प्रणब अब नहीं करेंगे ताबड़तोड़ हस्ताक्षर
♦ राजकिशोर
संयुक्त राष्ट्र संघ ने पिछले दिनों मौत की सजा के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। हालांकि, भारत ने इस पर दस्तखत नहीं किए हैं, लेकिन देश के अंदर भी इसे लेकर काफी विवाद है। राष्ट्रपति भी इससे चिंतित हैं और बेहद संवेदनशील भी। भले ही फांसी देने का फैसला सरकार का था, लेकिन अपने सात माह के कार्यकाल में कुल सात लोगों की फांसी के फरमान पर हस्ताक्षर करने का तमगा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर जड़ गया।
सात माह में सात लोगों की दया याचिका खारिज कर चुके राष्ट्रपति फिलहाल शायद ही किसी की मौत के वारंट पर हस्ताक्षर करें। कसाब, अफजल, बेलगाम घटना के दोषी नंदियप्पा और अब वीरप्पन के चार साथियों समेत कुल सात लोगों की दया याचिका गृह मंत्रालय की संस्तुति के अनुरूप खारिज कर चुके राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सामने गृह मंत्रालय ने सात और मामले निस्तारण के लिए भेज दिए। इनमें पांच की दया याचिका खारिज करने की संस्तुति है, जिसे देखकर राष्ट्रपति नाराज हो गए। वह चाहते हैं कि फांसी की सजा से जुड़े मामलों में संवेदनशीलता बरती जाए और विचारहीन होकर या जल्दबाजी में फैसला न लिया जाए।
सूत्रों के मुताबिक, अधिकारियों ने जब नई सात फाइलें राष्ट्रपति के सामने रखीं तो वह बेहद असहज हो गए। मौत की सजा पा चुके दोषियों की दया याचिकाओं पर कई-कई वर्ष तक कोई फैसला न करने के बाद अब ताबड़तोड़ राष्ट्रपति भवन फाइल भेजने को प्रणब विचारहीन मान रहे हैं। अब हाल-फिलहाल वह किसी की दया याचिका खारिज करने के मूड में नहीं हैं। खासतौर से ऐसे समय में जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने पिछले दिनों मौत की सजा के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। हालांकि, भारत ने इस पर दस्तखत नहीं किए हैं, लेकिन देश के अंदर भी इसे लेकर काफी विवाद है। राष्ट्रपति भी इससे चिंतित हैं और बेहद संवेदनशील भी।
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कसाब के मामले में देरी का पक्षधर कोई नहीं था। इसके बाद अफजल गुरु और चंदन तस्कर वीरप्पन के चार सहयोगियों व एक अन्य मामले की दया याचिका खारिज करने की संस्तुति पर भी राष्ट्रपति ने मुहर लगा दी। भले ही फैसला सरकार का था, लेकिन अपने सात माह के कार्यकाल में कुल सात लोगों की फांसी के फरमान पर हस्ताक्षर करने का तमगा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर जड़ गया। यही कारण था कि राष्ट्रपति भवन ने अपनी साइट से लंबित दया याचिकाओं के विवरण का पन्ना ही हटा दिया। साथ ही कहा कि यह गृह मंत्रालय से जुड़ा मामला है। उनसे ठीक पहले राष्ट्रपति रहीं प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने पांच साल के कार्यकाल में सिर्फ तीन लोगों की दया याचिका रद्द की थी। उनके समय में 35 लोगों की फांसी उम्रकैद में तब्दील की गई।
कसाब, अफजल की चुपचाप फांसी के बाद वीरप्पन के साथियों की दया याचिका रद होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उनकी फांसी पर रोक लगा दी। तर्क है कि इतने साल जेल में रहने के बाद अब उन्हें फांसी देना दोहरी सजा होगी। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को मौत की सजा सुनाने वाले जज केटी थामस भी अभियुक्तों को अब फांसी देने के पक्ष में नहीं हैं। पंजाब में बेअंत सिंह के हत्यारे राजोआना या भुल्लर किसी भी मामले में फांसी की मांग मुखर नहीं है। ऐसे में अब राष्ट्रपति भवन ताबड़तोड़ इन मौत के वारंटों पर हस्ताक्षर नहीं करेगा।
(दैनिक जागरण से साभार।)
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