Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Saturday, January 12, 2013

जिस हिंदुत्व के महानायक और महात्मा गुजरात नरसंहार के अपराधी हैं, कया विवेकानंद उसके प्रतिनिधि हैं?

जिस हिंदुत्व के महानायक और महात्मा गुजरात नरसंहार के अपराधी हैं, कया विवेकानंद उसके प्रतिनिधि हैं?

पलाश विश्वास

हमारे पुरातन मित्र और उधमसिंह नगर के अपने गृहजिला के पड़ोसी वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन फुटेला ने इधर मेरे लेखों में छूट गयी ​​गलतियों की ओर ध्या खींचा है। हमने उन्हें जो जवाब लिखा है, यह कोई निजी पत्रालाप नहीं है, क्योंकि यह अभिव्यक्ति के संकट से जुड़े हमारे कामकाज की समस्याओं पर केंद्रित है, इसलिे इसे मैं अपने आम पाठकों के साथ भी शेयर कर रहा हूं। आज देशभर में युद्धोन्मादी ​​जायनवादी धर्मान्ध राष्ट्रवाद के आवाहन के लिए स्वामी विवेकानंद की १५० वीं जयंती पर युवा उत्सव मनाया जा रहा है देशभर में। स्वामी​ ​ जी  कर्मयोग में आस्था रखते थे और प्रचलित अर्थों में आध्यात्मिक नहीं थे। वेदान्त संबंधी उनके विचारों के एकतरफा इस्तेमाल करते ​​हुए उन्हें घृणा, भेदभाव, अस्पृश्यता, भेदभाव और अस्पृश्यता पर आधारित मनुस्मृति निर्भर हिंदू राष्ट्रवाद के आइकन बतौर पेश किया​​ जाता है। जबकि उनका दर्शन मानवताबोध, समता और सामाजिक न्याय के गौतम बुद्ध की अहिंसक परंपरा में ही निहित है। वे आक्रामक ​​हिंदुत्व के समर्थक कैसे हो सकते हैं?जिस हिंदुत्व के महानायक और महात्मा गुजरात नरसंहार के अपराधी हैं, कया विवेकानंद उसके प्रतिनिधि हैं?

बंगाल में सारी दुनिया जानती है कि ममता दीदी जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हैं। अब उन्होंने ऐलान कर दिया है कि रवींन्द्र नाथ ​​टैगोर और विवेकानंद की स्मृति में जरुरी हुआ तो जबरन भूमि अधिग्रहण किया जायेगा। जहां टैगोर मंदिर में बंदी देवता की बात करते थे और चंडालिका की मुक्ति के संग्राम को स्वर देते थे, वहीं स्वामी विवेकानंद अगला युग शूद्रों का है, का ऐलान कर चुके थे। टैगोर ने सामाजिक​ ​ यथास्थिति को तोड़ने  के लिए शूद्रों के नेतृत्व की बात करते थे। दोनों ही यह मानते थे कि यह सभ्यता श्रमजीवी  अपांक्तेय अन्त्यज अस्पृश्य लोगों की देन है। फर उनके इन विचारों को किनारे करके उन्हें हिंदुत्व के अवतार बतौर पेश करके हिंदू राष्ट्रवाद के हित  साधने का राष्ट्रव्यापी अभियान जारी है।

आम तौर पर बंगाली और बाकी देशवासी स्वामी विवेकानंद के धर्म के कैसे  अनुयायी हैं? और तो और, स्वामी विवेकानंद ने नरनारायण की सेवा के लिए स्वयं जिस प्रतिष्टान की नींव डाली, वहां भी मनुस्मृत व्यवस्था है। संगठन​​और दीक्षा मनुस्मृति के मुताबिक तो है ही, रोजमर्रे के कामकाज में कुलीनत्व, पूंजी. भेजभाव व अस्पृश्यता का बोलबाला है। दुनिया ​​जानती है कि रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के अभ्युत्थान के पीछे एक अस्पृश्य मछुआरे की बेटी का सबसे बड़ा योगदान है। ​​लेकिन लोकमता उस रानी रासमणि को यथोचित सम्मान देना तो दूर स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस के नाम से जुड़े प्रतिष्ठानों​ ​ में उनका नामोनिशान तक नहीं मिलता। जाहिर है कि वर्चस्ववाद महज समाज, धर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था  और संस्कृति का मामला नहीं है, यह इतिहास और भूगोल से बेदखली का भी मामला है। बाहैसियत एक शरणार्थी परिवार के अंश बतौर हम आजीवन इस समाजवास्तव को जी​ ​ ही रहे हैं। हमारे लोग न सिर्फ इतिहास और भूगोल, बल्कि मातृभाषा से भी वंचित हैं।


मैंने मित्रवर फुटेला को लिखा है, अशुद्धियों से नाराज पाठक भी कृपया यह पढ़ लें!

जो मैंने फुटेला को नहीं लिखा, वह यह है कि भूमंडलीकरण की महिमा से हम कितने असहाय हैं। मेरी पत्नी सविता को बाथरूम में गिरने से गहरी​ ​ चोटें आयी हैं। हम दोनों मधुमेह के मरीज हैं और सविता तो इनसुलिन पर जीवित है। हम अपने इलाज के लिए पहले से असमर्थ हैं। यह दशा कोई सिर्फ हमारे साथ नही ंहै। बहुसंख्यक भारतवासियों के साथ है। पर खास बात यह है कि  १९८० से प्रथम श्रेणी के अखबारों में लगातार काम करते रहने के बाद हमारी यह हालत है। हम पदेन जूनियर मोस्ट बन गये हैं बंगालल आने की वजह से। हम चूंकि बंगाल में वर्चस्ववादी व्यवस्था के बारे में पहले कुछ भी नहीं जानते थे, इसलिए कुछ करने को नहीं है। १९५ में सविता का ओपन हर्ट आपरेशन हुआ,तब हमारे अखबार और सहकर्मियों ​​के सहयोग से डा. देवी शेट्टी जैसे चिकित्सक की अनुकंपा से हम उसे मौत के मुंह  से निकालने में काबिल रहे। पिछले २१ साल से हम​
​ जहां जिस स्थिति में थे, उसी हालत में है। अब रिटायर करने पर हमें माहवार दो हजार रुपये के पेंशन पर गुजारा करना है। यह संकट मुंह ​​बांए खड़ा है। हमारे पिता आजीवन अपने लोगों के लिए लड़ते रहे और हासिल कुछ नहीं किया। अपना सबकुछ न्यौच्छावर कर गये। हम तो कुछ भी जोड़ नहीं पाये। एक बेटा है , वह भी पारिवारिक तेवर के साथ सामाजिक  कर्म और पत्रकारिता में लगा हुआ है। हमें उसकी लगातार मदद भी करनी होती है। हम एक्सक्लुसिव इसलिए नहीं किसी के लिए लिख पाते क्योंकि हमने पहले खाड़ी युद्ध के दौरान ही अमेरिका से सावधान लिखते​ ​ हुए सूचना विस्फोट के शिकार बहुजन समाज को तथ्यों से अवगत कराने की मुहिम छेड़ रखी है। क्योंकि अक्सर एक्सक्लुसिव लेखन कारपोरेट राज के खिलाफ होने के कारण कचरे के डब्बे में डाल दिया जाता है। वैसे भी कारपोरेट मीडिया में हम काली सूची में दर्ज हैं। हम लोग आनंद​ ​ स्वरुप वर्मा और पंकज बिष्ट जैसे समर्त मित्रों के साथ पिछले चार दशक से वैकल्पिक मीडिया की दिशा में प्रयास करते रहे हैं। अब अंतर्जाल केजरिये हम कम से कम अपने पाठकों को तुरंत संबोधित करा पाते हैं और जरुरी मुद्दों पर बहस भी चला सकते हैं। इससे एक बात यह भी हुई कि कुछ कारोबारी पत्र पत्रिकाओं में भी लेखन का कुछ हिस्सा छप जाता है। पर पारिश्रामिक कहीं से नहीं मिलता।​​
​​
​कुल मिलाकर आशय यह है कि नेट पर बने रहने का भी खर्च है। अब तक तो बिना समझौता किये अपने तेवर के साथ हम कुछ न कुछ​ ​ लिखते रहे हैं, पर हालात इतने तेजी से हमारे नियंत्रण के बाहर है कि यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक चलेगा नहीं। विडंबना यह है कि ​​वर्चस्ववादी सत्ता के पक्षधर लोगों को हमारी जैसी कोई समस्या नहीं है। उन्हें हर तरफसे सहारा और प्रोत्साहन मिलता है, जबकि इसके ​​उलट बहुसंख्यक जनता के हितों में लेखन करते हुए भी हमारे जैसे लोगों का अल्तित्व ही संकट में है। अब आप ही विचार करें कि कैसे ​​हम विशुद्ध लेखन कर सकते हैं। अब तो यह लेखन भी किसी भी दिन बंद होने को है।​
​​
​हमने फुटेला को लिखा हैः


इधर घटनाक्रम इतना तेज हुआ है कि तुरंत विश्लेषण करके जनता तक पहुंचाना सबसे बड़ी प्राथमिकता लगती है। क्योंकि मिथ्या और प्रवंचना के इस बाजारु समाज में अपने लोगों को सूचना ही नहीं होती। अपनी कोशिश होती है कि नीति निर्धारण
संबंधी सूचनाएं सही परिप्रेक्ष्य में पाठकों के सामने तुरंत रखा जाये। आप जैसे सजग मित्रों के सहयोग से यह अब असंभव नहीं लगता। फिर अपने पर कार्य का दबाव इतना है कि लिखने के बाद दुबारा देखने की फुरसत नहीं होती। फिर देखने पर फ्लो
में लिखी गयी चीजें पढ़ते वक्त दुरुस्त ही लगती है। पहले जमाने में प्रूफ की व्यवस्था इसीलिए थी। होता यह है कि छपने के बाद ही गलतियां नजर आती हैं।मैंने भी देखा है कि इस लेख में और भारत पाक युद्ध वाले लेख में वर्तनी संबंधी ऐसी
गलतियां रह गयी हैं, जो रहनी नहीं चाहिए।

एक बात और, इधर कंप्युटर में बांग्ला लिखने की तकनीक हमारे पास हो गयी है।बांग्लाभाषी जनता को बांग्ला में संबोधित करना यहां के रोज बिगड़ते हालात में सर्वोच्च प्राथमिकता हो गयी है। इतने सालों से बांग्ला में लिखा ही नहीं है।अभी लिखना कठिन है और बहुत वक्त इसमें खप रहा है। इधर हिंदी बिगड़ने के पीछे एक बड़ी वजह बांग्ला में नियमित लेखन है। अंग्रेजी में लिखना इसलिए अनियमित हो गया है। पर कोशिश है कि बांग्ला और हिंदी में ताजा सूचनाएं तुरंत दे दी जायें।पाठक यह बात नहीं समझेंगे। पर हामारा लेखन अभियान तो आप जैसे मित्रों के कारण ही संभव है।

मैं अपनी ओर से आगे कोशिश करता हूं कि यह स्थिति थोड़ी बोहतर जरूर हो और कम से कम वर्तनी संबंधी गलतियां कम से कम रहे। समय पर टोकने के लिए आभारी हूं। बाहैसियत संपादक और मित्र आपकी चिंता  एकदम वाजिब है।



बहरहाल, स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती के उपलक्ष्य में देश भर में शनिवार को विभिन्न धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं के सदस्यों ने भव्य शोभा यात्रा निकाली गई।जगह-जगह आयोजित कार्यक्रमों में स्वामी विवेकानंद के दिखाए गए रास्तों पर चलने का आह्वान किया गया। विवेकानंद का क्या संदेश, सक्षम सुंदर भारत देश, गांव गांव में जाएंगे भारत भव्य बनाएंगें, वंदेमातरम, आदि के नारे और जयघोष से शहर शहर गूंजता रहा। पश्चिम बंगाल में स्वामी विवेकानंद की 150वी जयंती के मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, उनकी शिक्षाओं को प्रदर्शित करती एक झांकी और रंगारंग प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। कोलकाता में शहर के शिमला स्ट्रीट पर स्थित स्वामी के पैतृक आवास से समारोह शुरू हुआ। सभी वर्ग के लोगों ने वहां पहुंच कर स्वामीजी को श्रद्धांजलि दी। एक रंगारंग प्रदर्शन निकाला गया जिसमें ज्यादातर स्कूली छात्र शामिल थे। यह प्रदर्शन शहर के मार्गो से गुजरा। राज्यपाल एम.के. नारायणन ने विवेकानंद को श्रद्धांजलि दी, जबकि उनके पूर्ववर्ती गोपाल कृष्ण गांधी संत के पैतृक आवास पर मौजूद रहे। रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के मुख्यालय के रूप में स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित बेलुर मठ में इस दिन को युवा दिवस के रूप में मनाया गया। हावड़ा जिले के बेलुर स्थित इस मठ में मंगल आरती के साथ समारोह का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर विशेष प्रार्थना, होम, ध्यान, समर्पण गान और धार्मिक क्रियाएं आयोजित की गईं। यहां भी स्कूली बच्चों ने रैली निकाली। रामकृष्ण मिशन ने भारतीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को समेटते हुए "शाश्वत भारत" के नाम से एक घुमंतू प्रदर्शनी निकाली है। वेद से लेकर श्री रामकृष्ण तक की यह झांकी पूरे पश्चिम बंगाल का दौरा करेगी।

दूसरी ओर, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात को दुनिया के लिए भारत में प्रवेश करने का मेन गेट बताया। उन्होंने उद्योगपतियों से कहा कि वह वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन के मंच का इस्तेमाल दुनिया को शोषण वाले आर्थिक मॉडल से दूर रहने का सकारात्मक संदेश देने के लिए करें।मोदी ने ये बातें वाइब्रेंट गुजरात शिखर सम्मेलन 2013 के उद्घाटन सेशन को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा, 'एक समय था जब गुजरात भारत से बाहर दुनिया में जाने का द्वार हुआ करता था। अब यह भारत में आने का ग्लोबल प्रवेश द्वार बन रहा है। हम एक ऐसा गुजरात बनाएंगे कि सारी दुनिया उसे अपना घर बनाएगी।'
उन्होंने कहा, 'मैं दोहराना चाहूंगा कि यह आयोजन केवल निवेश के बारे में नहीं है। यह केवल वित्तीय रिटर्न देने वाली योजनाओं के बारे में नहीं है। यह तो आर्थिक माहौल में सकारात्मकता लाने के बारे में है। यह तो हमारी सामाजिक आर्थिक गतिविधियों में घनिष्ठता लाने के लिए है। यह हमारी आर्थिक प्रक्रिया में ग्लोबल और स्थानीय समग्रता लाने के लिए है। सम्मेलन में कई इंटरनैशनल, नैशनल और स्थानीय उद्योगपति मौजूद थे। उन्होंने इस दौरान राज्य की सफलता की कहानी को और आगे ले जाने का वादा किया।

महात्मा नरेंद्र मोदी

वाइब्रेंट गुजरात समिट के पहले दिन रिलायंस एडीए ग्रुप के चेयरमैन अनिल अंबानी ने दुनियाभर के उद्योगपतियों के बीच नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे गढ़े. उपनी तारीफों से उन्होंने नरेंद्र मोदी को महात्मा गांधी, बल्लभ भाई पटेल और धीरू भाई अंबानी की कतार में खड़ा किया. अनिल ने कहा, 'नरेंद्र मोदी ने गुजरात के लिए जितना किया है उससे वो गांधी, पटेल और मेरे पिता के साथ खड़े दिखते हैं.'

उन्होंने कहा, 'नरेंद्र मोदी को कई नामों से बुलाया जाता है लेकिन मेरी समझ में नरेंद्र मोदी का मतलब 'किंग ऑफ लीडर्स' है.'

उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ने भी मोदी की बहुत तारीफ की और कहा, 'मोदी के रूप में हमें एक दूरदृष्टि रखने वाला नेता मिला है.' साथ ही उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज को ग्लोबल कंपनी बताते हुए गर्व से कहा कि रिलायंस एक गुजराती कंपनी है.

अनिल ने कहा, 'मोदी के पास विजन है और गुजरात के विकास के मामले में उनकी एकाग्रता अर्जुन की तरह है.'

उन्होंने कहा, 'यह नरेंद्र मोदी का विजन है जिसकी वजह से पिछले एक दशक से देश-विदेश के उद्योगपित गुजरात की ओर खींचे चले आ रहे हैं.'

अदानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदानी ने भी मोदी के विजन की खुल कर तारीफ की और कहा, 'मोदी ना सिर्फ चुनाव लड़ रहे थे बल्कि वो साथ ही इस समिट के आयोजन की प्लानिंग भी कर रहे थे.'

गौरतलब है कि मोदी ने हाल ही में संपन्न गुजरात विधानसभा चुनावों में हैट्रिक लगा कर इतिहास रचा है. उनके तीसरे कार्यकाल में यह पहला वाइब्रेंट गुजरात समिट आयोजित किया जा रहा है. दो दिनों तक चलने वाले इस वाइब्रेंट गुजरात का आयोजन गांधीनगर के महात्मा मंदिर में किया जा रहा है.

इस सम्मेलन में केवल भारत से ही करीब 50 हजार उद्योग प्रतिनिधियों के शामिल होने की उम्मीद की जा रही है और साथ ही 105 देशों के 1800 प्रतिनिधियों के भी आने की उम्मीद है.



और भी... http://aajtak.intoday.in/story/anil-ambani-compares-narendra-modi-to-gandhi-1-718416.html

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि स्वामी विवेकानंद की शिक्षा का दुनिया भर में प्रसार करने की जरूरत है। यह शिक्षा दुनिया भर के लोगों के लिए काफी अहम है। स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती के कार्यक्रमों का यहां राष्ट्रपति भवन में उद्घाटन करते हुए मुखर्जी ने कहा कि भारत की जनता पर इस शिक्षा के शक्तिशाली प्रभाव के पूर्ण आभास के साथ उसका भारत और दुनिया भर में प्रसार किया जाना चाहिए ।

राष्ट्रपति ने मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार ए.एल. बाशम के हवाले से कहा कि आने वाली सदियों में स्वामी विवेकानंद को आधुनिक विश्व के मुख्य प्रतिरूपकार के रूप में याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि विवेकानंद की गरीबों के प्रति गहरी वचनबद्धता थी। एक सरकारी विज्ञप्ति में मुखर्जी के हवाले से कहा गया कि स्वामीजी की शिक्षा केवल उनके जीवित रहते ही नहीं बल्कि आज के भारत के लिए भी प्रासंगिक है।

नेपाल में मनाई गई स्वामी की जयंती
काठमांडो : स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में नेपाल के राष्ट्रपति रामबरन यादव ने समाज के उत्थान के लिए स्वामीजी द्वारा किए गए कार्यों की प्रशंसा की। राष्ट्रपति रामबरन यादव आज इस समारोह के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहा, 'विवेकानंद सिर्फ एक हिन्दू संत नहीं बल्कि स्वतंत्रता सेनानी भी थे जिन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के लिए काम किया।' नेपाल में भारत के राजदूत जयंत प्रसाद ने कहा, 'अमेरिका के शिकागो में वर्ष 1893 में विश्व धर्म सम्मेलन में मशहूर भाषण देने के बाद विवेकानंद पूरब और पश्चिम के बीच पुल बन गए थे।'

150वीं जयंती पर चार टिकट जारी
जम्मू : डाक विभाग ने स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती पर आज यहां चार विशेष डाक टिकट जारी किया। जम्मू कश्मीर के मुख्य पोस्टमास्टर जनरल जॉन सैमुअल ने आज यहां गांधीनगर प्रधान डाकघर में एक आकषर्क कार्यक्रम में डाक टिकट जारी किए। ये डाक टिकट रामकृष्ण मिशन के सचिव स्वामी गिरिजाशानंद को सौंपे गए।


स्वामी विवेकानन्द

मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से
स्वामी विवेकानन्द


स्वामी विवेकानन्द शिकागो में, 1893

चित्र में विवेकानन्द ने बाँग्ला व अँग्रेज़ी में लिखा है: "एक असीमित, पवित्र, शुद्ध सोच एवं गुणों से परिपूर्ण उस परमात्मा को मैं नतमस्तक हूँ।" - स्वामी विवेकानन्द
गुरु/शिक्षकरामकृष्ण परमहंस
दर्शनवेदान्त व अध्यात्म आधारित हिन्दू दर्शन
कथन "उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये"[1]

स्वामी विवेकानन्द (जन्म: १२ जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का वेदान्तअमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत " मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों " के साथ करने के लिए जाना जाता है । [2]


अनुक्रम

  [छुपाएँ

[संपादित करें]जीवनवृत्त

कोलकाता में स्वामी विवेकानन्द का जन्मस्थान

स्वामी विवेकानन्द का जन्म १२ जनवरी सन्‌ १८६3 को कलकत्ता में हुआ था। इनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनके पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। इनकी माता श्रीमती भुवनेश्वरी देवीजी धार्मिक विचारों की महिला थीं। उनका अधिकांश समय भगवान् शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। इस हेतु वे पहले 'ब्रह्म समाज' में गये किन्तु वहाँ उनके चित्त को सन्तोष नहीं हुआ। वे वेदान्त और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे।

दैवयोग से विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई। घर का भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। घर की दशा बहुत खराब थी। अत्यन्त दर्रिद्रता में भी नरेन्द्र बड़े अतिथि-सेवी थे। स्वयं भूखे रहकर अतिथि को भोजन कराते, स्वयं बाहर वर्षा में रात भर भीगते-ठिठुरते पड़े रहते और अतिथि को अपने बिस्तर पर सुला देते।

स्वामी विवेकानन्द अपना जीवन अपने गुरुदेव श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर चुके थे। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की चिंता किये बिना, स्वयं के भोजन की चिंता किये बिना वे गुरु-सेवा में सतत संलग्न रहे। गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था।

विवेकानंद बड़े स्‍वपन्‍द्रष्‍टा थे। उन्‍होंने एक नये समाज की कल्‍पना की थी, ऐसा समाज जिसमें धर्म या जाति के आधार पर मनुष्‍य-मनुष्‍य में कोई भेद नहीं रहे। उन्‍होंने वेदांत के सिद्धांतों को इसी रूप में रखा। अध्‍यात्‍मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि समता के सिद्धांत की जो आधार विवेकानन्‍द ने दिया, उससे सबल बौदि्धक आधार शायद ही ढूंढा जा सके। विवेकानन्‍द को युवकों से बड़ी आशाएं थीं। आज के युवकों के लिए ही इस ओजस्‍वी संन्‍यासी का यह जीवन-वृत्‍त लेखक उनके समकालीन समाज एवं ऐतिहासिक पृ‍ष्‍ठभूमि के संदर्भ में उपस्थित करने का प्रयत्‍न किया है यह भी प्रयास रहा है कि इसमें विवेकानंद के सामाजिक दर्शन एव उनके मानवीय रूप का पूरा प्रकाश पड़े।

[संपादित करें]बचपन

बचपन से ही नरेन्द्र अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के और नटखट थे। अपने साथी बच्चों के साथ तो वे शरारत करते ही थे, मौका मिलने पर वे अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से नहीं चूकते थे। नरेन्द्र के घर में नियमपूर्वक रोज पूजा-पाठ होता था धार्मिक प्रवृत्ति की होने के कारण माता भुवनेश्वरी देवी को पुराण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का बहुत शौक था। कथावाचक बराबर इनके घर आते रहते थे। नियमित रूप से भजन-कीर्तन भी होता रहता था। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से बालक नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे पड़ गए। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखाई देने लगी थी। ईश्वर के बारे में जानने की उत्सुक्ता में कभी-कभी वे ऐसे प्रश्न पूछ बैठते थे कि इनके माता-पिता और कथावाचक पंडितजी तक चक्कर में पड़ जाते थे। fkgkdfidtedmtekt

[संपादित करें]निष्ठा

एक बार किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखायी तथा घृणा से नाक-भौं सिकोड़ीं। यह देखकर स्वामी विवेकानन्द को क्रोध आ गया। उस गुरु भाई को पाठ पढ़ाते और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके बिस्तर के पास रक्त, कफ आदि से भरी थूकदानी उठाकर फेंकते थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही वे अपने गुरु के शरीर और उनके दिव्यतम आदर्शों की उत्तम सेवा कर सके। गुरुदेव को वे समझ सके, स्वयं के अस्तित्व को गुरुदेव के स्वरूप में विलीन कर सके। समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भंडार की महक फैला सके। उनके इस महान व्यक्तित्व की नींव में थी ऐसी गुरुभक्ति, गुरुसेवा और गुरु के प्रति अनन्य निष्ठा!

[संपादित करें]सम्मलेन भाषण

अमेरिकी बहनों और भाइयों,

आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं, उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सब से प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।

मैं इस मंच पर से बोलनेवाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ, जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया हैं कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान हैं, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया हैं। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था, जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी, जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था । ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ, जिसने महान् जरथुष्ट्र जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा हैं। भाईयो, मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ, जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम् । नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव ।।

- ' जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं, उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।'

यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक हैं, स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत् के प्रति उसकी घोषणा हैं:

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ।।

- ' जो कोई मेरी ओर आता हैं - चाहे किसी प्रकार से हो - मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।'

साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी बीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं, उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को विध्वस्त करती और पूरे पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये बीभत्स दानवी न होती, तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता । पर अब उनका समय आ गया हैं, और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टाध्वनि हुई हैं, वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का, तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होनेवाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्युनिनाद सिद्ध हो।

[संपादित करें]यात्राएँ

स्वामी विवेकानन्द विश्व धर्म परिषद् में

२५ वर्ष की अवस्था में नरेन्द्र ने गेरुआ वस्त्र धारण कर लिये। तत्पश्चात् उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। सन्‌ १८९३ में शिकागो (अमेरिका) में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुँचे। योरोप-अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे। वहाँ लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि स्वामी विवेकानन्द को सर्वधर्म परिषद् में बोलने का समय ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से उन्हें थोड़ा समय मिला किन्तु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गये। फिर तो अमेरिका में उनका अत्यधिक स्वागत हुआ। वहाँ इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। तीन वर्ष तक वे अमेरिका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे। उनकी वक्तृत्व-शैली तथा ज्ञान को देखते हुए वहाँ के मीडिया ने उन्हें 'साइक्लॉनिक हिन्दू' का नाम दिया।[3] "आध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा" यह स्वामी विवेकानन्दजी का दृढ़ विश्वास था। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। अनेक अमेरिकन विद्वानों ने उनका शिष्यत्व ग्रहण किया। ४ जुलाई सन्‌ १९०२ को उन्होंने देह-त्याग किया। वे सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशान्तरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया। जब भी वो कहीं जाते थे तो लोग उनसे बहुत खुश होते थे।

[संपादित करें]विवेकानन्द का योगदान तथा महत्व

उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आनेवाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो, अमेरिका में विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवाई। गुरुदेव रवींन्द्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था, ''यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएँगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।''

रोमां रोलां ने उनके बारे में कहा था, ''उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है। वे जहाँ भी गए, सर्वप्रथम हुए। हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता। वे ईश्वर के प्रतिनिधि थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशिष्टता थी हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री उन्हें देखकर ठिठककर रुक गया और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा, 'शिव !' यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे पर लिख दिया हो।''

मूम्बई मे गेटवे ऑफ़ इन्डिया के निकट स्थित स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमुर्ति

वे केवल संत ही नहीं थे, एक महान् देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था, ''नया भारत निकल पड़े मोदी की दुकान से, भड़भूंजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से; निकल पडे झाड़ियों, जंगलों, पहाड़ों, पर्वतों से।'' और जनता ने स्वामीजी की पुकार का उत्तर दिया। वह गर्व के साथ निकल पड़ी। गांधीजी को आजादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला, वह विवेकानंद के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार वे भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा-स्रोत बने। उनका विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं व ऋषियों का जन्म हुआ, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं—केवल यहीं—आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है। उनके कथन—''उठो, जागो, स्वयं जागकर औरों को जगाओ। अपने नर-जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं जब तक कि लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।''

उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्षों में विवेकानंद लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रांति के जरिए भी देश को आजाद करना चाहते थे. उन्हें जल्दी ही यह विश्वास हो गया कि परिस्थितियां उन इरादों के लिए परिपक्व नहीं हैं. इसलिए विवेकानंद ने 'एकला चलो' की नीति का पालन करते हुए एक परिव्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला।

उन्होंने कहा था कि मुझे बहुत से युवा संन्यासी चाहिए जो भारत के ग्रामों में फैलकर देशवासियों की सेवा में खप जाएं। उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ. विवेकानंद पुरोहितवाद, धार्मिक आडंबरों, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे. उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था. उनका हिन्दू धर्म अटपटा, लिजलिजा और वायवी नहीं था. उन्होंने यह विद्रोही बयान दिया था कि इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे, दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मंदिरों में स्थापित कर दिया जाए और मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाए।

उनका यह कालजयी आह्वान इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के अंत में एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा करता है. पूरे पुरोहित वर्ग की घिग्गी उनके इस आव्हान को सुनकर बंध गई थी। आज कोई दूसरा साधु तो क्या सरकारी मशीनरी भी किसी अवैध मंदिर की मूर्ति को हटाने का जोखिम नहीं उठा सकती. विवेकानंद के जीवन की अंर्तलय यही थी कि वे इस बात से आश्वस्त थे कि धरती की गोद में ऐसा कोई देश है जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशें की हैं, तो वह भारत है।

उन्होंने पुरोहितवाद, ब्राम्हणवाद, धार्मिक कर्मकांड और रूढ़ियों की खिल्ली भी उड़ाई है और लगभग आक्रमणकारी भाषा में ऐसी विसंगतियों के खिलाफ जेहाद भी बोला है. उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के सर्वश्रेष्ठ चिंतकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी ईर्ष्या का विषय है। स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिए। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी बेसाख्ता जरूरत है।

यह विवेकानंद का अपने देश की धरोहर के लिए दंभ या बड़बोलापन नहीं था। यह एक वेदांती साधु की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ, वस्तुपरक और मूल्यगत आलोचना थी. बीसवीं सदी के इतिहास ने बाद में उस पर मुहर लगाई।

[संपादित करें]मृत्यु

उनके ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्चभर में है। जीवन के अंतिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा "एक और विवेकानंद चाहिए, यह समझने के लिए कि इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया है।" प्रत्यदर्शियों के अनुसार जीवन के अंतिम दिन भी उन्होंने अपने 'ध्यान' करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो तीन घंटे ध्यान किया।' 4 जुलाई, 1902 को । उनके शिष्यों और अनुयायियों ने उनकी स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानंद तथा उनके गुरु रामकृष्ण के संदेशों के प्रचार के लिए 130 से अधिक केंद्रों की स्थापना की।

[संपादित करें]महत्त्वपूर्ण तिथियाँ

12 जनवरी, 1863 -- कलकत्ता में जन्म

1879 -- प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश

1880 -- जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश

नवंबर 1881 -- श्रीरामकृष्ण से प्रथम भेंट

1882-86 -- श्रीरामकृष्ण से संबद्ध

1884 -- स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास

1885 -- श्रीरामकृष्ण की अंतिम बीमारी

16 अगस्त, 1886 -- श्रीरामकृष्ण का निधन

1886 -- वराह नगर मठ की स्थापना

जनवरी 1887 -- वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा

1890-93 -- परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण

25 दिसंबर, 1892 -- कन्याकुमारी में

13 फरवरी, 1893 -- प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकंदराबाद में

31 मई, 1893 -- बंबई से अमेरिका रवाना

25 जुलाई, 1893 -- वैंकूवर, कनाडा पहुँचे

30 जुलाई, 1893 -- शिकागो आगमन

अगस्त 1893 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. जॉन राइट से भेंट

11 सितंबर, 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान

27 सितंबर, 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम व्याख्यान

16 मई, 1894 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण

नवंबर 1894 -- न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना

जनवरी 1895 -- न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ

अगस्त 1895 -- पेरिस में

अक्तूबर 1895 -- लंदन में व्याख्यान

6 दिसंबर, 1895 -- वापस न्यूयॉर्क

22-25 मार्च, 1896 -- वापस लंदन

मई-जुलाई 1896 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान

15 अप्रैल, 1896 -- वापस लंदन

मई-जुलाई 1896 -- लंदन में धार्मिक कक्षाएँ

28 मई, 1896 -- ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट

30 दिसंबर, 1896 -- नेपल्स से भारत की ओर रवाना

15 जनवरी, 1897 -- कोलंबो, श्रीलंका आगमन

6-15 फरवरी, 1897 -- मद्रास में

19 फरवरी, 1897 -- कलकत्ता आगमन

1 मई, 1897 -- रामकृष्ण मिशन की स्थापना

मई-दिसंबर 1897 -- उत्तर भारत की यात्रा

जनवरी 1898 -- कलकत्ता वापसी

19 मार्च, 1899 -- मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना

20 जून, 1899 -- पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा

31 जुलाई, 1899 -- न्यूयॉर्क आगमन

22 फरवरी, 1900 -- सैन फ्रांसिस्को में वेदांत समिति की स्थापना

जून 1900 -- न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा

26 जुलाई, 1900 -- यूरोप रवाना

24 अक्तूबर, 1900 -- विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा

26 नवंबर, 1900 -- भारत रवाना

9 दिसंबर, 1900 -- बेलूर मठ आगमन

जनवरी 1901 -- मायावती की यात्रा

मार्च-मई 1901 -- पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा

जनवरी-फरवरी 1902 -- बोधगया और वारणसी की यात्रा

मार्च 1902 -- बेलूर मठ में वापसी

4 जुलाई, 1902 -- महासमाधि

[संपादित करें]सन्दर्भ

  1.  Aspects of the Vedanta, p.150
  2.  Dutt, Harshavardhan (2005), Immortal Speeches, New Delhi: Unicorn Books, p. 121, ISBN 978-81-7806-093-4
  3.  The Cyclonic Swami - Vivekananda in the West

[संपादित करें]इन्हें भी देखें

[संपादित करें]बाह्य सूत्र

No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk