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Thursday, January 12, 2017

कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा! दुनिया नहीं बदली,न जाति, धर्म, नस्ल,रंग के नाम नरसंहार थमा है। भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है। दुनिया यह देख रही है कि भारत ‘हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद’ से कैसे निपटता है! ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बे�

कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा!

दुनिया नहीं बदली,न जाति, धर्म, नस्ल,रंग के नाम नरसंहार थमा है।

भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है।

दुनिया यह देख रही है कि भारत 'हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद' से कैसे निपटता है!

ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बेमायने हैं।इस धतकरम की वजह से जाते जाते अमेरिका और दुनिया को डोनाल्ड ट्रंप जैसे धुर दक्षिणपंंथी कुक्लाक्सक्लान के नरसंहारी रंगभेदी संस्कृति के हवाले कर गये आप।दुनिया में वर्ण,जाति रंगभेद का माहौल बदला नहीं,आप कह गये।भारत में हिंदुत्व एजंडा और भारत में मनुस्मृति शान बहाल रखने के तंत्र मंत्र यंत्र को मजबूत बनाते हुए आप कैसे डोनाल्ड ट्रंप को रोक सकते थे,सवाल यह है।सवाल यह भी है कि भारत में असहिष्णुता के फासिस्ट राजकाज के साथ नत्थी होकर अमेरिका में फासिज्म को आप कैसे रोक सकते थे?

पलाश विश्वास

कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा!

दुनिया नहीं बदली,न जाति,धर्म,नस्ल ,रंग के नाम नरसंहार थमा है।

विदाई भाषण में सबसे गौरतलब रंगभेद पर बाराक ओबामा का बयान है।रंगभेद पर अपने विचार रखते हुए ओबामा ने कहा कि अब स्थिति में काफी सुधार है जैसे कई सालों पहले हालात थे अब वैसे नहीं हैं। हालांकि रंगभेद अभी भी समाज का एक विघटनकारी तत्व है। इसे खत्म करने के लिए लोगों के हृदय परिवर्तन की जरूरत है, सिर्फ कानून से काम नहीं चलेगा।

भारत आजाद होने के बाद,बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर का संविधान लागू हो जाने के बाद,दलितों की सत्ता में ऊपर से नीचे तक भागेदारी के बाद हमारे लोग भी दावा करते हैं कि जाति टूट रही है या फिर जाति नहीं है। हद से हद इतना मानेंगे कि जाति तो है,लेकिन साहेब न अस्पृश्यता है और न रंगभेद कहीं है।

सच यह है कि भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है।

दुनियाभर के अश्वेतों को उम्मीद थी कि बाराक ओबामा की तख्तपोशी से अश्वेतों की दुनिया बदल जायेगी।मार्टिन लूथर किंग का सपना सच होगा।ओबामा की विदाई के बाद अब साफ हो गया है कि दुनिया बदली नहीं है।दुनिया का सच रंगभेद है।

तैंतालीस अमेरिकी श्वेत राष्ट्रपतियों से बाराक ओबामा कितने अलग हैं,अभी पता नहीं चला है।जाते जाते वे लेकिन कह गये कि सभी आर्थिक संकट को अगर मेहनतकश श्वेत अमेरिकी जनता और अयोग्य अश्वेतों को बीच टकराव मान लिया जाये,तो असल समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता।यही रंगभेद है।

ओबामा ने यह भी कहा कि कुछ लोग जब अपने को दूसरों के मुकाबले ज्यादा अमेरिकी समझते हैं तो समस्या वहां से शुरु होती है।ओबामा ने मान लिया की अमेरिका में रंगभेद अब भी है।रंगभेद अब भी है।हमारी आजादी का सच भी यही है।

यह सच जितना अमेरिका का है,उतना ही बाकी दुनिया का सबसे बड़ा सच है यह।यह भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास भूगोल का सच है जो विज्ञान के विरुद्ध है।

मुक्त बाजार में तकनीक सबसे खास है।तकनीक लेकिन ज्ञान नहीं है।हमने तकनीक सीख ली है और सीख भी रहे हैं।

कहने को जयभीम है।

कहने को नमोबुद्धाय है।

हमारी जिंदगी में न कहीं भीम है और न कहीं बुद्ध है।

हमारी जिंदगी अब भीम ऐप है,जिसमें भीम कहीं नहीं है।हमारी जिंदगी मुक्त बाजार है,जिसमें मुक्ति कहीं नहीं है गुलामी के सिवाय।गुलामगिरि इकलौता सच है।

दिलोदिमाग में गहराई तक बिंधा है जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल।जो हमारा धर्म है,हमारा कर्म है।कर्मफल है।नियति है।सशरीर स्वर्गवास है।राजनीति वही।

गुलामी का टैग लगाये हम आदमजाद नंगे सरेबाजार आजाद घूम रहे हैं। वातानुकूलित दड़बों में फिर हम वही आदमजाद नंगे हैं।लोकतंत्र के मुक्तबाजारी कार्निवाल में भी हमारा मुखौटा हमारी पहचान है,टैग किया नंबर असल है और बाकी फिर हम सारे लोग नंगे हैं और हमें नंगे होने का अहसास भी नहीं है।शर्म काहे की।

इसलिए घर परिवार समाज में कहीं भी संवाद का ,विमर्श का कोई माहौल है नहीं।चौपाल खत्म है खेत खलिहान कब्रिस्तान है।देहात जनपद सन्नाटा है।नगर उपनग महानगर पागल दौड़ है अंधी।हमारे देश में हर कोई खुद को ज्यादा हिंदुस्तानी मानने लगा है इन दिनों और इसमें हर्ज शायद कोई न हो,लेकिन दिक्कत यह है कि हर कोई दूसरे को विदेशी मानने लगा है इन दिनों।

हर दूसरा नागरिक संदिग्ध है।हर आदिवासी माओवादी है।हर तीसरा नागरिक राष्ट्रद्रोही है।देशभक्ति केसरिया सुनामी है।बाकी लोग कतार में मरने को अभिशप्त हैं।याफिर मुठभेड़ में मारे जाने वाले हैं।जो खामोश हैं जरुरत से जियादा,वे भी मारे जायेंगे।चीखने तक की आदत जिन्हें नहीं है।असहिष्णुता का विचित्र लोकतंत्र है।

अस्पृश्यता अब भी जारी है।अब भी भारत में भ्रूण हत्या दहेज हत्या घरेलू हिंसा आम है।स्वच्छता अभियान में थोक शौचालयों का स्वच्छ भारत का विज्ञापन पग पग पर है और लोग सीवर में जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।सर पर फैखाना ढो रहे हैं।

अमेरिका में रंगभेद सर चढ़कर बोल रहा है इन दिनों और मारे यहां जाति व्यवस्था  के तहत हर किसी के पांवों के नीचे दबी इंसानियत अस्पृश्य है।रंगभेद से ज्यादा खतरनाक है यह जाति,जिसे मनुस्मृति शासन बहाल करके और मजबूत बनाने की राजनीति में हम सभी कमोबेश शामिल हैं।

विज्ञान और तकनीक जाहिर है कि हमें समता न्याय सहिष्णुता का पाठ समझाने में नाकाफी है उसीतरह ,जैसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र में रंगभेद की संस्कृति उसकी आधुनिकता है और हमारे यहां सारा का सारा उत्तर आधुनिक विमर्श और उसका जादुई यथार्थ ज्ञान विज्ञान ,तकनीक वंचितों, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के विरुद्ध है।असहिष्णुता,असमता,अन्याय और अत्याचार हमारे लोकतंत्र के विविध आयाम है और बहुलता के खिलाफ अविराम युद्ध है विधर्मियों के खिलाफ खुल्ला युद्ध,सैन्यतंत्र जो अमेरिका का भी सच है।इसलिए बाराक ओबामा की विदाई का तात्पर्य भारतीय संदर्भ में समझना अनिवार्य है।

यूपी में दंगल के मध्य नोटबंदी के नरसंहार कार्यक्रम को अंजाम देने के बाद जब अमेरिकी मीडिया भी इसे भारतीय जनता के खिलाफ सत्यानाश का कार्यक्रम बता रहा है,जब विकास दर घट रहा है तेजी से और भारत भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी के रूबरू लगातार हिंदुत्व के शिकंजे में फंसता जा रहा है,तब अमेरिकी अश्वेत राष्ट्रपति की विदाई के वक्तभारत के बारे में अमेरिकी नजरिया क्या है,गौरतलब है।एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि अगले पांच साल में भारत की ग्रोथ सबसे तेज रहेगी, लेकिन दुनिया यह भी देख रही है कि वह 'हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद' से कैसे निपटता है, जिसके चलते अल्पसंख्यकों के साथ तनाव बढ़ रहा है।

हमारे समय के प्रतिनिधि कवि मंगलेश डबराल ने इस संकट पर बेहद प्रासंगिक टिप्पणी की हैः

आप कहाँ से आ रहे हैं?--फेसबुक से.

आप कहाँ रहते हैं?--फेसबुक पर.

आप का जन्म कहाँ हुआ?--फेसबुक पर.

आप कहाँ जायेंगे?--फेसबुक पर.

आप कहाँ के नागरिक हैं?--फेसबुक के.

गौरतलब है कि विश्व के महान धर्मों के मानने वालों में यहूदी, पारसी और हिन्दू अन्य धर्मावलंबियों को अपनी ओर आकृष्ट करके उनका धर्म बदलने में कोई रुचि नहीं रखते। लेकिन दुनिया में संभवतः हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो अपने मानने वालों के एक बहुत बड़े समुदाय को अपने से दूर ठेलने की हरचंद कोशिश करता है और उन्हें अपने मंदिरों में न प्रवेश करने की इजाजत देता है, न देवताओं की पूजा करने की।

अबाध पूंजी की तरह मुक्त बाजार की गुलामी का यह सबसे बड़ा सच है कि अस्पृश्यता का राजकाज है और रंगभेद बेलगाम है।रंगभेदी फासिज्म संस्कृति है।

मुक्तबाजार में संवाद नहीं है।हर कोई नरसिस महान है।आत्ममुग्ध।अपना फोटो,अपना अलबम,अपना परिवार,अपना यश ,अपना ऐश्वर्य यही है दुनिया फेसबुक नागरिकों की।मंकी बातें कह दीं,लेकिन पलटकर कौन क्या कह रहा है,दूसरा पक्ष क्या है,इसे सुनने ,देखने,पढ़ने की कतई कोई जरुरत नहीं है।लाइक करके छोड़ दीजिये और बाकी कुछभी सोचने समझने की कोई जरुरत नहीं है।

घर परिवार समाज में संवादहीनता का सच है फेसबुक,उसके बाहर की दुनिया से किसी को कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह दुनिया मुक्तबाजार है।जहां समता, न्याय, प्रेम, भ्रातृत्व,दांपत्य,परिवार,समाज की कोई जगह नहीं है।बाकी अमूर्त देश है।

इस्तेमाल करो,फेंक दो।स्मृतियों का कोई मोल नहीं है।संबंधों का कोई भाव नहीं है।न उत्पादन है और न उत्पादन संबंध है।बाजार है।कैशलैस डिजिटलहै।तकनीक है।तकनीक बोल रही है और इंसानियत मर रही है।इतिहास मर रहा है और पुनरूत्थान हो रहा है।लोकतंत्र खत्म है और नरसिस महान तानाशाह है।राजकाज फासिज्म है।

2008 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान हमने याहू ग्रुप के अलावा ब्लागिंग शुऱु कर दी थी।तब हम हिंदी में नेट पर लिक नहीं पा रहे थे और गुगल आया नहीं था।हाटमेल,याहू मेल,सिफी और इंडिया टाइम्स,रेडिफ का जमाना था।अंग्रेजी में ही लिखना होता था।समयांतर में तब हम नियमित लिख रहे थे बरसों से।महीनेभर इंतजार रहता था किसी भी मुद्दे पर लिखने छपने का।थोड़ा बहुत इधर उधर छप उप जाता था।तबसे विकास सिर्फ तकनीक का हुआ है।बाकी सबकुछ सत्यानाश है।निजीकरण,ग्लोबीकरण उदारीकरण विनिवेश का जादुई यथार्थ है।

मीडिया तब भी इतना कारपोरेट और पालतू न था।देश भर में आना जाना था। बाराक ओबामा का हमने दुनियाभर में खुलकर समर्थन किया था।

हमारे ब्लाग नंदीग्राम यूनाइटेड में बाकायदा विजेट लगा था अमेरिकी चुनाव के अपडेट साथ ओबामा के समर्थन की अपील के साथ।

शिकागो में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ओबामा की आवाज में सिर्फ अमेरिका के ख्वाब नहीं थे,रंगभेद,जाति व्यवस्था,भेदभाव और असहिष्णुता के खिलाफ विश्वव्यापी बदलाव के सुनहले दिनों की उम्मीदें थीं।

वायदे के मुताबिक इराक और अफगानिस्तान के तेल कुओं से अमेरिकी सेना को निकालने का काम ओबामा ने अमेरिकी हितों के मुताबिक बखूब कर दिखाया।2008 की भयंकर मंदी से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पटरी  पर लाने के काम में उनने व्हाइट हाउस में आठ साल बीता दिये।जायनी वर्चस्व के खिलाफ वे वैसे ही नहीं बोले जैसे अनुसूचितों,पिछड़ों,सिखों,ईसाइयों और मुसलमानों के चुने हुए लोग मूक वधिर हैं।

ओबामा की विदाई के बाद सवाल यह बिना जबाव का रह गया है कि अश्वेतों की अछूतों को समानता और न्याय दिलाने के ख्वाबों का क्या हुआ।ओबामा ने कहा,वी कैन,वी डिड।चुनाव जीतने और पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने के बाद उन्हेोंने क्या किया,यह पहेली अनसुलझी है।

भारत में गुजरात नरसंहार में अभियुक्त को क्लीन चिट देकर उनसे अंतरंगता के सिवाय भारतीय उपमहाद्वीप को उनके राजकाज से आखिर क्या हासिल हुआ?

अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था को बदलने और अमेरिकी राष्ट्र और सत्ता प्रतिष्ठान पर जायनी वर्चस्व को रोकने में ओबामा सिरे से नाकाम रहे।

पहले कार्यकाल में उनने इजराइल की ओर से अमेरिकी विरोधी,प्रकृति विरोधी मनुष्यता विरोधी मैडम हिलेरी क्लिंटन को विदेश मंत्री बनाया तो दूसरे कार्यकाल में उनके एनडोर्स मेंट से ही हिलेरी डेमोक्रेट पार्टी की राष्ट्रपति उम्मीदवार बनीं।

नतीजा अब इतिहास है।अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन की हार के बाद, द वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा था , 'जिन 700 काउंटियों ने ओबामा का समर्थन करके उन्हें राष्ट्रपति बनाया, उनमें से एक तिहाई डोनाल्ड ट्रंप के खेमे में चले गए। ट्रंप ने उन 207 काउंटियों में से 194 का समर्थन हासिल किया, जिन्होंने या तो 2008 या फिर 2012 में ओबामा का समर्थन किया था'। इसकी तुलना में उन 2200 काउंटियों में जिन्होंने कभी ओबामा का समर्थन नही किया, हिलेरी क्लिंटन को सिर्फ छह का साथ मिल सका। यानी ट्रंप के खेमे से सिर्फ 0.3 फीसद वोट हिलेरी के खाते में आ सके।आप आठ साल तक व्हाइट हाउस में क्या कर रहे थे कि ट्रंप के हक में यह नौबत आ गयी?

आठ साल तक फर्स्ट लेडी रही मिशेल ओबामा की विदाई भाषण में अमेरिका में असहिष्णुता की जो कयामती फिजां बेपर्दा हुई,वह सिर्फ अमेरिका का संकट नहीं है क्योंकि दुनिया कतई बदली नहीं है और न मार्टिन लूथर किंग के ख्वाबों को अंजाम तक पहुंचाने का कोई काम हुआ है।जैसे आजाद भारत में बाबा साहेब अंबेडकर का मिशन है।

युद्धक अर्थव्यवस्था होने की वजह से अमेरिकी जनता की तकलीफें ,उनकी गरीबी और बेरोजगारी में निरंतर इजाफा हुआ है।यह संकट 2008 की मंदी की निरंतरता ही कही जानी चाहिए।दूसरी तरफ यह संकट अब विश्वव्यापी है क्योंकि दुनियाभर की सरकारें,अर्थव्यवस्थाएं व्हाइट हाउस और पेंटागन से नत्थी हैं।

इस पर तुर्रा यह कि भारत में भक्त मीडिया का प्रचार ढाक डोल के साथ यह है कि व्हाइट हाउस से विदाई के बाद भी ओबामा और मोदी के बीच हाटलाइन बना रहेगा।

ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बेमायने हैं।इस धतकरम की वजह से जाते जाते अमेरिका और दुनिया को डोनाल्ड ट्रंप जैसे धुर दक्षिणपंंथी कुक्लाक्सक्लान के नरसंहारी रंगभेदी संस्कृति के हवाले कर गये आप।दुनिया में वर्ण,जाति रंगभेद का माहौल बदला नहीं,यह भी आप कह गये।

भारत में हिंदुत्व एजंडा और भारत में मनुस्मृति शासन बहाल रखने के तंत्र मंत्र यंत्र को मजबूत बनाते हुए आप कैसे डोनाल्ड ट्रंप को रोक सकते थे,सवाल यह है।

सवाल यह भी है कि भारत और बाकी दुनिया में असहिष्णुता के फासिस्ट राजकाज के साथ नत्थी होकर अमेरिका में फासिज्म को आप कैसे रोक सकते थे?

गौरतलब है कि आठ साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने आज अपने आखिरी संबोधन में भी महिलाओं, LGBT कम्युनिटी और मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाने के आह्वान के साथ ख़त्म की। ओबामा की ये स्पीच 'Yes We Can' के उसी नारे के साथ ख़त्म हुआ जिससे उनके पहले कार्यकाल के चुनाव प्रचार की शुरूआत हुई थी। ओबामा ने लोगों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा- "मैंने रोज आपसे सीखा। आप लोगों ने ही मुझे एक अच्छा इंसान और एक बेहतर प्रेसिडेंट बनाया।" बता दें कि उनका कार्यकाल 20 जनवरी को खत्म हो रहा है। इसी दिन डोनाल्ड ट्रम्प नए प्रेसिडेंट के रूप में शपथ लेंगे।

उन्होंने कहा, "हर पैमाने पर अमेरिका आज आठ साल पहले की तुलना में और बेहतर और मजबूत हुआ है।" उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में हारने वाली अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी के मनोबल को बढ़ाने की कोशिश में कहा कि बदलाव लाने की अपनी क्षमता को कभी कम ना आंके। इसका समापन उन्होंने अपने चिरपरिचित वाक्य 'यस वी कैन' (हां, हम कर सकते हैं) से किया।

ओबामा ने स्पीच में कई और खास बातें कही थी। उन्होंने कहा था कि अमेरिका बेहतर और मजबूत बना है। पिछले आठ साल में एक भी आतंकी हमला नहीं हुआ।सीरिया संकट और  तेलयुद्ध के साथ दुनियाभर में आतंकवाद के निर्यात की वजह से दुनियाभर में युद्ध और शरणार्थी संकट के बारे में जाहिर है कि उन्होंने कुछ नहीं कहा। हालांकि उन्होंने कहा कि बोस्टन और ऑरलैंडो हमें याद दिलाता है कि कट्टरता कितनी खतरनाक हो सकती है।

उन्होंने अमेरिकी चुनाव में रूस के हस्तक्षेप के आरोपों के बीच दावा किया कि अमेरिकी एजेंसियों पहले से कहीं अधिक प्रभावी हैं। फिर उन्होंने दुनिया से फिर वायदा किया कि आईएसआईएस खत्म होगा।कड़ी चेतावनी दी है कि अमेरिका के लिए जो भी खतरा पैदा करेगा, वो सुरक्षित नहीं रहेगा।अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के इतिहास के मद्देनजर,खासतौर पर भारत अमेरिका परमाणु संधि और युद्धक साझेदारी के मद्देनजर भारत के लिए भी यह बयान गौरतलब है जो सीधे तौर पर खुल्ला युद्ध का ऐलान है और ट्रंप के या मोदी के युद्धोन्मादी बयानों से कहीं भी अलग नहीं है। गौर करें,ओबामा ने कहा है कि ओसामा बिन लादेन समेत हजारों आतंकियों को हमने मार गिराया है।

भले ही अमेरिका में बहुलता और सहिष्णुता भारत की तरह गंभीर खतरे में है और मिशेल ओबामा ने अपने विदाई भाषण में इसे बेहतर ढंग से इसे रेखांकित भी किया है,अपनी स्पीच में ओबामा ने कहाः मैं मुस्लिम अमेरिकियों के खिलाफ भेदभाव को अस्वीकार करता हूं। मुसलमान भी उतने देशभक्त हैं, जितने हम।ओबामासाहेब आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आप कितना बड़ा सफेद झूठ बोल रहे हैं।

ओबामा ने कहा कि मुस्लिमों के बारे में कही जा रही बातें गलत हैं। अमेरिका में रहने वाले मुस्लिम भी हमारे जितने ही देशभक्त हैं। उन पर किसी तरह का शक करना गलत है। इसी तरह से महिलाओं और समलैंगिकों इत्यादि के बारे में दुराभाव रखना भी गलत है। अपने चुनाव की चर्चा करते हुए ओबामा ने कहा कि तब विभाजनकारी ताकतें अमेरिका में अश्वेत राष्ट्रपति का लोगों को भय दिखाती थीं। लेकिन उनके चुने जाने के बाद वह भय खत्म हो गया। समाज में ज्यादा एकजुटता और मजबूती आई। वैसा कुछ नहीं हुआ-जिसके लिए देश को डराया जाता था।

बीबीसी के मुताबिकःआठ साल पहले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा बदलाव और उम्मीद का संदेश लेकर आए थे। आठ साल के बाद अब हवा बदल चुकी है. अमरीका में अब आपसी दरारें और गहरी हो गई हैं। ओबामा के भाषण में बातें तो उम्मीद की, एक बेहतर भविष्य की थी लेकिन काफ़ी हद तक आनेवाले दिनों के लिए एक चिंता की झलक भी थी। शायद इसलिए किसी का नाम लिए बगैर, किसी पर उंगली उठाए बगैर ओबामा ने जनता से अमरीकी लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा के लिए सजग रहने की अपील की। आठ बरस पहले ओबामा ने जहां से शुरुआत की थी, वहीं शिकागो में ये विदाई भाषण दिया।

ओबामा ने कहा कि अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण अमेरिका 'ने महामंदी के दौरान फासीवाद के प्रलोभन और अत्याचार का विरोध किया और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अन्य लोकतंत्रों के साथ मिलकर एक व्यवस्था कायम की। ऐसी व्यवस्था, जो सिर्फ सैन्य ताकत या राष्ट्रीय संबद्धता पर नहीं बल्कि सिद्धांतों, कानून के शासन, मानवाधिकारों, धर्म, भाषण, एकत्र होने की स्वतंत्रताओं और स्वतंत्र प्रेस पर आधारित थी।' अपने गृहनगर से जनता को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा, 'उस व्यवस्था के सामने अब चुनौती पेश की जा रही है।

फिरभी बेहतर है कि शिकागो में अमेरिका के राष्ट्रपति पद से विदाई लेते हुए ओबामा काफी भावुक दिखे। उन्होंने कहा, 'अपने घर आकर अच्छा लग रहा है। मैं और मिशेल वापस वहीं लौटना चाहते थे, जहां से यह सब शुरू हुआ था। मिशेल 25 सालों से मेरी पत्नी ही नहीं, मेरी अच्छी दोस्त भी हैं। उनके साथ के लिए शुक्रिया। ट्रंप को सत्ता का यह शांतिपूर्वक हस्तांतरण है। मैं अमेरिकी नागरिकों की इच्छा के अनुसार 4 साल और पद नहीं संभाल सकता। अमेरिका के लोगों को बदलाव लाने के लिए अपनी क्षमता में विश्वास रखना होगा। अपनी फेयरवेल स्पीच में ओबामा ने मिशेल के लिए कहा कि मिशेल, पिछले पच्चीस सालों से आप न केवल मेरी पत्नी और मेरे बच्चों की मां है, बल्कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। ओबामा ने अपनी बेटियों मालिया और साशा से कहा कि अद्भुत हैं। भाषण के दौरान बराक ओबामा भावुक हो गये। यह देख उनकी बेटी और पत्नी मिशेल की आंखों में आंसू आ गए।

ओबामा ने अपने विदाई भाषण में कहा कि जब हम भय के सामने झुक जाते हैं तो लोकतंत्र प्रभावित हो सकता है। इसलिए हमें नागरिकों के रूप में बाहरी आक्रमण को लेकर सतर्क रहना चाहिए। हमें अपने उन मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए जिनकी वजह से हम वर्तमान दौर में पहुंचे हैं।

अमेरिका में ट्रंप का अश्वेतों के खिलाफ जिहाद अब अमेरिकी सरकार का राजकाज है तो भारत में हिंदुत्व का पुनरूत्थान है।मनुष्यता के खिलाफ दोनों इजराइल के साथ युद्ध पार्टनर है।

भारत में यह युद्ध हड़प्पा औरर मोहनजोदोड़ो के पतन के बाद लगातार जारी है।अब देश आजाद है। बाबासाहेब के सौजन्य से संविधान बाकायदा धम्म प्रवर्तन है।असल में बौद्धमय भारत का वास्तविक अवसान ब्राह्मणधर्म का पुनरूत्थान है।समता और न्याय के उल्टे भारतीय सत्ता वर्ग वंचित मेहनतकशों को अछूत बताकर इनकी छाया से भी दूर रहने की कोशिश करता है और इस क्रम में उन्हें बुनियादी मानवीय अधिकारों से पूरी तरह वंचित करके लगभग जानवरों जैसी स्थिति में रहने के लिए मजबूर करता है।उसको मिट्टी में मिलाकर उसका वजूद खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।यही रामराज्य है।

कहने की जरुरत नहीं है कि संसद में कानून बनाने से हजारों सालों से चली आ रही मानसिकता नहीं बदली है।बदल भी नहीं सकती क्योंकि संविधान के बदले अब भी मनुस्मृति चल रही है क्योंकि वह पवित्र धर्म है और बहुसंख्य आम जनता की वध्यनियति है। इसलिए आज भी दलित द्वारा पकाए खाने को स्कूल के बच्चों द्वारा न खाने, दलितों को उनकी औकात बताने के लिए उन्हें नंगा करके घुमाने, हिंसा और बलात्कार का शिकार बनाने, उनके घर फूंकने और उनकी सामूहिक हत्या करने की घटनाएं होती रहती हैं,क्योकि पितृसत्ता कायम है और द्रोपदी का चीरहरण जारी है।कैशलैस डिजिटल इंडिया में रोज रोज देश के चप्पे चप्पे पर स्त्री आखेट है।बलात्कार सुनामी है।कही आम जनता की सुनवाई नहीं होती,लोकतंत्र है।

हकीकत यह है कि आजादी के लिए हुए संघर्ष के दौरान,उसे भी पहले नवजागरण के दौरान  जो सामाजिक जागरूकता और आधुनिक चेतना पैदा हुई थी, आज उसकी चमक काफी कुछ फीकी पड़ चुकी है।

पुरखों का सारा  करा धरा गुड़ गोबर है।इतिहास विरासत मिथक हैं।मूर्तिपूजा और कर्म कांड से बाहर कोई यथार्थ हर किसी को नामंजूर है।अखंड कीर्तन जारी है।

शंबूक हत्या का सिलसिला जारी है और संविधान में प्रदत्त वंचितों के लिए तमाम रक्षा कवच, अनेक अधिकार,कायदे कानून  केवल कागज पर ही धरे रह गए हैं। उन पर अमल करने में न तो समाज की ही कोई विशेष रुचि है और न ही राष्ट्र की.राष्ट्र अब रामराज्य है।राष्ट्र अब राममंदिर है।जहां बहुजनों का प्रवेश निषिद्ध है।प्रवेशाधिकार मिला तो बहुजन घुसपैठिये विदेशी हैं।इस सत्ता के आतंक में या फिर इस सत्ता के तिलिस्म में रीढ़ देह से गायब है।रगों में खून नहीं जो खौल जाये और इसीलिए पुरखों के नाम मिशन दुकानदारी है और समता न्याय के आंदोलन अब ठंडे पड़ चुके हैं।

मनुस्मृति के तहत जातिव्यवस्था सख्ती से लागू करने की समरसता है।

जाहिर है कि पारंपरिक रूढ़िग्रस्त चेतना की वापसी हो रही है और इसका प्रमाण खाप पंचायत या उस जैसी ही अन्य पारंपरिक सामाजिक संस्थाओं का बढ़ रहा प्रभाव है। ये संस्थाएं और संगठन आधुनिकता के बरक्श परंपरा को खड़ा करके परंपरा के संरक्षण की बात करती हैं क्योंकि उनकी राय में उसके साथ संस्कृति और धर्म का गहरा नाता है।देश की राजनीति और देश की सरकार खाप पंचायत है।

हम अमेरिकी उपनिवेश बनकर सचमुच अमेरिका हो गये हैं।

यहां मोदी हैं तो वहां ट्रंप हैं।

यहां भरा पूरा संघ परिवार है तो वह रिपब्लिकन और कुक्लाक्सक्लान हैं।

अमेरिका का सच यह है कि मुसलमान ,शरणार्थी के खिलाफ नये राष्ट्रपति का जिहाद है और जाते हुए राष्ट्रपति  ने अमेरिकी जनता से अपील की कि अमेरिकी मुसलमानों के खिलाफ किसी प्रकार के भेदभाव को नकार दें।

भारत का भी सच यही है।कोई मुसलमानों के साथ हैं तो कोई मुसलमानों के खिलाफ हैं और जिहाद में कोई कमी नहीं है।आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों और स्त्रियों का सच यही है।पक्ष विपक्ष की बातें सिर्फ बातें हैं।सूक्तियां हैं और यथार्त विशुध रंगभेद है।नरसंहार का सिलसिला अंतहीन है।अबाध अस्पृश्यता है।सैन्य राष्ट्र है।

ओबामा ने कहा कि बदलाव तभी होता है जब आम आदमी इससे जुड़ता है। आम आदमी ही बदलाव लाता है। हर रोज मैंने लोगों से कुछ न कुछ सीखा। हमारे देश के निर्माताओं ने हमें अपने सपने पूरे करने के लिए आजादी दी। हमारी सरकार ने यह प्रयास किया कि सबके पास आर्थिक मौका हो। हमने यह भी प्रयास किया कि अमेरिका हर चैलेंज का सामना करने के लिए तैयार रहे।

यह ओबामा का अमेरिकी सपना है और हम भारत में सपनों में सपनों का भारत वही जी रहे हैं।बाकी हमारे हिस्से में भोगे हुए यथार्थ का नर्क है।जिसे हम कहीं भी किसी सूरत में रंगकर्म में, माध्यमों में,विधाओं में,मीडिया में,राजनीति में,साहित्य में,लोक में,कलाओं में कहने तक की हिम्मत नहीं रखते क्योंकि सारा कारोबार रंगबिरंगे सपनों का है और मुफ्त में स्वर्ग का चिटफंड वैभव है।संस्कृति विदेशों में शूटिंग है।फैशन शो है।टीवी की सुर्खियों के यथार्थ में जीने की अंधता सार्वभौम है।यही अंधभक्ति है।

बिना अभिव्यकित का यह मूक वधिर विकलांग लोकतंत्र दिव्यदिव्यांग है।

जिसमें सबसे प्यारी चीज हमारी अपनी जनमजात गुलामी है।गुलामगिरि है।

बाराक ओबामा की विदाई के बाद राष्ट्रपति पद संभालने वाले पूत के पांव पालने में झलकने लगे हैं।अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालने से ठीक 9 दिन पहले प्रेसिडेंट एलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में आर्थिक नीति का खांका रखा। अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने के अपने लक्ष्य का पीछा करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अर्थव्यवस्था में ऑटो, फॉर्मा और डिफेंस सेक्टर में बड़े बदलावों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इन सभी सेक्टर्स में दुनिया को एक बार फिर अमेरिका की बादशाहत कायम होती दिखाई देगी।इसका मतलब भली भांति समझ लें तो बेहतर।

ट्रस्ट गांधी वादी विचारधारा का आधार है।गांधी वादी नहीं है ट्रंप,लेकिन अमेरिका में प्रसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप अपनी पूरी संपत्ति को ट्रस्ट में शिफ्ट करने की योजना पर काम कर रहे हैं। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपनी पहली प्रेस वार्ता में ट्रंप ने कहा कि भले अमेरिकी संविधान से उनके ऊपर अपने कारोबार से अलग होने की बाध्यता नहीं है, वह ऐसा महज इसलिए कर रहे हैं जिससे कोई उनपर उंगली न उठा सके। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दोनों बेटों के हवाले ट्रंप समूह को करते हुए कहा कि बतौर कारोबारी वह अपनी कंपनी को बेहतर ढ़ंग से चला सकते हैं और साथ ही अमेरिका की सरकार को चला सकते हैं। लेकिन देश के हितों को आगे रखते हुए वह अपनी कंपनी से नाता पूरी तरह से तोड़ लेंगे।बिजनेसमैन राष्ट्रपति के व्हाइटहाउस से जारी फरमानका अंजाम कैसे भुगतेंगे,यह भी समझ लें।हुक्मउदुली भी असंभव है।

मसलन अब डोनाल्ड ट्रंप का संकेत है कि आने वाले दिनों में अमेरिका किसी अन्य देश को अप्रूवल देने से ज्यादा वजन वह अमेरिका में दवाओं की मैन्यूफैक्चरिंग पर देंगे। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा ड्रग्स खरीदता है इसके बावजूद फार्मा सेक्टर में उसका रसूख कम हो रहा है। लिहाजा उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में फार्मा सेक्टर में अमेरिका अक्रामक नीति बना सकता है। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर भारत इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है । जहां ग्लोबल इंडस्ट्री में ग्रोथ लगभग 5 फीसदी के आसपास है।आईटी सेक्टर तो सिरे से अमेरिकी आउटसोर्सिंग पर निर्भर है,जिसे सिरे से खत्म करने पर ट्रंप आमादा है।खेती को ख्तम करके जो मुक्तबाजार बनाया है,नोटबंदी के बाद गहराती मंदी के आलम में उसका जलवा बहार अभी बाकी है।परमाणु ऊर्जा से लेकर रक्षा आंतरिक सुरक्षा अमेरिकी है।

गौर करें कि डोनाल्ड ट्रंप ने उन लोगों को चेतावनी दी है जो अमेरिका से बाहर अपना सामान बनाकर वापस अमेरिका में बेचते हैं। ट्रंप ने कहा कि ऐसी कंपनियों पर सीमा शुल्क लगाया जाएगा। ट्रंप ने कहा ऐसी कंपनियों पर भारी सीमा शुल्क लगया जाएगा। उन्होंने कहा अमेरिका में आप अपनी कंपनी स्थानांतरित कर सकते हैं अगर वह अमेरिका के अंदर है तो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अमेरिका में कई ऐसे स्थान हैं। इससे पहले ट्रंप ने टोयोटा, जनरल मोटर्स जैसी कंपनियों को कारखाने अमेरिका में स्थानांतरित करने को लेकर दबाव बनाया गया था।

गौरतलब है कि अमेरिका और मैक्सिको के बीच तनाव बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं. मैक्सिको के राष्ट्रपति एनरिके पेना नीटो ने साफ़ कर दिया है कि उनका देश अमेरिका द्वारा सीमा पर दीवार बनाए जाने का समर्थन नहीं करता है और वह इसके लिए किसी तरह की वित्तीय सहायता भी नहीं देगा। पेना नीटो ने यह बात डोनाल्ड ट्रंप के बुधवार को आए उस बयान के जवाब में कही है जिसमें ट्रंप ने मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाए जाने की बात दोहराई थी। गुरूवार को मैक्सिको सिटी में देश के राजदूतों को संबोधित करते हुए पेना नीटो ने कहा कि मैक्सिको अपने पड़ोसी देश के साथ बेहतर संबंध चाहता है।

इसके साथ ही निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर आज सनसनीखेज दावे सामने आए जिनमें कहा गया है कि उनको रूस ने कई वर्षों से 'तैयार' किया है। मॉस्को के पास उनको लेकर नितांत व्यक्तिगत सूचना है। वहीं ट्रंप ने इस दावे को खारिज करते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि यह नाजी जर्मनी में रहने जैसा है। एफबीआई और सीआईए समेत अमेरिका की चार प्रमुख खुफिया एजेंसियों ने ट्रंप और निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के समक्ष पिछले सप्ताह, वर्ष 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हस्तक्षेप पर एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें इन आरोपों का जिक्र था।

इस बीच यूएस नैशनल इंटेलिजेंस काउंसिल की ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की इकॉनमी सुस्त पड़ रही है, जबकि भारत की ग्रोथ तेज बनी हुई है। हालांकि, भारत में सामाजिक गैर-बराबरी और धार्मिक टकराव से इकॉनमी पर बुरा असर पड़ सकता है। यह रिपोर्ट चार साल में एक बार आती है।

इसमें बीजेपी सरकार की हिंदुत्व नीति से देश के अंदर और पड़ोसी देशों के साथ टकराव बढ़ने की ओर ध्यान दिलाया गया है। रिपोर्ट में लिखा है, 'भारत की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी हिंदुत्व को सरकारी नीतियों का हिस्सा बनाने को कह रही है। इससे देश में मुस्लिम अल्पसंख्यकों से टकराव बढ़ रहा है। इससे मुस्लिम बहुल पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भी तनाव बढ़ रहा है।'

अमेरिकी रिपोर्ट में उन महत्वपूर्ण ट्रेंड्स की पहचान की जाती है, जिनका आने वाले 20 वर्षों में दुनिया पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि टेक्नॉलजी से दुनिया काफी करीब आ गई है, लेकिन इससे आइडिया और पहचान को लेकर मतभेद बढ़ सकते हैं जिससे पहचान की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत हिंदू राष्ट्रवादियों से कैसे निपटता है और इजरायल धार्मिक कट्टरपंथ के साथ किस तरह से संतुलन बनाता है, इससे भविष्य तय होगा।' रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले वर्षों में आतंकवाद का खतरा बढ़ेगा। इस संदर्भ में भारत में 'हिंसक हिंदुत्व' के अलावा 'उग्र क्रिश्चियनिटी और इस्लाम' का जिक्र किया गया है। सेंट्रल अफ्रीका के देशों में ईसाई धर्म का उग्र चेहरा दिख रहा है। वहां इस्लाम का भी एक ऐसा ही चेहरा है। म्यांमार में उग्र बौद्ध और भारत में उग्र हिंदुत्व है। इससे आतंकवाद को हवा मिलेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद और अस्थिरता बनी रहेगी, जबकि भारत छोटे दक्षिण एशियाई देशों को इकनॉमिक ग्रोथ में हिस्सेदार बना सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को पाकिस्तान से रक्षा संबंधी खतरे हो सकते हैं, जो परमाणु हथियार बढ़ा रहा है। वह इनके लिए डिलीवरी प्लैटफॉर्म पर भी तेजी के काम कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान टैक्टिकल परमाणु हथियार और समुद्र से मार करने वाली मिसाइलें तैयार कर रहा है। अगर वह समुद्र में परमाणु हथियार तैनात करता है तो उससे पूरे क्षेत्र के लिए सुरक्षा संबंधी खतरा पैदा होगा।

आगे दूसरे विश्वयुद्ध में आखिरकार देखी मंदी है और फिर वही भुखमरी है।

उसके नजारे पर भी तनिक गौर करें।मीडिया से साभार

73 साल पहले बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) ने अकाल का वो भयानक दौर देखा था, जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी। ये सेकंड वर्ल्ड वॉर का दौर था। माना जाता है कि उस वक्त अकाल की वजह अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का एक्सपोर्ट हो रहा था। हालांकि, एक्सपर्ट्स के तर्क इससे अलग हैं। अकाल से ऐसे थे हालात…

राइटर मधुश्री मुखर्जी ने उस अकाल से बच निकले कुछ लोगों को खोज उनसे बातचीत के आधार पर अपनी किताब में लिखा है कि उस वक्त हालात ऐसे थे कि लोग भूख से तड़पते अपने बच्चों को नदी में फेंक रहे थे। न जाने ही कितने लोगों ने ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी। हालात ये थे कि लोग पत्तियां और घास खाकर जिंदा थे। लोगों में सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने का भी दम नहीं बचा था। इस अकाल से वही लोग बचे जो नौकरी की तलाश में कोलकाता (कलकत्ता) चले आए थे या वे महिलाएं जिन्होंने परिवार को पालने के लिए मजबूरी में प्रॉस्टिट्यूशन का पेशा शुरू कर दिया।

अनाज की नहीं थी कोई कमी

ये सिर्फ कोई प्राकृतिक त्रासदी नहीं थी, बल्कि ये इंसानों की बनाई हुई थी। ये सच है कि जनवरी 1943 में आए तूफान ने बंगाल में चावल की फसल को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन इसके बावजूद अनाज का प्रोडक्शन घटा नहीं था। इस बारे में लिखने वाले ऑस्ट्रेलियन साइंटिस्ट और सोशल एक्टिविस्ट डॉ. गिडोन पोल्या का मानना है कि बंगाल का अकाल 'मानवनिर्मित होलोकास्ट' था। इसके पीछे अंग्रेज सरकार की नीतियां जिम्मेदार थीं। इस साल बंगाल में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने मुनाफे के लिए भारी मात्रा में अनाज ब्रिटेन भेजना शुरू कर दिया और इसी के चलते बंगाल में अनाज की कमी हुई।

रोकी जा सकती थी त्रासदी

जाने-माने अर्थशात्री अमर्त्य सेन का भी मानना है कि 1943 में अनाज के प्रोडक्शन में कोई खास कमी नहीं आई थी, बल्कि 1941 की तुलना में प्रोडक्शन पहले से ज्यादा था। इसके लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को सबसे ज्यादा जिम्मेदार बताया जाता है, जिन्होंने स्थिति से वाकिफ होने के बाद भी अमेरिका और कनाडा के इमरजेंसी फूड सप्लाई के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इन्होंने प्रभावित राज्यों की मदद की पेशकश की थी। जानकारों का कहना है कि चर्चिल अगर चाहते तो इस त्रासदी को रोका जा सकता था। वहीं, बर्मा (मौजूदा म्यांमार) पर जापान के हमले को भी इसकी वजह माना जाता है। कहा जाता है कि जापान के हमले के चलते बर्मा से भारत में चावल की सप्लाई बंद हो गई थी।


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जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

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अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

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Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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