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Saturday, January 21, 2017

बक्सादुआर के बाघ-1 कर्नल भूपाल लाहिड़ी अनुवादःपलाश विश्वास


बक्सादुआर के बाघ-1

कर्नल भूपाल लाहिड़ी

अनुवादःपलाश विश्वास




सुमन और अदिति पूरे मन से उनकी बातें सुन रहे थे।बक्सा दुआर वनांचल के मनुष्यों की कथा व्यथा।वे दूरदराज की बस्तिय़ों से आपबीती सुनाने आये हैं।

आदमा बस्ती के रमेश राय बता रहे थे कि कैसे जंगलात के अफसरान ने आदमा,लेपेचोखा,  ताशिगांव, चूनाभट्टी, ओछलुङ और लालबांग्ला बस्तियों के तीन सौ परिवारों को ब्रिटिश हुक्मरान की तरह आज भी अपना खरीदा हुआ गुलाम बनाये रखा है।

-फारेस्त दिपारमेंत के बाबू लोगों ने हम लोगों से नर्सरी तैयारी कराये रहे।नये एलाके में पौद लगाना,खर पतवार साफ सुफ करना,यानि कि जंगल की आग बुझाने परयंत तमाम काम जोर जबरदस्ती कराये रहे- एको पइसा न देत हैं।बस्ती के लोगों से कागज पर सही करवा लिये,परतेक परिवार को जंगल में एक एकड़ जमीन पे पेड़ लगावेक रहे-आउर इसके बदले तीन से पांच एकड़ फारेस्त की जमीन आबाद कर सकै हैं।

बीड़ी सुलगाकर रमेश बोलते रहे कि जिस कागज पे सही करवाये हैं,उसमें का का लिखा होवे,सुनो तो माथा गरम हुई जावै।आपको खेती वास्ते जो जमीन दिबे,उहां आप मुर्दाक दफना ना सकै हैं।न मंदिर मसजिद चर्च कोई धरमस्तान बना सकै हैं।फिन फारेस्त के हुक्मरान हुकुम करें तो पंद्रह दिनों के भीत्तर जमीन छोड़ देनी है।नहीं ना छोड़ा तो फारेस्त वाले कारिंदों से मार पीटाई करके भगाये दिबे।

आज सुबह यहां राजाभातखाओवा में बक्सा जंगलात में रिहायशी करीब सात सौ मर्दों और औरतों को लेकर जन सुनवाई शुरु हुई है। जो कल तक चलेगी।सुमन और अदिति कोलकाता से नवदिशारी नामक संगठन की ओर से इस जन सुनवाई में शामिल हैं।यह संगठन पिछले दस साल से जंगलात में रहने वाले लोगों के हकहकूक पर काम कर रहा है।इससे पहले कई दफा सुमन बक्सा आया हैं। अदिति पहलीबार आयी है।

नवदिशारी के अलावा अलीपुर दुआर के एक और संगठन की इस जन सुनवाई में हिस्सेदारी है। इस मौके पर जलपाईगुड़ी जिला के डिस्ट्रिक्ट जज,चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट और अलीपुरदुआर अदालत के सारे जज और मजिस्ट्रेट हाजिर हैं। पश्चिम बंगाल लीगल एइड सर्विस के चेयरमैन जस्टिस अमरेश मजुमदार सभापतित्व कर रहे हैं।नोटिस देने के बावजूद बक्सा टाइगर रिजर्व के फील्ड डिरेक्टर या उनके किसी डिप्टी ने आने  की तकलीफ नहीं उठायी।

इस जन सुनवाई का मकसद वन और वनांचल में रहने वाले मनुष्यों के संरक्षण के लिहाज से संसद में हाल में जो आईन कानून पास हुए हैं, वास्तव में उन्हें किस तरह लागू किया जा रहा है,इसकी समीक्षा करना है और इसके साथ साथ जंगलात में रहने वाले मनुष्यों  के अधिकारों का किस तरह और कितना उल्लंघन हो रहा है, इस  बारे में सारे तथ्य संग्रह करना है।

रमेश राय के बाद दक्षिण पोरो बस्ती के तिलेश्वर राभा अपनी आपबीती सुनाने को उठ खड़े हुए।उन्होंने कहा,आप जाने हैं कि राभा लोग आदत से  शर्मिला और शांत हुआ करै हैं।इये सुयोग निया फारेस्तेर अफसर लोग अत्याचार चलाइतेछे।पोरो बस्तीक एक सौ बीस परिवार पर।हर रोज। साल के बाद साल।लगातार।बिना मजूरी जोर जबरदस्ती काम कराये नितेछे छह सौ माइनसेक दिया। हमरा  गरीब मानुषगुलाक  ना दिछे राशन कार्ड दिया,ना बीपीएल कार्ड।बस्तीर माइनसेक वोटर लिस्टे  नाम नाई।बस्तीगुलात स्कूल नाई।साइस्थ्य केंद्र नाई ।खेती बाड़ी खातिर जमीन नाई। ना खाया मानुषगुला मइरबार शुरु कइरछे।।




अगले दिन जन सुनवाई बक्सा रेंज के निमति गांव में शुरु हुई।

पहले ही राजाभातखाओवा इलाके के दक्षिण गारो बस्ती के वाशिंदा नीरज लामा बोलने के लिए खड़े हो गये।अपने घर में सोये हुए थे नीरज ,हठात् आधी रात फारेस्ट वालों ने आकर उन्हें पुकारना चालू किया। फिर घर से निकलते ही अरेस्ट कर लिया।उन्हींके गांव के बाबूराम उरांव को पहले ही अरेस्ट कर लिया था और उन्हें साथ भी लाये थे।उन दोनों को उठाकर वे बैरागुरि ग्राम पहुंचे। फिर फारेस्ट के अफसरों ने वहां दो और लोगों शिवकुमार राय और दीपक राय को अरेस्ट कर लिया। फिर चारों को लेकर सीधे दमनपुर रेंज आफिस पहुंच गये।क्यों गिरफ्तार किया, इस बारे में उन्हें कुछ भी नहीं बताया गया।इसके बदले रेंज आफिस का दरवाजा बंद करके बेधड़क मार शुरु हो गयी।मारने पीटने के बाद हरेक के हाथ कोरा  कागज थमा दिया गया और रेंज आफिसर का हुक्म हो गया,सही कर दो।

अदिति सुमन के कान में बोली ,कितनी भयंकर बात है!यह तो एकदम नील दर्पण का दृश्य है।फर्क इतना ही है कि चाबुक हाथ में लिये लाल रंग का कोट पहिने लालमुंहा ब्रिटिश अफसर की जगह काली चमड़ी वाला खाकी वर्दी पहने आजाद लोकतांत्रिक राष्ट्र के वन दफ्तर के अफसरान हैं ये।

अमानुषिक अत्याचार और कोरा कागज पर दस्तखत की रस्म पूरी हो गयी तो रेंज अफसर गरज कर बोला, कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने कबूल कर लेना कि तुम लोग हाथी दांत चुरा रहे थे।वे इस पेशकश पर राजी न हुए तो एक दफा फिर मार कूटाई हो गयी।कोर्ट में मुकदमा शुरु होने के बाद जेल हाजत में उन्हें बाइस दिन बिताने पड़े।फिर भारी कवायद कसरत के बाद जमानत पर रिहा हुए।वह मुकदमा अभी चल रहा है। कब तक खत्म होगा, नीरज लामा या दक्षिण गारो बस्ती के किसी को मालूम नहीं है।

इसके बाद अभियोग दायर करने की बारी उत्तर पोरो गांव के सुशील राभा की पत्नी बोलानी राभा की थी ।उम्र बीस इक्कीस। उन्होंने सिलसिलेवार बताया कि कैसे महज दो महीने पहले उन की कैसे बेइज्जती हुई बिना किसी जुर्म के।

उस दिन वे पति के साथ मछली पकड़ने नदी पर गयी थीं।बक्सा टाइगर रिजर्व के डिप्टी फील्ड डिरेक्टर एक और अफसर के साथ वहां से होकर गुजर रहे थे।दोनों को मछली पकड़ते देखकर उन्होंने सीधे भीषण पिटाई शुरु कर दी।बोलानी बुरी तरह जख्मी हो गयी।खबर मिलने पर गांव के लोग दौड़े दौड़े मौके पर पहुंचे और फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस सिलसिले में तालचिनि थाने में फारेस्ट अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया लेकिन आखिरकार पुलिस ने कोई तहकीकात नहीं की।

कालकूट बस्ती के रवि संगमा का आरोप है कि दस साल पहले फारेस्ट डिपार्टमेंट ने उनके खिलाफ झूठा मामला दायर कराया।वह मुकदमा अभी चल रहा है।

घटना का ब्यौरा देते हुए उन्होंने कहा कि एकदिन तमांग नाम के एक फारेस्ट गार्ड उन्हें घर से उठाकर राजाभातखाओवा  बिट आफिस ले गया।वहां जाकर उन्होंने देखा कि आस पड़ोस के गांवों से चार और लोगों को वे पहले ही उठा लाये थे।बिट आफिस में रातभर उनसे मारपीट की गयी और अकथ्य अत्याचार किये गये।अगले दिन उन्हें अलीपुरदुआर सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश कर दिया।बाइस दिन जेल हिरासत में काटने के बाद जमानत मिली।किंतु आज भी उन्हें नहीं मालूम कि आखिर उनका जुर्म क्या था और फारेस्ट एक्ट की किस धारा के मुताबिक उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया।

गदाधरपुर के सुरेश राभा,उम्र तीसेक साल,अपनी आपबीती सुना रहे थे। अक्तूबर महीने की एक ढलती हुई दुपहरी के दरम्यान वे अपनी लापता गाय को खोजते हुए जंगलात में दाखिल हो गये। बहुत खोजने के बाद भी गाय का अता पता मालूम न होने पर वे शाम के वक्त घर लौट रहे थे।तभी फारेस्ट गार्ड सुंदर भूटिया से उनका सामना हो गया। फारेस्ट गार्ड उन्हें देखकर पहले तो मुस्कुराया और फिर अचानक उसने अपनी रायफल से एक के बाद एक दो गोलियां सुरेश राभा के पैरों पर दाग दीं।गोलियों की आवाज सुनकर बस्ती के लोग भागे भागे आये। फिर सुरेश को अपनी  बस्ती में ले आये।अगले दिन उन्हें अलीपुर दुआर सरकारी अस्पताल में भरती कराया।तालचिनि थाने में शिकायत दर्ज कराने के बावजूद उस जल्लाद फारेस्ट गार्ड के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई  नहीं हुई।

गदाधर बस्ती के केरजी राभा की उम्र चालीस के करीब है।उनकी कथा व्यथा ह्रदय विदारक है।तीन साथियों के साथ जंगल में वे जलावन लकड़ी की खोज में निकले थे।सेसट्ठ नंबर वन सृजन इलाके में जब वे लोग सुस्ता रहे थे, अचानक वहां फारेस्ट बिट अफसर अश्विनी राय अपने लाव लश्कर  के साथ हाजिर हो गये और उन्होंने तुरंत बेमौक्का रायफल से गोली दागनी शुरु कर दी।केरजी के पांव में एक बुलेट धंस गया।संग संग वे वहीं गिर पड़े।उन्हें वही छोड़ उनके साथी भाग खड़े हुए। करीब दो घंटे बाद जब गदाधर बस्ती के लोगों तक खबर पहुंची,तब तक केरजी के पांव के जख्म से बहुत खून बह चुका था।उत्तेजित बस्ती वालों ने जख्मी केरजी को लेकर रेंज आफिस पर प्रदर्शन किया। किंतु रेंज अफसर ने दोषी फारेस्ट अफसरों को सजा देने के बजाय केरजी को पुलिस के हवाले कर दिया। लंबे अरसे तक पुलिस उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल घुमाती रही।आखिरकार केरजी के बुलेटबिद्ध पांव काटकर सीधे उन्हें अलीपुर जेल में डाल दिया।लंबा अरसा जेल में बीता देने के बाद केरजी अब जमानत पर हैं।

उस दिन की जन सुनवाई में इस तरह एक के बाद एक अनेक अमानवीय घटनाओं का ब्यौरा सामने आया।

सुमन सुन रहा था और सोच भी रहा था।उसके मन में तरह तरह के सवालात खड़े हो रहे थे। पहला सवाल, क्या बक्सा का यह जंगल इलाका भारतीय लोकतांत्रिक राष्ट्र व्यवस्था के दायरे से बाहर कोई देश है,जहां भारत का संविधान लागू नहीं है,और इसी वजह से संविधान में लिखे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की तमाम बातें यहां इस तरह बेमायने हैं? दूसरा सवाल, भारतीय गणतंत्र और संविधान क्या इन असहाय और कमजोर मनुष्यों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में संपूर्ण व्यर्थ हैं? तीसरा सवाल,ऐसे तमाम असहाय और कमजोर मनुष्यों के मामले में क्या प्रशासन और न्याय प्रणाली अपने दायित्वों का पालन यथायथ कर रही हैं? चौथा सवाल,लंबे अरसे से इस तरह के अत्याचार और अन्याय क्या इन मनुष्यों को भी  माओवादी,कामतापुरी या अलफा की तरह हथियार उठाने के लिए मजबूर कर देंगे?

शाम ढलने को आयी।झिंगुर बोलने लगे हैं और बक्सा जंगल पर एक विषण्ण  छाया विस्तृत हो रही है।उत्तर पोरो बस्ती के लोग भरे हुए कंठ से एक एक कर कह रहे थे कि कैसे निष्ठुर पुलिस ने तीन साल पहले उनकी बस्ती के महज तेरह साल के मासूम जिंदादिल बच्चे सुलेमान राभा को गोली से उड़ा दिया।

उन्हें वह मनहूस तारीख भी साफ याद है।आठ दिसंबर।सुलेमान अपने हम उम्र साथियों के साथ जलावन लकड़ी लाने जंगल गया था ।नेशनल हाईवे नंबर 31 पार करते वक्त पुलिस गश्ती दल ने उन्हें देख लिया और रुकने को कहा।पुलिसिया आतंक के साये में ही वे हमेशा जीते हैं।इसलिए मारे दहशत  वे जंगल में घुसकर दौड़ने लगे और पुलिस उनके पीछे लग गयी।इसके बाद पुलिस  अचानक भागते हुए बच्चों पर रायफल से गोलियां बरसाने लगी ।एक बुलेट सुलेमान की पीठ में धंस गया और संग संग वह माटी पर लुढ़क गया।यमराज ने जैसे उस मासूम की तर ताजा देह से प्राण छीनने में मुहूर्तभर की देरी नहीं की,उसी तरह पुलिस ने भी यह प्रचारित करने में देरी नहीं लगायी कि वे लड़के डकैती करने आये थे।

जिस मनुष्य में तनिको बुद्ध विवेचना है,उनके लिए तेरह साल के बच्चे की डकैती का यह गप कितना विश्वसनीय होगा,इसे लेकर पुलिस को कोई सरदर्द न था।

एक के बाद इस तरह की घटनाओं का ब्यौरा सुनकर हतवाक् रह गयी अदिति।वह सोच ही नहीं पा रही थी कि एक राष्ट्र व्यवस्था के अंतर्गत जहां प्रशासन है,आईन कानून हैं,न्याय प्रणाली है, वहां रोज रोज इस तरह की अमानवीय घटनाएं कैसे घटित हो सकती हैं!

-यहां तो अक्षरशः जंगल राज चल रहा है।स्वाधीनता के साठ साल बाद भी ये असहाय लोग गणतंत्र के सुफल से वंचित हैं,किंत क्यों? अदिति का सवाल यह है।

सुमन ने गंभीर कंठ से कहा,मुझे लगता है कि इसके मुख्य तीन कारण हैं।

- पहला यह कि ,हमारे देश में सबकुछ वोट निर्भर है।जहां वोट ज्यादा हैं,वहीं सबकी दृष्टि है- राजनेताओं की,प्रशासन की।वोटरों को खुश रखने के लिए वहां सत्ता दल की ओर से विकास के सारे कर्म कांड होते रहते हैं। किंतु इस इलाके के मनुष्यों के नाम वोटर लिस्ट में नहीं हैं। चूंकि इनके वोट नहीं हैं,इसलिए राजनीतिक नेताओं की नेक दृष्टि में ये लोग नहीं है।और चूंकि राजनीतिक प्रभुओं की नेक दृष्टि इन पर नहीं है,तो उनके द्वारा पूरी तरह  नियंत्रित प्रशासन इन `जंगलियों' को लेकर अकारण सर क्यों खपायेगा?

-दूसरा कारण,वनों में रहने वाले ये लोग शांत और अहिंसक स्वभाव के  हैं। हर तरह के अत्याचार, वंचना ये चुपचाप सह लेते हैं। अत्याचारी इस अहिंसा को उनकी दुर्बलता मानकर दुगुणी ताकत से उनपर धावा बोलते रहते हैं। इसके अलावा भारत में देश के सर्वत्र एक हिंसात्मक वातावरण है,जहां पेशीबल, अश्राव्य गाली गलौच, चीत्कार फुत्कार की ही जय जयकार है-वहां इन सभी शांति प्रिय मनुष्यों का क्षीण कंठस्वर  गलाबाजों की गलाबाजी के नीचे दबकर रह जाने वाला है, इसमें अवाक होने जैसा कुछ भी नहीं है!

-तीसरा कारण,वन विभाग के कुछ कर्मचारियों का बेलगाम भ्रष्टाचार और राजनीतिक नेताओं टिंबर माफिया के साथ उनका अशुभ गठबंधन हैं।इसी गठबंधन की वजह से वन विभाग के कर्मचारी इतने दुस्साहसी हो गये हैं कि आज उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है- यहां तक कि वे पुलिस प्रशासन और देश की कानून व्यवस्था को अंगूठा दिखाते रहते हैं।

सुनील सान्याल ने कहा ,यह मामला नया कुछ नहीं है।महीनेभर पहले की बात है।वन विभाग के कर्मचारियों ने इसी वनांचल में दो लोगों को गोली से उड़ा दिया था।सर्व भारतीय कानूनविदों की एक टीम ने घटना की जांच करने के लिए पहुंचकर सवाल उठाया कि अंधाधुंध गोली चलाकर मनुष्यों की हत्या करने का कोई कानूनी अधिकार क्या फारेस्ट कर्मियों को है? यही सवाल जस्टिस अमरेश मजुमदार ने भी जजों की एक बैठक में कर दिया।इसका जो जवाब उन्हें स्थानीय जजों से मिला, सुनकर आप चौंक जायेंगे।उन्हें दो टुक शब्दों में कह दिया गया कि फारेस्ट कर्मचारियों के सात खून माफ हैं।आईन की कोई क्षमता नहीं है कि उनका केशाग्र भी स्पर्श करे।

-किंतु मीडिया? इन मनुष्यों की कथा व्यथा देश की आम  जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी तो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की है! वे क्या इस दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं?

अदिति का प्रश्न सुनकर ठठाकर हंस उठा सुमन।

-क्या कहा तुमने, मीडिया की जिम्मेदारी ? जहां देश की पुलिस, प्रशासन, आईन व्यवस्था - कोई अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं कर रहा है तो क्यों मीडिया पर यह भारी दायित्व थोंपती हो? तुम्हें समझना चाहिए,आज की दुनिया में दायित्व की बात ओबसोलिट है।कोई अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करता है। हर कोई अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगा है! इनकी कथा व्यथा दिखाकर मीडिया का कोई हित सधता नहीं है,इसलिए मीडिया यह सब दिखाता नहीं है!ऐज सिंपल ऐज दैट!

सुमन थोड़ा रुककर बोला ,फिर यह भी संभव है कि जो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया यह सब लिखेगा या दिखायेगा,सरकार उनको विज्ञापन बंद कर देगी।उनके दफ्तरों में इसके उसके मार्फत रेइड चलाकर उन्हें नेस्तानाबुत कर देगी।मुश्किल यह है कि आज सत्ता दल द्वारा संचालित सरकार और प्रशासन में विभाजन रेखा खत्म होकर एकाकार हैं।अब सरकार यह समझती है कि प्रशासन के खिलाफ कुछ बोलने का मतलब है उसके खिलाफ ही बोलना।और सरकार इसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी।






दो



जन सुनवाई खत्म होते होते रात हो गयी। रपट फाइनल की नहीं जा सकी।यहीं बैठकर रपट फाइनल कर लेने की सुविधा बहुत है,छिटपुट कुछ तथ्यों की कमी महसूस हुई तो वे सहज ही जुटाये जा सकते हैं। इसलिए सुमन और अदिति ने मिलकर आपस में  तय किया कि वे आज की रात निमति बस्ती में ही बितायेंगे।

कोलकाता और दूसरे शहरों से जो लोग यहां आये थे,सिर्फ अलीपुरदुआर के एडवोकेट सुनील सान्याल को छोड़कर वे सभी एक एक करके लौट गये।जन सुनवाई खत्म होने में देरी हो जाने की वजह से  दूर दराज की बस्तियों से लोग आये थे, उन्हें हिम्मत ही नहीं हुई कि रात के अंधेरे में बक्सा के घने जंगल होकर वे कई कोस दूर अपनी बस्ती में लौट जाते।

रपट लिखने के लिए रोशनी की जरुरत थी।अदिति कहीं से एक लालटेन का जुगाड़ कर लायी। रपट के मसविदा वाले कागजात एक फाइल में सहेजते हुए सुमन ने कहा,जानती हो अदिति, इस जंगल का आयतन निहायत कम नहीं है।1982-83 में 760 वर्ग किमी आयतन के इस बक्सा अरण्य को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया।1986 में 314.52 वर्ग किमी इलाका जोड़कर और फिर 1991 में और 54,47 किमी अतिरिक्त और  इलाका जोड़कर बक्सा वाइल्ड लाइफ सैंक्च्युरी का सृजन हो गया। 1997 में बक्सा वाइल्ड लाइफ सैंक्च्युरी के 117.10 वर्ग किमी इलाके को नेशनल पार्क घोषित किया गया। किंतु इस घोषणा के बावजूद टिंबर माफिया और वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से जंगल का घनत्व जैसे घटा है, उसी तरह अवैध शिकारियों के उत्पात से बाघों और हिरणों की तरह प्राणियों की संख्या भी घटी है। दूसरी तरफ,लगातार खंडित हो रहे इलाका और संकुचित विचरणक्षेत्र के अभाव में बस्तियों पर हाथियों के हमले होने की वारदातें भी लगातार बढ़ी हैं।

सुनील सान्याल ने कहा, जंगल का आयतन और घनत्व कम होते जाने की वजह के अलावा हाथियों के लिए खाद्य संकट का एक और कारण भी है।एक वक्त यह अरण्य मिश्र प्रकृति का रहा है- लता गुल्म रहे हैं।हरे पत्तों वाल पेड़ पौधे झाड़ियों की भरमार थी।अब इनमें से अधिकांश लापता हैं। अब सिर्फ शाल के पेड़ रह गये हैं।

मसविदा के कागजात सहेजकर सुमन ने फाइनल रपट लिखना शुरु ही किया था कि बाहर भारी शोरगुल होने लगा।निमति गांव के प्रधान रोमेन माराक ने कमरे में घुसकर कहा,उत्तर गारो बस्तीर लाल सिंह भुजेल आउर दक्षिण पोरोर तिलकेश्वर राभा आप लोगों से मुलाकातेर खातिर तभी से जिद पकड़ि बसि आछे। हमी जतो समझायी कि अभी मुलाकात होबे नाई,कल सुबह आ जाना- हमार कथा वो सुनतेछे ना-

फाइल से नजर उठाकर सुमन ने कहा,बुला लीजिये उन्हें।

कमरे में घुसकर लाल सिंह ने कहा,तामाम दिन आप लोग सबकी बात सुइनलेन,किंतु हमरागुला लोगों की माइनसेर कथाटु सुइनलेन ना।क्यों, हम लोग कि एई जंगले वास करि ना? ना हमरागुला मानुष ना?

रोमेन माराक उन्हें समझाने की कोशिश की।कहा, कथाटु ऐमोन ना होय।उयादेर सक्कलेर कैचर मैचरे राइत होइ गेलो, सभी आपन दुःख कष्टेर कथा सुनाइते चाहे,किंतु एत्तो समय कुथा बाबू लोगों को? सभी लोगों की सब कथा सुइनते कमसेकम दस बारह दिन समय लागे-

- लगने दो।तिलकेश्वर राभा की आवाज में उष्मा थी।बाबू लोग तो रोज रोज आइसतेछेन ना। आइसतेछेन दो तीन साले एक्कोबार।तभी यदि उयादेर हमी फारेस्त दिपार्तमेंतेर अत्याचारेर कथा ना कह सकें-

लाल सिंह और तिलकेश्वर का गुस्सा अकारण नहीं था।एकदम सुबह से लेकर सांझ ढलने तक इंतजार में बैठने के बावजूद अगर किसी को अपनी व्यथा कथा कहने का मौका न मिले तो माथा गरम होने की बात तो है।फिर दो तीन साल में एक बार चेहरा दिखाने की शिकायत भी जायज निर्मम सच है।मामला तकलीफदेह जरुर है लेकिन सुमन,अदिति और सुनील सान्याल में से किसी की समझ से परे नहीं है।उपस्थित सभी लोगों के चेहरों को एकबार देख लेने के बाद सुमन ने कहा,ठीक है,बोलो तुम्हारी बात।अदिति,तुम नोट कर लेना।इस पर तिलकेश्वर राभा ने सिलसिलेवार ब्यौरे के साथ पोरो बस्ती के साधारण राभा की रेंज अफसर ने कैसे गोली मारकर हत्या कर दी,वह किस्सा बताना शुरु कर दिया।

-साधारण राभा उयार बस्तीर तीन जनके निया यही निमति बस्ती आइसतेछिलो।रास्ताय एक जगह उयारा देखे कि फारेस्त दिपार्तमेंतेर मानुष एक त्रके मोता मोता गाछ लोड कइरतेछे।रेंज अफिसर  साधारण आउर  उयार संगीदेर  हांक लगाइके  फरमान जारी करि दिया ,तुमार लोगगुलान हमारगुला मानुष के साथ लकड़ियों को त्रक में लोद कर दो। सभी लकड़ी त्रके लोड करा होइले वोई रेंजर साधारणके  धक्का दिया माती पर गिराये एइसा पीता कि उयार मुख से फव्वारा जइसा खून निकल आया।खून बिल्कुल थम नहीं रहा था।फिर वह खत्म हो गया। आइज तक ओई रेंजर के खिलाफ कोनो कार्रवाई पुलिस करे नाई।

यहां के ढेरों लोगों की तरह ट का उच्चारण तिलकेश्वर राभा त करता है।

बहरहाल उनके बताये किस्से में कुछ नया नहीं था।दो दिन से जितनी घटनाओं के बारे में उन्होंने सुना है,इसे उनकी पुनरावृत्ति कहा जा सकता है।किंतु इन पुनरावृत्तियों के मार्फत एक पैटर्न साफ से साफ नजर आने लगा सुमन को।

सुमन ने अदिति से कहा कि तुमने जरुर गौर किया होगा कि इन घटनाओं में एक पैटर्न है। वह पैटर्न यह है कि जंगल में रहने वाले लोगों पर फारेस्ट डिपार्टमेंट के अफसर  लगातार एक के बाद एक अमानुषिक अत्याचार करते रहते हैं और हर बार फारेस्ट डिपार्टमेंट के अपराधी अधिकारियों के खिलाफ  पुलिस और प्रशासन की भूमिका निर्विकार है।पुलिस प्रशासन की तरफ से फारेस्ट डिपार्टमेंट के अफसर और कर्मचारी एक तरह की इम्युनिटी एंजाय करते हैं ।इसीलिए सबके सामने दिनदहाड़े कत्ल करने के बाद भी उनका कभी कुछ बिगड़ता नहीं है।पुलिस के इस पक्षपात की वजह से ही न्याय प्रणाली और सह्रदय न्यायाधीश तक न्याय या दोषियों को दंडविधान करने में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभा पाते।

सुनील सान्याल ने कहा कि कुछ दिनों पहले जस्टिस अमरेश मजुमदार के साथ स्थानीय जजों की बैठक में इस जंगलात इलाके के मौजूदा हालात के विश्लेषण के बाद ऐसी ही राय बनी थी।

-यही स्वाभाविक है।सत्य का सही विश्लेषण हर वक्त आपको एक ही नतीजे तक पहुंचा देता है। यह काफी हद तक हिसाब के सवाल हल करने जैसा है।कोई भी ऐसा सवाल हल करने बैठे तो सबका जवाब हर बार ,बार बार एक जैसा ही निकलेगा।

-किंतु यह  सिद्धांत तो हमें निश्चित तौर पर एक बड़े प्रश्न के सामने खड़ा कर देता है,उसका जवाब कौन देगा? अदिति ने कहा।

-वह प्रश्न क्या है? फाइल पर लिखते लिखते चेहरा उठाकर देखा सुमन ने।

-पुलिस की तरफ से फारेस्ट डिपार्टमेंट वालों को यह इम्युनिटी दिये जाने का कारण क्या है?

अदिति के चेहरे की तरफ देखते हुए होंठों के कोण से हल्का सा हंसा सुमन।फिर फाइल में नजर गाढ़कर गंभीर आवाज में उसने कहा, माई डियर अदिति, आज की दुनिया में मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता है। देयर इज नो फ्री लंच एंड देयर इज ए प्राइस फार एवरी थिंग।बक्सा के जंगलात में फारेस्टवालों को यह इम्युनिटी खरीदनी पड़ी है,ऐट ए प्राइस। इट इज द क्वेश्चन आफ  शेयरिंग द स्पायेल्स आफ लूट।आओ भाई, जो माल कमाया, बंटवारा करके हजम कर लें। तुम भी खुश, मैं भी खुश।


फिर इस खुशी के माहौल में,लूट के बंटवारे के साझे महोत्सव में एकमात्र कांटा ये जंगली मनुष्यों की जमात है। उनके दो जोड़े(एक जोड़ा फारेस्ट गार्ड के और एक जोड़ा पुलिस के) बूटों के नीचे वे उन्हें कुचलकर दबाये रखते हैं ताकि वे कभी सिर उठाकर ,रीढ़ सीधी करके खड़ा हो न सकें। चाहे अंधाधुंध गोली मारकर या मध्य रात्रि रेंज आफिस ले जाकर मार पीटकर अधमरा करके जैसे भी हो अमानवीय दमन से वे उनके दिलदिमाग में ऐसा आतंक का माहौल सिरजते हैं, जो कुत्तों के काटने के बाद होने वाले जलातंक से भी भयंकर होता है।पूरे जंगलात इलाके में दहशत की फिजां बनाकर,वे त्रास का सृजन करते हैं  ताकि इन जंगली मनुष्यों की जमात में कभी प्रतिवाद करने का साहस न हो!

घड़ी की सुई रात के ग्यारह बजे बताने लगी।रपट का मसविदा लगभग तैयार है,रोमेन माराक बार बार तगादा करने लगे।बगल में जलधर मोमिन के घर रात के भोजन का न्यौता है।कागजात समेटकर वे उठने को हुए, तभी फिर बाहर भारी शोरगुल।सुमन ने बाहर आकर देखा कि एक आदिवासी युवती,उम्र चौबीस पच्चीस,ने रोमेन माराक से तीखी बहस शुरु कर दी है।

-बक्सा जंगलेर सभी बस्तीर माइनसे जे जार कथा कहि सकै,किंतु बाबू लोग हमार कथा क्यों न सुइनबे?

- दिनभर तो सुइनछे।अभी तमाम  राइत बइठे बइठे खाली तुमार कथाई सुइनबे,खाना पीना न लागे, नींद ना लागे?

सुमन ने रोक कर कहा- अहा,उन्हें कहने तो दो,क्या बोलना चाहती है!

यहां रोशनी नहीं है,उनका नाम धाम सब लिखना है,उन्हें भीतर ले आयें,रोमेन से सुमन ने कहा।

युवती भीतर आयी।उसके साथ एक पुरुष।बोली, हमार नाम सुशीला,गारो बस्तीत रही।इटा हमार मरद,सुधीर।सुधीर माराक।

वह आदमी नाटे कद का ,शरीर स्वास्थ्य भी उस तरह ठीक ठाक नहीं है- युवती के साथ वह उसके मुताबिक सही लग ही नहीं रहा था। लालटेन की रोशनी में युवती का चेहरा खिला हुआ था,साफ साफ दीख रही थीं आंखें, दीख रहा था चेहरा- हां,उसे सुंदरी कहा जा सकता है।सुमन की नजर में इस इलाके के आदिवासियों में ऐसी सुंदरता देखने को आज तक नहीं मिली थी। स्वप्नाविष्ट की तरह उसके चेहरे को ताकता रहा सुमन।

मन ही मन उसे इच्छा होने लगी युवती के नये नामकरण करने का।वनफूल? ना,ना,इससे बेहतर एक नाम जेहन में आ रहा है- वाइल्ड फ्लावर!

चारों तरफ इतना शोर शराबा,सारा दिन लगातार परिश्रम,अत्यंत क्लांत शरीर और मन,पेट में भीषण भूख- इस वातावरण को किसी भी तरह रोमांटिक आख्या नहीं दी जा सकती-ऐसे दुःसह वातावरण में हठात् असमय आविर्भाव इस वाइल्ड फ्लावर का!असमय हो या जो भी हो,वसंत जब हठात् आ ही गया है,तब उसका सादर आवाहन सम्भाषण करना ही होगा सुमन को।

सम्भाषण किंवा घनिष्ठता के सेतुबंधन के लिए मातृभाषा से उत्कृष्ट कोई पंथा नहीं है,यह तत्व ज्ञान और अभिज्ञता दोनों सुमन को है।सो,वाइल्ड फ्लावर को उसने गारो भाषा में संबोधित कर डाला- ना आछिक मा?अर्थात,तुम क्या गारो हो?

संपूर्ण अपरिचित किसी व्यक्ति के मुख से अप्रत्याशित तरीके से अपनी मातृभाषा सुनकर मुहूर्तभर में उज्ज्वल हो उठा युवती का चेहरा,निमेषभर में अपरिचिति का दुरत्व और क्लांतिकर दीर्घ प्रतीक्षा से उत्पन्न विरक्ति लापता।

-ओये।ना आछिक खुशिक उइया मा? युवती ने जवाबी सवाल किया।

(हां,तुम्हें गारो भाषा आती है?)

-उइया, नाम्मेन उइया।

(जानता हूं, खूब अच्छी तरह जानता हूं)

इसी तरह दोनों के मध्य गारो भाषा में प्रश्नोत्तर पर्व चलता रहा काफी देर तक।बगल में बैठे अदिति और सुनील सान्याल ,नीरव दर्शक बने मूक आंखों से देखते रहे कि कैसे उनके लिए संपूर्ण अर्थहीन कुछ शब्द किस तरह दो संपूर्ण अपरिचितों के मध्य सम्पर्क का सेतुबंधन बना रहे थे।

युवती उसके पति सुधीर पर फारेस्ट गार्ड के अत्याचारों  ब्यौरा सुना रही  थी। वर्णना के मध्य कभी विषण्णता की छाया गहरा रही थी उसके चेहरे पर ,कभी क्रोध से रक्तिम हो रही थीं उसकी आंखें, विस्फारित हो रही थी नासिका,तो कभी तीव्र वेदना में दोनों आंखों से आंसू बाढ़ की तरह बह रहे थे, उसके गुलाबी दोनों गालों से होकर।

इन सामान्य कुछेक मिनटों में दोनों के मध्य न जाने कैसी एक घनिष्ठता तैयार हो गयी। सुमन को केंद्रित युवती के मन में नई आशा और भरोसा का सृजन हो चला था।विषण्णता की छाया काटते हुए इसी पल उसकी आंखों और उसके चेहरे की उज्ज्वलता  और उसकी समस्त देह में नये सिरे से संचारित स्फूर्ति बता रही थी यह।

इतने अल्प समय के भीतर अपरिचय का व्यवधान अतिक्रम करके निकट आत्मीय की तरह निःसंकोच सुमन के दोनों हाथों को जकड़ कर सूशीला कह रही थी, आमाक मदद कइरबार कोई नहीं ! आप हमार मदद कइरबेन तो ?

-अवश्य ही करुंगा,आंतरिकता के साथ आश्वस्त कर रहा था सुमन।

-विपद हइले ,खबर दिले आइसबेन तो?

-निश्चय ही आउंगा,वाइल्ड फ्लावर का हाथ पर अपना हाथ हल्के से रखकर बक्सा जंगल में झिंगुर की पुकारों वाली उस रात को वायदा किया सुमन ने। नीरव साक्षी थे दो लोग, अदिति और सुनील सान्याल।




तीन




सुमन की उम्र तब अड़चालीस थी,अदिति की चौतीस।बारह साल पहले जब उनका परिचय हुआ तब सुमन छत्तीस साल का था और  महज बाइस छूने के करीब थी अदिति।उम्र में फर्क के बावजूद दोनों के बीच इस दरम्यान धीरे धीरे एक निवीड़ संपर्क गढ़ उठा था।

किसी वक्त सुमन प्रेसीडेंसी कालेज में पालिटिकल साइंस का नामी छात्र था।मूलतः उसका यह नाम यश उसकी मेधा के कारण था। स्टु़डेंट्स युनियन की विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी के बावजूद बेहतरीन  अकादमिक परफर्मांस, इसके साथ ही विचित्र विषयों में प्रचुर अध्ययन और अतुलनीय वाग्मिता। काफी हाउस में मार्क्स एजेंल्स का तत्व और इस देश में रिवोलिउशन की संभावना पर घंटों तर्क वितर्क।।उन तर्क युद्धों में कोई कभी सुमन को हरा नहीं सका।

कालेज से पास करने के बाद कुछ दिनों तक इधर उधर वह भटकता रहा था,उसके बाद एक कस्बाई शहर के कालेज में छात्रों को पढ़ाने की चाकरी भी सुमन ने जुगाड़ कर ली थी।

यह जगह कोलकाता से कुछ दूरी पर थी, जहां से कोलकाता रोज रोज आवागमन संभव न था। करीब छह महीने छात्रों को पढ़ाने के बाद यह काम कैसे जैसे घिसा पिटा महसूस होने लगा सुमन को। काफी हाउस का अड्डा नहीं रहा, मार्क्स एंजेल्स, लेनिन या विप्लव को लेकर तर्क वितर्क नहीं था, उसके प्रिय कवि पाब्लो नेरुदा की कविताओं पर घंटों चर्चा नहीं थी जो कवि लांछित अवहेलित निपीड़ित मनुष्यों की कथा कहने को सदैव व्याकुल-

    Come quickly to my veins

    And to my mouth,

   Speak through my speech

   And through my blood.

आखिरकार सुमन ने वह नौकरी छोड़ दी।फिर किसी के आगे हाथ फैलाना  न पड़े, इसके लिए कोलकाता लौटकर उसने तीनेक छात्रों को लेकर ट्यूशन शुरु कर दिया। इसके बाद साल भर में छात्रों की संख्या दस तक पहुंच गयी। हजारों दबाव के बावजूद सुमन ने पिछले पंद्रह सालों में यह संख्या बढ़ने नहीं दी। सवाल करने पर वह जवाब देता, इसीसे मजे में चल रहा है।ब्याह शादी नहीं की ,घर संसार नहीं है- इससे बेशी रुपयों की मुझे दरकार क्या है?

किसी वक्त अदिति भी सुमन के प्राइवेट ट्युशन की गुणमुग्ध छात्रा रही है।तब तक उसने सिर्फ इक्कीस वसंत देखे थे।सुमन सर के नित्य नूतन गुणों के आविष्कार के साथ साथ अदिति की गुणमुग्धता भी होड़ लेकर बढ़ रही थी।बढ़ते बढ़ते सुमन सर से नींद में,सपनों में सुमनदा। प्रेम के सागर में डूबते उतरते हुए कुल किनारा न पाकर एक दिन आखिरकार सुमन के आगे ह्रदय का लाकगेट खोल ही दिया उसने ।सुमन ने मन लगाकर सबकुछ सुन लिया।सुनकर ठंडे गले के साथ बोला, तुम्हारी उम्र में ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं है।यू शैल बी एबल टु ओवरकम दिस इमोशन वेरी सून।

सुमनदा की इस तरह की हिम शीतल प्रतिक्रिया पर अदिति ने परदे के पीछे छुप कर अनेक दर्जन रुमाल आंखों के आंसुओं से  भिगो लिये।सुमनदा के साथ घर बांधने का ख्वाब देख रही थी वह। हो न उसकी उम्र कुछ ज्यादा है उससे,इससे क्या! अनेक कष्ट सहकर एक दिन अदिति ने ब्याह की बात भी कर दी सुमन से।

किंतु वह प्रस्ताव सुनकर सुमनदा ने गंभीर आवाज में जो कहा,उससे अदिति का ह्रदय-उर्द्ध आकाश में लाल-नील-हरे तारों का फव्वारा निकालने के बाद, माटी से बनी तुबड़ी अनार पटाखा के खोल की तरह फटकर टुकड़ा टुकड़ा हो गया।

-ब्याह की बात मैंने कभी नहीं सोची और भविष्य में भी नहीं सोचुंगा।ब्याह शादी,घर संसार- यह सब मेरे लिए नहीं है।सुमन ने किताब के पन्ने पलटते हुए निर्विकार कहा था ।

-उफ! धरती तुम फट जाओ,मैं तुममें प्रवेश करुं।मन ही मन बोली अदिति।

अदिति ने यह बात स्पष्ट समझ ली कि इस मनुष्य से अनुनय विनय करके कोई लाभ नहीं होने वाला है।प्रचंड जिद्दी है यह सुमनदा।एकबार कोई फैसला कर लिया, तो किसी भी सूरत में पलटने वाला नहीं है।

दोराहे पर खड़ी थी अदिति। एक तरफ, जीवन भर का सपना- ब्याह,घर-संसार। दूसरी तरफ सुमनदा। इन दोनों में से किसी को चुनना था उसे।

रात रात भर रातें जगकर, नाक के पानी आंखों के आंसू से अनेक बिस्तर तकिया भिगोने के बाद, अंतहीन चिंताओं के सागर पार करने के बाद शेष पर्यंत एक निर्णय पर पहुंची अदिति।समझौता कर लिया अपने भाग्य के साथ।वह साफ साफ समझ चुकी थी कि सुमनदा के बिना उसका जीवन कितना अर्थहीन हो जाना है,कितना असहनीय होगा वह।विशाल वृक्ष जैसे उस मनुष्य से लिपटी किसी लता की तरह वह इस तरह गूंथ गयी कि खुद को उस बंधन से तोड़कर अलग करने की कोशिश करने पर, उसका अपना कोई अस्तित्व ही बाकी नहीं रहना था।

-ठीक है ,न हो तो शादी नहीं ही करना- नहीं ही बसाना घर संसार,किंतु अगर मैं आपके साथ बनी रही, आपके काम में मदद करती रही, तब तो आपको कोई आपत्ति नहीं होगी? सीधे अदिति ने यह सवाल कर दिया।

- नहीं,कोई आपत्ति नहीं है-सो लंग यू डोन्ट क्रस द लाइन! गंभीर स्वर में कहा सुमन था ने।

अदिति को सांत्वना मिली कि न हुआ विवाह,न ही पहना शांखा सिंदूर- शय्यासंगिनी नहीं हुई तो क्या अंततः कर्मसंगिनी होकर अपने मन के मानुष सुमनदा के साथ सारा जीवन वह बीता लेगी।

और इसी तरह बाद के दस साल बीत गये।स्त्री की मर्यादा नहीं मिली अदिति को,कितु सुख में,दुःख में सुमन की नित्यसंगिनी वह- सारी चिंताओं और भावनाओं में हिस्सेदार,सभी कामों में सहायक।

बीच बीच में सुमनदा को कोलकाता से बाहर जाना होता है ।उसका ज्यादातर काम देश के विभिन्न इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को लेकर है। कभी झारखंड, कभी ओडीशा, कभी मेघालय, कभी डुआर्स।ऐसे वक्त कोलकाता में बैठकर अदिति को सुमन का सारा कामकाज संभालना होता है ।

अबकी दफा पहलीबार सुमनदा के साथ  अदिति बक्सा के जंगल आयी है। इसकी खास वजह भी है। हाल में सुमन को शुगर होने का पता चला है।अपने शरीर स्वास्थ्य के प्रति वह  प्रचंड उदासीन,उसे ठीक ठीक वक्त पर दवाएं देते रहने की जिम्मेदारी अदिति की है।इतने दिनों के संबंध के बावजूद अदिति  सुमन को नाम से पुकार नहीं सकती, न जाने कैसा संकोच होता है।सुमनदा कहकर ही बुलाती है ,जैसे बारह साल पहले जब सुमनदा उसे पढ़ाने उसके घर आया करता था,वह कहती थी।

तब सुमन एक मन से आंखें बंद करके पढ़ाता और उसके चेहरे को निष्पलक आंखों से देखती रह जाती अदिति।ज्ञान की गहराई, विषय विश्लेषण की दक्षता,कहने की शैली- सुनते सुनते अदिति को लगता कि ऐसा उसने कभी नहीं सुना, सुनेगी भी नहीं फिर कभी।सुमनदा सच में अतुलनीय है,वह एकमात्र एवं अद्वितीय है।सुमनदा के चेहरे को सम्मोहित सी देखते हुए,उसके मुख से निकलते शब्द धीरे धीरे बुदबुद की तरह शून्य में खो जाते।कल्पना के पांख खोलकर  उड़ते रहते गांग चील की तरह नीले आसमान में,दूर तलक,बहुत दूर तलक।उसकी कल्पना के कैनवास पर तब होंठ हिलाता एक चेहरा होता, वह चेहरा सुमनदा का।

छत्तीस साल के सुमन के व्यक्तित्व और आकर्षण ने बाइस साल की नवयौवना रोमांटिक अदिति को जादुई मायाजाल की तरह ऐसे सम्मोहित कर रखा था कि उसकी नींदों में,ख्वाबों में सिर्फ सुमनदा।  उसका यह स्वप्नाविष्ट भाव मां की आंखों में पकड़ा गया।मां ने अदिति से सवाल किया- क्या रे, सुमन से तू क्या ब्याह करेगी? तुझसे उम्र में कितना बड़ा है !

-मैं तो ब्याह करना चाहती हूं लेकिन सुमनदा नहीं चाहते।

-तब उसे भूल जा।किसी और से ब्याह कर ले।

-भूल जाउं? कैसे भूल जाउं? वह जो मनुष्य है,वह मेरे समस्त भीतर और बाहर को व्यापा हुआ है, आंखें बंद कर लूं तो मेरी आंखों के सामने सब समय वही घूम रहा है,उसे मैं कैसे भूल जाउं मां?

सहेलियों ने चेतावनी भी दी,तू बहुत बड़ी गलती कर रही है अदिति! लाइफ सिक्युरिटी एक इंपार्टेंट मामला है और विवाह से लाइफ सिक्युरिटी का संबंध है।जब तेरी उम्र हो जायेगी तब देखना, सुमन के साथ तेरा यह संबंध टिकेगा नहीं। तब क्या करेगी? कौन देखेगा तुझे? फिर सबके जीवन में शौक आह्लाद भी कोई चीज है,घर संसार,बच्चे-

सहेलियों की इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया अदिति ने।सुमनदा से सीधे पूछा था अपने संबंधों के भविष्य के बारे में।उस दिन दो टुक शब्दों में सुमनदा ने जवाब भी दिया था।कहा था,अपने बीच के इस संबंध की सीमारेखा के बारे में ।अदिति ने दस साल के दरम्यान इस सीमारेखा का कभी उल्लंघन नहीं किया।आज बक्सादुआर जंगल के बीचोंबीच झिंगुरों की पुकारों वाली अंधकार निःशब्द रात में एक ही तख्त पर अगल बगल सोने के बावजूद नहीं।

कितु सुमन का मन? उसकी सीमारेखा ?इसी मुहूर्त को उसका वह मन उसके साथ सोयी पूर्णयौवना अदिति की तप्त देह की सीमारेखा पार करके जंगली घोड़े की तरह भाग रहा है सरपट उसी तरफ जहां बक्सा जंगल की गहराई में वृक्षराजि और लता गुल्म के मध्य सबकी नजरों से छुपकर गोपनीय तरीके से खिला हुआ है वाइल्ड  फ्लावर।वह अकाल वसंत की उस रात में वाइल्ड फ्लावर के सपनों में अनेक प्रहर बीत गये,फिरभी सुमन की आंखों में नींद नहीं है।




चार



कोलकाता में वापसी के बाद जन सुनवाई की रपटें ठीक ठाक संपादित करने के बाद प्रेस जाकर पत्रिका में छपवाने में हफ्ताभर लग गया।आखिर में लिस्ट के मुताबिक यहां वहां डाक से भेजने की बारी। हाथोंहाथ बांटनी भी पड़ी कुछ प्रतियां।ज्यादातर काम अदिति ने कर दिया। सुमन के संगठन के नाम से ही पत्रिका का नाम नवदिशारी है।



यह सब कुछ निबट जाने के बाद पंद्रह दिन भी नहीं बीते,आईबी हेडक्वार्टर्स से फोन। आपको एकबार हमारे दफ्तर में आना है।

-क्यों,कहिये तो,मामला क्या है?

-इतनी बातें फोन पर नहीं बतायी जा सकतीं।यहां आने पर ही मालूम हो जायेगा।

सुनने के बाद अदिति ने पूछा,मैं चलूं आपके साथ?

सुमन ने थोड़ा सोचने के बाद कहा,नहीं,जरुरत नहीं है।



आईबी इंस्पेक्टर मालाकार ने कहा,बैठिये। फिर मेज की दराज से पत्रिका की एक प्रति निकालकर उसे दिखाते हुए पूछा, इसे क्या आपने छापा है? यह नवदिशारी संस्था क्या आपकी है?

-हां,मैं ही इसे चलाता हूं।

पैकेट से एक सिगारेट निकालकर सुलगाते हुए इंस्पेक्टर ने अचानक सवाल किया, माओवादियों से अापके क्या संबंध हैं,जरा बतायेंगे?

औचक सवाल के झटके को हजम करने के बाद साफ आवाज में सुमन ने कहा,कोई संबंध नहीं है।

-संबंध नहीं है ,कहने से ही मैं मान लुंगा!अगर नहीं है तो यह सब बकवास क्यों छापी है? गले की आवाज एक पर्दा चढ़ाकर बोला मालाकर ने।

-एकदम बकवास नहीं है।वहां के लोगों ने जो कहा है,वही छापा है।

-आपके कह देने से ही मुझे यकीन करना होगा?

-हां,होगा।क्योंकि मैंने जो छापा है ,वह सबकुछ वहां के लोगों ने अलीपुरदुआर के जिला मजिस्ट्रेट के सामने कहा है।कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अमरेश मजुमदार भी वहां मौजूद थे।आपने लगता है कि रपटें ठीक से पढ़ी नहीं हैं।

धक्का खाकर इंस्पेक्टर ने विषय बदल दिया।

-किंतु यह सब छापने के लिए जो रुपये चाहिए,उसका सोर्स क्या है? वे रुपये तो माओवादी ही देते हैं!

-एकदम बकवास है!

-आपके बैंक एकाउंट के सारे ट्रैंजेक्शन डीटेल्स हमें चाहिए।

-अवश्य ही दे दूंगा।

-आपके सोर्स आफ इनकाम क्या है?

-छात्रों को पढ़ाता हूं-

-माने प्राइवेट ट्युशन! कितने छात्र हैं?

-दस छात्र-

- टोटल कितना मिलता है?

पांच हजार-

बस! इतने में  आपका चल जाता है?

-अनायास।

-घर में और कौन हैं?

-मैं और अदिति-

-अदिति कौन है?आपकी पत्नी?

-नहीं,कभी वह मेरी छात्रा रही है-

-और अब?

-मेरे साथ रहती है-

-रहती है,क्या मायने है इसके ,रात को एक ही बिस्तर पर सोती है न ?

-दैट्स नान आफ युओर बिजनेस!

-आफ कोर्स इट इज माइ बिजनेस! आपके बारे में सब कुछ जानना ही हमारा बिजनेस है।मेज पर रखे कागज के लिफाफे से पान निकालकर मुंह में डालकर चबाते हुए बोला मालाकार।अब जा सकते हैं।जरुरत पड़ी,तो फिर आना पड़ेगा।


घर लौटने पर अदिति ने कहा ,आपको उनके दफ्तर बुलाकर इस तरह जिरह,इसका मतलब क्या है?

सुमन ने कहा,यह कुछ नहीं है।थोड़ा डराने की कोशिश है!

-किंतु क्यों?

-यही उनका काम है।निर्विकार आवाज सुमन की।ये हैं सरकार के द्वारपाल।सरकार के खिलाफ कोई कुछ कहें या आवाज उठायें तो इनका पहला काम है कि उसे डरा धमकाकर चुप करा दिया जाये।इससे भी काम नहीं निकला तो उसे तरह तरह से परेशान करना ,झूठे मुकदमा में फंसा देना इनका काम है।

-लेकिन यह अन्याय है।गणतंत्र में सरकार की जनविरोधी नीतियों की आलोचना करने और उसका विरोध करने का अधिकार तो राष्ट्र के किसी भी नागरिक को है,आपको भी है!

-मौजूदा राष्ट्र व्यवस्था में सत्ता पर काबिज सरकार हर वक्त चाहेगी कि आम जनता उसकी ही जय जयकार करें,जयडंका बजायें-जिससे वह अनंतकाल तक राज कर सकें।लेकिन यदि इसका कुछ भी व्यतिक्रम होता है,तो संग संग सरकार अपना जनमोहन मुखौटा उतारकर ,दांत नख निकालकर अपने असल रुप में आ जायेगी।पुलिस सरकार का वह दांत नखवाला द्वारपाल है।




आईबी का अगला कदम सुमन के लिए प्रत्याशित ही था।संप्रति उसने अपने घर के आस पास अजनबी कुछ चेहरों को मंडराते हुए देखा है।इंस्पेक्टर मालाकार साथ में एक सब इंस्पेक्टर और दो सिपाहियों को लेकर आधी रात बाहर के दरवाजे पर घंटी के बटन पर बार बार उंगली दबाने लगे।

घंटी की आवाज से नींद टूट गयी और बिस्तर पर बैठे बैठे जोर से सुमन ने पूछा-कौन?

सदर दरवाजे के बाहर खड़े इंस्पेकटर मालाकार की सदर्प घोषणा,आईबी से हैं हम।दरवाजा खोलिये।आपका घर सर्च करना है।

-सर्च वारंट है? सुमन का प्रश्न।

-उसकी हमें जरुरत नहीं पड़ती।दरवाजा खोलिये।वरना हम जबरदस्ती घुस जायेंगे।

सुमन को मालूम है कि सिर्फ आईन नहीं,पेशीबल भी उनका काफी ज्यादा है।यह भी जानता है, इंडियन पैनल कोड की भी वे परवाह नहीं करते। दे आर ल अनटु दैमसेल्व्स! जाहिर है कि बाधा डालने से कोई लाभ नहीं होगा।

सारा घर उलट पुलट करके ,सब अलमारियों के खंगाल कर,तमाम पुस्तकें और तमाम कागजाद बैग में भरकर वे विदा हो गये।कोई सिजर लिस्ट नहीं है,क्या क्या ले गये,उसका कोई हिसाब नहीं है,कहीं सुमन का सही दस्तखत नहीं है।इसका मतलब यह हुआ कि बाद में आईबी अनायास कह सकती है कि सर्च के वक्त यह सब माओवादी लिटरेचर सुमन के घर में मिला।फिर जरुरत हुई तो  टर्चर चैंबर में डालकर सुमन से किसी लिस्ट पर जब चाहे तब दस्तखत  करवा ले सकते हैं आईबी वाले।



उनके चले जाने के बाद अदिति ने कहा,कल एकदफा जस्टिस अमरेश मजुमदार के चैंबर चलिये।

सुमन ने कहा,मैं भी यही सोच रहा था।

सब सुनकर जस्टिस मजुमदार ने कहा कि बक्सा के जंगल में उन्होंने जंगलराज कायम कर रखा है,अब देखता हूं कि कोलकाता को भी ये लोग जंगल बनाकर छोड़ेंगे।इसे लेकर कोर्ट सख्त मंतव्य कर दें तो रोना गाना शुरु कर देंगे- जुडुशियारी ओवर एक्टिविज्म कर रही है।

टेबिल पर रखे फोन उठाकर उन्होंने कहा-ठीक है,आप लोग जायें,मैं देखता हूं कि क्या कर सकता हूं।


शाम को अलीपुरदुआर से एडवोकेट सुनील सान्याल का फोन आया।सुनील सान्याल अलीपुर दुआर लीगल एइड फोरम के सदस्य हैं।जन सुनवाई के दरम्यान वे राजाभातखाओवा और निमति दोनों जगह मौजूद थे।सज्जन और सह्रदय व्यक्ति हैं।बक्सादुआर जंगल के लोगों के हक में अलीपुरदुआर कोर्ट में सारे मुकदमे वे ही लड़ते हैं।एक पैसा भी नहीं लेते,उलट इसके कोर्ट फी,स्टांप पेपर तक का खर्च उठाते हैं।सुमन जब भी उधर जाता है,जबरदस्ती स्टेशन से अपने घर ले जाते हैं। होटल में ठहरने नहीं देते।कहते हैं कि होटल का खाना खाकर आपकी सेहत बिगड़ जायेगी।आपके जैसे व्यक्ति को कुछ और दिन  स्वस्थ शरीर के साथ जिंदा रहना चाहिए।प्रतिमा का पकाया खाना बहुत नापसंद भी नहीं होगा आपको।

टेलीफोन पर सुनील सान्याल ने कहा कि आठ नंबर गारो बस्ती के सुधीर माराक औऱ उसकी पत्नी सुशीला की याद है,जन सुनवाई में जो निमति गांव आये थे?

सुशीला का नाम सुनते ही सुमन के मन में तपिश सी हो गयी।वाइल्ड फ्लावर को क्या कभी भुलाया जा सकता है!

-हां,हां, याद आया! क्या हुआ उन्हें?सुमन के गले में उत्कंठा।

-कुछ फारेस्ट गार्डों ने सुशीला के साथ बलात्कार कर दिया और उसके मरद  को मार मारकर उसकी हड्डी पसलियां तोड़ दी हैं। दोनों ही अलीपुर दुआर सदर अस्पताल में भर्ती हैं।सुधीर का कंडीशन सीरियस है।होश में नहीं है।बचेगा या नहीं,शक है।सुशीला ने मुझे जोर पकड़ा है कि आपको खबर कर दूं।खूब कहा है कि आप एक बार आकर उसे देख जायें।

सुमन को याद आया कि उस रात सुशीला से उसने वायदा किया था।

सुशीला की बात सुनकर अदिति ने कहा कि अभी कैसे जायेंगे? अगले सात दिनों में पत्रिका का नेक्स्ट इस्यु निकालना है।वैसे भी काफी देर हो गयी है।इसके अलावा अगले महीने आपके छात्र छात्राओं की परीक्षाएं हैं।

-आगामी सोमवार को महाजाति सदन में ह्युमैन राइट्स को लेकर बड़ा सेमीनार है,राज्यभर से डेलीगेट आ रहे हैं।सेमिनार का संचालन भी मुझे ही करना है। चिंतित सुनायी पड़ा सुमन का स्वर।

-सुनीलबाबू को कह दीजिये कि इस वक्त जाना संभव नहीं है।स्पष्ट आवाज में अदिति ने कहा।

-ना,मुझे जाना ही होगा।पत्रिका तुम देख लेना।और सेमीनार के बारे में कह देता हूं कि किसी और को जिम्मेदारी दे दें।

-सुमन की बातें सुनकर अदिति अवाक्।ऐसा पहले और कभी नहीं हुआ।सुमनदा के लिए सारी पृथ्वी एक तरफ और पत्रिका एक तरफ। लेकिन आज सुमनदा को हो क्या गया,वही चिराचरित भारसाम्य बदल गया? जिस कारण पूरे देश में उसका इतना सम्मान, इतनी प्रतिष्ठा,वह सेमीनार भी आज उसके लिए मूल्यहीन! कह रहे हैं कि किसी और को संचालन की जिम्मेदारी दे दी जाये!

एक आदिवासी लड़की के साथ हुई दुर्घटना की खबर ने सुमनदा को इतना विचलित कर दिया है,इसकी कोई धारणा नहीं थी अदिति को।बारह साल से जिस आदमी से उसका परिचय है, आज हठात् वह अजनबी सा लगने लगा है।या फिर इतने सालों से उसने ठीक से पहचाना ही नहीं है?

अदिति को कौन बतायेगा कि कोई पहचाना हुआ मनुष्य मुहूर्तभर में कैसे अजनबी बन जाता है।फिर आंखों की एक निगाह से ही अजनबी कैसे बहुत दिनों का जाना पहचाना लगता है!



अलीपुरदुआर स्टेशन पहुंचते ही सुमन को सुनील सान्याल ने खबर बता दी।सुशीला के पति सुधीर को बचाया नहीं जा सका,कल रात उसकी मृत्यु हो गयी।

सुनील सान्याल की गाड़ी से सीधे अस्पताल में। फीमेल वार्ड में रो रोकर थकी हारी सुशीला सो गयी थी।निःशब्द उसकी बिस्तर के पास जाकर खड़ा हुआ सुमन।वृंत से टूटकर धूल में पैरों तले कुचले फूल की तरह अस्पताल  की हरे रंग की चादर से ढकी बिस्तर पर सोया एकदा अकाल वसंत में खिला उसका वही वाइल्ड फ्लावर।किंतु क्यों?किसके दोष से?

ऐसे नाना प्रश्नों से उत्ताल,अशांत सुमन का मन।

सुशीला धीरे धीरे अपनी क्लांत रक्तिम दोनों आंखों को खोलकर शून्य दृष्टि से कुछ देर तक सुमन के चेहरे को देखती रही।उसके बाद उसके दोनों होंठ कांपने लगे थरथराकर।सुमन को लगा, सुशीला की उस दृष्टि में हजार योजन उत्ताल सागर की फेनिल वेदना कैद है,निःशब्द कंपते होंठो में अवरुद्ध हजार डेसिबिल का कर्णभेदी आर्तनाद!

फिर हठात् ही उस दम साधा हुआ निःशब्द को चीरकर सीना तोड़ चीत्कार सुशीला काः देखो बाबू, देखो,उयारा हमार का सर्वनाश कइराछे- हमी उयादेर छाइड़बो ना,किसी भी तरह छाइड़बो ना-

सुमन ने गौर किया कि ये बातें कहते हुए सुशीला की दृष्टि धीरे धीरे बदलने लगीं।वह दृष्टि अब शून्य उदास नहीं है ,बल्कि उसमें जंगली सर्पीली हिंस्रता है।दोनों जबड़ों को सख्त करके दांतों से दांतों को पीसने लगी सुशीला,लग रहा था कि जैसे उसके सारे दांत टूट जायेंगे!

सुनाल सान्याल ने फिसफिसा कर सुमन के कान में कहा,आज सुबह ही डाक्टर आपस में चर्चा कर रहे थे कि वह गहरे सदमे में है।हो सकता है कि कल उसे साइक्राटिक वार्ड में शिफ्ट कर देंगे।

अस्पताल से निकलने के बाद सुमन का मन गहरी विषण्णता से भाराक्रांत हो गया कुछ देर के लिए।चेहरा गंभीर।लंबा कुत्सित अदृश्य किसी काले हाथ ने धीरे धीरे प्रसारित होते होते आज केवल वास्तव पृथ्वी को ही नहीं, कल्पना के जगत का भी ध्वंस कर दिया।उसी अदृश्य हाथ की वजह से उसकी स्वाधीन जीवन यात्रा विपर्यस्त बहुत पहले से थी  और आज स्मृतियों के मणिकोठा में छुपाया हुए स्वप्न को भी किरचों में बिखेर कर रख दिया।

अस्पताल से सुनील सान्याल के घर जाने के रास्ते सुमन ने पूछा,घटना इक्जैक्टली क्या है,मुझे बतायेंगे!

सुनील ने घटना का मोटे तौर पर विवरण सुना दिया।

-पिछले सोमवार दोपहर बाद चार बजे जंगल से जलावन लकड़ी बटोरकर दो बोरियों में भरकर घर लौट रहे थे सुधीर और सुशीला।बस्ती से दो मील दूरी पर जंगलात के भीतर उनका सामना तीन फारेस्ट गार्डों-अक्षय तमांग,सोनू चामलिङ और सुंदर भूटिया से हो गया।वे तीनों बिट पर निकले थे। सुधीर और सुशीला के सर पर बोरियां देखकर उन तीनों फारेस्ट गार्डों को शक हुआ कि वे जंगल में लकड़ी चुराने को घुसे थे।बोरियां सर से उतारकर खोलकर दिखाने के बावजूद उन तीनों फारेस्ट गार्डों ने एकसाथ मिलकर सुधीर को मुक्का थप्पड़ घूंसा मारना शुरु कर दिया।सुशीला ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उसे बालों का झोंटा पकड़कर खींचकर धक्का मारकर हटा दिया।प्रचंड मार से सुधीर बेहोश हो गया, इसके बाद सुशीला को  झाड़ी के पीछे जबरदस्ती खींचकर ले गये और तीनों फारेस्ट गार्डों ने एक एक करके उसके साथ बलात्कार कर दिया।

-देर रात तक उनके घर न लौटने पर ,बस्ती के कुछ लोग उन्हें खोजने निकले- सुधीर और सुशीला को जंगल में बेहोश हालत में देखकर उन्होंने चीख पुकार मचा दी।उनकी चीखें सुनकर बस्ती के सारे लोग दौड़े चले आये और उन्हें अस्पताल उठा लाये।

सुधीर और सुशीला को अस्पताल में दाखिल कराने के बाद गारो बस्ती के लोग एकजुट होकर तालचिनि थाने पर शिकायत दर्ज कराने को गये।पुलिस ने कोई एफआईआर तो दर्ज नहीं ही किया, उलटे उन्हें लाठी से मार मारकर भगा दिया।

ब्यौरे के अंत में थोड़ा रुककर सुनील सान्याल बोले,मैं कल सुबह तालचिनि थाने गया था। थाना इंचार्ज का कहना है कि ,यह सब उस लड़की का गढ़ा हुआ गप है।तमांग नाम के जिस फारेस्ट गार्ड के खिलाफ बलात्कार की शिकायत लड़की ने की है,उसकी कुछ दिनों पहले उसके पति से झड़प हो गयी थी। उसे लेकर फारेस्ट डिपार्टमेंट की ओर से उस आदमी के खिलाफ एक मुकदमा भी शायद चल रहा है।फारेस्ट गार्ड को फंसाने के लिए ही लड़की ने बलात्कार की यह झूठी कहानी बनायी है,आप उसकी बात पर यकीन न करें।

सब सुनने के बाद सुमन ने कहा कि ये लोग तो दिन को रात बना सकते हैं।

-एकदम सही है।सुनील सान्याल ने हामी भरी।मैंने जब कहा कि अस्पताल में लड़की की मेडिकल जांच हुई है,इंचार्ज ने हंसकर क्या कहा मालूम है? वैसे चरित्र की लड़की,जिनका धंधा ही देह व्यवसाय का है,उनकी देह की डाक्टरी जांच से नया क्या मिलने वाला है?

यह कहने के बाद दांत निकालकर थाना इंचार्ज की उस कुत्सित हंसी का अंदाजा लगा पा रहा था सुमन।

उसके कानों में वह हंसी बार बार प्रतिध्वनित हो रही थी।माथा गरम होने लगा।सुनील सान्याल से कहा, जब पुलिस की मानसिकता ऐसी है तो ऐसे में तहकीकात फिर कैसे होगी और उसके आधार पर माननीय न्यायाधीशगण भी किस तरह न्याय कर पायेंगे?

-यही तो इतने दिनों से इन लोगों के साथ होता रहा है।चरम असहायबोध दीर्घश्वास बनकर निकली सुनील सान्याल के सीने से।

-अतीत में यही  होता रहा है तो हमेशा ऐसा ही चल नहीं सकता! व्हाटइज द वे आउट?

-मुझे मालूम नहीं है।हो सकता है कि भविष्य में कोई रास्ता निकले जो आपकी हमारी कल्पना से बाहर है।गंभीर होकर सान्याल ने कहा।




सुनील की पत्नी प्रतिमा ने हर बार की तरह ही इसबार भी सुमन के लिए अच्छा भला खाना तैयार किया था।बाजार से बहुत खोजकर भरौली मछलियां खरीद लायी।भरौली मछलियां सुमन को खूब पसंद है। लेकिन वह सब सुमन के गले से नीचे नहीं उतर सका।खाते हुए जैसे उसका गले में कुछ फंस रहा था।

-क्या बात है?कुछ भी तो खा नहीं रहे हैं,शरीर वगैरह ठीक है न?सवाल किया प्रतिमा ने।

-ना ना,शरीर ठीक है।संक्षिप्त उत्तर था सुमन का।

-शरीर नहीं,उसका मन ठीक नहीं है!सुशीला की हालत ठीक नहीं है।कैस तो पागल जैसी हो गयी वह लड़की,गंभीर गले से बोले सुनील सान्याल।

-नहीं होगी क्या! तीन तीन पागल कुत्तों ने जिस तरह नोंच नोंच कर उसका शरीर खाया है,उस लड़की का पागल हो जाना एकदम अस्वाभाविक नहीं है!


दोपहर बाद अलीपुरदुआर से ट्रेन में बैठकर यही सब तरह तरह की बातें सोच रहा था सुमन, तभी उसकी उलटी तरफ वाली सीट पर आकर बैठे एक सज्जन।उम्र पचास पचपन,लंबे कद के,चुस्त चेहरा। पैकेट से सिगरेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया ।लंबा कश लेने के बाद सुमन से उन्होंने पूछा,महाशय,क्या हुआ? काम हुआ?

-कौन सा काम? उन सज्जन के औचक सवाल से हैरत में था सुमन।

-जे काम के लिए अलीपुरदुआर आये हो।

-क्यों आया मैं ,बताइये तो?

-अस्पताल में भर्ती उस लड़की की खबर लेने।मैंने ठीक कहा न ?

-ठीक।लेकिन आपको कैसे मालूम पड़ा?

-अरे महाशय,जानना ही तो हमारा काम है।मैं आईबी इंस्पेक्टर तपन कुमार राय हूं। डिपार्टमेंट के लोग मुझे टीके कहकर बुलाते हैं।आपका नाम तो सुमन चौधुरी है।किसी वक्त आप प्रेसीडेंसी कालेज में पालिटिकल साइंस के टापर रहे हैं।अभी एकठो एनजीओ चलाय रहै हैं,नवदिशारी। जंगलात के लोगों को लेकर लेख वेख लिक्खा करै हैं।हाल में अपनी पत्रिका में एक रपट छापकर सरकार के बाप का श्राद्ध कर दिया है,ठीक है न ?

-लेकिन आप यहां क्या कर रहे हैं ?

-आमागो जा काज!आपके जैसे महान लोगों के चरण चिन्हों का अनुसरण! कोइलकाता थिक्या आपके साथ एक ही टेरेन में आया और एक ही टेरेन में फिरत जाइताछि।

- क्यों,इतना कष्ट क्यों उठा रहे हैं?

-कष्ट? कष्ट कैसे ? एसी कोच,आराम कइरा सोये सोये आया ,सोये ही जाउंगा।

-उस कष्ट की बात नहीं कर रहा।कह रहा हूं कि इतना कष्ट करके मुझे फालो क्यों करना है?

-जो भी कोई सरकार के खिलाफ कुछ कहे है या लिक्खे है,हमरा काम उनको फालो करने का हुआ।कहां जाता है,क्या काम करता है,किस किस से मिलामिशा करता है-समस्त खबराखबर रखना-

- किंतु इतनी अंदरुनी बात आप हमें क्यों बता रहे हैं?

-भालो प्रश्न कर दिया!सिगरेट का लंबा कश लेकर उन्होंने कहा,देखिये,मैं आपकी मासिक पत्रिका रेगुलर पढ़ता रहा हूं,अच्छा लगता है।कालेज में पढ़ाई के वक्त-यहां तक कि नौकरी में घुसने से पहले तक आपकी तरह कुछ लिखा विखा करता था।सरकारी नौकरी की बदौलत अब सबकुछ बंद है। मेरा यह नंबर लीजिये।कोई असुविधा हो तो फोन कीजियेगा।बहुत रात हो गयी है,लीजिये,अब सो जाइये। डिस्टर्ब  कर दिया, दिल पर मत लीजियेगा।शुभ रात्रि।
























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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

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