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From: NAPM India <napmindia@napm-india.org>
Date: 2011/7/28
Subject: [initiative-india] Sangharsh Invite August 3-5: Dharna against Land Acquisition Act in Delhi
To: napm india <napmindia@gmail.com>
दिल्ली चलो! संसद चलो!
प्रिय साथियों!
ब्रिटिश काल से ही सरकार द्वारा ज़बरन किन्ही भी ज़मीनों पर कब्ज़ा लेना और विस्थापन देश के करोड़ो लोगों के लिए एक अभिशाप बना हुआ है। देश की आज़ादी के बाद भी यह सिलसिला बादस्तूर ज़ारी है। क्योंकि ब्रिटिश हुकू़मत का बनाया गया भूमि अधिग्रहण कानून-1894 आज भी देश में लागू है। आज इस काले कानून का इस्तेमाल करके बड़ी-बड़ी कम्पनियों, राष्ट्रीय और राज्य सरकारों के तालमेल ने पूरे देश को एक गृहयुद्ध की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। जगह-जगह पर इस मुददे पर सरकार और आम जनता की सीधी टक्कर चल रही है। यह बड़े शर्म की बात है कि जनवादी तरीके से चुनी हुई हमारी सरकारें भी जानबूझ कर बेखबर हो रही हैं कि इस काले कानून का भयंकर असर हमारी आम जनता के जीवन को किस दुर्दशा में ले गया है। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे आन्दोलन बहुत समय से यह मांग कर रहे हैं, कि प्राकृतिक संपदा के ऊपर निर्भरशील समुदायों का सामुदायिक नियंत्रण और आजीविका के अधिकार सुनिश्चित हों। कुछ हद तक तो पेसा कानून-1996 और वनाधिकार कानून-2006 जैसे प्रगतिशील विधेयकों द्वारा यह अधिकार हासिल हुए हैं, लेकिन ये कानून भी कभी प्रभावी ढ़ंग से लागू नहीं किये गये। केवल इन कानूनों को इनके ज़रिये पटटे बांटने की बात तक ही सीमित किया जा रहा है। इसलिए आज इन कानूनों का आस्तित्व भी ख़तरे में है। शासन और संसद गूंगे बहरों की तरह करोड़ों लोगों की बर्बादी का तमाशा आराम से चुपचाप देख रहे हैं।
संघर्ष ने जो कि तमाम आंदोलनों का समूह है, इस काले कानून को खारिज करके एक जनोन्मुखी समग्र कानून बनाने की मांग को लेकर संसद के सामने जन्तर मन्तर पर करने के लिये एक राष्ट्रीय एक्शन कार्यक्रम बनाया है। इस कार्यक्रम में इन मुद्दों के साथ जनता के अन्य प्रमुख मुददे भी शामिल होंगे। इस धरने में देश के अलग-अलग कोने से संघर्षशील आदिवासी, दलित व अन्य वंचित तबके जैसेः खेतीहर मज़दूर और ग़रीब किसान, वन-जन और अन्य वनाश्रित समुदाय, मछुआरे तथा अन्य ग्रामीण श्रमजीवी समुदाय शामिल होंगे। असम, उड़ीसा, बंगाल, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रेदश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड़, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, गोआ तथा अन्य प्रदेशों से हज़ारों की संख्या में लोग इस ऐतिहासिक धरने में पूरे जोश-ओ-ख़रोश के साथ शामिल होने के लिए आ रहे हैं। इसके साथ-साथ मुम्बई व दिल्ली के बड़े शहरों का मज़दूर वर्ग जो कि शहरी विकास के नाम पर विस्थापन का सामना कर रहा है, वे भी इस धरने में शामिल हो रहे हैं। शहरीकरण के नाम पर जिन किसानों की जमीनें छीनी जा रही हैं, वे भी इस धरने में शामिल होंगे। देश की 80 फ़ीसदी आबादी तमाम गरीब मज़दूर वर्गों के प्रतिनिधी अपने-अपने जनसंगठनों के बैनर के साथ संघर्ष के बैनर तले इस ऐतिहासिक मंच में शामिल होंगे।
हम सभी लोग संसद के मानसून सत्र के दौरान आयोजित किये जा रहे इस धरने में 3-5 अगस्त 2011 को जन्तर मन्तर पर एकत्रित होंगे। इस मांग के साथ कि विदेशी शासन काल में बने भूमि अधिग्रहण कानून को पूरी तरह से खारिज किया जाए और एक ऐसा समग्र कानून बनाया जाए, जिसमें भूमि की कृषि उत्पादन जैसी प्राथमिक जरूरत को ध्यान में रखा जाए। इसमें सही सार्वजनिक ज़रूरत और भूमि सुधार के लिए भूमि की मिल्कियत की वैकल्पिक व्यवस्था को भी देखा जाना ज़रूरी है। एक ऐसा कानून जिसमें समुदाय और ग्राम समाज की व्यापक सहमति हो। इस राष्ट्रीय एक्शन कार्यक्रम की रणनीति विभिन्न स्तरों पर और आंदोलनों के बीच व्यापक चर्चाओं के बाद तय की गई है। इस प्रक्रिया में आखि़री कार्यक्रम राष्ट्रीय परिसंवाद 6 मई 2011 को दिल्ली में आयोजित किया गया था।
साथियो, संघर्ष की प्रक्रिया सन् 2006-2007 में शुरू की गई थी। बहुत सारे जनआंदोलनकारी संगठन जो कि भूमि अधिकार और भूमि अधिग्रहण के खि़लाफ आंदोलनरत थे, उनके द्वारा यह शुरुआत की गयी थी। संघर्ष 2007 में एक अधिकार पत्र के आधार पर हम सब इकट्ठा हुए थे। यह शायद देश का पहला ऐसा सामूहिक कार्यक्रम था, जिसमें सैकड़ो आंदोलनकारी संगठनों ने इकट्ठा होकर संसद के सामने अपने समग्र राजनैतिक परिप्रेक्ष्य को लेागों के बीच रखा था। तब से लेकर संघर्ष समूह लगातार यह मांग कर रहा है किः-
1. आज़ादी के बाद जितनी भी जमीनों का अधिग्रहण हुआ है और उनसे विस्थापित लोगों की मौजूदा स्थिति पर सरकार द्वारा एक श्वेत पत्र ज़ारी किया जाए।
2. जब तक संसदीय समिति द्वारा इसकी समीक्षा न हो तब तक समस्त भूमि अधिग्रहण को स्थगित कर दिया जाए।
3. भूमि अधिकार व प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए एक समग्र कानून बनाया जाए।
पिछले एक दशक में देश के विभिन्न क्षेत्रों में जनांदोलन सफलतापूवर्क ज़मीन की लूट के खिलाफ अपने प्रतिरोध आंदोलन चला रहे हैं। कलिंगनगर, नियमागिरी, सिंगुर, नंदीग्राम, समपेटा, जशपुर, लातेहार, चंद्रपुर, हरिपुर, रायगढ़, कारला, कुल्लु वैली, नर्मदा घाटी, जगतसिंहपुर, मुम्बई शहर और ऐसी सैंकड़ों प्रमुख जगहों में आंदोलन चले व कामयाब हुए। भू-स्वामी, खेतीहर और ग़रीब किसान, खे़तमज़दूर तथा अन्य श्रमजीवी तबका भी साथ मिल कर अपनी ज़मीन और अधिकार की सुरक्षा के लिए संघर्षरत है। इसी के साथ-साथ सदियों से जंगल में रहने वाले समुदायों ने अपने खोए हुए ज़मीन और जंगल के अधिकारों के दावे को पुनस्र्थापित करने के संघर्ष को तेज किया है। जैसे कैमूर (उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड), तराई क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) चेंगेरा, मातुंगा (केरल), रीवा (मध्यप्रदेश), काकी (असम), उमरपाड़ा-सूरत, सोनगढ़-तापी, डांग (गुजरात), खम्माम (आंध्रप्रदेश) व निंदूरबड़, चोपड़ा (महाराष्ट्र) में अपनी खोई हुई ज़मीनों पर पुनर्दख़ल क़़ायम किया है। इन किसान, आदिवासी, दलित और श्रमजीवी वर्गों ने प्राकृतिक संपदा के ऊपर अपने जन्मसिद्ध अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते हुए अपनी जान तक कुर्बान करते हुए राज्य और अभिजात वर्गों को गंभीर चुनौती दी। जो कि इन तमाम प्राकृतिक संपदाओं पर अपना एकाधिकार जमाए हुए हैं। हाल ही में ग्रेटर नोएडा की घटनाओं के आधार पर एक ऐसा माहौल बनाया गया है, जिसमें लगभग सभी राजनैतिक दल पुराने भूमि अधिग्रहण कानून के संशोधन के लिए एक रास्ता बना रहे हैं। जो कि यूपीए सरकार इस मानसून सत्र में लाना चाहती है। लेकिन यूपीए सरकार के नेतृत्वकारीगण चाहे वो मनमोहन सिहं हों या राहुल गांधी इस बात को स्पष्ट नहीं कर रहंें हैं, कि इन ऊपरी तौर पर किए गये संशोधनों से इस जनविरोधी औपनिवेशिक कानून का ढंाचा और रुख कैसे बदलेगा। वे राजनैतिक पार्टियों की इस विषय पर स्पष्ट धारणा न होने का फायदा उठा रहे हैं और जनांदोलनों द्वारा उठायी गई मांगों की अनदेखी कर रहे हैं। वे विश्वबैंक, डीएफआईडी, यूएस ऐड जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रायोजित उस भूमिनीति के दस्तावेज़ का भी समर्थन कर रहे हैं, जिसे तथाकथित नागरिक समाज का एक हिस्सा भी समर्थन दे रहा है। हालांकि वे भी इस काले भूमि अधिग्रहण कानून को खारिज करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन साथ-साथ भूमि के बाजारीकरण को मदद करने वाली नीति की भी बात कर रहे हैं। यही वजह है कि यह धरना एक ऐसे महत्वपूर्ण समय में आयोजित किया जा रहा है, जब सरकार के लिए ज़रूरी हो गया है कि वो आंदोलनों की आवाज़ की तरफ ध्यान दे। अभी हाल ही में नए ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश द्वारा एक समग्र कानून बनाने की घोषणा की गई है, जो एक स्वागत योग्य कदम है। लेकिन यह पहला कदम है, अभी आगे और भी कई जटिल समस्याओं को सुलझाना बाकी है।
भूमि अधिग्रहण कानून को खारिज करने और उसके खिलाफ एक समग्र कानून बनाने की मांग को मुख्य रूप से रखते हुए यह धरना कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठायेगा। जैसे बड़े बांध (नर्मदा घाटी, उत्तरपूर्वी भारत, हिमाचल प्रदेश और मध्य भारत ), कोयला व परमाणु आधारित उर्जा परियोजना, शहरी विस्थापन, वनाधिकार व सामुदायिक स्वशासन, बड़ी कम्पनियों (पास्को, वेदांत, जेपी, अडानी, टाटा, कोकाकोला, मित्तल, रिलाईन्स, आरपीजी, जिंदल, एस कुमार आदि) के खिलाफ संघर्ष, ग्रामीण एवं शहरी समुदायों की आजीविका के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए कानूनी सरकारी हक़दारी और सभी के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बीपीएल सदस्यों के लिए संपूर्ण अधिकार व इसके बदले में नकदी भुगतान के खिलाफ विरोध शामिल है।
इस सफर में संघर्ष समूह को शुरू करने वाले संगठनों के अलावा पिछले वर्ष कृषक मुक्ति संग्राम समिति-असम व कुछ नए संगठनों ने इस सामूहिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान किया। इस साल 15 राज्यों से भी अधिक राज्यों से प्रतिनिधी आ रहे हैं और इसके साथ-साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन-खंड़वा, लोक संघर्ष मंच-गुजरात व महाराष्ट्र, जनसंघर्ष समन्वय समिति, किसान संघर्ष समिति-उत्तरप्रदेश, पास्को प्रतिरोध समिति, समाजवादी जनपरिषद्, एकता परिषद्, जनकल्याण उपभोक्ता समिति, स्लम जन आंदोलन,कर्नाटक और दिल्ली व आसपास के क्षेत्र के कुछ भू-स्वामियों के संगठन संघर्ष की मांगों से सहमत होते हुए इस धरने में शामिल होंगे। संघर्ष 2011 के लिए यह सभी संगठन समुदायों को इकट्ठा करेंगे। हम तहेदिल से इन सभी संगठनों का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि इनकी भागीदारी से यह प्रक्रिया और भी मजबूत होगी और सही मायने में एक राष्ट्रीय आंदोलन को खड़ा करने में सहायक होगी।
हम आप सभी को दिल्ली में जन्तर मन्तर पर 3-5 अगस्त 2011 को आयोजित किये जा रहे इस धरने में सादर आमं़ित्रत करते हैं। आईये हम सब मिल कर इस ज़बरन किये जा रहे भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करंे और एक नए समग्र कानून के लिए मांग करंे। ताकि यह विस्थापन हमेशा के लिए खत्म हो। आप से अनुरोध है, कि इसमें शामिल होने के लिये आप अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें व समय से हमें इसकी सूचना देने का कष्ट करें। साथ ही हर तरीके से इस प्रयास को सफल करने के लिये अपना अमूल्य योगदान दें। इस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए आर्थिक सहयोग, अन्य संसाधनों व वालंटियरस् की भी ज़रूरत है, इसलिए आप सबसे अनुरोध है कि इस कार्यक्रम को सफल करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दंे। अभियान से सम्बंधित सभी दस्तावेज़ इस वेबसाइट दंचउ.पदकपंण्वतह पर उपलब्ध हैं -
हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे
इक बाग़ नहीं इक ख़ेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे
-फै़ज
एकजुटता के साथ
अखिल गोगोई - के0एम0एस0एस, असम।
अरूंधती धुरू, संदीप पांडे, जेपी सिंह, मनीष गुप्ता - एन0ए0पी0एम, उत्तरप्रदेश।
अशोक चैधरी, रोमा, मुन्नीलाल - राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच।
भूपिंदर सिंह रावत, नानू प्रसाद - जनसंघर्ष वाहिनी, एन0ए0पी0एम दिल्ली।
बिलास भोनगाडे - घोसी खुर्द प्रकल्प ग्रस्त संघर्ष समिति एवं एन0ए0पी0एम महाराष्ट्र।
चितरंजन सिंह - इंसाफ।
दयामणि बरला - आदिवासी मूलनिवासी आस्तित्व रक्षा मंच, झाड़खंड़।
डा0 सुनीलम, अराधना भागर्व अधि0 - किसान संघर्ष समिति, म0प्र0।
गैबरील डायट्रिच, गीता रामकृष्णन-पेन्नयूरूयईमई आययक्कम, एन0ए0पी0एम तमिलनाडु।
गौतम बंद्धोपाध्याय - नदी घाटी मोर्चा, छत्तीसगढ़।
गुमान सिंह, के उपमन्यु - हिम नीति अभियान, हिमाचल प्रदेश।
रजनीश, रामचंद्र राणा - थारू आदिवासी महिला-मजदूर-किसान मंच एवं राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच, लखीमपुर खीरी, उत्तरप्रदेश।
मंजू गार्डिया - नवा छत्तीसगढ़ महिला संगठन एवं पी0एस0ए छत्तीसगढ़।
मातादयाल, रानी - बिरसा मुंडा भू-अधिकार मंच एवं राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच, म0प्र0।
मेधा पाटकर - नर्मदा बचाओ आंदोलन, एन0ए0पी0एम।
प्रफुल्ल समंत्रा - लेाकशक्ति अभियान एवं एन0ए0पी0एम उड़ीसा।
पी चैनैयया, अजय कुमार, रामकृष्ण राजू, सरस्वथी कावूला - ए.पी.वी.वी.यू एवं एन0ए0पी0एम आंध्र प्रदेश।
राजेन्द्र रवि - एन0ए0पी0एम, दिल्ली।
शांता भटटाचार्य, राजकुमारी भुइयां - कैमूर क्षेत्र महिला मज़दूर किसान संघर्ष समिति एवं राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच, उत्तर प्रदेश।
शक्तिमान घोष - नेशनल हाकर्स फेडरेशन।
सिमप्रीत सिंह - घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन, एन0ए0पी0एम महाराष्ट्र।
सिस्टर सिल्विया - डोमेस्टिक वर्करस यूनियन, एन0ए0पी0एम कर्नाटक।
सुनीता रानी, अनिता कपूर - नेशनल डोमेस्टिक वर्करस यूनियन, एन0ए0पी0एम, दिल्ली।
उल्का महाजन, सुनिति, प्रसाद भगावे - एस.ई.जेड विरोधी मंच, एन0ए0पी0एम, महाराष्ट्र।
विमलभाई - माटू जनसंगठन व एन0ए0पी0एम, उत्तराखंड़।
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Date: 2011/7/28
Subject: [initiative-india] Sangharsh Invite August 3-5: Dharna against Land Acquisition Act in Delhi
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दिल्ली चलो! संसद चलो!
निमंत्रण पत्र
3-5 अगस्त 2011 जन्तर मन्तर, नई दिल्ली
संसद पर धरना
3-5 अगस्त 2011 जन्तर मन्तर, नई दिल्ली
संसद पर धरना
काले भूमि अधिग्रहण कानून-1894 को खारिज करने के लिए और उसके संशोधन के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान
संघर्ष-2011
जल, जंगल, खनिज और आजीविका की संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए नया समग्र भूमि अधिकार कानून लाने की मांग को लेकर
हो गई है पीर परवत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
-दुष्यंत संघर्ष-2011
जल, जंगल, खनिज और आजीविका की संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए नया समग्र भूमि अधिकार कानून लाने की मांग को लेकर
हो गई है पीर परवत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
प्रिय साथियों!
ब्रिटिश काल से ही सरकार द्वारा ज़बरन किन्ही भी ज़मीनों पर कब्ज़ा लेना और विस्थापन देश के करोड़ो लोगों के लिए एक अभिशाप बना हुआ है। देश की आज़ादी के बाद भी यह सिलसिला बादस्तूर ज़ारी है। क्योंकि ब्रिटिश हुकू़मत का बनाया गया भूमि अधिग्रहण कानून-1894 आज भी देश में लागू है। आज इस काले कानून का इस्तेमाल करके बड़ी-बड़ी कम्पनियों, राष्ट्रीय और राज्य सरकारों के तालमेल ने पूरे देश को एक गृहयुद्ध की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। जगह-जगह पर इस मुददे पर सरकार और आम जनता की सीधी टक्कर चल रही है। यह बड़े शर्म की बात है कि जनवादी तरीके से चुनी हुई हमारी सरकारें भी जानबूझ कर बेखबर हो रही हैं कि इस काले कानून का भयंकर असर हमारी आम जनता के जीवन को किस दुर्दशा में ले गया है। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे आन्दोलन बहुत समय से यह मांग कर रहे हैं, कि प्राकृतिक संपदा के ऊपर निर्भरशील समुदायों का सामुदायिक नियंत्रण और आजीविका के अधिकार सुनिश्चित हों। कुछ हद तक तो पेसा कानून-1996 और वनाधिकार कानून-2006 जैसे प्रगतिशील विधेयकों द्वारा यह अधिकार हासिल हुए हैं, लेकिन ये कानून भी कभी प्रभावी ढ़ंग से लागू नहीं किये गये। केवल इन कानूनों को इनके ज़रिये पटटे बांटने की बात तक ही सीमित किया जा रहा है। इसलिए आज इन कानूनों का आस्तित्व भी ख़तरे में है। शासन और संसद गूंगे बहरों की तरह करोड़ों लोगों की बर्बादी का तमाशा आराम से चुपचाप देख रहे हैं।
संघर्ष ने जो कि तमाम आंदोलनों का समूह है, इस काले कानून को खारिज करके एक जनोन्मुखी समग्र कानून बनाने की मांग को लेकर संसद के सामने जन्तर मन्तर पर करने के लिये एक राष्ट्रीय एक्शन कार्यक्रम बनाया है। इस कार्यक्रम में इन मुद्दों के साथ जनता के अन्य प्रमुख मुददे भी शामिल होंगे। इस धरने में देश के अलग-अलग कोने से संघर्षशील आदिवासी, दलित व अन्य वंचित तबके जैसेः खेतीहर मज़दूर और ग़रीब किसान, वन-जन और अन्य वनाश्रित समुदाय, मछुआरे तथा अन्य ग्रामीण श्रमजीवी समुदाय शामिल होंगे। असम, उड़ीसा, बंगाल, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, मध्यप्रेदश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड़, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, गोआ तथा अन्य प्रदेशों से हज़ारों की संख्या में लोग इस ऐतिहासिक धरने में पूरे जोश-ओ-ख़रोश के साथ शामिल होने के लिए आ रहे हैं। इसके साथ-साथ मुम्बई व दिल्ली के बड़े शहरों का मज़दूर वर्ग जो कि शहरी विकास के नाम पर विस्थापन का सामना कर रहा है, वे भी इस धरने में शामिल हो रहे हैं। शहरीकरण के नाम पर जिन किसानों की जमीनें छीनी जा रही हैं, वे भी इस धरने में शामिल होंगे। देश की 80 फ़ीसदी आबादी तमाम गरीब मज़दूर वर्गों के प्रतिनिधी अपने-अपने जनसंगठनों के बैनर के साथ संघर्ष के बैनर तले इस ऐतिहासिक मंच में शामिल होंगे।
हम सभी लोग संसद के मानसून सत्र के दौरान आयोजित किये जा रहे इस धरने में 3-5 अगस्त 2011 को जन्तर मन्तर पर एकत्रित होंगे। इस मांग के साथ कि विदेशी शासन काल में बने भूमि अधिग्रहण कानून को पूरी तरह से खारिज किया जाए और एक ऐसा समग्र कानून बनाया जाए, जिसमें भूमि की कृषि उत्पादन जैसी प्राथमिक जरूरत को ध्यान में रखा जाए। इसमें सही सार्वजनिक ज़रूरत और भूमि सुधार के लिए भूमि की मिल्कियत की वैकल्पिक व्यवस्था को भी देखा जाना ज़रूरी है। एक ऐसा कानून जिसमें समुदाय और ग्राम समाज की व्यापक सहमति हो। इस राष्ट्रीय एक्शन कार्यक्रम की रणनीति विभिन्न स्तरों पर और आंदोलनों के बीच व्यापक चर्चाओं के बाद तय की गई है। इस प्रक्रिया में आखि़री कार्यक्रम राष्ट्रीय परिसंवाद 6 मई 2011 को दिल्ली में आयोजित किया गया था।
साथियो, संघर्ष की प्रक्रिया सन् 2006-2007 में शुरू की गई थी। बहुत सारे जनआंदोलनकारी संगठन जो कि भूमि अधिकार और भूमि अधिग्रहण के खि़लाफ आंदोलनरत थे, उनके द्वारा यह शुरुआत की गयी थी। संघर्ष 2007 में एक अधिकार पत्र के आधार पर हम सब इकट्ठा हुए थे। यह शायद देश का पहला ऐसा सामूहिक कार्यक्रम था, जिसमें सैकड़ो आंदोलनकारी संगठनों ने इकट्ठा होकर संसद के सामने अपने समग्र राजनैतिक परिप्रेक्ष्य को लेागों के बीच रखा था। तब से लेकर संघर्ष समूह लगातार यह मांग कर रहा है किः-
1. आज़ादी के बाद जितनी भी जमीनों का अधिग्रहण हुआ है और उनसे विस्थापित लोगों की मौजूदा स्थिति पर सरकार द्वारा एक श्वेत पत्र ज़ारी किया जाए।
2. जब तक संसदीय समिति द्वारा इसकी समीक्षा न हो तब तक समस्त भूमि अधिग्रहण को स्थगित कर दिया जाए।
3. भूमि अधिकार व प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए एक समग्र कानून बनाया जाए।
पिछले एक दशक में देश के विभिन्न क्षेत्रों में जनांदोलन सफलतापूवर्क ज़मीन की लूट के खिलाफ अपने प्रतिरोध आंदोलन चला रहे हैं। कलिंगनगर, नियमागिरी, सिंगुर, नंदीग्राम, समपेटा, जशपुर, लातेहार, चंद्रपुर, हरिपुर, रायगढ़, कारला, कुल्लु वैली, नर्मदा घाटी, जगतसिंहपुर, मुम्बई शहर और ऐसी सैंकड़ों प्रमुख जगहों में आंदोलन चले व कामयाब हुए। भू-स्वामी, खेतीहर और ग़रीब किसान, खे़तमज़दूर तथा अन्य श्रमजीवी तबका भी साथ मिल कर अपनी ज़मीन और अधिकार की सुरक्षा के लिए संघर्षरत है। इसी के साथ-साथ सदियों से जंगल में रहने वाले समुदायों ने अपने खोए हुए ज़मीन और जंगल के अधिकारों के दावे को पुनस्र्थापित करने के संघर्ष को तेज किया है। जैसे कैमूर (उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड), तराई क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) चेंगेरा, मातुंगा (केरल), रीवा (मध्यप्रदेश), काकी (असम), उमरपाड़ा-सूरत, सोनगढ़-तापी, डांग (गुजरात), खम्माम (आंध्रप्रदेश) व निंदूरबड़, चोपड़ा (महाराष्ट्र) में अपनी खोई हुई ज़मीनों पर पुनर्दख़ल क़़ायम किया है। इन किसान, आदिवासी, दलित और श्रमजीवी वर्गों ने प्राकृतिक संपदा के ऊपर अपने जन्मसिद्ध अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते हुए अपनी जान तक कुर्बान करते हुए राज्य और अभिजात वर्गों को गंभीर चुनौती दी। जो कि इन तमाम प्राकृतिक संपदाओं पर अपना एकाधिकार जमाए हुए हैं। हाल ही में ग्रेटर नोएडा की घटनाओं के आधार पर एक ऐसा माहौल बनाया गया है, जिसमें लगभग सभी राजनैतिक दल पुराने भूमि अधिग्रहण कानून के संशोधन के लिए एक रास्ता बना रहे हैं। जो कि यूपीए सरकार इस मानसून सत्र में लाना चाहती है। लेकिन यूपीए सरकार के नेतृत्वकारीगण चाहे वो मनमोहन सिहं हों या राहुल गांधी इस बात को स्पष्ट नहीं कर रहंें हैं, कि इन ऊपरी तौर पर किए गये संशोधनों से इस जनविरोधी औपनिवेशिक कानून का ढंाचा और रुख कैसे बदलेगा। वे राजनैतिक पार्टियों की इस विषय पर स्पष्ट धारणा न होने का फायदा उठा रहे हैं और जनांदोलनों द्वारा उठायी गई मांगों की अनदेखी कर रहे हैं। वे विश्वबैंक, डीएफआईडी, यूएस ऐड जैसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रायोजित उस भूमिनीति के दस्तावेज़ का भी समर्थन कर रहे हैं, जिसे तथाकथित नागरिक समाज का एक हिस्सा भी समर्थन दे रहा है। हालांकि वे भी इस काले भूमि अधिग्रहण कानून को खारिज करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन साथ-साथ भूमि के बाजारीकरण को मदद करने वाली नीति की भी बात कर रहे हैं। यही वजह है कि यह धरना एक ऐसे महत्वपूर्ण समय में आयोजित किया जा रहा है, जब सरकार के लिए ज़रूरी हो गया है कि वो आंदोलनों की आवाज़ की तरफ ध्यान दे। अभी हाल ही में नए ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेश द्वारा एक समग्र कानून बनाने की घोषणा की गई है, जो एक स्वागत योग्य कदम है। लेकिन यह पहला कदम है, अभी आगे और भी कई जटिल समस्याओं को सुलझाना बाकी है।
भूमि अधिग्रहण कानून को खारिज करने और उसके खिलाफ एक समग्र कानून बनाने की मांग को मुख्य रूप से रखते हुए यह धरना कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठायेगा। जैसे बड़े बांध (नर्मदा घाटी, उत्तरपूर्वी भारत, हिमाचल प्रदेश और मध्य भारत ), कोयला व परमाणु आधारित उर्जा परियोजना, शहरी विस्थापन, वनाधिकार व सामुदायिक स्वशासन, बड़ी कम्पनियों (पास्को, वेदांत, जेपी, अडानी, टाटा, कोकाकोला, मित्तल, रिलाईन्स, आरपीजी, जिंदल, एस कुमार आदि) के खिलाफ संघर्ष, ग्रामीण एवं शहरी समुदायों की आजीविका के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए कानूनी सरकारी हक़दारी और सभी के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बीपीएल सदस्यों के लिए संपूर्ण अधिकार व इसके बदले में नकदी भुगतान के खिलाफ विरोध शामिल है।
इस सफर में संघर्ष समूह को शुरू करने वाले संगठनों के अलावा पिछले वर्ष कृषक मुक्ति संग्राम समिति-असम व कुछ नए संगठनों ने इस सामूहिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान किया। इस साल 15 राज्यों से भी अधिक राज्यों से प्रतिनिधी आ रहे हैं और इसके साथ-साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन-खंड़वा, लोक संघर्ष मंच-गुजरात व महाराष्ट्र, जनसंघर्ष समन्वय समिति, किसान संघर्ष समिति-उत्तरप्रदेश, पास्को प्रतिरोध समिति, समाजवादी जनपरिषद्, एकता परिषद्, जनकल्याण उपभोक्ता समिति, स्लम जन आंदोलन,कर्नाटक और दिल्ली व आसपास के क्षेत्र के कुछ भू-स्वामियों के संगठन संघर्ष की मांगों से सहमत होते हुए इस धरने में शामिल होंगे। संघर्ष 2011 के लिए यह सभी संगठन समुदायों को इकट्ठा करेंगे। हम तहेदिल से इन सभी संगठनों का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि इनकी भागीदारी से यह प्रक्रिया और भी मजबूत होगी और सही मायने में एक राष्ट्रीय आंदोलन को खड़ा करने में सहायक होगी।
हम आप सभी को दिल्ली में जन्तर मन्तर पर 3-5 अगस्त 2011 को आयोजित किये जा रहे इस धरने में सादर आमं़ित्रत करते हैं। आईये हम सब मिल कर इस ज़बरन किये जा रहे भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करंे और एक नए समग्र कानून के लिए मांग करंे। ताकि यह विस्थापन हमेशा के लिए खत्म हो। आप से अनुरोध है, कि इसमें शामिल होने के लिये आप अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें व समय से हमें इसकी सूचना देने का कष्ट करें। साथ ही हर तरीके से इस प्रयास को सफल करने के लिये अपना अमूल्य योगदान दें। इस कार्यक्रम को पूरा करने के लिए आर्थिक सहयोग, अन्य संसाधनों व वालंटियरस् की भी ज़रूरत है, इसलिए आप सबसे अनुरोध है कि इस कार्यक्रम को सफल करने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दंे। अभियान से सम्बंधित सभी दस्तावेज़ इस वेबसाइट दंचउ.पदकपंण्वतह पर उपलब्ध हैं -
हम मेहनतकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे
इक बाग़ नहीं इक ख़ेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे
-फै़ज
एकजुटता के साथ
अखिल गोगोई - के0एम0एस0एस, असम।
अरूंधती धुरू, संदीप पांडे, जेपी सिंह, मनीष गुप्ता - एन0ए0पी0एम, उत्तरप्रदेश।
अशोक चैधरी, रोमा, मुन्नीलाल - राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच।
भूपिंदर सिंह रावत, नानू प्रसाद - जनसंघर्ष वाहिनी, एन0ए0पी0एम दिल्ली।
बिलास भोनगाडे - घोसी खुर्द प्रकल्प ग्रस्त संघर्ष समिति एवं एन0ए0पी0एम महाराष्ट्र।
चितरंजन सिंह - इंसाफ।
दयामणि बरला - आदिवासी मूलनिवासी आस्तित्व रक्षा मंच, झाड़खंड़।
डा0 सुनीलम, अराधना भागर्व अधि0 - किसान संघर्ष समिति, म0प्र0।
गैबरील डायट्रिच, गीता रामकृष्णन-पेन्नयूरूयईमई आययक्कम, एन0ए0पी0एम तमिलनाडु।
गौतम बंद्धोपाध्याय - नदी घाटी मोर्चा, छत्तीसगढ़।
गुमान सिंह, के उपमन्यु - हिम नीति अभियान, हिमाचल प्रदेश।
रजनीश, रामचंद्र राणा - थारू आदिवासी महिला-मजदूर-किसान मंच एवं राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच, लखीमपुर खीरी, उत्तरप्रदेश।
मंजू गार्डिया - नवा छत्तीसगढ़ महिला संगठन एवं पी0एस0ए छत्तीसगढ़।
मातादयाल, रानी - बिरसा मुंडा भू-अधिकार मंच एवं राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच, म0प्र0।
मेधा पाटकर - नर्मदा बचाओ आंदोलन, एन0ए0पी0एम।
प्रफुल्ल समंत्रा - लेाकशक्ति अभियान एवं एन0ए0पी0एम उड़ीसा।
पी चैनैयया, अजय कुमार, रामकृष्ण राजू, सरस्वथी कावूला - ए.पी.वी.वी.यू एवं एन0ए0पी0एम आंध्र प्रदेश।
राजेन्द्र रवि - एन0ए0पी0एम, दिल्ली।
शांता भटटाचार्य, राजकुमारी भुइयां - कैमूर क्षेत्र महिला मज़दूर किसान संघर्ष समिति एवं राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी मंच, उत्तर प्रदेश।
शक्तिमान घोष - नेशनल हाकर्स फेडरेशन।
सिमप्रीत सिंह - घर बचाओ घर बनाओ आंदोलन, एन0ए0पी0एम महाराष्ट्र।
सिस्टर सिल्विया - डोमेस्टिक वर्करस यूनियन, एन0ए0पी0एम कर्नाटक।
सुनीता रानी, अनिता कपूर - नेशनल डोमेस्टिक वर्करस यूनियन, एन0ए0पी0एम, दिल्ली।
उल्का महाजन, सुनिति, प्रसाद भगावे - एस.ई.जेड विरोधी मंच, एन0ए0पी0एम, महाराष्ट्र।
विमलभाई - माटू जनसंगठन व एन0ए0पी0एम, उत्तराखंड़।
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Palash Biswas
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