रतलाम के नेगरून गांव में रविवार रात एक दलित परिवार में पास के गांव से बारात आई थी।रात आठ बजे प्रोसेशन शुरू हुआ लेकिन कुछ ही देर में बारात पर पास के घरों से पत्थर फेंके जाने लगे।इसके बाद बारात को रोक दिया गया। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और फिर दूल्हे को पगड़ी की जगह हेल्मेट पहना दिया।ऐसा इसलिए किया गया ताकि दूल्हे के सिर पर चोट न लगे।इस दौरान पड़ोस के मकानों की छतों पर पुलिसवाले पहरा देते रहे।
ये घटना आझादी के पहेले की नहीं लेकिन आजादी के 68 साल बाद 2015 की है. ऐसा सिर्फ एससी समुदाय के साथ ही नहीं लेकिन ओबीसी समुदाय के साथ भी होता रहा है. ये पौराणिक ब्राह्मणधर्म और उनके सम्प्रदायों ने फैलाये चार वर्ण की जन्मजात व्यवस्था की सामाजिक उच्चनीच और असमानता का नतीजा है. क्या मनुस्मृति की वर्णव्यवस्था और देश के संविधान को जाने बिना भारत को जाना जा सकता है.? संविधानिक आरक्षण को जानने के लिए भारत को जानना ही होगा..
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