजनक तरीके से नकार दिया गया, उन्हें तमाम कोशिशों के बावजूद आहुति मंडप में नहीं बैठने दिया गया। यज्ञ के मुख्य आयोजक खडे़शवरी बाबा ने साफ ऐलान किया कि यज्ञ में अवर्ण और शूद्र वर्ग को नहीं बैठाया जाएगा। मैं इस बात के पक्ष में नहीं था कि दलित यज्ञ में बैठें लेकिन यह एक टेस्ट था जिसके जरिए यह पता लगाना था कि 'हिन्दू-हिन्दू भाई भाई' का जाप करने वाले लोग इन धार्मिक रीति रिवाजों में भी दलितों को बराबरी का मौका देते हैं या नहीं। आप आश्चर्य करेंगे कि दलित यज्ञ में बैठने की माँग उठा रहे थे। इसका यहाँ के सारे हिन्दुत्ववादी संगठन विरोध कर रहे थे खुल करके और बाबा तो हम जैसों को श्राप देने पर ही उतारू थे, हमने इस सिद्ध पुरुष माने गए खड़ेशवरी महाराज से बात करने का निश्चय किया और चल पड़े आसीन्द की ओर।
अष्वमेध का घोड़ा
    इन सिद्ध महापुरुष के नाम के आगे श्री श्री 1008 एवं पूज्यपाद लिखा जाता है। इनकी खासियत यह है कि ये वर्षों से खड़े हुए हैं, नीचे नहीं बैठे हैं, मौन भी रहते हैं, इनके भक्त इन्हें दाता कह कर सम्मान देते हंै, इन्होंने आसीन्द के सवाईभोज से लगाकर बनेड़ा तहसील के दांता पायरा गाँव तक जितने भी यज्ञ करवाए हैं, उनसे दलितों को दूर रखने में सफलता पाई है। इनसे मिलने जब हम सब साथी पहँुचे और बाबा जी से बात करनी चाही तो पता चला कि दाता तो कुछ बोलेंगे नहीं फिर भी मिल लो, वे इशारों में ही संकेत देंगे। मैं और जगपुरा वाले गिरधारी जी तथा अन्य साथी इस वार्तालाप हेतु आगे हुए, वाकई बाबाजी तो कुछ भी नहीं बोले, सिर्फ हमें आग्नेय नेत्रों से घूर-घूर कर देखते रहे। उनके भक्तों ने हमारा सामान्य ज्ञान बढ़ाया कि अगर दाता चाहें तो अभी का अभी आप लोगों को यहीं पर 'भस्म' कर सकते हैं। एक बार तो मेरी भी भस्म होने की इच्छा हो आई, मैंने कहा हम यज्ञ में दलितों को शामिल करवा कर जाएँगे या भस्म होकर ही, बिना भस्म हुए यहाँ से जाएँगे नहीं, चाहे तो हमें यज्ञ की आहुति में डाल कर भस्म करें अथवा मन्त्रों के जरिए करें, या तो दलित भी इस यज्ञ का हिस्सा होंगे अथवा हम भस्म होने को तत्पर हंै, खैर, भस्म तो क्या करते बेचारे, खुद ही भस्म भभूत शरीर के चुप खड़े थे, लेकिन इस विवाद का असर अश्वमेध यज्ञ के इस पूरे आयोजन पर पड़ा और ज्यादातर यज्ञ वेदिकाएँ खाली रह गईं, इस तरह कलयुग के अश्वमेध का घोड़ा बीच में ही रुक गया। कथित धार्मिक लोग जो कि वास्तव में अधिकतर पाखंडी थे, उन्हें बहुत बुरा लगा। बाद में इन्हीं महाराज के सानिध्य में दांता पायरा में हुए यज्ञ में भी दलितों के प्रति यही भेदभाव दोहराया गया। यहाँ इन बाबाजी का आश्रम भी बना है, आश्रम के लिए श्रमदान दलितों से करवाया गया। यज्ञ में धुँआ निकालने के लिए लकडि़याँ दलितों से मँगवाई गईं, दलितों के नाम चंदे की रसीदें भी काटी गईं, मगर जब यज्ञ वेदिकाओं में आहुतियाँ देने के लिए युगलों की आवश्यकता हुई तो वे 108 हवनकुंडों में से एक पर भी दलित जोड़े को बिठाने को राजी नहीं हुए। इलाके के ग्रामीण जिला प्रशासन के पास शिकायत लेकर पहँुचे मगर सुनवाई नहीं हुई, तब वे मेरे पास आए, हमारे पहँुचने भर की देर थी, प्रशासन और बाबाजी सब हरकत में आ गए। उन्हें लग गया कि यज्ञ विरोधी तत्व आ गए हैं, आयोजन बिगड़ जाएगा, इसलिए आनन फानन में एक समझौता कमेटी बनाई गई, बनेड़ा उपखंड कार्यालय में समझौता वार्ता हुई, मैंने प्रस्ताव रखा कि 108 में से 8 हवन कुंडों पर दलित युगल बैठेंगे। यज्ञ कमेटी ने इस माँग को सिरे से ही नकार दिया और एक लिखित प्रस्ताव निकाल कर पढ़कर सुनाने लगे, जिसमें लिखा था कि दलितों के लिए अलग हवन कुंड बनाए जाएँगे तथा कोई भी दलित भोजनशाला की तरफ नहीं जाएगा। उपखंड प्रशासन की मौजूदगी में पटवारी द्वारा पढ़े गए इस अपमानजनक प्रस्ताव ने मुझे आग बबूला कर दिया, मैंने प्रशासन को संबोधित करके कहा कि क्या सार्वजनिक स्थल पर किए जा रहे इस आयोजन में इस प्रकार का भेदभाव किया जा सकता है। मैं वहीं अड़ गया कि हमें अब यज्ञ में नहीं बैठना है, हम चाहते है कि ऐसा प्रस्ताव लाने वालों के विरुद्ध अजा, जजा (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए, बात बनने के बजाए बिगड़ गई। प्रशासन ने यज्ञ समिति को साफ कह दिया कि अपना सामान तुरंत समेटो, अब यह यज्ञ नहीं हो सकता। बाद में यज्ञ समिति के लोग यज्ञ में दलितों की भागीदारी के लिए भी राजी हो गए पर दलितों ने इसे स्वीकार नहीं किया, हमारी सिर्फ यही माँग रही कि सार्वजनिक भूमि पर यह यज्ञ नहीं किया जाए।
    अंततः यज्ञ तो हुआ लेकिन किसी व्यक्ति विशेष की खातेदारी जमीन में करना पड़ा। यज्ञ हेतु बनाई गई समिधाएँ और यज्ञ का झंडा बहुत दिनों तक वहीं लहराता रहा, जो बाद में अपने आप ही फट भी गया, परम पूज्य 'दाता' जिला कलेक्टर के पास गए और वहाँ रो पड़े, इससे उनके भक्त काफी भड़क गए। शिवसेना कमांडो फोर्स के जिला प्रमुख ने मुझे भावनात्मक धमकी भरा फोन किया कि पहले के जमाने में राक्षस यज्ञ बिगाड़ देते थे और अब कलियुग में तुम जैसे लोग यज्ञ में विघ्न डालते हैं, आज तुम्हारी वजह से पहली बार दाता की आँखों में आँसू आ गए हैं। मैंने उनकी बात सम्पूर्ण धैर्य के साथ सुनी और बस इतनी सी बात कह कर फोन काट दिया कि-आप मुझे राक्षस कहें या कुछ और मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, रही बात आपके दाता की आँखों में आए आँसूओं की तो ऐसे लोगों की वजह से देश के मेरे करोड़ों करोड़ दलित भाई बहनों की आँखों में आँसू है। मैं किनके आँसू देखँू और किनके साथ रोऊँ, मुझे किसी दाता या बाबा की आँख के आँसू से ज्यादा चिंता मेरे लोगों की आँखों के आँसुओं की है। यह यज्ञ सरकारी जमीन पर नहीं होगा और कहीं कर लो, हमें कोई दिक्कत नहीं है। इसके बाद यज्ञ समिति के एक संरक्षक और क्षेत्र के नामी गिरामी एक भाजपा नेता की धमकी आई कि इन धर्मद्रोहियों को गोली मार देंगे, हमने उसी भाषा में जवाब भेज दिया कि हमारी बंदूकों में भी गोलियाँ ही भरी हुई हैं, हम कौन भूसा भरे, हाथों पे हाथ धरे बैठे हैं, तैयार हैं हम भी, जब चाहे तब जोर आजमाइश कर लें। उन्हें तो लगा था कि गोली के नाम पर ही हम बेहोश हो जाएँगे, लेकिन जब ईंट का जवाब पत्थर से मिलने की संभावना बनी तो वे महाशय इस पूरी लड़ाई से ही अलग हो गए, कुल मिलाकर उस सार्वजनिक स्थान पर हमने यज्ञ नहीं होने दिया।
   -भँवर मेघवंशी
  ...........शेष अगले अंक में 
लेखक की शीघ्र प्रकाश्य आत्मकथा 
'हिन्दू तालिबान 
मोबाइल: 09571047777
लोकसंघर्ष पत्रिका के जून2015 अंक प्रकाशित
प्रस्तुतकर्ता पर  

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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

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