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Friday, September 12, 2014

निराधार जनता और पवनपुत्र को आधार,युवाजनों को बाक्स के अंधेरे में विकास सूत्र भोग रोजगार আড়াইশো টাকায় ‘কমপ্লিট প্রাইভেসি’। বক্সে ঢুকছেন কলেজের যুবক-যুবতী पलाश विश्वास

निराधार जनता और पवनपुत्र को आधार,युवाजनों को बाक्स के अंधेरे में विकास सूत्र भोग रोजगार

আড়াইশো টাকায় 'কমপ্লিট প্রাইভেসি'। বক্সে ঢুকছেন কলেজের যুবক-যুবতী


पलाश विश्वास


आज सुबह के आनंदबाजार पत्रिका को पढ़ने पर मेरे ज्ञानचक्षु खुल गये कि हमारी पीढ़ी तो अब भी नाबालिग है लेकिन अब शिशुओं का बालिग बनाने के अंधेरे बाक्स का विकाससूत्र इंतजाम कितना चाकचौबंद है।


यह अंधेरा जितना घना होगा,सामने जितनी तेज चकाचौंध होगी और चितनी उन्नत होगी तकनीकी क्रांति कारपोरेटसमय का हुंदुत्व पद्म प्रलय उतना ही तेज होगा।


अच्छे दिनों का मतलब कारपोरेट की खुशी है तो उल्लास बहुआयामी युवाजनों के लिए है।


ब्लू फिलमों पर रोक लगा नहीं सकती सरकार,लेकिन सिनेमाघरों से लेकर दफ्तरों को चकलाघर बनाकर रोजगार सृजन का अंधकार चमत्कार है।


खबर यह कि साठ रुपये की बलकनी टिकट के बदले सिनेमा के एक शो में तीन दफा की शिफ्ट पर प्लाईवूड के कापल बाक्स में ढाई सौ रुपये के टिकट पर एक घंटे से लेकर तीन घंटे तक के फ्री सेक्स का इंतजाम है और टिकट के साथ धारीदार सुगंधित विकाससूत्र भी फ्री है।


हाल में बंगाल के अति संवेदन शील राजनीतिक युद्धक्षेत्र आरामबाग में बंद कलासरूम में नौवीं और दसवीं के छात्र छात्राओं के ग्रुप सेक्स का मामला आया था।


अभिनेत्रियों के देहव्यापार की कथाएं भी अनंत है।


रैव पार्टी फैशन है।


दफ्तरों में लगातार दो ती दिनरात की ड्यूटी में फ्रीसेक्स के इंतजाम की कहानी भी पुरानी हो गयी है।


अब प्रगतिशील ज्योतिष तंत्र मंत्र आच्छादित केसरिया हो रहे बंगाल में जापानी तेल, सौंदर्यकारोबार,वियाग्रा ,प्लेब्वाय,वेब पत्रकारिता के पिनअप समय और साढ़ संस्कृति के पद्मप्रलय का चरमोत्कर्ष लेकिन कालेजों और विद्यालयों से सीधे स्कूल यूनिफार्म में सिनेमाहाल के अंधेरे में दाखिल होकर नाबालिगों के बालिग बनने का यह कारोबार शारदा फर्जीवाड़ा से कम पोंजी नहीं है।


जो वायरल फीवर की तरह बढ़ रहा है।कोचिंग केंद्रों में जो होता है,वह भी छुपा नहीं है।स्त्री को गुलाम बनाये रखकर उसको देहमुक्ति के बहाने बाजार में झोंकने का तंत्र आदिगन्त है।स्कूल से पकडडी जा रही है कन्याें ,जिसे मानवतस्करी कारोबार को भी खतरा पैदा होने लगा है और यौन व्यवसाय के बेरोजगार हो जाने के आसार है।


अखबार ने उन तमाम हालों का और उनमें शिफ्ट,कपड़े बदलने से लेकर कंडोम तक के इंतजाम के बारे में जो खुलासा किया है,उससे कोलकाता के सारे उपनगरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुक्तबाजार का बुलेट विकास सेनसेक्सी हिंदुत्व का खुलासा हो गया है।


शिक्षा के कायाकल्प के संघी एजंडे में यह देहव्यापार भी सम्मिलित है या नहीं,बाबाओं और स्वामियों की अरम्पार महिमा के बावजूद कहना बेहद मुश्किल है।


हम मुल खबरें इस टिप्पणी के साथ सचित्र पेश कर रहे हैं सूची समेत,देखते हैं कि हिंदुत्व की जिस्म में कोई फर्क पड़ता है या नहीं क्योंकि हिंदू राष्ट्र के एजेंडा में जो मनुस्मृति शासन का घोषित लक्ष्य है,वह आम्रपाली नगरवधू उत्सव के साथ साथ चितिरलेखा वृतांत भी प्रासंगिक हैं।


दूसरी ओर नागरिकों की गोपनीयता की धज्जियां उड़ाकर जिस बायोमेट्रिक डिजिटल नागरिकता की संघी परियोजना यूपीए की विकलांगता के बाद नये मलम्मे के प्रधान स्वयंसेवक  की लालकिले की प्राचीर से हुए दहाड़ के मुताबिक  आर्थिक सशक्तीकरण का लांच पैड है,सब्सिडी खत्म करने का बहाना है और खुफिया निगरानी चौबीसो घंटे का इंतजाम भी है,जिसे हम लगातार संप्रभुता,निजता और गोपनीयता की हत्या बताते हुए निराधार नागरिकों के हक हकूक की खुली लूट बता रहे थे,उसका कायाकल्प बजरंगी भी हो रहा है।


युनिक जो आइडेंडिटी है,जिसके लिए आंखों की पुतलियों की तस्वीर के साथ उंगलियों की छाप भी जरुरी है,बजरंगी वली ने अह आधार बनवाकर विशुद्ध मनुस्मृति शासन का संदेश जारी कर दिया है।


हिंदू राष्ट्र के सूत्रधारों और संघ परिवार के लिए वाह क्या आनंद है,परिवेश है क्योंकि पवनपुत्र हनुमान का आधारकार्ड बन गया है।


मर्यादा पुरुषोत्तम राम मंदिर के निर्माण और युद्ध सहयोगी रणनीतिक बेडपार्टनरों अमेरिका और इजरायल के यरूशलम दखल के लिए भी यह कारनाम बेहद खास साबित हो सकता है धार्मिक ध्रूवीकरण के तहत,लेकिन आधार प्रकल्प की प्रामाणिकता को तो बाट लग ही गयी है।

दोनों खबरों को एकसाथ नत्थी करने का मकसद यह बताना है कि धर्म के नाम पर अधर्म का तंत्र मंत्र यंत्र कितना फ्री सेनसेक्स है।संस्कृति  के नाम पर नागरिकता हनन और बेदखली के परिवेश में न्यूनतम सरकार विनियंत्रकित विनियमित बाजार में क्या हो रहा है।


जयपुर: आधार कार्ड भले ही देश की सबसे महत्वाकांक्षी और सबसे महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक हो, लेकिन उस पर काम कर रहे सरकारी कर्मचारी किस तरह आंखें मूंदकर कार्ड बनाते और छापते हैं, इसका जीता-जागता नायाब नमूना राजस्थान के सीकर में सामने आया, जहां रामभक्त भगवान हनुमान का आधार कार्ड जारी कर दिया गया।

हनुमान जी के इस आधार कार्ड पर न सिर्फ पंजीयन क्रमांक - 1018 / 18252 / 01821 - और कार्ड नंबर - 2094 7051 9541 - दर्ज हैं, बल्कि बाकायदा 'बजरंग बली' की तस्वीर भी छपी हुई है, और पवनपुत्र कहलाने वाले हनुमान जी के पिता के नाम वाले कॉलम में 'पवन जी' भी लिखा हुआ है।

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देखें विशेष वीडियो रिपोर्ट : भगवान हनुमान का भी बन गया आधार कार्ड

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भगवान हनुमान के नाम पर जारी किए गए इस कार्ड को लेकर अब सबसे ज़्यादा परेशानी शहर के डाकिये को हो रही है, जो इस बात से परेशान है कि आखिर यह कार्ड कहां पहुंचाया जाए। दरअसल, यह कार्ड तीन दिन पहले सीकर के दातारामगढ़ कस्बे के पोस्ट ऑफिस में पहुंचा, जिसमें वार्ड नंबर छह, दातारामगढ़ का पता लिखा है।

जब यह पता ठीक न होने पर पोस्ट ऑफिस स्टॉफ ने लिफाफे को खोला, तो उसमें हनुमान जी के नाम का आधार कार्ड मिला। वे इस आधार कार्ड पर पंजीयन क्रमांक और कार्ड नंबर के साथ-साथ मोबाइल फोन नंबर भी देखकर हैरान रह गए। जब उस मोबाइल नंबर पर कॉल किया गया, तो पता चला कि वह नंबर विकास नामक एक युवक का है।

विकास के अनुसार, दो साल पहले तक वह आधार कार्ड बनाने वाली कंपनी में ही सुपरवाइजर के पद पर तैनात था, और उसी समय उसने भी आधार कार्ड के लिए एप्लाई किया था, लेकिन किसी कारणवश कार्ड नहीं बन पाया। अब उसने लगभग 10-15 दिन पहले भी अपने दोस्तों के साथ जाकर दोबारा एप्लाई किया था, इस बार भी फिंगर प्रिंट की समस्या के कारण कार्ड नहीं बन पाया। विकास का कहना है, मैं नहीं जानता कि हनुमान जी के नाम से जारी आधार कार्ड पर मेरा फोन नंबर कैसे आया।

http://khabar.ndtv.com/news/zara-hatke/aadhar-card-of-hanuman-ji-662317

বাংলা সিনেমার নিভৃত 'বক্স'

দোহাই, ভুল করবেন না! এই বক্স মানে বক্স অফিস নয়। এটা একান্তই 'কাপল'দের জন্য। কাঠের পার্টিশন দেওয়া। শহরতলির অনেক হলে অন্ধকারে দু'মাথা এক হয়ে যাওয়া বক্সের এখন রমরমা। দেখে এলেন ইন্দ্রনীল রায়

১২ সেপ্টেম্বর, ২০১৪, ০০:০২:০৯


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আড়াইশো টাকায় 'কমপ্লিট প্রাইভেসি'। বক্সে ঢুকছেন কলেজের যুবক-যুবতী

বুধবার। সকাল ১১টা ২০। বারাসত।

লালী সিনেমার সামনের কোল্ড ড্রিঙ্কসের দোকান থেকে তখন একে একে ছেলে-মেয়ে এসে কোল্ড ড্রিঙ্কস আর চিপস কিনে নিজেদের ব্যাগে ঢোকাচ্ছে।

পড়ল বেল। এ বার শুরু হবে শো।  চলছে 'হারকিউলিস'।

ঘড়িতে ১১-২৫। দর্শক বলতে সবাই 'কাপল'। বেশির ভাগই কলেজের। তিন-চার জন মধ্যবয়স্ক ।

কাউন্টারে টিকিট কেনা হল। কাপল টিকিট ২৫০ টাকা।

আমি আর আমার সহকর্মী অরিজিৎ চক্রবর্তী 'অড ম্যান আউট'। লাইনে আমারাই দু'জন পুরুষ। ঢোকার মুখেই আটকানো হল আমাদের।

"এই টিকিট কেন কেটেছেন আপনারা। এটা তো 'বক্স'য়ের। ওটা শুধু ছেলে-মেয়েদের জন্য। আপনারা ওখানে ঢুকতে পারবেন না। ব্যালকনিতে অন্য জায়গায় বসুন।"

জানতাম এ রকম একটা পরিস্থিতির সম্মুখীন হতে পারি, তাই তর্ক না করে মেনে নিলাম।

ঢুকলাম ব্যালকনিতে। সামনের রো আর পাঁচটা সিনেমা হলে যেমন হয় তেমন। উপরের দিকটা দেখলাম পুরোটাই ঘেরা। সামনে দরজা।

উঁকি মেরে দেখলাম, সব ক'টা 'টুইন সিট'। দেখলাম বাইরে যারা কোল্ড ড্রিঙ্কস আর চিপস কিনছিল, সেই 'কাপল'রা বসে আছে। দু'টো টুইন সিটের পরে একটি প্লাইউডের পার্টিশন। বসলে পাশের 'কাপল'দের শুধু মাথাটা দেখা যাবে। বাকিটা 'প্রাইভেসি'।

সিনেমা তখনও শুরু হয়নি। হাল্কা লাইটের আবছায়ায় লাউডস্পিকারে গান চলছে, 'প্রাণ ভরিয়ে, তৃষা হরিয়ে... মোরে আরও আরও আরও...'

নিভল আলো। ঘুটঘুটে অন্ধকার। এমনকী মোবাইলেও ছবি তোলা সম্ভব নয়। পিছন ফিরে দেখলাম, ধীরে ধীরে বক্সে বসা মাথাগুলো এক হয়ে যাচ্ছে।

সিনেমা চলছে সিনেমার মতো, কেউ বোধ হয় দেখছে না একটাও সিন। টুইন সিটের 'কাপল'রা ছাড়া আর কেউ নেই হল-এ। লাইটম্যান বাইরে টুলে বসে ঝিমোচ্ছেন।

২৫০ টাকায় হালকা এসির দাপটে এ যেন শহরতলির প্রাইভেসি।

কমপ্লিট প্রাইভেসি।

বাংলা ছবির 'নিভৃত' বক্স অফিস।

একটা দর্শকও সিনেমার জন্য ঢুকছে না, সবাই বক্সের লোভে

বহু দিন ধরেই শুনেছিলাম শহরতলি আর জেলার কিছু কিছু হলে নাকি এক নতুন কনসেপ্ট শুরু হয়েছে। 'বক্স সিট'।

তবে বিভিন্ন জায়গায় 'বক্স সিট'য়ের বিভিন্ন নাম। কেউ বলে, 'কাপল সিট'। কেউ বা 'টুইন সিট'। কারও আছে 'সোফা সিট উইথ কুশন'।

এমনিতে যেখানে ব্যালকনি টিকিটের দাম ৪০ টাকা সেখানে এই বক্সের টিকিটের দাম কোথাও ১২০ টাকা কোথাও বা ১৮০।

এবং আশ্চর্যের ঘটনা, জেলার হলগুলো আজ দাঁড়িয়ে আছে এই 'বক্স'য়ের সাফল্যের উপর। যে সব হলে বক্স রয়েছে, সেই হলগুলোর বিক্রি মারাত্মক। শোনা যাচ্ছে, এই মুহূর্তে পশ্চিমবঙ্গের প্রায় ১০০র উপর হলে হইহই করে চলছে এই 'বক্স'য়ের দাপট।

কাঠের পার্টিশন দেওয়া সেই সব 'বক্স'

"এমনিতে একটা হল থেকে যদি কালেকশন হত সপ্তাহে ২৫ হাজার টাকা, তা হলে বক্স লাগানোর পর সেখানে বিক্রি হচ্ছে এক লাখ টাকা। একটা দর্শকও সিনেমা দেখার জন্য ঢুকছে না। সবাই বক্সের লোভে," বলছেন টালিগঞ্জের প্রোডাকশন-ডিস্ট্রিবিউশনের সঙ্গে বহু দিন ধরে যুক্ত, শ্যামল দত্ত।

ব্যাপারটা এমন পর্যায়ে পৌঁছেছে যে বক্সের এই ডিম্যান্ড দেখে পশ্চিমবঙ্গের 'সায়লেন্ট সেক্স রেভলিউশন'য়ের একটা বৃহত্তর ছবিও দেখতে পাচ্ছেন অনেকে।

"আমাকে একজন মধ্যবয়স্ক মহিলা একদিন তিন বার ফোন করেছিলেন। নানা ভাবে জানতে চাইছিলেন আমার হলে কোনও বক্স আছে কি না। ডেসপারেশনটা এমনই যে, শেষ পর্যন্ত আমি বাধ্য হয়েই বললাম, 'মা, আমাদের হলে এ সব হয় না।' উনি রেগে ফোনটা নামিয়ে রাখলেন," বলছিলেন উত্তর কলকাতার মিত্রা সিনেমা হলের দীপেন মিত্র।

বক্সে ধর্ষণ

মফস্সলে বক্সের মাহাত্ম্য এতটাই বেড়ে গিয়েছে যে প্রায় সবাই সমস্বরে বলছেন, এই বক্সগুলো 'প্রস্টিটিউশন সেন্টার'য়ে পরিণত হচ্ছে।

ব্যাপারটা যে কতটা গোলমেলে তা চন্দ্রকোনার পূজা সিনেমা হলের দিকে তাকালেই বোঝা যাবে।

এই সিনেমা হলের মালিক রূপকুমার গোস্বামী যাঁকে ইন্ডাস্ট্রি 'ঠাকুরমশাই' বলে চেনেন।

'ঠাকুরমশাই'য়ের হলে এই মাসের শুরুতে একজন যুবক একটি মেয়ের সঙ্গে বক্সের টিকিট কেটে সিনেমা হলে ঢোকে। সেখানে মেয়েটিকে ধর্ষণ করে। পরে হাসপাতালে অতিরিক্ত রক্তক্ষরণে মেয়েটির মৃত্যুও হয়। ঘাটাল হাসপাতালে মৃত্যুশয্যায় মেয়েটি সিনেমা হলে এই 'বক্স' কীর্তি পুলিশ ও প্রশাসনকে জানায়। এবং তার পরিণতি আজ সেই হলটি বন্ধ।

এই প্রসঙ্গে, পশ্চিম মেদিনীপুরের জেলা পুলিশ সুপার ভারতী ঘোষ বলেন, "পূজা নামে চন্দ্রকোনার ওই সিনেমা হলটি বন্ধ করে দেওয়া হয়েছে। গ্রেফতার করা হয়েছে হলের মালিককেও। জেলা জুড়ে যে সমস্ত সিনেমা হলে বক্স ব্যবস্থা রয়েছে, সেখানে আমরা তল্লাশি চালাচ্ছি। অপ্রীতিকর ঘটনার খবর পেলেই আমরা সেই হল বন্ধ করে দেব।"

হল তো নয়, সব সাবসিডাইজ্ড গেস্ট হাউজ

চন্দ্রকোনার পূজা সিনেমার ঘটনা নাড়িয়ে দিয়েছে কলকাতার হল মালিকদেরও।

"চন্দ্রকোনার পূজা সিনেমা হলের এই ঘটনা চোখে আঙুল দিয়ে দেখিয়ে দিচ্ছে কী সাঙ্ঘাতিক পর্যায়ে গিয়েছে এই বক্স কালচার। ইম্পার মিটিংয়ে আমি এর প্রতিবাদ করেছিলাম। কিন্তু সেই সব হল মালিক, যাদের হলে বক্স আছে তারা আমাকে গলার জোরে থামিয়ে দেয়। এগুলো সব 'সাবসিডাইজ্ড গেস্ট হাউজ'য়ে পরিণত হয়েছে। এটা বন্ধ না হলে কিন্তু বাংলা ছবির আরও ক্ষতি হবে।

আর কোনও ফ্যামিলি হলগুলোতে আসবে না। এই সব হলের লাইসেন্স ইমিডিয়েটলি ক্যানসেল করে দেওয়া উচিত," বলছেন কলকাতার নবীনা সিনেমা হলের মালিক নবীন চৌখানি।

এই বিষয়ে কথা হচ্ছিল টালিগঞ্জের আরও কিছু 'ফিল্ম বুকার'য়ের সঙ্গে যাঁরা শহরতলির নানা হলের জন্য ফিল্মের বুকিং করেন।

তাঁরা জানালেন, বক্সের টিকিটের এতটাই রমরমা যে কয়েক জায়গায় এক ঘণ্টার জন্যও টিকিট বিক্রি হচ্ছে।

"ধরুন একটা সিনেমা তিন ঘণ্টার। সেখানে পাবলিকের প্রেশার এতটাই বেশি যে পার শো এক্সিবিটররা তিন বার করে একই বক্স আলাদা আলাদা কাপলের জন্য তিন জোড়া টিকিট বিক্রি করছেন। এতে সেই হল মালিকের লাভ হচ্ছে কারণ তাঁরা খাতায় শুধুমাত্র দু'টো টিকিট বিক্রির কথাই লিখছেন। বাকি চারটে টিকিটের দাম নিজের পকেটে পুরছেন," বলছিলেন এক বুকার।

লালী সিনেমা, বারাসত

অমলা সিনেমা, ব্যারাকপুর

স্কুলের মেয়েরা বাথরুমে ড্রেস চেঞ্জ করে নিচ্ছে

এমনটাও অভিযোগ কয়েকটা জায়গায় হল মালিকরাও  দর্শকদের জন্য 'সেক্স ওয়ার্কার'দের সাপ্লাই করছেন যাতে তার হলে বিক্রি ভাল হয়।

"হল মালিকরা হলের বাইরে দাঁড়িয়ে মেয়েদের ঢুকিয়ে দিচ্ছে। কেউ কেউ কন্ডোম সাপ্লাইয়ের ব্যবস্থা করছেন। বক্সের নামে যাচ্ছেতাই হচ্ছে," বলছিলেন ইন্ডাস্ট্রির এক বড়কর্তা।

পুরো ব্যাপারটার মধ্যেই সামাজিক অবক্ষয় নজরে আসছে সবার। শহরতলির এই হলগুলোতে ক্লাস এইটের ছেলে-মেয়েরাও অবাধে ঢুকছে।

"শুধু ঢুকছে না। স্কুল ইউনিফর্মটা ছেলে-মেয়েরা সিনেমা হলের বাথরুমে  পাল্টে নিচ্ছে। ব্যাপারটা এতটাই সহজ হয়ে গিয়েছে যে, একই ছেলে-মেয়ে দু'-তিন বার করে আসছে। তাদের কেউ আটকাচ্ছেও না," বলছিলেন এক হল মালিক যাঁর হলে 'বক্স' আছে। প্রসঙ্গত, সেই হল মালিককে জানানো হয়নি এই নিয়ে স্টোরি হচ্ছে, শুধু আড্ডা মারার ছলেই তিনি কথাগুলো বলেছিলেন।

এমনকী এই নিয়ে সরব প্রিয়া এন্টারটেনমেন্টের অরিজিৎ দত্ত-ও। তাঁর বক্তব্য প্রশাসনের উচিত এক্ষুনি এই হলগুলোর বিরুদ্ধে পদক্ষেপ নেওয়া।

"অ্যাডমিন্সট্রেশন কী করছে? একটা সময় হলে ব্লু ফিল্ম চলত। কিছু সময় পরে লোকে আর সেটা দেখতেও আসছিল না। এখন শুরু হয়েছে এই 'বক্স কালচার'। আমি হাত জোড় করে বলছি, এই 'বক্স'ওয়ালা সিনেমা হলের বিরুদ্ধে যেন প্রশাসন পদক্ষেপ নেয়। না নিলে বাংলা ইন্ডাস্ট্রি শেষ হয়ে যাবে," সাফ বলছেন অরিজিৎ দত্ত।

এই বিষয়ে প্রশ্ন করা হয়েছিল ইম্পার প্রোডিউসর বিভাগের ডেপুটি চেয়ারম্যান পার্থ সারথি দাঁ-র কাছে।

তিনি নিজেও এই 'বক্স' কালচারের বাড়বাড়ন্ত দেখে স্তম্ভিত। "দাদা, আমাদের লজ্জায় মাথা হেঁট হয়ে যাচ্ছে। আমাদেরই কিছু বন্ধু হল মালিক এটা চালাচ্ছে। বক্স তো আগেও ছিল, কিন্তু সেটা ফ্যামিলির জন্য। এ রকম নোংরামির জন্য নয়," বলছিলেন ৭০ বছরের পুরনো শেওড়াফুলির উদয়ন সিনেমার পার্থবাবু।

মা-বাবারা পাইরেটেড ডিভিডি কিনছে, ছেলে-মেয়েকে হলে আনছে না

কিন্তু যে বলছে ক্ষতি হয়ে যাচ্ছে ইন্ডাস্ট্রির, সেটা কী ভাবে?

এই বক্সের দৌলতে তো টিকিট বিক্রি হচ্ছে। সিনেমা হলগুলো  দারুণ চলছেও। তাদের রক্ষণাবেক্ষণও হচ্ছে। তা হলে?

"হ্যাঁ, হলগুলো চলছে ঠিকই কিন্তু ক্ষতি হচ্ছে লং টার্ম," বলেন হাবড়ার রূপকথা হলের নিখিল পাল।

"প্রথমে ইন্ডাস্ট্রির ক্ষতির কথা বলি। এই হলগুলোতে ফ্যামিলি আসা বন্ধ করে দিয়েছে। বাচ্চারা যখন সিনেমা  যাবে বলে বায়না করছে, বাবা-মা স্বাভাবিক ভাবেই তাদের ডিসকারেজ করছেন। তাঁরা জানেন এই হলগুলোয় কী হয়। তাই তাঁরা বাচ্চাদের জন্য এবং নিজেদের জন্য প্রায় বাধ্য হয়েই নতুন সিনেমার পাইরেটেড ডিভিডি কিনছেন। নেট থেকে ডাউনলোড করছেন। কিন্তু কিছুতেই হলমুখী হচ্ছেন না। এটা বিরাট আর্থিক ক্ষতি। আর তা ছাড়া ক্লাস এইট-নাইনের ছেলে-মেয়েরাও বক্সে ঢুকছে। এর থেকে বড় সামাজিক ক্ষতি আর কী হতে পারে?" প্রশ্ন করছেন নিখিলবাবু।

এই 'বক্স' কালচারের বিরুদ্ধে যথেষ্ট সোচ্চার কপূরচাঁদ পিকচার্সের সুনিত সিংহও। "এই নোংরামিটা এক্ষুনি বন্ধ হওয়া উচিত," সাফ বলছেন তিনি। সব মিলিয়ে যা পরিস্থিতি, 'বক্স সিট'য়ের এই রমরমাই এই মুহূর্তে টালিগঞ্জের 'ওয়ার্স্ট কেপ্ট সিক্রেট'। সবচেয়ে খোলসা থাকা গোপন রহস্য।

এক দিকে, এই 'বক্স'য়ের দৌলতে ধুঁকতে থাকা শহরতলির হলগুলো টাকা পাচ্ছে। অন্য দিকে রয়েছে সামাজিক অবক্ষয়ের দীর্ঘছায়া।

ভবিষ্যতে এই 'টুইন সিট' বা 'বক্স সিট'য়ের পরিণতি কী হবে, সেটা  ভবিষ্যতই বলবে।

কিন্তু দুঃখের ব্যাপার এটাই, আজ টালিগঞ্জের সবচেয়ে বড় 'বক্স অফিস' সাফল্য লুকিয়ে আছে এই 'বক্স সিট'য়েই।

২৫০ টাকা। হাল্কা এসি।

ঘুটঘুটে অন্ধকার।

কমপ্লিট প্রাইভেসি।

দু'টো মাথা।

সরি, একটা মাথা।

'বক্স'য়ের রমরমা যেখানে

• বনগাঁ- বনশ্রী

• ব্যারাকপুর- অমলা

• হাবড়া- কালিকা

• অশোকনগর- নটরাজ

• মছলন্দপুর- জ্যোতি, পূর্বাশা

• রানাঘাট- সুরেন্দ্র, রানাঘাট টকিজ

• মেমারি- আনন্দম

• আরামবাগ- সুধা নীল

• সোদপুর- পদ্মা

• কন্টাই- শ্রীরূপা

• মহিষাদল- গীতা

• বারাসাত- লালী

• কৃষ্ণনগর- সঙ্গীতা

ছবি: ইন্দ্রনীল রায়, কৌশিক সরকার (মোবাইল ক্যামেরায় তোলা)

http://www.anandabazar.com/supplementary/anandaplus/%E0%A6%AC-%E0%A6%B2-%E0%A6%B8-%E0%A6%A8-%E0%A6%AE-%E0%A6%B0-%E0%A6%A8-%E0%A6%AD-%E0%A6%A4-%E0%A6%AC%E0%A6%95-%E0%A6%B8-1.67981


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Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

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http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

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Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

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