झूठ बोला था, झूठ बोल रहे हैं
आईपीएल नीलामी और शरद पवार से जुड़े सनसनीखेज नए खुलासे के बाद भी पवार का अपने पुराने कथन पर अडिग रहना चोरी और सीनाजोरी का शर्मनाक मंचन ही तो है! वैसे अब कोई किसी राजनीतिक (पालिटिशियन) से सच्चाई, ईमानदारी, नैतिकता की अपेक्षा भी नहीं करता। लेकिन जब देश के शासक बने बैठे ये लोग हर दिन बेशर्मी के साथ झूठ, बेइमानी, छल-फरेब के पाले में दिखें तब इन पर अंकुश तो लगाना ही होगा। अन्यथा एक दिन ये पूरे देश को ही नीलाम कर डालेंगे। अगर इन्हें बेलगाम छोड़ दिया गया तो ये देश के अस्तित्व के लिए ही खतरा बन जाएंगे। Read more... |
भाग 21 : मेरठ में जागरण के पहले छह महीने जमकर काम करने और अखबार को जमाने के रहे थे। लेकिन उसके बाद स्टाफ बढ़ा। अखबार का दायरा और रुतबा बढ़ा। इसके साथ ही बढ़े तनाव और मतभेद भी। काम का श्रेय लेने, दूसरों को डाउन करने और अपना पौवा फिट करने के दंद-फंद उभरे। भगवतजी सख्त प्रशासक थे। सबको काम में झोंके रखते थे। किसी को फालतू बात करने के लिए एंटरटेन नहीं करते थे। जो कह दिया, कह दिया। फिर उस पर कोई बहस नहीं। मंगलजी में सख्ती नहीं थी। उनका मिजाज अफसरी वाला भी नहीं था। Read more... सन 2001 की एक रात इस लेखक को तत्कालीन प्रधानमंत्री से साक्षात्कार का 'अवसर' मिला था. कैमरा टीम और पूरे ताम-झाम के साथ प्रधानमंत्री निवास पहुंच कर पहला सवाल पूछने से पहले ही नींद टूट गयी. लगा, सपने को सच करना चाहिए. पत्रकार बन जाना चाहिए. अखबार में माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय का विज्ञापन देखा तो दौड़ पड़ा सपना पूरा करने भोपाल. निम्न मध्यवर्गीय युवक का सपना. औसत विद्यार्थी का कुछ बड़ा सपना. एक दशक बीत जाने के बाद भी स्वप्न अधूरा है. लेकिन तबसे अब तक या उससे पहले भी इस संस्थान ने उत्तर भारतीय परिवारों से अपनी जेब में पुश्तैनी ज़मीन या घर के जेवरात बंधक रख कर लाये कुछ पैसे और सपने लेकर आने वालों को राह दिखाई है. Read more... कुलपति का तुगलकी फरमान : भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय इस मायने में अनूठा संस्थान रहा है कि एक तो ये अकेला पत्रकारिता को समर्पित विश्वविद्यालय है, और दूसरा कि यहां से निकले पत्रकार देसी खुशबू लिए होते हैं. उन्हें भाषा के साथ साथ आम आदमी के मुद्दों और सरोकारों की समझ होती है। वर्तिका नंदा के शब्दों में कहें तो यहां परीकथा के किरदार...गुड्डे और गुड़िया पढ़ने नहीं आते हैं जैसा कि दिल्ली स्थित संस्थानों में आपको मिलेगा। Read more... भाग 20 : लास एंजेलिस ओलंपिक खेलों की शानदार कवरेज के बाद मुझे भगवतजी के साथ ही धीरेन्द्र मोहनजी से भी काफी शाबाशी मिली थी। हालांकि इसके सही हकदार नौनिहाल थे। आखिर देर रात तक समाचार लेने का आइडिया उन्हीं का था। इससे अखबार को भी फायदा हुआ। अभी तक दिल्ली से मेरठ आने वाले अखबारों के एजेंट यही प्रचार कर रहे थे कि जागरण में लोकल खबरें जरूर भरपूर मिल रही हों, पर देश-विदेश की खबरों में यह दिल्ली के अखबारों का मुकाबला नहीं कर सकता। ओलंपिक कवरेज ने उनका यह दावा झठा साबित कर दिया। Read more... आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है.... लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला प्रेस..... समय के साथ बदल रहा है.... टीवी चैनलों की दुनिया ने मीडिया के माएने बदल दिए हैं.... ख़बरिया चैनलों ने किसी भी मुद्दे पर मुहिम चलाई तो वह सफल भी हुई... भले ही लोग इसे मीडिया ट्रायल का नाम दें लेकिन सच तो यही है कि अगर मीडिया में ढोंगी बाबाओं की करतूत उज़ागर न हुई होती तो कई कलयुगी बाबाओं का पर्दाफाश नहीं हुआ होता.... रुचिका के गुनहगार राठौड़ के कारनामे मीडिया ही सामने लाया है.... ऐसे कई मामले हैं जिनमें ख़बरिया चैनलों ने बहुत अच्छा काम किया... Read more... मनोज 30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर विशेष : ये वक्त टेक्नालॉजी की पत्रकारिता का है। एक समय था जब टीवी नहीं था। इंटरनेट और सैटेलाइट चैनलों का नामोनिशान न था। अखबार श्वेत श्याम हुआ करते थे। थोड़े पेजों वाले अखबार। ज्यादातर अखबार आठ पन्नों के हुआ करते थे। हर पेज की अपनी शान। खबरों की मारामारी। किसी संस्था या आयोजन की खबर को दो कॉलम जगह मिल जाना बड़ी बात। तस्वीरों का भी उतना जलवा नहीं था। अधिकतम तीन कॉलम की फोटो छप जाया करती थी और आठ पेज के अखबार में ऐसी बड़ी फोटो तब कुल जमा चार हुआ करती थी। एक पहले पन्ने पर, दो शहर की खबर में, एक प्रादेशिक पन्ने पर और एक अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों में। यह वह दौर था जब 'पत्रकारिता की टेक्नालॉजी' काम किया करती थी। खबरों को सूंघ कर, खोज कर निकाला जाता था। एक-एक खबर का प्रभाव होता था। एक्शन और रिएक्शन होता था। लोग सुबह सवेरे अखबार की प्रतीक्षा किया करते थे। लेकिन बदलते समय में सब कुछ बदल गया है। Read more... इरफान प्रिंसिपल ने पीटने के दौरान जब मेरा नाम कसाब से जोड़ा तब मैं डर गया : पुलिस ने बिना कोर्ट में प्रोड्यूस किए प्रिंसिपल को बाइज्जत रिहा कर दिया : मैं इरफान आलम, मौर्य टीवी, पटना में रिपोर्टर हूं. 20 मई 2010 को मैं पटना यूनिवर्सिटी के बी.एन. कॉलेज में छात्र संगठन चुनाव का विरोध कर रहे छात्रों पर स्टोरी करने पहुंचा. चूंकि इन दिनों बिहार में यह एक ज्वलंत मुद्दा है इसलिए ओवी वैन के साथ गया था. जैसे ही मैं अपनी पूरी टीम के साथ बीएन कॉलेज कैंपस पहुंचा. Read more... | |
|
|
Page 1 of 91 |
--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/
No comments:
Post a Comment