Welcome

Website counter
website hit counter
website hit counters

Saturday, June 2, 2012

I have some clarifications on this story which I would write later. but I am posting Prayag`s story which uses the Term Bangladeshi for the partition victim refugeesउत्‍तराखंड में शरणार्थियों की जमीनों पर दबंगों का कब्‍जा long before the creation of

I have some clarifications on this story which I would write later. but I am posting Prayag`s story which uses the Term Bangladeshi for the partition victim refugees long before the creation of Bangladesh in 522-54.Otherwise the story is good. i would write om it very soon.


[LARGE][LINK=/index.php/yeduniya/1498-2012-06-02-12-08-35]उत्‍तराखंड में शरणार्थियों की जमीनों पर दबंगों का कब्‍जा   [/LINK] [/LARGE]
Written by प्रयाग पाण्डे Category: [LINK=/index.php/yeduniya]सियासत-ताकत-राजकाज-देश-प्रदेश-दुनिया-समाज-सरोकार[/LINK] Published on 02 June 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=65cf964756b951696d5d9cfc0b4aaa7cef2ac214][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/yeduniya/1498-2012-06-02-12-08-35?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
कुमाऊँ की तराई में बसाये गये बंगाली शरणार्थियों को पट्टे पर दी गई कृषि जमीनों में मालिकाना हक दिये जाने के एवज में सितारगंज से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर एमएलए चुने गये किरन मंडल ने 23 मई को पार्टी और विधायकी से इस्तीफा देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इसी रोज उत्‍तराखण्ड सरकार के मंत्रिमण्डल ने प्रदेश में गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट-1895 के तहत खेती के निमित्‍त पट्टे पर दी गई जमीन पर पट्टाधारकों को मालिकाना हक देने का फैसला ले लिया। एक तरफ राज्य सरकार ने किरन मंडल की शर्त के मुताबिक कैबिनेट में प्रस्ताव पास किया, दूसरी तरफ मंडल ने पार्टी और विधायकी को अलविदा कहा। मंडल और उत्‍तराखण्ड सरकार के बीच का यह समझौता फौरी तौर पर मंडल और उनकी बिरादरी और कांग्रेस के लिए बेशक फायदे का नजर आ रहा हो। लेकिन इससे तराई के भीतर पिछले पचास सालों से लटके भूमि सुधार के मामले और जमीनों से जुडी़ दूसरी बुनियादी समस्याओं का समाधान होने वाला नहीं है। विधायकी की महज एक अदद सीट के लिए हुआ यह समझौता इस नये राज्य की भावी सियासी दशा और दिशा और खासकर कांग्रेस के लिए काफी मंहगा साबित हो सकता है। आनन-फानन में लिये गये इस फैसले से उत्‍तराखण्ड की जमीनी हकीकत को लेकर पहाड़ के नेताओं की तदर्थ सोच अवश्य जगजाहिर हो गई है।

सरकार ने कहा है कि इस फैसले से 1950 से 1980 के बीच समूचे राज्य में गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट के तहत कृषि जमीन का पट्टा पाए करीब 60 हजार से ज्यादा पट्टा धारकों को फायदा मिलेगा। सरकार के इस फैसले के अगले ही रोज 24 मई को एक कैबिनेट मंत्री सुरेन्द्र राकेश ने आसामी पट्टाधारियों को भी मालिकाना हक देने की मॉग उठा दी है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर कहा है कि तात्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गॉधी के आदेश पर 1973 से 1976 के बीच नैनीताल, उद्यमसिंहनगर, देहरादून और हरिद्वार जिलों में करीब 17 हजार दलितों को दिये गए आसामी पट्टाधारियों को भी सरकार मालिकाना हक दे। उत्‍तराखण्ड के मौजूदा सियासी गणित को अपने हक में करने की मजबूरी में लिए गए राज्य सरकार के ताजा फैसले से इन दिनों तराई समेत पूरे उत्‍तराखण्ड में भूमि सुधार का मुद्दा फिर चर्चा में आ गया है। इस बहाने भविष्य में कुमाऊँ और खासकर तराई में भूमि सुधार कानूनों को अमल में लाने के मुद्दे के जोर पकड़ने के आसार नजर आने लगे है।

दरअसल अपनी समृद्ध जमीन और वनसंपदा की वजह से तराई का इलाका मुगल काल से ही लडाइयों का केन्द्र रहा है। ऐतिहासिक नजरिये से तराई-भावर गुप्त काल से कुमाऊँ राज्य का हिस्सा रहा। उन दिनों कुमाऊँ में कत्यूरी वंश का राज था। कत्यूरी कुमाऊँ का सबसे पुराना राजवंश है। कत्यूरी शासन काल में तराई का यह इलाका खूब फूला-फला। ग्यारहवीं ईसवी में तराई को लेकर मुस्लिम शासकों और कत्यूरों के बीच अनेक बार झड़पें भी हुई। अकबर के शासन काल के दौरान कुमाऊँ में चंद वंश के राजा रूप चंद का शासन था। तब तराई को नौलखिया माल और कुमाऊँ के राजा को नौलखिया राजा कहा जाता था। उन दिनों यहॉ के राजा को तराई से सालाना नौ लाख रुपये की आमदनी होती थी। चंद राजा ने तब तराई को सहजगीर (अब जसपुर), कोटा- (अब काशीपुर), मुडियया -(अब बाजपुर), गदरपुर भुक्सर -(अब रूद्रपुर), बक्शी -(अब नानकमत्‍ता) और चिंकी- (सुबड़ना और बेहडी़) सात परगनों में बॉटा था। चंद वंश के चौथे राजा त्रिमूल चंद ने 1626 से 1638 तक कुमाऊँ में राज किया। त्रिमूल चंद के राज में तराई बहुत समृद्ध थी। तराई की समृद्धि के मद्देनजर अनेक राजाओं ने तराई पर नजर गडा़नी शुरू कर दी, तराई को हाथ से निकलते देख त्रिमूल चंद के उत्‍तराधिकारी राजा बाज बहादुर चंद ने दिल्ली के मुगल सम्राट शाहजहॉ से समझौता कर लिया। बदले में कुमाऊँ की सेना ने काबुल और कंधार की लडा़ईयों में मुगलों का साथ दिया।

औरंगजेब के शासन काल में 1678 ई. को कुमाऊँ के राजा बाज बहादुर चंद ने तराई में अपने प्रभुत्व का मुगल फरमान हासिल किया। 1744 से 1748 ई. के दौरान रूहेलखण्ड के रूहेलों ने कुमाऊँ पर दो बार आक्रमण किए। 1747 ई. में मुगल सम्राट ने फिर तराई पर कुमाऊँ के राजा का प्रभुत्व कबूल किया। 1814-1815 को सिंगौली की संधि के बाद 1815 में कुमाऊँ में ब्रिटिश कंपनी का आधिपत्य हो गया। 1864 में ब्रिटिश हुकूमत ने तराई और भावरी क्षेत्र के कुछ हिस्सों को मिलाकर यहॉ की करीब साढे़ चार लाख एकड़ जमीन को "तराई एण्ड भावर गवर्नमेंट इस्टेट" बना दिया। इसे "खाम इस्टेट" या "क्राउन लैण्ड" भी कहा जाता था। उस दौर में यहॉ करीब पौने पॉच सौ छोटे-बडे़ गॉव थे, इनमें से करीब पौने चार सौ गॉव इस्टेट के नियंत्रण में थे। ब्रिटिश सरकार अनेक स्थानों पर इस्टेट की जमीनों को खेती के लिए लीज पर भी देती थी। उस दौरान इस इलाके को बोलचाल में तराई-भावर इस्टेट कहा जाता था। 1891 में नैनीताल जिला बना। इस क्षेत्र को नैनीताल जिले के डिप्टी कमिश्नर के अधीन कर दिया गया।

तराई के ज्यादातर नगर कस्बे चंद राजाओं के शासन काल में बने। राजा रूद्र चंद ने रूद्रपुर नगर बसाया। रूद्र चंद के सामंत काशीनाथ अधिकारी ने काशीपुर और राजा बाजबहादुर चंद ने बाजपुर बसाया। ब्रिटिश हुकुमत के दिनों चंद वंश के उत्‍तराधिकारी को तराई -भावर जागीर में दे दी गई। उन्हें राजा साहब काशीपुर की पदवी से नवाजा गया। 1898 ई. में तराई में इंफल्युएंजा की बीमारी फैल गई। 1920 में यहॉ जबरदस्त हैजा फैला। इस दरम्यान यहॉ सुलताना डाकू का भी जबरदस्त खौफ था। इन सब वजहों से तराई में आबादी कम होती चली गई। अतीत में भी तराई कई बार बसी, और कई बार उजडी़। विश्व युद्ध के दौरान अनाज की कमी और पूर्वी पाकिस्तान से आये विस्थापितों को बसाने की मंशा से तराई-भावर के बहुत बडे़ भू-भाग के जंगलों को काटकर वहॉ बस्तियॉ बसाने को सिलसिला शुरू हुआ। दिसम्बर, 1948 को पंजाब के शरणार्थियों का पहला जत्था यहॉ पहुंचा। अगस्त 1949 में उन्हें भूमि आवंटन कि प्रक्रिया शुरू हुई।

तराई उत्‍तराखण्ड का सबसे ज्यादा मैदानी इलाका है। यह बेहद उपजाऊ क्षेत्र है। गन्ना, धान और गेहूं की उपज के मामले में तराई को देश के सबसे ज्यादा उपजाऊ वाले इलाकों में गिना जाता है। ब्रिटिश हुकुमत के दिनों से तराई के जंगलों में खेती करने का चलन तो था। पर तब तराई का ज्यादातर हिस्सा बेआबाद था। 1945 में यहॉ दूसरे विश्व युद्ध के सैनिकों को बसाने की योजना बनी। आजादी के बाद रक्षा मंत्रालय ने इस पर अमल करना था। 1946 में प्रदेश की पहली विधानसभा ने इस क्षेत्र में कुमाऊँ और गढ़वाल के लोगों को बसाने की योजना बनाई। पर यह कामयाब नहीं हो सकी। 1950 तक तराई की पूरी जमीन सरकार की थी। इसे खाम जमीन कहा जाता था।

1947 में भारत पाक विभाजन के वक्त आए शरणार्थियों को तराई में बसाने की योजना बनी। योजना के तहत पहले-पहल 1952 में पंजाब से आए हरेक शरणार्थी परिवार को 12 एकड़ जमीन दी गई। फिर बंगाल से आए शरणार्थीयों को जमीनें दी गई। बाद के सालों में इस योजना में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी शामिल किये गये। तराई में निजी व्यक्तियों और सहकारी समितियों को भी 99 साल की लीज पर जमीनें बॉटी गई। इस तरह दूसरे विश्व युद्ध के सैनिक, उत्‍तराखण्ड के वे लोग, जिनके पास जमीन नहीं थी। पंजाब एवं बंगाल से आये शरणार्थी, भूमिहीन स्वतंत्रा संग्राम सेनानी, युद्ध में अपंग या शहीद सैनिकों के परिवार और तराई के पुराने वाशिन्दे थारू-बुक्सा, अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लोगों को तराई की जमीन का असल हकदार बनाया गया। पर हकीकत में ऐसा नहीं हो सका। जमीन के आवंटन में बरती गई धांधलियों के चलते राजनीतिज्ञ, उद्योगपति, फिल्मी हस्तियॉ, पुराने नवाब, अफसर और सरकारी मुलाजिम तराई की जमीन के असली मालिक बन बैठे। रक्षा मंत्रालय के जरिये सैनिकों को बॉटी जाने वाली जमीनों का ज्यादातर हिस्सा सेना के चंद अफसरों ने हथिया लिया। पंजाब से आये शरणार्थियों को जमीन बॉटने का फायदा भी राजनीतिक पहुंच वाले प्रकाश सिंह बादल और सुरजीत सिंह बरनाला सरीखे चंद नेताओं ने उठाया। पहाड़ के गरीब लोगों के नाम पर कुछ बड़े नेताओं, अफसरों और सरकारी मशीनरी ने जमीने घेरी। कुछ लोगों ने बंगाली शरणार्थियों को मिली जमीनें खरीदी, तो कुछ ने थारू-बुक्सा जनजातियों की जमीनें और सरकारी जमीनों पर कब्जा कर अपना रकवा बढा़या। इस तरह चंद लोगों ने तराई में बेहिसाब उपजाऊ और बेशकिमती जमीनें हथिया ली।

1964 में बंगलादेश के वजूद में आने के बाद यहॉ हजारों की तादाद में बंगालादेशी शरणार्थी आये। इसी साल बंगाली शरणार्थियों को पुनर्वासित करने के लिए ग्राम-लमरा और शिमला बहादुर के बीच करीब साढे़ तीन सौ एकड़ जमीन पुनर्वास विभाग को दी गई। यहॉ ट्रांजिट कैम्प बना। करीब दो सौ परिवारों को पक्के मकानों के अलावा दो से ढाई एकड़ कृषि जमीनें दी गई। करीब तीन सौ परिवारों को व्यवसाय के लिए एक मुश्त रकम और पक्के मकान दिये गये। बंगलादेशी शरणार्थियों को दिनेशपुर, शक्तिफार्म, रूद्रपुर, किच्छा, मुड़ियाफार्म, सितारगंज, महतोष मोड़, खानपुर और गदरपुर आदि क्षेत्रों में बसाया गया। उन्हें मुख्य रूप से दिनेशपुर और शक्तिफार्म में जमीनें आवंटित की गई। शक्तिफार्म में 2233 बंगाली शरणार्थियों को पट्टे दिये गये थे। आवंटन में लीज जैसी किसी शर्त का जिक्र नहीं किया गया था। 1971 के बंगलादेश युद्ध के समय भी चटगॉव, वारीसाल, खुलना, फरीदपुर और ढाका वगैरह जिलो से भी बंगलादेशी शरणार्थी तराई में आ बसे है। यह सिलसिला कमोवेश छुटपुट तौर पर आज भी जारी है। आज रविन्द्र नगर, संजय नगर, आदर्श कालोनी, जगतपुरा, भतईपुरा, रम्पुरा मुहल्ला और राजीव नगर में भी बंगाली शरणार्थियों की कालोनियॉ बसी है।

तराई में जिस रफ्तार से फार्म हाउसों का रकवा बढ़ता गया, ठीक उसी रफ्तार से भूमिहीन और खेत मजदूरों की तादाद भी बढ़ती गई। कुछ लोग जमीन बंटवारे के वक्त ही जमीन नहीं पा सके। जिन्हें मिली, उन्हें किसी न किसी तरह बेदखल कर दिया गया। जमीदारी फैलाव की चपेट में तराई के जंगलों के पुराने वाशिन्दे थारू-बुक्सा जनजाति के लोग आये। आजादी के बाद थारू-बुक्सा को जनजाति का दर्जा देकर उनकी जमीनों की खरीद-फरोख्त पर कानूनी पाबंदी लगा दी गई। पर यह कानून भी थारू-बुक्सा को भूमिहीन बनाने से नहीं रोक पाया। जमीन के असमान बंटवारे के चलते पंजाबी शरणार्थियों में राय, सिख, बंगाली शरणार्थी और पहाड़ के ज्यादातर लोगों को जमीनें नहीं मिल पाई। इनमें से सबसे ज्यादा बुरे हाल बंगाली शरणार्थियों के हुए। तराई में आज ज्यादातर बंगाली शरणार्थी खेत मजदूर बनकर रह गये हैं। बंगाली शरणार्थियों को आवंटित भूमि में से आधी से ज्यादा जमीनें दस से एक सौ रुपये कीमत के स्टॉप पेपरों में दाननामा और दूसरे तरीकों से बिक चुकी है। बंगाली शरणार्थियों के पट्टे वाली इन जमीनों में से कुछ जमीनें दूसरे बंगाली शरणार्थियों ने ही खरीद ली। बाकी दूसरे लोगों ने। कुछ बंगाली शरणार्थी शुरुआती दिनों में ही अपनी पट्टे वाली जमीनें बेचकर चले गए। अब उनका कोई अता-पता नहीं है। खरीददार और बेचनेवालों के बीच अदालतों में कई मुकदमें भी चल रहे हैं। जमीन किसी और को अलॉट हुई थी, मौके पर कब्जा किसी और का है। 1971 में आये बंगाली शरणार्थियों में से अभी कई परिवारों को पुनर्वासित नहीं किया जा सका है।

जमीदारी उन्मूलन एक्ट के तहत तराई के कुछ लोगों को उनके कब्जे वाली जमीन में मालिकाना हक पहले ही मिल गये। तराई में बडे़ नेताओं, उद्योगपतियों, चंद सेना के अधिकारियों और फिल्मी सितारों के हजारों एकड़ के फार्म हाउस बन गये। एस्कोर्ट फार्म, पेगा फार्म (काशीपुर), प्राग फार्म (किच्छा), अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल का फार्म, चीमा फार्म, राणा फार्म, शर्मा फार्म (बाजपुर) मंजीत फार्म, बिष्टी फार्म, टिंगरी फार्म, सिसैइया फार्म, नकहा फार्म (सितारगंज) जैसे फार्म हाऊसों की लंबी फेहरिस्त है। तराई में सैकड़ों एकड़ वाले फार्मों की तादाद सैकड़ों में है। प्रभावशाली लोगों के फार्म हाऊसों के रकवे की ठीक-ठीक जानकारी सरकारी अमले के पास भी नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार तराई में तीन फीसदी किसानों के कब्जे में चौबीस प्रतिशत जमीन है। जबकि बाकी पचपन फीसदी किसान सिर्फ पन्द्रह प्रतिशत जमीन पर काबिज हैं।

तराई में 1972 में सीलिंग कानून लागू होना शुरू हुआ। सीलिंग कानून की चपेट में मझौले किसान ही आ पाये। फार्म हाऊसों के मालिकों के कद के सामनें सीलिंग कानून भी बौना साबित हुआ। सिंचाई वाली जमीन को असिंचित दिखाकर सीलिंग की हद से ज्यादा जमीनों में फर्जी स्कूल, मकान, सड़क-रास्ते दर्शाकर या फिर रेवन्यू रिकार्ड़ में बेनामी जमीने दर्ज कराकर फार्म हाऊसों के मालिक सीलिंग कानून से बचते रहे। तराई में आज भी सीलिंग के अधिकांश मामले विभिन्न न्यायालयों में विचाराधीन है। सीलिंग के गिरफ्त में आये लोग एक बार अदालत से फैसला हो जाने के बाद उसी जमीन में किसी दूसरे के नाम से नये सिरे से मुकदमे बाजी शुरू कर देते है। सुप्रीम कोर्ट के सख्त रूख के बाद कुछ साल पहले प्रशासन ने एस्कोर्ट फार्म में सीलिंग की कार्रवाई की। यहॉ पहले ही गैरकानूनी रूप से जमीन खरीदकर मौके पर काबिज लोगों को जमीने बॉट दी गई। सीलिंग की खानापूर्ति के लिए निकाली गई जमीन भूमिहीनों को बॉटनें के बजाय आईएमए के हवाले कर दी गई।

पी.यू.डी.आर. की एक रिपोर्ट के मुताबिक तराई में सीलिंग कानून लागू करते वक्त सरकार ने केवल 1.4 फीसदी जमीन अतिरिक्त घोषित की थी। सरकार इस में से 64 फीसदी जमीन ही अपने कब्जे में ले पाई। कब्जे में ली गई जमीन में से 61 फीसदी जमीन लोगों को बॉटी गई। बाकी सीलिंग में निकली जमीन पर भी प्रभावशाली लोग हाथ मार गये। सीलिंग में निकली जमीन में से सिर्फ 0.4 फीसदी जमीन भूमि हीनों को मिल पाई। इनमें से एक चौथाई लोगों को बडी़ जोत वालों ने बेदखल कर दिया। छोटे किसानों के अधिकार वाली ज्यादातर जमीने भी बडी़ जोत वाले किसानों के फार्मों का हिस्सा बनकर रह गई। तराई में पिछले करीब पचास सालों से भूमि सुधार कानूनों को लागू करने की मॉग उठती रही है। लेकिन यहॉ प्रदेश सरकार ने राजनीतिक फायदे-नुकसान के मद्देनजर हरेक वर्ग के लिए अलग-अलग कानून बनाये और लागू किये। शुरू में सभी शरणार्थियों को गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट के तहत जमीने आवंटित की गई थी। माली और सियासी तौर पर मजबूत लोगों को बहुत पहले मालिकाना हक दे दिया गया। हालत यह है कि राजनेताओं, नौकरशाहों और भू-पतियों के अंतरंग गठजोड़ के चलते जमींदारी उन्मूलन एक्ट भी बडे़ फार्म हाऊस मालिकों के हक में गया। नतीजन पिछले चार दशकों से यहॉ सीलिंग और चकबंदी कानून पर जमीनी अमल नहीं हो पाया है। तराई में आज तक जमीन की पैमाईश नहीं कराई गई।

तराई में जमीनों के गड़बड़झाले को लेकर पूर्ववर्ती उत्‍तरप्रदेश सरकार ने 27 जुलाई, 1968 को तब उत्‍तरप्रदेश बोर्ड ऑफ रेवन्यू के सदस्य वरिष्ठ आईसीएस अफसर बी.डी. सनवाल की अध्यक्षता में चार सदस्यीय "तराई लैण्ड जॉच कमेटी" बनाई थी। इस कमेटी ने 1969 को अपनी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौपीं। उत्‍तरप्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा अपने कार्यकाल के दौरान गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज रूद्रपुर का उद्घाटन करने को यहॉ आये। लोगों ने श्री बहुगुणा से तराई के भीतर जमीनों के असमान बंटवारे की शिकायत की और यहॉ सीलिंग और चकबंदी कानून को अमल में लाने की गुजारिश की। इस मामले को गम्भीरता से लेते हुए हेमवती नन्दन बहुगुणा ने 8 फरवरी, 1972 को उत्‍तरप्रदेश विधान सभा और विधान परिषद की "उत्‍तरप्रदेश भूमि व्यवस्था जॉच समिति" नाम से एक साझा जॉच समिति बनाई। मंगल देव विशारद को इस जॉच समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। इस समिति ने मार्च, 1974 को अपनी विस्तृत जॉच रपट राज्य सरकार को सौपीं। रिपोर्ट में कहा गया कि तराई में 185 खातों में 474 खातेदारों के नाम 25379 एकड़ जमीन दर्ज है। यानी हरेक खातेदार के नाम औसतन 137 एकड़ जमीन दर्ज है। कहा गया कि सैकडों खातों में 50 एकड़ से ज्यादा जमीनें दर्ज है। जिनका इन्द्राज कई लोगों के नाम पर है। लेकिन जमीन का वास्तविक मालिक एक ही व्यक्ति है। रिपोर्ट में कहा गया कि तराई में स्थित गॉव सभा, गोदान, भू-दान, बाधों तथा जलाशयों की अतिरिक्त भूमि, वन विभाग को पौधारोपण के लिए दी गई भूमि, वनभूमि, खामभूमि, वर्ग-चार और वर्ग-आठ की भूमि और वन पंचायतों की बेहिसाब भूमि भी कब्जा ली गई है। कहा गया है कि बाजपुर और रामनगर में 55 बुक्सारी गॉव थे। अब वहॉ के मूल वाशिन्दे थारू-बुक्साओं की जमीनें भी छिन रही है। मंगल देव विशारद जॉच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बडे़ फार्म हाऊसों के कब्जे की अतिरिक्त जमीनों का विस्तृत और प्रमाणिक ब्यौरा दिया था। इस समिति ने उत्‍तरप्रदेश अधिकतम जोत सीमा आरोपण अधिनियम- 1960 के तहत तराई में सीलिंग में निकलने वाली जमीनों को बॉटने के लिए बकायदा तरीका भी सुझाया था। समिति ने सिफारिश की थी कि सीलिंग में अतिरिक्त निकली जमीनें क्रमशः युद्ध में वीरगति को प्राप्त सैनिक के भूमिहीन आश्रितों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भूमिहीन खेतिहर मजदूरों, अन्य भूमिहीन खेतहर मजदूरों, भूमिहीन भूतपूर्व सैनिक व भूमिहीन राजनीतिक पीड़ितों और छोटे कास्तकारों, जिनके पास 3 एकड़ से कम जमीन है, को बॉटी जाए। शुरुआत में समूचे उत्‍तरप्रदेश में मंगलदेव विशारद जॉच कमेटी की इसी रिपोर्ट के आधार पर ही सीलिंग की कार्रवाई होती थी। बाद में राजनेताओं, नौकरशाहों और भू-स्वामियों के नापाक गठजोड़ ने इस रिपोर्ट को पूरे प्रदेश से एक प्रकार से गायब ही करा दिया।

आज तराई में वनभूमि, वर्ग-चार, वर्ग-आठ की भूमि और सिंचाई विभाग की हजारो हेक्टयर भूमि में कब्जे है। बिन्दुखत्‍ता से नेपाल की सीमा तक वन भूमि पर कब्जा हो चुका है। पिछले पचास सालों से भूमि सुधार के मामले लटके है। उत्‍तराखण्ड को अलग राज्य बने साढे़ ग्यारह साल बीत गये है। लेकिन राज्य सरकार ने इस दिशा में सोचने-विचारने तक की जहमत नहीं उठाई। नतीजन यह समस्या वक्त के साथ बडी़ होती चली जा रही है। बेहतर होता कि राज्य सरकार सियासी नफा-नुकसान के मद्देनजर टुकड़ों में निर्णय लेने के बजाय, तराई में वर्षों से अधर में लटके भूमि सबंधी मामलों को निपटाने के लिए व्यापक और सार्वभौमिक नीति बनाती, जिससे यहॉ रह रहे सभी वर्ग के कमजोर और जरूरतमंद लोगों को फायदा मिलता। लेकिन उत्‍तराखण्ड के मौजूदा सियासी हालातों में इस बात की उम्मीद करना शायद बेमानी होगा।

[B]लेखक प्रयाग पाण्‍डे नैनीताल के वरिष्‍ठ पत्रकार हैं.[/B]

No comments:

मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of Atheism#!Genetics Bharat Teertha

হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!

मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड

Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!

हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।

In conversation with Palash Biswas

Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg

Save the Universities!

RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!

जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।

#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি

अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास

ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?

Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION! Published on Mar 19, 2013 The Himalayan Voice Cambridge, Massachusetts United States of America

BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7

Published on 10 Mar 2013 ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH. http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM http://youtu.be/oLL-n6MrcoM

Imminent Massive earthquake in the Himalayas

Palash Biswas on Citizenship Amendment Act

Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003 Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003 http://youtu.be/zGDfsLzxTXo

Tweet Please

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA

THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER

http://youtu.be/NrcmNEjaN8c The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today. http://youtu.be/NrcmNEjaN8c Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program ______________________________________________________ By JIM YARDLEY http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR

Published on 10 Apr 2013 Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya. http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP

[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also. He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT

THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM

Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia. http://youtu.be/lD2_V7CB2Is

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE

अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।' http://youtu.be/j8GXlmSBbbk