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Wednesday, August 22, 2012

Fwd: [New post] ब्रह्मांड की रचना और हिग्स बोसॉन यानी कण-कण में विज्ञान



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From: Samyantar <donotreply@wordpress.com>
Date: 2012/8/22
Subject: [New post] ब्रह्मांड की रचना और हिग्स बोसॉन यानी कण-कण में विज्ञान
To: palashbiswaskl@gmail.com


देवेंद्र मेवाड़ी posted: " हाल ही में (4 जुलाई) योरोपीय नाभिकीय अनुसंधान केंद्र (सर्न) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि उन्होंने à"

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ब्रह्मांड की रचना और हिग्स बोसॉन यानी कण-कण में विज्ञान

by देवेंद्र मेवाड़ी

higgs-boson

हाल ही में (4 जुलाई) योरोपीय नाभिकीय अनुसंधान केंद्र (सर्न) के वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि उन्होंने एक नए सब-एटोमिक कण की खोज में सफलता हासिल कर ली है। उनको विश्वास है कि शायद यह वही बहुचर्चित 'हिग्स बोसॉन' कण है जिसका अस्तित्व अब तक केवल सैद्धांतिक रूप में ही था। सर्न प्रयोगशाला के महानिदेशक रॉल्फ हेयूर ने विनम्रता से स्वीकार किया कि आम आदमी की भाषा में कहूं तो 'लगता है हमें यह कण मिल गया है' लेकिन वैज्ञानिक की हैसियत से कहूं तो कहूंगा 'हमें यह क्या मिला है?' यानी जिसका अब तक केवल मायावी या आभासी अस्तित्व था- क्या यह सचमुच वही कण है? यह जानना अभी बाकी है।

वैज्ञानिक विगत लगभग पांच दशकों से इस मायावी सूक्ष्म कण की खोज कर रहे हैं लेकिन अब तक उन्हें केवल यही हासिल हुआ था कि 'हिग्स बोसॉन' नामक यह कण शायद है तो सही, लेकिन साक्षात प्रमाणित नहीं हुआ था। इस कण की खोज की इस परियोजना में विश्व भर के हजारों वैज्ञानिकों ने अपना योगदान दिया है जिनमें भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल हैं। स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमा पर एक 27 किलोमीटर लंबी सुरंगनुमा जमींदोज प्रयोगशाला में इस कण की खोज के लिए वैज्ञानिकों की दो अलग-अलग टीमें अनुसंधान कर रही हैं जिनमें से एक टीम उनके कण डिटैक्टर के नाम पर 'एटलस' और दूसरी टीम 'कॉम्पैक्ट म्युऑन सोलेनोइड यानी सी एम एस' कहलाती है। एटलस टीम में फेबिओला गियानोटी के नेतृत्व में 3, 000 वैज्ञानिक और 'सी एम एस' में जो इंकेंडेला के नेतृत्व में 2, 100 वैज्ञानिक इस कण पर शोध कर रहे हैं। इस कण की खोज की घोषणा के समय इन दोनों प्रमुख वैज्ञानिकों ने अपने अकाट्य वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत किए।

'हिग्स बोसॉन' कण से ब्रिटिश सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी पीटर हिग्स और भारतीय भौतिक विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस का नाम जुड़ा है। हिग्स ने सन् साठ के दशक में मूलभूत कणों में द्रव्यमान की उत्पत्ति पर गंभीर शोध कार्य किया था और हिग्स फील्ड की अवधारणा प्रस्तुत की। भौतिक विज्ञानियों ने जब ऐसे उच्च ऊर्जा कण के अस्तित्व की भविष्यवाणी की, तो हिग्स के द्रव्यमान में उसे हिग्स बोसॉन कण का नाम दिया गया।

'हिग्स बोसॉन' कण से ब्रिटिश सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी पीटर हिग्स और भारतीय भौतिक विज्ञानी सत्येंद्र नाथ बोस का नाम जुड़ा है। हिग्स ने सन् साठ के दशक में मूलभूत कणों में द्रव्यमान की उत्पत्ति पर गंभीर शोध कार्य किया था और हिग्स फील्ड की अवधारणा प्रस्तुत की। भौतिक विज्ञानियों ने जब ऐसे उच्च ऊर्जा कण के अस्तित्व की भविष्यवाणी की, तो हिग्स के द्रव्यमान में उसे हिग्स बोसॉन कण का नाम दिया गया।

'हिग्स बोसॉन' कण उन मूलभूत कणों के समूह का एक कण है जो बोसॉन कण कहलाते हैं। इन कणों का यह नामकरण सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर किया गया है। बोस 1924 में जब ढाका विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में रीडर थे, तो उन्होंने मूलभूत कणों पर एक शोधपत्र लिखा और उसे अल्बर्ट आइंस्टाइन को भेज दिया। आइंस्टाइन ने बोस का वह शोधपत्र जर्मन में अनुवाद करके जीट्सक्रिफ्ट फुर फिजिक जर्नल में छपवाया। बोस के उस शोधपत्र ने क्वांटम सांख्यिकी की नींव रखी और इससे बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी का जन्म हुआ जो मूलभूत कण बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी का अनुपालन करते हैं वे 'बोसॉन' कहलाते हैं। प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी पॉल डिराक ने बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी में सत्येंद्र नाथ बोस के महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करने के लिए इन कणों को बोसॉन नाम दिया। यह दुर्भाग्य ही है कि सत्येंद्र नाथ बोस की संकल्पनाओं पर आगे शोध कार्य करने वाले अन्य भौतिक विज्ञानियों को नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया, लेकिन स्वयं बोस को यह पुरस्कार नहीं मिला।

कण भौतिक विज्ञानी वर्षों से इस मायावी कण को तलाशते रहे हैं क्योंकि कण-भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल के अनुसार इस कण का अस्तित्व है। इसकी तलाश इसलिए जरूरी है क्योंकि वैज्ञानिक कहते हैं कि 'हिग्स-बोसॉन' कणों के कारण ही कणों को द्रव्यमान प्राप्त होता है। यानी हिग्स-बोसॉन के कारण ही ब्रह्मांड की हर चीज को द्रव्यमान मिला। इन कणों की पुष्टि से वास्तविक ब्रह्मांड की व्याख्या संभव हो सकती है।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति सदैव एक पहेली रही है। प्राचीनकाल से आज तक इस बारे में तरह-तरह की परिकल्पनाएं की गईं। सदियों तक लोग यही समझते रहे कि सूर्य, चंद्रमा और ग्रह-नक्षत्र पृथ्वी के चारों ओर घूमते हैं। यानी इन सबके केंद्र में पृथ्वी है। यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने भी यही सोचा। उसने तो यह भी सोचा कि तारे भी एक निश्चित संख्या में हैं जो हर रोज पृथ्वी के चारों ओर घूमते हैं। उसने यह कल्पना भी नहीं की कि मानव किसी ऐसे ग्रह में रह सकते हैं जो सूर्य के चारों ओर घूमता हो। धार्मिक अनुयायियों ने उसकी बात गांठ बांध ली और मध्य युग तक यही माना जाता रहा।

प्रकृति के रहस्यों का ज्ञान न होने के कारण प्राचीन काल में लोगों ने देवी-देवताओं की कल्पना कर ली। उन्होंने सोचा कि मानव जीवन पर इनका प्रभाव पड़ता है। उन्होंने सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश, हवा, पानी, वर्षा, नदी, समुद्र सभी को देवता माना और सोचा कि जब वे प्रसन्न रहते हैं, तो सुख-शांति रहती है और उनके क्रुद्ध होने पर अनिष्ट होता है, अकाल और अनावृष्टि होती है, महामारियां फैलती हैं। वे प्रकृति के रहस्यों से अनजान थे, इसलिए इन घटनाओं की असलियत नहीं जानते थे और सोचते थे कि मानव उनकी दया पर निर्भर है। देवी-देवता खुश रहेंगे, तो मानव भी सुख-शांति से रहेगा।

आधुनिक मानव यानी होमो सैपिएंस का जन्म अफ्रीका महाद्वीप में ईसा पूर्व से लगभग 2, 00, 000 वर्ष पहले हुआ। अज्ञान के अंधकार में सदियां बीत गईं। अनुमान है कि आज से लगभग 2600 वर्ष पहले थेलीज ने सबसे पहले यह विचार सामने रखा कि प्रकृति अपने नियमों के तहत काम करती है, देवी-देवताओं के नहीं, और उन नियमों को समझा जा सकता है।

दुनिया भर के अधिकांश भौतिक विज्ञानी आज इस सिद्धांत से सहमत हैं कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति 'बिग बैंग' यानी महाविस्फोट से हुई। उनका अनुमान है कि यह घटना आज से लगभग 13.7 अरब वर्ष पहले हुई। तब ब्रह्मांड का आदि रूप सिकुड़-सिमट कर महज चंद मिलीमीटर आकार का रहा होगा। फिर महाविस्फोट हुआ और ब्रह्मांड का विस्तार हो गया।

महाविस्फोट से जिस ब्रह्मांड का जन्म हुआ उसकी हर चीज सूक्ष्म कणों से बनी। उन सूक्ष्म कणों की प्रकृति और उनसे संबंधित बलों के कारण ब्रह्मांड की हर चीज का आकार बना।

हालांकि छठी शताब्दी में भारतीय खगोल विज्ञानी आर्यभट्ट ने अपनी गणनाओं से यह पता लगा लिया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। उधर पश्चिमी दुनिया में पोलैंड के खगोल विज्ञानी निकोलस कापर्निकस ने अपनी पुस्तक डी रिवोल्यूशिनिबस ऑर्बियम कोलेस्टियम में घोषणा की कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है और यह विश्व का केंद्र नहीं है। यह पुस्तक 1543 में प्रकाशित हुई।

गैलीलियो ने कापर्निकस के विचारों का समर्थन किया और स्वयं टेलीस्कोप बना कर उससे आसमान को देखा। चांद की कलाओं को देखा और पता लगाया कि चांद की सतह समतल नहीं, बल्कि ऊबड़-खाबड़ है। फिर, उसने वृहस्पति के चार चांदों का पता लगाया। गैलीलियो ने इस तरह साबित किया कि ऊपर आसमान में कोई स्वर्ग की दुनिया नहीं, बल्कि हमारी जैसी दुनिया है। 1632 में गैलीलियो की पुस्तक डायलॉग कंसर्निंग टू द चीफ वल्र्ड सिस्टम्स प्रकाशित हुई जिसने इस बात की पुष्टि की कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। कापर्निकस के धर्म विरुद्ध विचारों का समर्थन करने के लिए गैलीलियो पर मुकदमा चला कर उसे नजरबंद कर दिया गया।

सत्रहवीं सदी में आइजक न्यूटन ने भी ब्रह्मांड के स्वरूप पर विचार किया और वह इस नतीजे पर पहुंचा कि ब्रह्मांड में हर चीज गुरुत्व बल की ओर खिंच रही है। उसने अपने ग्रंथ फिलोसोफी नेचुरोलिस प्रिंसिपिया मैथिमेटिका में इस नियम की व्याख्या की और बताया कि वस्तु या पिंड जितना बड़ा होगा उसमें गुरुत्व बल उतना ही अधिक होगा और पिंड एक-दूसरे से जितना दूर होंगे, गुरुत्व बल उतना ही कम होगा। यह न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्व का नियम कहलाया और इससे सिद्ध हुआ कि ग्रह अपनी-अपनी कक्षा में क्यों हैं।

आगे चलकर ब्रह्मांड संबंधी अनेक नए रहस्यों का उद्घाटन हुआ। बीसवीं सदी की शुरुआत में अल्बर्ट आइंस्टाइन के विशिष्ट आपेक्षिकता के सिद्धांत ने खगोल विज्ञान के अध्ययन को नई दिशा दे दी। आइंस्टाइन ने कहा कि प्रकाश की गति ही सबसे तेज गति है। उसने 'दिक्' और 'काल' की चौथे आयाम के रूप में परिकल्पना की। उसने अपने आपेक्षिकता के व्यापक सिद्धांत से न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम को आगे बढ़ाया जिसके अनुसार ग्रह, नक्षत्रों तथा अन्य पदार्थों का गुरुत्व ब्रह्मांड के समतल को चतुर्विमीय रूप में मोड़ देता है। गुरुत्व पदार्थ और प्रकाश पर भी असर डालता है, जैसे अगर किसी विशाल ग्रह के पास से प्रकाश गुजरेगा तो उस ग्रह के गुरुत्व के कारण वह मुड़ जाएगा।

खगोल विज्ञानी एडविन हब्बल ने ब्रह्मांड की दूरस्थ मंदाकिनियों (गैलेक्सी) का अध्ययन करके पता लगाया कि वे हमारी आकाशगंगा से दूर भाग रही हैं। यानी यह पता लग गया कि ब्रह्मांड फैल रहा है। पर सवाल उठा कि ब्रह्मांड फैल रहा है, तो आखिर किस कारण फैल रहा है?

उत्तर की खोज में वैज्ञानिकों का ध्यान फिर 13.7 अरब वर्ष पहले हुए 'महाविस्फोट' की ओर आकर्षित हुआ। तब ब्रह्मांड का समस्त पदार्थ और ऊर्जा सिकुड़-सिमट कर एक नन्हीं गेंद में समाई हुई थी। और, वह गेंद किसी स्पेस यानी 'दिक्' में लटकी हुई नहीं थी क्योंकि तब न 'दिक्' था न 'काल'। यानी न स्पेस, न टाइम! यहां ऋग्वेद का नारदीय सूक्त याद आ सकता है कि....सृष्टि से आरंभ में न असत् था, न सत् था। अंतरिक्ष और आकाश भी नहीं था। फिर कौन किसका आश्रय बना? यह किसके सुख के लिए बना? ...

और, सहसा संकुचित गेंद में विस्फोट हो गया। महाविस्फोट! वैज्ञानिक अनुमान लगाते हैं कि उसके महा ताप ने ब्रह्मांड को विकिरण से भर दिया होगा, जो ऊर्जा के ही एक रूप माइक्रोवेव में तब्दील हो गया होगा। लेकिन, ऐसा हुआ होगा, यह कैसे साबित हो? सन्'60 के दशक में अर्नो पेंजियाज और राबर्ट विल्सन को एक विशेष सेटेलाइट एंटेना से सुदूर अंतरिक्ष से आ रही एक तीखी चरचराती आवाज सुनाई दी। उन्होंने एंटेना को घुमा-फिरा कर कई तरह से देखा लेकिन वह आवाज बंद नहीं हुई। इसके आधार पर उन्होंने कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड यानी सी एम बी का पता लगा लिया जिससे महा विस्फोट के सिद्धांत को बल मिला। इस खोज के लिए उन्हें 1978 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

ब्रह्मांड की रचना के बारे में निरंतर शोध कार्य किया जा रहा है। वैज्ञानिक इसके नए रहस्यों का पता लगा रहे हैं। इन्हीं रहस्यों में से एक रहस्य 'डार्क मैटर' भी है जिसे 'डार्क एनर्जी' भी कहा जाता है। इसके अस्तित्व का पता 1933 में फ्रिट्ज ज्विकी ने लगाया। यह ऐसा पदार्थ या ऊर्जा है जो दिखाई नहीं देता। इसका पता दृश्य पदार्थ पर इसके गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से लगता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ब्रह्मांड के कुल ऊर्जा घनत्व का लगभग एक चौथाई हिस्सा 'डार्क मैटर' ही है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्रह्मांड मूलभूत कणों से बना है। मगर मूलभूत कण हैं क्या? इसे यों समझ लीजिए। मान लीजिए पदार्थ का एक टुकड़ा है। उसे तोड़ते जाएं, तोड़ते जाएं तो वह आखिर कहां तक तोड़ा जा सकेगा? वहां तक कि जब उसे उससे आगे न तोड़ा जा सके। इतिहास में कई दार्शनिकों ने कुछ इसी तरह सोचा। आयोनिया (यूनान) के दार्शनिक डेमोक्रिटस (460-370 ई.पू.) ने कहा तोड़ते-तोड़ते एक ऐसी स्थिति आ जाएगी जब पदार्थ को आगे नहीं तोड़ा जा सकेगा। जो कुछ बचेगा वे बुनियादी कण होंगे। उन्हीं कणों से इस संसार की सभी अजीवित और जीवित चीजें बनी हैं। आगे न टूटने वाले ये कण 'एटम' यानी परमाणु हैं।

आयोनिया के ही दार्शनिक एनाक्सागोरस (499-428 ई.पू.) ने कहा यह दुनिया सूक्ष्म कणों से बनी है। वे ही हर चीज के 'बीज' हैं। पांचवीं सदी में ही भारतीय मुनि कपिल ने कहा- पदार्थ अंतरिक्ष, हवा, अग्नि, जल और पृथ्वी, इन पंचभूतों से बना है और ये सभी पदार्थ अणु-परमाणुओं से बने हैं। महर्षि कणाद का कहना था कि वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी चार प्रकार के परमाणु हैं। इनसे अणुओं की रचना होती है। इसीलिए पदार्थ भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं।

उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में जॉन डाल्टन का परमाणुवाद सामने आया। डाल्टन ने कहा कि हर तत्त्व परमाणुओं से बना है और उन्हीं से तत्त्व के गुण-धर्म तय होते हैं। इस तरह पदार्थ का सूक्ष्मतम कण परमाणु मान लिया गया। लेकिन आगे चल कर प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन की खोज से पता लगा कि परमाणु अविभाज्य कण नहीं है, बल्कि यह भी सूक्ष्मतम कणों से बना है। इनसे भी सूक्ष्म और अविभाज्य कणों की खोज हुई जिन्हें 'एलिमेंटरी' यानी मूलभूत कण कहा गया। ये ऐसे कण हैं जो अन्य सूक्ष्म कणों से मिल कर नहीं बने हैं। ये कण ही ब्रह्मांड की ईंट हैं। यानी इन्हीं कणों से संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना हुई है।

कण भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल के अनुसार सभी मूलभूत कण या तो 'बोसॉन' की श्रेणी में आते हैं या 'फर्मियॉन' की श्रेणी में। यह उनके स्पिन पर निर्भर करता है। सामान्यत: पदार्थ से संबंधित कण 'फर्मियॉन' और बुनियादी बलों से संबंधित कण 'बोसॉन' कहलाते हैं। बोसॉन कण 'बोस-आइंस्टाइन सांख्यिकी' और फर्मियॉन कण फर्मी-डिराक सांख्यिकी का अनुपालन करते हैं। बोसॉन कणों की खासियत यह है कि समान गुणों वाले दो बोसॉन एक ही समय में एक स्थान पर रह सकते हैं जबकि फर्मियान कणों के साथ ऐसा नहीं होता। इसे यों समझ सकते हैं कि फोटॉन कण 'बोसॉन' हैं इसलिए ये तेज लेजर किरण में भी एक साथ आगे बढ़ते हैं, जबकि इलेक्ट्रॉन 'फर्मियॉन' कण हैं और इनका एक-दूसरे से दूर रहना जरूरी है। इसीलिए ये कण परमाणु में अलग-अलग कक्षाओं में रहते हैं।

फर्मियॉन कणों के उदाहरण हैं क्वार्क (अप, डाउन, चार्म, स्ट्रेंज, टॉप, बॉटम) और लेप्टॉन जैसे इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो, म्युऑन, म्युऑन न्यूट्रिनो, ताउ, ताउ न्यूट्रिनो। बोसॉन कण बल वाहक कण हैं जैसे गॉज बोसॉन यानी ग्लुऑन, 'डब्लू' तथा 'जेड' बोसॉन, फोटॉन और हिग्स बोसॉन।

बस, यही हिग्स बोसॉन कण हैं जिसके अस्तित्व की अब तक प्रयोगशाला में प्रामाणिक रूप से पुष्टि नहीं हुई थी और 4 जुलाई 2012 को जिसे खोज लेने का दावा किया गया है।

अब तक काल्पनिक ही रहे हिग्स बोसॉन कण के अस्तित्व की पक्के तौर पर पुष्टि हो जाने से काल्पनिक 'हिग्स फील्ड' का अस्तित्व भी सिद्ध हो जाएगा। और, अगर यह साबित हो गया कि हिग्स फील्ड है तो यह भी सिद्ध हो जाएगा के इसी फील्ड के कारण मूलभूत कण 'द्रव्यमान' हासिल करते हैं। माना जाता है कि यह फील्ड सर्वत्र मौजूद है, यहां तक कि निर्वात में भी। सर्न प्रयोगशाला में हिग्स बोसॉन कण की खोज करके यही साबित करने की कोशिश की जा रही है।

अब तक प्रकृति में मौजूद चार प्रकार के बलों का पता लगा है: गुरुत्वाकर्षण, विद्युतचुंबकीय बल, कमजोर नाभिकीय बल और तीव्र नाभिकीय बल। इनमें से गुरुत्व सबसे कमजोर बल है, लेकिन यह ब्रह्मांड में मौजूद हर चीज को आकर्षित करता है। विद्युत-चुंबकीय बल गुरुत्व की तुलना में कहीं अधिक तीव्र बल है, लेकिन यह केवल उन्हीं कणों पर काम करता है जिनमें विद्युत आवेश होता है। उनमें से भी, समान आवेश वाले कणों को प्रतिकर्षित करता है जबकि विपरीत आवेश वाले कणों को एक-दूसरे की ओर आकर्षित करता है। सभी रासायनिक और जैव क्रियाएं विद्युत चुंबकीय बल से संभव होती हैं। कमजोर नाभिकीय बल के कारण रेडियो सक्रियता होती है जिससे सितारों में तत्त्व बनते हैं। ब्रह्मांड की शुरुआत में भी इसी बल के कारण तत्त्व बने। तीव्र नाभिकीय बल परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन कणों को बांधे रखता है। यही नहीं, यह बल प्रोटॉन और न्यूट्रॉन कणों को भी बांधे रखता है क्योंकि वे भी अति सूक्ष्म कणों से बने हैं जो 'क्वार्क' कहलाते हैं। हमारे सूर्य और अन्य सितारों में इसी तीव्र नाभिकीय बल के कारण अकूत ऊर्जा बन रही है। इसी बल से हमे अपने परमाणु संयंत्रों में नाभिकीय ऊर्जा मिलती है।

क्लासिक यानी परंपरागत भौतिकी के सिद्धांतों के अनुसार ये बल फील्ड यानी क्षेत्र में संचरित होते हैं। लेकिन आधुनिक क्वांटम क्षेत्र सिद्धांतों के अनुसार बल क्षेत्र मूलभूत कणों से बनते हैं जिन्हें 'बोसॉन' कहा जाता है। ये सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण बल के वाहक होते हैं। इनकी पदार्थ के कणों के बीच आगे-पीछे आवाजाही चलती रहती है और ये बल का संचरण करते रहते हैं। पदार्थ के कण फर्मियॉन कहलाते हैं। इलेक्ट्रॉन और क्वार्क ऐसे ही कण हैं जबकि फोटॉन यानी प्रकाश के कण 'बोसॉन' हैं। बोसॉन कण ही विद्युत-चुंबकीय बल का संचरण (ट्रांसमिट) करते हैं।

मगर, हिग्स बोसॉन क्या है? कण भौतिक विज्ञानी लगातार इस प्रश्न से जूझते रहे हैं कि आखिर वह क्या है जिससे किसी कण को मास यानी द्रव्यमान प्राप्त होता है? भौतिकी के स्टैंडर्ड सिद्धांत के अनुसार सभी कणों का भार शून्य होता है। अगर शून्य होता है तो फिर पूरे ब्रह्मांड का निर्माण करने वाले ग्रह-नक्षत्रों और मंदाकिनियों को द्रव्यमान कैसे और कहां से मिला? सन् 1960 के दशक में ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी पीटर हिग्स ने सुझाव दिया कि असल में संपूर्ण स्पेस यानी 'दिक्' में 'हिग्स क्षेत्र' व्याप्त है और जो भी कण इसमें से गुजरते हैं, वे 'द्रव्यमान' प्राप्त कर लेते हैं। क्वांटम भौतिकी के तरंग-कण के नियम के अनुसार यह किसी कण के कारण होना चाहिए। इसी कण को 'हिग्स बोसॉन' कण का नाम दिया गया।

असल में पीटर हिग्स ने 1964 में दो शोधपत्र लिखे और उनके जरिए हिग्स क्षेत्र की अवधारणा सामने रखी। हिग्स ने कहा कि अगर उसके सुझाए हिग्स क्षेत्र को सागर में तरंग की तरह ऊर्जित कर दिया जाए तो इससे एक नया सूक्ष्म कण प्राप्त होगा। हिग्स की इस अवधारणा के अनुसार मूलभूत कण इस सर्वव्यापी क्षेत्र (फील्ड) से गुजरते समय द्रव्यमान हासिल कर लेते हैं। हिग्स फील्ड से कोई कण जितना ही अधिक संपर्क करेगा, वह उतना ही अधिक द्रव्यमान प्राप्त करेगा।

यह इतनी अमूर्त-सी अवधारणा थी कि 1933 में इसे ब्रिटिश सरकार को समझाना कठिन हो गया। तब ब्रिटिश विज्ञान मंत्री विलियम वाल्डेग्रेव ने वैज्ञानिकों से अनुरोध किया कि वे एक पृष्ठ में अपनी बात समझाएं। विजयी वैज्ञानिकों को उन्होंने शैंपेन की बोतलें भेंट कीं। उनमें भौतिक विज्ञानी डेविड मिलर भी थे। मिलर ने हिग्स फील्ड को इस तरह समझाया कि मान लीजिए, एक कमरे में किसी राजनैतिक पार्टी के तमाम कार्यकर्ता खड़े हैं। कोई अनजान आदमी आकर उनके बीच से आसानी से निकल जाएगा। लेकिन (तत्कालीन) प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर उनके बीच से निकलना चाहेंगी तो पार्टी कार्यकर्ता चारों ओर से उनके करीब आते जाएंगे और इस तरह उनकी चाल धीमी पड़ जाएगी और वे 'द्रव्यमान' प्राप्त कर लेंगी।

अब तक काल्पनिक ही रहे 'हिग्स बोसॉन' कण के अस्तित्व की पक्के तौर पर पुष्टि हो जाने से काल्पनिक 'हिग्स फील्ड' का अस्तित्व भी सिद्ध हो जाएगा। और, अगर यह साबित हो गया कि हिग्स फील्ड है तो यह भी सिद्ध हो जाएगा कि इसी फील्ड के कारण मूलभूत कण 'द्रव्यमान' हासिल करते हैं। माना जाता है कि यह फील्ड सर्वत्र मौजूद है, यहां तक कि निर्वात में भी। सर्न प्रयोगशाला में 'हिग्स बोसॉन' कण की खोज की कोशिश की जा रही है।

सर्न प्रयोगशाला में हिग्स बोसॉन कण 'होने' का संकेत क्या मिला कि दुनिया भर के धर्मप्राण लोगों ने उसमें 'गॉड' यानी ईश्वर की तलाश शुरू कर दी। 'हिग्स बोसॉन' गॉड पार्टिकल का छद्म नाम तो पहले ही पा चुका था, देखा-देखी हमारे देश में भी इसे 'ईश' या 'दैव' कण कह दिया गया, हालंाकि ईश्वर की कल्पना से इसका कोई सीधा संबंध नहीं है। मीडिया और विशेष रूप से कई चैनलों ने 'हिग्स बोसॉन' की खोज को ईश्वर की खोज तक साबित करने की पुरजोर कोशिश की और भक्ति भाव से कण-कण में 'भगवान' तक भजने लगे। लेकिन हिग्स बोसॉन केवल कण-कण में विज्ञान की सच्चाई साबित करता है और इसकी पूरी तरह पुष्टि हो जाने पर प्रकृति के एक और रहस्य का अनावरण होगा और ब्रह्मांड की रचना का सच सामने आएगा।

यहां वर्तमान युग के महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हाकिंग का दो वर्ष पहले दिया गया यह बयान याद आता है कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने नहीं की, बल्कि उसका निर्माण भौतिकी या प्रकृति के बुनियादी नियमों से हुआ है। ल्योनार्ड म्लोदिनोव के साथ लिखी अपनी पुस्तक द ग्रेंड डिजायन में उन्होंने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों का वैज्ञानिक विवेचन किया है। इसी पुस्तक में वे लिखते हैं कि मानव यानी हम, जो स्वयं प्रकृति के मूलभूत कणों के पुतले मात्र हैं, प्रकृति के उन नियमों को समझने के इतना करीब आ चुके हैं जिनसे स्वयं हम और हमारा ब्रह्मांड नियंत्रित होता है तो यही क्या कम बड़ी उपलब्धि है।

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अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk