एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
माहनगर कोलकाता के तिलजला तपसिया इलाके में एक के बाद एक बच्चे लापता हो रहे हैं और पुलिस उन्हें कोज पाने में नाकाम है।पिछले डेढ़ महीने में तपसिया, तिलजला और कड़ेया इलाकों में पंद्रह बच्चों के लापता होने की खबर है। इलाके में बच्चे असुरक्षित है। अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने में बी घबरा रहे हैं। पुलिस निष्क्रियता का नतीजा यह निकला कि इस इलाके में बच्चा चुराने के शक में अनजान महिलाएं जनआक्रोश का शिकार हो रही हैं।अब तक पांच महिलाओं पर लोगों ने जानलेवा हमला किया है।पिछले शनिवार को अपने पांच साल के बच्चे के साथ सड़क पर चल रही माजिदा खातून को लोगों ने धुन ।वृहस्पतिवार को तिलजला मोल्लापाड़ा में एक ४५ साल की बुजुर्ग महिला की इतनी पिटाई हो गई कि उसने दम तोड़ दिया।हालत इस तरह नियंत्रण से बाहर हो गयी है कि डीसी (एसईडी)चंपक भट्टाचार्य को हटाकर उनकी जगह इलाके में डीसी(यातायात २) देवव्रत दास को इलाके की जिम्मेवारी दे दी गया है।स्कूलों पर भी कड़ी निगरानी रखी जा रही है।स्कूलों के प्रशासन ने बच्चों को सिर्प अभिभावक के साथ छोड़ने का नियम भी लागू किया हुआ है।
इलाके के विदायक जावेद खान इस समस्या से बेहद परेशान है। इस समस्या से उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को अवगत करा दिया है।मुख्यमंत्री ने पुलिस प्रशासन को लापता बच्चों को पकड़ने का निर्देश दिये हैं और यह पता लगाने के लिए भी कहा है कि कहीं कोई गिरोह तो इसके पीछे नहीं है।
मानव तस्करी भारत में $ 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एक अवैध व्यापार है। हर साल लगभग 10,000 नेपाली महिलाएं वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए भारत लायी जाती हैं। हर साल 20,000-25,000 महिलाओं और बच्चों की बांग्लादेश से अवैध तस्करी हो रही है।बीते दिनों अमेरिका ने छह साल बाद मानव तस्करी वाले देशों की निगरानी सूची में भारत का स्थान टियर 2 में कर दिया।अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपनी सालाना रिपोर्ट 'ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स' में 'ट्रैफिकिंग विक्टिम्स प्रोटेक्शन एक्ट' (टीवीपीए) के तहत दुनिया के 184 देशों को उनकी बेहतरी के आधार पर कई पायदानों पर रखा है। लड़कों का शोषण जहां बतौर घरेलू नौकर, औद्योगिक श्रमिक, यौन शोषण वगैरह के रूप में किया जाता है वहीं सेक्स, नौकरानी, रखैल और दूसरे मकसदों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में लड़कों की तुलना में लड़कियों की ज्यादा मांग है।आज आलम यह है कि देश में 'अंतरराज्यीय मानव तस्कंरी' (इंटर स्टेट ट्रैफिकिंग) का सिलसिला भी चल निकला है। हाल में देश की एक नामचीन पत्रिका ने राजस्थान से रिपोर्ट छापी कि शेखावाटी से हर महीने करीब 5,000 से 6,000 मजदूर सब्ज बाग दिखा कर खाड़ी देशों में भेजे जा रहे हैं। अकेले झंझुनू जिले के 18 थानों में औसतन दर्ज 500 मुकदमे धोखे से मानव तस्करी की के ही होते हैं। दुबई, ओमान, खाड़ी देशों की बड़ी कंपनियां 500 से 600 रियाल में वीजा जारी करतीं है।लेकिन तस्करी के जरिये यहां पहुंचते ही उसकी कीमत 2,000 रियाल तक पहुंच जाती है। इसके अलावा दलालों को 40 से 50,000 रु पये अलग से देने होते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आज भी इन देशों में अकेले शेखावाटी के अघोषित बंधक बनाये गये करीब 9 लाख लोग हैं।अकेले उत्तर प्रदेश में एक अनुमान के मुताबिक कम से कम 500 अश्लील डांस पेश करने वाले कथित ऑर्केस्टा चल रहे हैं। इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश से तस्करी के ही जरिये लायी गयीं 10 से 30 साल तक की 5,000 से ज्यादा लड़कियां गंवई इलाकों, छोटे शहरों के निजी समारोहों में सरे राह ट्रालियों पर नाचने का काम करती हैं।
हालांकि इस पर अंकुश लगाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय का 'कॉप्रिहेंसिव स्कीम फॉर स्ट्रैंथिनंग लॉ एनफोर्समेंट रेस्पांस इन इंडिया' कार्यक्रम चल रहा है फिर भी नेपाल से लगी उत्तर प्रदेश और बिहार की सैकडों किलोमीटर लंबी सीमाओं के अलावा पश्चिम बंगाल की सीमा से बांग्लादेश की लड़कियां देश में लायी जातीं हैं। क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 2010 में लड़कियों के गायब होने के सबसे ज्यादा 46 फीसदी मामले पश्चिम बंगाल में रहे। वहां एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग में भी खास कर महिला तस्करी रोकने के लिए विशेष शाखा बनायी गयी है। सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य की ओर से 2010 में विधानसभा को दी गयी जानकारी के मुताबिक 2009 में वहां आये चक्रवाती तूफान आएला का फायदा उठा तस्करों ने तबाह हुए इलाकों की 50 हजार से ज्यादा लड़िकयों को बेच डाला।
कोलकाता हाईकोर्ट की ओर से पुलिस से महिलाओं में भी, खास कर लड़िकयों की तस्करी के बावत तैयार एक रिपोर्ट में 2009 में 2,500 लड़कियों के लापता होने की पुष्टि हुई। गुमनाम गरीबों की बेहिसाब गुमशुदगी का असल हिसाब किसी के पास नहीं और यह सिलसिला जारी है. बांग्लादेशी लड़कियों की सी आपबीती नेपाली लड़कियों की भी है।
किशोरों के अपराधों में शामिल होने से जुड़ी दो रिपोर्टे गौरतलब हैं। पहली, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट यह बताती है कि नाबालिग किशोरों द्वारा अंजाम दी जाने वाली बलात्कार की घटनाओं में 188 फीसदी का इजाफा हुआ है। नाबालिगों के अपराधों से जुड़े आंकड़े यह भी बताते हैं कि इन घटनाओं में 64 फीसदी किशोर 16 से 18 आयु समूह के शामिल थे। जहां राष्ट्रीय स्तर पर दूसरी बार अपराध करने वाले इन नाबालिगों का प्रतिशत 115 रहा, वहीं एनसीआरबी की दिल्ली से जुड़ी रिपोर्ट बताती है कि 22 फीसदी से भी अधिक इन नाबालिग किशोरों ने दोबारा अपराध करना कबूल किया। हालांकि, यह सच है कि बाल अपराधी टूटे परिवारों से आते हैं। परंतु आंकड़ों ने इस सच को स्वीकार किया है, मगर आंशिक रूप से। इस मुद्दे पर रिपोर्ट साफ करती है कि केवल 5.7 फीसदी ऐसे बच्चे अपने परिवारों से वंचित थे। शेष 81.3 फीसदी या तो अपने माता-पिता अथवा रिश्तेदारों के साथ रहते पाए गए। सामाजिक-आर्थिक दशाओं के अंतर्गत यह पाया गया कि 57 फीसदी बाल अपराधी गरीब परिवारों से थे, जबकि इस रिपोर्ट में 55 प्रतिशत अशिक्षित अथवा अल्प शिक्षित पाए गए।दूसरी रिपोर्ट गुमशुदा बच्चों से जुड़ी है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति आफताब आलम की अध्यक्षता वाली पीठ में दायर एक रिट याचिका में कहा गया था कि पिछले तीन साल में देश भर से करीब 55 हजार बच्चे गायब हैं। इसके अलावा, सरकारी व गैरसरकारी स्तर पर जो वर्तमान सर्वेक्षण या अध्ययन हुए हैं, उनसे यह सच्चाई सामने आई है कि देश में लापता बच्चों की तादाद दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइस की रिपोर्ट में बच्चों की गुमशुदगी के मामले में दिल्ली पहले स्थान पर है। राजधानी दिल्ली में ही हर दिन 17 बच्चे गायब होते हैं, जिनमें से लगभग 50 फीसदी बच्चे कभी अपने घर वापस नहीं पहुंच पाते। एनसीआरबी और बच्चों की गुमशुदगी की ये रिपोर्ट कहीं न कहीं आपस में एक-दूसरे से तालमेल रखती हैं। अध्ययन बताते हैं कि जिस अनुपात में बच्चे गुमशुदा होंगे, उसी अनुपात में बाल अपराधों में भी बढ़ोतरी होगी। देखने में यह आ रहा है कि आज शातिर अपराधी ऐसे बच्चों को अपनी शरण में लेकर पहले उन्हें नशेड़ी बनाते हैं, फिर उनसे नशीले पदार्थो की तस्करी अथवा बंधुआ बनाकर उनसे बड़े अपराध कराए जाते हैं।
महिलाओं और बच्चों की तस्करी मानव अधिकारों के उल्लंघन के जघन्यतम रूपों में से एक है।यह गुलामी का आधुनिक रूप है, जहाँ पीड़ित को किसी सहायता की उम्मीद के बिना हिंसा, व्यक्तिगत सम्मान के उल्लंघन तथा बेहद अपमान का शिकार होना पड़ता है। भारत बच्चों और युवतियों के अवैध व्यापार का अड्डा बनता जा रहा है। यहां कई कानून होने के बावजूद ह्यूमन ट्रेफिकिंग कम होता नहीं दिख रहा। इम्मोरल ट्रैफिकिंग प्रिवेंशन एक्ट (आइटीपीए) के तहत गुनहगार को सात साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान हैं। बच्चों से मजदूरी कराने के जुर्म में बांडेड लेबर एबोफिशन ऐक्ट, द चाइल्ड लेबर ऐक्ट, और द जूबेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत तीन साल की सजा हैं। अपहरण और वेश्वावृति जैसे अपराध को रोकने के लिए इंडियन पीनल कोड की धारा 366 (ए) और 372 के तहत दस साल और जुर्माना भी हैं। इन सब नियमों और कानूनों के होने के बावजूद भी मानव तस्करी बढ़ रही हैं। पुलिस भी इस जुर्म को रोकने में असहाय हैं।मानव तस्करी बेहद शातिर तरीके से की जाती हैं। इसके साथ कई लोग काम करते हैं। इनका पूरा एक नेटवर्क होता हैं, जो बेहद ही सतर्क होकर काम करता हैं। कई बच्चों का अपहरण उन्हें दूसरे देश में बेचा जा सकें। वहां उन्हें गलत कामों में लगा दिया जाता हैं। आठ साल से कम उम्र के बच्चों को भीख मांगने और उनसे बड़े बच्चों को कठिन कामों में लगा दिया जाता हैं। कई बच्चे घर से बाहर खेलने जाते हैं और फिर लौट कर नहीं आते। ज्यादातर बच्चे प्लेसमेंट एजेंसियां और फैक्टरियों और घरों से मुक्त कराए जाते हैं, जहां इन्हें मजदूरों और नौकरों की तरह रखा जाता हैं। प्लेसमेंट एजेंसियों इस मामले में सबसे ज्यादा गुनहगार हैं, क्योंकि बच्चों को लाने वाले एजेंट को कम पैसे देकर वे बच्चों को घरेलू काम के लिए दूसरे लोगों को बेच देते हैं। इसके बदले उन एजेंसियों को मोटी रकम मिलती हैं।
बंगाल में बच्चों और महिलाओं की तस्करी कुटीर उद्योग की तरह राज्य के कोने के कोने में चल रहा है। यहीं नहीं पूरव भारत और पूर्वोत्तर में बच्चों और महिलाओं के तस्कर गिरोह बेरोकटोक ढंग से सक्रिय है। ऐसे में लापता बच्चों की खोज खबर में पुलिस की निष्क्रियता से ऐसी वारदातें आम हैं और अक्सर हो जाती हैं। छूंकि पीड़ित परिवार और तबके के लोग या तो अनुसूचित .पिछड़े या अल्पसंख्यक समुदाय या शहरों की गंदी बस्तियों से संबांधित होते हैं, उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। मीडिया के पास राजनीतिक सुर्खियां इतनी होती हैं कि इन घटनाओं के बारे में कहीं चर्चा तक नहीं होती।मसलन, जलपाईगुड़ी जिले में कई चाय बागान बंद हैं, ऐसे में यहां काम करने वाले लोगों के बच्चों की हर साल भारी संख्या में तस्करी हो रही है।यूनिसेफ और बदर्वान यूनिवर्सिटी के एक संयुक्त अध्ययन में दुआर के बंद चाय बागानों के पास रह रहे बच्चों की दशा का जिक्र किया गया है।रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 में 12 चाय बागानों से 3500 बच्चों के दूसरी जगह चले जाने का अनुमान है।रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासी, गरीब और बड़े परिवारों के बच्चे खास तौर पर लड़कियां इसका शिकार बनती हैं।
पश्चिम बंगाल के सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र में पिछले एक साल में 14000 से भी ज्यादा लोग लापता हो गए हैं। यह आंकड़ा पिछले महीने गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में दिया है।
कोलकाता से सुंदरबन के इस इलाके में पहुंचने के लिए रोड से दो घंटे का सफर करना पड़ता है और फिर नाव का सहारा लेना पड़ता है। यहां पर एक गांव संदेशखली आपका तमाम मुसीबतों के साथ स्वागत करने को तैयार है। यहां लोगों एक तरफ बाघों के हमले से दो-चार होना पड़ता है वहीं गरीबी ने मानव तस्करी की ओर ढकेल दिया है।
लापता लोगों में आठ हजार से भी ज्यादा लड़कियां शामिल हैं और साढ़े पांच हजार पुरुष भी परिवार को छोड़ लापता बताए जा रहे हैं। मानव तस्करी करने वाले दलालों के लिए संदेशखली इलाका काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस गांव को शायद ही एक भी ऐसा होगा जहां एक मजबूर मां अपनी लापता बेटी का इंतजार न कर रही हो।
तमाम समस्याओं से घिरे इस संदेशखली गांव को 'ऐला' नाम के तूफान ने वर्ष 2009 में काफी नुकसान पहुंचाया था। सालों से यहां गरीबी ने पांव पसार रखे हैं। हालात यह है कि मां को ममता का गला घोंट कर अपने बच्चों को सैकड़ों मील दूर काम करने के लिए भेजना पड़ता है।
एनडीटीवी के किशलय भट्टाचार्य ने जब इलाके का दौरा किया तब एक 16 वर्षीय लापता बच्ची की मां ने बताया कि छह वर्ष पहले उसे हैदराबाद में एक नौकरी के वादे पर ले जाया गया था। दलाल ने परिवार को बताया था कि लड़की के वेतन का कुछ हिस्सा हर महीने उन्हें दिया जाएगा। लेकिन एक बार बच्ची क्या गई आज तक न तो बच्ची की कोई खबर है और न ही दलाल द्वारा किए गए वादे को कभी पूरा किया गया।
एक छप्पर के छोटे से घर में रह रही इस मां का कहना है कि एक साल के वादे के साथ बच्ची को लेकर गए थे लेकिन हर साल दुर्गा पूजा, काली पूजा आई मगर बच्ची कभी वापस नहीं आई। इस मां के पास दो लड़कियों के साथ चार बच्चे हैं और इनकी मासिक आय मात्र एक हजार रुपये हैं। इसी से इस बाद का अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब अगली बार दलाल आएगा तब भी यह दुखियारी उसे मना नहीं कर पाएगी।
ऐसा नहीं कि गांव में कोई भी चला जाएगा और काम करके निकल जाएगा। यहां, मानव तस्करी करने वालों का एक सरगना भी है जिसे हरी के नाम से गांव वाले जानते हैं। यह हरी लड़कियों के मंडियों तक पहुंचाने वालों और शहरों में नौकर के काम दिलाने वाली एजेंसियों के बीच कड़ी का काम करता है।
जब एनडीटीवी ने हरी इस बारे में जानना चाहा तो उसे न केवल धमकी दी बल्कि कैमरा छीनने का प्रयास भी किया। हरी नजदीक शहर में लड़कियां बेच देता है। यहां से शहर तक पहुंचने में लड़कियों तमाम हाथों से गुजरना पड़ता है। जो लड़कियां चकलाघर तक नहीं पहुंचती वह किसी नौकर सप्लाई करने वाली एजेंसी पर पहुंच जाती है।
इस तरह की लड़कियों के व्यापार में शामिल एजेंसी इस बात को पक्का कर लेती हैं कि उन्हें समय पर काम का पैसा मिल जाए लेकिन वेतन के असली हकदार तक मेहनताना कभी नहीं पहुंचता। ऐसे हालातों में फंसी लड़कियों के लिए अपने घरों तक की वापसी का रास्ता लगभग बंद ही रहता है। ऐसे में एक आम आदमी की जिंदगी इन्हें कैसे मिले यह तो भगवान भी नहीं बता सकता है।
गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि हर जिले में मानव तस्करी के विरोध में ईकाइयां तैयार की जाएं। पश्चिम बंगाल में तीन साल पहले इस पर अमल करने का काम शुरू किया गया। हर यूनिट में पांच सदस्य के साथ कैमरा, सेलफोन और एक गाड़ी की व्यवस्था होनी चाहिए। इस तरह की ईकाई की जरूरत तब सबसे पहले महसूस की गई जब वर्ष 2006 में मानवाधिकार आयोग द्वारा यह रिपोर्ट पेश की गई कि देश में हर साल 45 हजार बच्चे लापता हो जाते हैं।
बांग्लादेश सीमा की सुरक्षा का दायित्व संभाल रही बीएसएफ के महानिदेशक उत्थान कुमार बंसल खुद मानते हैं कि भारत बांग्लादेश सीमा पर कुछ इलाके ऐसे हैं जिन्हें पूरी तरह बंद कर पाना संभव नहीं है। यही वजह है कि बांग्लादेश से औरतों और बच्चों की तस्करी की जा रही है। सीमा के दोनों ओर अपराधियों और दलालों के संगठित गिरोह सक्रिय हैं। एक जैसी भाषा और एक जैसी शक्लों के कारण इसे पूरी तरह रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है।
देश में देह व्यापार के अलावा दूसरे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मानव तस्करी में वृद्धि हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि के साथ-साथ उद्योग और कृषि क्षेत्र में सस्ते श्रम की मांग भी इस बुराई के लगातार पैर पसारने का कारण है।
'न्यू लाइट' संस्था की संस्थापक न्यासी उर्मी बसु ने कहा, "लोगों की एक गलत धारणा है कि मूल रूप से मानव तस्करी देह व्यापार के लिए की जाती है। इसके साथ-साथ उद्योग एवं कृषि क्षेत्र के लिए सस्ता श्रम, घरेलू मदद और भीख मांगने जैसी चीजें मानव तस्करी के कई अन्य कारण हैं।"
यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं, बल्कि नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी है। बसु ने कहा, "हालांकि नेपाल में मानव तस्करी ज्यादातर देह व्यापार के उद्देश्य के लिए की जाती है, लेकिन अब सस्ते श्रम की मांग इसमें योगदान कर रहा है।"
नेपाल के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की उप सचिव किरण रूपाखेती ने बताया, "बच्चों की तस्करी भी जारी है और उन्हें विभिन्न उद्योगों में श्रमिकों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा उनका उपयोग भीख मांगने के लिए भी किया जा रहा है।"
उल्लेखनीय है कि भारत, नेपाल और बांग्लादेश सहित अन्य पड़ोसी देशों के लगभग 70 गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) मानव तस्करी को रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं। दक्षिण एशिया में मानव तस्करी को समाप्त करने के लिए अमेरिकी वाणिज्य दूतावास, पश्चिम बंगाल में एक क्षेत्रीय केंद्र भी शुरू कर रहा है।
कोलकाता में अमेरिकी महावाणिज्य दूत डीन थॉमसन ने कहा, "हम मानव तस्करी के मुद्दे को मुख्यधारा में लाना चाहते हैं। हमारा प्रसास लोगों और सरकार में इस मुद्दे के प्रति जागरूकता लाना है।"
सीबीआइ के बाद अब गृह मंत्रालय भी मानव तस्करी पर लगाम लगाने की तैयारियों में जुट गया है। सीबीआइ ने इसके लिए 24 घंटे की हेल्पलाइन शुरू करने और मानव तस्करों की सूचना देने वालों को दो लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की है। इसके साथ ही गृह मंत्रालय 330 जिलों में विशेष मानव तस्कर रोधी केंद्र खोलने की तैयारी में है। इन केंद्रों पर तैनात होने वाले पुलिस कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। मानव तस्करी रोकने से जुड़े देशभर के नोडल अधिकारियों की तीन दिन की कार्यशाला के बाद गृह मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव बी. भामथी ने कहा कि मानव तस्करी रोधी केंद्र खोलने के लिए राज्यों को केंद्रीय सहायता दी जा रही है। अब तक इस तरह के 101 केंद्र शुरू किए जा चुके हैं। जबकि अगले वित्तीय वर्ष में 110 नए केंद्र शुरू करने की तैयारी है। उन्होंने कहा कि इन केंद्रों पर तैनात होने वाले पुलिस अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण देने की व्यस्था की गई है। इस सिलसिले में इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने छह माह का विशेष कोर्स तैयार किया है। मानव तस्करी मामलों से जुड़े सभी पुलिस अधिकारियों के लिए इस कोर्स को अनिवार्य बना दिया गया है और इस संबंध में सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश भेज दिया गया है। उल्लेखनीय है कि उत्तर बंगाल मानव तस्करी के लिए खासतौर पर जाना जाता है। इस इलाके के चाय बागानों और पहाड़ी क्षेत्रों की लड़कियों को देश-विदेश में शादी तथा नौकरी का झांसा देकर बेच दिया जाता है। हाल ही में दार्जिलिंग की एक लड़की को गृह विभाग की पहल पर साउदी अरब से वापस लाया गया है।
वैसे भी दुनिया में मानव तस्करी के ज्यादा शिकार बच्चे हैं और उनमें भी बड़ी संख्या लड़कियो की है। संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट ने यह चेतावनी देते हुए कहा है कि हाल के वर्षो में मानव तस्करी में खतरनाक वृद्धि हुई है और बच्चियां इसकी चपेट में सबसे ज्यादा है। बच्चों की तस्करी में एक तिहाई संख्या 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की हैं और यह कुल पीडितों का 15-20 प्रतिशत है। यूएन ऑफिस के "ड्रग्स एंड क्राइम" (यूएनओडीसी) की हालिया वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया कि तस्करी से पीडित लोगों में 55-60 प्रतिशत महिलाओं का है और इसमें लड़कियों को जोड़ कर देखें तो यह आंकड़ा भयावह रूप से 75 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। 2007 से 2010 के बीच दुनिया भर तस्करी से पीडितों की संख्या लाखों तक जाने का अनुमान है।
मानवाधिकार सुरक्षा संघ ने राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शमीम अहमद के नेतृत्व में एक साल तक देश के विभिन्न क्षेत्रों और इलाकों में जाकर मानव तस्करी पर सर्वे किया। सर्वे में संघ ने पाया कि देश में लगातार मानव तस्कारी बढ़ती जा रही है और तस्करी होने वालों में सबसे ज्यादा बच्चे शामिल हैं। एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल करीब 1.2 मिलीयन बच्चों की तस्करी की जाती है। इनमें से अधिकतर को फैक्टरियों में काम पर लगाया जाता है। यौन कर्मों में भी इनको जबरन धकेल दिया जाता है। भारत में मानव तस्करी आंध्रप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और पश्चिम बंगाल से होती है। इन इलाकों में गरीबी की वजह से मानव तस्करी फल-फूल रही है। सर्वे में पाया गया कि इन इलाकों से लड़कियों को नौकरी या शादी का झांसा देकर शहरों में लाया जाता है और फिर वहां पर उनको बेच दिया जाता है। बड़ी बात यह है कि इनमें से अधिकतर दलित परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। इनमें से अधिकांश महिलाओं को वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है। 2007 में आई महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तीन मिलियन से ज्यादा महिलाएं वेश्यावृत्ति के काम में लिप्त हैं। इतना ही नहीं रिपोर्ट कहती है कि इनमें से करीब 35.47 फीसदी 18 साल से कम उम्र की हैं। ह्यूमन राइट वॉच के मुताबिक भारत में करीब 20 मिलीयन सेक्स वर्कर हैं। इनमें से दो लाख तो अकेले मुंबई में हैं, जो कि एशिया की सबसे बड़ी सेक्स इंडस्ट्री है। एक अनुमान के मुताबिक 1997 से 2004 के बीच वेश्यावृत्ति में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। मानवाधिकार सुरक्षा संघ ने अपने सर्वे में पाया कि कई इलाकों में नाबालिग लड़कियों के शारीरिक विकास करने के लिए दवाओं का सहारा लिया जाता है, जिससे उनकी अच्छी कीमत मिल सके। मानवाधिकार सुरक्षा संघ ने अपने सर्वे में पाया कि भारत में मानव तस्करी आस-पास के देशों जैसे बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, भूटान से भी होती है। महिलाओं के साथ बच्चों को भी यौन कर्मों में लगाया जाता है। इसके साथ ही बच्चों को फैक्टरियों में जोखिम भरे कामों में भी लगाया जाता है। यूनीसेफ के मुताबिक 12. 6 मिलीयन बच्चे जोखिम भरे कामों में लगे हुए हैं।
2005 में आई ह्यूमन राइट कमीशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारत से केवल 10 फीसदी मानव तस्करी ही विदेशों में होती है। 90 फीसदी अंतरराज्यीय होती है। इतना ही नहीं रिपोर्ट तो यह भी कहती है कि देश से हर साल 40 हजार बच्चे गायब होते हैं। यह संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। मानवाधिकार सुरक्षा संघ की ओर से किए गए सर्वे के मुताबिक भारत में हर साल करीब 44 हजार बच्चे गायब होते हैं, जिनमें से 11 हजार का कोई पता नहीं चल पाता है। यह विडंबना ही है कि एक ओर हम बच्चे देश के भविष्य का नारा देते हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे बच्चों के साथ दुर्व्यवहार होता है। मानवाधिकार सुरक्षा संघ ने जब मानव तस्करी के कारणों और उस पर रोक न लग पाने के कारणों का अध्ययन किया, तो पाया कि इसके लिए हमारी पुलिस और सरकार का गैर जिम्मेदराना रवैया दोषी है।
सर्वे में पाया गया कि कई थानों में बच्चों की किडनैपिंग या उनके गायब होने संबंधी कोई एफआईआर दर्ज नहीं है। अक्सर हमारे यहां बिलों पर तो बात होती है, लेकिन मानव तस्करी पर कुछ भी बोलने से हमारी सरकार बचती रहती है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह चुप्पी कब तक रहेगी? कब तक हमारे देश की महिलाएं और बच्चों के साथ ऐसे हादसे होते रहेंगे? आखिर कब इन पर लगाम लगेगी या फिर यह सब यूं ही चलता रहेगा? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनके जवाब सरकार को देने चाहिए।
बच्चों की बढ़ती तस्करी को देखते हुए केंद्र सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किया है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी निर्देश में स्कूलों, स्कूल बसों, बच्चों के पार्को और रिहायशी इलाकों में पुलिस गश्त बढ़ाने से लेकर अन्य उपाय करने को कहा है। इसके साथ ही केंद्र सरकार पूरे देश में 335 मानव तस्कर रोधी यूनिट खोलने की योजना भी बना रहा है।
राज्यसभा में बुधवार को एक सवाल का जबाव देते हुए केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि मानव तस्करी को रोकने की योजना के तहत देश में कुल 10 हजार पुलिसकर्मियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। उनके प्रशिक्षण की प्रक्रिया अगले तीन साल में पूरी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित 335 मानव तस्करी रोधी यूनिटों में से 115 यूनिट खोलने के लिए पहली किस्त के रूप में 8.72 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए गए हैं।
मंत्री ने कहा कि वैसे तो कानून-व्यवस्था और पुलिस राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, लेकिन बच्चों की सुरक्षा की अहमियत को देखते हुए केंद्र ने राज्य सरकारों को दिशानिर्देश जारी करने के साथ ही विशेष सहायता उपलब्ध कराने का फैसला किया है। गृह मंत्रालय की ओर से जारी दिशानिर्देश में बच्चों खासकर लड़कियों की तस्करी रोकने के लिए केंद्र ने राज्य सरकारों को ऐसे इलाकों की पहचान करने को कहा है, जहां इसकी आशंका सबसे अधिक होती है। ऐसे इलाकों में बीट कांस्टेबलों और पुलिस सहायता केंद्रों की संख्या बढ़ाने से लेकर महिला पुलिस की पर्याप्त संख्या में नियुक्ति करने को कहा गया है।
लड़कियों की ख़रीद-फरोख्त का काला सच
गुरूवार, 10 जनवरी 2013
दिल्ली सामूहिक बलात्कार की शिकार युवती की मौत ने भारतीय समाज में औरतों के हालात पर सोचने की एक वजह दी है।
गर्भ के भीतर ही नवजात लड़कियों को मार दिए जाने के बारे में तो बहुत कुछ कहा और सुना जाता है, लेकिन इन सबके बीच देशभर में हो रही लड़कियों की खरीद-फरोख्त का जिक्र कहीं गुम हो जाता है।
भारतीय सीमा से लगे बांग्लादेश के एक गांव से लापता हुई रुख़साना की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। हरियाणा में पुलिस ने जब उसे अपने संरक्षण में लिया था तब वह एक घर में फर्श साफ कर रही थी।
बड़ी-बड़ी आंखों वाली वह लड़की हाथ में कंघी पकड़े कमरे के ठीक बीच में खड़ी, पुलिस वालों के बरसते सवालों का सामना कर रही थी, तुम कितने साल की हो? यहाँ कैसे आई?' उसने जवाब दिया, 'चौदह, मुझे अगवा किया गया था।'
और जैसे ही रुख़साना ने अपनी जुबां थोड़ी और खोली, एक उम्रदराज औरत पुलिस वालों का घेरा तोड़ते हुए चिल्लाई, वह अट्ठारह की है, करीब-करीब 19 की मैंने इसके मां-बाप को इसके बदले पैसे दिए हैं।'
फिर जैसे ही पुलिस रुख़साना को घर से बाहर ले जाने लगी तो वह औरत उन्हें रुकने के लिए कहती है वह लड़की की ओर लगभग दौड़ते हुए पहुंचती है और उसके झुमकों की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहती है, 'ये मेरे हैं।'
गुम हुआ बचपन : साल भर पुरानी बात है कि जब 13 साल की रुख़साना भारत-बांग्लादेश की सीमा से लगे एक छोटे से गांव में अपने मां-बाप और दो छोटे भाई-बहनों के साथ रहती थी। रुख़साना बीते दिनों को याद करती हैं, 'मुझे स्कूल जाना और अपनी छोटी बहन के साथ खेलना अच्छा लगता था।'
और एक रोज स्कूल से घर लौटते वक्त उसका बचपन कहीं खो गया उसे तीन लोग एक कार में उठा ले गए रुख़साना ने बताया कि उन लोगों ने मुझे चाकू दिखाया और विरोध करने पर मुझे टुकड़े-टुकड़े कर देने की धमकी दी। कार, बस और ट्रेन से तीन दिनों के सफ़र के बाद वह हरियाणा पहुंची, जहां उसे चार लोगों के एक परिवार के हाथों बेच दिया गया उस परिवार में एक मां और और तीन बेटे थे। एक साल तक उसे घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी।
रुख़साना कहती है कि मुझे बहुत सताया गया, पीटा गया और खुद को मेरा पति कहने वाले परिवार के सबसे बड़े लड़के ने मेरी इज्जत को कई बार तार-तार किया। रुख़साना कहती है कि वह मुझसे कहा करता था कि मैंने तुम्हें खरीदा है, इसलिए जैसा कहता हूं, वैसा करो उसने और उसकी मां ने मुझे पीटा, मुझे लगा कि मैं अपने परिवार को दोबारा नहीं देख पाऊंगी, मैं हर रोज रोया करती थी।
लड़कियों की खरीद फरोख्त : भारत में लाखों लड़कियां हर साल गुम हो जाती हैं, उन्हें ज्यादातर वेश्यावृत्ति और घरेलू कामकाज के लिए बेचा जाता है। रुख़साना जैसी लड़कियों को उत्तर भारत के कुछ राज्यों में शादी के लिए भी बेचा जाता है।
इन राज्यों में गैरकानूनी तौर पर लड़कियों को उनके जन्म से पहले ही मारने के चलन की वजह से स्त्री-पुरुष के लिंगानुपात में कमी आई है। बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनिसेफ ने इसे जनसंहार की स्थिति बताया है।
यूनिसेफ का कहना है कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या और नवजात लड़कियों को मार दिए जाने की वजह से हर साल 50 लाख औरतें गुमशुदा हो जाती हैं। हालांकि भारत सरकार इन आंकड़ों से इनकार करती है लेकिन हरियाणा का यथार्थ तर्क करने की कम ही गुंजाइश छोड़ता है।
रुख़साना को खरीदने वाली औरत ने पुलिस को समझाने की कोशिश की उसने कहा, हमारे पास यहां बहुत कम लड़कियां हैं। यहां बंगाल से कई लड़कियां आई हुई हैं। मैंने इस लड़की के बदले पैसे चुकाए हैं। इस बात को लेकर आधिकारिक रूप से कोई आंकड़ा नहीं है कि उत्तर भारत के राज्यों में शादी के इरादे से कितनी लड़कियों की खरीद-फरोख्त की जाती है।
लेकिन इस मुद्दे पर काम कर रहे लोगों का मानना है ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है और इसकी वजह उत्तर के राज्यों में तुलनात्मक रूप से समृद्धि और भारत के दूसरे राज्यों में गरीबी का बढ़ना है।
बिगड़ता लिंगानुपात : इन पीड़ितों की मदद के लिए पुलिस के साथ काम करने वाली संस्था शक्ति वाहिनी से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता ऋषिकांत कहते हैं कि उत्तर भारत के हर घर में इसका दबाव महसूस किया जा रहा है हर घर में जवान लड़के हैं और उन्हें लड़कियां नहीं मिल रहीं हैं जिससे वे तनाव में हैं।
बीबीसी ने पश्चिम बंगाल के सुंदरबन के दक्षिणी चौबीस परगना जिले के पांच गांवों का दौरा किया और पाया कि हर जगह बच्चे गायब हुए हैं और उनमें ज्यादातर लड़कियां हैं। हाल ही में जारी हुए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भारत में साल 2011 में लगभग 35 हज़ार बच्चे गुमशुदा हुए हैं और उनमें से 11 हज़ार पश्चिम बंगाल से हैं।
पुलिस का अनुमान है कि महज 30 फीसद मामले ही वास्तव में दर्ज हो पाए हैं। पांच साल पहले सुंदरबन में एक जानलेवा चक्रवातीय तूफान आया था और इससे धान की फसल तबाह हो गई थी और इसके बाद से ही वहां मानव व्यापार बढ़ गया।
इस तूफान के बाद हज़ारों लोगों की तरह स्थानीय खेतिहर मजदूर बिमल सिंह की आमदनी का जरिया छिन गया। एक पड़ोसी ने जब उनकी 16 साल की बेटी बिसंती को दिल्ली में नौकरी दिलाने की पेशकश की तो बिमल को यह खुशखबरी की तरह लगी।
बिमल इसके बाद दोबारा कभी अपनी बेटी को नहीं सुन पाए। बिमल कहते हैं कि पुलिस ने हमारे लिए कुछ नहीं किया। वे एक बार दलाल के घर आए मगर उसे गिरफ्तार नहीं किया। मैं जब उनके पास गया तो उन्होंने मेरे साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया इसलिए मैं पुलिस के पास जाने से डरता हूं।
धंधे का दायरा : कोलकाता की एक झुग्गी में जब हमने लड़कियों की खरीद-फरोख्त करने वाले एक शख्स से मुलाकात की तो उसने नाम न जाहिर करने की शर्त पर इस धंधे के बारे में खुलकर बातचीत की। उसने कहा कि मांग बढ़ रही है और इस बढ़ती मांग की वजह से हमने बहुत पैसा बनाया है।
मैंने अब दिल्ली में तीन घर खरीद लिए हैं। वह कहता है कि मैं हर साल 150 से 200 लड़कियों की खरीद-फरोख्त करता हूं। इनकी उम्र 10-11 से शुरू होती है और ये ज्यादा से ज्यादा 16-17 साल तक की होती हैं। यह शख्स कहता है कि जहां से ये लड़कियां आती हैं, मैं वहां नहीं जाता लेकिन मेरे लोग वहां काम करते हैं।
हम उनके मां-बाप से कहते हैं कि हम उनकी बेटियों को दिल्ली में काम दिलाएंगे और इसके बाद उन्हें नौकरी दिलाने वाली एजेंसियों के पास भेज दिया जाता है। बाद में उनके साथ क्या होता है, इससे मुझे कोई मतलब नहीं। उसने बताया कि स्थानीय नेताओं और पुलिस को इसके बारे में सब पता होता है। इस काम के लिए मैंने कोलकाता, दिल्ली और हरियाणा, सभी जगहों की पुलिस को रिश्वत दी है।
हालांकि पश्चिम बंगाल पुलिस के अधिकारी शंकर चक्रवर्ती पुलिस के भ्रष्टाचार को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और कहते हैं कि उनकी पुलिस मानव तस्करी की रोकथाम के लिए कृतसंकल्प हैं। चक्रवर्ती कहते हैंकि हम लोग जागरूकता अभियान चला रहे हैं। हमने देश के कई हिस्सों से लड़कियां छुड़ाई भी हैं और हमारी लड़ाई जारी है।
ऋषिकांत कहते हैं कि पुलिस को बदल देने भर से नतीजे नहीं निकलेंगे। जरूरत उनके पुनर्वास के बेहतर इंतजाम की है और अधिक संख्या में फास्ट ट्रैक अदालतों की है। और इससे भी ज्यादा जरूरत नजरिए में बदलाव की है तब तक भारत में ये कुचक्र यूं ही चलता रहेगा।
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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा अनैतिक आवागमन से निपटने का प्रयास
स्मप्रति:- मंत्रालय ›महिला और बाल विकास मंत्रालय
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किए गए महिलाओं और बच्चों के अवैध व्यापार को रोकने के प्रयासों के बारे में जानकारी प्राप्त करें। प्रयोक्ता वाणिज्यिक यौन शोषण और अन्तर्राज्यीय बचाव और बाद बचाव तस्करी व्यक्तियों से संबंधित गतिविधियों पर प्रोटोकॉल के लिए बच्चे के अवैध व्यापार के शिकार के पूर्व बचाव, राहत और बाद बचाव कार्यों के लिए प्रोटोकॉल के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। अनैतिक आवागमन (निवारण) अधिनियम, अनैतिक आवागमन (निवारण) संशोधन विधेयक, पायलट परियोजनाओं के तहत सहायता अनुदान योजना (जीआईए) आदि विवरण प्रदान करता है तथा अन्य जानकारी भी उपलब्ध हैं। प्रयोक्ता महिलाओं और बच्चों, सामाजिक और चिकित्सा अधिकारियों द्वारा पीड़ितों की तस्करी के मेडिको - लीगल मामलों से निपटने के लिए तस्करी के शिकार बच्चे लोगों के साथ काम कर श्रमिकों के लिए मैन्युअल की तस्करी का मुकाबला करने पर पुस्तिका डाउनलोड कर सकते हैं। तस्करी की रोकथाम के लिए कार्य योजना, तस्करी, आदि और उनके पुनर्वास पर भी जानकारी प्रदान की जाती है।
http://www.wcd.nic.in/trafficking.htm
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