सक्रिय हो गया बम निरोधक दस्ता जो सत्ता वर्ग को बेनकाब करने वाले आशीष नंदी के सच पर बहस की इजाजत नहीं देता।
पलाश विश्वास
दिल्ली में आशीष नंदी के वक्तव्य पर जनवादी लेखक संघ की पलटीमार गोताखोरी से इस देश में जाति वर्चस्व, जाति पहचान की धर्मराष्ट्रवादी व्यवस्था की असलियत उजागर होती है। बंगाल में भी नंदी का बयान बाकी देश की तरह आधा अधूरा ही आया। बंगाल में पिछड़ों और अनुसूचितों को सत्ता से बाहर रखकर भ्रष्टाचार मुक्त समाज की रचना के बारे में खुलासा आहिस्ते आहिस्ते हुआ।लेकिन अब लोगों को इस विवाद के बारे में पता चला है।लोग रास्ते पर भी उतरने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे बड़े बांग्ला अखबार में दलित चिंतक कांचा इलैय्या का आलेख छपा कि जो हजारों साल से अस्पृश्यता, बहिस्कार, दमन और उत्पीड़न के शिकार हैं , उन्हें भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेवार ठहराकर उनको सत्ता में भागेदारी से वंचित रखने का तर्क कहां तक जायज है!वरिष्ठ पत्रकार ने उत्तम सेनगुप्ता अंग्रेजी में इस पर लिखा तो बुद्ददेव दासगुप्त का पत्र `एई समय' में छपा।टीवी चैनलों ने इसे छुआ तक नहीं। पर बंगाली पाठकों को सूचना हो गयी है कि आशीष नंदी ने अपनी खास शैली में बंगाल के सच को सारी दुनिया के समाने नंगा कर दिया है। वैसे आम बंगाली जनता तो बिल्कुल वर्टिकैलि शासक वर्ग के वर्चस्ववादी सत्तादखल की राजनीति में दो फाड़ है। उन्हें स्थानीय राजनीति के अलावा देश दुनिया से कोई मतलब नहीं। बंगाली सुशील नागरिक समाज भी बंगाली वर्चस्ववादी राष्ट्रीयता से इतर किसी मुद्दे पर मुखर नहीं होता। कारपोरेट राज के खिलाफ वह भले ही मुखर हो जाये, अबाध पूंजी निवेश और भूमि अधिग्रहण के खिलाफ और यहां तक कि नक्सलवादी माओवादी आंदोलन के दमन के विरुद्ध क्रांतिकारी समर्थन व्यक्त कर दें, लेकिन वह अपने वर्ग हित के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलता। अंतरराष्ट्रीय ख्याति की आदरणीय लेखिका महाश्वेता देवी आजीवन आदिवासियों के हक हकूक की लड़ई सड़क पर उतरकर लड़ती रही हैं। पर याद करने की कोशिश करें कि कब उन्होंने दलितों, शरणार्थियों और पिछड़ों के हक हकूक की आवाज उठायी है? समता और सामाजिक न्याय की मांग उठायी है? बंगाल में आदिवासी महज सात प्रतिशत हैं और उनका पक्ष लेकर अगर समता की लड़ाई की औपचारिकता पूरी हो जाती है तो सत्तावर्ग को अपना लोकतांत्रिक मुखौटा ओढ़ने में सहूलियत ही होती है। पर बहुजन आंदोलन की मातृभूमि बंगाल में दलितों और पिछड़ों के मुद्दे को तुल दिया गया तो यह न केवल बंगाल, बल्कि बाकी देश के लिए भी खतरनाक है।
आशीष नंदी ने जो वक्तव्य दिया है , उससे बंगाली वर्चस्ववाद के किले को सबसे बड़ा धक्का लगा है, बहुजनसमाज को नहीं। क्योंकि गालियां और मार खाना तो उसकी नियति है। लेकिन उसके हक हकूक के मुद्दे को फोकस पर लाने का श्रेय तो समाजशास्त्री आशीष नंदी को ही जाता है। पशुपति महतो और हमारे जैसे इने गिने लोग, दलित वायस के वीटीआर जैसे लोग जो बात कहते थे, उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुष्टि हो गयी है। आज हालत यह है कि हम बंगाल में पिछड़ों, आदिवासियों और दलितों के हक हकूक पर खुलेआम बहस की स्थिति पैदा कर सकते हैं। हम तो मांग कर रहे हैं कि बाकायदा आयोग बैठाकर जनसंख्यावार विकास, सत्ता में भागेदारी और भ्रष्टाचार, इन तीनों बिंदुओं की जांच करायी जाये। बंगाल में और बाकी देश में। आशीष नंदी के बयान से ओबीसी गिनती का औचित्य मजबूत होता है। बाकी भारत में जो हो, बंगाल में सत्तावर्ग को नंदी के इस बयान से दज्यादा परेशानी हो रही है। नंदी ने तो उनकी रणनीति की ऐसी की तैसी कर दी है। दरअसल जलेस की तरह जो लोग नंदी की वाक् स्वतंत्रता की मांग उठा रहे हैं, वे वाक् स्वतंत्रता की मांग नहीं उठा रहे हैं। वाक् स्वतंत्रता का मतलब तो यह है कि पक्ष प्रतिपक्ष दोनों को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी बात कहने का अधिकार हो। लेकिन वाक् स्वतंत्रता तो एकांगी विकलांग है, जिसके तहत सिरफ सत्ता वर्ग को बोलने का हक है, दूसरों को नहीं। बंगाल में ऐसी वाक् स्वतंत्रता प्रबल है, जिसे नंदी के विवादास्पद वक्तव्य ने लगभग विमर्श का आकार दे दिया है। सत्ता वर्ग में बेचैनी का सबब यही है। बंगाल में तो लोग अपनी बेचैनी को भी बाआवाज बुलंद नहीं कर सकते वरना उनका तिलिस्मी किला ढहने लगेगा।
मालूम हो कि पिछले लोकसभा चुनाव के दरम्यान वामपंतियों ने बाकायदा मायावती को भावी प्रधानमंत्री बतौर पेश किया था। यहीं नहीं, बरसों से माकपा पोलित ब्यूरो और पार्टी कांग्रेस में वर्ग के साथ साथ जाति विमर्श भी जारी है। उत्तर भारत में हुए सामजिक बदलाव के मद्देनजर राष्ट्रीय राजनीति में अस्तित्व संकट से जूझ रहे वामपंथियों के लिए जाति विमर्श के जरिये ही मुख्य धारा में लौटने का रास्ता खुलता है। पर बंगाल और केरल में वर्चस्ववादी सत्ता को जारी रखने की गरज से वामपंथियों की यह कवायद मौखिक ही बनकर रह गयी।ब्राह्मणों के अलावा बाकी वर्गों को सत्ता में भागेदारी तो दूर, पोलित ब्यूरो और केंद्रीय कमिटी से लेकर लोकल कमिटी तक में समुचित प्रतिनिधित्व देने से कतराते रहे रंग बिरंगे वामपंथी! केरल में गैर ब्राह्मण अच्युतानंदन और गौरीअम्मा तथा त्रिपुरा में दलित कवि मंत्री अनिल सरकार का हश्र देख लीजिये। पर जाति पहचान आधारित राजनीति अपनाने की कवायद में प्रकाश कारत, वृंदा कारत, सीताराम येचुरी, विमान बोस और अनिल सरकार जैसे कामरेड वर्षों से बिजी हैं। वर्गों और जातियों के प्रतिनिधित्व की बात रही दूर, वाम सत्ता संगठन में स्त्री की क्या हालत है? सुभाषिणी अली का क्या हाल है? वृंदा कारत छोड़कर कोई एक स्त्री नाम बताइये, जिसे वाम स्वीकृति हासिल हो?
दिल्ली में तो फिर भी जनवादी लेखक संगठन ने पलटमार बयानबाजी की, लेकिन बंगाल में तमाम वामपंथी होंठ इस मुद्दे पर सिले हुए हैं।वे तो वाक् स्वतंत्रता की बात भी नहीं कर रहे। मीडिया विशेषज्ञ जगदीश्वर चतुर्वेदी कोलकाता से हिंदी में लगातार तोप दागे चले जा रहे हैं, पर बंगाल के बाकी आयुध तो चले ही नहीं। आशीष नंदी पर चर्चा का मतलब सलमान रुश्दी और तसलिमा पर चर्चा नहीं है, उसके मायने बहुत संवेदनशील है। जो विमर्श भारत विभाजन से बंगाल में सुषुप्तावस्था में है, उस आग्नेयगिरि को पलीता लगाने की भूल प्रवासी आशीष नंदी भले ही कर डालें , बाकी बंगाली भद्रजन क्यों करेंगे।?
विश्व विख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कोलकाता पुस्तक मेला साहित्य सम्मेलन में विवादास्पद मुद्दों को मुसलमानों के असली मुद्दों से भटकाव बतौर चिन्हित किया। उन्होंने रुश्दी को बंगाल आने से रोकने के बंगाल सरकार के कदम की निंदा क्यों नहीं की, बंगाली भद्रजन इस पर नाराज हैं। आपको बता दें कि जो बात आशीष नंदी भ्रष्टाचार के संदर्भ में कहकर फंस गये हैं, यही बात सत्ता में भागेदारी के सवाल पर हमेशा अमर्त्य सेन कहते रहे हैं। बार-बार उन्होंने कहा है कि बंगाल के मुकाबले बांग्लादेश में सत्ता में वंचितों का बेहतर प्रतिनिधित्व है और बांग्लादेशी स्त्री का सशक्तीकरण ज्यादा हुआ है। उन्हींके `प्रतीची' संगठन ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिनिधित्व की असलियत बार बार उजागर की है।पर वे अर्थ शास्त्र की भाषा में ही बोलते रहे हैं, जिससे भद्रजनों को कोई खास दिक्कत नहीं है क्योंकि अर्थ शास्त्र पर तो उच्चवर्ग का स्वाभाविक वर्चस्व है ही और वंचित तबके के लोग अर्थशास्त्र नहीं समझते। लेकिन आशीष नंदी ने तो बाकायदा खुल्लमखुल्ला राजनीतिक भाषा का इस्तेमाल कर दिया। वे भी समाजशास्त्रीय मुहावरों में यही बात कह देते तो सत्ता वर्ग के सामने नंगा हो जाने का यह खतरा उत्पन्न नहीं होता। अब कम से कम, बंगाल से बाहर बाकी देश में लोग सत्ता में भागेदारी का मतलब समझते हैं।असली खतरा तो यह है कि ब्राह्मणवाद के सबसे बड़े गढ़ में प्रगतिवाद का मुलम्मा उतर रहा है और यहां भी सत्ता में भागेदारी की बहस शुरु हो चुकी है।
मसलन बांग्ला दैनिक `एई समय़' में संपादक के नाम बुद्धदेव दासगुप्त का एक विचारोत्तेजक पत्र आज प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने पिछड़ों और अनुसूचितों को भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेवार ठहरानेवाली आशीष नंदी की बहस की शैली की आलोचना तो कर दी, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि मीडिया ने आधा अधूरा वक्तव्य प्रकाशित प्रसारित किया, जिससे गलत संदेश गया होगा। इसके बाद सीधे वे बंगाल में वामराज के अवसान के बाद हुए परिवर्तन को सत्ता में भागेदारी की शुरुआत बताने से चूकते नहीं है। इसके अलावा उन्होंने यह दावा भी किया कि पंचायती राज के जरिये गांव गांव तक सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ है जो सत्ता में भागेदारी को ही साबित करती है। उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ आशीष नंदी के इस तर्क का खंडन करने की कोशिश की है कि बंगाल में पिछले सौ साल से पिछड़ों और अनुसूचितों को सत्ता में भागेदारी नहीं मिली।
जाहिर है, बंगाल में अब बम निरोधक दस्ता दिनोंदिन सक्रिय हो रहा है, जो मनुस्मृति व्यवस्था को कायम रखने के लिए बेहद जरुरी है।संयोग है कि आज ही रामचंद्र गुहा का बांग्ला आलेख प्रकाशित हुआ कि कि अगले दस साल में लोग नरेंद्र मोदी का नाम भूल जायेंगे। इसस आलेख में विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार गुहा ने दावा किया कि भारत का भविष्य न नरेंद्र मोदी है और न ही राहुल गांधी। भारत का भविष्य धर्मनिरपेक्षता का है। उग्रतम हिंदुराष्ट्रवाद के सामाजिक यथार्थ के प्रसंग में उनका यह बयान कारपोरेट मनुस्मृति राज के लिए बड़ा ही आकर्षक छाता है।जो लोग बांग्ला पढ़ समझ सकते हैं, उन्हें मेरे बांग्ला लेख के साथ ये दोनों आलेख मिल जायेंगे।
इसी संदर्भ में निवेदन है कि परिवर्तन में सत्ता में भागेदारी की जो बात की गयी है, उसका सच वाम शासन से कुछ अलग नहीं है। चुनाव से पहले ममतादीदी ने अपने को मतुआ घोषित किया। जिससे दलितों का वोट वामपक्ष से स्थांतांरित होकर उनके हक में गया। उन्होंने मतुआमाता वीणापानी देवी के छोटे बेटे को जूनियर मंत्री बनाया। मंत्री बनाये गये पूर्व सीबीआई अफसर उपेन विश्वास भी। किसी भी दलित को उन्होंने केबिनेट दर्जा नहीं दिया। गैरजरुरी मंत्रालय बांट कर इस तरह उन्होंने सत्ता में हिस्सेदारी दी। सत्ता में भागेदारी का नतीजा यह हुआ कि हरिचांद गुरुचांद ठाकुर के परिवार में ही दो फाड़ हो गया। सार्वजनिक मंच पर बड़ोमां के दोनों बेटे मतुआ संघाधिपति कपिल कृष्ण ठाकुर और उनके छोटे भाई ममता मंत्रिमंडल में शरणार्थी मामलों के मंत्री मंजुल कृष्ण ठाकुर लड़ने लगे। दोनों के अनुयायी आमने सामने हैं। जो मतुआ आंदोलन शरणार्थी आंदोलन का पर्याय बना हुआ था, वहां शरणार्थी समस्या पर चर्चा तक नहीं होती। मंत्री बनने से पहले दलित पिछड़ों के मुद्दों को लेकर बेहद सक्रिय थे उपेन विश्वास। वे वर्षों से मरीचझांपी नरसंहार का न्याय मांगते रहे हैं। मंत्री बनने के बाद बाकी तमाम कांडों की जांच के बावजूद मरीचझांपी की सुनवाई नहीं होने पर वे खामोश हैं।किसी सामान्य सीट से किसी अनसूचित या पिछड़े को जिताने का रिकार्ड वामपंथियों का नहीं है तो दीदी का भी नहीं है। आरक्षित सीटों पर दलितों पिछड़ों के चुने जाने का सिलसिला तो संविधान लागू होने के बाद से जारी है। नीति निर्धारण और शीर्ष पदों पर अनुसूचित और पिछड़े कहां हैं, दासगुप्त साहब?
खासबात तो यह है कि मतुआ दीदी की अगुवाई में परिवर्तन ब्रिगेड भी नंदी प्रकरण में वामपंथियों की तरह खामोशी अख्तियार किये हुए हैं।
जाहिर है कि आशीष नंदी बंगाल की प्रशंशा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पिछले सौ वर्षो में बैकवर्ड क्लास का कोई भी सत्ता के नजदीक कहीं भी नहीं पहुच पाया, इस लिए वहां का राजकाज पूरीतरह साफ-सुथरा है । होना तो यह चाहिेए था कि बंगाल में नंदी जैसे सम्मानित विद्वतजन के वक्तव्य के आलोक में वामपंथी और परिवर्तनपंथी, दोनों तनिक आत्मालोचना करते और स्थिति में सुधार के लिए पहल करते।
नंदी ने पश्चिम बंगाल की प्रशंशा करते-करते, बैकवर्ड क्लास (SC/ST/OBC) को सत्ता में प्रतिनिधित्व न देने के लिए पश्चिम बंगाल को एक्सपोज कर दिया है। ऐसा लगता है कि नंदी यह कह रहे हैं कि अभी भी देश कि आज़ादी के 65 साल बाद भी पश्चिम बंगाल में आज भी सवर्ण राज कायम है।...कितना खतरनाक है समाज का आर्थिक आधार पर यह ध्रुवीकरण!अब जो हिंदुत्व राष्ट्रवाद के समाजवास्तव को हाशिये पर डालकर रामचंद्र गुहा भी कारोपरेट मुक्तबाजार की धर्मनिरपेक्षता की बात कर रहे हैं , बेहद खतरनाक है। यह बहस बंगाल में यथा स्थितिवाद तोड़ने के लिए जितनी जरुरी है , उससे कहीं ज्याद जरुरी है बाकी देश को बंगाल बनने से रोकने के लिए।
आशीष नंदी के बयान से हमारे कुछ भ्रमित लोगों को एक बात स्पष्ट हो जानी चाहिए कि हमारे मूलनिवासी बहुजन समाज के भ्रमित लोग भले अपने को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जाति के रूप में अलग अलग सोचते हैं और भले अन्य पिछड़ी जाति के लोग अपने को जाति की श्रेणी में अनुसूचित जाति से ऊपर, यहां तक कि सवर्णों के बराबर समझ कर संतुष्ट हो लेते हैं, पर सत्ता पक्ष हमें अर्थात बैकवर्ड क्लास (OBC/SC/ST) को एक ही डंडे से हांकना जानता है। चाहे वो शूद्र/अति शूद्र के रूप में जाति का डंडा हो। या फिर नौकरियों में प्रतिनिधित्व न देने के लिए योग्यता/कार्य क्षमता के बहाने का डंडा हो या फिर भ्रष्ट कह कर बदनाम करने का। अनुसूचित जाति/जनजाति ब्राह्मणवादी व्यवस्था का दुःख भोगी है, वही अन्य पिछड़ी जाति (OBC ) सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) है। कांशी राम कहते थे की संगठन हमेशा दुःख भोगी(Sufferer) और सह-दुःख-भोगी(Co-Sufferer) का बन सकता है. शोषित और शोषक का संगठन कभी नहीं बन सकता । इतिहास हमें यही बताता है कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जन जाति, अन्य पिछड़े वर्ग और इनसे धर्म परिवर्तित अल्पसंख्यक आपस में ऐतिहासिक रूप से भाई-भाई हैं। सभी इस देश के मूलनिवासी हैं और संख्या के हिसाब से बहुजन है। अर्थात हम मूलनिवासी बहुजन हैं और यही हमारी पहचान है।
मात्र 2 % आबादी के ब्राहमण लोग एवं तथाकथित उची जाति के लोग कैसे बंगाल में आजादी के बाद हुकूमत कर रहे है, कि अभी तक सभी मुख्य मंत्री और कबिनेट मंत्री इसी वर्ग से होते हैं। जबकि यहाँ OBC/SC/ST की जनसँख्या 68% है और मुस्लिम की जनसँख्या 25% है। यह वर्तमान की ममता दीदी की सरकार में भी चल रहा है।
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হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!
मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड
Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!
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जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।
#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি
अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास
ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?
Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
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By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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