उलटा बांस बरेली को,झांसे में न आयें,अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाने के पक्ष में रंगराजन!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
समायोजित विकासगाथा की चमकदार कथा में नया तड़का डाला है प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्याक्ष ने।एकदम बाराक ओबामा की तर्ज पर अमीरों पर टैक्स लगाने की पेशकश!हर साल पूंजीपतियों को लाखों रुपये करों में छूट, लाखों रुपए रियायतें देकर भुगतान संतुलन बनाये रखने के लिए विदेशी कर्ज लेने वाली सत्ता अब सुधारों के अश्वमेध यज्ञ के संवेदनशील मौके पर गरीब जनता पर मेहरबान हुई है। बाजार के विस्तार के लिए सामाजिक योजनाओं पर सरकारी खर्च और कारपोरेट सरोकार की तरह मजेदार है यह शगूफा। भारतीय अर्थव्यवस्था शुरु से अल्पसंख्यक सत्तावर्ग को करों से हर तरह की राहत देकर सारा बोझ गधों की तरह गरीब और बहिष्कृत बहुसंख्यक जनता पर डालकर कालाधन प्रणाली में तब्दील है, जहां पूंजीपतियों को न केवल विदेशी बैंकों में खाता खोलने की छूट है, बल्कि अबाध पूंजी प्रवाह के नाम पर इसी काले धन को देश में विदेशी निवेश बतौर लगाने की इजाजत है। गार को लेकर हुए नाटक को भूल गये?गरीबों के लिए जरुरी अनाज, शिक्षा, चिकित्सा, आवास व परिवहन सेवाएं, ईंधन, आवास, बिजली मंहगी करके, सब्सिडी खत्म करके अमीरों पर टैक्स कैसे लगायेगी सरकार?मस्तिष्क नियंत्रण में पारंगत सत्ता के बोल बोलने वाले अर्थशास्त्री अब कौन सा सपना बेचने लगे हैं?उदित भारत के बाद गुजरात में विकास का बवंडर खड़ा करने वाले अर्थशास्त्र के पिटारे से कौन सा ब्रह्मास्त्र निकलने वाला है, यह तो समय ही बतायेगा बहरहाल प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रेजिडेंट सी. रंगराजन ने अमीरों पर ऊंची दर से टैक्स लगाने की वकालत करते हुए कहा कि आगामी बजट में ज्यादा इनकम वाले व्यक्तियों पर सरचार्ज लगाने की संभावनाएं टटोली जा सकती हैं।हकीकत यह है कि कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि सरकार हर महीने थोड़ा-थोड़ा करके डीजल महंगा करने वाली है। और अब जल्द ही इस पर फैसला लिया जा सकता है। साथ ही सरकार सब्सिडी वाले सिलिंडरों की संख्या भी बढ़ा सकती है। पेट्रोलियम उत्पादों के दाम बढ़ाने को लेकर बनी केलकर कमेटी की सिफारिशों को माना जा सकता है।दाम बढ़ाने के प्रस्ताव को कैबिनेट के पास भेजने की तैयारी है। हालांकि, पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली का कहना है कि दाम बढ़ाने को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है।वित्त मंत्रालय द्वारा गठित केलकर कमेटी ने डीजल डीरेगुलेशन और दाम बढ़ाने की सिफारिश की है। हालांकि केलकर कमेटी की सिफारिशों पर अब तक अंतिम फैसला नहीं लिया गया है लेकिन माना जा रहा है कि जल्द ही डीजल और एलपीजी के दाम बढ़ाए जा सकते हैं।पेट्रोलियम मंत्री का कहना है वो जल्द ही डीजल के दाम बढ़ाने को लेकर कैबिनेट के पास प्रस्ताव भेजेंगे।
देश की अर्थव्यवस्था को नरमी की राह से तेजी की ओर मोड़ना और भारतीय बाजार के प्रति निवेशकों का भरोसा बहाल करना नए साल में सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।उम्मीद है कि वित्त मंत्री पी़ चिदंबरम अगले बजट में निवेशकों के अनुकूल कुछ नए उपाय करेंगे, ताकि अर्थव्यवस्था को फिर से तेजी की राह पर वापस लाने में मदद मिल सके। लोकिन मजा यह है कि अमेरिका की तर्ज पर हो सकता है कि इस साल बजट में सरकार अमीरों पर इनकम टैक्स बढ़ा दे। दरअसल ये चर्चा अब चल निकली है कि क्या सिर्फ खर्चों में कटौती से ही सरकार अपना वित्तीय घाटा कम कर सकती है।'फाइनैंशल इनक्लूज़न' पर आयोजित एक सेमिनार में रंगराजन ने कहा, 'अभी जो टैक्स स्लैब है उसे छेड़ने की जरूरत नहीं है। लेकिन एक सीमा से ज्यादा कमाई करने वालों पर सरचार्ज लगाया जा सकता है। आने वाले दिनों में हमें और रेवेन्यू की जरूरत होगी। मेरा मानना है कि ज्यादा कमाई करने वाले इसमें ज्यादा योगदान करने को तैयार होंगे।'रंगराजन मानते हैं कि सरकार को अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाना चाहिए। काफी ज्यादा कमाने वालों पर सरकार को अलग टैक्स स्लैब बनाकर 30 फीसदी से ज्यादा टैक्स लगाना चाहिए। रंगराजन के मुताबिक टैक्स रेट में बढ़ोतरी कर सरकार को घाटे की भरपाई करनी चाहिए। सिर्फ खर्च कम कर वित्तीय घाटा काबू होना मुश्किल है।
वैश्विक कारकों को देखते हुए अर्थव्यवस्था को तेजी की पटरी पर लाना सरकार और रिजर्व बैंक दोनों के लिए ही चुनौतीपूर्ण है और इसमें समय लग सकता है। चिदंबरम पहले ही कह चुके हैं कि राजकोषीय स्थिति को ठीक करने और अर्थव्यवस्था की राह में अड़चने दूर करने के लिए कड़वी दवाइयों की जरूरत है। पर रंगराजन का यह सुझाव 2013-14 की बजट तैयारियों से पहले आया है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने बजट की तैयारियों के सिलसिले में अलग-अलग समूहों से विचार-विमर्श का सिलसिला शुरू किया है। भारत में इनकम पर टैक्स तीन स्तरों में लगता है- दस, बीस और 30 प्रतिशत। इनकम टैक्स की ये दरें 1997 में उस समय भी वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने ही तय की थी।सिर्फ यही नहीं रंगराजन ने डिविडेंड पर फिर टैक्स लगाने की वकालत की है। रंगराजन मानते हैं कि अभी डिविडेंड पर कंपनियां जो टैक्स देती हैं वो काफी कम है। ऐसे में डिविडेंट पर कम से कम 16 फीसदी टैक्स लगना चाहिए।फिलहाल 2 लाख रुपये की आय पर कोई टैक्स नहीं लगता। 2-5 लाख रुपये की आय पर 10 फीसदी और 5-10 फीसदी पर 20 फीसदी टैक्स देना होता है। 10 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई होने पर टैक्स की दर 30 फीसदी है।
मजे की बात है कि हाल में इकॉनमिस्ट राजा चेलैया के सम्मान में आयोजित व्याख्यान में चिदंबरम ने भारत में विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स लगाए जाने पर बहस का आह्वान किया था। उन्हें इस तरफ भी इशारा किया कि कुछ लोगों के हाथों में जमा अकूत संपत्ति की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। इसी हफ्ते अमेरिकी संसद ने अमेरिका के बड़े अमीरों पर टैक्स बढ़ाने के पक्ष में मतदान किया ताकि राजकोषीय असंतुलन के संकट से उबरा जा सके। अमेरिकी कानून में एक व्यक्ति द्वारा 4,00,000 डॉलर सालाना और किसी दंपती द्वारा 4,50,000 डॉलर सालाना से ज्यादा की इनकम पर टैक्स बढ़ाया गया है।
पी़ चिदंबरम ने वादा किया है कि कर कानूनों में स्पष्टता, एक स्थायी कर व्यवस्था, विवाद निपटान की एक निष्पक्ष प्रणाली और एक स्वतंत्र न्यायिक व्यवस्था से निवेशकों का भरोसा बढता है। वित्त मंत्रालय ने ढांचागत क्षेत्र पर खर्च में तेजी लाने के उपायों के तहत सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को अपना खर्च बढ़ाने और निजी क्षेत्र के निवेश के रास्ते आ रही अड़चनों को दूर करने को कहा है। निवेशकों की चिंताओं पर गौर करते हुए चिदंबरम ने कहा कि भागीदारों के विचारों और शोम समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए कानूनों में बदलाव किए जाएंगे। शोम समिति ने कर परिवर्जन रोधी नियम (गार) का क्रियान्वयन अप्रैल, 2016 तक टालने की सिफारिश की है।
इसके उलट भारतीय रिजर्व बैंक आने वाले महीनों में अपनी नीतिगत ब्याज दरों जैसे रेपो रेट और सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में कमी करेगा। पूरे देश में 20 फीसदी बढ़ सकता है बिजली बिल!इस साल बिजली बिल में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। पावर सेक्टर मुश्किलों का सामना कर रहा है। ऐसे में सरकार इसके लिए जरूरी प्राइसिंग रिफॉर्म्स की रफ्तार तेज बनाए रखना चाहती है।यहा नहीं,सरकार ने पावर कंपनियों को कोल ब्लॉक ऐलोकेशन में डिस्काउंट देने का फैसला किया है। कोल सेक्रेटरी एस के श्रीवास्तव ने बताया कि इन कोल ब्लॉक्स का ऑक्शन कुछ महीनों में शुरू होने वाला है। हालांकि, डिस्काउंट रेट के बारे में कोल मिनिस्ट्री ने अब तक फैसला नहीं किया है। इस बारे में मिनिस्ट्री राज्य सरकारों से सलाह-मशविरा कर रही है। कोयले की नीलामी से हासिल रकम राज्य सरकारों को ही मिलेगी। श्रीवास्तव ने बताया कि इलेक्ट्रिसिटी टैरिफ कम रखने का फैसला हो चुका है। राज्य सरकार समेत सभी संबंधित पक्ष इस पर मान गए हैं। उन्होंने बताया, 'पावर सेक्टर कंपनियों को डिस्काउंट देने का फैसला किया गया है, नहीं तो बिजली टैरिफ में बढ़ोतरी हो सकती है। अब सवाल यह है कि बिजली कंपनियों को कितना डिस्काउंट देना है। इस अभियान में राज्य सरकारें भी शामिल हैं। इसलिए उनके रेवेन्यू और पावर टैरिफ के बीच बैलेंस होना चाहिए।'पावर सेक्टर के लिए तय ब्लॉक्स राज्य सरकारों को दिए जाएंगे, जो उन कंपनियों को माइंस देंगी, जो सबसे कम बिजली टैरिफ कोट करेगी। पावर कंपनियों हर ब्लॉक के लिए 'रिजर्व प्राइस' का भुगतान करेंगी। कोल मिनिस्ट्री इसी प्राइस पर डिस्काउंट देने की योजना बना रही है। क्रिसिल इंफ्रास्ट्रक्चर अडवाइजरी की सिफारिश के बाद सरकार ने पावर कंपनियों का डिस्काउंट देने का फैसला किया है। क्रिसिल इंफ्रास्ट्रक्चर अडवाइजरी कंसल्टिंग फर्म है, जिसे कैप्टिव कोल माइंस की कीमत तय करने के लिए कोल मिनिस्ट्री ने अपॉइंट किया है। क्रिसिल इंफ्रास्ट्रक्चर अडवाइजरी ने हर ब्लॉक की कीमत किसी प्रॉजेक्ट के कैश फ्लो के अनुमान के हिसाब से तय करने की सिफारिश की है। इसके तहत 30 साल की माइनिंग वैल्यू का पता लगाने के लिए अनुमानित कैश फ्लो को अनुमानित कैपिटल कॉस्ट से अजस्ट करने की सलाह दी गई है।
कोल ब्लॉक्स के प्राइस कैलकुलेशन के सिस्टम के बारे में क्रिसिल ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा है, 'भारत की ऊर्जा जरूरतें तेजी से बढ़ रही हैं। 2011-12 में पीक लोड सप्लाई डिमांड डेफिसिट 10.6 फीसदी था। इलेक्ट्रिसिटी कॉस्ट में किसी भी बढ़ोतरी का असर इनफ्लेशन और देश की इकनॉमी पर पड़ेगा। ऐसे में सरकार बिजली की दरें कम रख सकती है।' कोल मिनिस्ट्री के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि सरकारी कंपनियों के लिए कोल ब्लॉक ऐलोकेशन इस फाइनैंशल इयर के खत्म होने से पहले शुरू हो सकता है। मंत्रालय ने प्राइवेट और सरकारी कंपनियों के लिए 54 कोल ब्लॉक्स की पहचान की है, जिनमें 1800 करोड़ टन से भी ज्यादा कोयला है।
देश की आर्थिक वृद्धि दर जनवरी-मार्च तिमाही (2012) में घटकर 5.3 प्रतिशत पर आ गई, जिससे वर्ष 2011-12 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर घटकर महज 6.5 प्रतिशत रही।पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और उनके बाद पी़ चिदंबरम द्वारा आर्थिक वृद्धि दर में तेजी लाने के गंभीर प्रयास किए जाने के बावजूद अप्रैल-जून,12 की तिमाही में वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत रही और जुलाई-सितंबर तिमाही में यह फिर घटकर 5.3 प्रतिशत पर आ गई।अर्थव्यवस्था में नरमी का रुख जारी रहने की वजह से रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय दोनों ने ही वृद्धि दर के अपने अपने अनुमान घटा दिए। जहां रिजर्व बैंक ने 2012-13 के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया है, वित्त मंत्रालय ने इसे 5.7 से 5.9 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान जताया है।देश में लागू की गई आर्थिक नीतियों में भी स्थिरता का रुख देखा जा रहा है, जबकि बीते साल गार (जनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स) समेत अनेक विवादों ने देसी-विदेशी निवेशकों के भरोसे को हिलाकर रख दिया है। यह परिवर्तन भी आने वाले महीनों में भारतीय मुद्रा की चाल को बेहतर करने में मददगार साबित होगा। रिजर्व बैंक महंगाई पर लगातार प्रहार कर रहा है। इस मोर्चे पर कुछ-कुछ सफलता भी मिलती दिख रही है।विश्लेषकों का मानना है कि अगले साल रुपये को बूस्ट करने में यह भी सहायक साबित होगा। जहां तक अंतरराष्ट्रीय हालात का सवाल है, इसमें भी सुधार होने की उम्मीद जताई जा रही है। मसलन, अमेरिका में फिस्कल क्लिफ का खौफ आने वाले महीनों में पूरी तरह से खत्म हो सकता है क्योंकि इसके लिए अमेरिकी कांग्रेस में कवायद जारी है। यूरो जोन के कर्ज संकट को खत्म करने के लिए भी नए सिरे से प्रयास किए जाने की चर्चाएं हैं। इसमें सफलता मिलने की स्थिति में निश्चित रूप से भारतीय मुद्रा में भी नई जान आएगी।
विश्लेषकों के मुताबिक, यह माना जा रहा है कि सरकार द्वारा हाल के महीनों में लागू किए गए अनेक आर्थिक सुधारों से घरेलू इकोनॉमी के विकास को नई रफ्तार मिलेगी। दरअसल, देश में लंबे समय से जारी नीतिगत शिथिलता पर अब विराम लग गया है।केंद्र सरकार राजकोषीय घाटे में कमी के लिए प्रयासरत है। इसके लिए डीजल की मूल्यवृद्धि और सब्सिडी के डायरेक्ट कैश ट्रांसफर समेत अनेक कदम भी उठाए गए हैं। इकॉनमी रिफॉर्म में तेजी लाने में जुटी केंद्र सरकार तीन अहम फैसले केंद्रीय बजट से पूर्व लेना चाहती है। उसकी मंशा इन तीन अहम फैसलों को बजट बाद लागू करने की है ताकि इकॉनमी और मार्केट में तेजी और रफ्तार पकड़ सके। ये फैसले हैं, बैंकिंग सेक्टर में सुधार के तहत नए बैंकों के लाइसेंस देना। दूसरा है, गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स पर सहमति बनाकर इसे लागू करना। तीसरा है डायरेक्ट टैक्स कोड को लागू करना।
नए बैंकिंग लाइसेंस अप्रैल से: वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार बैंकिंग सुधार को जल्द लागू करना चाहती है। इसके लिए उसने रिजर्व बैंक को नए बैंक स्थापित करने के लिए दिशा-निर्देश जनवरी के अंत जारी करने को कहा है ताकि बजट की घोषणा के पूर्व दिशा-निर्देश जारी कर दिए जाएं। नए बैंक लाइसेंस देने की प्रक्रिया अप्रैल से शुरू हो सके।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के अनुसार नए बैंक लाइसेंस से संबंधित जो भी सुझाव वित्त मंत्रालय के पास आये थे, उसे हमने रिजर्व बैंक को भेज दिया। अब रिजर्व बैंक को इनको ध्यान में रखते हुए दिशा-निर्देश जारी करना है। सूत्रों के अनुसार रिजर्व बैंक इस माह के अंत तक दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। ऐसा होने पर ही इस पर सहमति बनाकर अगले वित्त वर्ष के आरंभ यानी अप्रैल से इसे लागू करने में सुविधा होगी।
जीएसटी पर सहमति: जीएसटी पर सहमति का प्रयास जोरों पर हैं। राज्यों के वित्त मंत्रियों की उच्चाधिकारी समिति इस माह के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंप सकती है। सूत्रों के अनुसार राज्यों को दो शर्तों के आधार पर मना लिया गया है। पहली शर्त है कि सरकार जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों की आमदनी में नुकसान होने पर उसकी सौ प्रतिशत भरपाई करेगी। दूसरी अहम बात है कि राज्यों पर इसे लागू करने का दबाव नहीं बनाया जाएगा। राज्यों को जब ठीक लगे, वे इसे तभी लागू कर सकेंगे।
डीटीसी को लागू को तैयारी: पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की संसदीय स्थाई समिति ने डीटीसी पर अंतिम रिपोर्ट में फरवरी के पहले हफ्ते में दी थी। यही कारण है कि बजट से पूर्व इस पर कोई फैसला नहीं हो सका। मगर इस बार वित्त मंत्री चिदंबरम इसको अगले वित्त वर्ष से लागू करने की तैयारी में हैं। इसमें डिमांड के मुताबिक इसमें कुछ संशोधन किये गए। पर साथ में कुछ बातों पर विपक्षी पार्टियों को मनाया जा रह है। यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर बात नहीं तर्कसंगत नहीं लगी तो बाद में इसमें बदलाव कर लिया जाएगा।
शेयर बाजार में सूचीबद्ध सार्वजनिक क्षेत्र की तकरीबन 10 कंपनियों (पीएसयू) में अगस्त 2013 तक कम से कम 10 फीसदी शेयरों का विनिवेश हो जाएगा। इस मकसद से चालू वित्त वर्ष के लिए तो कार्ययोजना बना कर काम किया ही जा रहा है, अलगे वर्ष के लिए भी तैयारी शुरू हो गई है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय में विनिवेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक वर्ष 2012-13 के लिए बनाई गई कार्ययोजना (एक्शन प्लान) के मुताबिक काम चल रहा है। उनके मुताबिक बाजार नियामक सेबी का निर्देश सबके लिए मान्य है और इसमें सरकारी कंपनियों के लिए कहीं कोई छूट नहीं है।
इसी को सरकार भी मान रही है। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (एचसीएल) का थोड़ा विनिवेश हुआ है, दो-तीन फीसदी और विनिवेश बचा है जिसे अगले वित्त वर्ष में अंजाम दिया जाएगा। फिलहाल एमएमटीसी लिमिटेड के विनिवेश की तैयारी चल रही है जिसे मार्च से पहले पूरा कर लिया जाएगा। इस बार विनिवेश से उसमें 10 फीसदी की सीमा पूरी हो जाएगी।
एक अन्य अधिकारी के मुताबिक एमएमटीसी के लिए बैंकर की नियुक्ति हो गई है। इसमें सवा नौ फीसदी के विनिवेश का प्रस्ताव है। हालांकि एनटीपीसी में पहले से ही अनिवार्य 10 फीसदी की विनिवेश सीमा पूरी हो चुकी है लेकिन चालू वर्ष के दौरान इसमें भी विनिवेश का प्रस्ताव है जिसके लिए अगले सप्ताह बैंकर की नियुक्ति हो जाएगी। उनके मुताबिक इस वर्ष पिछले साल के मुकाबले पूंजी बाजार का माहौल बेहतर है इसलिए निनिवेश कार्यक्रम में कोई अड़चन नहीं आएगी।
उन्होंने बताया कि इस बारे में कैबिनेट सेक्रेटरी की तरफ से भी भी उन्हें एक पत्र आया है कि लिस्टेड कंपनियों के कम से कम 10' शेयर अगस्त 2013 तक अनिवार्य रूप से पब्लिक के पास चले जाएं। इससे कितने पैसे सरकार को मिलेंगे, इस सवाल पर उन्होंने कुछ भी बताने से अनभिज्ञता जाहिर की। उनके मुताबिक जिस समय शेयर बेचे जाएंगे, उस समय उसकी बाजार में क्या कीमत होगी, उसी से यह पता चलेगा कि सरकार को कितने पैसे मिलेंगे।
विनिवेश से मिलेंगे 76 अरब
निजी कंपनियों में जून 2013 तक प्रमोटरों की हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी पर लाने और सरकारी कंपनियों में इसे अगस्त 2013 तक घटाकर 90 फीसदी पर लाने की योजना पर कुछ कंपनियों ने काम शुरू कर दिया है। इस कड़ी में सरकार अगर अपनी कंपनियों में मौजूदा शेयर भाव पर हिस्सेदारी घटाती है तो उसे 7,646 करोड़ रुपये इससे मिलेंगे।
'बिजनेस भास्कर' के लिए विशेष तौर से इन कंपनियों पर एसएमसी ग्लोबल ने विश्लेषण किया है। एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज के जगन्नाधम थुनुगुंटला कहते हैं कि कुल 11 सरकारी कंपनियां ऐसी हैं, जिसमें सरकारी हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है।
थुनुगुंटला कहते हैं कि इन सभी कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण शुक्रवार के बंद शेयर भावों के आधार पर 106339 करोड़ रुपये बैठता है। इस तरह इसमें हिस्सेदारी घटाने पर सरकार को 7646 करोड़ रुपये मिलेंगे। इसमें से सबसे ज्यादा राशि उसे एमएमटीसी से मिलेगी जो करीब 5997 करोड़ रुपये होगी। नेवेली लिग्नाइट से 489 करोड़ रुपये, एचएमटी से 279 करोड़ रुपये मिलेंगे।
किसमें कितना सरकारी हिस्सा
एमएमटीसी 99.33'
एचएमटी 98.88'
एफएसीटी 98.56'
नेशनल फर्टिलाइजर 97.64'
स्कूटर्स इंडिया 95.38'
नेवेली लिग्नाइट 93.56'
एंड्रयू यूल एंड कंपनी 93.30'
आईटीआई 92.98'
आरसीएफ 92.50'
आईटीडीसी 92.11'
एसटीसी 91.02'
(स्रोत: एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज)
दिल्ली, एनसीआर में सीएनजी 4% महंगी हुई
राजधानी दिल्ली और उससे सटे नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद में आज से सीएनजी की कीमत 4 फीसदी बढ़ गई हैं। नए रेट के मुताबिक अब दिल्ली में सीएनजी की कीमत प्रति किलो 39.90 रुपये और नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद में प्रति किलो 45.10 रुपये होगी।
दिल्ली एनसीआर में सीएनजी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के मुताबिक, सीएनजी की कीमतों में बढ़ोतरी का फैसला लागत बढ़ने और आर-एलएनजी का आयात मंहगा होने की वजह से किया गया है।
कंपनी का कहना है कि 2011 से उसे केजीडी6 से गैस नहीं मिल रही है लिहाजा उसे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आर-एलएनजी आयात करनी पड़ रही है। जिसकी कीमत घरेलू गैस से काफी ज्यादा है।
पावर सेक्रेटरी पी उमा शंकर ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि सभी लेंडिंग और रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम्स स्टेट डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के टैरिफ में बढ़ोतरी से जोड़ी गई हैं। उन्होंने कहा, 'डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के लिए लॉन्च होने वाले सभी प्रोग्राम में टैरिफ में बढ़ोतरी योग्यता की अहम शर्त है। हमारा मकसद कॉस्ट और रेवेन्यू में अंतर खत्म कर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को कैश पॉजिटिव बनाना है।'
एक्सपर्ट्स का कहना है कि रिफॉर्म प्रोसेस को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के चलते झटका लग सकता है। हालांकि, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की कई डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों ने रेग्युलेटर्स के पास 2013-14 के लिए अपने टैरिफ रिवीजन प्लान पहले ही जमा कर दिए हैं। कुछ जल्द ही ऐसा करेंगी।
टैरिफ बढ़ने से पावर सेक्टर को मजबूती मिलेगी। इससे डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को घाटे से बाहर आने में मदद मिलेगी और वे पावर जेनरेशन कंपनियों को समय पर पेमेंट कर पाएंगी। इससे पावर सप्लाई भी बेहतर होगी क्योंकि स्टेट डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां खराब वित्तीय सेहत की वजह से जेनरेशन कंपनियों से ज्यादा बिजली लेने के बजाय अक्सर पावर कट का रास्ता चुनती हैं। दिल्ली की पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के टैरिफ में 5 फीसदी बढ़ोतरी की उम्मीद है। इन्हें पिछले नुकसान की भरपाई के लिए 15-20 फीसदी के सरचार्ज की जरूरत होगी।
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के एग्जेक्युटिव डायरेक्टर एस महापात्र ने कहा कि ज्यादातर राज्यों में पावर टैरिफ 18-20 फीसदी बढ़ेगा। इसकी वजह स्टेट डेट रीस्ट्रक्चरिंग प्लान के तहत किए वादे, पिछले घाटे को कवर करना और महंगे फ्यूल की वजह से लागत बढ़ना है। शंकर का कहना है कि पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के पास हरेक साल टैरिफ बढ़ाने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। मिनिस्ट्री के किसी भी प्रोग्राम के लिए योग्य होने की यह अहम शर्त है। पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के अभी तक जमा हो चुके 1.9 लाख करोड़ रुपए के घाटे को खत्म करने के लिए डेट रीस्ट्रक्चरिंग पैकेज लॉन्च किया गया है। इसकी शर्तों के तहत डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को हर साल टैरिफ रिवाइज करना होगा। स्कीम के तहत डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां तभी ग्रांट के योग्य होंगी, जब वे ऐवरेज कॉस्ट ऑफ सप्लाई (एसीएस) और ऐवरेज रेवेन्यू रियलाइजेशन (एआरआर) में गैप सालाना 25 फीसदी घटाएंगी।
इंडस्ट्री के मुताबिक, 2012-13 में यह गैप 58 पैसे प्रति यूनिट का था। शंकर ने बताया कि झारखंड, हरियाणा और तमिलनाडु सहित 6-7 'फोकस राज्यों' ने बेलआउट पैकेज में हिस्सा लेने की हामी भरी है। देश में पिछले साल कई राज्यों में बिजली दरें बढ़ाई गई थीं। इलेक्ट्रिसिटी के लिए अपेलेट ट्राइब्यूनल ने स्टेट डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को हर साल 1 अप्रैल तक टैरिफ रिवीजन पिटिशन दाखिल करने को कहा था। इसके बाद राज्यों ने बिजली के दाम बढ़ाने शुरू कर दिए थे। ट्राइब्यूनल के ऑर्डर में कहा गया था कि अगर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं, तो राज्यों के रेग्युलेटर्स को यह प्रोसेस शुरू करना होगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था को झटका देने में कालाधन का अहम योगदान है। राजनेताओं और सरकार को चिंतित करने के लिए ये खबर काफी है। भारत से केवल 2010 में 1.6 बिलियन डालर पैसा बाहर गया। एक दशक की बात करें तो 123 बिलियन डालर पैसा कालेधन के रूप में देश से निकल गया।
एक दशक में सबसे ज्यादा कालाधन बाहर जाने वाले देशों की सूची में भारत का स्थान आठवां है। वाशिंगटन स्थिति ग्लोबल फाइनेंस इंटिग्रिटी के एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन, मैक्सिको, मलेशिया, सउदी अरब, रूस, फिलीपिन्स और नाईजीरिया के बाद सबसे ज्यादा पैसों का प्रवाह हमारे ही देश में है।
विकासशील देशों का अवैध वित्तीय प्रवाह 2001-2010 शीर्षक नाम से प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक सभी अविकसित और विकासशील देशों द्वारा कालाधन प्रवाह की बात करें तो करीब ़858.8 बिलियन डालर केवल 2010 में बाहर चला गया ।
2008 में ग्लोबल मंदी के दौरान 871.3 बिलियन डालर कालाधन बना जिससे ये 2010 का साल महज थोड़ा ही कम है।
जीएफआई के डाइरेक्टर रेमंड बेकर के मुताबिक एक तरफ जहां भारत का विकास हो रहा हैं वहीं दूसरी तरह इस सालों में भारत ने कालाधन के रूप में लगातार अपनी संपदा खोया है।
कालाधन वापस लाने का मुद्दा मीडिया में अत्यधिक छाया रहा। लेकिन चर्चा उन बातों पर हो रही थी जो कि पैसा चला गया है। अब कानून बनाने वालों का ध्यान इस पर होना चाहिए कि अब पैसा बाहर नहीं जा पाए। इस रिपोर्ट के सह लेखक और जीएफआई के मुख्य आर्थिक विशेषज्ञ देव कर कहते हैं ़123 बिलियन डालर का नुकसान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भारी नुकसान है. यह भारत के विकास के लिए पर्याप्त धन था। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के विकास में अहम योगदान हो सकता था।
जीएफआई के नवंबर के 2010 के अंक में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक 1948 से 2008 बीच ़462 बिलियन डालर का नुकसान भारत को उठाना पड़ा है। जीएफआई ने विश्व के नेताओं से अंतरराष्ट्रीय फाइनेंसियल व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की मांग की है ताकि अवैध धन के प्रवाह को रोका जा सके।
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जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।
#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি
अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास
ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?
Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
______________________________________________________
By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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