वायदे के मुताबिक न बाजार और न अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने में कामयाब हो पा रहे हैं खुला बाजार के मसीहा।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
वित्तमंत्रालय से प्रणव मुखर्जी की विदाई के बाद मनमोहन सिंह के प्रभार संबालने के बाद बाजार में जो जोश लौटा था,दादा के राष्ट्रपति भावन पहुंचते न पहुंचते वह सिरे से गायब है। अपने वायदे के मुताबिक न बाजार और न अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने में कामयाब हो पा रहे हैं खुला बाजार के मसीहा।महंगाई की ऊंची दर के चलते रिजर्व बैंक की अगली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम है। इस आशंका में घिरे निवेशक बिकवाली पर उतर आए हैं। इसके चलते गुरुवार को बंबई शेयर बाजार [बीएसई] का सेंसेक्स 206.23 अंक लुढ़ककर 16639.82 पर बंद हुआ। यह इसका छह हफ्तों का सबसे निचला स्तर है। बुधवार को भी गिरावट के साथ यह 16846 अंक पर बंद हुआ था। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज [एनएसई] का निफ्टी भी 66.60 अंक गिरकर 5043 अंक पर आ गया।सूखे पर गठित मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक मंगलवार को होगी जिसमें मानसून की स्थिति की समीक्षा होगी। मानसून की अब तक की समीक्षा स्थिति के अनुसार 22 प्रतिशत कम बरसात के कारण खरीफ फसलों विशेषकर मोटे अनाजों की बुआई प्रभावित हुई है।मानसून और कृषि संकट का अर्थ व्यवस्था पर हो रहे असर से निपटने के लिए सरकार की कोई फौरी योजना न होने से हालत और पतली हो रही है जबकि सूखे पर गठित मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक मंगलवार को होगी जिसमें मानसून की स्थिति की समीक्षा होगी। मानसून की अब तक की समीक्षा स्थिति के अनुसार 22 प्रतिशत कम बरसात के कारण खरीफ फसलों विशेषकर मोटे अनाजों की बुआई प्रभावित हुई है।वैश्विक मंदी की आड़ में सरकार के नीति निर्धारक अर्थ व्यवस्था की बुनियादी समस्याओं को हल करने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं और सारा ध्यान बाजार पर केंद्रित होने से बाजार की सेहत के लिए अहम जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करने से मनमोहन की विशेषज्ञ टीम के नियंत्रण से बाहर हो गयी हैं परिस्थितियां। इस पर तुर्रा यह कि पेट्रोलियम पदार्थ पर मूल्य बढ़ने से आमलोग हताश हो रहे हैं। जबकि महंगाई से पहले ही वे त्रस्त थे। लेकिन इस कार्रवाई से अर्थ व्यवस्था की बुनियादी हालत में कोई बदलाव नहीं आया। तदर्थ प्रबंधन से कोई इलाज संभव भी नहीं है।
उद्योग जगत ने ऐसे हालात में मौद्रिक नीति निर्धारण पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।इससे सरकार की साख पर बट्टा लगता नजर ा रहा है।ऊंची ब्याज दरों की वजह से कुल मुद्रास्फीति में इजाफा हो रहा है और इससे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा मूल्यवद्धि पर अंकुश के प्रयास बेकार हो रहे हैं। उद्योग मंडल एसोचैम के एक अध्ययन में यह बात कही गई है। अध्ययन में कहा गया है कि विनिर्माताओं की ऊंची ब्याज दरों को झेलने की क्षमता अब अपने अंतिम बिंदु तक पहुंचने को है। इसमें कहा गया है कि अब से ब्याज लागत से खर्च बढ़ेगा। ऐसे में इसमें हैरानी नहीं है कि अब ज्यादा से ज्यादा कंपनियों रिजर्व बैंक तथा वाणिज्यिक बैंकों के पास ऋण पुनर्गठन के लिए कतार लगाए खड़ी हैं। उद्योग मंडल ने केंद्रीय बैंक से नीतिगत दरों में कटौती की मांग करते हुए कहा है कि ऊंची ब्याज दरों की वजह से देश का औद्योगिक उत्पादन और आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है।एसोचैम के अध्यक्ष राजकुमार धूत ने एक बयान में कहा कि उद्योग मंडल रिजर्व बैंक से नीतिगत रुख को पलटने का आग्रह करता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो इसका औद्योगिक उत्पादन पर असर पड़ेगा और अंतत: इसका असर जीडीपी पर दिखाई देगा। धूत ने कहा कि यदि यही स्थिति बनी रहती है, तो बैंकिंग क्षेत्र की गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) और दबाव में आ जाएंगी। केंद्रीय बैंक अपनी पहली तिमाही की मौद्रिक नीति की समीक्षा 31 जुलाई को पेश करने वाला है।
भारतीय अर्थ व्यवस्था की जड़ें विदेशी पूंजी प्रवाह में नहीं है बल्कि कृषि में है और विकास दर की कहानी में कृषि की कोई प्राथमिकता ही नहीं है। औद्योगिक विकास दर में सुदार नहीं है और कृषि विकास दर लगातार गिर रही है, इस समस्या को आखिर मौद्रिक कवायद से कैसे सुलझाया जा सकता है ?अभी ताजा स्थिति यह है कि सूखे पर बने मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह के अध्यक्ष कृषि मंत्री शरद पवार ने संवाददाताओं से कहा कि हमने मंगलवार को सूखा पर मंत्री समूह की बैठक बुलाने की योजना बनाई है। मंत्री समूह को सूखे की स्थिति में प्रभावी प्रबंधन के लिए नीतियों और अन्य मसलों पर स्थिति की समीक्षा करने और त्वरित एवं समयबद्ध फैसला लेने के लिए अधिकत किया गया है।कांग्रेस और राकांपा के बीच एक सप्ताह तक चले गतिरोध के हल होने के बाद पवार ने गुरुवार को फिर से अपना कामकाज संभाल लिया। पवार ने कहा कि उनका मंत्रालय खराब मानसून के प्रभावों के बारे में राज्यों से ब्यौरा एकत्रित कर रहा है। पवार ने खाद्य मंत्री के वी थामस और भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक एल एस राठौड़ के साथ मानसून की स्थिति की समीक्षा की। सूखे पर गठित, इस मंत्री समूह की अगुवाई इससे पहले तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी कर रहे थे। मंत्री समूह के सदस्यों में गृहमंत्री पी़ चिदंबरम, बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे, पेट्रोलियम मंत्री एस जयपाल रेड्डी, शहरी विकास मंत्री कमलनाथ, जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल शामिल हैं।अन्य सदस्यों में ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश, रेल मंत्री मुकुल रॉय, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया, खाद्य मंत्री क़ेवी़ थॉमस और वित्त राज्यमंत्री नमो नारायण मीणा शामिल हैं। पवार से मुलाकात के बाद खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने कहा कि हमने मानसून की स्थिति के बारे में विचार विमर्श किया तथा कृषि जिंसों के वायदा कारोबार के बारे में भी विचार किया।इस बीच, मौसम विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में बरसात की स्थिति में सुधार की उम्मीद है। पिछली समीक्षा के अनुसार मानसून की बरसात देश भर में 22 प्रतिशत तक कम रही है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में वर्षा कम हुई है। धान, कपास, मोटे अनाज, तिलहन और दलहन जैसी प्रमुख खरीफ (गरमी) फसलों की बुवाई प्रभावित हुई है।
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7 years ago
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