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Tuesday, May 19, 2015

सुसाइड नोट: हाँ यह सच है, लोग गश खा कर गिर रहे हैं…. विनय सुल्तान


सुसाइड नोट: हाँ यह सच है, लोग गश खा कर गिर रहे हैं….

2-3 और 14-15 मार्च को हुई बेमौसमी बारिश और ओलावृष्टि के बाद देश-भर से किसानों की आत्महत्या की खबरें आने लगी. praxis के साथी पत्रकार विनय सुल्तान  ने तीन राज्यों की यात्रा कर खेती-किसानी के जमीनी हालात पर डायरी की शक्ल में एक लंबी रिपोर्ट लिखी हैं. 'सुसाइड नोट' नाम से इसे हम किस्तों में पाठकों के सामने रख रहे हैं. इसकी दूसरी किस्त राजस्थान के हाड़ौती अंचल से पेश है. पहली कड़ी आप यहां पढ़ सकते हैं..

-संपादक

Suside Note

कोटा में ये मेरा चौथा दिन है. मुझे आज एक मोटरसाइकिल उधार मिल गई है. कोटा से 60 किलोमीटर का सफ़र तय करके दीगोद तहसील के गांव  रामनगर पहुंचना है.

पहले सुल्तानपुर तक 40 किलोमीटर फिर उसके बाद नहर का रास्ता पकड़ कर 20 किलोमीटर का सफ़र तय करना है. . यहां दो किसानों की आत्महत्या की खबर है.

कोटा से सुल्तानपुर के रास्ते के दौरान मैं चाय पीने के लिए रुक गया. राष्ट्रीय अखबार के स्थानीय संस्करण में एक 37  वर्षीय किसान दिल का दौरा पड़ने से मौत की खबर है.

बूंदी जिले के केशव रायपाटन थाना क्षेत्र के ठीकरिया कला के रहने वाले किसान ओमप्रकाश मीणा की सदमे से मौत हो गई. उन्होंने 10 बीघा खेत से निकले डेढ़ क्विंटल गेंहू को देख कर खलिहान में दम तोड़ दिया. औसतन एक बीघे में 7 से 8 क्विंटल गेंहू पैदा होता है.

हां यह सच है. लोग इसी तरह मर रहे हैं. खेतों में गश खा कर गिर रहे हैं.

खेत माने सिर्फ किसान नहीं होता है…

चाय के साथ परोसी गई इस खबर से दिमाग हिला हुआ था. अभी सुल्तानपुर 10 किलोमीटर दूर था.

माचिस लेने की गरज से एक पैदल राहगीर के पास रुका. यहां मेरी मुठभेड़ मध्यप्रदेश से आए मौसमी मजदूर के परिवार से हुई.

ये लोग हर साल यहाँ गेहूं की कटाई के लिए आते हैं. तीन पीढियां एक साथ मजदूरी करती है ताकि साल के बचे हुए महीने में पेट भरा जा सके.

कटाई के लिए इस्तेमाल होने वाली मशीनें पहले से ही पेट पर डाका डाले हुए थीं. इस साल की प्राकृतिक आपदा के बाद इन परिवारों के सामने भी आजीविका का संकट गहरा गया है.

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ले कुदालें चल पड़ें हैं लोग मेरे गांव के…

रतलाम से आए 22 साल के गोवर्धन से जब मैंने मालवा में फसलों का हाल पूछा तो उन्होंने बताया, "वहां तो सब चौपट हो चुका है. हम यहां आए थे कि गेंहू काट कर पेट भरने लायक कुछ कमा लेंगे. लेकिन यहां भी वही हाल है. दो दिन से मजदूरी के लिए भटक रहे हैं. कोई कटाई करवाने के लिए राजी नहीं है."

कुछ दूर आगे रेबारियों डेरा था. गुजरात से चल कर ये लोग यहां तक पहुंचे थे.
लगभग 500 गायों और 25 सदस्यों का यह चलता-फिरता कबीला इस मौसम में हर साल यहां से गुजरता है.
कटे हुए खेतों में बचे हुए तुड़े से गायों का पेट पलता है और गायों से परिवार का.
स्थानिय दूध विक्रेता इनके डेरों के पास ही सुबह ही जमा हो जाते हैं सस्ती दरों पर दूध खरीदने के लिए. दूध खरीदने के लिए.
पंद्रह दिन बाद थार के रेगिस्तान से चले ऊंट, भेड़ और बकरियों के जत्थे भी यहां पहुंचने वाले होंगे. इस बार इन सबके लिए चारे का संकट बढ़ जाएगा.
कच्छ से आए रामजी भाई कहते हैं,
'हर साल महीने-दो महीने डेरा यहीं जमता था. इस बार यहां से जल्दी आगे बढ़ना होगा. 500 गायों का पेट भरना मुश्किल हो रहा है.'

माने प्राकृतिक आपदा से सिर्फ किसानों की कमर तोड़ी हो ऐसा नहीं है. पशु संगणना 2012 के मुताबिक देश में 122 मिलियन मादा गायें और 92.5 मिलियन मादा भैंसे हैं.
अक्सर खेती चौपट हो जाने पर ये मवेशी गांवों में जीवनयापन का सबसे सुरक्षित जरिया मुहैय्या करवाते हैं. समझी सी बात है कि ये पशुधन खेतों से पैदा होने वाले चारे पर ही जिंदा है.
देश के अर्थशास्त्री कहते हैं कि कृषि का सकल घरेलु उत्पादन में योगदान महज 14 फीसदी है जिस पर देश की 67 फीसदी जनता पल रही है.
मुझे पता नहीं कि वो कौनसा जादुई तरीका है जिससे कृषि का योगदान 14 फीसदी पर समेट दिया जाता है.

ये सब भगवान का किया-धरा है, आखिर हमने उसका क्या बिगाड़ा है?

अनजान होने की वजह से मैं रामनगर से 5 किलोमीटर आगे रामपुरिया पहुंच जाता हूँ. यहां रास्ता पूछने के लिए रुका.
एक बैलगाड़ी पर पूरा परिवार सवार हो कर गांव छोड़ कर जा रहा था. बैलगाड़ी पर से मेरे कैमरे को कौतुहल से देखते 2 और 4 साल के दो बच्चे चुगली खा रहे थे कि इन लोगों का जल्द ही वापस लौट आने का कोई इरादा नहीं हैं.
पूछने पर पता लगा कि इस परिवार की छह बीघे पर बोई हुई धनिए की फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है.
अब यह परिवार पास ही एक भट्टे पर मजदूरी करने के लिए जा रहे हैं. बैलगाड़ी के जरिए सामन ढोया जाना था. औरतें भट्टे पर काम करेंगी.
परिवार का 21 वर्षीय बेटा चार दिन पहले ही दिहाड़ी मजदूरी के लिए कोटा जा चुका है.

गांव में खाने के कुछ नहीं बचा तो मजूरी के अलावा चारा क्या है?

गांव में खाने के कुछ नहीं बचा तो मजूरी के अलावा चारा क्या है?

गांव के नुक्कड़ पर खड़े गोबरी लाल कहते हैं,'आप देख रहे हैं ना सब गांव छोड़-छोड़ कर भाग रहे हैं. फसल पूरी तरफ से बर्बाद हो गई है. मजदूरी से ही पेट भराई हो पाएगी.' गोबरीलाल बोल ही रहे थे कि हैंडपंप पर अपनी भैंस को नहलाने आए पुरुषोत्तम ने दार्शनिक अंदाज में कहा, 'ये तो कुदरत है. भगवान जैसा चाहेगा वैसा होगा. वो चींटी को कण और हाथी को मण देता है.'
गोबरीलाल के चहरे पर अजीब सी कड़वाहट फ़ैल गई. उन्होंने गुस्से में भर कर कहा, ' सब उस भगवान् का किया-धरा है. हमने आखिर उसका क्या बिगाड़ा है जो हर साल भूखे मरने की नौबत आ जाती है?'
यहां से मुझे बताया गया कि रामनगर के लिए जहां से सड़क मुड़ती है वहां एक बुढ़िया ने चाय की दुकान लगा रखी हैं. मैने दूर से चाय की दुकान देख ली.
जिस बुढ़िया का जिक्र गोबरीलाल कर रहे थे वो वस्तुतः कंकाल पर चढ़े हुए लिजलिजे चमड़े के ढांचे से अधिक कुछ नहीं कही जा सकती. केशरिया रंग के कपड़े पहने यह बुढ़िया सड़क किनारे बने लोकदेवता रामदेव जी की थान की पुजारिन थी.
शायद देवता की कमाई काफी कम थी इसलिए मजबूरन इसे चाय की दूकान लगानी पड़ी हो.

मैंने कन्फर्म करने के लिए एक बार फिर से उससे रामनगर का रास्ता पूछा. उसने अंदर की तरफ जाती सड़क की ओर इशारा करते हुए मेरे गले में लटक रहे कैमरे को गौर से देखा.
इसके बाद वो मुझसे उसकी फोटो उतारने की जिद करने लगी.
कपड़े से बने दो घोड़ों और अपनी ओढ़नी को आपनी तरफ खींचने के बाद वो बूढ़ी पुजारिन सज-धज कर तैयार थी अपनी फोटो उतरवाने के लिए.

हां यह सच है. उसने खेत में सपने बोए थे…..

आखिरकार मैं विनोद मीणा के घर पर था. मैं जब विनोद के घर पहुंचा तो अंकी बहन ने मुझसे कहा कि घर पर बात करने वाला कोई नहीं था. हालांकि विनोद की बहन और माँ घर पर ही थीं.

पितृसत्ता इसी तरह से काम करती है. वो आपकी अभिव्यक्ति को भी बंधक बना लेती है.

विनोद का 14 साल का भाई सोनू इतना वयस्क नहीं था कि पूरे मामले को ठीक से रख सके. लिहाजा पड़ोस से रिटायर्ड पुलिस सब इंस्पेक्टर राधाकृष्ण मीणा को मुझसे बात करने के लिए बुलाया गया.

इस दौरान मैंने विनोद की माँ से बात करने की कोशिश की. बहुत कोशिश करने के बाद भी बात नहीं सुन सका. शायद उनके शब्द उनके घूंघट से टकरा कर वापस लौट जाते होंगे.

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विनोद मीणा की माँ के शब्द उनके घूंघट से टकरा कर लौट जाते..

विनोद की कहानी इस सभी मामलों में सबसे अधिक त्रासदीपूर्ण है. विनोद के पिता गोबरीलाल काफी समय पहले दिमागी रूम से विक्षिप्त हो चुके थे.

इसके चलते उसकी माँ उसके दो भाई-बहनों को बचपन में अपने पीहर ले कर चली गई थी. बहन फुलंता जब 18 साल की हुई तो उसकी शादी के सिलसिले में विनोद दो साल पहले गांव लौट आया था.

अभी साल भर पहले ही एक लाख रूपए का कर्ज ले कर बहन की शादी की थी.

कर्ज उतारने के उसने 6 बीघा जमीन 10 हजार रूपए सालाना की दर से मुनाफे पर ली. इसके अलावा चार बीघा उसके पास अपनी काश्त थी. कहने को उसने मटर और गेंहू बोया था पर उसके साथ कुछ सपने भी थे जो मटर की फलियों और गेंहू की बालियों के भीतर पक रहे थे. अभी दो महीने पहले ही उसकी सगाई हुई थी. छोटा भाई सोनू 8वीं में आ चुका था. अब उसकी पढ़ाई गांव में संभव नहीं थी. बहन की शादी शादी का कर्ज. पिछली साल खराब हुए सोयाबीन में लगा घटा सब पाट देना था. और इस बार उसे दसवीं का इम्तिहान भी देना था. हालांकि वो दो बार पहले पास नहीं हो पाया था लेकिन उसने उम्मीद नहीं छोड़ी थी.
18 तारीख की सुबह विनोद दोपहर में खाना खाने के बाद घर से निकल गया. उसके बाद जो हुआ वो पुलिस रिपोर्ट में कुछ इस तरह से दर्ज है –
' कल 18.3.2015 को 11-12 बजे विनोद पुत्र गोबरी लाल निवासी रामनगर ओले से नष्ट हुई फसल देखने गया था. इसके बाद घर ना लौटने पर हमने उसकी तलाश शुरू की.लेकिन कोई पता नहीं चला. गांव के दस-बीस आदमियों ने अगल-अलग जगहों पर तलाश की तो विनोद की लाश खेत में बने गड्ढे में बम्बूलों के पेड़ के पास मिली. लाश के पास शराब के दो चप्पे और जहर जैसी गंध वाला तरल पदार्थ मिला. प्रार्थना पत्र पेश कर निवेदन हैं कि नियमानुसार कार्रवाही करें.'

पडौसी राधेकृष्ण मीणा बताते हैं कि विनोद ने कभी शराब नहीं पी. इस पर विनोद की माँ बादाम बाई ने कहा कि बाप की जो हालत है आपको पता ही है. विनोद को हमेशा घर की चिंता रहती थी. सारा काम वही देखता था. 19 साल की उम्र में मेरे बेटे ने अपनी बहन की शादी की साड़ी जिम्मेदारी उठाई थी. अगर शराब पीता तो यह सब कर पाता? आप मेरा भरोसा करो उसने उस दिन से पहले कभी शराब नहीं पी. अलबत्ता उसकी उसके मामा से लड़ाई हो थी होली पर जब वो शराब पी कर हमारे घर आ गए थे. पूरी बातचीत के दौरान विनोद का छोटा भाई सोनू अपनी साइकिल के टूटे हुए पैडल को सही करने की कवायद में लगा रहा. वो बीच-बीच में मुझे असहज करने वाली नज़रों से घूर लेता.

मौका-मुआयना करने आई पुलिस की टीम ने पोस्टमार्टम के लिए विनोद की लाश को अपनी जीप में जाने से साफ़ मना कर दिया. राधेकृष्ण मीणा बताते हैं कि गांव के लोगों ने चंदा करके लाश को पोस्टमार्टम हाउस और वहां से घर लाने की व्यवस्था की.

पुलिस का यह रवैय्या हैरान करने वाला नहीं हैं. मैने जब स्थानीय पुलिस अधिकारी से इस केस के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने दो किस्म की कांस्परेसी थ्योरी पेश की. पहली, उसके 19 तारीख से परीक्षा होनी थी. इसके चलते उसने जहर खा लिया. दूसरी, उसकी शादी होने वाली थी, अपनी होने वाली बीवी से कुछ झगड़ा हो गया था, या उस लड़की का किसी दूसरे लडके के साथ चक्कर रहा होगा. इसके चलते उसने जहर खा लिया. दूसरी थ्योरी बताते हुए उनकी एक आंख अजीब दब गई थी. मैं उनसे पूछा कि क्या आपको कोई सबूत मिला है जिसके आधार पर यह साबित किया जा सके. उनका कहना था तफ्तीश जारी है. इधर राज्य सरकार ने केंद्र को भेजी रिपोर्ट में कहा है कि सूबे में किसी भी किसान ने कृषि कारणों की वजह से आत्महत्या नहीं की है.

 वो खेत की रखवाली कर रहा था पर, खेत उसकी रखवाली ना कर सके…

विनोद के घर से निकल कर मैं हीरा लाल बैरागी के घर पहुंचा. रामनगर में यह बैरागियों का एक मात्र घर है. इनका परम्परागत काम गांव के मंदिर की सेवा करना. अजीवाका चालाने के लिए यह परिवार गांव में हर सुबह भीख मांगता है. इसके अलावा मंदिर के खाते में पड़ने वाली 10 बीघा जमीन से प्राप्त होने वाली उपज से 12 सदस्यों वाला यह परिवार अपना भरण-पोषण करता है.

35 साल मरने की को उम्र नहीं होती..

35 साल मरने की कोई उम्र नहीं होती..

बैरागी जैसी बिरादरियां जनजातियों के हिन्दुकरण की प्रक्रिया के दौरान बचे हुए अवशेष के रूप में आज भी विद्यमान हैं. ये बिरादरी किसी जमाने में मीणा और अन्य जनजातियों में पुरोहित का काम करती रही होंगी. लेकिन हिन्दु वर्णव्यवस्था में यह जगह पहले से ही ब्राह्मणों के लिए आरक्षित थी. इस लिए इन्हें पुरोहित के स्थान से धकेल कर मंदिर की सेवा का जिमा सौंप दिया गया. ये लोग लोक देवताओं के भजन गाते हैं. भीख में आटा मांग कर अपना जीवनयापन करते हैं. 34 साल का हीरालाल लोक देवताओं के भजन गाने के लिए आस-पास के गांवों में मशहूर था.
21 मार्च की रात को हीरालाल गांव के ही जागरण में गया था. वहां उसको भजन गाना था लेकिन भजन गाने की इच्छा ना होने की बाट कह कर वो वहां से अपने खेत पर लौट आया. आज रात खेत की रखवाली करने की बारी उसी की थी. सुबह चार बजे जब खेत पड़ौसी ने हीरालाल को चाय पीने के लिए जगाया तबी तक वह जड़ हो चुका था. इसकी सूचना हीरालाल के भाई वरुण को दी गई. यहां से हीरालाल को सुल्तानपुर ईलाज के लिए ले जाया गया. यहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

हीरालाल के बचपन के दोस्त रहे शिवप्रकाश का कहना है , 'फसल खराब होने के बाद से हीरालाल ने लगभग बाट करना छोड़ ही दिया था. हमेशा चिंता में रहता. मरने के दो दिन पहले ही हमारी मंदिर में मुलाकात हुई थी. कह रहा था कि छोटे भाई की शादी इसी साल करनी है. पहले से दो लाख का कर्ज है. ब्याज भी नहीं चुका पा रहा हूँ.' उन्होंने आगे कहा, ' मैंने उसे हिम्मत बंधाई. खेत पर भी जाने से मना किया था. पर वो नहीं माना. गया तो ऐसा गया कि लौट कर नहीं आया.'

मैंने उनसे कहा कि हीरालाल की मौत तो दिल का दौरा पड़ने से हुई है. सरकार इसे स्वाभाविक मौत मान रही है. वो जवाब देते इससे पहले हीरालाल के छोटे भाई वरुण ने जवाब देना शुरू कर दिया. वरुण ने मुझसे कहा, 'आप तो पढ़े-लिखे हैं साहब. ये कोई उमर है क्या मरने की? आपको तो यह बात समझ में आती होगी.' मैं वरुण को कहना चाह रहा था कि अक्सर पढ़े-लिखे लोग ही चीजें समझ नहीं पाते या फिर वो समझाना नहीं चाहते.

भारत में सिर्फ रामानुज ही गणित की एक मात्र जानी-पहचानी प्रतिभा है. लेकिन तहसील से लेकर मंत्रालय तक ऐसी कई गणितीय प्रतिभाएं थोक के भाव उपलब्ध हैं. जो नुक्सान 27 मार्च को 22500 का आंका गया था वो 4 अप्रैल को 8500 करोड़ पर पहुंच जाता है. आपदा से मरने वाले किसानों की संख्या 32 से शून्य पर पहुंच जाती है. तो ये करिश्मा इन्ही गणितीय प्रतिभाओं के दम पर हो रहा है.

मुआवजे के नाम पर को-ऑपरेटिव बैंक अक्सर नॉन-कोऑपरेटिव  हो जाते हैं…..

रामनगर से निकल कर मैं बूढादीत पहुंचा. यहां स्थानीय सहकारी समितियों के चैयरमेन की बैठक होनी थी. बूढादीत में 11वीं शताब्दी का बना हुआ सूर्य मंदिर है. स्थापत्य के लिहाज से देखने लायक. इस बैठक में मेरी बात 20 स्थानीय सहकारी समिति के प्रमुखों से हुई. उनका कहना था कि अगर सरकार का रवैय्या सहकारी समितियों के प्रति अनदेखी का ना हो तो किसानों को मुआवजे के किसी का मुंह देखने की जरुरत ना पड़े.

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मंडावरा सहकारी समिति के अध्यक्ष जगदीश स्वामी बताते हैं कि किसान क्रेडिट कार्ड पर मिलने वाला लोन के लिए किसानों से दस हजार रूपए फाइल चार्ज के लिए वसूल लिया जाता है. इसके अलावा निजी कंपनियों द्वरा फसल का बीमा किया जाता. यह बीमा ऋण देने की अनिवार्य शर्तों में शामिल है. बैंक का अनुबंध निजी बीमा कम्पनियों के साथ होता है. किसान को दिए जाने वाले ऋण से बीमा प्रीमियम पहले से कट लिया जाता है. लेकिन किसान को पता तक नहीं होता कि उसकी फसल का कोई बीमा हुआ भी है या नहीं.

ऐसे ही रणवीर सिंह बताते हैं कि निजी कंपनी क्लेम देने के लिए गिरदावरी रिपोर्ट को सही नहीं मानती है. उन्होंने अपने वेदर स्टेशन जगह-जगह बनाए हुए हैं. ये वेदर स्टेशन एकदम फर्जी हैं और आधी बार बंद होते हैं. ऐसे में इसके द्वारा किया गया आंकलन अक्सर गलत होता है. सहकारी बैंकों के द्वारा दिए गए ऋण में भी भ्रष्टाचार की बात  सब लोग स्वीकार करते हैं. रणवीर सिंह बताते हैं कि सहकारी बैंको जो मुआवजा वितरण के लिए आवंटित होता है, उसमें से आधा बिना बंटे वापस चला जाता है.

सरकार के द्वारा तय किए मापदंडों के अनुसार असिंचित भूमि के लिए 1088रु.,सिंचित भूमि के लिए 2160रु., और डीजल पम्प द्वारा सिंचित भूमि के लिए 3000 रूपए अधिकतम मुआवजा प्रति बीघा दिया जा सकता है. अधिकतम का मतलब है जब आपकी फसल सौ फीसदी ख़राब हुई हो. इस मुआवजे के हकदार आप तभी बनते हैं जब पूरी तहसील में पचास फीसदी नुकसान हुआ हो. यह भी दो हैक्टेयर तक की फसल पर लागू है. जब प्रीमियम के लिए खेत को इकाई मान कर पैसा वसूला जाता है तो बीमा के भुकतान के लिए तहसील को इकाई मानने के पीछे का तर्क समझ से परे है.

आंकड़े रणवीर सिंह और जगदीश स्वामी की बातों की तस्दीक करते हैं. राजस्थान में 29 में से 17 सहकारी बैंक बंद होने की कगार पर हैं. क्योंकि इनके पास रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित 7 फीसदी का कैश रिजर्व भी नहीं बचा है. शेष 12 भी इसी रास्ते पर तेजी से बढ़ रहे हैं. इसी तरह निजी कम्पनियों द्वारा किए गए फसल बीमा का हाल यहाँ है कि पिछले तीन साल में निजी कंपनियों ने क्लेम के नाम पर 600 करोड़ के लगभग का प्रीमियम किसानों से वसूला है जबकि महज 50 करोड़ के क्लेम की भरपाई की है. जबकि पिछले तीन से लगातार किसान फसल बर्बादी की मार झेल रहे हैं.

यहीं मुझे स्थानीय अखबार के अंशकालीन पत्रकार रामजी मिल गए.वो इस मीटिंग को कवर करने आए थे. रामजी को अपने क्षेत्र के सभी मृतक किसानों के नाम और पते मुख-जबानी याद थे. उन्होंने मुझे बताया असल में मरने वाले लोगों की संख्या काफी ज्यादा है. उनके ब्लाक में चार केस ऐसे केस हैं जिनमें किसान दिल का दौरा पड़ने के कारण मरें हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में परिजनों ने ना तो पोस्टमार्टम करवाया और ना ही पुलिस रिपोर्ट की.उन्होंने बताया कि यहां लोगों का रवैय्या यह है कि पुलिस रिपोर्ट से कुछ होना जाना है नहीं. फिर रिपोर्ट करवाने का क्या फायदा?

फिर से भीड़ का हिस्सा बनना ……

कोटा में मेरी आखिरी शाम ने मुझे थोड़ा नोस्टालजिक होने का मौका फहम किया. मैंने ऑटो वाले से एलन ले चलने के लिए कहा. उसका जवाब था कि कौनसी बिल्डिंग ले चलूं? यहां एलन की 12 बिल्डिंग हैं. यानी महज सात में 10 नई बिल्डिंग तैयार हो चुकी थीं. वेबसाइट खोल कर देखा तो पता लगा कि कोटा के अलावा 12 और सेंटर खुल चुके हैं. यह सोच कर सिहरन पैदा होती है कि यह व्यवसाय किस तेजी से विकास कर रहा है.

2007 में मैं भी उन हजारों छात्रों की भीड़ का हिस्सा था जिनके अभिभावक चाहते थे कि उनका बेटा/बेटी डॉक्टर या इंजिनियर बने. अब यह भीड़ लाखों में हो चुकी है. जिस समय मैं एलन पहुंचा यहां दरगाह बाजार जैसा माहौल था. महवीर नगर 1 और 2 के बीच पड़ने वाले नाले पर एक पुलिया बन चुका था जिसे शायद माइनस कहा जाता है. ये सत्र शुरू होने का समय था. ये पूरा दृश्य अजीब सी कोफ़्त पैदा कर रहा था. आखिर इस देश को हो क्या गया है? क्यों डॉक्टर/इंजिनियर बनने का दबाव हर पीढ़ी पर बढ़ता ही जा रहा है? हमारे समय एलन की फीस 30 हजार हुआ करती थी जोकि अब 1 लाख से ज्यादा हो चुकी है. साल-दर-साल शिक्षा उन लोगों की जद से बहुत दूर होती जा रही है जिनको इनकी सबसे ज्यादा जरुरत है.

इसी बीच मैं सोच रहा था कि क्या मैं हमारे देश के दस डॉक्टर के नाम बता सकता हूँ जिन्होंने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में कुछ विशेष उपलब्धि हासिल की हो. क्या ऐसे दश डॉक्टर हैं जिन्होंने ईलाज को सस्ता बनाने की दिशा में कोई ख़ास य्ग्दान दिया हो जिससे भारत सहित तीसरी दुनिया की गरीब जनता के लिए ईलाज जैसी बुनियादी जरुरत को पूरा किया जा सके?

मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ता जा रहा था. एक बार फिर उसी भीड़ का हिस्सा बन कर. मैं उन दुकानों पर नजर दौड़ा रहा था जिनसे मैं नियमित रूप सामान लिया करता था. वो मेरा चेहरा शायद ही पहचाने. इस बीच डॉक्टर बनने आए इन लाखों छात्रों को इस बात का रत्ती भर इल्म नहीं होगा कि इस शहर के बाहर बसने वाले गांव-के गांव 'किसान आत्महत्या नाम के कैंसर का शिकार हो चुके हैं. यह पहली बार है कि कोटा के किसानों ने आत्महत्या की है लेकिन यह आखिर बार नहीं होगा.

रात 11 बजे मुझे कोटा भोपाल पेसेंजर पकड़नी है. कोटा की यात्रा खत्म करके बुंदेलखंड की ओर कूच करना है. बुंदेलखंड में किसान आत्महत्या का पुराना इतिहास है. इस साल की त्रासदी ने संख्या में भारी इजाफा किया है. जिस दर से बुंदेलखंड में किसान मर रहे हैं वो पिछले कई साल के रिकॉर्ड तोड़ देगा. या फिर इन किसानों का नाम ही रिकॉर्ड से गायब कर दिया जाएगा ? फिलहाल सफ़र जारी है……

 

पहली कड़ी आप यहां पढ़ सकते हैं..

 

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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

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Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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