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Thursday, April 30, 2015

जनता परिवार से परेशान संघ परिवार

जनता परिवार से परेशान संघ परिवार


जनता परिवार में छह दलों समाजवादी पार्टी, जेडीयू, आरजेडी, जेडीएस, आईएनएलडी और समाजवादी जनता पार्टी के विलय का एलान हो गया है। मुलायम सिंह यादव के घर पर शरद यादव, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, एचडी देवेगौड़ा, अभय चौटाला सहित अन्य नेताओं की बैठक हुई, जिसके बाद जनता परिवार के विलय की घोषणा करते हुए शरद यादव ने कहा कि मुलायम सिंह यादव नए दल के अध्यक्ष होंगे। पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह की घोषणा बाद में की जाएगी।

यह नया राजनीतिक घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है, जब कुछ ही महीने बाद बिहार विधानसभा का चुनाव है, जबकि 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव होना है। दोनों ही राज्यों में जनता परिवार मोदी जी की भारतीय जनता पार्टीके लिए मुसीबत बनने जा रहा है। जम्मू-कश्मीर से मोदी के रथ को लगाम लगाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह यूपी-बिहार में भी दोहराया जाता दिखाई दे रहा है। उप्र और बिहार में हुए उपचुनावों में भाजपा को इसी जनता परिवार ने जबर्दस्त पटखनी दी थी। यही कारण है कि भाजपा इस विलय का जहां मजाक उड़ा रही है, वहीं उसके माथे पर पसीना साफ देखा जा सकता है।

विलय के बाद जहां आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने हममें से किसी के मन में कोई अहंकार नहीं है। वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि नया दल देश की राजनीति को नई दिशा देगा। तो जनता परिवार विलय पर मुलायम सिंह यादव का कहना है कि, हम अपने स्तर पर आपकी समस्याओं का समाधान करेंगे, चाहे सरकार करे या न करे। यह एका मजबूत रहेगा और जनता की भावनाओं का ख्याल रखेगा। जनता परिवार विलय पर मुलायम सिंह यादव ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि, जनता की मांग थी कि हम एक हो जाएं।

बीजेपी ने जनता परिवार के विलय पर चुटकी लेते हुए कहा है कि एक म्यान में तीन-चार तलवार कैसे रह सकती हैं। तो केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) सुप्रीमो रामविलास पासवान ने जनता परिवार के छह दलों के विलय पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर सौ लंगड़े मिल जाएं, तो भी वे पहलवान नहीं बन सकते हैं।

भाजपा और उसके सहयोगी दलों की यह प्रतिक्रियाएं, दर असल उसकी बेचैनी को ही प्रदर्षित कर रही हैं। और अगर भाजपा परेशान नहीं है तो उसे कोई प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता ही नहीं थी। जनता परिवार के विलय पर भाजपा की परेशानी को समझा जा सकता है। दरअसल मोदी सरकार का राज्यसभा में अल्पमत है, जिसके कारण उसके पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाले और देश की बहुमूल्य संपदा की खुली लूट की छूट देने वाले विधेयक राज्यसभा में अटक जाते हैं। इससे निजात पाने का उसके पास एक ही रास्ता बचता है कि वह बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में सत्ता में आए और राज्यसभा में अपना बहुमत बनाए। तभी भाजपा उन पूंजीपतियों की खुले हाथ से सेवा कर पाएगी, जिन्होंने उसे चुनाव में आर्तिक सहयोग दिया था और मीडिया के सहयोग से मोदी लहर पैदा की थी। यह जनता परिवार दरअसल भाजपा के इस एजेंडे में बाधक बन सकता है। हालांकि जनता परिवार के लोगों का अतीत भी इस संबंध में दागदार रहा है और उन्होंने भी न केवल एनडीए और यूपीए दोनों सरकारों में पूंजीपतियों के एजेंडे कभी खुलकर और कभी लुके-छिपे लागू करवाए हैं बल्कि परोक्ष-अपरोक्ष रूप से भाजपा का समर्थन भी किया है। नीतीश और शरद यादव तो बाकायदा लगभग दो दशक तक भाजपा के सहयोगी रहे हैं, चौटाला और देवेगौड़ा के पुत्र भी भाजपा के सहयोगी रहे हैं। हां लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव कभी भी भाजपा के सहयोगी नहीं रहे। लेकिन फिलहाल जो परिस्थितियां बन रही हैं उनमें शायद इन लोहिया और जयप्रकाश के चेलों को यह आभास हो गया है कि अगर एकजुट न हुए तो हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। यही कारण है कि विलय करने वाले सभी दलों ने अपने अहम को किनारे रखकर यह कदम उठाया है। इस विलय के पीछे की असल मंशा को मीडिया से कहे गए मुलायम सिंह के शब्दों से समझा जा सकता है कि एक नया काम बताइए जो इस नई सरकार ने किया हो। बड़े बड़े वायदे किए, लेकिन कर कुछ नहीं पाए। यह पहली सरकार है जिसने विपक्षी दलों की राय नहीं ली।

हालांकि मुलायम सिंह यादव को इस विलय की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि उत्तर प्रदेश में न तो नीतीश या लालू अथवा चौटाला या देवेगौड़ा का कोई वजूद है न असर लेकिन बिहार के संदर्भ में यह विलय काफी महत्वपूर्ण है। फिर भी अगर मुलायम सिंह इस विलय पर तैयार हुए हैं तो गंभीरता को समझा जा सकता है, जबकि शेष सभी नेताओं ने वो चाहे लालू हों या नीतीश शरद या देवेगौड़ा, सभी ने मुलायम सिंह यादव को अतीत में जबर्दस्त व्यक्तिगत नुकसान पहुंचाए हैं।

जनता परिवार के विलय पर बीजेपी की टिप्पणियों पर पलटवार करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहना कि छह पार्टियों का एक साथ आना बीजेपी के लिए 'विनाशकारी' साबित होगा, लफ्पाजी नहीं है। नीतीश के वक्तव्य से सहमत हुआ जा सकता है कि, बीजेपी को यह पता नहीं है कि वह जिस विलय का मजाक उड़ा रही है, वह उनके लिए विनाशकारी साबित होगा। वास्तव में, उनके नेता मजाक नहीं उड़ा रहे हैं, वे विलय के चलते अपने अवचेतन मस्तिष्क में मौजूद भय का प्रदर्शन कर रहे हैं।

दरअसल जनता परिवार उन पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करता है जिनका उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा में बोलबाला है। आजादी के बाद से पिछड़ी जातियां इन समाजवादी धारा के दलों के साथ एकजुट रही हैं। "अजगर" यानी अहीर-जाट-गूजर-राजपूत का समीकरण गैर-कांग्रेसवाद का आधार स्तंभ रहा है। विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को अपना चेहरा बनाकर इन पिछड़ी जातियों में सेंध लगाने में सफलता पाई थी, लेकिन बहुत जल्द ही पिछड़ी जातियों को भाजपा की असलियत समझ आने लगी है। भाजपा की इस जनता परिवार से असल परेशानी का सबब यही है कि इस परिवार के विलय के बाद अकेले यादव और कुर्मी ही एकजुट हो गए तो अल्पसंख्यक मतों के साथ मिलकर यह भाजपा को यूपी और बिहार दोनों राज्यों में धूल चटा देंगे। यही कारण है कि भाजपा अपनी परेशानी का इजहार इस विलय का मजाक उड़ाकर कर रही है तो दूसरी ओर उसके दो सहारे रह गए हैं एक- असदउद्दीन ओवैसी की एमआईएम और दूसरे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी। भाजपा इन दोनों दलों को प्रमोट करके इस जनता परिवार का नुकसान करके अपनी बढ़त बनाने का जुगत बना रही है। लोकसभा चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल ने भाजपा की अप्रत्यक्ष मदद की थी और महाराष्ट्र के नतीजे बताते हैं कि वहां भी भगवा झंडा फहरवाने में ओवैसी की एमआईएम की महत्वपूर्ण भूमिका रही। हाल ही में महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना ने ओवैसी को आगे करके कांग्रेस के नारायण राणे जैसे मजबूत नेता को हरवा दिया।

भाजपा की परेशानी यह भी है कि उसने जिस तरह से सीबीआई के जरिए ममता बनर्जी को साधा, उसका वह तरीका अब इन जनता परिवार के नेताओं को साधने में कामयाब नहीं हो सकता। यदि ये अलग-अलग होते तो सीबीआई के सहारे सबको नियंत्रित किया जा सकता था, लेकिन एकजुट होने पर अब सीबीआई का इस्तेमाल करना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा। पासवान का कहना ठीक है कि सौ लंगड़े मिल जाएं, तो भी वे पहलवान नहीं बन सकते हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि छह पहलवानों के मिलने पर सीबीआई भी लंगड़ी हो सकती है।

अमलेन्दु उपाध्याय

 

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अमलेन्दु उपाध्याय लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं। हस्तक्षेप.कॉम के संपादक हैं।

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