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Friday, May 31, 2013

फिर सलवा जुड़ुम की तैयारी,दंडकारण्य में माओवाद और सरकारी हिंसा के बीच युद्धबंदी हुए शरणार्थी!

फिर सलवा जुड़ुम की तैयारी,दंडकारण्य में माओवाद और सरकारी हिंसा के बीच युद्धबंदी हुए शरणार्थी!


पलाश विश्वास


सुकमा जंगल में परिवर्तन यात्रा पर हुए माओवादी हमले ने पहली बार राजनीतिक नेतृत्व को निशाना बनाया है और इसकी प्रतिक्रिया भी बेहद आत्मघाती होने जा रही है। इस हमले की जितनी भर्त्सना की जाये , वह कम है। माओवादियों ने सत्ता पर साधा निशाना साधकर आम आदिवासियों को सीधे सीधे सरकारी चांदमारी का शिकार बना छोड़ा है। केंद्र सरकार ने इस हमले की राजनीतिक आर्थिक सामाजिक वजहों की पड़ताल किये बिना सैन्य दमन का रास्ता अपनाया है तो छत्तीसगढ़ के संघी मुख्यमंत्री रमण सिंह ने फिर सलवा जुड़ुम को शुरु करने का संकेत दिया है, जिसे 2011 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गैरकानूनी घोषित किया हुआ है।विश्वभर में मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के पैरोकार जिस सलवा जुड़ुम को बस्तर की इंद्रावती नदी के आर पार आदिवासियों को आदिवासियों के विरुद्ध खड़ा करने उन्हें ग्लेडियेटर की मौत देने का बंदोबस्त बताते हैं, उसके प्रवर्तक महेंद्र कर्मा को बाकायदा माओवाद से मुक्तिदाता अवतार बतौर पेश किया जा रहा है और निर्लज्ज ढंग से सलवाजुड़ुम का महिमामंडन किया जा रहा है। हकीकत यह है कि  छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ सक्रिय आदिवासी आंदोलन सलवा जुड़ुम की स्थापना एस्सार और टाटा को मदद करने के लिए किया गया। 2005 में महेन्द्र कर्मा ने सलवा जुड़ुम की स्थापना की थी!


हम पहले भी लिख चुके हैं कि दंडकारण्य में आदिवासी आबादी में आदिवासी वर्चस्व तोड़ने के लिए मानवीय कार्यभार की दुहाई देकर पांचवी और छठीं अनुसूचियों के खुले उल्लंघन की सुनियोजित योजना के तहत पूर्वी बंगाल से आये विभाजन पीड़ित शरमार्थियों  को पुन्रवासित किया गा। बाद में श्रीलंका से आये तमिल शरणार्थी भी इन इलाकों में बसाये गये। अब माओवादी सक्रियता और सर्कारी हिंसा के बीच इन शरणार्थी गांवों की हालत सबसे खराब है। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, चंद्रपुर, गोंडिया और भंडारा जिलों में, छत्तीस गढ़ के कांकेर जिले के पाखनजोड़ इलाके में,जगदलपुर और बस्तर में , उड़ीसा के मलकानगिरि और नवरंगपुर जिलों में, मध्यप्रदेश के बैतुल समेत तमाम आदिवासी बहुल जिलों में शरणार्थी गांवों में माओवादी सक्रियता के बहाने सैन्यबलों की घेराबंदी है और लोग युद्धबंदी जैसे जी रहे हैं। राशन पानी, दवा जैसी बुनियादी जरुरतों से भी वे मोहताज हैं। मृतकों का अंतिम संस्कार तक नहीं हो पता। स्कूलों और पंचायत भवनों समेत तमाम पक्की इमारतों में या तो सुरक्षा बलों के जवानों का डेरा है या फिर माओवादियों का कब्जा।


सुकमा में छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व का सफाया करने के बाद बाकायदा बयान जारी करके वारदात की जिम्मेवारी लेने वाले माओवादी जनयोद्धा फिर गहरे जंगल के सुरक्षित ठिकानों में वापस चले गये हैं। मानसून दस्तक दे रहा है। जंगल में माओवादियों की अभेद्य किलेबंदी को तोड़ने में नाकाम सुरक्षा बलों का सघन अभियान इन्हीं निहत्था आदिवासी और शरणार्थी गांवों में चल रहा है।


मालूम हो कि सुकमा जंगल से सटे शरणार्थी उपनिवेश में एक नहीं, दो नहीं, कुल एक सौ पैंतीस बंगाली दलित शरणार्थियों के गांव बसाये गये हैं, जो अब सही मायने में यातना शिविर में तब्दील हैं।महाराष्ट्र के गढ़चिरौली और उड़ीसी के नवरंगदेवपुर व मलकानगिरि के बीच सैंडविच की तरह है बंगाली शरणार्थियों का सबसे बड़ा उपनिवेश पाखानजोड़ जिसके आस पास अबूझमाढ़,गढ़चिरौली और चिंतनलाढ़ मेंसुरक्षाबलों और माओवादियं के बीच अंतहीन लड़ाई जारी है। पाखानजोड़ से अरण्यबहुल गढ़चिरौली मात्र 24 किलोमीटर दूर है, जहां जंगल में मूला इलाके में बड़ी संख्या में शरणार्थी हैं। इसीतरह नवरंग देवपुर के उमरकोट के नब्वे शरणार्थी गांवों और मलकानगिरी के करीब सवा सौ शरणार्थी गांवों में मानवाधिकार और नागरिक अधिकार फिलहाल लंबित हैं।


सुकमा हमले के मद्देनजर सुरक्षा कवायद के तहत छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीशा और आंद्रप्रदेश तक विस्तृत दंडकारण्य के आदिवासी इलाकों में व्यापक धरपकड़ जारी है। जिस तिस को माओवादी तमगा नत्थी किया जा रहा है। इन्हीं इलाकों में तमाम शरणार्थी उपनिवेश हैं।


पश्चिम बंगाल के राजनेताओं को न तो बांग्लादेश  में रह गये अल्पसंख्यकों की कोई चिंता है और न भारत भर में छिड़का दिये गये बंगाली अनुसूचित शरणार्थियों की कोई परवाह। इसीतरह श्रीलंका में मानवाधिकार हनन पर कोहराम मचाने वाले तमिलनाडु के पक्ष विपक्ष के नेताओं को दंडकारण्य में युद्धबंदी बना दिये गये तमिल शरणार्थियों की कोई परवाह नहीं है।


छत्तीसगढ़ के जिस सुकमा जिले में नक्सलियों ने घात लगाकर प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं सहित 27 लोगों की हत्या कर दी थी, अब उसी सुकमा के कलेक्टर को कथित रूप से नक्सलियों की ओर से एक लाल खत प्राप्त हुआ है। बेहद टूटी फूटी हिन्दी में लिखी इस चिट्ठी में सीपीआई (माओवादी) की दरभा जिला कमेटी ने चेतावनी दी है कि वह अभी और कत्लेआम करेगी। 30 मई को जिला कलेक्टर कार्यालय में रिसिव किये गये इस पत्र में उन लोगों के नाम लिखे गये हैं जिन्हें नक्सली अपना अगला निशाना बनाएंगे।


कलेक्टर सुकमा को लाल सलाम करते हुए लिखे इस पत्र में लिखा गया है कि "तुम्हारे राज्य सरकार और केन्द्र सरकार को दरभा घाटी में सलवा जुड़ुम का जवाब मिल गया होगा। सलवा जुड़ुम के लोगों को और पुलिस के मददगारों को हम ऐसे ही दण्ड देंगे।" पत्र में आगे लिखा गया है कि सुकमा में अभी भी सलवा जुड़ुम और पुलिस के मददगारों को दंड देना बाकी है।

इस चिट्ठी में उन लोगों के नाम लिखे गये हैं जिन्हें कथित तौर पर नक्सली अभी दण्ड देना चाहते हैं। नक्सलियों की इस चिट्ठी में जो नाम लिखे गये हैं उसमें सलवा जुड़ुम के स्थानीय नेताओं के नाम लिखे गये हैं। इसके साथ ही उनके मददगारों की पहचान करके उनके भी नाम लिखे गये हैं और कहा गया है इन नेताओं और उनके मददगारों को नक्सली जल्द ही सजा सुनाएंगे।


परिस्थितियों की संवेदनशीलता देखते हुए, कथित रूप से नक्सलियों की ओर से लिखी गई इस चिट्ठी में लिखे नामों का खुलासा तो हम नहीं कर सकते लेकिन माओवादियों ने दो पेज की अपनी चिट्ठी में सुकमा जिला कलेक्टर के जरिए अपनी छह मांग सामने रखी है। माओवादियों की ओर से लिखी गई इस चिट्ठी में मांग की गई है कि


सीआरपीएफ को बस्तर से हटाया जाए


निर्दोष गांववालों को मारना बंद करो


आपरेशन ग्रीन हण्ट बंद करो


विकास यात्रा परिवर्तन यात्रा बंद करो


एडसमेटा में हुए फर्जी मुटभेड़ में शामिल सीआरपीएफ के ऊपर मर्डर केस दर्ज करो


हमारे निर्दोष साथियों को जेल से रिहा करो


माओवादियों ने बस्तर जिले में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर घातक हमले की जिम्मेदारी लेते हुए देशभर में उसके खिलाफ चलाये जा रहे सभी अभियान तत्काल बंद करने की मांग की।


अभी प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से अत्यंत आदरणीय समाजसेवी अरुणा राय ने इस्तीफा दे दिया, सिर्फ इसलिए कि देश के कारपोरेट नेतृत्व ने मनरेगा पर उनके सुझावों को दरकिनार कर दिया। लेकिन बहुत सारे आदरणीय लोग अब भी विभिन्न समितियों में बने हुए हैं। ताज्जुब तो यह है कि जो बात अरुणा जी को सताती है . वह उन्हें चैन की नींद सुलाती है। वनाधिकार अधिनियम बना, लागू नही हुआ। भूमि सुधार का सिर्फ वायदा है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम पर गर्मागर्म बहस चल रही है। टीवी पर भारत उदय के बाद भारत निर्माण का शोर है। सामाजिक योजनाओं से इस कारपोरेट राज में आदिवासिों और बहुजनों का कोई भला नहीं होने वाला। न ही अल्पसंख्योंको को। ये योजनाएं सिर्फ सरकारी खर्च बढ़ाकर बाजार में क्रयशक्ति के लिए बेहद जरुरी नकदी प्रवाह बढ़ाने का मार्केटिंग रणनीति के अलावा कुछ नहीं हैं।देश में सूचना अधिकार कानून का आंदोलन शुरू करनेवाली अरुणा रॉय का पहले सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद से इस्तीफा और फिर इस्तीफे के अगले दिन सीधे सीधे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर आरोप कि वे सोनिया गांधी की भी नहीं सुनते, निरा राजनीतिक बयानबाजी भर नहीं हो सकती। अरुणा रॉय खुद उस तरह की राजनीतिक शख्सियत नहीं है कि वे लाभ हानि के आधार पर ऐसी बात कहें जिससे कोई गंभीर विवाद पैदा होता हो। लेकिन उनके आरोप का असर प्रधानमंत्री तक पहुंचा और उन्होंने भी सफाई दी है कि उनका सोनिया गांधी से कोई विवाद नहीं है।


आदिवासी अलगाव को ख्तम करने के लिए सबसे जरुरी पहल का जिम्मा मानवाधिकार कर्मियों के हवाले हैं, पर उनका हाल यह है कि हिमांशु कुमार ने सिलसिले वार ढंग से लगाता आदिवासी इलाकों में सुरक्षाबलों और राजनीतिक दलों के कारनामों की रपट पेश करे रहे हैं। सुकमा हमले के बाद प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखकर उन्होंने माओवाद समस्या की असली वजहें भी बतायी। पर उनकी सुनवाई नहीं होती। बनवारी लाल शर्मा जबतक हो सका , शांतियात्राओं का आयोजन करते रहे तो स्वामी अग्निवेस मध्यस्थता की भूमिका निबाहते रहे। विनायक सेन आदिवासी इलाकों में बतौर चिकित्सक काम कर रहे थे, तो उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया। विश्वप्रसिद्ध लेखिका अरुन्धति राय लगातार आदिवासी समस्या पर सत्ता की परवाह किये बिना लिखती रही हैं। य़े कुछ उदाहरण मात्र हैं जो बड़े नाम वाले हैं। लेकिन इनकी सम्मिलित प्रयासों की कहीं कोई गूंज नहीं है क्योकि राष्ट्र आदिवासियों को अपने इतिहास भूगोल का हिस्सा ही नहीं मानता और उन्हें उनके वाजिब हक हकूक देने को कोई तैयार नहीं है। भारतीय राजनीति और अराजनीति की आदिवासी इलाकों में मानवाधिकार, नागरिक अधिकार और लोकतंत्र की बहाली में कोई दिलचस्पी नहीं है।


नर्मदा बचाओ आंदोलन की प्रमुख व प्रसिद्ध गांधीवादी नेता मेघा पाटकर ने कहा कि दंतेवाड़ा और पूरे बस्तर की स्थिति गंभीर है। सरकार और सलवा जूड़ूम कार्यकार्ताओं के इशारे पर गांधीवादी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हमला कर उन्हें वापस जाने के लिए बाध्य किया गया। मेघा पाटकर ने फोन पर हरिभूमि को बताया कि उनकी मांग है कि वनवासी चेतना आश्रम के संस्थापक हिमांशु कुमार और उसके कार्यकर्ताओं को यहां काम करने की छूट मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि वनवासी चेतना आश्रम के कार्यकर्ता कोपा कुंजाम से मिलने वह जेल गई थीं। जहां जेल के अधिकारियों ने कहा कि वह उन लोगों से नहीं मिलना चाहता है, लेकिन मुलाकात करने के लिए अड़े रहने पर उन्होंने बाद में एक पत्र दिखाया जिसे कोपा कुंजाम ने लिखा गया बताया गया है। जिसमें उसने नहीं मिलने की इच्छा जताई है। उन्होंने कहा कि यह पत्र कोपा कुंजाम का नहीं था। वह पत्र कोपा कुंंजाम ने लिखा भी है तो वह पूरी तरह पुलिस के दबाव में है। मेघा पाटकर ने कहा कि उनके साथ और भी मानवाधिकार कार्यकर्ता है। इनके साथ वह बस्तर की हालत जानने आई हैं। उन्होंने कहा हम बस्तर के खनिज, वनसंपत्ति का दोहन करने वालों में से नहीं है, लेकिन ग्रामीणों को भड़काए जाने के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हुई है। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिंदम्बरम ने कहा था कि वह बस्तर में जनसुनवाई करेंगे। यह कार्यक्रम वनवासी चेतना आश्रम का नहीं था। केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदम्बरम द्वारा स्वंय से जारी किया गया बयान था। इसमें वह प्रभावित क्षेत्र में समस्या जानने के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम में शामिल होना चाहती थी, लेकिन इस कार्यक्रम को राज्य सरकार ने होने नहीं दिया। उन्होंने कहा कि सलवा जूड़ूम शिविर में आदिवासी परिवार सुरक्षित नहीं है। हम यहां सभी प्रकार की हिंसा का विरोध कर रहे हैं। इससे सरकार को डरना नहीं चाहिए। फोर्स सीधे साधे ग्रामीणों को नक्सली बनाकर मार रही है या फिर गिरफ्तार कर रही है। इससे आदिवासी परिवार शिविरों में रहने के लिए मजबूर है।


आदिवासी इलाकों में संविधान लागू करने की सबसे ज्यादा जरुरत है। पांचवीं और छठी ्नुसूचियों को तुरंत लागू करना चाहिए। संविधान की धारा 39 बी और सी के तहत आदिवासियों को प्राकृतिक संसाधनों पर उलके हक हकूक बहाल करने चाहिए। क्योंकि हमारे संविधान की पांचवी अनुसूची धारा २४४(१) भाग ख ४ में यह प्रावधान है कि ऐसे राज्य जिस में अनुसूचित जनजातियाँ हैं, एक जनजाति सलाहकार परिषद् स्थापित की जाएगी और वह राज्यपाल के अधीन होगी और वह ही ऐसे क्षेत्रों का प्रशासन देखेगी और राज्यपाल इस सम्बन्ध में सीधे राष्ट्रपति को ही रिपोर्ट भेजेंगे। मुख्य मंत्री का इन क्षेत्रों के प्रशासन पर कोई नियंत्रण नहीं होगा। इस के अतिरिक्त इस क्षेत्र के संसाधनों जैसे खनिज , जंगल तथा जल आदि पर गांव की पंचायत का नियंत्रण होगा और वह ही इस के उपयोग के बारे में कोई निर्णय लेने के लिए सक्षम होंगे। इस से होने वाले लाभ के वे ही हकदार होंगे।


परन्तु यह बड़े आश्चर्य की बात है कि देश में संविधान को लागु हुए ६२ वर्ष गुजर जाने पर भी इस क्षेत्रों में उक्त संवैधानिक व्यवस्था आज तक लागू नहीं की गयी और वहां पर पार्टियों द्वारा अवैधानिक रूप से शासन चालाया जा रहा है। अतः जब तक इन क्षेत्रों पर यह अवैधानिक शासन चलता रहेगा तब तक आदिवासियों और उन क्षेत्रों की प्राकृतिक संपदा की लूट होती रहेगी जिस के विरुद्ध लड़ने कि सिवाय आदिवासियों के सामने मयोवादियों की शरण में जाने के सिवाय कोई चारा नहीं रहेगा।


अब हमें सोचना होगा कि क्या इन क्षेत्रों में संवैधानिक व्यवस्था लागू करानी है या फिर राजकीय हिंसा और प्रतिहिंसा के खेल में इन आदिवासियों खत्म करना है।


ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि सरंडा जैसे नक्सली इलाकों में अगले 10 साल तक माइनिंग पर पाबंदी लगा देनी चाहिए।जयराम रमेश के मुताबिक खनन की वजह से कुछ लोग अमीर हो जाते हैं संसद में पहुंच जाते हैं लेकिन लाखों लोग गरीब रह जाते हैं। उन्होंने सरकारी नीति पर ही नहीं, नक्सलियों पर भी हमला किया है। उनके मुताबिक नक्सली बच्चों को भर्ती कर रहे हैं जो बहुत ही गलत है।तो केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री किशोरचंद्र देव ने खुलकर कहा है कि सलवा जुड़ुम में हुए आदिवासियों पर निरंकुश अत्याचारों की वजह से ही माओवाद का प्रचार प्रसार हुआ।


रमेश का मानना है कि नक्सलवाद अब विचारधारा का नहीं लूट का मामला बन गया है। निजी और सरकारी कंपनियां इन्हें 'हफ्ता' देती हैं। सरकारी ठेकों से भी इन्हें पैसा मिलता है।


दो दो महत्वपूर्ण केंद्रीय मंत्रियों ने आदिवासी अंचलों की विस्फोटक हालात के बारे में सच को ही उजागर किया है। हाल में आदिवासियों के दुमका में हुए अखिल भारतीय सरनाधर्म सम्मेलन में भी शिकायत की गयी है कि कायदे कानून को ताक पर आदिवासी अंचलों में प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट मची हुई है। संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक आजादी के सात दशक हो चलने के बावजूद आदिवासियों के जल जंगल जमीन और आजीविका के हक हकूक बहाल नहीं हुए हैं।लिहाजा उन्होंने संविधान बचाओ आंदोलन शुरु कर दिया है। वे सरनाधर्म कोड भी लागू करने की मांग कर रहे हैं।उनके संविधान बचाओ आंदोलन के तहत पांचवीं और छठीं अनुसूचियों के लागू न होने तक आदिलवासी इलाकों में खनन रोक देने की घोषणा हुई है।


भारत संवैधानिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष लोक गणराज्य राष्ट्र है और धर्मातंरित आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के लिए संघ परिवार का वनवासी एजंडा दाशव्यापी है, लेकिन संपूर्ण आदिवासी आबादी की वर्षों पुरानी मांग सरनाधर्म कोड लागू करने की कोई बात नहीं करता।देश के नीति निर्धारक भाग्यविधाता आदिवासी आबादी समेत देश की बहुसंख्य जनता के विरुद्ध नरमेध यज्ञ अभियान की अगुवाई कर रहे हैं, जबकि समूचे राजनीति वर्ग, मीडिया, सिविल सोसाइटी के कुलीन लोग देश के आदिवासियों और बहुजनों को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं। वे आदिवासियों और बहुजनों को जिनमे अल्पसंख्यक और अनुसूचित और पिछड़े भी शामिल हैं,को सारी समस्याओं की मूल वजह नमाने हैं और उनके निर्मम सफाया के पक्षधर हैं। यही लोग अब सलवा जुड़ुम के झंडावरदार हैं। कोई अचरज नहीं कि देशभर में अब अंबेडकर और गांधी की मूर्तियों के अगल बगल अगर महेंद्र कर्मा की मूर्तियां लगाने का कार्यक्रम शुरु हो जाये!


जो लोग माओवादी हिंसा की निंदा कर रहे हैं, उन्हें देशभर में जल जंगल जमीन और आजीविका से आदिवासियों की निरंतर हो रही बैदखली पर कोई ऐतराज नहीं है। समूची आदिवासी आबादी को माओवादी बताकर उनके निर्मम सैन्य दमन को ही वे राष्ट्र का प्राथमिक दाय़ित्व बताने से चूक नहीं रहे हैं और मीडिया सोशल मीडिया में जोर मुहिम चल रही है कि  बस्तर में माओवादी आतंकवाद के खिलाफ महेंद्र कर्मा सही मायने में आखिरी आवाज थे। वे आदिवासियों की अस्मिता, उनके स्वाभिमान और उनकी पहचान के प्रतीक थे। छत्तीसगढ़ में भाजपा दिग्गज बलिराम कश्यप के निधन के बाद महेंद्र कर्मा का चले जाना जो शून्य बना रहा है, उसे कोई आसानी से भर नहीं पाएगा। लिहाजा सलवा जुड़ुम को दोहराकर ही महेंद्र कर्मा को श्रद्धाजलि देने का राष्ट्रव्यापी आयोजन के बिना वे मानेंगे नहीं। माओवादी सक्रियता की तमाम सूचनाओं पेश करके दमन  और रंग बिरंगे आखेट अभियान का औचित्य सिद्ध किया जा रहा है, लेकिन किसी को आजादी के सात दशक के बावजूद पूरी की पूरी आदिवासी आबादी के अलगाव और विस्थापन और नरसंहार का पापबोध सताता नहीं है।


अभी आदिवासी माता सोनी सोरी जेल में बंद हैं, अदालत दावारा ज्यादातर मामलों में उन्हें निरपराध साबित कर दिये जाने के बावजूद। अभी जेल में उनपर अकथ्य अत्याचार का सिलसिला जारी है। जिस पुलिस अफसर ने उसपर बर्बर अत्याचार किये, उसे राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया। जिस सलवा जुड़ुम का कीर्तन करते अघाता नहीं संघ परिवार, उसी सलवा जुड़ुम में मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक बलात्कार के कम से कम निनानब्वे बड़े मामले हुए, जिनमें से एक भी मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं हुआ। जिस रमण सिंह को विकास पुरुष बतौर पेश किया जा रहा है, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है, नया राजधानी बसाने के लिए पुरखौती के आसपास दर्जनों आदिवासी गांव उन्होंने उजाड़ दिये और पूरे छत्तीसगढ़ में निरंकुश कारपोरेट राज की स्थापना कर दी गयी।


दूसरी ओर, बस्तर में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर नक्सली हमले में दिवंगत नेताओं के मौत का मातम अभी खत्म भी नहीं हुआ है और इधर कांग्रेस ने सत्ता की राजनीति शुरू कर दी है। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में एक सप्ताह के अंदर फिर से परिवर्तन यात्रा शुरू करने का फैसला किया है। इसके साथ ही परिवर्तन यात्रा में कुछ ऐसा माहौल तैयार करने की रणनीति है जिससे मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को कुर्सी छोड़नी पड़े।


पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक सप्ताह के भीतर परिवर्तन यात्रा को लेकर नई रणनीति बनाने की योजना तैयार की गई है। कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि इस नक्सली वारदात के बाद से छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी कार्यकताओं को मनोबल टूट गया है और इससे आला नेतृत्व परेशान है। इसी से उबरने के लिए बुधवार की शाम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्य के प्रभारी बी.के.बी.के. हरिप्रसाद समेत पार्टी के अन्य नेताओं से विचार-विमर्श कर परिवर्तन यात्रा को शुरू करने का निर्णय लिया है। बैठक में इस रणनीति पर मंथन हुआ है कि छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ  ऐसा वातावरण बना देना चाहती है कि मुख्यमंत्री को कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके।


नक्सलियों ने कहा कि उनके हमले का मुख्य मकसद नंद कुमार पटेल और महेंद्र कर्मा सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को उनकी जनविरोधी नीतियों के कारण दंडित करना था। नक्सलियों ने कहा कि दो घंटे तक माओवादी कमांडरों और सुरक्षा बलों के बीच हुई गोलीबारी के दौरान कुछ निर्दोष लोग और कांग्रेस के निचले स्तर के कुछ कार्यकर्ता भी मारे गए।


मीडिया को जारी एक विज्ञप्ति में दंडकारण्य विशेष जोनल कमिटी के प्रवक्ता गुडसा उसेण्डी ने कहा कि वे हमारे दुश्मन नहीं थे, लेकिन उन्हें जान गंवानी पड़ी । निर्दोष लोगों की मौत पर हम दुख और प्रभावित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं।

पत्र में सलवा जुडूम आंदोलन की शुरुआत में अहम भूमिका निभाने वाले महेंद्र कर्मा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने और छत्तीसगढ़ में जनविरोधी नीतियां चलाने का आरोप भी लगाया गया है। संगठन ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या चरण शुक्ल पर आरोप लगाया है कि उन्होंने राज्य में उद्योगपतियों के हित में नीतियां तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभायी। शुक्ल कांग्रेस काफिले पर नक्सलियों की गोलीबारी में गंभीर रूप से घायल हो गये हैं और उनका गुडगांव के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है। उनकी हालत गंभीर बनी हुई है।


उसेण्डी ने हत्याओं को जायज ठहराने के इरादे से अपने बयान में कहा, आदिवासियों के नेता कहे जाने वाले कर्मा एक सामंती मांक्षी परिवार से थे। उनका परिवार लगातार आदिवासियों का दमन करता आया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों सलवा जुडूम अभियान शुरू करने के लिये साथ हो गये ताकि बर्बरतापूर्ण अभियान (माओवादियों के खिलाफ) छेड़ा जा सके।

बयान में कहा गया है, सलवा जुडूम बस्तर इलाके में रहने वाले लोगों के लिये अभिशाप बन गया है। इस अभियान के नाम पर मासूम महिलाओं और पुरुषों पर अनेक अत्याचार किये गये कर्मा ने स्वयं गांवों में सलवा जुडूम से जुड़े कई अभियान चलाये। इस हमले के जरिये हमने उनलोगों की तरफ से बदला ले लिया जिनपर सलवा जुडूम के नाम पर कहर ढाया गया।


बयान में कहा गया है कि हमले के तत्काल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह ने हमले को लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला करार दिया। भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राजनीति से ऊपर उठकर नक्सलवाद और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष करने की बात कही। हम पूछते हैं कि क्या उन्हें लोकतंत्र या लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में बोलने का अधिकार है।


उसेण्डी ने आरोप लगाया कि हाल ही में 17 मई को बीजापुर जिले में अर्धसैनिक बलों से मुठभेड़ के दौरान तीन बच्चों समेत आठ लोग मारे गए थे। उस समय किसी ने लोकतांत्रिक मूल्यों की बात क्यों नहीं की। उन्होंने कई और उदाहरण दिये जिसमें आदिवासियों को कथित रूप से सुरक्षा बलों ने मारा था। माओवादी ने सभी लोगों से तत्काल ग्रीन हंट अभियान बंद करने और इन क्षेत्रों में तैनात सुरक्षा बलों को वापस बुलाने की मांग की।


बयान में कहा गया कि प्रशिक्षण के नाम पर इस क्षेत्र में सेना को तैनात नहीं किया जाना चाहिए और जेल में बंद सभी नेताओं को रिहा किया जाना चाहिए। गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम और छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा अधिनियम जैसे कड़े कानूनों को समाप्त किया जाना चाहिए। इसके साथ ही निगमित घरानों से प्राकतिक संसाधनों के दोहन के बारे में किये गये सभी सहमति पत्रों को रद्द किया जाना चाहिए।


बस्तर के सुदूर इलाके में दिग्गज कांग्रेसी नेताओं समेत ढाई दर्जन से अधिक जन के नक्सली नरसंहार को लेकर अटकलों और अफवाहों का बाजार सरगर्म है। कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों ही पार्टी के तमाम नेता इसे सामान्य नक्सली हमला न मानकर राजनीतिक षड़यंत्र के तौर पर भी करार दे रहे है। सच तो यह है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की ओर शक की सुई घुमाने की कवायद जारी है। श्री जोगी भी इससे अनजान नहीं हैं। फिर भी बेपरवाह जरूर हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख दैनिक अखबार हरिभूमि के प्रबंध संपादक डॉ हिमांशु द्विवेदी ने उनसे लंबी बातचीत की है। जानिये सीधे सवालों के सपाट जवाब :-


हरिभूमि: - राज्य भर में सवाल है कि अजीत जोगी हेलीकॉप्टर से क्यों उड़ गए? जबकि बाकी नेता सड़क मार्ग से परिवर्तन यात्रा में शामिल हुए।


जोगी:- बाकी कोई नेता व्हील चेयर पर नहीं है। मैं सड़क मार्ग से एक दिन में सौ-दो सौ किलोमीटर से ज्यादा यात्रा नहीं करता। जब सुकमा जाने की बात आई तो मैंने अपनी पार्टी के सांसद नवीन जिंदल के अधिकारी प्रदीप टंडन से संपर्क करके हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराने का आग्रह किया। उन्होंने उपलब्ध करा दिया, इसलिए चला गया।


हरिभूमि: पहले तो कभी आपको हेलीकॉप्टर से इस प्रकार यात्रा करते नहीं देखा। इस बार ही क्यूं?


जोगी : यात्रा प्रभारी टी.एस. सिंहदेव एवं नंदकुमार पटेल जी का फोन आया था कि बस्तर में परिवर्तन यात्रा के कार्यक्रम में कम से कम एक दिन मुझे जरूर शामिल होना है। मैंने उनसे कहा कि जहां से पार्टी विधायक है, मैं वहीं शामिल होऊंगा। सुकमा की दूरी चार-पांच सौ किलोमीटर है। मेरी रीढ़ की हड्डी क्षतिग्रस्त है और सड़कों का भी हाल बेहाल है। इसलिए हेलीकॉप्टर के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।


हरिभूमि: आपकी पार्टी के वरिष्ठ नेता चरणदास महंत राजनीतिक षड़यंत्र की बात कह रहे हैं। सोशल मीडिया में आपको जिम्मेदार बताया जा रहा है। क्या कहना है आपका?


जोगी: अपने सैंतीस साल के राजनीतिक जीवन में मैंने अनेक दुष्प्रचारों का सामना इसी विश्वास के साथ किया है कि सत्यमेव जयते। इसलिए मैं इन बातों की कोई परवाह नहीं करता। यह दुष्प्रचार वही शक्तियां कर रही हैं जो महात्मा गांधी की हत्या, इंदिरा गांधी की हत्या के समय भी दुष्प्रचार करने में जुटी थीं। देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी के अधिकारी यहां आ चुके हैं। एक-दो महीने में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। रमन सिंह न्यायिक जांच की घोषणा करके मामले को ठंडे बस्ते में डालना चाहे रहे थे, लेकिन उनका षड़यंत्र जरूर विफल हो गया। रही बात महंत जी की तो मुझे भी ऐसा लगता है। लेकिन अब इस घटना पर टिप्पणी करने से पहले हमें जांच एजेंसी की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए।


हरिभूमि: आप कुछ शक्तियों द्वारा दुष्प्रचार की बात कर रहे हैं, लेकिन परिवर्तन यात्रा का मार्ग बदलने की बात तो आपने ही कही थी?


जोगी: बिलकुल गलत। अखबारों में इस आशय की खबर छपी हुई थी। टीवी चैनल वालों ने मुझसे पूछा तो मैंने कहा कि अगर ऐन मौके पर रूट बदला गया था तो इसकी जांच होनी चाहिए। बाद में मैंने सिंहदेव जी और कुछ कार्यकर्ताओं से बात की तो उन्होंने  इससे इनकार किया। मैंने तुरंत ही बयान जारी किया कि यात्रा का रूट नहीं बदला गया था। सच बात यह है कि यह तमाम अफवाहें वही लोग उड़ा रहे हैं जो इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन वो कितनी ही कोशिश क्यों न कर लें रमन सिंह और उनकी सरकार पर लगा यह कलंक हरगिज नहीं मिट सकता।


हरिभूमि: आपके अनन्य समर्थक और विधायक कवासी लखमा का हमले से सकुशल बच जाना भी तो मामले को संदेहास्पद बनाता है?


जोगी: बेहूदा बात है यह। सवा सौ लोगों का काफिला था जब हमला हुआ। तकरीबन नब्बे लोग जिंदा बच गये। सब पर सवाल उठा दीजिये। कुछ नेता यात्रा में शामिल नहीं थे, उन पर भी संदेह कीजिये। सच्चाई तो यह है कि राज्य सरकार ने हमारी पार्टी की पूरी एक पीढ़ी को खत्म कर दिया। यह उन्होंने जानकर किया या अनजाने में, इसका पता तो एजेंसी की जांच रपट से ही चलेगा। मेरा स्पष्ट तौर पर कहना है कि यह सरकार हत्यारी है।


हरिभूमि: आप राज्य सरकार पर इतना गंभीर आरोप लगा रहे हैं, जबकि खुद आपकी पार्टी के नेता राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग को खारिज कर चुके हैं। क्या समझ जाये इसे?


जोगी: यह बात सही है कि घटना वाले दिन भावातिरेक में मेरे द्वारा राष्ट्रपति शासन की मांग ही नहीं की गई थी, बल्कि राज्यपाल महोदय को ज्ञापन भी सौंपा था। मेरे अपने साथी मारे गये थे, जिसके लिए यह सरकार ही जिम्मेदार है।  लेकिन, बाद में अगले दिन जब आदरणीय सोनिया जी, राहुल जी और मनमोहन जी रायपुर आये तो उन्होंने हमें समझाईश दी कि देश हित में हम अपनी भावनाओं को काबू में रखें। नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में हमें एकजुटता दिखानी होगी। उनका निर्णय सही है।


हरिभूमि: आप साथियों की मौत का हवाला दे रहे हैं, लेकिन न तो नंदकुमार जी की ही अंत्येष्टी में गए ओर न महेंद्र कर्मा की। क्यों?


जोगी: छत्तीसगढ़ में दशगात्र का महत्व है। नंदकुमार पटेल जी के यहां मैं उसमें शामिल होने जाऊंगा। कर्माजी के यहां उनके छोटे बेटे के साथ अमित का जाने का कार्यक्रम  था लेकिन हेलीकॉप्टर संबंधी व्यवस्था में कोई व्यवधान आ गया। इसलिए संभव नहीं हो पाया। बाकि उदय मुदलियार जी के यहां तो मैं आज ही होकर आया हूं।


हरिभूमि:  पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष का पद रिक्त है। आपकी कोई दावेदारी?


जोगी: कैसी बात कर रहे हैं आप? मैं तो क्या दुख की इस घड़ी में छत्तीसगढ़ का कोई भी नेता पद-वद के विषय में सोच सकता है क्या? वैसे भी जहां तक मेरा सवाल है तो मैंने आज तक गांधी परिवार से कुछ नहीं मांगा। मैंने तो मुख्यमंत्री पद की भी दावेदारी नहीं की थी। सोनिया जी ने बना दिया। मैंने कोई पद मांगा नहीं और जो जिम्मेदारी दी गई उसके निर्वहन से इकार किया नहीं।


हरिभूमि: आखिरी सवाल! सिंह सरकार का भविष्य क्या है?


जोगी: न कोई वर्तमान और न कोई भविष्य। मैंने तो उनसे इस्तीफा भी नहीं मांगा। मांगता तो तब जब उनमें नैतिकता दिखाई देती। इतने सालों में कितने ही कांड तो हो गये। बालको चिमनी हादसा, एसपी समेत 76 जवानों की मौत, बच्चियों से बलात्कार और भी न जाने क्या-क्या। इस्तीफा तो देना दूर रहा नैतिकता के नाते पेशकश तक नहीं की। उन्हें डर रहा कि अगर पेशकश कर दी तो बृजमोहन वगैरह मंजूर ही न करा दें। जनता सब देख रही है ओर वहीं इनसे हिसाब चुकता करेगी।


बंदूक के बल पर नहीं ख़त्म होगा माओवाद

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमणसिंह से आवेश तिवारी की बातचीत

मुझे सपनों में बस्तर दिखता है। वहां से माओवाद का खात्मा बेहद जरुरी है, लेकिन मैं ये भी जानता हूँ कि बंदूक के बल पर ये ख़त्म नहीं हो सकता। सिर्फ विकास और शिक्षा ही माओवाद का समूल नाश करेगी और हम ये करके रहेंगे। बेमेतरा से पाटन के रास्ते में रथ की खिडकियों से भीड़ के मिजाज को पढ़ने की कोशिश करते हुए डॉ रमन सिंह जब ये कहते हैं तो उनके चेहरे का आत्मविश्वास साफ़ नजर आता है। हम पूछ बैठते हैं "ये बात पहले कभी क्यों नहीं कही? तपाक से जवाब आता है "अब कह रहे हैं छाप दीजिये"।


मुख्यमंत्री रमन सिंह यात्राओं से थकते नहीं, हाँ पत्नी वीणा सिंह को जिनका गला खराब है और वे बार-बार वापस जाने की सलाह दे रहे हैं| रथ में साथ चल रहे कार्यकर्ताओं का दाना–पानी हो या फिर फाइलें सब पर उनकी निगाह है। बीच–बीच में सांसद सरोज पांडे के साथ सड़कों, तालाबों, गाँवों और विकास यात्रा के दौरान हो रही सभाओं की बतकही भी जारी है। हमने मुख्यमंत्री रमन सिंह से कई सवालों पर सीधे बात कि और रमन सिंह ने बेबाकी से सभी सवालों के जवाब दिए। आइये पढ़ते है ये पूरी बातचीत-


सवाल- आपकी यात्रा की सबसे बड़ी सफलता क्या है? इन यात्राओं से आखिर हासिल क्या हुआ है?

जवाब- रथयात्रा के 40 दिन से हम वो काम कर पाते हैं जो चार सालों में नहीं कर पाते। एक सरकार की उपलब्धि को जनता के बीच ले जाने और जनता से सीधे संवाद करने का मुझे नहीं लगता इससे बेहतर कोई रास्ता हो सकता है। ये यात्रा मेरे लिए तीर्थाटन की तरह है।


सवाल- आप अलग-अलग विधानसभाओं में घूम रहे हैं। क्या विधानसभा में टिकटों का बंटवारा इस यात्रा के माध्यम से लगाये गए आकलन से निर्धारित होगा?


जवाब- जी देखिये, टिकटों का बंटवारा तो संगठन को करना है, लेकिन हाँ इस यात्रा के निष्कर्षों की मैं संगठन से साझेदारी जरुर करूँगा।


सवाल- आपको क्या लगता है कि आपकी सरकार भ्रष्टाचार का खात्मा करने में कितना सफल रही है?

जवाब- प्रदेश में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार पीडीएस में था, उसे हमने काफी हद तक कम कर दिया। सिपाही भर्ती, शिक्षाकर्मियों की भर्ती में भी हमने नए नियम कायदों को लागू कर भ्रष्टाचार को कम करने का प्रयास किया है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी रह गया है। हम सिर्फ इतना जानते हैं कि अगर नियत सही हो तो बदनाम से बदनाम महकमा भी ईमानदार हो सकता है।


सवाल- नरेन्द्र मोदी केंद्र की राजनीति करने जा रहे हैं। आपको नहीं लगता आपकी डिमांड राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ गयी है और आपको भी केंद्र की राजनीति करनी चाहिए?


जवाब- मुझे छत्तीसगढ़ की राजनीति से संतुष्टि मिलती है। मैं अटल जी के सरकार में मंत्री रहा हूँ लेकिन मुझे लगता है जब आप राज्य में काम करते हैं तो उसके व्यापक नतीजे सामने आते हैं। केंद्र में इतने व्यापक नतीजे सामने नहीं आ पाते हैं।


सवाल- आपको नहीं लगता कि आपकी और नरेन्द्र मोदी की छवि के आगे पार्टी का अस्तित्व हल्का पड़ रहा है?

जवाब- ये बात पूरी तरह से निराधार है। पार्टी के बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। अगर मैं बीजेपी छोड़ देता तो मुख्यमंत्री क्या एक पार्षद भी नहीं बन सकता था। मैंने भाजपा के कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पारी की शुरुआत की थी और आज मुख्यमंत्री हूँ।


सवाल- क्या केन्द्र में भाजपा की सरकार न होने से आपको राज्य में नुकसान उठाना पड़ता है?


जवाब- जी, निश्चित तौर पर केंद्र में अपनी सरकार न होने से हमें बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। छत्तीसगढ़ में रेलवे का विकास नहीं हो पाया। राष्ट्रीय राजमार्गो के निर्माण में भी केंद्र धन देने में आनाकानी कर रहा है। ऐसी तमाम योजनाएं जिनमे केंद्र सरकार के विभागों की सहमति की जरुरत होती है अनावश्यक तौर पर टाली जा रही हैं।


सवाल- आपकी सभाओं में महिलाओं कि सहभागिता ज्यादा देखने में आ रही है। कोई ख़ास वजह?


जवाब- देखिये, छत्तीसगढ़ में लिंगानुपात सबसे आदर्श स्थिति में है। मतलब ये कि हमारे यहाँ भ्रूण हत्या नहीं होती। अभी शासन ने निर्णय लिया है कि राशन कार्ड सीधे महिलाओं के नाम से बनाया जाए यानि कि उन्हें घर-गृहस्थी में सीधे मालिकाना हक़ दिया जाए। महिलाओं को सस्ते ब्याज पर कर्ज देने की हमने शुरुआत की और हाँ चावल का रसोई से और रसोई का सीधा नाता महिलाओं से है। निश्चित तौर पर वो भाजपा के साथ खड़ी हैं।


सवाल- विधानसभा का अंतिम सत्र सामने है। आप कांग्रेस को शत्रु विपक्ष कहेंगे या मित्र विपक्ष?


जवाब- विपक्ष ने अपनी भूमिका निभाई है। परिवर्तन यात्रा भी निकाल रहे हैं। मैं उन्हें शुभकामना देना हूँ अगले 10 साल तक वे भी अच्छा करते रहें।


सवाल- क्या आप पुत्र अभिषेक सिंह को चुनाव मैदान में उतार रहे हैं?


जवाब- ये संगठन को तय करना है कि वो किसको टिकट देगी किसको नहीं।




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Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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