Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Monday, February 25, 2013

पेंशन बिल यानी कामगारों की तबाही पीयूष पंत

पेंशन बिल यानी कामगारों की तबाही

पीयूष पंत

पेंशन बिल


ऐसा लगता है कि मनमोहन सिंह सरकार या तो दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ना नहीं चाहती या फिर उसने सचाई से जान-बूझ कर अपनी आंखें मूंद रखी हैं. हम यह भी कह सकते हैं कि उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को लूटने पर आमादा बहुराष्ट्रीय निगमों के एजेंट के रूप में अपनी भूमिका को सीमित कर लिया है. ऐसा नहीं होता तो फिर आखिर क्यों भारत सरकार लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था के दरवाज़े इतने निर्मम तरीके से विदेशी पूंजी के लिए खोलती चली जाती जबकि यह साबित हो चुका है कि आवारा पूंजी ने किस तरह अमरीका और यूरोप की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह कर दिया है. 

नीतिगत गतिरोध के खिलाफ अपनी बढ़ती आलोचना से खुद को बचाने के लिए और यह साबित करने के लिए कि इसने आर्थिक सुधारों की राह अब तक नहीं छोड़ी है, मनमोहन सिंह सरकार अब इन सुधारों को आगे ले जाने की राह पर बढ़ रही है. यह जानते हुए भी कि गिरती आर्थिक वृद्धि और बढ़ते वित्तीय घाटे को पाटने का ये सुधार कोई रामबाण नहीं हैं. 

यह बात सर्वविदित है कि ऐसे ही सुधारों ने पिछली सदी में पहले लातिन अमरीका और बाद में पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था में कैसी तबाही मचाई थी. कहना न होगा कि नब्बे के दशक में कैसे कई लातिन अमरीकी देशों ने चिली की नकल करते हुए अपने यहां की पेंशन प्रणाली में सुधार लागू किए थे, जिससे वहां पूर्ण या आंशिक तौर पर अनुदानित अनिवार्य निजी पेंशन खातों की प्रणाली आ गई थी. 

यह बात अलग है कि वहां पेंशन का निजीकरण इसके समर्थकों और प्रणेताओं के वादों और दावों पर खरा नहीं उतरा है. माना गया था कि इससे इसमें शामिल होने वाले मजदूरों का दायरा और उन्हें मिलने वाले लाभों में इजाफा होगा और कुछ पीढ़ियों की बचत के बाद बाज़ार को प्रोत्साहन मिल सकेगा. यह दोनों ही मोर्चों पर विफल रहा. यहां तक कि 90 के दशक में निजीकरण की राह चुनने के हामी देशों के वैचारिक और वित्तीय समर्थक विश्व बैंक ने भी अपनी समझ में संशोधन करते हुए इस नाकाम विकल्प को तिलांजलि देने का संकेत दे डाला.

कामगारों की बचत और पेंशन को वित्तीय बाज़ारों के हाथ में देने के बजाय मनमोहन सिंह सरकार को यह तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि जिन देशों ने अपने यहां आर्थिक सुधार लागू किए थे, वे नए सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में इन सुधारों को सुधारने के काम में लग गए हैं. 

अकसर पेंशन सुधार के मामले में इसके प्रणेता चिली को कामयाब मॉडल के रूप में उद्धृत करते हैं जबकि चिली ने भी हाल में 65 साल से नीचे के निम्न आय वर्ग के नागरिकों के लिए एक प्राथमिक पेंशन की व्यवस्था कर दी हैं जो कि निजीकृत तंत्र में कभी रिटायर नहीं होते. यह नाकामी इकट्ठा किए गए अपर्याप्त फंड के कारण थी या फिर सिर्फ इसलिए कि लोगों को पेंशन कोष में योगदान नहीं दिया था क्योंकि कई लोगों को अनौपचारिक अर्थतंत्र में कम आय पर जीने की मजबूरी थी. 

इसी तरह अर्जेंटीना में राष्ट्रपति क्रिस्टीना किर्शनर ने 30 अरब डॉलर के निजी पेंशन फंड को राष्ट्रीयकृत करने की सरकार की मंशा का एलान किया है ताकि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के कारण गिरती शेयरों और बॉन्ड की कीमतों से अवकाश प्राप्त नागरिकों पर कोई प्रभाव न पड़ने पाए. 

वास्तव में लातिन अमरीका का अनुभव यह रहा है कि उसने राज्य संचालित एक प्रणाली के ऊपर निजी निवेश के 'लाभों' को तरजीह दी और इस तरह जो नई सामाजिक सुरक्षा प्रणाली बनी, वह पूरी तरह विफल हो गई. 

अंतरराष्ट्रीय संगठन सोशल वॉच कहता है, ''कामगारों को प्रतिष्ठाजनक पेंशन की गारंटी देना तो दूर, निजीकरण ने एक ऐसी व्यवस्था बना दी है जिसमें बचतकर्ता का अपनी बचत पर कोई नियंत्रण नहीं होता या फिर बहुत कम रहता है. इस तरह नई सचाई यह है कि आर्थिक सुधारों को लागू करने के वक्त किये गये ज्यादा कामगारों के शामिल होने और ज्यादा पारदर्शिता व अवकाश प्राप्ति के बाद होने वाली ज्यादा आय के दावे नाकाम हो चुके हैं.'' 

बोलीविया का उदाहरण लें. सोशल वॉच द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है- ''बोलीविया में पेंशन सुधार को एक सामाजिक अनिवार्यता के तौर पर पेश किया गया था. कई दशक से चली आ रही पारंपरिक पेंशन प्रणाली की निष्क्रियता के कारण इसे सही ठहराने की एक दलील भी मौजूद थी- हालांकि इसकी मंशा निजी निवेश को मुनाफा पहुंचाने का एक स्रोत निमित करना था.'' 

आर्थिक सुधारों के प्रमुख प्रणेताओं में एक पेना रूयदा (1996) के मुताबिक ''पे ऐज़ यू गो'' (पेजी) नामक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को हटाने के लिए उसकी दिवालिया हालत को दर्शाते कुछ आंकड़े दिए गए, जो निम्न थेः

• सक्रिय कामगारों और पेंशनधारकों का अनुपात 3:1 का है जो कि इस प्रणाली को बनाए रखने के लिए अपर्याप्त है और आदर्श अनुपात से कहीं कम है (10ः1).
• प्रणाली की कवरेज बेहद सीमित थी जिसमें आर्थिक रूप से सक्रिय 26 करोड़ की आबादी के बीच सिर्फ 314,47 नागरिक योगदान दे रहे थे. 
• यह प्रणाली मुद्रास्फीति के प्रति अरक्षित थी और इस पर रोजगार व पलायन में होने वाले उतार-चढ़ावों का भी असर पड़ता था.

इसीलिए एक नई प्रणाली लागू की गई, जो राज्य को पुरानी दिवालिया व्यवस्था के वित्तीय बोझ को कम करने और अंततः खत्म करने में समर्थ बनाएगी और सक्रिय वित्तीय जीवन से सेवानिवृत्ति के बाद नागरिकों को एक प्रतिष्ठित जीवन जीने के लिए पर्याप्त लाभ मुहैया कराएगी. 

इस नई प्रणाली में जो लक्षण मौजूद रहने की मंशा जाहिर की गई थी, वे थे- व्यापक पहुंच जिसमें पहले से बाहर रही आबादी और तबके भी आ जाएंगे खासकर वे कामगार जो अवैतनिक हों; स्ववित्तपोषण की क्षमता; निवेश के प्रबंधन में पारदर्शिता; शेयर बाजार को मजबूत बनाने की क्षमता; आर्थिक संकट में के दौर में इसकी निरंतरता का बने रहना; पेंशन के मूल्य को टिकाए रखने के लिए एक प्रणाली निर्मित करने की क्षमता; रिटारमेंट की उम्र के बाद बोलिविया के लोगों की आय को बढ़ाने की क्षमता.

बोलीविया में पेंशन सुधार लागू होने के पांच साल से ज्यादा समय के बाद पाया गया कि यदि दोनों सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की तुलना आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी के अनुपात में उनके तुलनात्मक आकार को संज्ञान में लेते हुए की जाए, तो सुधार लागू होने के बाद से परिस्थिति में बहुत फर्क नहीं आया है. 

वहां के राष्ट्रीय रोजगार सर्वेक्षण 1996 के मुताबिक आर्थिक रूप से सक्रिय लोगों की आबादी 2001 की जनगणना और 2002 के अनुमान के मुकाबले कहीं ज्यादा थी. इससे भी बुरी बात यह है कि अगर हम सुधारों के लिए जिम्मेदार सरकारी अफसरों के आंकड़े को देखें (1996 में 26 लाख आर्थिक रूप से सक्रिय आबादी) तो पाते हैं कि पिछली प्रणाली की कवरेज नई प्रणाली से ज्यादा रही, जिसमें फंड में योगदान देने वाले कामगार पूरी आबादी का 12 फीसदी थे. इस सुधार को तैयार करने वालों और लागू करने वालों के लिए ज्यादा चिंता की बात यह रही कि कामगारों की संबद्धता से जुड़े अलग-अलग आंकड़े यह भी नहीं दिखा पाते कि नई प्रणाली अवैतनिक कामगारों या स्वतंत्र कामगारों की श्रेणी तक अपनी पहुंच बना पाई, जैसा कि शुरू में दावा किया गया था. पेंशन फंड एडमिनिस्ट्रेटर्स की सूचना के मुताबिक जून 2003 तक पेंशन कोष से संबद्ध स्वतंत्र कामगारों की संख्या कुल संबद्ध लोगों की सिर्फ 4.3 फीसदी थी.

याद रखा जाना चाहिए कि बोलीविया में सामाजिक सुरक्षा सुधारों के प्रवर्तकों ने प्रतिष्ठित पेंशन का वादा किया था, जो पिछली पेजी प्रणाली के मुकाबले बेहतर सामाजिक नतीजे देने में सक्षम होगी. सुधार लागू करने वालों ने इसी दलील को जनता के सामने प्रमुखता से रखा था. हालांकि नतीजों का आकलन दिखाता है कि हालात बिगड़े हैं और इस पूर्वस्थापना को दोबारा पुष्ट करता है कि इस सुधार के असली उद्देश्यों का कामगार आबादी की बेहतर जीवन स्थितियां निर्मित करने से मामूली संबंध भी नहीं था.

अव्वल तो पेंशन व्यवस्था में बदलाव करने से लाभार्थियों की संख्या नहीं सुधरी है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि नई प्रणाली ने सामाजिक सुरक्षा लाभों से, बाहर पड़े सामाजिक समूहों को समाविष्ट करने का काम किया है. दूसरे, बढ़ी हुइ आय का दावा भी विफल साबित हुआ है. 

नई योजना को इस तरीके से बनाया गया था कि पेंशन का सीधा संबंध लंबी अवधि तक सेवा में रहने से हो गया और इसके अलावा वह सभी कामगारों के लिए एक प्रतिष्ठाजनक पेंशन की भी गारंटी नहीं दे पायी. पेंशन कानून में एक विशिष्ट श्रेणी का प्रावधान है- न्यूनतम अहर्ता. यह 65 साल के हो चुके उस कामगार पर लागू होता है, जिसने पेंशन में पर्याप्त योगदान नहीं दिया हो. यह राशि न्यूनतम राष्ट्रीय वेतन का 70 फीसदी होती है. उसे तब तक इस दर के बराबर सालाना पेंशन या आय मिलती रहेगी ''जब तक कि संचित कोष पूरी तरह से समाप्त नहीं हो जाता'' और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह पेंशन रिटारमेंट के बाद बाकी पूरी जिंदगी को कवर करती है या नहीं. 

संक्षेप में कहें तो कुछ ऐसे कामगार होंगे जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद अनिवार्यतः पूरी जिंदगी पेंशन नहीं मिलेगी और जो मिलेगी भी वह बहुत कम राशि होगी क्योंकि मौजूदा न्यूनतम वेतन सिर्फ 58 डॉलर महीने की है. 

बोलीविया का उदाहरण साफ करता है कि दोनों सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को निर्देशित करने वाले परिप्रेक्ष्य अलहदा हैं. पिछली पेजी प्रणाली किसी कामगार के सक्रिय आर्थिक जीवन के बाद पूरी जिंदगी उसे मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा को राज्य की ऐसी बाध्यता बनाता था जिससे राज्य बच नहीं सकता था, जबकि नयी प्रणाली राज्य को इस बाध्यता से मुक्त करती है और आर्थिक रूप से निष्क्रिय आबादी की सामाजिक सुरक्षा को बाजार की ''सुघड़ता'' पर छोड़ देती है. 

अब असली सवाल यह उठता है कि आखिर भारत सरकार पेंशन क्षेत्र को निजी हाथों में सौंप देने को इतनी बेताब क्यों है? याद कीजिए कि वित्त मंत्री के तौर पर जब प्रणब मुखर्जी वॉशिंगटन गए थे तो उन्होंने अमरीकी राजकोष सचिव को आश्वस्त किया था कि भारत सरकार पेंशन के निजीकरण, बैंकिंग क्षेत्र सुधार और बीमा क्षेत्र में ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लागू करने में जल्दी करेगी. यह बात अलग है कि सरकार लगातार यह बहाना बनाती रहती है कि भारत के राजकोष में इतना पैसा नहीं है कि वह विस्तृत होते पेंशन क्षेत्र को अनुदानित करता रह सके.

यह बात सही है कि सन् 2000 की वृद्धावस्था सामाजिक और आय सुरक्षा (ओएसिस) रिपोर्ट के मुताबिक सरकार कहती है कि भारत में बुजुर्गों की संख्या कुल आबादी के मुकाबले तेजी से बढ़ रही है (1.8 फीसदी के मुकाले 3.8 फीसदी सालाना), लिहाजा 2030 तक साठ पार के लोगों की संख्या मौजूदा आठ करोड़ से बढ़कर 20 करोड़ हो जाएगी. इससे हर परिवार में निर्भर लोगों की संख्या भी बढ़ जाएगी. 

मौजूदा पेंशन प्रणाली में इस बदलाव से निपटने का कोई प्रावधान नहीं है. इसके बावजूद असली उद्देश्य तो पेंशन क्षेत्र का निजीकरण करना ही है. पेंशन कोष नियमन और विकास प्राधिकार(पीएफआरडीए) विधेयक के माध्यम से पूंजीपति दरअसल भारत की विशाल कामगार आबादी के बचाए हुए पैसे का इस्तेमाल करना चाहते हैं, जो कि अब तक राज्य के नियंत्रण में था. 

कहा जा रहा है कि मौजूदा विधेयक पेंशन फंड की कवरेज को बढ़ाने और एकाधिकारी पूंजीवादी उद्यमों के लिए वित्तपोषण के स्रोत में उसे बदलने के लिए है. यह बिल पूंजीपतियों को पैसे का एक सस्ता स्रोत मुहैया कराने के लिए है और यह काम रिटायर हो जाने के बाद कामगार तबके का सुनिश्चित की गई रकम और उसकी सुरक्षा की कीमत पर किया जा रहा है. 

इस नई प्रणाली की सराहना में कहा जा रहा है कि इससे करोड़ों लोग इसके दायरे में आ जाएंगे जो फिलहाल पेंशन योजना का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन असली मंशा तो पूंजीवादी नियोक्ताओं को कर्मचारियों के फंड में आर्थिक योगदान देने की बाध्यता से उन्हें मुक्त करना है. यह नियमित और अनुबंध पर रखे गए दोनों तरह के कर्मचारियों पर लागू होगा. इसका मतलब यह हुआ कि नई योजना के तहत कर्मचारी को जो कुछ सेवानिवृत्ति के बाद मिलेगा, वह सब उसका अपना योगदान होगा. किसी अन्य स्रोत से, राज्य या केंद्र सरकार से भी कोई योगदान नहीं किया जाएगा. 

निश्चित है कि शुरुआत से ही नई योजना का बरबाद होना लिखा है क्योंकि ऐसे में कर्मचारी अपनी बचत को लंबी अवधि वाले फिक्स डिपॉजिट या सोना या किसी अन्य माध्यम में निवेशित कर देगा, बजाय किसी ऐसी योजना में डालने के जिसका वित्तपोषण भी उसी के जिम्मे हो और जो उसकी कुल बचत को शेयर बाजार में जुए के हवाले छोड़ देती हो.

यदि हम प्रस्तावित बिल के प्रावधानों पर एक निगाह डालें तो पेंशन विधेयक का कर्मचारी विरोधी चेहरा बिल्कुल साफ हो जाता है. विधेयक के अहम बिंदु इस प्रकार हैं-

1. किसी कर्मचारी की पेंशन उसके द्वारा सक्रिय आर्थिक जीवन में किए गए वित्तीय योगदान और सेवानिवृत्ति के वक्त कुल योगदान के मूल्य पर निर्भर करेगी जो कि शेयर बाजार के उतार-चढ़ावों के अधीन होगा. दूसरे शब्दों में, कर्मचारी की बचत सुरक्षित नहीं होगी और रिटायरमेंट के वक्त मिलने वाली राशि का कोई निश्चित अनुपात या पहले से तय मात्रा नहीं होगी.

2. सरकार अब कर्मचारियों की बचत की सुरक्षा का काम नहीं करेगी. इसके बजाय यह काम वह वित्तीय पूंजी से संचालित विभन्न संस्थानों को सौंप देगी जिनमें सरकारी, निजी, भारतीय और विदेशी सब होंगे. 

3. कर्मचारी के फंड में योगदान का एक हिस्सा शेयर बाजार में लगाया जाएगा और हर कर्मचारी को उसकी बचत के आवंटन के घटकों को चुनने की छूट होगी कि उसकी बचत को वह सरकारी निधि, निजी कंपनियों के शेयरों या अन्य वित्तीय औज़ारों में किसमें निवेश किया जाए. 

इस तरह नई पेंशन योजना को चुनने वाले कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद निम्न जोखिमों का सामना करना पड़ेगा-
1. योजना के मुताबिक कर्मचारी को अपना निवेश पोर्टफोलियो (यानी पैसा कहां लगाया जाए) चुनने की छूट होगी. चूंकि सरकारी कर्मचारी आम तौर से वित्त और निवेश संबंधी मामलों को लेकर उतने जागरूक नहीं होते, इसलिए गलत निर्णय लेने का खतरा बना रहेगा जिसका नतीजा यह हो सकता है कि उसकी लगाई रकम रिटायरमेंट के वक्त पेंशन के तौर पर उसे ना मिल पाए.

2. यदि शेयर बाजार में भारी गिरावट आई, तो वह एन्युटी खरीदने के लायक नहीं रह जाएगा और अपना पहले से लगाया गया सारा पैसा वह गंवा देगा.

3. चूंकि एन्युटी (बीमा संबंधी सौदा) की लागत तय नहीं की जा सकती, इसलिए उसका वास्तविक मूल्य कम हो सकता है जो कि मुद्रास्फीति में होने वाले बदलावों पर निर्भर करेगा. 

4. एक कर्मचारी को निवेश प्रबंधकों के शुल्क का भुगतान भी मजबूरन करना पड़ेगा, जिनकी प्राथमिकता हमेशा शेयर बाजार में पेंशन फंड के लगे पैसे से मुनाफा बनाने की रहती है. 

इन प्रावधानों से पर्याप्त स्पष्ट है कि सभी कामगारों तक पेंशन योजना का दायरा बढ़ाने के नाम पर सरकार किसी तरह कर्मचारियों के पेंशन के अधिकार को पूंजीपतियों के फायदे के लिए खत्म करने की कवायद कर रही है. पेंशन का अधिकार कोई स्वयं सिद्ध अधिकार नहीं बल्कि इसे सुप्रीम कोर्ट समेत कई और फैसलों के माध्यम से वैधता प्राप्त है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था, ''पेंशन किसी की सदिच्छा या सरकार की मर्जी से दी जाने वाली बख्शीश नहीं है... पेंशन एक सरकारी कर्मचारी का अमूल्य अधिकार है.'' चौंथे वेतन आयोग की रिपोर्ट भी साफ तौर पर कहती है, ''..पेंशन कोई धर्मार्थ राशि नहीं है या मुआवजा नहीं है, या फिर विशुद्ध सामाजिक कल्याण का कोई उपाय नहीं है, बल्कि यह कायदे से एक 'अधिकार' है जिसे लागू करने के लिए कानून मौजूद हैं.''

22.02.2013, 13.50 (GMT+05:30) पर प्रकाशित

http://raviwar.com/news/838_pension-bill-for-whom-piyush-pant.shtml

No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk