असम में बोड़ो आदिवासी बहुल इलाकों में भड़की हिंसा के बहाने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण की कोशिश!
पलाश विश्वास
असम में बोड़ो आदिवासी बहुल इलाकों में भड़की हिंसा के बहाने सांप्रदायिक राजनीति फिर उफान पर है। मीडिया की खबरों और रपटों में इस हिंसा को असम के हिंदुओं के विरुद्ध घुसपैठिया मुसलमानों के आक्रमण बताकर पूरे देश में मुसलमान विरोधी शरणार्थी विरोधी माहौल तैयार किया जा रहा है जो बेहद खतरनाक है। मूल समस्या आदिवासी बहुल इलाकों में संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर और संविधान के तहत पांचवी व छठी अनुसूचियों में आदिवासियों के हक हकूक को दशकों से नजरअंदाज किये जाने की है। पर माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि एक तरफ मुसलमानों को इस दंगे के लिए एकतरफा जिम्मेवार बनाया जा रहा है, तो दूसरी तरफ बोडो आदिवासियों की स्वयात्तता और जल जंगल जमीन के हकहकूक को खारिज करने की साजिश हो रही है। राजनीति न मुसलमानों के पक्ष में है और न आदिवासियों के हक में। हिंदुओं के हक में भी नहीं। यह तो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण की नये सिरे से कोशिश है , जिससे न सिरफ असम बल्कि पूरे देश में जल जंगल जमीन से बेदखली और कारपोरट वर्चस्ववादी राज कायम रह सकें।वैसे भी असम समस्या कभी हिंदू मुसलमान सांप्रदायिक समस्या नही रही है। बल्कि हमेशा इसे सांप्रदायिक रंग देकर हकीकत को रफा दफा किया जाता रहा है। हमने मेरठ और उत्तर प्रदेश के दूसरे शहरों के महीनों दंगों की आग में जलते देखा है। किसी खास इलाके में योजनाबद्ध ढंग से हिंसा हो और उसपर काबू पाने की कोशिश ही न हो, बल्कि दंगों की आग भड़काने के लिए ध्रूवीकरण की राजनीति हो, यही दंगों की असलियत है, जो सत्ता प्रायोजित सत्ता संचालित होती है।
नब्वे के दशक में हमने अपनी लंबी कहानी उनका मिशन में दंगों के भूगोल का पोस्टमार्टम किया था कि कैसे उद्योग धंधों , आजीविका और कारोबार से आम लोगों को बेदखल करने और कारोबार में वर्चस्व बनाने मेके लिए सुनियोजित तरीके से दंगे कराये जाते हैं। सिर्फ मेरठ ही नहीं, उत्तर प्रदेश के दूसरे छोटे बड़े शहरों कानपुर, इलाहाबाद,वाराणसी, आगरा, अलीगढ़,मुरादाबाद, बरेली, फिरोजाबाद और अन्यत्र हम सबने इसे प्रत्यक्ष देखा है।राम जन्म बूमि आंदोलन के दरम्यान देश बर में सांप्रदायिकता के उफान से बाजार का भूगोल बदल गया और कारोबार से आम लोगों , कासकर कमजोर तबके को बेखल कर दिया जाता रहा। सांप्रदायिक उन्माद से ही बिल्डर प्रोमोटर माफिया राज कायम करने में मदद मिली है। गुजरात में यही प्रयोग वैज्ञानिक तरीके से हुआ , जहां अनुसूचियों और पिछड़ों के हिंदुत्व के पैदल सेना मे तब्दील हो जाने से पूरे राज्य में कारपोरेट राज
कायम हो गया है और इसी उपलब्धि पर नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्रित्व पर दावा है।
१९६० के दंगों में पीड़ितों के बीच मेरे दिवंगत पिता ने काम किया था कामरुप, कछार, नौगांव समेत उपद्रवग्रस्त इलाकों में। १९८० के असम छात्र आंदोलन में भी जनसंख्या का बदलता हुआ चरित्र सबसे बड़ा मुद्दा रहा है।पिताजी शरणार्थियों के राष्ट्रीय नेता रहे हैं और हमारा उनसे हमेसा विवाद इस बात को लेकर रहा है कि वे अल्पसंख्यक होने की मजबूरी में क्यों जीते हैं। जबकि शरणार्थियों की इसी असुरक्षा बोध की वजह से उनका वोट बैंक बतौर इस्तेमाल होता है। शुरू से शरणार्थी समस्या सुलझाने की भारत सरकार या राज्य सरकारों की कोई कोशिश नहीं रही है। इसके लिए न कोई राजनीतिक और न राजनयिक प्रयास किये गये। जिससे पूरे देश में यह समस्या प्रबल हो गयी। जान बूझकर आदिवासी इलाकों में शरणार्थियों की आबादी बसाने की नीति अपनायी गयी ताकि विकास के बहाने और मानविक कारण दर्शाते हुए पांचवीं और छठीं अनुसूचियों के तहत आदिवासियों के हक हकूक खत्म कर दिया जाये। प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों के नैसर्गिक अधिकारों को भारत सरकार मानती ही नहीं है। इसके उलट आदिवासी इलाकों में तमाम प्राकृतिक संसाधन औद्योगिक घरानों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कारपोरेट तत्वों के हवाले कर दिया गया। प्रतिरोध करने वाली आबादी को सर्वत्र अलगाववादी उग्रवादी नक्सली माओवादी कहा जाता रहा। बंगाल, झारखंड, ओड़ीशा, मध्य प्रदेश, आंध्र, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र गुजरात में इसका अंजाम हम देख रहे हैं , जहां आदिवासी भूगोल के विरुद्ध राष्ट्र ने युद्ध छेड़ा हुआ है। आदिवासी क्षेत्रों में 5 वीं , 6 वीं अनुसूचि का स्वायत्तता नहीं होने के कारण जल जंगल और जमीन से बेदखल होना पड़ रहा है।
गौरतलब हो कि ब्रिटिशकाल में स्वायत्तता, स्वतंत्रता और जल जंगल जमीन के हक हकूक के लिए देशभर में बार बार आदिवासी विद्रोह होते रहे।सत्तावर्ग ने इस इतिहास के मद्देनजर आदिवासियों के जल जंगल के हक हकूक को मंजूर नहीं किया है और न आदिवासी इलाकों में भूमि सुधार लागू करने की कोई पहल की है। और तो और, देशभर के ज्यादातर आदिवासी गांवों को राजस्व गांव की मान्यता नहीं है। उनकी मिल्कियत दखल पर आधारित है। एक बार गांव छोड़ते ही आदिवासी हमेशा के लिए अपनी जमीन, अपने घर गांव से बेदखल हो जाते हैं। आदिवासी इलाकों में युद्ध परिस्थियियां बनाया रखना सत्ता के बिल्डर प्रोमोटर कारपोरेट माफिया वर्ग की सोची समझी रणनीति है, ताकि आदिवासियों की बेदखली को उनके अलगाव का फायदा उठाते हुए जायज ठहराया जा सकें। समरस हिंदुत्व बहिष्कार और अस्पृश्यता जाति व्यवस्ता की बुनियाद पर खड़ा है, जहां समता, समान अवसर और न्याय का निषेध है। इस समरस हिंदुत्व में आदिवासियों को समाहित करने का अभियान का
नतीजा गुजरात नरसंहार तक सीमाबद्ध नहीं है, असम की हिंसा और मुसलमानों के खिलाफ, शरणार्थियों के विरुद्ध दिनोंदिन तेज होते प्रचार अभियान और ध्रूवाकरण की राजनीति से साफ जाहिर है।
पूर्वोत्तर में जहां ब्रिटिश राज के दौरान मिजरम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल और असम के तमाम आदिवासी इलाके अनुसूचित क्षेत्र रहे हैं जहां सरकारी कारिंदों , फौज और दूसरे समुदायों के प्रवेश की मनाही थी।आजादी के बाद इन इलाकों में अनुसूचित क्षेत्र वाली पाबंदी खत्म कर दी गयी और विकसित समुदायों को वहा कारोबार करने की, रिहायश की छूट दे दी गयी। पांचवीं और छठी अनुसूचियों के कहत मिलने वाले अधिकारों से भी आदिवासी वंचित कर दिये गये। जब इन इलाकों में, खासतौर पर भारत में विलय के बाद मणिपुर में स्वायत्ता और आत्म निर्णय के अधिकार की मांग प्रबल होती गयी, तो पूरे पूर्वोत्तर में विशेष सैन्य अधिकार कानून लागू कर दिया गया। १९५८ से यह कानून लागू कर दिया गया और पिछले बारह साल से इरोम शर्मिला इसके विरुद्ध आमरण अनशन पर है। जो लोग बोड़ो आदिवासियों को हिंदू बताकर मुसलमानों के खिलाफ घृणा अभियान छेड़ रहे हैं , उन्हें आदिवासियों की स्वायत्तता की मांग अलगाववादी और उग्रवादी लगती है और वे इसके विरुद्ध सलवा जुड़ूम और
सैनिक दमन की नीति अपनाने से बाज नहीं आते। विशेष सैन्य कानून भी जारी रखने के वे पक्षधर हैं। इनका एकमात्र ध्येय आदिवासियों को हिंदू बनाकर हिंदुत्व की पैदल सेना में तब्दील करने की है, उनको उनके हक हकूक बहाल करने से कोई मतलब नहीं है। तमाम वनवासी कल्याण कार्यक्रम दरअसल आदिवासियों के विरुद्ध कारपोरेट अश्वमेध यज्ञ के ही कार्यक्रम हैं।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14(4), 16(4), 46, 47, 48(क), 49, 243(घ)(ड), 244(1), 275, 335, 338, 339, 342 तथा पांचवी अनुसूची के अनुसार अनुसूचित जनजातियों के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक विकास जैसे कल्याणकारी योजनाओं के विशेष आरक्षण का प्रावधान तथा राज्य स्तरीय जनजातीय सलाहकार परिषद की बात कही गई है परंतु इसे अब तक लागू नहीं कर पाना वाकई सरकार के लिए चिंता का विषय है। यह सर्वविदित है कि आदिवासी क्षेत्रों में उपलब्ध खनिज संसाधनों से सरकार को अरबों रुपए के राजस्व की प्राप्ति होती है या सीधे शब्दों में कहा जाए तो सरकार के आय के स्रोत इन आदिवासी क्षेत्रों में उपलब्ध वन संसाधन तथा खनिज संसाधन ही हैं, परंतु इस राजस्व का कितना प्रतिशत हिस्सा उन अनुसूचित क्षेत्रों के राजनैतिक, सामाजिक व आथिक विकास में खपत किया जाता रहा है। संस्कृति के नाम पर उन पर ब्राहम्णवादी संस्कृति थोपी जा रही है। आदिवासी की परंम्परागत धर्म संस्कृति एवं भाषा को जड़ से उखाड़ फेंकने की साजिश रची जा रही है। आदिवासियों को जल, जंगल, जमीन से षडयंत्र के तहत बेदखल किया जा रहा है।
हैरानी की बात है कि धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाली ताकतें भी असम की समस्या को महज हिंदू मुसलिम समस्या मानते हैं, वर्चस्ववादी साजिश को बेनकाब करने में उनकी भी कोई रुचि नहीं हैं, क्योकि इनकी अगुवाई करनेवाले लोग भी अंततः सत्तावर्ग से हैं।संयुक्त राष्ट्र, जिनेवा द्वारा आदिवासी अधिकारों के प्रति विश्व स्तर पर जागरूकता के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से 9 अगस्त को 'विश्व आदिवासी दिवस' के रूप में घोषित किया गया है।यहां आदिवासी हितों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए गए कई योजनाएं बनाई गईं परंतु आजादी के इतने वर्षों के बाद भी देश में आदिवासियों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो सका है।भारत देश के सर्वोच्च न्यायालय ने आदिवासी हितों को ध्यान में रखकर संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने हेतु अपने ऐतिहासिक फैसले में सौ प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक मानने से इंकार कर दिया तथा गत् 5 जुलाई 2011 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के विरुध्द शुरू किए गए सलवा-जुड़ूम अभियान में आदिवासियों को विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) के तौर पर शामिल किए जाने के मामले को असंवैधानिक माना है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आदिवासियों के लिए एक बड़ी राहत के रूप में देखा जा सकता है। पांचवी अनुसूची में शामिल देश के कई राज्यों में पंचायत,नगरीय चुनावों में संविधान का पालन नहीं किया जा रहा है। निर्वाचित राज्य सरकारें आदिवासी हितों का संरक्षण न कर मूल निवासी आदिवासियों के अधिकारों का हनन करती देखी जा सकती है। संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि अनुसूचित क्षेत्रों का औद्योगीकरण करने की अनुमति संविधान नहीं देता। आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य शासन के एम.ओ.यू. को यह कहते हुए निरस्त कर दिया था कि अनुसूचित क्षेत्र की आदिवासी भूमि पर उद्योग लगाना असंवैधानिक है। आदिवासी संरक्षण और विकास के प्रति संविधान दृढ़ संकल्पित है किंतु केन्द्र व राज्य सरकारें संसाधनों के दोहन के नाम पर लगातार औद्योगीकरण को बढ़ावा दे रही है। संविधान के अनुच्छेद 350ए में स्पष्ट निर्देश था कि प्रत्येक राज्य और उस राज्य के अंतर्गत प्रत्येक स्थानीय सत्ता भाषाई अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा की पर्याप्त सुविधा जुटाएगी। किंतु आज तक आदिवासी बच्चों को उनकी भाषा में शिक्षा देने की व्यवस्था नहीं की गई है।
भारतीय संविधान की 5 वीं एवं 6 वीं अनुसूचि जिसमें आदिवासियों की जमीन के कानूनी अधिकार बहाली की है जो स्वशासन के अधिकार के अंतर्गत है। आदिवासियों के इस मौलिक अधिकार से 63 वर्षों बाद भी उन्हें वंचित रखा गया है।
बोडो इलाकों और देश का बाकी आदिवासी इलाकों की जमीनी हकीकत क्या है, इसे जानने समझने के लिए एक केस स्टडी पेश है।सैन्य बलों ने ऐसे कई गाँवों में आदिवासी लोगों को इसी प्रकार हफ्तो-हफ्तों तक अपने ही गाँव में बंधक बनाकर रखा. नित्यकर्म तक उन्हें घर में ही करने को मजबूर होना पड़ा. वृद्ध जो नहीं भाग सके, उनको इतना पीटा गया कि उनकी मौत तक हो गयी...
गौतम नवलखा/ शशिभूषण पाठक और अन्य द्वारा तैयार रिपोर्ट (http://www.janjwar.com/janjwar-special/27-janjwar-special/2659-saranda-podeyahat-fact-finding-report-jharkhand-gautam-navlakha-shashi-bhushan-pathak)
आपरेशन ग्रीनहंट देश के उन इलाको में 2008 से चलाया जा रहा है जहां आदिवासी हैं, जहाँ खनिज संपदाएं हैं, जहां जंगल हैं, और इन्ही क्षेत्रों में माओवादी आंदोलन भी चल रहा है. सारंडा, झारखंड ही नहीं बल्कि देश के स्तर पर भी खनिज सम्पदा के लिहाज से एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है.
पिछले तीन सालों तक आपरेशन ग्रीन हंट चलाये जाने के बाद अगस्त 2011 में ऑपरेशन ऐनाकोंडा के नाम पर सैन्यबलों द्वारा एक विशेष अभियान चलाया गया. इस अभियान से की गयी तबाही के बारे में आप सब जानते हैं कि यहाँ के गांव को एक महीने तक कैंप में तब्दील करते हुए सैन्यबलों ने भारी लूटपाट की. कई आदिवासियों की हत्याएं की गयी, उन्हें जेलों में बिना कारण स्पष्ट किये बंद किया गया, इनमे से ज्यादातर अभी भी चाईबासा की जेलों में बंद हैं, उनके घर तोड़े गए, और उनकी सामुदायिक आर्थिकी को तहसनहस कर दिया गया.
महिलायों के साथ दुर्व्यवहार किये गए और मानवाधिकारों का बेहद हनन हुआ. इसके बाद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने सारंडा एक्शन प्लान की घोषणा की, जिसे बाद में सारंडा डेवल्प्मेंट प्लान कहा गया. सी.डी.आर.ओ. के जांच दल की यह फेक्ट फाइंडिंग सैन्यबलों द्वारा आदिवासियों पर लगातार चलाये जा रहे दमन अभियान और सारंडा डेवल्प्मेंट प्लान की स्थिति को देखना समझना था. दिनांक 20, 21, 22 मई में हुई इस जांच के दौरान हमने पांच गांव का दौरा किया और सैंकडों लोगों से बातचीत की. इस दौरान पौडयाहाट इलाके में भी हम गए, जहाँ इसी माह की बीस तारीख को सैन्यबलों ने एक अभियान चला कर गांव में तोडफोड मचाई और लूटपाट की.
जाँचदल सबसे पहले कमाय गांव, पोयाहाट में गया, जहाँ हमने पाया कि जनवरी 2011 में सैन्यबलों के एक बड़े जत्थे ने गांव के चार लोगों के साथ मारपीट की और उन्हें गिरफ्तार किया, जिनका नाम मार्शल भुइया, नेल्सन भुइया, प्रेमानंद भुइया, और पिंकी भुइया है. सैन्यबलों ने इनके घरों में घुस कर सामान की तोडफोड की, घर में रखे अनाज को एक दूसरे में मिला कर बर्बाद कर दिया और उन पर आरोप लगाया की वे माओवादियों की मदद करते हैं. सैन्य बलों की यह कार्यवाहियाँ महज संदेह के आधार पर की गई. इस आरोप में उन्हें जेल भेज दिया गया. इनमे से मार्शल और नेल्सन भुइया अभी भी चाईबासा जेल में बंद हैं.
गांववालों ने हमे बताया कि सैन्यबल एक समय अंतराल के बाद इस गांव में आते हैं और गांव के लोगों के साथ मारपीट करते हैं जिससे लगातार गाँवों में दहशत बनी हुई है. जाँचदल को सूचना मिली कि इसी 20 मई को पण्डुआ गांव में सैन्यबलों द्वारा एक अभियान के तहत आतंक मचाया गया. 21 मई को वहां पहुँच कर हमने पाया कि गांव के हल्लन हूटर नाम के 25 वर्षीय व्यक्ति को, आँखों में पट्टी और हाथ को पीछे बाँध कर सैन्यबल ले गए हैं.
गांववालों को डर है कि कहीं सैन्यबलों द्वारा उनकी हत्या ना कर दी जाये. सैन्यबलों ने अब्राहम मुंडा के घर में तोडफोड मचाई और उनके 3500 रूपये लूट लिए. गांववालों के अनुसार तीन घंटे तक लगातार सैन्य बलों ने इस गांव में तबाही मचाते हुए अपने साथ लायी शराब और गांजा पिया और गांव से लूटकर मुर्गी और अंडे खाए. 14-15 वर्ष के मिथुन भुइया को पीटा गया. इस दौरान कम से कम 500 सैन्यबल गांव में मौजूद थे.
दहशत की वजह से गांव के अधिकतर लोग घर छोड कर जंगल भाग गए. ज्ञात हुआ कि इससे पहले 10 मई को भी सैन्यबलों ने गांव की कई महिलाओं के साथ गालीगलोच और दुर्व्यवहार किया. हमने पाया कि इस अभियान में कोई भी महिला सैन्य बल की मौजूदगी नहीं होती. पता चला कि मुंडा की पत्नी और उसके 1.5 साल के बच्चे को एक पुलिस के उच्च अधिकारी ने स्वयं पीटा और गांव के एक घर से १०,००० रूपये लूटे, जो कि बैल खरीदने के लिए रखे गए थे. ग्रामीण चिकित्सक को लगातार सैन्यबल प्रताड़ित करते रहते हैं, और उनके घर में भी लूटपाट की गयी है. उस चिकित्सक के खिलाफ ये आरोप लगाया जाता है कि वे माओवादियों का इलाज करते हैं.
जाँचदल ने मनोहरपुर ब्लाक के चार गांव का दौरा किया, जिसमे थालकोबाद, तिरिलपोशी, राटामाटी और दीघा शामिल हैं. इस दौरान यह पाया गया कि ऑपरेशन एनाकोंडा के तहत चलाये गए दमन अभियान में सैन्यबलों ने हर गांव में एक महीने तक आदिवासी घरों को कैंप के रूप में तब्दील कर दिया. थालकोबाद के आवासीय स्कूल को वहां से हटा कर 40 कि.मी. दूर मनोहरपुर में स्थानांतरित कर दिया गया. इस दौरान गांवों के अधिकांश लोग जंगलों में छिपते भटकते रहे. जो पुरुष गांव में थे उन्हें शाम को महिलाओं से अलग एक घर में बंद कर दिया जाता था और कई बार उन्हें यातनाएं भी दी जाती थी.
सैन्य बलों ने ऐसे कई गाँवों में आदिवासी लोगों को इसी प्रकार हफ्तो-हफ्तों तक अपने ही गाँव में बंधक बनाकर रखा. नित्यकर्म तक उन्हें घर में ही करने को मजबूर होना पड़ा. हमने पाया कि ऐसे वृद्ध जो नहीं भाग सके, उनको इतना पीटा गया, कि उनकी मौत तक हो गयी. इस दौरान इन गांवों में कई घरों को जलाया गया और बड़ी तादाद में लोगों को माओवादियों के सहयोग के आरोप में गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया गया. इनमे से अधिकांश लोग अभी भी चाईबासा जेल में बंद हैं. अकेले तिरिलपोशी के 17 लोग जेल में हैं. आर्धिक तौर पर तबाह हो चुके गांव के लोग उन पर चल रही क़ानूनी प्रक्रिया को भी आगे बढ़ाने में असमर्थ हैं.
एक चार्जशीट की मिली एक कॉपी से पता चला कि उन पर यु.ऐ.पि.ऐ. और सी.एल.ऐ. के तहत अभियोग लगाये गए हैं इसके अलावा राज्यद्रोह और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप भी लगाये गए हैं. एक महीने तक चली इस तबाही के दस महीने बाद सी.आर.पी.एफ. द्वारा गांव में कुछ लोगों को कुदाल, बर्तन, कपडे, लालटेन, आदि बांटे जा रहे हैं, जो गांव के कुछ लोगों को ही दिया गया. कुछ गांव वालों ने बताया कि उनके द्वारा दिए गए सामान कुछ ही दिनों में खराब हो गए और कपडे पांच दस दिन में ही फट गए.
ऐसा लगता है कि ऐसे सामानों का बांटा जाना प्रताडना के बाद गांववालों को बहलाने फुसलाने का प्रयास है. आई.ऐ.पि. के तहत बाहरी ठेकेदारों द्वारा काम गांव में करवाए जा रहे हैं, जोकि नियमों के विरुद्ध हैं. इन गांव के आस पास सैन्यबलों के स्थायी कैंप बना दिए गए हैं या बनने कि प्रक्रिया में हैं. जैसा कि हम प्रायः अन्य राज्यों में पाते हैं ठीक उसी तरह यहाँ भी किसी भी सैन्यबल के इन जघन्य आपराधिक कृत्यों के जिम्मेदार अधिकारियों पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
जाँच दल ने पाया कि सैन्यबल अभियानों के तहत आदिवासियों की आर्धिकी को तबाह किया गया, और उन्हें इतना प्रताड़ित किया गया कि वे सैन्यबलों के शासन और सरकारी नीतियों को मानने के लिए बाध्य हो जाएँ. आदिवासी गांव की स्वायत्तता के विरुद्ध सैन्य शासन लगा दिया गया है. सारंडा में सी.आर.पि.एफ. के २०-२५ कैंप लगाये जा रहे हैं. हम मांग करते हैं कि
1. केन्द्रीय सुरक्षा बल और अर्ध सैनिक बालों को इन इलाकों से हटाया जाए.
2. खनिज संपदा के दोहन और सारंडा एक्शन प्लान के नाम पर पेसा और पांचवीं अनुसूची से मिले आदिवासी अधिकारों को छीनना बंद करें.
3. निजी खनन पर रोक लगाईं जाए.
4. जेलों में बंद आदिवासियों को तुरंत रिहा किया जाए और उन पर लगे फर्जी मुकदमो को खारिज किया जाए.
5. सैन्य बलों द्वारा पीड़ित व्यक्तियों को न्याय दिया जाए और उत्पीडन के दोषी पुलिस एवं अर्धसैनिक बल के अधिकारियों को सजा दी जाए.
6. आदिवासियों की अस्मिता और अस्तित्व हनन के बाद अब उनकी रही सही स्वायत्तता पर हमले पर रोक लगायी जाये.
(गौतम नवलखा/शशि भूषण पाठक और अन्य की यह रिपोर्ट कोआर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स आर्गेनाइजेशन द्वारा झारखंड के सारंडा और पौडेयाहाट में किये गये फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पर आधारित है.)
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Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
______________________________________________________
By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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