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Thursday, July 31, 2014

अपने नवारुणदा नहीं रहे।आशंका पहले से ही थी। लंबे अरसे से मुलाकात नहीं है। आज शाम चार बजे नवारुण दा यह मृत्यु उपत्यका छोड़ गये। आज अब कुछ भी लिखने की हालत में नहीं हूं। उनको श्रद्धांजलि बतौर आयोजन में प्रकाशित उनके वक्तव्य और फिर मृत्यु उपत्यका।

अपने नवारुणदा नहीं रहे।आशंका पहले से ही थी।
लंबे अरसे से  मुलाकात नहीं है।
आज शाम चार बजे नवारुण दा यह मृत्यु उपत्यका छोड़ गये।
आज अब कुछ भी लिखने की हालत में नहीं हूं।
उनको श्रद्धांजलि बतौर आयोजन में प्रकाशित उनके वक्तव्य और फिर मृत्यु उपत्यका।
पलाश विश्वास

नबारुण भट्टाचार्य का काव्य पाठ

11/10/2011
















कविता लिखना बैंक खाता खोलना नहींवृहद संवाद स्थापित करना हैः नबारुण भट्टाचार्य -जन संस्कृति मंच ने बांगला के मशहूर कवि का कविता पाठ आयोजित कियानई-पुरानी कविताओं का हुआ पाठ .नई दिल्ली .

कविता लिखना एक बैंक खाता खोलना नहीं है. कविता वृहद समाज से संवाद करने का जरिया हैइसे निजी गुफ्तगू-विमर्श का माध्यम नहीं बनाना चाहिए. वही कविता याद रखी जाती है जो अपने समयसमय के सवालोंचुनौतियों से मुखातिब होती है. आज के युवा कवियों के सामने इस बड़ी चुनौती को पेश किया बांग्ला के सुप्रसिद्ध कवि और कथाकार नबारुण भट्टाचार्य ने.

नबारुण ने कहा कि आज एक बार फिर मार्क्सवाद जी उठा हैअमेरिका से लेकर यूरोप में पूजीवाद के खिलाफ आक्रोश है और इसे रचनाकारों को समझना चाहिए. जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित उनके कविता पाठ के बाद हुई बातचीत में उन्होंने रचना कर्ममार्क्सवाद और भविष्य की दिशा के बारे में खुलकर अपने विचार रखे.जन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित इस कविता पाठ के कार्यक्रम में नबारुण की नई-पुरानी कविताओं का पाठ हुआ. नबारुण ने अपनी कविताओं का पाठ बांग्ला में किया औऱ उसके बाद उनका अंग्रेजी में तर्जुमा पढ़ा गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी के वरिष्ठ कवि-पत्रकार-अनुवादक त्रिनेत्र जोशी ने की और संचालन वरिष्ठ कवि अजय सिंह ने किया. कार्यक्रम की शुरुआत में अजय सिंह ने कहा कि नबारुण उस समय भी अपनी रचनाओं के साथ मार्क्सवाद के पक्ष में खड़े हुए जब पश्चिम बंगाल में मार्क्सवाद के खिलाफ मुहिम चल रही थी.

नबारुण ने अपनी प्रसिद्ध कविता-- कविता के बारे में कविता से शुरुआत कीजिसमें उन्होंने सीधे-धारदार शब्दों में कहा कि जो कविता गरीब-अपेक्षित आदमी के पक्ष में नहीं खड़ी होती उसकी कोई जमीन नहीं होतीवह कविता नहीं होती. इसके बाद उन्होंने फैज और अली सरदार जाफरी पर लिखी कविता का पाठ किया. नबारुण ने पूरे वेग और उत्साह के साथ अपनी बेहद लोकप्रिय कविता मृत्यु उपत्यका मेरा देश नहीं—जब पढ़ी औऱ इसके बाद कवि नीलाभ ने उसका हिंदी तर्जुमा पढ़ा. हिंदी के वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने नबारुण की नई कविता का अनुवाद पढ़ाजिसमें एक साबूत सवालगमक रही सेनिटरी संसद आदि प्रमुख थी. मंगलेश डबराल ने ही नबारुण की अधिकतर कविताओं का हिंदी में अनुवाद सुगम बनाया है.

मंगलेश जी ने कहा कि नबारुण की कविता जनपक्षधर कला और रचना की श्रेष्ठताखूबसूरत बिंबों का विरला संगम है. मंगलेश डबराल के साथ इस अनुवाद में मदद करने वाली संस्कृतिकर्मी शंपा भट्टाचार्य ने भी उनकी नई कविता हे कविअपने को जानने की कविताचिट्ठी पढ़ी. उनके बाद कवि अजंता देव ने अच्छी बनाम बुरी कविता का पाठ किया. हिंदी कवि शोभा सिंह,मुकुल सरलरंजीत वर्मा ने भी कई कविताओं का पाठ किया. समकालीन तीसरी दुनिया के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा,बीबीसी के राजेश जोशीसुधीर सुमन ने भी नबारुण की कविता पढ़ी. त्रिनेत्र जोशी ने अध्यक्षतीय वक्तव्य में कहा कि नबारुण की कविता आज भी उसी तरह से जवान हैवैसी ही हरी है,जैसे वह सत्तर के दौर में थी. नबारुण की कविता मौजूदा दौरजहां सारे विकल्प खत्म होते दिखाई देते हैंवहां हमें हारने के विरुद्ध खड़ा करती हैसंबल देती है.
भाषा सिंह






यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश :: नवारुण भट्टाचार्य 


यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश
जो पिता अपने बेटे की लाश की शिनाख़्त करने से डरे
मुझे घृणा है उससे
जो भाई अब भी निर्लज्ज और सहज है
मुझे घृणा है उससे
जो शिक्षक बुद्धिजीवी, कवि, किरानी
दिन-दहाड़े हुई इस हत्या का 
प्रतिशोध नहीं चाहता
मुझे घृणा है उससे

चेतना की बाट जोह रहे हैं आठ शव
मैं हतप्रभ हुआ जा रहा हूँ
आठ जोड़ा खुली आँखें मुझे घूरती हैं नींद में
मैं चीख़ उठता हूँ
वे मुझे बुलाती हैं समय- असमय ,बाग में
मैं पागल हो जाऊँगा
आत्म-हत्या कर लूँगा
जो मन में आए करूँगा

यही समय है कविता लिखने का
इश्तिहार पर,दीवार पर स्टेंसिल पर
अपने ख़ून से, आँसुओं से हड्डियों से कोलाज शैली में
अभी लिखी जा सकती है कविता
तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षत मुँह से
आतंक के रू-ब-रू वैन की झुलसाने वाली हेड लाइट पर आँखें गड़ाए
अभी फेंकी जा सकती है कविता
38 बोर पिस्तौल या और जो कुछ हो हत्यारों के पास
उन सबको दरकिनार कर
अभी पढ़ी जा सकती है कविता

लॉक-अप के पथरीले हिमकक्ष में
चीर-फाड़ के लिए जलाए हुए पेट्रोमैक्स की रोशनी को कँपाते हुए
हत्यारों द्वारा संचालित न्यायालय में
झूठ अशिक्षा के विद्यालय में
शोषण और त्रास के राजतंत्र के भीतर
सामरिक असामरिक कर्णधारों के सीने में
कविता का प्रतिवाद गूँजने दो
बांग्लादेश के कवि भी तैयार रहें लोर्का की तरह
दम घोंट कर हत्या हो लाश गुम जाये
स्टेनगन की गोलियों से बदन छिल जाये-तैयार रहें
तब भी कविता के गाँवों से 
कविता के शहर को घेरना बहुत ज़रूरी है

यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश
यह जल्लादों का उल्लास-मंच नहीं है मेरा देश
यह विस्तीर्ण शमशान नहीं है मेरा देश
यह रक्त रंजित कसाईघर नहीं है मेरा देश

मैं छीन लाऊँगा अपने देश को
सीने मे‍ छिपा लूँगा कुहासे से भीगी कांस-संध्या और विसर्जन
शरीर के चारों ओर जुगनुओं की कतार
या पहाड़-पहाड़ झूम खीती
अनगिनत हृदय,हरियाली,रूपकथा,फूल-नारी-नदी
एक-एक तारे का नाम लूँगा
डोलती हुई हवा,धूप के नीचे चमकती मछली की आँख जैसा ताल
प्रेम जिससे मैं जन्म से छिटका हूँ कई प्रकाश-वर्ष दूर
उसे भी बुलाउँगा पास क्रांति के उत्सव के दिन।

हज़ारों वाट की चमकती रोशनी आँखों में फेंक रात-दिन जिरह
नहीं मानती
नाख़ूनों में सुई बर्फ़ की सिल पर लिटाना
नहीं मानती
नाक से ख़ून बहने तक उल्टे लटकाना
नहीं मानती
होंठॊं पर बट दहकती सलाख़ से शरीर दाग़ना
नहीं मानती
धारदार चाबुक से क्षत-विक्षत लहूलुहान पीठ पर सहसा एल्कोहल
नहीं मानती
नग्न देह पर इलेक्ट्रिक शाक कुत्सित विकृत यौन अत्याचार
नहीं मानती
पीट-पीट हत्या कनपटी से रिवाल्वर सटाकर गोली मारना 
नहीं मानती
कविता नहीं मानती किसी बाधा को
कविता सशस्त्र है कविता स्वाधीन है कविता निर्भीक है
ग़ौर से देखो: मायकोव्स्की,हिकमत,नेरुदा,अरागाँ, एलुआर
हमने तुम्हारी कविता को हारने नहीं दिया
समूचा देश मिलकर एक नया महाकाव्य लिखने की कोशिश में है
छापामार छंदों में रचे जा रहे हैं सारे अलंकार

जो मृत्यु रात की ठंड में जलती बुदबुदाहट हो कर उभरती है
वह दिन वह युद्ध वह मृत्यु लाओ
रोक दें सेवेंथ फ़्लीट को सात नावों वाले मधुकर
शृंग और शंख बजाकर युद्ध की घोषना हो
रक्त की गंध लेकर हवा जब उन्मत्त हो
जल उठे कविता विस्फ़ोटक बारूद की मिट्टी-
अल्पना-गाँव-नौकाएँ-नगर-मंदिर
तराई से सुंदरवन की सीमा जब
सारी रात रो लेने के बाद शुष्क ज्वलंत हो उठी हो
जब जन्म स्थल की मिट्टी और वधस्थल की कीचड़ एक हो गई हो
तब दुविधा क्यों?
संशय कैसा?
त्रास क्यों?

आठ जन स्पर्श कर रहे हैं
ग्रहण के अंधकार में फुसफुसा कर कहते हैं
कब कहाँ कैसा पहरा
उनके कंठ में हैं असंख्य तारापुंज-छायापथ-समुद्र
एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक आने जाने का उत्तराधिकार
कविता की ज्वलंत मशाल
कविता का मोलोतोव कॉक्टेल
कविता की टॉलविन अग्नि-शिखा
आहुति दें अग्नि की इस आकांक्षा में.



(पिछली शताब्दी के सत्तर के दशक में कोलकाता के आठ छात्रों की हत्या कर धान की क्यारियों में फेंक दिया था। उनकी पीठ पर लिखा था देशद्रोही.)

(सौजन्य से -आशुतोष कुमार) 
 http://durvaa.blogspot.in/2011/11/blog-post_10.html

মৃত্যু উপত্যকা’য় নবারুণ ভট্টাচার্য

চলে গেলেন 'ফ্যাতাড়ু' নবারুণ ভট্টাচার্য


চলে গেলেন 'ফ্যাতাড়ু' নবারুণ ভট্টাচার্য
চিরবিদায় নিলেন সাহিত্যিক নবারুণ ভট্টাচার্য। আজ বৃহস্পতিবার বিকেল চারটা ২০ মিনিটে কলকাতার ঠাকুরপুকুর ক্যানসার হাসপাতালে তিনি শেষনিঃশ্বাস ত্যাগ করেন। বেশ কিছুদিন ধরে তিনি অন্ত্রের ক্যানসারে ভুগছিলেন। মৃত্যুকালে তাঁর বয়স হয়েছিল ৬৬ বছর।
প্রখ্যাত সাহিত্যিক মহাশ্বেতা দেবী ও অভিনেতা বিজন ভট্টাচার্যের একমাত্র সন্তান ছিলেন নবারুণ। তাঁর জন্ম ১৯৪৮ সালের ২৩ জুন পশ্চিমবঙ্গের মুর্শিদাবাদ জেলার বহরমপুরে।
১৯৯৩ সালে হারবার্ট উপন্যাসের জন্য পেয়েছিলেন সাহিত্য একাডেমি সম্মান। এই উপন্যাসকে ভিত্তি করে নাটক এবং চলচ্চিত্রও নির্মিত হয়েছিল।

Poem, এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ নানবারুন ভট্টাচার্য এর ...

www.youtube.com/watch?v=x6IzT0-NolI
২৫ অক্টোবর, ২০১৩ - Harun Rashid আপলোড করেছেন
নবারুন ভট্টাচার্য/‎ জন্ম : ১৯৪৮-এ, বহরমপুরে | বিজন ভট্টাচার্য ও মহাশ্বেতা দেবীর একমাত্র সন্তান নবারুন ভট্টাচার্য | পড়াশোনা করেছেন কলকতার বালিগঞ্জ গভর্নমেন্
মারা গেলেন সাহিত্যিক নবারুণ ভট্টাচার্য। বেশ কিছুদিন ধরে অন্ত্রের ক্যানসারে ভুগছিলেন তিনি। অবস্থার অবনতি হওয়ায় তাঁকে ঠাকুরপুকুর ক্যান্সার হাসপাতালে ভর্তি করা হয়। সেখানেই আজ বিকেল ৪টে ২০ নাগাদ মৃত্যু হয় তাঁর।
সাহিত্যিক বিজন ভট্টাচার্য এবং মহাশ্বেতা দেবীর একমাত্র সন্তান নবারুণ ভট্টাচার্য। জন্ম ১৯৪৮ সালের ২৩ জুন, বহরমপুরে। ১৯৯৩ সালে রচিত হারবার্ট উপন্যাসের জন্য সাহিত্য অ্যাকাডেমি সম্মান পেয়েছেন তিনি। এই উপন্যাসকে ভিত্তি করে পরে নাটক ও সিনেমাও তৈরি হয়েছে।
নবারুণ ভট্টাচার্যের অন্যান্য রচনার মধ্যে উল্লেখযোগ্য 'কাঙাল মালসাট', 'লুব্ধক', 'এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ না', 'হালালঝান্ডা ও অন্যান্য', 'মহাজনের আয়না', 'ফ্যাতাড়ু', 'রাতের সার্কাস' এবং 'আনাড়ির নারীজ্ঞান'। 

নবারুণ ভট্টাচার্য (২৩ জুন১৯৪৮-) একজন সাহিত্য একাডেমি পুরস্কার প্রাপ্ত লেখক এবং কবি। লেখিকা মহাশ্বেতা দেবী ও নাট্যকার বিজন ভট্টাচার্যের পুত্র। তার লেখা হারবার্ট বর্তমানে একটি জনপ্রিয় উপন্যাস।[১] চাকরি জীবনে তিনি ১৯৭৩ সালে একটি বিদেশি সংস্থায় যোগ দেন এবং ১৯৯১ পর্যন্ত সেখানে চাকরি করেন। এরপর কিছুদিন বিষ্ণু দে-র ‘সাহিত্যপত্র’ সম্পাদনা করেন এবং ২০০৩ থেকে পরিচালনা করছেন ‘ভাষাবন্ধন’ নামের একটি পত্রিকা। একসময় দীর্ঘদিন ‘নবান্ন’ নাট্যগোষ্ঠী পরিচালনা করতেন।


যে পিতা সন্তানের লাশ সনাক্ত করতে ভয় পায়
আমি তাকে ঘৃণা করি-
যে ভাই এখনও নির্লজ্জ স্বাভাবিক হয়ে আছে
আমি তাকে ঘৃণা করি-
যে শিক্ষক বুদ্ধিজীবী কবি ও কেরাণী
প্রকাশ্য পথে এই হত্যার প্রতিশোধ চায় না
আমি তাকে ঘৃণা করি-
আটজন মৃতদেহ
চেতনার পথ জুড়ে শুয়ে আছে
আমি অপ্রকৃতিস্থ হয়ে যাচ্ছি
আট জোড়া খোলা চোখ আমাকে ঘুমের মধ্যে দেখে
আমি চীৎকার করে উঠি
আমাকে তারা ডাকছে অবেলায় উদ্যানে সকল সময়
আমি উন্মাদ হয়ে যাব
আত্মহ্ত্যা করব
যা ইচ্ছা চায় তাই করব।

কবিতা এখনই লেখার সময় 
ইস্তেহারে দেয়ালে স্টেনসিলে 
নিজের রক্ত অশ্রু হাড় দিয়ে কোলাজ পদ্ধতিতে
এখনই কবিতা লেখা যায়
তীব্রতম যন্ত্রনায় ছিন্নভিন্ন মুখে
সন্ত্রাসের মুখোমুখি-ভ্যানের হেডলাইটের ঝলসানো আলোয়
স্থির দৃষ্টি রেখে
এখনই কবিতা ছুঁড়ে দেওয়া যায় 
’৩৮ ও আরো যা যা আছে হত্যাকারীর কাছে
সব অস্বীকার করে এখনই কবিতা পড়া যায়

লক-আপের পাথর হিম কক্ষে
ময়না তদন্তের হ্যাজাক আলোক কাঁপিয়ে দিয়ে
হত্যাকারীর পরিচালিত বিচারালয়ে 
মিথ্যা অশিক্ষার বিদ্যায়তনে
শোষণ ও ত্রাসের রাষ্ট্রযন্ত্রের মধ্যে
সামরিক-অসামরিক কর্তৃপক্ষের বুকে
কবিতার প্রতিবাদ প্রতিধ্বনিত হোক
বাংলাদেশের কবিরাও
লোরকার মতো প্রস্তুত থাকুক
হত্যার শ্বাসরোধের লাশ নিখোঁজ হওয়ার স্টেনগানের গুলিতে সেলাই হয়ে 
যাবার জন্য প্রস্তত থাকুক
তবু কবিতার গ্রামাঞ্চল দিয়ে 
কবিতার শহরকে ঘিরে ফেলবার একান্ত দরকার।
এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ না
এই জল্লাদের উল্লাসমঞ্চ আমার দেশ না
এই বিস্তীর্ণ শ্মশান আমার দেশ না
এই রক্তস্নাত কসাইখানা আমার দেশ না
আমি আমার দেশকে ফিরে কেড়ে নেব
বুকের মধ্যে টেনে নেব কুয়াশায় ভেজা কাশ বিকেল ও ভাসান
সমস্ত শরীর ঘিরে জোনাকি না পাহাড়ে পাহাড়ে জুম
অগণিত হৃদয় শস্য, রূপকথা ফুল নারী নদী
প্রতিটি শহীদের নামে এক একটি তারকার নাম দেব ইচ্ছে মতো
ডেকে নেব টলমলে হাওয়া রৌদ্রের ছায়ায় মাছের চোখের মত দীঘি
ভালোবাসা-যার থেকে আলোকবর্ষ দুরে জন্মাবধি অচ্ছুৎ হয়ে আছি-
তাকেও ডেকে নেব কাছে বিপ্লবের উৎসবের দিন।

হাজার ওয়াট আলো চোখে ফেলে রাত্রিদিন ইনটারোগেশন
মানি না
নখের মধ্যে সূঁচ বরফের চাঙড়ে শুইয়ে রাখা
মানি না
পা বেঁধে ঝুলিয়ে রাখা যতক্ষণ রক্ত ঝরে নাক দিয়ে
মানি না
ঠোঁটের ওপরে বুট জ্বলন্ত শলাকায় সারা গায় ক্ষত
মানি না
ধারালো চাবুক দিয়ে খন্ড খন্ড রক্তাক্ত পিঠে সহসা আ্যালকোহল
মানি না
নগ্নদেহে ইলেকট্রিক শক কুৎসিৎ বিক্রত যৌন অত্যাচার
মানি না
পিটিয়ে পিটিয়ে হত্যা খুলির সঙ্গে রিভলবার ঠেঁকিয়ে গুলি
মানি না
কবিতা কোন বাধাকে স্বীকার করে না
কবিতা সশস্ত্র কবিতা স্বাধীন কবিতা নির্ভীক।
চেয়ে দেখো মায়কোভস্কি হিকমেত নেরুদা আরাগঁ এলুয়ার

তোমাদের কবিতাকে আমরা হেরে যেতে দিইনি 
বরং সারাটা দেশ জুড়ে নতুন একটা মহাকাব্য লেখবার চেষ্টা চলছে
গেরিলা ছন্দে রচিত হতে চলেছে সকল অলংকার।
গর্জে উঠুক দল মাদল
প্রবাল দ্বীপের মত আদিবাসী গ্রাম
রক্তে লাল নীলক্ষেত
শঙ্খচূড়ের বিষ-ফেনা মুখে আহত তিতাস
বিষাক্ত মৃত্যুসিক্ত তৃষ্ঞায় কুচিলা
টণ্কারের সূর্য অন্ধ উৎক্ষিপ্ত গান্ডীবের ছিলা
তীক্ষ্ম তীর হিংস্রতম ফলা-
ভাল্লা তোমার টাঙ্গি পাশ
ঝলকে ঝলকে বল্লম চর-দখলের সড়কি বর্শা
মাদলের তালে তালে রক্তচক্ষু ট্রাইবাল টোটেম
বন্দুক কুরকি দা ও রাশি রাশি সাহস
এত সাহস যে আর ভয় করে না
আরো আছে ক্রেন, দাঁতালো বুলডজার বনভয়ের মিছিল 
চলামান ডাইনামো টারবাইন লেদ ও ইনজিন
ধ্বস-নামা কয়লার মিথেন অন্ধকারে কঠিন হীরার মতো চোখ
আশ্চর্য ইস্পাতের হাতুড়ি
ডক জুটমিল ফার্ণেসের আকাশে উত্তোলিত সহস্র হাত
না ভয় করে না
ভয়ের ফ্যাকাশে মুখ কেমন অচেনা লাগে
যখন জানি মৃত্যু ভালোবাসা ছাড়া কিছু নয়।
আমাকে হ্ত্যা করলে
বাংলার সব কটি মাটির প্রদীপে শিখা হয়ে ছড়িয়ে যাব
আমার বিনাশ নেই-
বছর বছর মাটির মধ্য হতে সবুজ আশ্বাস হয়ে ফিরে আসব
আমার বিনাশ নেই-
সুখে থাকব, দুঃখে থাকব সন্তান-জন্মে সৎকারে
বাংলাদেশ যতদিন থাকবে ততদিন
মানুষ যতদিন থাকবে ততদিন।


সংগৃহীত

এই কবিতা তাদের উদ্দেশে......যারা শোষিত মানুষের জন্য কাজ করে.......যারা রাষ্ট্রের পোষা ঘৃনীত প্রাণী দ্বারা হ্ত্যার স্বীকার হচ্ছে মাঠে-ঘাটে........যারা এই রাষ্ট্রের লোক দেখানো আইনের প্রচলিত আইন-আদালতটুকুর সুবিচার পাচ্ছে না...........
সে সব রাষ্ট্রের পোষা বাহিনীর কাছে ক্রসফায়ার/বন্দুকযুদ্ধ/এনকাউন্টার খুব আপন.........আর সাধারন নিপীড়ত মানুষ হল রাস্তার নর্দমা.........
রাষ্ট্রের সেইসব পোষা বাহিনীদের জন্য এদেশের অজস্র মানুষের প্রতিবাদের ভাষা হিসেবে শুধু একদলা থু থাকবে
আর সে সব নিপীড়িত মানুষের প্রতি সমবেদনা..........

মৃত্যু উপত্যকা’য় নবারুণ ভট্টাচার্য

मज़दूर हितों पर एक बड़ा हमला

मज़दूर हितों पर एक बड़ा हमला

केन्द्रीय मंत्रीमण्डल ने पारित किया नया श्रमकानून
मुकुल

अभी विरोध के स्वर उठ भी नहीं सके थे कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने मज़दूर आबादी पर बड़ा हमला बोल दिया है। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आज "अच्छे दिन" के सौगात के तौर पर कार्पोरेट जगत के हित में श्रमकानूनों में बदलाव का प्रस्ताव पारित कर दिया। इसका मूल मंत्र है ''हायर एण्ड फायर'' यानी जब चाहो काम पर रखो, जब चाहो निकाल दो। फिलहाल फैक्ट्री अधिनियम-1948, श्रम विधि (विवरणी देने व रजिस्टर रखने से कतिपय स्थानों में छूट) अधिनियम-1988, अपरेण्टिस अधिनियम, 1961 में कुल 54 संशोधनों पारित हो गये। यह मोदी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण एजेण्डा था। राजस्थान की भाजपा सरकार पहले ही ऐसे कानून बना चुकी थी।

उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार द्वारा गुपचुप तरीके से 5 जून को फैक्ट्री अधिनियम-1948 में, 17 जून को न्यूनतम वेतन अधिनियम-1948, 23 जून को श्रम विधि (विवरणी देने व रजिस्टर रखने से कतिपय स्थानों में छूट) अधिनियम-1988 के साथ ही अपरेण्टिस अधिनियम-1961 व बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) अधिनियम-1986 में भारी संशोधन का नोटिस जारी किया था। यही नहीं, देश के महत्वपूर्ण आॅटो इण्डस्ट्री के क्षेत्र को आवश्यक सेवा में लाने का भी प्रस्ताव आ चुका है। ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 व औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में भी फेरबदल की तैयारी चल रही है।

इस मज़दूर विरोधी कदम का देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध भी हो रहा था। यही नहीं, देश की व्यापक मज़दूर आबादी को तो इसका इल्म तक नहीं था कि क्या होने जा रहा है। लेकिन सबको दरकिनार कर और मज़दूर वर्ग से बगैर सलाह-मशविरे के मोदी सरकार ने ये कारनामा कर दिया। अब तो महज संसद में इसे पारित होने की देर है और मज़दूरों को हलाल करने का कानून अस्तित्व में आ जाएगा।

"हायर एण्ड फायर" की तर्ज पर होगा नया श्रमकानून

प्रस्तावित संशोधनों में साफ तौर पर लिखा था कि "इससे काम करने वालों और उद्योग दोनो को मुक्त माहौल मिले। ...इससे तुरंत नौकरी देने व तुरंत निकालने की समस्या दूर होगी।" मतलब साफ है। प्रबन्धन को जब चाहे काम पर रखने और जब चाहे निकालने की खुली छूट होगी।
नये कानून के तहत जिस कारखाने में 300 से कम मज़दूर होंगे उसकी बन्दी, लेआॅफ या छंटनी के लिए मालिकों को सरकार से इजाजत नहीं लेनी होगी। पहले यह 100 श्रमिकों से कम संख्या वाले कारखानों पर लागू था। वैसे भी आज ज्यादातर कारखानों की स्थिति यह है कि कम्पनी इम्पलाई बेहद कम रखे जाते हैं। अधिकतर काम बेण्डरों से या ठेके पर करा लिया जाता है। मतलब यह कि मनमाने तौर पर छंटनी और कम्पनी बन्द करने का कानूनी रास्ता और खुल जाएगा। प्रस्तावों में उत्पादकता व कारोबार के कथित कमी पर मैन पाॅवर कम करने यानी मनमर्जी छंटनी की छूट भी होगी।

बदले कानून में ठेका प्रथा को मान्यता मिल जाएगी। यहाँ तक कि ठेका कानून 20 कर्मकारों की जगह 50 कर्मकारों वाले संस्थानों में लागू करने की व्यवस्था है। महिलाओं से कारखानों में प्रातः 6 बजे से सांय 7 बजे तक ही काम लेने में बदलाव के साथ उनसे नाइट शिफ्ट में भी काम लेने की छूट दी जा रही है। यही नहीं, कम्पनियों को तमाम निरीक्षणों से भी छूट देने, 10 से 40 कर्मकारों वाले कारखानों को इससे पूर्णतः मुक्त करने, कम्पनियों को श्रमविभाग या अन्य सरकारी विभागों में रिपार्ट देने में भी ढील होगी। यही नहीं, अपरेण्टिस ऐक्ट-1961 में नया प्रावधान यह बन गया है कि प्रबन्धन चाहें जो अपराध करे उसे हिरासत में नही लिया जा सकेगा।

ओवरटाइम के घण्टों में इजाफा करते हुए नये कानून के तहत विद्युत की कमी के बहाने मनमर्जी साप्ताहिक अवकाश बदलने, एक दिन में अधिकतम साढ़े दस घण्टे काम लेने को बारह घण्टा करने, किसी तिमाही में ओवरटाइम के घण्टों की संख्या 50 से बढ़ाकर 100 करने का फरमान है। वैसे भी अघोषित रूप से मनमाने ओवरटाइम की प्रथा चल रही है, जहाँ लगातार कई घण्टे खटाने के बावजूद कानूनन डबल ओवर टाइम देना लगभग खत्म हो चुका है। अब तो इसे कानूनी रूप भी मिल गया।

बदलाव की और भी कोशिशें हैं जारी

अभी तो ये बस शुरुआत है। यूनियन बनाने के नियम और कठोर करने का प्रावधान आ रहा है, जिसमें कम से कम 30 फीसदी कार्यरत श्रमिकों की भागेदारी अनिवार्य करने के साथ ही बाहरी लोगों को यूनियन सदस्य बनाने की सीमा कम करने की तैयारी है। आॅटो इण्डस्ट्रीज को आवश्यक सेवा के दायरे में लेने के प्रयास द्वारा आॅटोक्षेत्र के श्रमिकों को किसी भी विरोध या आन्दोलन के संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिशें पिछली सरकार के समय से ही जारी हैं। मैनयूफैक्चरिंग सेक्टर (एनएमजेड) में नियमों में खुली छूट देते हुए उसे लगभग कानून मुक्त बनाने की तैयारी है। औद्योगिक विवाद अधिनियम-1947 को भी पंगु बनाने के प्रयास जारी हैं।

कार्पोरेट जगत से था मोदी का वायदा

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चुनाव पूर्व कार्पोरेट जगत से किये गये करारों में यह अहम था, इसीलिए सरकार बनते ही महत्वपूर्ण कामों में श्रमकानून में इतना भारी बदलाव हुआ। पिछले लम्बे समय से देश और दुनिया के मुनाफाखोर पुराने कानूनों को बाधा मानते रहे हैं और सरकारों पर खुली छूट देने वाले "लचीला" कानून बनाने का दबाव बनाते रहे हैं। इस मुद्देपर सारे पूँजीपति एकजुट हैं। सरकार से लेकर शाषन-प्रशासन व न्याय पलिका तक इनके हित में खड़ी हैं।
यह गौरतलब है कि 1991 में नर्सिंहा राव-मनमहोन सिंह की सरकार ने देश को वैश्विक बाजार की शक्तियों के हवाले करते हुए जनता के खून-पसीने से खड़े सार्वजनिक उपक्रम को बेचने के साथ मज़दूर अधिकारों को छीनने का दौर शुरू किया था। बाजपेई की भाजपा नीत सरकार के दौर में सबसे खतरनाक मज़दूर विरोधी द्वितीय श्रम आयोग की रिपोर्ट आई। नया श्रमकानून इसी प्रक्रिया का मूर्त रूप है।

जहाँ आज के बदलते और गतिमान दौर में मज़दूर वर्ग को और ज्यादा सहूलियतें व नौकरी की गारण्टी चाहिए, सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती महंगाई के दौर में सम्मानजनक वेतन चाहिए, वहाँ वहाँ मोदी सरकार ने पहले से ही मिल रहे कानूनी अधिकारों में ही डकैती डाल दी। इस बदलाव के साथ सरकार मज़दूर आबादी को एक ऐसा टूल बना देना चाहती है, जिसे इस्तेमाल करने के बाद कभी भी मालिक वर्ग फेंक सके। मज़दूरों की मेहनत के ही दम पर उत्पादन होता है और उसे ही यूज ऐण्ड थ्रो की वस्तु बनाया जा रहा है।

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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