अखिलेश की असफलताओं के एक साल
सरकार ने किसानों और गरीबों के मद्देनजर कई बड़ी घोषणाएं कीं. एक साल बीतने के बाद योजनाओं की हालत यह है कि या तो उन योजनाओं को पूरा करने के लिए राशि आवंटित नहीं हुई है, या जिनके लिए पैसा सरकार ने दिया भी है तो वे पूरी नहीं हुई हैं. कानून-व्यवस्था तो पहले से ही खस्ताहाल है...
अजय प्रकाश
सरकार कोई भी हो, एक साल पूरा होने पर उम्मीदों और आशंकाओं के साथ उसका आकलन शुरू हो जाता है. उसमें कुछ असफलताएं होती हैं, तो कुछ सफलताएं भी. विपक्षी असफलताओं की फेहरिस्त लेकर जनता के बीच उतरते हैं, तो पक्ष सफलताओं के जयघोष में लग जाता है. लेकिन मार्च में एक साल पूरा कर चुकी उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के साथ यह संयोग बनता नहीं दिख रहा है.
कानून-व्यवस्था, सांप्रदायिक सौहार्द और आर्थिक सुदृढ़ता जैसे किसी भी मुख्य प्रशासकीय मोर्चे पर सरकार ऐसी कोई उपलब्धि नहीं गिना सकी है, जिससे वह अगले चार वर्षों के लिए कोई ठोस उम्मीद जनता को दे सके. अपनी राजनीतिक विरासत पुत्र को सौंपने वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी बेटे की सरकार की पहली वर्ष गांठ पर "सौ में सौ नंबर' का जुमला नहीं दोहरा पा रहे हैं. हालांकि युवा सरकार ने 19 फरवरी को बजट पेश कर एक बार फिर उम्मीदों की नयी पारी खेली है. 23 हजार 913 करोड़ के राजकोषीय घाटे के बीच पिछले वर्ष के बजट में 10 फीसद की बढ़ोतरी करते हुए अखिलेश ने एक लोकलुभावन बजट 2013-14 के लिए पेश किया है.
इस वर्ष का बजट 2 लाख 21 हजार 201 करोड़ का है. अखिलेश सरकार का यह दूसरा बजट किसानों, गरीबों, ग्रामीण विकास, मुस्लिम-पिछड़ा विकास और सड़क आदि बनाने पर केंद्रित है. वर्ष 2012-13 का बजट भी रिकॉर्ड तोड़ दो लाख करोड़ का था. पिछले बजट में 11 सौ करोड़ बेरोजगारी भत्ता के मद में, 2721 करोड़ छात्रों को लैपटॉप और कंप्यूटर के लिए, 446 करोड़ कन्या विद्याधन में और 350 करोड़ किसानों के जीवन बीमा के लिए दिये जाने की घोषणा की गयी थी. लेकिन 31जनवरी तक इन तमाम घोषणाओं में से किसी एक को भी सरकार अपनी सफलता की कहानी में नहीं दर्ज करा पायी.मौजूदा बजट अखिलेश सरकार के लिए अधिक चुनौतिपूर्ण है, क्योंकि अगले वर्ष आम चुनाव होने वाले हैं. प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में सपा के हिस्से कितनी आयेंगी, उसे तय करने में इस वर्ष का बजट सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा.
दूसरी बात यह कि आम चुनावों से अखिलेश की महत्वाकांक्षा जुड़ी हो या न जुड़ी हो, लेकिन उनके पिता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव राजनीतिक कमाई के निवेश का अवसर है. वह प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के बूते देश के मुखिया बनने के खेल में रिंग मास्टर बनना चाहते हैं. बहुजन समाज पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं, "हर मोर्चे पर असफल सरकार अब पैसा बहाकर लोगों का विश्वास जीतना चाहती है. इतना भारी बजट मीडिया में दिखाने के लिए भले ही हो, लेकिन इससे जनता पर भार लगातार बढ़ेगा और प्रदेश का विकास प्रभावित होगा. पिछले वर्ष जारी हुए बजट की बंदरबांट कथा ही पूरी कहानी कह देती है.'
पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव सपा की ओर से और राहुल गांधी कांग्रेस की ओर से चुनावी कमान संभाल रहे थे. कई मामले में दोनों एक से थे, जिनमें से खानदानी राजनीति से आना और पहली बार उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के चुनाव को नेतृत्व देना, मुख्य है. कांग्रेस को राहुल गांधी से बड़ी उम्मीदें थीं पर वह कोई करामात नहीं दिखा सके और 22 वर्षों की हार का इतिहास ही कांग्रेस का वर्तमान बना. वहीं अखिलेश यादव ने सपा के लिए विधानसभा की 224 सीटें जीतीं और मुख्यमंत्री बने. सपा की ऐतिहासिक जीत पर ज्यादातर राजनीतिक पंडितों ने अखिलेश में एक सफल मुख्यमंत्री बनने के अनेक गुण गिनाये.
बेरोजगारों की सबसे बड़ी संख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के युवाओं को लगा कि वह उनके लिए भी कुछ कदम उठायेंगे. यह उम्मीद इसलिए भी थी, क्योंकि अखिलेश उत्तर प्रदेश के इतिहास में सबसे युवा मुख्यमंत्री बने थे. उम्मीद के मुताबिक अखिलेश ने सत्तासीन होने के शुरुआती महीनों में ही बेराजगारी भत्ता, कॉलेज जाने वाले छात्रों को लैपटॉप और गरीबों के लिए कुछ लोकप्रिय घोषणाएं कीं. लेकिन पिछले वर्ष के वायदों और घोषणाओं के मद में बजट का मात्र 70 फीसद जारी हो सका है और काम 45 फीसद हुआ है. तीन सौ पचास करोड़ के बजट वाली लोहिया विकास योजना और प्रदेश भर में 200 करोड़ के बजट से कंबल बांटने की योजना का अभी कोई नामलेवा ही नहीं है. अब तक कुल मिलाकर सरकार की सिर्फ दो योजनाएं अमल में लायी जा सकीं हैं, जिनमें से एक बेरोजगारी भत्ता है और दूसरी कन्या विद्याधन योजना.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद निर्मल खत्री के अनुसार, "सरकार ने किसानों और गरीबों के मद्देनजर कई बड़ी घोषणाएं कीं. एक साल बीतने के बाद योजनाओं की हालत यह है कि या तो उन योजनाओं को पूरा करने के लिए राशि आवंटित नहीं हुई है, या जिनके लिए पैसा सरकार ने दिया भी है तो वे पूरी नहीं हुई हैं. कानून-व्यवस्था तो पहले से ही खस्ताहाल है.' सपा के युवा नेता नित्यानंद त्रिपाठी की राय में,"एक साल के आकलन के आधार पर किसी सरकार को असफल कहना जल्दबाजी होगी. भ्रष्ट नौकरशाहों के बीच नीतियों का अमल सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.'
प्रदेश के विकास और आर्थिक मोर्चों पर अखिलेश असफल तो हुए ही हैं, उन्होंने सपा की राजनीतिक विरासत को भी धूमिल किया है. सपा की छवि एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी की रही है और भारतीय राजनीति में इस कारण उसकी एक खास पहचान भी है. इस पहचान को बड़े संयत और अनुशासित ढंग से मुलायम सिंह के नेतृत्व में पार्टी ने वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हासिल किया था. मगर अखिलेश सरकार के बारह महीनों में हुए 11 दंगों ने उसे भी मटियामेट कर दिया है.
भारतीय प्रेस परिषद की ओर से जारी हालिया रिपोर्ट ने सपा की सांप्रदायिक पहुंच को सरेआम कर दिया है. प्रेस परिषद की ओर से रिपार्ट जारी करते हुए प्रेस परिषद के उत्तर प्रदेश सदस्य और वरिष्ठ संपादक शीतला प्रसाद सिंह ने कहा, "फैजाबाद और उसके आसपास हुआ सांप्रदायिक दंगा किसी त्वरित घटना का परिणाम नहीं था, बल्कि सांप्रदायिक सोच पर आधारित षड्यंत्र का परिणाम था. यह दंगा प्रशासनिक अकुशलता और संाप्रदायिक दंगों से नहीं निपट पाने की शून्यता का परिणाम है.' सदस्य ने संाप्रदायिक संगठनों पर अनुचित गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) 1967 के अनुसार कार्यवाही की मांग की है.
इससे पहले निर्दोष मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी को लेकर बने निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट जारी करने और गिरफ्तार युवकों के मामलों की सुनवाई में तेजी न लाने को लेकर भी मुस्लिम और मानवाधिकार संगठन सरकार की तीखी आलोचना करते रहे हैं. दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ने जनवरी के मध्य में सरकार की असफलताओं के लिए नौकरशाहों को जिम्मेदार ठहराया. 17 जनवरी को "आईएएस सप्ताह' की शुरुआत करते हुए अखिलेश यादव ने कहा, "हमने प्रदेश की जनता के लिए कई सारी जन कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं, लेकिन इन्हें अमल में लाने वाले आईएएस अधिकारियों की इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. अधिकारियों को आत्मविश्लेषण की जरूरत है. सरकार इस तरह के असहयोग को बर्दाश्त नहीं करेगी.'मुख्यमंत्री ने आगे कहा, "शर्मनाक है कि हम आजादी के 65 साल बाद भी प्रदेश की जनता को स्वच्छ पानी नहीं दे सकते, जिसके लिए सीधे तौर पर आइएएस अधिकारी जिम्मेदार हैं.'
वहीं मुख्यमंत्री के पिता मुलायम सिंह यादव सालभर मंत्रियों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों को सुधरने की हिदायत देते रहे. पीस पार्टी के अध्यक्ष डॉक्टर अयूब कहते हैं, "हर मोर्चे पर असफल सरकार के लिए बड़ी मुश्किल यह है कि उनके मंत्रीमंडल के कई मंत्री मुख्यमंत्री को अपना प्रशासक नहीं, नौसिखिया समझते हैं. प्रदेश में अपहरण, हत्या, बलात्कार, स्त्री उत्पीड़न, कब्जेदारी और गुंडई बढ़ी है, जिसमें सपाइयों की संख्या ज्यादा है. सरकार की असफलता अपनों के कारण है, किसी और के चलते नहीं.'
http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/3786-akhilesh-kee-asafaltaon-ke-ek-saal
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