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Thursday, May 23, 2013

मारूति मजदूरों के आन्दोलन पर सरकारी दमन

मारूति मजदूरों के आन्दोलन पर सरकारी दमन


सुनील कुमार

मारूति सुजुकी मजदूरों के आन्दोलन को दो वर्ष होने वाले हैं। यूनियन बनाने का जो संविधान में कानूनी अधिकार दिया गया है मारूति सुजुकी के मजदूर उसके लिये मारूति सुजुकी प्रबन्धन और श्रम विभाग से माँग करते आ रहे थे। जब उनकी बात को मारूति सुजुकी प्रबन्धन और श्रम अधिकारियों ने अनसुना कर दिया तो मजदूरों ने अपने आखिरी हथियार हड़ताल का सहारा लिया। पहली बार मारूति सुजुकी के मजदूर 4 जून, 2011 को हड़ताल पर गये 13 दिनों के संघर्ष के बाद जब मारूति सुजुकी प्रबन्धन और श्रम विभाग उनकी एकजुटता और मनोबल को नहीं तोड़ पाया तो आन्दोलनरत मजदूरों के साथ समझौता किया। मारूति सुजुकी प्रबन्धन और श्रम विभाग द्वारा समझौते के उल्लंघन पर मजदूरों ने दुबारा 28 जुलाई, 2011 से 30 सितम्बर 2011 तक हड़ताल की। इतने लम्बी हड़ताल को तोड़ने के लिये प्रबन्धन ने मुकु यूनियन (मारूति सुजुकी के गुड़गाँव प्लांट का यूनियन जो मारूति सुजुकी प्रबन्धन के इशारे पर चलता है) की मदद ली और मुकु के सहयोग से 30 अगस्त को मजदूरों से आधे अधूरे मन के साथ समझौता करा लिया। दबाव में कराये गये समझौते को भी प्रबन्धन द्वारा नहीं माना गया और 3 अक्टूबर को प्रबन्धन ने समझौते को तोड़ते हुये मजदूरों पर कार्रवाई की गयी। मजदूरों ने कम्पनी के अन्दर ही 7 अक्टूबर को शांतिपूर्वक धरने पर बैठ गये, 15 अक्टूबर को भारी पुलिस बल बुलाकार मजदूरों से प्लांट को खाली कराया गया। प्लांट खाली कराने के बाद मजदूर बाहर धरने पर बैठ गये। 19 अक्टूबर को मारूति सुजुकी प्रबन्धन, श्रम अधिकारियों द्वारा मजदूरों को गेस्ट हाउस में बुलाकर त्रिपक्षीय समझौते किये गये। मजूदरों के जुझारू तेवरों से घबराकर मारूति सुजुकी प्रबन्धन ने 18 जुलाई को षड़यन्त्र के तहत एक मजदूर को जाति सूचक गाली देकर निकाल दिया। मजदूरों के विरोध करने पर वार्ता के लिये यूनियन के पदाधिकारियों को बुलाया गया। वार्ता के बीच में ही प्रबन्धन ने बाउन्सरों (गुंडों) को मजदूरों की वर्दी में बुला कर मार-पीट करना शुरू कर दिया और आगजनी की कार्रवाई करायी गयी जिसमें एक एचआर मैनेजर की मृत्यु हो गयी। इस घटना के सबूत को छिपाने के लिये सीसीटीवी के सभी फुटेज को बर्बाद कर दिया गया और मारूति के मजदूरों को झूठे केसों में फँसा कर जेलों में डाल दिया गया।

18 जुलाई के षड़यन्त्र के बाद 546 स्थायी तथा 1800 ठेका मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया गया। मारूति सुजुकी द्वारा इस तरह के गैर कानूनी/संवैधानिक कारवाईयों (संविधान में पहले से ही मेहनतकश जनता के लिये बहुत कम अधिकार दिये गये हैं और इन संवैधानिक अधिकारों को लागू कराने के लिये भी शासक वर्ग से लड़ना पड़ता है) पर हरियाणा सरकार, केन्द्र सरकार भी मुहर लगा चुकी है। 18 जुलाई की घटना के बाद मारूति सुजुकी के मानेसर प्लांट को एक माह से अधिक समय तक के लिये बन्द रखना पड़ा था जिसमें मारूति सुजुकी को 70 करोड़ रु. प्रति दिन का नुकसान होना बताया जा रहा है। 2013, जनवरी-मार्च के तिमाही में मारूति सुजुकी ने रिकॉर्ड मुनाफा 1147.5 करोड़ रु. कमाया। इस मुनाफे की नींव रखने वाले मजदूर जो कि 42 सेकेंड में एक कार तैयार कर देते हैं की हालत दयनीय होती जा रही है। इस घटना को 300 से अधिक दिन हो गये हैं उस समय से अभी तक 147 मजदूर जेल में अमानवीय ज़िन्दगी जी रहे हैं उनके परिवार कोर्ट का चक्कर लगा रहे हैं। मजदूरों के अधिकारों का दमन करने के लिये खुले रूप से हरियाणा सरकार केन्द्र सरकार एक साथ मारूति सुजुकी के साथ खड़ी है आज भी मारूति सुजुकी मजदूरों का उत्पीड़न जारी है। हरियाणा की हुड्डा सरकार ने मजूदरों के आन्दोलन को खत्म करने के लिये साम-दाम-दण्ड-भेद सब कुछ अपना लिया है। जब मजदूरों की एकजुटता इससे भी कम नहीं हुयी तो मानेसर प्लांट को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया और मजदूरों को आईपीसी की गम्भीर धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया और 300 दिन बाद भी गवाहों की जान का खतरा मानकर जमानत नहीं दी जा रही है। मजदूरों के खिलाफ गवाही देने वालों का नाम और पते गुप्त रखे गये हैं और उनकी पहचान संख्या दी गयी है और इसको बेस्ट बेकरी (गुजरात जनसंहार) केस के गवाहों जैसे खतरा माना गया है।

मारूति सुजुकी के मजदूरों का आन्दोलन श्रम कानूनों को प्राप्त करने के लिये था, जिसमें वे यूनियन बनाने, ठेकेदार और अस्थायी मजदूरों को स्थायी करने के लिये आन्दोलन कर रहे थे। प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने भारतीय श्रम सम्मेलन के 45 वें उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुये कहा कि ''न्यूनतम वेतन, पेंशन और श्रम कानून जैसे मुद्दों पर सरकार फिक्रमन्द है। सेन्ट्रल ट्रेड यूनियनों की माँगों से सरकार को कोई असहमति नहीं हैं।''  इन्हीं मुद्दों को लेकर सेन्ट्रल ट्रेड यूनियन ने फरवरी में दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल की थी। प्रधानमन्त्री जिस बात को लेकर अपने को फिक्रमन्द बता रहे हैं उसी बात के लिये मारूति सुजुकी के मजदूर लड़ रहे हैं जिसके कारण उनको जेल में डाल दिया गया है। लगभग 2500 मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया गया और केन्द्र तथा हरियाणा सरकार इन सब अत्याचारों में शामिल रही। अगर सरकार फिक्रमन्द है तो चुप्पी क्यों? मारूति सुजुकी के मजदूरों का दमन क्यों किया जा रहा है? क्या यह मनमोहन सिंह की दो मुँही बातें है जनता को भ्रमजाल में डालने के लिये? मनमोहन सिंह के नाक के नीचे दिल्ली के श्रमभवन पर मारूति सुजुकी मजदूरों पर हो रहे दमन के खिलाफ दिल्ली में नागरिक संगठनोंमानवाधिकार संगठनोंछात्र संगठनोंट्रेड यूनियनोंबुद्धिजीवियों द्वारा किये गये प्रदर्शनों पर पार्लियामेंट थाने के एस.एच.ओ. द्वारा प्रदर्शनकारियों के साथ बदसूलकी की गयी और धमकाया गया। एक सिपाही द्वारा प्रदर्शनकारियों पर बदसूलकी न करने पर एस.एच.ओ. द्वारा सिपाही को थप्पड़ मारा गया और एस.एच.ओ. पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। क्या भारत के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को यह बात पता नहीं थी? मनमोहन सिंह मंत्रिमण्डल के ही गृह राज्य मन्त्री द्वारा राज्य सभा में बयान दिया गया कि इन प्रदर्शन में माओवादियों का हाथ है।

सुनील कुमार

सुनील। लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

मारूति सुजुकी मजदूरों का आन्दोलन नये चरण में मारूति सुजुकी के मजदूरों ने अपनी एक स्वतन्त्र यूनियन और स्थायी, अस्थायी, ठेकेदार मजदूर को आपस में जोड़कर जो आन्दोलन शुरू किया था उसको आगे बढ़ाते हुये किसानों को भी अपने साथ जोड़ने का काम किया है। 24 मार्च, 2013 से कैथल में मजदूर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गये जिसको आस-पास के गाँव व व्यापारियों का समर्थन मिला। 28 मार्च से 4 मजदूर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गये। 3 अप्रैल को मुख्यमन्त्री और उद्योग मन्त्री ने मारूति सुजुकी मजदूरों को आश्वासन दिया कि मारूति प्रबन्धन व श्रम विभाग को समस्या का शीघ्र समापन करने के निर्देश देंगे। इस आश्वासन के बाद मजदूरों ने भूख हड़ताल समाप्त कर दी। जिस तरह मारूति सुजुकी प्रबन्धन द्वारा बार-बार मजदूरों से झूठे समझौते किये गये उसी तरह हरियाणा सरकार का आश्वासन भी झूठा रहा। एक भी मजदूर जेल से बाहर नहीं आये और न ही एक भी मजदूर को काम पर वापस बुलाया गया। मजदूरों ने 8 मई को आयुक्त कार्यालय के सामने प्रदर्शन और महापंचायत की जिसमें कई गाँव के सरपंचों ने शिरकत की। इस महापंचायत में निर्णय हुआ कि सरकार अगर 10 दिन में मजदूरों की माँगों पर ध्यान नहीं देती तो 19 मई से उद्योगमन्त्री के घर का घेराव किया जाएगा।

हरियाणा के हुड्डा साहब जो कि 'संविधान और जनतन्त्र' (जो कि आम आदमी के लिये कभी लागू नहीं होता) की रक्षा का शपथ लेकर मुख्यमन्त्री बने थे अपने शपथ को भूल गये और ओसामू सुजुकी (मारूती सुजुकी के मालिक) को दिये गये वचन को याद रखा कि उनकी कम्पनी को पूरा सुरक्षा दी जायेगी और कम्पनी पर किसी तरह का आँच नहीं आने दिया जायेगा। हुड्डा सरकार द्वारा ओसामू सुजुकी के वचन को निभाते हुये 18 मई की रात 11.30 बजे सो रहे 100 मजदूरों और उनको समर्थन दे रहे लोगों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 19 मई को जब मजदूर उनके परिवार व मजदूरों को समर्थन दे रहे लोग कैथल पहुँचे तो उन पर लाठी चार्ज, पानी की बौछार और आँसू गैस के गोले दागे गये। महिलाओं, बच्चों बूढ़ों को पुरुष पुलिस कर्मियों द्वारा बुरी तरह से पीटा गया। झूठे केस बनाने के लिये पुलिस कर्मियों द्वारा अग्निशमन के गाडि़यों को तोड़ा गया। हजारों लोगों जिसमें महिलाएं, बच्चे बूढ़ों की संख्या काफी थी, को गिरफ्तार कर इस लू भरी गर्मी में रात 9-10 बजे तक बसों में इधर से उधर घुमाते रहे। कैथल में बस स्टाप, सड़कों यहाँ तक कि अस्पताल तक में जाकर लोगों को पकड़ा और पीटा गया, कैथल के सड़कों को पुलिस छावनी में बदल दिया गया था सड़कों पर जो भी मिला उसको पकड़ा गया। राम निवास जो कि मारूति सुजुकी ट्रेड यूनियन के पदाधिकारी हैं उन्हें खोज कर के पकड़ा गया, पकड़ने के बाद इतना पीटा गया कि वे बेहोश हो गये। नीतीश जो कि इस आन्दोलन में भी नहीं था वो अपने रिश्तेदार के घर जा रहा था उसको पकड़कर कर पीटा गया और आईपीसी की संगीन धराएं लगा दी गयी।

जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिये चल रहे संघर्ष में जिस तरह संघर्षरत जनता और उनके समर्थकों को चुन-चुन कर पकड़ा जाता है या मार दिया जाता है उसी तर्ज पर भुपेन्द्र हुड्डा की सरकार शांति पूर्वक धरने पर बैठे मजदूरों को ही नहीं बल्कि उनके परिवार तथा उन्हें समर्थन दे रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को भी चुन-चुन कर गिरफ्तार कर रही है। जैसा कि 18 मई को श्यामवीर और अमित को गिरफ्तार कर कैथल जेल भेज दिया गया अमित जेएनयू के शोधार्थी है।

19 मई को यूनियन के प्रमुख राम निवास, हिन्दुस्तान मोटर्स संग्रामी श्रमिक कर्मचारी यूनियन कोलकता के दीपक बक्शी, मजदूर अखबार श्रमिक शक्ति के संवाददाता सोमनाथ, हिसार के ग्राम पंचायत नेता सुरेश कोथ अपने रिश्तेदार के घर जा रहे नीतिश जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों को गिरफ्तार कर आई पी सी  की धारा 148, 149, 188, 283, 332, 353, 186, 341, 307, आम्र्स एक्ट (25) सम्पति की क्षति (पीडीपीपी ऐक्ट-3) में 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

इस दमन के खिलाफ दिल्ली में 19 व 20 मई को सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, मानवाधिकार संगठन, छात्र संगठन, ट्रेड यूनियनों ने मिलकर हरियाणा भवन और हुड्डा के निवास 9 पंत मार्ग पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों में से तीन लोग जब भुपेन्द्र हुड्डा के आवास पर गये तो भुपेन्द्र हुड्डा का बयान बेहद गैर जिम्मेदराना, असंवेदनशील, सामंतों जैसा था। ''तू कौन है, तू इन्कलाबी संगठन से है तो मैं महाइन्कलाबी हूँ, यू गो, मैं तुम से बात नहीं करूँगा मैं मजदूरों का प्रतिनिधि हूँ, मैं मारूती मजदूरों से बात करूँगा'' कह कर चले गये और ज्ञापन की प्राप्ति प्रति (रिसिविंग कॉपी) बार-बार माँगने के बावजूद नहीं दी गयी। यह एक 'लोकतान्त्रिक' देश के मुख्यमन्त्री महोदय बोल रहे थे।

यह भाषा जनतन्त्र की हो सकती है या गिरोह तन्त्र की? जिसे यह भी पता नहीं कि भारतीय संविधान भारत के हर नागरिक को शांति पूर्वक बात रखने का अधिकार देता है। क्या हम इसे लोकतन्त्र कह सकते हैं? भूपेन्द्र हुड्डा जो कि हरियाणा सरकार के प्रतिनिधि हैं उन्होंने दिल्ली में आकर लोकतन्त्र का मजाक बना दिया। जहाँ पर दुनिया का सबसे बड़े 'लोकतन्त्र' के मन्दिर (संसद, सुप्रीमकोर्ट, मानवाधिकार आयोग) हैं। हम अनुमान लगा सकते हैं कि वे हरियाणा में किस तरह का राज चलाते होंगे? यहाँ पर बोलते हैं कि मारूति के मजदूरों से बात करेंगे और जब मारूति मजदूर उनसे मिलने जाते हैं तो उनको भगा दिया जाता है गिरफ्तार कर लिया जाता है।

भारत का शासक वर्ग संविधान व जनतन्त्र का गला घोंट कर, लूट तन्त्र में लगे पूँजीतन्त्र की रक्षा करने में लगा हुआ है। पूँजीपतियों की ज्यादा से ज्यादा चाकरी करने के लिये शासक वर्ग में होड़ मची हुयी है जिससे कि लूट में से कुछ हिस्से उनको भी मिल सके। तथाकथित लोकतन्त्र के मुखौटे को भी उखाड़ कर फेंक दिया है और आये दिन उड़ीसा, केरल, छत्तीसगढ़, झारखंड और देश के अन्य भागों में फर्जी मुठभेड़ और फर्जी केस लगा कर लोगों के आन्दोलन को क्रूरता पूर्वक दबाया जा रहा है। एनसीआर में ही मजदूरों-किसानों पर रोज आये दिन जुल्म ढाये जा रहे हैं। नोएडा के अन्दर गर्जियानो, निप्पोन तथा फरवरी 2013 में हुये दो दिवसीय हड़ताल के दौरान सैकड़ों मजदूरों को आज भी जेल में रखा गया है उन मजदूरों की नौकरी छिन गयी है उनके परिवार भूखों मरने के लिये मजबूर हैं। इसमें भगत सिंह का वो कथन और ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है- ''अगर कोई सरकार जनता को उसके मूलभूत अधिकारों से वंचित रखती है तो जनता का न केवल अधिकार ही नहीं बल्कि आवश्यक कर्तव्य भी बन जाता है कि ऐसी सरकार को तबाह कर दे।'' हमें भगत सिंह के इन शब्दों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना होगा।

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