अब वैसा नहीं रहा है गंगा का मायका
By भुवन जोशी on September 24, 2009
अब वैसा नहीं रहा है गंगा का मायका
By भुवन जोशी on September 24, 2009
उत्तरकाशी जिले में स्थित 4,000 मीटर से लेकर 1,500 मीटर में स्थित गोमुख, भोजवासा, धराली, हर्शिल, दानपुर, रैंथल, दयारा, बड़कोट, नौगाँव, खलाड़ी, पुरोला क्षेत्रों के एक सामान्य अध्ययन से पता चला कि यहाँ का जन जीवन दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। निरीह ग्रामीण विकराल होती आपदाओं के शिकार हो रहे हैं। साथ ही वातावरण, तापमान, भूमि, जैव विविधता, आजीविका, संस्कृति पर हो रहे प्रहारों से सहज जीवन भी कठिन होता जा रहा है। इन सुदूरवर्ती क्षेत्रों में निवास कर रहे ग्रामीणों से पता चला कि पिछले 10 वर्षों से हर वर्ष आपदायें आ रही हैं, जिनमें सूखा, अति वर्षा, बादल फटना, ओला वृष्टि प्रमुख हैं। पहले भी ऐसी आपदायें आती थीं, लेकिन 5 या 6 वर्ष में और वह भी कहीं-कहीं। तापमान में बदलाव आ रहे हैं। पिछले 10 वर्षों के भीतर किसी वर्ष जाड़े का पता ही नहीं चला तो किसी वर्ष भरपूर जाड़ा आया है। पहले हर वर्ष समय से वर्षा व बर्फबारी होती थी, अब आसपास के पहाड़ों पर ही दो या तीन वर्ष तक भी बर्फ नही गिरती।
भोजवासा में 15 वर्ष पहले तक मई माह में 6 फिट बर्फ मिल जाती थी, अब गोमुख में ही मिलती है। वर्षा का अब कोई समय नही है। वर्षा काल में भी स्रोत सूखे हैं व घराट बंजर पड़े हैं। तो कहीं अतिवृष्टि से भयंकर तबाहियाँ हो रही हैं। ग्लेशियरों के नीचे जिन गधेरों में बर्फ जमी रहती थी, वे तेजी से पिघल रहे हैं। गोमुख ग्लेशियर 5 वर्षों में जितना पीछे गया है, उसके मुकाबले पिछले 3 वर्षों से तेजी से सिकुड़ रहा है। परिणामस्वरूप ग्लेशियर की पुरानी बर्फ तेजी से नीचे आ रही है व अपने साथ पहाड़ का मलवा भी ला रही है। यहाँ स्थित रक्त वन, सुन्दर वन व नन्दन वन मलवे के ढेर में तबदील होते जा रहे हैं। गोमुख के पास जंगली बकरी (बरड़) का छोटा सा झुण्ड मिला जो पत्थरों के बीहड़ में चारा तलाश रहा था।
2001 के मई माह में भोजवासा तक 4 फीट बर्फ मिलती थी, अब 2008 में आधा फीट ही मिली। बड़कोट क्षेत्र में राजगढ़ी के आगे बडियार की पहाड़ी पर, नौगाँव क्षेत्र में थली टॉप के ऊपरी हिस्से तक, पुरोला में संचूर्ण पहाड़ के ऊपरी हिस्से तक बर्फ का आवरण रहता है। बर्फबारी हर्शिल तक होती है, लेकिन गंगोत्री से नीचे व गंगोत्री की ऊँचाई के पहाड़ों पर ही ज्यादा टिकती है। जसपुर व हर्शिल से ऊपर के गाँवों में 5 फीट तक, रैंथल में 1 से 2 फीट, जो कुछ दिन टिकती है, बड़कोट में जिस वर्ष बर्फ गिरती है तो 1 से 2 फीट, नौगाँव व पुरोला में 3 से 6 इंच तक होती है। यहाँ 10 वर्ष पहले सितम्बर माह से बर्फबारी शुरू होती थी व 6 फीट बर्फ गिरती थी। अब नवम्बर से फरवरी तक होती है जो 2 से 3 घण्टे में पिघल जाती है। जसपुर व हर्शिल से ऊपर के गाँवों में मार्च मध्य से गिरना शुरू होती है व अप्रैल में खत्म हो जाती है।
पिछले 5 वर्षों से भागीरथी व यमुना का बहाव गर्मियों में कम हो रहा है। गाँवों के स्रोत वर्ष भर नहीं बहते व कुछ सूख गये हैं। जो बहते हैं, उनमें अप्रैल से जुलाई तक पानी बहुत कम हो जाता है। बड़कोट व नौगाँव क्षेत्र में जिन स्रोतों में जुलाई माह में घराट चलते थे, वे बिलकुल सूखे हैं।
भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है। धराली गाँव के पास 15 वर्ष पहले 7 झीलें थीं। अब एक रह गयी है, जिसका पानी भी आधा हो गया है। विजयपुर गाँव के पास ब्रह्मताल का जल स्तर काफी नीचे चला गया है। बड़कोट में 1 लिट व 4 हैण्ड पम्प, नौगाँव में 3 लिट व 25 हैण्ड पम्प, पुरौला में 1 लिट व 7 हैण्ड पम्प हैं। बड़कोट में 1 हैण्ड पम्प में बरसात के बाद 2 माह पानी रहता है। नौगाँव में 7 हैण्ड पम्प पिछले 3 वर्षों से सूखे हैं। शेष में गर्मियों में पानी काफी कम हो जाता है। अब बरसात के बाद भी खास वृद्धि नहीं होती। पूरे क्षेत्र में हैण्ड पम्पों की श्रृंखला है, जिनमें से एक चौथाई कुछ समय चलने के बाद सूख चुके हैं।
बुग्यालों में पौष्टिक घासों में कमी हुई है व विनाशक घासें पैदा हो रही हैं, जिनमें करौंदे की प्रजाति की कँटीली झाड़ियाँ व घासें पैदा हो रही हैं। जीव जन्तुओं की संख्या लगातार घट रही है। कस्तूरी, सुरा (एमू), बरड़ पक्षियों में कौवे, गिद्ध, माल घुघुती, चकोर अब दिखना बन्द हो गये हैं। जंगलों में भोजपत्र, सिमरू, कैल, थुनेर के जंगल बहुत कम हो गये हैं। सुअर, बराह, स्याल, बाघ, घुरड़, काकड़ तथा पक्षियों में जंगली मुर्गी, तोते, तीतर, चील, बाज में भी पहले की अपेक्षा काफी कमी आई है। बुराँश में फूल आना फरवरी पहले सप्ताह से प्रारम्भ हो रहा है, जबकि पह मार्च पहले सप्ताह से प्रारम्भ होता था।
धराली हर्शिल जसपुर के गाँवों से पहले 70 प्रतिशत परिवार बुग्यालों पर प्रवास पर जाते थे। अब 50 प्रतिशत ही जाते हैं। इसी अनुपात में जानवरों की संख्या भी कम हुई है। नौगाँव से पिछले 30 साल से प्रवास पर नही जाते हैं। नौगाँव क्षेत्र में सरनौल, गंगताड़ी गाँवों से प्रवास पर जाते हैं, लेकिन प्रवास की संख्या 25 प्रतिशत तक कम हुई है।
बुग्यालों की दूरी पहले से ज्यादा बढ़ी है। गधेरों के फैलाव से रास्ते लम्बे हो गये हैं व बुग्यालों में जानवरों को 10 से 15 किमी. तक दूर जाना पड़ता है। महिलाओं को जंगली कन्द-मूल फल, जिनमें काफल, पाँगर, अखरोट, हिसर, किनगोड़, बेडू, तिमला, भमोर, चुलू आदि अवैध दोहन व जंगलों की आग से कम मिल रहा है।
बड़कोट, नौगाँव व पुरोला गाँवों के आस-पास के वनों में आग बहुत ज्यादा लगती है। चीड़ वनों की प्रचंड आग से आसपास के मिश्रित वन भी खत्म हो गये हैं। साथ ही सैकड़ों वनस्पतियाँ लुप्त हो गई हैं।
खेती में परम्परागत विधियों के साथ-साथ आधुनिक विधियों का भी प्रयोग किया जा रहा है। ऊँचाई वाले गाँवों में आलू व छेमी ज्यादा चुआ, फाँफर, दालों की खेती कम हो रही है। फाँफर लुप्त होने के कगार पर है। कम ऊँचाई के गाँवों में नकदी फसलों, सब्जियों को ज्यादा बोया जा रहा है, जिनमें टमाटर व मटर प्रमुख हैं। यहाँ चीणा, मार्सा, झंगोरा धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है।
टमाटर व मटर की खेती सबसे ज्यादा यमुना घाटी में हो रही है। यहाँ नकदी फसलों को बेच कर चावल-गेहूँ खरीद रहे हैं। हर्शिल, थराली व जसपुर क्षेत्र में आलू, क्षेमी व सेब को बेच कर राशन खरीद रहे हैं। खेती में अब एक प्रजाति की मात्रा बढ़ा रहे हैं। जड़ी-बूटियों की खेती भी की जा रही है। प्रसिद्ध बारहनाजा अब नहीं बोया जाता है। नये सिमेण्ट के घरों के बनने से शहद उत्पादन बन्द हो गया है। जिन पुराने घरों में मधुमक्खियाँ हैं, उनके उत्पादन में नई बीमारियों व फूलों की कमी से प्रभाव पड़ा है। 10 वर्ष पूर्व एक बक्सा 2 सीजन में 4 से 6 किलो तक शहद देता था। अब 1 से 2 किलो ही दे रहा है। नौगाँव क्षेत्र के 22 गाँवों में 10 से 12 परिवारों के पास ही मधुमक्खियाँ हैं।
सेब उत्पादन में कमी आयी है। हर्शिल, धराली, जसपुर क्षेत्र में 100 में से 75 प्रतिशत तक उत्पादन कम हुआ है। जिस क्रम में बर्फ कम गिर रही है, उसी क्रम में उत्पादन घट रहा है व नीचे की स्थिति धीरे-धीरे ऊपर बढ़ रही है। नौगाँव, पुरौला, बड़कोट क्षेत्रों में सेब के पेड़ों पर फूल कम लग रहे हैं, वे भी समय से पहले। फूल मार्च अन्त व अप्रैल तक आते थे। अब फरवरी में आ रहे हैं। पिछले 5 वर्ष में फसल 100 से 25 प्रतिशत तक आ गयी है। पानी की कमी से फल गिर रहा है। फल का आकार छोटा होता जा रहा है। ओलों व मोटी वर्षा से दाग पड़ रहे हैं। फल व फूलों पर कीड़े भी लग रहे हैं। पौधों पर स्कैप नाम की बीमारी लग रही है, जो पौधे की खाल सुखा दे रही है।
नौगाँव के राजगढ़ी क्षेत्र के डस्याट गाँव में महिलाओं ने बाँज का वृक्षारोपण कर अच्छा जंगल तैयार किया है। 'समृद्धि' संस्था द्वारा नौगाँव क्षेत्र में ही टमाटर की खेती में प्रयोग की जा रही झाड़ियों की लकड़ियों के कटान से खत्म हो रहे जंगल व नमी में आई कमी के कारण इस पर रोक लगाने का प्रयास किया है व गोमूत्र से कीटनाशक तैयार कर लोगों से प्रयोग करवाया है। प्रख्यात पर्वतारोही डॉ. हर्शवंती बिष्ट जी का प्रयास भी सराहनीय है। भोजवासा के पास उनके 13 वर्षों के प्रयासों से 2516 भोज व भंगिल के पौधों का एक छोटा वन तैयार हो रहा है।
फसलों में कीट लगातार बढ़ रहे हैं। तापमान में वृद्धि व बर्फबारी में कमी व नकदी फसलों का आना इसका प्रमुख कारण बताया जा रहा है। दो प्रकार के कीट हैं, जमीन को अन्दर से नुकसान पहुँचाने वाले व बाहर से नुकसान पहुँचाने वाले। कुरमुला, उड़ने वाला कीट, तितली की आकृति का, सुण्डी, हरे रंग का तना काट। कीट आक्रमण पहले की अपेक्षा जल्दी हो रहा है। जब से बर्फ गिरना कम हुआ, तभी से कीटों का प्रकोप बढ़ा है। नकदी फसलों में ज्यादा कीट आ रहे हैं व परम्परागत फसलों को भी नुकसान पहुचा रहे हैं। उपरोक्त के अलावा सूखा, झुलसा रोग, कमरतोड़, दाग पड़ना, फट जाना फूल गिरना (ज्यादा टमाटर में) आदि बीमारियाँ आई हैं। 2004-05 में चौलाई का कीट पूरे क्षेत्र में फैला था, जिसने फसल को काफी नुकसान पहुँचाया। धान व गेहूँ में टिड्डी, टमाटर पर काला कीट हर वर्ष लग रहा है। पहले खेती में रोग बहुत कम लगता था।
अति वृष्टियाँ, वर्षा, बाढ़, भूस्खलन आदि का रूप अब विकराल होता जा रहा है, जबकि पहले नदियों में बाढ़ बहुत कम न के बराबर आती थी व भूस्खलन तो होता ही नहीं था। गधेरों में भारी वर्षा के बाद भी साफ पानी बहता था, लेकिन अब नदियाँ व गधेरे, जंगल, मिट्टी, खेत सब बहा ले जाते हैं और बड़ी आपदाओं का अंजाम देते हैं।
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