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Saturday, October 10, 2015

रावत भट्टा परमाणु रिएक्टर की तबाही

रावत भट्टा परमाणु रिएक्टर की तबाही

सुनील कुमार

रावत भट्टा राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में है। रावत भट्टा से करीब आठ कि.मी. की दूरी पर थमलाव गांव के पास देश का दूसरा परमाणु विद्युत संयंत्र का पहला रिएक्टर1973 में शुरू हुआ। अब तक वहां पर छः परमाणु रिएक्टर बन कर चालू हो चुका है। रिएक्टर सात और आठ का काम चालू है। रिएक्टर नं. एक 2014 से बंद हैबाकी 5रिएक्टर से करीब 1000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। इसके आस-पास थमलावझरझनीदीपपुरामालपुराबक्षपुरा जैसे और कई छोटे-बड़े गांव हैं जिसकी परमाणु रिएक्टर से एरियल दूरी 5-6 कि.मी. के अन्तर्गत है। इस क्षेत्र की आबादी मुख्यतः खेती और मजदूरी पर निर्भर है। यहां का मुख्य उपज मक्कासोयाज्वार-बाजरा है। शिक्षा का स्तर बहुत ही निम्न है। इन ईलाकों से बहुत कम लोग ही राजस्थान से बाहर काम के लिये जाते हैं। यहां पर आधी आबादी के पास घर के नाम पर एक झोपड़ी है और चौथाई के पास समान के नाम पर घर में एक या दो टूटी हुई खाट है। खासकर भील समुदाय की स्थित बहुत ही दयनीय है।

थमलाव के शैलेन्द्र बताते हैं कि यहां परमाणु रिएक्टर बन रहा था तो लोग खुश थे कि इससे उनको रोजगार मिलेगा। उस समय तक लोगों में परमाणु रिएक्टर से होने वाले नुकसान की भी जानकारी नहीं के बराबर थी। लोगों ने इसलिए शुरूआती दिनों में इसको खुशी-खुशी अपनाया। परमाणु रिएक्टर बन कर चालू हुआबिजली बनने लगे लेकिन उसमें गांव वालों को स्थायी रोजगार नहीं मिला। जब रिएक्टर तीन और चार बन रहा था तब भी गांव वालों को आशा थी कि इनमें स्थायी रोजगार मिलेगा। तीन और चार रिएक्टर चालू हो गया लेकिन इनमें भी गांव वालों को रोजगार नहीं मिला। दस सालों में रिएक्टर से निकलने वाले रेडियेशन से लोगों के जीवन पर प्रभाव पड़ने लगा। लोगों में कई तरह की नई-नई बीमारी फैलने लगीं। काम करते हुए कई लोग रेडियेशन की चपेट में आ गये और उनकी मृत्यु हो गई। रिएक्टर पांच और छः बनना शुरू हुआ तो लोग संगठित होकर परमाणु विद्युत संयत्र के खिलाफ आवाज उठाने लगे। पांच और छः रिएक्टर भी 2010 में शुरू हो गया और लोगों को स्थायी काम नहीं मिला। उनको ठेकेदारी के तहत ही रिएक्टर में काम मिल पाया। अब गांव के और नजदीक रिएक्टर सात और आठ बन रहा है जिससे थमलाव गांव के लोगों में डर है कि वे विस्थापित हो जायंेगे। 

रिएक्टर के आस-पास के गांव वालों के लिए यहां पर बेलदारीड्राइबरीमिस्त्रीबेलडर,हेल्फर इसी तरह का काम मिलता है जिसमें पुरुष और महिला दोनों जाते हैं। इन गांवों की दो पीढि़यां इसी तरह की काम करती आई हैं लेकिन उनको स्थायी रोजगार नहीं मिला। चालू प्लांट में कुछ लोगों को नौकरी मिली भी तो ठेकेदारी के तहत। वे वर्षों से काम करते आये है लेकिन आज तक उनको स्थायी नहीं किया गया। ठेकेदार बदल जाते हैं लेकिन मजूदर वही रहते हैं। इन ठेकेदारी मजदूरों की मजदूरी कम होती है लेकिन सबसे खतरनाक काम इनसे करवाया जाता है। प्लांट के अन्दर जब कोई रिएक्टर शट डाउन होता है (जब रिएक्टर में बिजली उत्पादन रोककर मशीनोंकचरों की सफाई होती है) तब मजदूरों की मांग और बढ़ जाती है। उस समय मजदूरों को थोड़ा ज्यादा पैसा देकर (200 रू. की जगह 300 रू. या 7000 रू. प्रति माह की जगह 10000 रू. प्रति माह) उनसे जरूरत से ज्यादा समय तक काम करवाया जाता है। अगर कम्पनी द्वारा 30मिनट अन्दर रहकर काम करवाने की परमिट दी जाती है तो ठेकेदार उसको 90 से 100मिनट काम करने के लिए बाघ्य करते हैं। कम्पनी द्वारा टी.एल.डी.डोजो मीटर दिया जाता है जिससे उनको पता चल सके कि कितने खतरे पर काम करते हैं। उसको अन्दर जाने से पहले एयर लॉक पर ठेकेदार का सुपरवाईजर इस मशीन को ले लेता है। एन.पी.सी.एल. (न्यूक्लियर पॉवर कारपारेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड) का सुपरवाईजर बाहर ही रूक जाता है। टी.एल.डी. की रीडिंग के लिए बाम्बे भेजा जाता है। रीडिंग के बाद कभी भी मजदूरों को इसकी जानकारी नहीं दी जाती है। थमलाव के राजकुमार बताते हैं कि वे रिएक्टर 5-6 में 6 साल से काम कर रहे हैं जहां पर उनको 250 रू0प्रतिदिन के हिसाब से पैसा मिलता है। वे बताते हैं कि जहां ज्यादा रेडियेसन होता है वहां रबड़ और प्लास्टिक का गलप्स और सूट पहन कर जाना होता है। इस सूट को पहनने से काम की स्पीड कम होती है तो ठेकेदार का सुपरवाईजर दबाव देता है कि गलप्स खोल कर काम करो। इस तरह काम करते हुए कई मजदूर रेडिएशन के शिकार हुये और उनकी कुछ दिनों बाद मृत्यु हो गई।

ऐसी ही एक घटना थमलाव के सिक्ख परिवार में हुई जिसको रेडियेशन लगने के बाद कम्पनी व ठेकेदार द्वारा अस्पताल नहीं जाने दिया गया। उसको घर भेज दिया गया और3-4 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। यह घटना कहीं दर्ज नहीं हुईन ही उस पीडि़त परिवार को कोई मुआवजा दिया गया। इसी पीडि़त परिवार का एक लड़का कम्पनी के अन्दर एक्सीडेंट में मारा गया। इसी तरह की घटना कम्पनी के अन्दर आये दिन घटती रहती है। 23 जून, 2012 को प्लांट के अन्दर रिसाव होने से 38 मजदूर रेडिएशन के शिकार हो गये।

प्रेमशंकरजिनकी उम्र 24 साल हैझरझनी गांव के रहने वाले हैं। वह 2010 में प्लांट नं. 5-6 में ठेकेदार ललित छाबड़ा के पास सफाई का काम किये। प्रेमशंकर को उस समय 73 रू. प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिलती थी। उसको छोड़कर वह प्लांट 7-8में हिम्मत सिंह ठेकेदार के पास हेल्फर का काम करने लगेजहां उनको 165 रू. मिलती थी। 7 फरवरी, 2012 को प्रेमशंकर नियमित समय से जाकर अपने काम पर लगे थे कि कुछ समय बाद अचानक 36 एम.एम. का सरिया 20 फूट की उंचाई से उनके ऊपर आ गिरा। सरिया गिरते ही काम कर रहे दूसरे मजदूरों को पता चल गया। मजदूरों को आनन-फानन में छुट्टी कर दिया गया। प्रेमशंकर भाग्यवान थे कि उनको यह सरिया सिर पर नहीं लगीनहीं तो यह सरिया उनकी जान ले सकता था। उनको यह सरिया दांये कंधे के नीचे पीठ पर लगी जिससे वह अचेत हो गये। उनको उठा कर कम्पनी के अन्दर डिस्पेन्सरी में ले जाया गयाजहां पर दर्द निरोधक दवा देकर रावत भट्टा के लिए रेफर कर दिया गया। रावत भट्टा में कुछ समय रख कर उनको कोटा रेफर कर दिया गयाजहां पर एक माह तक वह एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती रहे। प्रेमशंकर को किसी तरह का मुआवजा नहीं दिया गया। मुआवजा के बदले उनको यह कहते हुए काम से ही निकाल दिया गया कि अब इससे काम नहीं हो सकता। प्रेमशंकर ने कई बार ठेकेदार और सुपरवाईजर से मिलने की कोशिश की लेकिन उनको गेट पास ही नहीं दिया गया। इस तरह कम्पनी मजदूरों को विकलांग बनाकर काम से बाहर निकाल देती है। प्रेमशंकर बताते हैं कि छोटी-मोटी घटना तो वहां महीने में दो-चार होती ही रहती है,कभी-कभी इससे बड़ी घटना भी होती है। वह बताते हैं कि लोकल थे इसलिए कम्पनी ने उनका ईलाज भी करवा दिया। बाहरी लोगों को कम्पनी ईलाज नहीं करवाती और गम्भीर चोट लगने पर उनको गायब भी कर देती है। 27 मई, 2015 को मोहम्मद अकरम को मार-पीट कर ठेकेदार ने कम्पनी से निकाल दिया जिसकी लिखित शिकायत अकरम ने रावत भट्टा पुलिस स्टेशन में की है।

सामाजिक सरोकार दायित्व के तहत एन.पी.सी.एल. ने गांव में दो या तीन सोलर लैम्प लगवा कर अपनी सामाजिक दायित्व की इति श्री कर ली है। बंजारा बस्ती वन के गंगा राम करीब 20 साल से इस रिएक्टर में काम करते हैं। पहले वह 3-4 में हेल्पर का काम कियाफिर वेल्डर बन गये और अब वह रिएक्टर 7-8 में हिन्दुस्तान कंट्रेक्टर कम्पनी में सुपरवाईजर का काम करते हैं जिसके लिए उन्हें 395 रु. मिलता है। गंगा राम बताते हैं कि एन.पी.सी.एल. रावत भट्टा परमाणु बिजलीघर ने थमलाव के बंजरा बस्ती वन और टू को नवम्बर 2003 से गोद लिया हुआ है। इन दोनों बस्तियों को मिलाकर करीब 130-140 घर बंजारा समुदाय का है। एन.पी.सी.एल. ने 11 साल बाद सितम्बर 2014 में सामाजिक दायित्व को पूरा करने के लिए 1500 मीटर लम्बा सीमेंट-कंक्रीट सड़क का निर्माण बंजरा बस्ती में किया है। बंजारा बस्ती वन में शिक्षा के नाम पर राजकीय प्राथमिक विद्यालय है जहां पर गांव के बच्चे पढ़ने के लिए जाते हैं। आगे की पढ़ाई के लिए दो कि.मी. दूर थमलाव जाना पड़ता हैजहां पर आठवीं तक की पढ़ाई होती है। आठवीं के बाद अगर पढ़ाई जारी रखना है तो रावत भट्टा जाना पड़ता हैजहां आने-जाने के लिए माता-पिता को 30-40 रू. रोज खर्च करने पड़ते हैं। यही कारण है कि आज तक बंजारा बस्ती वन की कोई लड़की दसवीं तक पढ़ाई नहीं कर पायी है। कुछ ही लड़के रावत भट्टा जाकर पढ़ाई कर पा रहे हैं। एन.पी.सी.एल. ने इस गांव के बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई स्कूल नहीं खोला। स्वास्थ्य की हालत यह है कि करूणा ट्रस्ट बंगलौर की सप्ताह में एक दिन दो घंटे के लिए एक मोबाइल डिस्पेनसरी आती है। गम्भीर बीमारी होने पर उनको रावत भट्टा या कोटा खुद के खर्चे पर ईलाज कराना पड़ता है। एन.पी.सी.एल राजस्थान के पास 85 बेड का अस्पताल रावत भट्टा में है। इस अस्पताल में केवल स्थायी कर्मचारियों का ही ईलाज होता है। गोद लिये हुए गांव के किसी व्यक्ति या ठेकेदारी पर काम कर रहे मजदूरों का ईलाज नहीं किया जाता है। एन.सी.पी.एल द्वारा 14 फरवरी, 2005 को बंजारा बस्ती एक में विद्युतीकरण किया गया। लेकिन इस गांव में बिजली की वही हालत है जो कि और गांवों में है। इस बस्ती के लोगों को बिजली बिल का राजस्थान के अन्य गांव जैसे ही भुगतान करना पड़ता है। बिजली की कटौती होती है। खेत के लिए पम्पिंग सेट चलाना है तो रात में वोल्टेज मिलता है तभी चलाया जा सकता है। खेतों को पानी देने के लिए एक तलाब है जो थमलाव गांव के सरपंच की है। इस तलाब से पानी लेने के लिए फसल का आधा पैदावार या 100 रू. प्रति घंटा के हिसाब से भुगतान करने पर खेत को पानी मिलता है। पीने के पानी के लिए गांव से बाहर एक टब लगा हुआ है उससे ही गांव वालों को पानी लाना पड़ता है।

इसी तरह की हालत उस ईलाके के सभी गांवांे के हैं। पीने के पानी के लिए हर गांव में एक या दो टब होते हैं जहां पर एक से दो घंटे ही पानी आता है। पानी लेने के लिए घंटों पहले से लाईन में लगाना होता है तब जाकर कहीं पानी मिलता है। राणा प्रताप सागर बांध कुछ किलोमीटर की ही दूरी पर है जहां पानी की प्रचुर मात्रा होती हैलेकिन इससे इन गांव को पानी नहीं मिलता है। गांव के लोगों का कहना है कि पानी जो आता है वह अच्छा नहीं होता है।

नंदा देवी के पति कृष्णा गेमन इंडिया लिमिटेड में ड्राइवर हैं लेकिन उनको हेल्फर का पैसा मिलता है। नंदा देवी के दो बच्चे हैं जो अनपढ़ हैं। लेकिन वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि गांव में स्कूल और अस्पताल खोला जाये ताकि वे अपने बेटी और बेटे को पढ़ा सकें। थमलाव की काफी महिलाएं 7-8 नम्बर रिएक्टर में बेलदारी का काम किया करती हैं। ये महिलाएं घर का काम करके सुबह 8 बजे घर से निकलती है और शाम 6.30 बजे के करीब घर को आती हैं। घर पर आकर उनको घर का काम निपटाना होता है। इन महिलाओं को 200 या 250 रू0 मजदूरी मिलती है लेकिन इन को कोई छुट्टी नहीं दी जाती है। इन महिलाओं में खून और आयरन की कमी अधिक मात्रा में है।

एन.पी.सी.एल. रावत भट्टा परमाणु बिजलीघर को पानी पहुंचाने के लिए करीब 75 गांवों को डुबोकर 177 फीट ऊंचा राणा प्रताप सागर बांध बनाया गया। इस डूब क्षेत्र के लोग इधर-उधर बिखर गये लेकिन उनमें से करीब 100-150 परिवार झरझनी गांव में रह रहे हैं। इसमें से बहुतों को मुआवजा तक नहीं मिला। परिवार में एक भाई को मुआवजा मिला तो दूसरे को नहीं। इसमंें से अधिकांश लोग रावत भट्टा में बेलदारी का काम कर रहे हैं। इस प्लांट के आस-पास के सभी गांव वालों का कहना है कि सुबह उठने पर पूरे शरीर में दर्द होता हैसामान्य होने में करीब एक घंटा लगता है। इस परमाणु बिजलीघर से न तो उनको बिजली 24 घंटे मिलती है और न ही पीने के लिए पानी मिलता है।

यह रिएक्टर प्लांट भले ही भारत की शहर को रोशनी दे लेकिन इस गांव के भविष्य को अंधेरे में डुबो दिया है। दूसरे को रोशन करने के लिए जिन लोगों की जमीन गईघर गया उनको मिला तो पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए बीमारी। एक बार उजड़ेफिर उजड़ने का डर सता रहा है। इनके बच्चों के भविष्य संवारने के लिए स्कूलअस्पताल की जगह उनको एक ऐसा उपहार मिला है जहां कभी दुर्घटना हो तो उनका भविष्य ही नहीं बचेगा। पानी में उनके गांव को डूबो दिया गया लेकिन पीने को पानी नहीं है। दूसरे को रोशन करने वाले अंधेरे में क्यों रे भाई!




मजदूरों की लाश पर कंस्ट्रकशन

सुनील कुमार

सभी की चाहत होती है कि उसका एक अपना घर हो। लोग रोजगार की तलाश मंे महानगरों और बड़े शहरों की ओर भाग रहे हैं जिससे कुछ शहरों की आबादी में बेतहासा वृद्धि हो रही है। यही कारण है कि महानगरों में ज्यादा लोग किराये के मकान में रहते हैं। इस का सबसे ज्यादा फायदा रीयल एस्टेट को हो रहा है। इसी कारण दिल्लीमुम्बई,बंगलोर जैसे शहरों में एक फ्लैट की कीमत इतनी ज्यादा है कि जनता की पूरी जीवन की कमाई रहने के लिए एक घरौंदा बनाने में चली जाती है। रीयल एस्टेट में बहुत से कारपारेट घरानेराजनीतिज्ञ और अफसरशाह अपनी काली कमाई (ब्लैक मनी) को लगा कर कई गुना मुनाफे कमाते हैं। दिल्ली एन.सी.आर. में काफी बड़ी संख्या में अपार्टमेंट का निर्माण किया जा रहा है जिसमंे करीब 150 से अधिक बिल्डर लगे हुये हैं।

मुनाफा मजदूरों की खून पर

बिल्डर काम जल्दी पूरा करने के लिए छोट-छोटे ठेकदारों को अलग-अलग काम दिये रहते हैं। मजदूरों से दिन-रात काम करवाये जाते हैं। मजूदरों की सुरक्षा पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया जाता है। किसी भी साईट पर मजदूरों की संख्या के हिसाब से हेलमेटसेफ्टी बेल्टजूतेग्लव्स नहीं होते हैं। दिखाने के लिए कुछ हेलमेटजूतेबेल्ट तो दिखते हैं लेकिन यह संख्या मजदूरों की संख्या से कम होती है। कोई भी दुर्घटना होने पर उसके बचाव की कोई व्यवस्था नहीं होती या ऐसी व्यवस्था होती है जो दुर्घटना को और बढ़ावा देती है। लेकिन बिल्डरों के पास ऐसी टीम जरूर होती है जो मजदूरों को डरा-धमका सकेदुर्घटना होने पर लाश गायब करे और फर्जी मजदूर बनकर मीडिया के सामने बिल्डर के पक्ष में बयान दे सके। मजदूरों के खून-पसीने का पैसे ये बिल्डर डकार जाते हैं और उसी के कुछ हिस्से देकर शासन-प्रशासन को खरीद लेते हैं। बदले में यह शासन-प्रशासन दुर्घटना और पर्यावरण के नुकसान होने पर बिल्डर को बचाने का काम करते हैं। बिल्डर मजदूरों को ही नहींघर का सपना संजोये लोगों को भी धोखा देते हैं। उसको समय से घर मुहैय्या नहीं कराते हैं या लागत बढ़ने के नाम पर पैसे बढ़ा दते हैं। ऐसी ही कुछ घटनाएं सामने आई हैं।

नोएडा सेक्टर 75 में तीन-चार साल से कंस्ट्रकशन का काम चल रहा है। इस कंस्ट्रकशन साइट पर कई बिल्डर हैं जिनका काम बिल्डिंग बनाने से लेकर सीवर डालनाटायल लगानाशीशे लगना इत्यादि है। इस साइट पर कितने मजदूर काम कर रहे हैं इसका अनुमान लगाना किसी के लिए भी कठिन काम है। बहुत सारे मजदूर साइट पर ही बने दरबेनुमा अस्थायी झोपड़ में रहते हैं। इस झोपड़ की उंचाई 6 फीट और उसके ऊपर टीन की छत होती है। इसी छत के नीचे उनको मई-जून के 45 डिग्री तापमान में भी परिवार के साथ रहना पड़ता है। इन झोपड़ों में इनके पास कुछ बर्तन और एक पुराने पंखे के अलावा कुछ नहीं होता। सोने के लिए टाटतो बैठने के लिए ईंट का इस्तेमाल करते हैं। कुछ मजदूर साइट के बाहर किराये के रूम में 4-5 के ग्रुप में रहते हैं।

ये सभी मजदूर रोज की तरह 4 अक्टूबर, 2015 को भी नियत समय से काम पर लगे हुए थे। मुरादाबाद के याकूब और अन्य मजदूर एम्स मैक्स गारडेनिया डेवलपर्स प्रा. लि. के अन्तर्गत काम कर रहे थेजिनका काम था सीवर लाईन को बिछाना। याकूब दो मजदूर के साथ बीस फीट गहरे में उतरकर पाईप डालने के लिए मिट्टी समतल करने का काम कर रहे थे। सेफ्टी के लिए किसी तरह का जाल या मिट्टी रोकने के लिए कोई चादर नहीं लगाया गया था। मिट्टी भी बलुठ (दोमट मिट्टी) थीजिससे वह अचानक काम कर रहे याकूब और उसके साथी पर गिर पडी। दूसरे छोर पर काम कर रहा एक मजदूर तो बच गया लेकिन याकूब और उसके एक साथी मिट्टी में दब गये। मजदूरों ने इकट्ठे होकर शोर मचाया और बचाने का प्रयास किया। वहीं पर गड्ढे खोदने के लिए जे.सी.बी मशीन से याकूब को निकाला गया। लेकिन बचाव के लिये आई इस मशीन से याकूब के सिर और शरीर पर जख्म हो गये। याकूब को अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। मजूदरों ने हंगामा किया तो पुलिस ने उनको खदेड़-खदेड़ कर पीटा। एम्स मैक्स गारडेनिया डेवलपर्स प्रा. लि. के कारिन्दे मजदूरों और सुपरवाईजरों को गाड़ी में बैठा कर कहीं छोड़ आये। घटना-स्थल पर एक बुर्जुग मजदूर डटा रहा और लगातार मांग करता रहा कि इसमें एक और मजदूर दबा है उसे भी निकाला जाये। वह लगातार पुलिस अफसर से भी अनुरोध करता रहा कि दूसरे मजदूर को भी निकाला जाये। एक घंटे तक इस बुर्जुग मजदूर के शोर मचाने पर प्रशासन ने उसके बातों पर ध्यान नहीं दिया और गड्ढे में और मिट्टी गिरा दी। अचानक वह बुजुर्ग कहीं चला गया या उसे गायब कर दिया गया। उसकी जगह पर एक नौजवान आया जिसके शरीर पर न तो कहीं मिट्टी लगी थी और न ही उसके कपड़े गंदे थे। वह कहने लगा कि मैं भी उसी के साथ काम कर रहा था और दोनों भागने में सफल रहे और केवल एक मजदूर ही दबा था। इस तरह एक मजदूर की मौत रहस्य बन कर रह गया। इस साईट की न तो यह पहली घटना है न ही अंतिम। इससे पहले भी अनेक घटनाएं घट चुकी हैं। कुछ समय पहले बिजली के करंट से एक मजदूर की मौत हो चुकी है और न जाने कितने मौत रहस्य बन कर ही रह गये होंगे।

यह केवल सेक्टर 75 की ही घटना नहीं हैइससे पहले कितनी मौतें दिल्ली और एनसीआर में हो चुकी है। तीन-चार माह पहले मिट्टी धंसने से ही समयपुर बादली में दो मजदूरों की मौत हो चुकी है। कंस्ट्रकशन साइट पर इस तरह की घटनाएं आम हो चुकी हैं। दिल्ली एनसीआर में ही नहीं देश के विभिन्न हिस्सों में रोज व रोज मजदूरों की मौत होती है। साइट पर मजदूरों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाता है और उनके बचाव के उपकरण से उनको और जोखिम होता हैजैसा कि याकूब को निकालते समय जे.सी.बी. ने जख्मी कर दिया।  वो जिन्दा भी रहे हांे लेकिन सिर पर चोट लगने से तो मौत लाजमी है। इसी तरह की घटना 23 फरवरी, 2015 को बंगलोर के एलिमेंट्स माल के सामने हुई। एलिमेंट्स  माल के समाने सीवर बिछाने का काम किया जा रहा था जिसमें मनोज दास और हुसैन मिट्टी में दब गये। उनको जे.सी.बी मशीन से निकाला गया जिसके कारण एक के हाथ और दूसरे के पैर में फ्रैक्चर हो गया। अस्पताल में मनोज का दायां हाथ काटना पड़ा।

 

 

 

150 बिल्डरों पर करोड़ों रूपये का लेबर सेस बाकी है। इस टेबल में कुछ बिल्डरों के ऊपर बकाया लेबर सेस दर्शाया गया है -

बिल्डर का नाम                  बकाया राशि रुपये में

सुपर टेक ग्रुप                 182065983

अम्रपाली ग्रुप                  123710638

यूनिटेक ग्रुप                  48060370

अंजरा ग्रुप                      6934059

लीजिकस ग्रुप                 478198925

जेपी ग्रुप                              66063139

सैम इंडिया                     8745314

एम्स मैक्स गारडेनिया डेवलपर्स    89681365

गायत्री इन्फ्रा प्लानर              2294658

गुलशन होम्ज                   3459786

जीपेक्स ड्रीम होम्ज               4088037

टाइमस शापी                   12151623          

एटीएस टाउन शिप               5349510

गौक सन्स                   60635703

सिक्का ग्रीन्स                 10959951

स्रोत: बिल्डर रियलटी

लेबर डिर्पाटमेंट का कहना है कि बिल्डर लॉबी ऊंची रसूख के होते हैं जिसके कारण उन पर कार्रवाई नहीं हो पाती है। जो भी अधिकारी कार्रवाई की कोशिश करता है उसका ट्रांसफर करवा दिया जाता है। मजदूरों की मौत केवल कंस्ट्रकशन के समय ही नहीं होती,उसके बाद भी मजदूर बिल्डिंग को चमकाने में मरते हैं। हर वर्ष हजारों मजदूर घर की डेंटिंग-पेटिंग करते समय मर जाते हैं। 15 सितम्बर, 2015 को पेंट करते समय लालू सिंह व एक अन्य मजदूर रोहणी सेक्टर 16 में गिरकर काल का ग्रास बन गये।

हर साल हजारों मजदूरों की मौत से न तो शासन-प्रशासन की नींद खुलती है और न ही नागरिक समाजन्यायपालिकामानवाधिकार संगठन सक्रिय होते हैं। न तो लालू सिंह की मौत पहली है और न ही याकूब की मौत अंतिम। हमें आयरन हील का पात्र अर्नेस्ट याद आता है जो बताता है कि हम जिस छत के नीचे बैठे हैं उससे खून टपक रहा है।

Sunilkumar102@gmail.com

 


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जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

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Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

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Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk