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Thursday, June 3, 2010

ममता की जीत से बंगाल में ब्राह्मण मोर्चा का नया अवतार। मूलनिवासी बहुजन जनता फिर ब्राह्मणी झांसे में। आर्थिक सुधार नरसंहार अभियान ग्लोबल ब्राह्मणवादी पुनरूत्थान।।

ममता की जीत से बंगाल में ब्राह्मण मोर्चा का नया अवतार। मूलनिवासी बहुजन जनता फिर ब्राह्मणी झांसे में। आर्थिक सुधार नरसंहार अभियान ग्लोबल ब्राह्मणवादी पुनरूत्थान।।

पलाश विश्वास


देशभर में और दुनियाभर में बंगाल में मार्क्सवाद की शिकस्त का बेसब्री से इंतजार करने वाले लोगो को ममता मतुआ की नगरपालिका चुनावों में जय जयकार से भारी राहत मिली है।केंद्रीय मंत्रिमंडल की जिम्मेदारियां न निभाने और माओवादियों के प्रति नरम रुख रखने के कारण ममता बनर्जी की चाहे जितनी आलोचना हो लेकिन पश्चिम बंगाल के पालिका चुनावों में उन्होंने अपनी लोकप्रियता साबित कर दी है। इस चुनाव को आगामी विधानसभा चुनावों का सेमीफाइनल बताया जा रहा था और इसे जीत कर ममता बनर्जी ने बता दिया है कि पश्चिम बंगाल के स्थायी चैंपियन वाममोर्चा को इस बार फाइनल में अपनी ट्राफी बचानी मुश्किल होगी। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों के लाल दुर्ग को ममता बनर्जी ढहा तो सकती हैं, लेकिन बगैर कांग्रेस का साथ लिए राज्य में सरकार बनाना उनके लिए मुमकिन नहीं होगा। स्थानीय निकाय चुनाव के ताजा नतीजों ने कांग्रेस को खासा सुकून दिया है।पश्चिम बंगाल में लगातार 34 वषरें से सत्ता पर काबिज वाममोर्चा से लोगों का मोह भंग होने लगा है। पंचायत, लोकसभा, विधानसभा उप चुनाव और अब स्थानीय निकायों के चुनाव में वाममोर्चा की करारी हार के बाद राज्य की राजनीतिक तस्वीर कुछ हद तक साफ हो गयी है। प्रमुख राजनीति दलों और आम लोगों में विधानसभा चुनाव को लेकर उत्सुकता बढ़ गयी है।

पर हकीकत  यह है कि मनमोहनी कारपोरेट विध्वंस के मानवीय चेहरे बतौर पेश मीडिया सिविल सोसाइटी मेधा वर्चस्व प्रायोजित बहुचर्चित परिवर्तन और मां माटी मानुष का नारा मूलनिवासी बहुजनों के साथ नया छलावा के अलावा कुछ नहीं है। वोट खातिर ब्राह्मणविरोधी मतुआ धॆम अपनाने के बावजूद ममता ने ्पना ब्राह्मणत्व नहीं त्यागा है और आरएसएस ने भाजपाई तेवर और प्रचार के विपरीत ममता को जिताने में पूरा सहयोग दिया  फिर ममता ना इस भारी कामयाबी के लिए ईश्व र को धन्यवाद भी दिया। मोहन भागवत से उनके गुपचुप समझौते की चरचा है, जिसकी पुष्टि कांग्रेस और भाजपा की भारी पराजय के बावजूद भाजपा को कोलकाता में तीन सीटें और जिलों में मिली कामयाबी से हो जाती है। ममता ने मरीचझांपी मूलनिवासी नरसंहार को पंथियोभुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर अभी तक न्याय की गुहार नहीं लगाई है और न ही सिविल सोसाइटी ने ऐसा किया। ममता ने ओबीसी गिनती के मसले पर अपने नाम से बनर्ची हटाने का ढोंग किया पर इस मुद्दे पर कोई पहल नहीं की। ममता ने किसी मूलनिवासी को अपनी कमिटियों में जगह नहीं दी है। न ही सरकार और प्रशासन में ममताराज में सत्ता में मूलनिवासियों को कोई हिस्सा मिलने वाला है। महज मुसलमानों को सच्च्र कमिची की रपट के आधार पर वाम के खिलाफ खड़ा करके परिवर्तन का बयार बहाने वाला ममता माओवाद सेर्थन से सिंगुर नंदीग्राम और लालागढ़ में भूमि अधिग्रहण का राजनीतिक आंदालन चलाया  और माओवादियों के खिलाफ सैन्य अभियान का विरोध करके मूलनिवासियों की सहानुभूति हासिल की। यह सारा खेल ब्राह्मणों के सनातन जलसंखाया सोशल इंजीनियरिंग है। बर्ताव में केंद्र सरकार के आर्थिक विध्वंस नरसंहार अभियान में वे बराबर की हिसस्दार हे। वाम मोर्चे के खिलाफ तोपे दागकर चुनावी कामयाबी हासिल करने वाली ममता मतुआ ने बंगाल में पिछले छह दशक से जारी तीन प्तिशत ब्राह्हममों के हर ॐेत्र में वॆचस्व को खत्म कने का कोई संकेत अभीतक नहीं दिया है और न संघी और ग्लोबल जिओनिस्ट हिंदुत्व और आरएस एस, कारपोरेट समॆथन का खतरा उटाने को वे तैयार हो सकती है। चुनाव प्रचार के दौरान तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कहा था कि स्थानीय निकाय के चुनाव में जीतने के तीन माह के अंदर विधानसभा का चुनाव करायेंगी। तब उनके इस बयान पर राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। हालांकि चुनाव जीतने के बाद ममता के रुख में थोड़ा बदलाव हुआ है। वह अब संयत दिख रही हैं। कांग्रेस के साथ जोट नहीं होने के बावजूद अकेले चुनाव जीतने पर उन्हें अपनी ताकत का अंदाजा हो गया है। माना जा रहा है कि राइटर्स बिल्डिंग की सीढि़यां चढ़ने में अब ममता की राह में कोई कांटा नहीं है। इधर, माकपा के राज्य सचिव विमान बोस ने कहा है कि विधानसभा चुनाव समय से पहले कराने का सवाल ही पैदा नहीं होता। विधानसभा चुनाव निर्धारित समय 2011 में ही होगा।

दरअसल ममता की दिलचस्पी और उनकी उत्कट महत्वाकांॐा राइटर्स दखल तक सीमित है। वे दंडकारण्य के तीन करोड़ शरणार्थियों की दुॆदशा पर खामोश हैं। लालगढ़ पर आंसी बहाने वालों को तमिल और बंगाली मूलनिवासी शरणार्थियों के सैन्य कार्रवाई और साओवाद में फंसे होने से कोई मतलब नहीं है और न ही बंगाल से बाहर विभाजन के शिकार पांच करोड़ मुलनिवासी बंगाली शरणार्थियों को देश निकाले के खिलाफ वे प्रणव मुखर्जी के खिलाफ आवाज उठाने की हालत में है।
बंगाल में ओबीसी चालीस फीसद से ज्यादा हैं। मुसलमान २७ फीसद। अनुसूचित जाति २३ प्रतिशत और आदिवासी सात प्रतिशत। ब्राह्मण तीन प्रतिशत और कायस्थ बैद्य पांच प्रतिशत। पर बंगाली शासक तबके ने विभाजल के इतिहास को मुसलमाल विरोधी बनाकर पिछले छह दशकों से मुसलमालों को बाकी मुसलमानों की नफरत का शिकर बना दिया है। विभाजल की वजह से पूर्वी बंगाल के विस्थापित विचारधाराओं और प्रतिबद्धताओं के विपरीत मुसलिम विरोधी हैं और हर समस्या के लिए विभाजन, मुसलिम लीग और मुसलमानों को जिम्मेवार मानते रहे हैं. विभाजल के बाद भारत में मूलनिवासियों के वध अभियान में मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं हैं और सारे मूलनिवासी मुसलमानों समेत ब्पाह्मणी वॆचस्व और साजिशों के शिकार हैं. यह हमारे लोग समझते नहीं हैं।कोलकाता नगर निगम समेत पश्चिम बंगाल के 81 पालिका चुनावों में पड़े वोटों की गिनती के लिए बुधवार के पूर्वाह्न इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों के खुलते ही व्यवस्था विरोधी बयार चल निकली और प्रमुख विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस की तरफ मुड़ गयी। परिवर्तन के झोंके में इतना वेग था कि उसने सत्तारूढ़ मोर्चा के अधिकांश गढ़ों को हिला कर रख दिया।विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल समझे जाने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव में राज्य के मुख्य विरोधी दल तृणमूल कांग्रेस की जीत हुई है। कोलकाता नगर निगम और महानगर के सबसे पॉश इलाके साल्टलेक नगरपालिका पर तृणमूल का कब्जा हो गया। बोर्ड बनाने के लिए उसे कांग्रेस के सहयोग की जरूरत नहीं पड़ेगी। अन्य 80 नगरपलिकाओं में भी तृणमूल का प्रदर्शन बेहतर हुआ है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने महानगर में व्यावसायिक गतिविधियों के केन्द्रबिंदु बड़ाबाजार में फिर से जीत का परचम लहराया है। भाजपा न सिर्फ वार्ड 22 व 42 में अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल रही है बल्कि वार्ड 23 में जीत हासिल कर क्षेत्र में अपना दायरा भी बढ़ाया है। वार्ड 22 से मीना देवी पुरोहित व 42 से सुनीता झंवर पुनर्निर्वाचित हुई हैं जबकि पिछले पांच वर्ष माकपा के अधीन रहे वार्ड 23 में भाजपा के विजय ओझा के सिर जीत का सेहरा बंधा है। इन तीनों वार्ड में बड़ाबाजार का वृहत्तर हिस्सा शामिल हैं व संयुक्त रूप से यहां की कुल आबादी 47 हजार के आसपास है। हालांकि सीटों के लिहाज से भाजपा की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। वर्ष 2005 की तरह इस बार भी उसकी झोली में तीन सीटें आई हैं। वार्ड 96 से भाजपा पार्षद रहे देवब्रत मजूमदार के तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने से पार्टी को इस बार उस सीट से हाथ धोना पड़ा लेकिन वार्ड 23 में जीत दर्ज कर पार्टी ने इस नुकसान की भरपाई कर ली है। देवव्रत मजूमदार इस बार वार्ड 97 से चुनाव लड़कर निर्वाचित हुए हैं। वार्ड 22 को भाजपा की पारम्परिक सीट माना जाता है। भाजपा की मीना देवी पुरोहित वर्ष 1995 से यहां जीतती आ रही हैं और इस बार भी वार्ड की जनता ने उन्हीं पर भरोसा जताया। इस बार इस वार्ड को महिलाओं के लिए आरक्षित घोषित किया गया था जहां मीना देवी पुरोहित का तृणमूल कांग्रेस की सुनीता सिंह, कांग्रेस की रीता पुरोहित, माकपा की मीता भंडावत और निर्दलीय प्रत्याशी भारती खरवार से कड़ा मुकाबला बताया जा रहा था। वहीं वार्ड 42 पर भी पिछले 15 वर्षों से भाजपा का वर्चस्व रहा है। भाजपा की सुनीता झंवर भी यहां वर्ष 1995 से जीतती आ रही हैं और अगले पांच वर्ष के लिए भी जनता ने उन्हीं को निगम मुख्यालय भेजा है। सुनीता झंवर के मुकाबले में इस बार कांग्रेस के महेश शर्मा व तृणमूल कांग्रेस के राजेश कुमार सिन्हा थे। वहीं भाजपा वर्षों बाद वार्ड 23 को अपने अधीन करने में भी सफल रही है। भाजपा प्रत्याशी विजय ओझा ने यहां माकपा की भारती झा, कांग्रेस के राजेश कुमार लाठ व तृणमूल कांग्रेस के सपन बर्मन को शिकस्त दी है। वैसे भी वार्ड 23 कई मायनों में दिलचस्प है। यहां के वाशिंदों ने सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को निर्वाचित कर सेवा करने का मौका दिया है और संतुष्ट नहीं होने पर उन्हें नकारा भी है। यही कारण है कि पिछले दो दशक में यहां हर निगम चुनाव में परिवर्तन होते आया है। सन् 1965 से 1985 तक श्याम सुंदर जी गोयनका जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में यहां से निर्वाचित हुए। 1985 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और फिर से जीते। वर्ष 1990 से यहां परिवर्तन की हवा चलनी शुरू हुई। उस वर्ष कांग्रेस के ओम प्रकाश पोद्दार विजयी रहे। उसके पांच वर्ष बाद यानी 1995 में वार्ड की जनता ने मा‌र्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पर भरोसा जताते हुए उनके प्रत्याशी बांकेलाल सिंह को निगम मुख्यालय भेजा। वर्ष 2000 में जनता ने तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी शशि मिमानी को अपना प्रतिनिधि चुना। उस समय तृणमूल का भाजपा से गठजोड़ था। पिछली बार हुए निगम चुनाव में फिर से हवा बदली और माकपा की भारती झा निर्वाचित हुईं। वार्ड की प्रकृति को देखते हुए इस बार भी दिलचस्प मुकाबला बताया जा रहा था। वार्ड 22 के तहत दिगम्बर जैन टेम्पल रोड, महर्षि देवेन्द्र रोड, कलाकार स्ट्रीट का कुछ हिस्सा, दर्प नारायण टैगोर स्ट्रीट, रतन सरकार गार्डेन स्ट्रीट व लेन,बड़तल्ला स्ट्रीट का एक हिस्सा, शोभाराम बैशाख स्ट्रीट, काटन स्ट्रीट, स्ट्रांड रोड व स्ट्रांड बैंक रोड का कुछ हिस्सा, मीर बहार घाट स्ट्रीट, राजाकटरा, गांगुली लेन, सेठ लेन, वार्ड 23 में बड़तल्ला स्ट्रीट, शिवतल्ला स्ट्रीट, सर हरिराम गोयनका स्ट्रीट, काली कृष्ण टैगोर स्ट्रीट, माधव केस्टो सेठ लेन, शिव ठाकुर गली, राजा बृजेन्द्र नारायण स्ट्रीट, सिकदर पाड़ा, रवीन्द्र सरणी का एक हिस्सा व वार्ड 42 में महात्मा गांधी रोड , जमुनालाल बजाज स्ट्रीट, आर्मेनियन स्ट्रीट, अमरतल्ला स्ट्रीट, काटन स्ट्रीट मनोहर दास कटरा, खत्री कटरा, बागड़ी मार्केट, काटन स्ट्रीट, बागड़िया कटरा प्रमुख तौर पर शामिल हैं।

केंद्र सरकार की अधिसूचना को देखने के बाद राज्य सरकार की ओर से ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे की सीआईडी जांच के निर्णय में परिवर्तन पर फैसला लिया जाएगा। हादसे की सीबीआई जांच कराने के केंद्र सरकार के निर्देश की जानकारी मिलने के बाद बुधवार को राज्य के गृह सचिव समर घोष ने यह बताया।

उन्होंने बताया कि केंद्रीय गृह सचिव ने राज्य सरकार को पत्र के माध्यम से हादसे की सीबीआई जांच कराने के निर्देश की जानकारी दी है, जबकि इस कांड में सीआईडी जांच पहले ही शुरू हो गई है। अब इस स्थिति में अगला निर्णय केंद्र की सीबीआई जांच की अधिसूचना प्राप्त होने के बाद ही किया जाएगा। राज्य गृह सचिव ने बताया कि निकाय चुनाव के लिए आई केंद्रीय बल की 12 कंपनियां 4 जून तक राज्य में रहेंगी। उन्होंने बताया कि मदन तमांग की हत्या के मामले में सीआईडी जांच जारी रहेगी।



बंगाल के राजनीतिक हलकों में परिवर्तन की चर्चा जोरों पर है। सुश्री बनर्जी का दावा है कि परिवर्तन की बयार उनके माकपा विरोधी आंदोलन से पैदा हुई है। वह बंगाल में इसेनवजागरण मान रही हैं। वामपंथी तबके का मानना है है कि जनादेश विपक्ष के पक्ष में जाने के बावजूद इसे ममता का श्रेय नहीं दिया जा सकता। ममता की कोई नीति और आदर्श नहीं है। राज्य की प्रबुद्ध जनता नीति विहीन पार्टी को तरजीह नहीं दे सकती। एक तीसरा तबका जागरूक लोगों का है जिसका मानना है कि बंगाल की जनता बदलाव के मूड में है। जनता वाममोर्चा के विकल्प के रूप में किसी अन्य को चुनने के लिए तैयार है। वाममोर्चा के खिलाफ लड़ाई में जो भी मैदान में होगा, जनता उसे विकल्प के रूप में स्वीकार करेगी। इस दृष्टि से ममता बनर्जी प्रथम श्रेणी में हैं और वह कुछ हद तक माकपा शासन के विकल्प के तौर पर स्वीकार की जा रही हैं।

दरअसल ममता की दिलचस्पी और उनकी उत्कट महत्वाकांॐा राइटर्स दखल तक सीमित है। वे दंडकारण्य के तीन करोड़ शरणार्थियों की दुॆदशा पर खामोश हैं। लालगढ़ पर आंसी बहाने वालों को तमिल और बंगाली मूलनिवासी शरणार्थियों के सैन्य कार्रवाई और माओवाद में फंसे होने से कोई मतलब नहीं है और न ही बंगाल से बाहर विभाजन के शिकार पांच करोड़ मुलनिवासी बंगाली शरणार्थियों को देश निकाले के खिलाफ वे प्रणव मुखर्जी के खिलाफ आवाज उठाने की हालत में है।
बंगाल में ओबीसी चालीस फीसद से ज्यादा हैं। मुसलमान २७ फीसद। अनुसूचित जाति २३ प्रतिशत और आदिवासी सात प्रतिशत। ब्राह्मण तीन प्रतिशत और कायस्थ बैद्य पांच प्रतिशत। पर बंगाली शासक तबके ने विभाजल के इतिहास को मुसलमाल विरोधी बनाकर पिछले छह दशकों से मुसलमालों को बाकी मुसलमानों की नफरत का शिकर बना दिया है। विभाजल की वजह से पूर्वी बंगाल के विस्थापित विचारधाराओं और प्रतिबद्धताओं के विपरीत मुसलिम विरोधी हैं और हर समस्या के लिए विभाजन, मुसलिम लीग और मुसलमानों को जिम्मेवार मानते रहे हैंष विभाजल के बाद भारत में मूलनिवासियों के वध अभियान में मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं हैं और सारे मूलनिवासी मुसलमानों समेत ब्राह्मणी वॆचस्व और साजिशों के शिकार हैं. यह हमारे लोग समझते नहीं हैं।

वाम नेता अपनी हार जान रहे हैं और ममता के सत्ता में आने का इंतजार कर रहै हैं ताकि वे बंगाल में उन्ही मुद्दों को लेकर तेज आंदोलन चला सकें, जिनकी वजह से उन्हें शिकस्त मिल रही है। नंगीग्राम , सिंगुर, लालागढ़ और दार्जीलिंग में विभाजन त्रासती की तरह ही ब्राह्मणी अगुआई में मूलनिवासी ही मारे गए। किसान और आदिवासी आंदोलनों, नक्सली और माओवादी आंदोलनों की यही कहानी है। माओवादी मदद से सत्ता में आने वाली ममता के माओवाद से निपचने के आसार कम है बल्कि माओवाद की आड़ में ब्राह्मनों के राजनीतिक दल मूलनिवासियों को जल जंगल और जमीन, नागरिकता और जान माल से बेदखल करने की मुहिंम चलाते रहेंगे। हिंसा बंगाल के सामंती संस्कार है। अब बंगाल अभूतपूॆव हिंसा की चपेट में आनवाला है। ग्यानेश्वरी एक्सप्रेस, मुंबई मोटर मैन हड़तल और दिल्ली हादसे में ममता की असलियत राजनीत करने की तरकीब पेनकाब हुई है और हमारे लोग अनजान बने हुए हैं। वाम बामहणों को गुस्सा ढूकने के लिए उन्होंने धोती के बदले साडी का विकल्प चुना है। हिंदू महासबा से लेकर तपन सिकदार की दमदम से लगातार जीत से भाजपा की उतनी नहीं, संघी ताकत का अंदाजा लगता है। बंगाली सवरण और हिंदुत्व में सराबोर मूलनिवासी समुदा. का चरित्र सांप्रदायिक और संघी है चाहे वह जिस विचारधारा या दल से नाता रखता हो। संघी जीतने की हालत में  हो, तभी वे अपने बिल से निकल बाहर होंगे। ऐसा ही होने के आसार हैं। दूसरी तरफ नक्सलियों के खिलाफ सेना के सीधे इस्तेमाल पर भले ही अब तक सरकार कोई फैसला न कर पाई हो, लेकिन इस दिशा में सधे हुए कदम जरूर बढ़ा दिए हैं। रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने गुरुवार को छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में सेना के सब एरिया मुख्यालय की स्थापना को सैद्धांतिक मंजूरी दी है। इस कदम के बाद अब नक्सली इलाकों पर सेना की नजर रहेगी। सरकार के इस फैसले के साथ ही रायपुर में स्टेशन मुख्यालय बनाने की प्रक्रिया भी तेज हो गई है।

यूं तो कोलकाता नगर निगम के चुनाव पर किये गये तमाम एग्जिट पोल में पहले ही तृणमूल कांग्रेस की जीत की संभावना जता ंदी गई थी लेकिन बुधवार को जब चुनाव नतीजे सामने आए तो तृणमूल के लिए और भी बेहतर साबित हुए। स्टार आनंद व एसी नेल्सन द्वारा किये गये सर्वेक्षण में तृणमूल को अधिकतम 79 सीटें मिलने का अनुमान किया गया था जबकि पार्टी को 95 सीटें मिली यानी एग्जिट पोल के आंकड़े से 16 अधिक। वाममोर्चा के माकूल माहौल नहीं होने पर भी एग्जिट पोल के विश्लेषकों को लगा था कि वाममोर्चा 54 सीटें हासिल कर लेगी जिसमें से 44 माकपा की झोली में आएगी जबकि वाममोर्चा को सिर्फ 33 सीटें मिली हैं यानी अकेले माकपा के लिए संभावित सीटों से भी छह कम। वहीं कांग्रेस व भाजपा ने भी एग्जिट पोल के नतीजे से अच्छा प्रदर्शन किया है। एग्जिट पोल में कांग्रेस को छह सीटें मिलने की संभावना जताई गई जबकि वह दस सीटें पाने में सफल रही है। वहीं भारतीय जनता पार्टी को दो सीटें मिलने का अनुमान किया गया जबकि वह एक सीट अधिक पाने में कामयाब रही। तृणमूल, कांग्रेस व भाजपा की सीटों में बढ़ोतरी का पूरा खामियाजा अकेले वाममोर्चा को उठाना पड़ा है।

विधाननगर नगरपालिका के लिए हुए एग्जिट पोल में तृणमूल को 14 व वाममोर्चा को 11 सीटें मिलने की संभावना जताई गई थी, जबकि तृणमूल यहां 16 सीटें पाने में सफल रही। वाममोर्चा को नौ सीटों से संतोष करना पड़ा है। इधर, राजनीतिक विशषेज्ञों के मुताबिक एग्जिट पोल के नतीजे को पूरी तरह सही नहीं माना जाता, हालांकि ये वास्तविक नतीजे का आभास जरूर देते हैं।



तृणमूल को सर्वाधिक उल्लेखनीय सफलता कोलकाता नगर निगम और महानगर के पड़ोसी सेटेलाइट सिटी साल्टलेक में मिली जो अबतक वाममोर्चा का गढ़ समझा जाता था। 141 सीटों वाले कोलकाता नगर निगम में तृणमूल ने 95 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया और उसे बोर्ड गठित करने में किसी अन्य की दरकार नहीं होगी। निगम में वाममोर्चा को 33, कांग्रेस को दस ओर भाजपा को तीन सीटें हासिल हुई है। 25 सदस्यीय साल्टलेक पालिका में तृणमूल ने 16 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया है जबकि वामो को महज नौ सीटें ही हाथ लगी हैं। जिन नगरपालिकाओं एवं निगमों में गत 30 मई को चुनाव हुए उनमें तृणमूल कांग्रेस ने 33 पर अपना कब्जा जमा लिया है जबकि पूर्व में उसके पास महज आठ पालिकाएं ही थीं। सत्तारूढ़ वाममोर्चा, जिसके कब्जे में 81 में 62 पालिकाएं थी, इस बार 18 पर ही कब्जा बरकरार रख पाया है। इनमें एकाध ऐसी पालिकाएं भी शामिल हैं जिसे उसने काग्रेस से छीन लिया है।


इस चुनाव में पिछले 33 वर्षो से बंगाल में सत्तारूढ़ वाममोर्चा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और मध्यम वर्ग के शहरी एवं शिक्षित मतदाताओं की नाराजगी उसे झेलनी पड़ी है। राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस बंगाल में अपनी गुटबाजी से उबर नहीं सकी। उसे मतदाताओं ने नकार दिया और अपने वोटों से तृणमूल की झोली भर दी। कांग्रेस सात पालिकाओं में विजयी हुई है और शेष 30 पालिकाओं में किसी एक दल को बहुमत नहीं मिला है। इन त्रिशंकु पालिकाओं में बोर्ड गठित करने के लिए जोड़तोड़ होने की पूरी संभावना व्यक्त की जा रही है। वाममोर्चा के रणनीतिकार भी समर्थन जुटा कर बोर्ड गठित करने की जुगत में पीछे नहीं होंगे।


राजनीतिक हलकों में पालिकाओं का यह चुनाव राजनीतिक दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा था। चुनावी पंडित अगले वर्ष 2011 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पूर्व पालिका चुनाव को सेमीफाइनल बता रहे थे जिसमें तृणमूल कांग्रेस विजयी घोषित हुई है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि निकाय चुनावों में भले ही तृणमूल को आशातीत सफलता मिली हो और इसे परिवर्तन का संकेत माना जा रहा हो लेकिन इस आधार पर राजसत्ता के केंद्रबिंदु राइटर्स को लेकर कोई भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी। उनका खयाल है कि अभी बीच में राजनीतिक उतार-चढ़ाव के कई दौर आ सकते हैं।


निगम चुनाव में जहां कुछ हेवीवेट उम्मीदवारों की हार हुई है वहीं कुछ उम्मीदवारों की अप्रत्याशीत जीत हुई है। 20 नंबर वार्ड से वाममोर्चा के सुधांशु शील चुनाव जीत गये हैं। 45 नंबर वार्ड से कांग्रेस के संतोष पाठक चुनाव जीत गये। 64 नंबर वार्ड से तृणमूल कांग्रेस के जावेद खान तथा 76 नंबर वार्ड से वाममोर्चा के फैयाज खान चुनाव हार गये हैं। 79 नंबर वार्ड से कांग्रेस के रामप्यारे राम चुनाव जीत गये हैं। 22 नंबर वार्ड से भाजपा की मीनादेवी पुरोहित चुनाव जीत गयी हैं। कांग्रेस के प्रभावशाली नेता प्रदीप घोष हार गये जबकि माला राय चुनाव जीत गयी। दूसरी ओर, कोलकाता नगर निगम चुनाव में तृणमूल के चर्चित उम्मीदवार रिजवानुर रहमान के बड़े भाई रुकवानुर रहमान को मतदाताओं ने एक सिरे से नकार दिया। रिजवानुर रहमान की रहस्यमय मौत के बाद रहमान परिवार को पक्ष में सिर्फ महानगर ही नहीं, पूरे बंगाल में सहानुभूति की लहर देखी गयी थी लेकिन रुकवानुर के राजनीति कैरियर को लोगों ने स्वीकार नहीं किया।


तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने कोलकाता नगर निगम समेत 81 पालिकाओं में पार्टी की अप्रत्याशित जीत पर बुधवार को कालीघाट स्थित अपने निवास पर पत्रकारों से कहा कि जनता ने तृणमूल पर भरोसा जताया है। ममता  दिल्ली से महानगर पहुंची थीं।

उन्होंने कहा कि तृणमूल को जनता के महाजोट का समर्थन मिला क्योंकि लोग परिवर्तन चाह रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनता ने वामो को खारिज कर दिया है। इसे देखकर बंगाल में समय से पहले विधानसभा चुनाव होना चाहिए। विभिन्न चुनावों में जनादेश खोने के बाद कोई पार्टी सरकार नहीं संचालित कर सकती है। ममता ने कहा कि बंगाल में पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से संत्रास जारी है और यहां कानून का राज नहीं है ऐसे में जनता परिवर्तन चाह रही है। उन्होंने कहा कि वामो शासन से लोग तंग आ गये हैं इसलिए समय से पहले विधानसभा चुनाव होना चाहिए। वह चुनाव प्रचार में भी यह बात कह चुकी हैं और जरूरत पड़ने पर फिर केंद्र से समय से पहले विधानसभा चुनाव के लिए बात कर सकती हैं।


रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में सब-एरिया मुख्यालय बनाने का प्रस्ताव इस वक्त रक्षा मंत्रालय के वित्त विभाग के पास है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली गढ़ कहलाने वाले बस्तर और दांतेवाड़ा जैसे इलाके फिलहाल जबलपुर स्थित एरिया मुख्यालय के अधीन आते हैं। नए सब-एरिया के निर्माण से इस क्षेत्र में सेना की मौजूदगी बढ़ेगी, जिसके सहारे नक्सल विरोधी अभियान में लगें अ‌र्द्धसैनिक बलों का मनोबल बढ़ाने में मदद मिलेगी। साथ ही इन इलाकों में किसी त्वरित कार्रवाई के लिए सैन्य संसाधनों की पहुंच भी आसान होगी।


इस बीच नक्सल विरोधी अभियानों की मदद के लिए सेना ने अपने बारूदी सुरंग विशेषज्ञ और उपकरणों को भी तैयार करना शुरु कर दिया है। रक्षा मुख्यालय सूत्रों के मुताबिक जरूरत पड़ने पर सेना अपने आशी और टारस जैसे शक्तिशाली उपकरण मुहैया करा सकती है, जो नक्सल प्रभावित इलाकों को बारूदी सुरंगों की दहशत से मुक्त करने में मददगार होंगे। सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार किसी वाहन पर लगाया जाने वाला आशी जहां एक किमी के क्षेत्र में किसी भी रिमोट संचालित विस्फोटक को निष्क्रिय कर सकता है। वहीं टारस 40-44 किमी के क्षेत्र में बारूदी सुरंगों का पता दे सकता है।


उल्लेखनीय है कि नक्सल विरोधी अभियानों के मोर्चे पर डटे पुलिस व अ‌र्द्धसैनिक बलों के पास इस तरह के उन्नत उपकरणों की खासी कमी है। इस वजह से कई बार जान और माल का खासा नुकसान उठाना पड़ता है। फौज श्रीलंका में लिंट्टे की बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने वाले विशेषज्ञों को भी इन अभियानों के लिए मुहैया करा सकती है। बताते चलें कि नक्सल विरोधी अभियान में फिलहाल सेना की भूमिका फिलहाल मुख्यत: प्रशिक्षण तक सीमित है।


सेना मुख्यालय के दस्तावेज बताते हैं कि नक्सल अभियान के लिए राज्य पुलिस और अ‌र्द्धसैनिक बलों को गुरिल्ला युद्धकला के गुर सिखाने के लिए मणिपुर के वेरांगटे स्थित काउंटर इंसरजेंसी व जंगल वारफेयर स्कूल में खास प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलाव कोर मुख्यालय स्थित काउंटर इंसरजेंसी ट्रेनिंग स्कूल व इंफेंट्री रेजीमेंट के रेजीमेंटल केंद्रों पर भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार सेना राज्य पुलिस की 190 कंपनियों और केंद्रीय अ‌र्द्धसैनिक बलों की 26 कंपनियों के अब तक 39 हजार जवानों के प्रशिक्षण दे चुके हैं।



कांग्रेस मान रही है कि इन चुनाव में धमाकेदार प्रदर्शन के बाद तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष व रेल मंत्री ममता बनर्जी के तेवर और आक्रामक होंगे, लेकिन विधानसभा चुनाव में वे शायद ही अकेले जाने हौसला दिखाएं। कांग्रेस यह जरूर मान रही है कि अब विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में तृणमूल कांग्रेस अपनी शर्ते ज्यादा ताकत के साथ मनवाएगी। इसीलिए, पार्टी और सरकार ने अपनी तरफ से ममता से अच्छे रिश्तों के संकेत देकर विधानसभा चुनाव तक सामंजस्यपूर्ण संबंध कायम रखने की कवायद शुरू कर दी है। केंद्रीय वित्त मंत्री व पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी ने तत्काल ममता को बधाई दी। उन्होंने कांग्रेस की हार भी स्वीकार कर ली।

इसके साथ ही कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने भी बधाई दी, लेकिन तृणमूल को यह संदेश दे दिया कि कांग्रेस के सहयोग के बिना पश्चिम बंगाल में गैर वाममोर्चा सरकार नहीं बन सकेगी। कांग्रेस प्रवक्ता ने पश्चिम बंगाल में निकाय चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस-तृणमूल के रिश्तों पर फर्क पड़ने की बात को खारिज किया। अगले चुनाव तृणमूल के साथ लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हम वामपंथी विरोधी वोटों का बंटवारा नहीं चाहते। बाकी चुनाव जब आएंगे तब देखा जाएगा। दरअसल, कांग्रेस अपनी तरफ से तृणमूल को यह संदेश भी देना चाहती है कि अगर गठबंधन टूटा तो राज्य में तृणमूल की संभावनाएं और भविष्य ज्यादा प्रभावित होगा न कि कांग्रेस का।



कांग्रेस परेशान है। परेशानी की वजह है स्पैनिश लेखक ज़ेवियर मोरो की किताब− The Red Saree− जो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर लिखी गई है। कांग्रेस का कहना है कि इसमें तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है। कांग्रेस ने इसके लिए ज़ेवियर मोरो को नोटिस भी भेज दिया है। जवाब में मोरो ने कहा है कि वह नोटिस भेजने वाले अभिषेक सिंघवी पर केस दायर करेंगे।

कांग्रेस मान रही है कि इन चुनाव में धमाकेदार प्रदर्शन के बाद तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष व रेल मंत्री ममता बनर्जी के तेवर और आक्रामक होंगे, लेकिन विधानसभा चुनाव में वे शायद ही अकेले जाने हौसला दिखाएं। कांग्रेस यह जरूर मान रही है कि अब विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में तृणमूल कांग्रेस अपनी शर्ते ज्यादा ताकत के साथ मनवाएगी। इसीलिए, पार्टी और सरकार ने अपनी तरफ से ममता से अच्छे रिश्तों के संकेत देकर विधानसभा चुनाव तक सामंजस्यपूर्ण संबंध कायम रखने की कवायद शुरू कर दी है। केंद्रीय वित्त मंत्री व पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी ने तत्काल ममता को बधाई दी। उन्होंने कांग्रेस की हार भी स्वीकार कर ली।


इसके साथ ही कांग्रेस प्रवक्ता शकील अहमद ने भी बधाई दी, लेकिन तृणमूल को यह संदेश दे दिया कि कांग्रेस के सहयोग के बिना पश्चिम बंगाल में गैर वाममोर्चा सरकार नहीं बन सकेगी। कांग्रेस प्रवक्ता ने पश्चिम बंगाल में निकाय चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस-तृणमूल के रिश्तों पर फर्क पड़ने की बात को खारिज किया। अगले चुनाव तृणमूल के साथ लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हम वामपंथी विरोधी वोटों का बंटवारा नहीं चाहते। बाकी चुनाव जब आएंगे तब देखा जाएगा। दरअसल, कांग्रेस अपनी तरफ से तृणमूल को यह संदेश भी देना चाहती है कि अगर गठबंधन टूटा तो राज्य में तृणमूल की संभावनाएं और भविष्य ज्यादा प्रभावित होगा न कि कांग्रेस का।



बंगाल की ममता
संपादकीय /  June 04, 2010




पश्चिम बंगाल में स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे राज्य के राजनीतिक इतिहास में बदलाव के प्रतीक साबित हो सकते हैं। तकरीबन तीन दशक से माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की अगुआई में चल रहे वामपंथी शासन से उकताकर राज्य की जनता ने बदलाव की इच्छा जताई है। आखिरकार बंगाली राजनीति में भी सत्ता विरोधी रुझान ने दस्तक दे ही दी। हालांकि बंगाल में यह सत्ता विरोधी रुझान से भी कहीं व्यापक हो सकता है।

यह कुछ वैसा ही प्रतीत हो रहा है जैसे तीन दशक के शासन के बाद वर्ष 1977 में देश की जनता ने कांग्रेस को केंद्रीय सत्ता से खदेड़ दिया था। बंगाल में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है कि तीन दशक से सत्ता पर काबिज पार्टी की लोकप्रियता में धीरे-धीरे कमी आती जा रही है। राज्य की जनता ने तृणमूल कांग्रेस की
नेता और रेल मंत्री ममता बनर्जी में भरोसा दिखाया है।

कोई इस बात का अंदाजा ही लगा सकता है कि सुश्री बनर्जी अपनी इस जीत के  आधार को समझती होंगी। दरअसल यह उनकी राजनीतिक शैली की जीत नहीं है जो कई बार उग्र स्तर तक पहुंच जाती है बल्कि वामपंथी शासन से उकताई जनता के बदलाव चाहने की जीत है। सुश्री बनर्जी को चाहिए कि वह वाम मोर्चे का अनुसरण न करें।

कई बार वह बंद और घेराव की राजनीति के जरिये ऐसा करती नजर आती हैं। गैरविकासवाद की वामपंथी राजनीति के माफिक वह सिंगुर में टाटा मोटर्स को पैर उखाडऩे पर मजबूर कर चुकी हैं। अब उन्हें बदलाव चाहने वाली बंगाली जनता की उम्मीदों का ख्याल रखना है। ये उम्मीदें राज्य में दोबारा औद्योगीकरण, विकास और एक आधुनिक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के उभार से जुड़ी हैं। आने वाले महीनों में सुश्री बनर्जी अपनी लोकप्रियता में और इजाफा करना चाहेंगी ताकि वर्ष 2011 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में अपनी जीत को पुख्ता कर पाएं। लेकिन अगर वह अपनी लोकप्रियता का दायरा बढ़ाना चाहती हैं तो उन्हें राज्य के लोगों को यह भी भरोसा दिलाना होगा कि वह एक स्थायी और विकास को समर्पित सरकार दे सकती हैं। अगर वह इस भरोसे पर खरी नहीं उतरतीं तो उनका मौजूदा ग्राफ गिरता जाएगा और राज्य में सत्ता का स्वाद चखने की हड़बड़ाहट में ज्यादा जल्दी शुरू किया गया अभियान भी उनके सपने में सेंध लगा सकता है।

रेल मंत्री के तौर पर और राज्य में औद्योगिक विकास के मोर्चे पर ममता बनर्जी का रवैया भ्रमित करने वाला नजर आता है। उन्हें इसे दूर करना होगा। बंगाल में बेरोजगार युवाओं की बढ़ती फौज और बेहद प्रतिभाशाली मध्य वर्ग की उम्मीदों की डोर थामने के लिए सुश्री बनर्जी को अपनी छवि बदलने पर ध्यान देना होगा। उनको प्रेरित करने वालों की भी कमी नहीं है। बस उन्हें सीखने और अनुशासित होने का जज्बा दिखाना होगा और अपनी सोच के दायरे का विस्तार करना होगा। ये सब सीखने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बेहतर अध्यापक उन्हें कोई और नहीं मिल सकता, जिनकी अगुआई में वह केंद्रीय सत्ता में हिस्सेदार बनी हुई हैं। अगर वह ऐसा करने में कामयाब रहती हैं तो वह इतिहास में आधुनिक बंगाल की निर्मात्री का दर्जा हासिल कर सकती हैं। बंगाली जनता सुश्री बनर्जी में निवेश करने को तैयार है, ऐसे में उन्हें चुनौतियों से जूझकर बंगाली जनमानस की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा।

http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=35517
विकास योजनाओं की राह में जमीन का रोड़ा
देवज्योत घोषाल / कोलकाता June 02, 2010




पश्चिम बंगाल के राजारहाट की विकास योजनाओं की राह में जमीन की अनुपलब्धता रोड़े अटका रही है। हाल के कुछ सालों में राज्य की कई विकास योजनाओं को इस संकट से दो-चार होना पड़ा है। कोलकाता के पूर्व में बसे इस शहर में मकानों के कारोबार में मंदी के बाद तेजी आई है लेकिन यहां जायदाद खरीदने वालों को कुछ दिन बगैर बिजली के गुजारने पड़ सकते हैं। शहर में बिजली वितरण का काम पश्चिम बंगाल बिजली वितरण कंपनी लिमिटेड (डब्ल्यूबीएसईडीएल) देखती है। इसने कहा है कि वह राजारहाट क्षेत्र में नए कनेक्शन नहीं देगी क्योंकि ज्यादा बिजली की मांग को पूरा करने के लिए ट्रांसमिशन टावर लगाया जाना जरूरी है और इसके लिए जमीन उपलब्ध नहीं है। डब्ल्यूबीएसईडीएल ने पहले से ही राजारहाट में दो सब-स्टेशन लगा रखे हैं। इनकी संयुक्त क्षमता 300 एमवीए है। पर ये ग्रिड से जुड़ नहीं पाए हैं क्योंकि ट्रांसमिशन लाइन तैयार नहीं हो पाई है।

इन ट्रांसमिशन टावरों के लिए महज 225 वर्ग मीटर जमीन की जरूरत है। अधिकारियों का दावा है कि संभावित राजनीतिक हस्तक्षेप को देखते हुए जमीन मालिक इस योजना में हाथ डालने को इच्छुक नहीं हैं। अभी डब्ल्यूबीएसईडीएल के उपभोक्ताओं को साल्ट लेक के सब-स्टेशन से सेवा मुहैया कराई जाती है लेकिन बढ़ती मांग को पूरा करने में यह सब-स्टेशन सक्षम नहीं है। डब्ल्यूबीएसईडीएल के एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया, 'राजारहाट में हमारे उपभोक्ताओं की संख्या सिर्फ 4,000 से 5,000 है। पर यह संख्या काफी बढ़ेगी। क्योंकि नए रिहायशी इलाके और उद्योग विकसित हो रहे हैं। जब तक हमें ट्रांसमिशन टावर के लिए जमीन नहीं मिलती तब तक लोगों को बिजली नहीं मिल पाएगी। डब्ल्यूबीएसईडीएल ने इस समस्या की बाबत राज्य सरकार, बिजली नियामक और अन्य संबंधित प्राधिकरणों को पत्र लिखा है।

स्थानीय जमीन मालिकों पर दबाव डालने का आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगाया जा रहा है। इस पर तृणमूल नेता पार्थ चटर्जी कहते हैं, 'अगर सत्ताधारी माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने पहले जमीन का अधिग्रहण किया है तो फिर अब वे हम पर आरोप क्यों लगा रहे हैं? जमीन अधिग्रहण पर किसानों की शंकाओं का समाधान होना चाहिए।

पिछले साल दिसंबर में डब्ल्यूबीएसईडीएल ने कहा था कि उसने राजारहाट, सोदेपुर, सुभाषग्राम, सिंगुर और कोलकाता वेस्ट इंटरनैशनल सिटी में पांच सब-स्टेशन लगाने के लिए 300 करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन ट्रांसमिशन लाइन पूरा नहीं होने की वजह से इन सब-स्टेशनों ने काम करना नहीं शुरू किया है।

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बंगाल निकाय चुनाव में वाम किला ध्वस्त

दैनिक भास्कर - ‎22 hours ago‎
पश्चिम बंगाल के नगरीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को भारी जीत मिली है। तृणमूल को यह सफलता कांग्रेस से बिना गठबंधन किए हासिल हुई है। उत्साहित तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी की निगाहें रायटर्स बिल्डिंग स्थित मुख्यमंत्री कार्यालय पर टिक गई हैं। इसीलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव तुरंत कराने की मांग कर दी। लेकिन क्या वे 34 साल से पश्चिम बंगाल में सत्ता पर काबिज वामदलों को हराने में कामयाब हो पाएंगी? शायद हां, लेकिन उसके लिए ...
विजयी ममता हिन्दुस्तान दैनिक

एक रुपए में गुजरात आ गई नैनो-मोदी

वेबदुनिया हिंदी - ‎1 hour ago‎
टाटा मोटर्स की नैनो की पश्चिम बंगाल से पश्चिमी तट पर पूर्वी गुजरात तक की यात्रा की कहानी बताते हुए मोदी ने कहा जब रतन टाटा ने कोलकाता में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वे पश्चिम बंगाल छोड़ रहे हैं, मैंने उन्हें सिर्फ एक छोटा सा एसएमएस भेजा कि आपका गुजरात में स्वागत है और आप देख रहे हैं कि एक रुपए का एसएमएस क्या कर सकता है। इसी तरह की भावनाओं का इजहार करते हुए साणंद में नैनो के संयंत्र के उद्घाटन के मौके पर टाटा समूह के ...

पश्चिम बंगाल सरकार रेल हादसे की सीबीआई जांच को तैयार

हिन्दुस्तान दैनिक - ‎Jun 2, 2010‎
पश्चिम बंगाल सरकार झारग्राम में हुए ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने के लिए सहमत हो गई है। बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। इस हादसे में लगभग 160 यात्रियों की मौत हो गई थी और 200 से अधिक घायल हो गए थे। ज्ञात हो कि सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार ने तृणमूल कांग्रेस प्रमुख व रेलमंत्री ममता बनर्जी की यह मांग ठुकरा दी थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों ...

बंगाल की ममता

Business standard Hindi - ‎43 minutes ago‎
पश्चिम बंगाल में स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे राज्य के राजनीतिक इतिहास में बदलाव के प्रतीक साबित हो सकते हैं। तकरीबन तीन दशक से माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की अगुआई में चल रहे वामपंथी शासन से उकताकर राज्य की जनता ने बदलाव की इच्छा जताई है। आखिरकार बंगाली राजनीति में भी सत्ता विरोधी रुझान ने दस्तक दे ही दी। हालांकि बंगाल में यह सत्ता विरोधी रुझान से भी कहीं व्यापक हो सकता है। यह कुछ वैसा ही प्रतीत हो रहा है जैसे तीन ...

जेएसडब्ल्यू बंगाल को नक्सलियों से परेशानी नहीं

That's Hindi - ‎6 hours ago‎
जेएसडब्ल्यू बंगाल स्टील ने गुरुवार को कहा कि नक्सल प्रभावित इलाके पश्चिमी मिदनापुर में अपनी परियोजना कार्यान्वित करने में नक्सलियों की ओर से कभी कोई परेशानी सामने नहीं आई है। कंपनी के कार्यकारी निदेशक विश्वदीप गुप्ता ने कहा, "आर्थिक मंदी की वजह से हमारी परियोजना में एक साल की देरी हुई है लेकिन हम इस काम को दोबारा शुरू कर रहे हैं, इलाके की सीमा दीवार बनाने का काम चल रहा है।" जेएसडब्ल्यू बंगाल स्टील इस जिले के सलबोनी में ...

कांग्रेस से गठजोड़ से तृणमूल को फायदा

याहू! भारत - ‎3 minutes ago‎
पश्चिम बंगाल के स्थानीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने उल्लेखनीय विजय भले ही दर्ज कराई हो, लेकिन कुछ निकायों में खंडित जनादेश से संकेत मिला है कि कांग्रेस के साथ गठजोड़ से अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में उसे और अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। विश्लेषकों के मुताबिक, ममता बनर्जी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि मतदाताओं के पास दो विकल्प के रूप में तृणमूल कांग्रेस और वाम मोर्चा है और उन्हें कांग्रेस को अपना वोट ...

मजबूत लाल किले में ममता की सेंधमारी

दैनिक भास्कर - ‎Jun 2, 2010‎
लेफ्ट की पकड़ से कोलकाता छिन चुका है, पूरा बंगाल छिनने की कगार पर है। वामपंथियों के इस मजबूत किले को भेदने का श्रेय सिर्फ ममता बनर्जी को जाता है, जिन्होंने कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ लगातार संघर्ष किया है। केरल में भी वामपंथी शासन कर रहे हैं पर वहां हर पांच साल बाद सत्ता कांग्रेस के हाथ में जाती है, यानी मुकाबला बराबरी का है। बंगाल का गढ़ ढहने के बाद उत्तर-पूर्व का त्रिपुरा एक अकेला राज्य है, जहां अभी भी वामपंथ की तूती बोलती ...

लौटेगी कोलकाता के ऎतिहासिक सोवा बाजार पैलेस की रौनक

खास खबर - ‎8 hours ago‎
इसी साल यहां प्लासी की ल़डाई में बंगाल अंग्रेजों से हार गया था। इस वर्ष की पूजा में वॉरेन हेस्टिंग्स और लार्ड क्लाइव ने हिस्सा लिया था। इस दालान का एक और महत्व है। वर्ष 1893 में शिकागो में विश्व धार्मिक सम्मेलन में भारत का नेतृत्व करने के बाद स्वामी विवेकानंद का यहीं पर नागरिक अभिनंदन किया गया था। देब ने बताया, "" इसके बरामदे में पांच अलंकृत मेहराबे हैं। हमने का खोया गौरव बहाल करने के लिए यहां मुर्शिदाबाद से उन्दा कलाकारों ...

वाममोर्चा की हार गंभीर मामला : माकपा

That's Hindi - ‎2 hours ago‎
भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने गुरुवार को कहा कि पश्चिम बंगाल के स्थानीय निकाय चुनाव में वाममोर्चा की हार 'एक गंभीर मामला' है। लेकिन पार्टी ने यह भी कहा कि ये नतीजे केवल शहरी लोगों की भावना दर्शाते हैं। पार्टी के मुखपत्र 'पीपुल्स डेमोक्रेसी' ने अपने संपादकीय में लिखा है, "स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों से यह नहीं कहा जा सकता कि यह राज्य के समूचे मतदाता की राय है।" मुखपत्र ने कहा, "हालांकि यह बंगाल के ...

अब बंगाल में नक्सली कहर, ट्रेन हादसा, 73 मरे

एनडीटीवी खबर - ‎May 28, 2010‎
पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर जिले में देर रात पटरी पर नक्सलियों द्वारा ट्रैक से फिश प्लेट निकाल दिए जाने से हावड़ा-कुर्ला ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के 13 डिब्बे पटरी से उतर गए। आधिकारिक रूप से 73 लोगों के मरने की पुष्टि की गई है। अभी किसी संगठन ने इस दुर्घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। ट्रेन के पांच डिब्बे मालगाड़ी से टकरा गए। ट्रेन हावड़ा से मुंबई (कुर्ला) जा रही थी। अधिकारियों ने बताया कि यह घटना देर रात लगभग 1.30 बजे की है ...

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  1. पश्चिम बंगाल - विकिपीडिया

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    पश्चिम बंगाल (बांग्ला: পশ্চিমবঙ্গ पॉश्चिमबॉंङ्गो) भारत के पूर्वी भाग में स्थित एक राज्य है । इसके पड़ोसी राज्य नेपाल, सिक्किम, भूटान, असम, बांग्लादेश, उड़ीसा, झारखंड और बिहार ...
    hi.wikipedia.org/wiki/पश्चिम_बंगाल - Cached - Similar
  2. बंगाल - विकिपीडिया

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    बंगाल (बांग्ला: বঙ্গ बॉङ्गो, বাংলা बाङ्ला, বঙ্গদেশ बॉङ्गोदेश या বাংলাদেশ बाङ्लादेश, संस्कृत: अंग, वंग) उत्तरपूर्वी दक्षिण एशिया में एक क्षेत्र है। आज बंगाल एक स्वाधीन राष्ट्र, ...
    hi.wikipedia.org/wiki/बंगाल - Cached - Similar
  3. BBC Hindi - भारत - पश्चिम बंगाल: स्थानीय ...

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    30 मई 2010 ... पश्चिम बंगाल में स्थानीय निकायों के लिए रविवार को हुए मतदान के दौरान कई स्थानों पर हिंसा हुई.
    www.bbc.co.uk/.../100530_bengal_localelections_ac.shtml - Cached - Add to iGoogle
  4. News for बंगाल


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    बंगाल निकाय चुनाव में वाम किला ध्वस्त‎ - 22 hours ago
    पश्चिम बंगाल के नगरीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को भारी जीत मिली है। तृणमूल को यह सफलता कांग्रेस से बिना गठबंधन किए हासिल हुई है। उत्साहित तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ...
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  5. Images for बंगाल

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  6. पश्चिम बंगाल | में ट्रेन ममता नहीं ...

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    में ट्रेन ममता नहीं बीडीआर संदिग्ध भारतीय पकड़ा रात बंद सकती ट्रेनों.
    search.webdunia.com/hindi/more/.../1/.../पश्चिम-बंगाल.html - Cached
  7. पश्चिम बंगाल - राज्य/संघ राज्य ...

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    भारत के प्रागैतिहासिक काल के इतिहास में भी बंगाल का विशिष्ट स्थान है। इस राज्य के पूर्व बांग्लादेश, पश्चिम में नेपाल, उत्तर-पूर्व में भूटान, उत्तर में सिक्किम, पश्चिम में ...
    bharat.gov.in/knowindia/st_westbengal.php - Cached - Similar
  8. ट्रेन हादसे की CBI जांच नहीं : बंगाल ...

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    31 मई 2010 ... केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा कि पश्चिम बंगाल में हुए ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन हादसे में शक की सुई माओवादियों पर है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल सरकार ने रेल मंत्री ...
    navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5995522.cms - Cached
  9. पश्चिम बंगाल in Hindi | पश्चिम बंगाल Hindi ...

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    Search results for पश्चिम बंगाल in Oneindia Hindi.
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  10. प. बंगाल में ट्रेन पर 'नक्सली हमला', 65 ...

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    28 मई 2010 ... मनमोहन सिंह ने पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में देर रात हुई रेल दुर्घटना पर गहरा ... पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुर जिले में हुई दो रेलों की भिडंत में 65 से ज्यादा ...
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  11. पश्चिम बंगाल में ममता का परचम

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    पश्चिम बंगाल में हुए स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों से साफ है कि वामपंथी पार्टियों के शासन की नींव हिल चुकी है। कोलकाता नगर निगम समेत 81 निकायों में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने ...
    www.rajasthanpatrika.com/news/02062010/kolkata.../120407.html - Cached
  12. बंगाल में ट्रेन पर नक्सली हमला

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    29 मई 2010 ... पश्चिम बंगाल के पश्चिमी मिदनापुरा में सरडीहा और खेमसौली स्टेशन के बीच शुक्रवार तड़के नक्सली हमले की वजह से मुंबई जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन के 13 डिब्बे पटरी ...
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  1. News for ममता की जीत


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    यूपीए-2 में तृणमूल कांग्रेस का भाव बढ़ा‎ - 15 hours ago
    खुद के प्रदर्शन से मात खाने के बाद कांग्रेस अपने प्रदर्शन की समीक्षा करने की बात तो कर रही है, लेकिन पार्टी में ममता की जीत को ही ढाल बनाकर अपना चेहरा बचाने की कवायद हो रही है। ...
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  2. ममता की जीत-संपादकीय-विचार मंच-Navbharat ...

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    2 जून 2010 ... ऐसे में हताश जनता को ममता में काफी उम्मीद नजर आ रही है। इस जीत के बाद अगर ममता अतिरेक का शिकार न हों और जनता को साथ लेकर चलें तो उनकी आगे की राह आसान हो सकती है। ...
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  3. प. बंगाल निकाय चुनाव: ममता की गाड़ी ...

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    2 जून 2010 ... बंगाल निकाय चुनाव व कोलकता वार्ड चुनाव के रुझान में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस बहुमत की तरफ आगे बढ़ रही है। ममता की भारी जीत को देखते हुए वित्त मंत्री प्रणब ...
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    2 जून 2010 ... ममता की भारी जीत को देखते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। उन्होंने कहा कि जनता का फैसला मुझे स्वीकार है, साथ ही मैं ममता को ढेर सारी बधाई ...
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  5. ममता की जीत से घबराए वाम | बसु वाम ...

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  6. जिज्ञासा: बंगाल में ममता की जीत

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    3 जून 2010 ... बंगाल में ममता की जीत. बंगाल में ममता बनर्जी ने निरंतर अपने प्रयास से वाम मोर्चे के दुर्ग में दरार पैदा कर दी है। हलांकि ये नगरपालिकाओं के चुनाव थे। इनसे गाँवों की ...
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  7. निकाय चुनावों में ममता की जय-जय

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    2 जून 2010 ... पश्चिम बंगाल की मुख्य विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य के चुनावों में जीत का सिलसिला बरकरार रखा है। तृणमूल ने हाल ही में हुए निकाय ...
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  8. ममता की जीत

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    ्ीटा्रअगर पश्चिम बंगाल में नगरपालिकाओं के चुनाव नतीजों का कोई सबसे बड़ा संकेत है, तो वह यह है कि वामपंथियों का सबसे बड़ा गढ़ तेजी से ढह रहा है। मई, २००९ के लोकसभा चुनावों में ...
    www.24dunia.com/hindi.../ममता-की-जीत/4966987.html - 13 hours ago

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  9. BBC Hindi - भारत - कोलकाता नगर निगम में ...

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    2 जून 2010 ... ममता बनर्जी की तृणमूल ने प्रतिष्ठित कोलकाता नगर निगम चुनाव में जीत हासिल की है. ताज़ा रुझानों के अनुसार अधिकतर में तृणमूल आगे चल रही है.
    www.bbc.co.uk/.../100602_wb_municipal_ac.shtml - Cached - Add to iGoogle
  10. प. बंगाल निकाय चुनाव: 'लाल गढ़' में ...

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    बंगाल में 81 सीटों के लिए हुए निकाय चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस और वामदल जीत के लिए अपना-अपना दावा ठोंक रहे हैं। दूसरी तरफ कोलकता में 141 वार्ड चुनाव में भी ...
    www.sudarshantv.com/.../प-बंगाल-निकाय-चुनाव-लाल-गढ़-में-ममता-की-सेंध - Cached
  11. लेफ्ट के लाल किले पर ममता की मार

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    पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने दिखा दिया ... बंगाल में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की है और ...
    khabar.ndtv.com/2010/06/02091347/Bangal-election.html - Cached
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मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

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