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Monday, October 26, 2015

ब्लेअर बाबू ने मान लिया युद्ध अपराध माफी भी मांग ली,हम किस किसको माफ करेंगे? गधोंं को चरने की आजादी है और पालतू कुत्तों को खुशहाल जिंदगी जीने की इजाजत है! तय करें कि गधा बनेेंगे कि कुत्ता या इंसान! लाल नील एका के बिना कयामत का यह मंजर नहीं बदलेगा और अधर्म अपकर्म के अपराधी राष्ट्र और धर्म का नाश ही करेंगे इंसानियत और कायनात की तबाही के साथ साथ! जागो जागरण का वक्त है और देखो,सिर्फ गधे रेंक रहे हैं और गाय कहीं रंभा नहीं रही है। बेरहम दिल्ली भी थरथर कांपे हैं और तानाशाह भी कांप रहा है ! पलाश विश्वास

ब्लेअर बाबू ने मान लिया युद्ध अपराध माफी भी मांग ली,हम किस किसको माफ करेंगे?
गधोंं को चरने की आजादी है और पालतू कुत्तों को खुशहाल जिंदगी जीने की इजाजत है!
तय करें कि गधा बनेेंगे कि कुत्ता या इंसान!
लाल नील एका के बिना कयामत का यह मंजर नहीं बदलेगा और अधर्म अपकर्म के अपराधी राष्ट्र और धर्म का नाश ही करेंगे इंसानियत और कायनात की तबाही के साथ साथ!
जागो जागरण का वक्त है और देखो,सिर्फ गधे रेंक रहे हैं और गाय कहीं रंभा नहीं रही है।
बेरहम दिल्ली भी थरथर कांपे हैं और तानाशाह भी कांप रहा है !
पलाश विश्वास

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने आज मान लिया कि दुनियाभर में अभूतपूर्व हिंसा औक दसों दिशाओं में दहशतगर्दी खाड़ी युद्ध का नतीजा है और इसके लिए उनने माफी मांग ली।

हम ऐसा 1989 में सोवियत संघ के पतन से पहले कहते रहे हैं यह सच,आपने सुनने की तकलीफ नहीं की तो हम सोये भी नहीं हैं तब से आजतक।रतजगा हमारा रोजनामचा महायुद्ध का वृतांत है।

अमेरिका से सावधान खाड़ी युद्ध के दौरान अमर उजाला में खाड़ी डेस्क पर सीएनएन के आंखों देखा हाल के मुकाबले दुनियाभर से और खासतौर पर मध्यपूर्व और यूरोप के साथ साथ लगातार बगदाद और तेहरान और निकोसिया से जुड़े रहने का नतीजा है।

हम बाहैसियत पत्रकार तेल युद्ध में मरुआंधी के बीच कहीं नहीं थे और न हमने सोवियत संघ के साथ सद्दाम हुसैन के पतन का नजारा देखा।

फिर भी हम तेलकुंओं की आगसे उसी तरह झुलसते रहे जैसे अछूत कवि नोबेलिया रवींद्र का दलित विमर्श नजरअंदाज है।

जनसंहार के हथियारों के इराक में होने के दावे के साथ जो युद्ध दुनियाभर के मीडिया पर कब्जे के साथ आधिकारिक सूचना की अनिवार्यता के कानून के मुताबिक अमेरिका,ब्रिटेन और इजराइल ने शुरु किया,उसका सामना हमने खाड़ी युद्ध एक और दो के दौरान वैसे ही किया जैसे कमंडल मंडल में भारत को लगातार मुक्त बाजार में हमने तब्दील होते देखा।

इसलिए इराक के युद्धस्थल में बंकर से उस युद्ध का आंखों देखा हाल हमने लिखने की जुर्रत की इस समझ के साथ कि भारत हिंदुत्व के पुनरुत्थान के साथ अमेरिकी उपनिवेश में तब्दील है।

तमाम माध्यमों,विधाओं और भाषाओं में हम 1989 से यही सच कहने लिखने की कोशिश कर रहे हैं।आप न पढ़ते हैं,न सुनते हैं।

बहरहाल पहलीबार हमारा भी नोटिस लिया जा रहा है।

जो दोस्त कह रहे थे कि लिखने बोलने से कुछ नहीं होता वे इसपर गौर जरुर करें कि इस देश की फासिस्ट सत्ता एक अदना नाकाम नागरिक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता का उल्लंघन करते हुए बार बार उसे कहने लिखने से रोक क्यों रही है।

सेंसर शिप का नतीजा यह कत्लेआम है जो खाड़ी युद्ध के तेलकुंओं से शुरु हुआ और अब भी जारी है और यह कोई केसरिया सुनामी नहीं है,गौर से परख लें यह तेलकुँओं की आग है जो इस महादेश में सरहदों के आर पार मनुष्यता,सभ्यता और प्रकृति को जला रही है।
सेंसरशिप अब अभूतपूर्व है।

लबों को कैद करने में नाकाम गुलामों की हुकूमत अबहिंदुत्व की नंगी तलवार से सर काटने का राजसूय यज्ञ चला रही है।

फिर वही अभूतपूर्व सेंसर है।हिटलर मार्का।
हिटलरजैसे हारे ,वैसे हमारा लाड़ला झूठा तानाशाह भी हारेगा।

हमने अकेले जार्ज बुश को बोलते हुए सुना है और हमने इन्हीं टोनी ब्लेयर महाशय को झूठ पर झूठ बोलते हुए देखा है।

ब्लेयर बोले हैं तो कभी न कभी जिंदा रहे तो बोलेंगे बुश भी और वे माफी भी मांग लेंगे।

मनुष्यता,सभ्यता और प्रकृति के कत्लेआम के अपराधी झूठ के सहारे राजकाज चलाते हैं फासिज्म का और इसीलिए सच बोलना मना है।

हिटलर ने भी वही किया था।

सच की आंच किसी एक मनुष्य के लगातारमंकी बातों के बहाने झूठ पर झूठ बोलते जाने से खत्म होेती नहीं है।वह सुलगती है जमीन के अंदर ही अंदर।फिर ज्वालामुखी बनकर फटती है हुक्मरान के खिलाफ।वह स्थगित विस्फोट कभी भी संभव है।
धरती की गहराई में उथल पुथल है तो हिंदकुश में जमीन केअंदर दो सौ मील नीचे शेषनाग ने अंगड़ाईली तो बेरहम दिल्ली भी थरथरा गयी।सबसे सुरक्षित लोग,सत्तावर्ग के लोग,अंधियारे के तमाम सौदागर और नफरता का जहर उगलनेवाले तमाम जहरीले नाग अपने दड़बे से जान बचाने के लिए निकले।

यह भी नहीं समझते कि चंद पलों की भी मोहलत नहीं मिलती भूकंप में औरसचमुच भूकंप आया तो तबाह होना ही होना है सीमेंट के सारे के सारे तिलिस्म महातिलिस्म किले और राजधानी, मुख्यालय वगैरह वगैरह। हम तो खुले आसमान के नीचे खड़े लोग हैं और उनकी जन्नत तक पहुंचने की हमारी कोई सीढ़ी वगैरह वगैरह नहीं हैं।हम निःशस्त्र हैं।फिरभी निश्चित हार मुंङ बाँए देख मूर्खों के सिपाहसालार गदहों की तरह इंसानियत के जज्बे को कत्ल कर देने का छल कपट प्रपंच सबकुछ आजमा रहे हैं।

हमारी निगरानी हो रही है पल पल।हम जडो़ं से जुढ़ें हैं अगर और हमारे पांव जमीन पर चिके हों अगर,अगर हम आम जनता के बीच है और उन्हीं की आवाज और चीखों की गूंज कोकला मानते हैं,तो कोई कौशल, कोई दक्षता और कोई तकनीक,कोई निगरानी पकती हुई जमीन की भूमिगत आग को रोक नहीं सकती।

गधों को खुल्ला छोड़ दीजिये मैदान में तो उन्हें क्या तमीज है कि क्या घास है और क्या लहलहती फसल है।क्या अनाज है,क्या दालें हैं,क्या सब्जियां हैं और क्या फल फूल हैं।वे चरने के लिए आजाद हैं।आम जनता के हाथ में लाठियां भी होनी चाहिए कि गधों को हांककर सही रास्ते पर,सही दिशा में ले जायें।वरना यह लोकतंत्र एक खुल्ला चारागाह है जहां किसिम किसिम के रंग बिरंगे गदहे गंगा यमुना गोदावरी कावेरी ब्रह्मपुत्र और पंजाब से  निकलती पांच नदियों के उपजाऊ मैदान को मरुस्थल में तब्दील कर देंगे और हम कपालभाती,योगाभ्यास ही करते रहेंगे दाने दाने को मोहताज।

दस दिगंत हिंसा और घृणा के धर्मोन्मादी माहौल को कृपया हिंदुत्व का पुनरुत्थान कहकर आस्थावान आस्थावती नागरिकों और नागरिकाओं की धर्म और आस्था की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हमन न करें।

यह अधर्म,यह अपकर्म जो सिरे से अपराधकर्म है,उसका नतीजा ग्रीक ट्रेजेडी है या पिर तेलकुंओं की आग में तेल में फंसे पंख फड़फड़ाता बेगुनाह पंछी है या निष्पाप आईलान का पार्थिव शरीर है समुद्रतट पर चीखता हुआ कि सावधान।

हालात ताजा कुलमिलाकरयह है कि हमीं लाल तो हमीं नील हैं और हम आपस में बेमतलब हिंदुत्व के इस नर्क में मारामारी करके न सिर्फ लहूलुहान है बल्कि हमारा पसंदीदा जायका इंसानियत और कायनात की बरकतों,नियामतों और रहमतों का खून है।यह कयामती मजर न बदला तो यकीनन न खाने को कुछ होगा।न पहनने को कुछ होगा।न रोटी मिलेगी और न रोजगार।

हमने चकलाघरों के दल्लाओं के हवाले कर दिया है यह महान देश हमारा।देश दम तोड़ रहा है।देश जल रहा है।दावानल से गिरे हम शिक कबाब बन रहे हैं।फिरभी मुक्तबाजारी महोत्सव में विकास मंत्र जापते हुए हम अपनों के स्वजनों के कत्लेआम के लिए अश्वमेधी फौजों में पैदल कुत्तों की पालतू जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।जनरल साहेब ने सच ही कह रहे हैं। झूठी पहचान और झूठी शान के तहतहम खुदै को मलाईदार समझते हैं और जूठन चाटते हैं और हमारीमुलायम खाल का कारोबार चलाते हैं किसिम किसिम के दल्ला।दल्लों की बेइंतहा अरब अरब डालर की मुनापावसूली के बीच जाहिर है कि न शिक्षा होगी और न चिकित्सा होगी।

चारों तरफ गधे रेंक रहे हैं।मनुष्यता सन्नाट बुन रही है और राष्ट्र के विवेक को सुकरात की जहर कीप्याली थमायी जा रही है।

हम अब कोई वीडियो अपवलोड करने को आजाद नहीं है।न हमारा मेल कहीं जा रहा है और न कोई मेल आ रहा है।आईपीओ घर और दफतर का ब्लाक है।

आखिरी वीडियो जो हमने रिकार्ड किया है,वह बालजाक के ्ंतिम स्तय की खोज के बारे में है।वाल्तेयर के जला दिये गये रचनासमग्र के बारे में है तोवाख औरमोजार्ट के बारे में है।शेक्सपीअर और कालिदास के सौंदर्यबोध के बारे में भी है।

सुकरातआज भी जिंदा हैं।उसके हत्यारे नाथुराम गोडसे भी नहीं है।इस दुनिया में कोई उस हत्यारे कोयाद नहीं करता लेकिन हम गोडसे क मंदिर बना रहे हैं।

गोडसे का भव्य राममंदिर बना रहे हैं।
वहीं बाबासाहेब को विष्मु का अवतार बनाकर उनके हिंदुत्वकी प्राण प्रतिष्ठा करते हुए संपूर्ण निजीकरण और अबाध विदेशी  पूंजी के हिंदुत्व के नर्क में हम मिथ्या आरक्षण के लिए जाति के नाम पर लड़ रहे हैं।

और बाबासाहेब,महात्मा ज्योतिबा फूले,नारायण गुरु,लोखंडे,गाडगे बाबा,बसश्वर बाबा,संत तुकाराम,लालन फकीर,हरिचांद गुरुचांद ठाकुर ,चैतन्य महप्रभु,संत तुकाराम,सुर तुलसी कबीर रसखानमीरा गालिब,सिखों के चौदह गुरर.तमाम तीर्तांकरों से लेकर अछूत रवींद्र के भारत तीर्थ के विसर्जन की तैयारी में हैं।

कृषि खत्म है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं तो एकाधिकारववादी बहुराष्ट्रीय वर्चस्व की मनसेंटो चमत्कार और तकनीक,आईटी,प्रोमोटरबिल्डर माफिया राज के अंध घृणासर्वस्व हिंसक नरमेधी सैन्यराष्ट्रवाद से व्यवासाय,उद्योग धंधे हरगिज नहीं बचेंगे।

संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश और हजारों विदेशी कंपनियों के हितों के मुताबिक बिजनेस फ्रेंडली नस्ली विशुद्धता और अस्पृश्यता और बहिस्कार का राजकाज चलेगा तो राष्ट्रका अवसान होने में देर नहीं।

हमारी समझ से बाहर है कि संस्थागत संघ परिवार काहिंदुत्व क्या है,रष्ट्र क्या है,राष्ट्रवाद क्या है,धर्म क्या है,आस्था क्या है,कर्म क्या है,स्वदेस क्या है।

गुरु गोलवलकर हिंदुत्व के महागठबंधन के रचयिता हैं तो बालासाहेब देवरस इंदिरा को देवी दुर्गा का अवतार बता रहे थे,जिसदेवी ने सिखों को असुर और महिषासुर बनाकर रावण दहन की तरह जिंदा जला दिया और संघ परिवार ने विबाजन का सारा पाप गांधी के मत्थे मढ़ दिया।

हड़प्पा और मोहंजोदोड़ो के विनाश के बाद न हमने भूगोल समझा है और न इतिहास।तो अर्थशास्त्र क्या खाक समझेंगे।

हम न अपने पुरखों को जानते हैं और न उनकी लड़ाइयों और जीतों के अनंत सिलसिले को जानने समझने की कोशिस करते हैं।

हम अपनी अपनी हैसियत औरपहचान के दायरे में कैद लोगदरअसल जनरल साहेब के कहे पालतू कुत्ते ही हैं,जिनके जीने मरने का किसी को फर्क नहीं पड़ता।

हमें भी नहीं।

गौर से सुन लीजिये कि कहीं गायें रंभा नहीं रही है और गोरक्षा आंदोलन चरम पर है।

भारत के गांवों में खेत खलिहानबेदखल सीमेंट के जंगल में तब्दील हैं और कहीं गोबर मिलता नहीं है और पानी की तरह मिट्टी भी खरीदने कीनौबत है।

यह अभूतपूर्व हिसां की सुनामी है।
यह अभूतपूर्व दहशतगर्दी है।
यह बलात्कार सुनामी है पितृसत्ता की।
यह हमारे बंधुआ बच्चों को जिबह करने का गिलोटिन है।

कत्लेाम के लिए माफी मांगते रहने और नैतिकता और ईमानदारी का पाठ पढञनेवालों को किसी कत्ल या नरसंहार के मामले में सजा नहीं हो सकती।

वियतनाम के कसाई हेनरी किसिंजर को नोबेल शांति पुरस्कार मिल गया तो क्या इतिहास बदल जायेगा।

गुजरात के नरसंहार या भोपाल गैस त्रासदी,या सिखों के कत्लेआम या देश भर में दंगा फसाद के कारीगरों को नोबेल मिल गया जैसे सत्ता के लिए हुकूमत के लिए उन्हें जनादेश मिल गया और फिर फिर जनादेश की रचना प्रकिया में वे अपने सौंदर्यबोध के मुताबिक देश में आपदाएं रच रहे हैं तो क्या वे शांति दूत मान लिये जायेंगे,यह समझनेवाली बात है।

महान तानाशाह इतिहास के कचरे में त्बील हो जाते हैं जैसे हाल में हिटलर और मुसोलिनी,जार्ज बुश और टोनी ब्लेयर हो गये।

जिस शासक को इतिहास भूगोल राजनीति राजनय और अर्थव्यवस्था की तमीज नहीं है और जो खुलती खिड़कियों के खड़कने से खड़खड़ाता है और असुरक्षाबोध में दमन और सैन्यतंत्र,हथियारों की होड़,युद्ध और गृहयुद्ध रचकर सिर्फ बेइंतहा झूठ,नफरतऔर तबाही के राष्ट्रद्रोही राजकाज के जरिये गामा पहलवान है,कोई न कोई छुपा रुस्तम कहीं से आकर,आसमान या जमीन फोड़कर उसे चारों खाने चित्त कर देगा,इस उम्मीद में कुत्ते बनकर हम गुजर बसर को जिंदगी मान लेगें तो कयामत का यहमंजर हरगिज बदलनेवाला नहीं है।

अलीबाबा और चालीस चोर की कथा आखिर लोकतंत्र नहीं है।
हम मनुष्य नहीं हैं तो नागरिक भी नहीं।न कोई हमारा देश है।

भेड़ धंसान और धनपशुओं का बाहुबल माफियातंत्र का वोटतंत्र
कोई लोकतंत्र नहीं है।न होता है।


ये राष्ट्रद्रोही जलवायु की हत्या कर रहे हैं।
मौसम को बदल रहे हैं।
तापमान बदल रहे हैं।
खेत खलिहान कारखाने कारोबार उद्योगधंधे महाश्मशान में तब्दील कर रहे है।

देश को मृत्यु उपत्यका और गैस चैंबर में तब्दील करनेवाले कालेधन के सेनसेक्सी ये भालू और साँढ़ ही ग्लेशियरों को मरुस्थल में तब्दील कर रहे हैं और समुंदर में ज्वालामुखी पैदा करने के साथ साथ सारे के सारे समुद्रतट को रेडियोएक्टिव बनाकर पूरे देश को डूब में तब्दील कर रहे हैं और वे ही किसानों,मेहनतकशों और लाल नील आम जनता का कत्लेआम कर रहे हैं पल छिन पल छिन।

वे लोग ही जल जंगल जमीन नागरिकाता नागरिक मानव मौलिक अधिकारों और संविदान के साथ साथ राष्ट्र की एकता ,अखंडता और संप्रभुता के कातिल हैं।

बेरहम दिल्ली के भूकंप में थरथराये लोगों की तरह नंगी तलवारों की चमक दमक से पसीना पसीना होकर हमारी यह शुतुरमुर्ग प्रजाति मनुष्यता और प्रकृति के पक्ष में खड़े हो ही नहीं सकते।

खड़े होने के लिए रीढ़ चाहिए।

कीड़ों मकोड़ों की रीढ़ होती नहीं है वे इसीतर दबकर कुचलकर जीते हैं औरबेमौत मारे जाते हैं।
किसी ने कुत्ता कहा तो गुनाह नहीं है।

आज सुबह आठ बजे और अभी अभी आदरणीय आनंद तेलतुंबड़े से लंबी चौड़ी बातें हुईं और हम सहमत हुए कि यह सही वक्त है लाल नील रंगों के विलय का,जिसके बिना हम फासिज्म का मुकाबला हरगिज नहीं कर सकते।

केसरिया वर्चस्व मनुस्मृति शासन है और बहुजन समाज फिर वही सर्वहारा है।जो आबादी का निनानब्वे फीसद है।

जो फिजां बिगड़ी है इस भारत तीर्थ की,जो कयामत का मंजर है, उसे बदलने के लिए जाति को खत्म करना सबसे जरुरी काम है।

यह जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी अंधियारे का यह कारोबार,हिंदू धर्म और इस देश की आम जनता की भावनाओं और आस्था से खिलवाड़ करने का यह खुल्ला खेल फर्रूखाबादी खत्म होगा।

हमारा मानना है कि इस देश की निनानब्वे फीसद आम जनता की मोर्चाबंदी के बिना यह मुक्तबाजारी अधर्म धर्म का नाश तो करेगा सबसे पहले,उससे ज्यादा हजारों साल का इतिहास और हमारी अमन चैन भाईचारा और सभ्यता का सत्यानाश तय है।

अर्थव्यवस्था तो बची नहीं है।
उत्पादन प्रणाली खत्म हैं तो उत्पादकों के आपसी भाईचारे से फिजां फिर अमनचैन की होने की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है।आप भले ही कुत्तों की तरह पालतू बनकर खुशहाल जिंदगी जी लें।

लंदन. ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने इस्लामिक स्टेट के बढ़ते असर के लिए इराक वॉर को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने पहली बार इराक वॉर को लेकर माफी भी मांगी है। ब्लेयर ने कहा कि सद्दाम को सत्ता से उखाड़ फेंकने वालों में शामिल देशों को इराक के मौजूद हालात के लिए कुछ जिम्मेदारी तो लेनी होगी, क्योंकि इसी संघर्ष के चलते आईएसआईएस वजूद में आया। बता दें, केमिकल वीपन के शक में 2003 में अमेरिका और ब्रिटेन समेत गठबंधन सेनाओं ने इराक पर हमला किया था।
'सीरिया जैसे होते हालात'
हालांकि, ब्लेयर ने इराक पर हमले का बचाव करते हुए ये भी कहा कि सद्दाम को अगर सत्ता से बेदखल नहीं किया गया होता तो वहां सीरिया जैसे हालात होते। टोनी ब्लेयर का ये बयान सर जॉन चिलकोट के उस एलान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने युद्ध को लेकर अपनी जांच के पूरी होने के टाइमटेबल का जिक्र किया है।
क्या कहा इंटरव्यू में?
अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन को दिए गए एक इंटरव्यू में टोनी ने कहा कि वे जंग से जुड़े कई मसलों के लिए माफी मांगते हैं। इंटरव्यू के दौरान रिपोर्टर फरीद जकारिया ने सवाल किया था कि क्या इराक वॉर एक गलती थी। इस पर ब्लेयर ने कहा, ''मैं उस बात के लिए माफी मांगता हूं कि इंटेलिजेंस के जरिए गलत जानकारी मिली थी। साथ ही, प्लानिंग को लेकर भी गलतियां हुई थीं।'' उन्होंने कहा,'' निश्चित तौर पर हमसे वहां के हालात को समझने में गलती हुई कि इस शासन को उखाड़ फेंकने के बाद कैसे हालात बनेंगे।''
इराक वॉर में हुआ नुकसान
इराक वॉर में अमेरिकी सेना के साथ 45,000 ब्रिटिश जवान शामिल थे। सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस संघर्ष में 10 हजार इराकी नागरकि, 4000 से ज्यादा अमेरिकी जवान और 179 ब्रिटिश सर्विस के सदस्य मारे गए थे।
2002 में पड़ी ISIS की नींव
तौहिद वा अल-जिहाद के तौर पर जॉर्डन के अबु मुसाद अल-जरकावी ने 2002 में ही आईएसआईएस की नींव रख दी थी। एक साल बाद 2003 में इराक में अमेरिकी गठबंधन सेना के हमले के बाद जरकावी ने ओसामा बिन लादेन के प्रति वफादारी की शपथ ली और अलकायदा से जुड़ गया। 2006 में जरकावी की मौत के बाद अलकायदा ने इसे सहयोगी संगठन के तौर पर इस्लामिक स्टेट इन इराक (आईएसआई) का नाम दिया। 2013 में आईएसआईएस के मौजूदा चीफ अबु बक्र अल बगदादी ने इस आतंकी संगठन में इराक के साथ सीरिया को भी शामिल कर लिया और इसका नाम आईएसआईएस हो गया।
बुश ने भी मानी थी गलती
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने भी अपना कार्यकाल खत्म होने के दौरान इस बात को माना था कि इराक वॉर उनके कार्यकाल की बड़ी गलतियों में से एक है। बुश ने अपनी किताब में भी इस बात जिक्र किया है। किताब में दिए अंश के मुताबिक, जब उन्हें इस बात का पता चला कि इराक में कोई केमिकल वीपन नहीं है तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि वो एक डूबते जहाज के कैप्टन हैं।

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Save the Universities!

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जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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