एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
अब सत्तावर्ग के सर्वाधिनायक विश्वपुत्र प्रणवमुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने के खेल के पीछे कारपोरेट इंडिया और राजनीति का साझा खेल खुल्ला होने लगा है। इस खेल में भाजपा और कांग्रेस की शानदार साझेदारी है जिससे नवउदारवाद के मसीहा डा मनमोहन सिंह की वित्तमंत्रालय में वापसी संभव हो चुकी है। मनमोहन के वित्तमंत्रालय संभालने पर अर्थ व्यवस्था के ढांचे में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला और देश पर लगातार बढ़ रहे विदेशी कर्ज और भुगतान संतुलन, राजस्व घाटे की स्थिति में कोई अंतर नहीं आने वाला। उत्पादन प्रणाली में भी फेरबदल नहीं होने वाला। कृषि और देहात की बदहाली आलम और घनघोर होने के आसार हैं। असल में अर्थ व्यवस्था में इस बदहाली से सत्तावर्ग का कोई सरोकार कभी रहा ही नहीं वरना पिछले साढ़े छह दशक तक अर्थव्यवस्था मौद्रिक कवायदों के भरोसे चलाया नहीं जा रहा होता। करों का बोझ आम आदमी पर बढ़ने के बजाय घटने वाला नहीं है।प्रणव ने सत्तावर्ग के हितों की रक्षा करने में अपने राजनीतिक जीवन में सोवियत माडल के इंदिरा जमाने से लेकर इमर्जिंग मार्केट के कारपोरेट वर्चस्व और विश्व बैंक आईएमएफ निर्देशन के युग तक कभी कोई कोताही नहीं की। इसलिए अपने गृहराज्य के लिए कभी कुछ नहीं करने के बावजूद , अपना कोई जनाधार नहीं होने के बावजूद वे सत्तावर्ग की आंखों का तारा बने हुए हैं।अपने हिसाब से जनविरोधी बजट पेश करने और आर्थिक सुधार लागू करने में उन्होंने कोई कोताही नहीं की।एक के बाद एक जनविरोधी कानून बनाने और जनता के विरुद्ध युद्ध घोषणा के तहत नीति निर्धारण में उनकी महती भूमिका रही है। वित्तीय तमाम कानून बदल डालने का उन्होंने चाकचौबंद इंतजाम भी कर लिया। डीटीसी और जीएसटी का रास्ता भी साफ कर दिया। खेती बंधुआ हो गयी। किसान आत्महत्या के सिवाय कुछ सोच ही नहीं सकता। बहिष्कृत समाज की जल जंगल जमीनसे बेदखली का सिलसिला तेज हो गया। प्रोमोटर बिल्डर राज कायम करने में उनका योगदान सबसे ज्यादा है। पर मौद्रिक कवायद के खेल में उन्होंने सीधे सांप के बिल में हाथ डाल दिया। कालाधन भारतीय राजनीति का शरीर है तो अर्थ व्यवस्था की आत्मा। पूंजी प्रवाह दरअसल सत्तावर्ग के काले धन को ही घूमाने का खेल है। वोडापोन मामले में वित्तसचिव गुजराल की अतिसक्रियता काखामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है।गार लागू करके जो पंगा उन्होंने विदेशी निवेशकों के पीछ मजबूती से खड़े कारपोरेट इंडिया और वैश्विक पूंजी से लिया, उसकी सजा तो उन्हें मिलनी ही थी। उनकी सेवाओं के पुरस्कार बतौर उनके रायसिना हिल्स में आराम परमाने का इंतजाम कर दिया गया और बिना हो हल्ले अर्थ व्यवस्था फिर मनमोहन की आड़ में मंटेक सिहं आहलूवालिया, सी रंगराजल और सुदीप बोस जैसे असंवैधानिक त्तवों के हवाले हो गयी। वित्तमंत्रालय में लैंड करते ही मनमोहन ने मनमोहनी जादुई छड़ी से पेट्रोल की कीमतें घटाकर जनमत को अपने हक में करके बाजार के हित साधने और उद्योग जगत को स्टिमुलस देने का पक्का इंतजाम कर दिया और तुरत फुरत गार का फसाना खत्म कर दिया।गिरता हुआ बाजार और रसातल जा रहा रुपया फिर उठने लगा है। पर आम आदमी को मिलेगा क्या?
गौर करें कि अंगूर कैसे खट्टे हो जाते हैं! वरिष्ठ कांग्रेसी नेता प्रणव मुखर्जी ने शुक्रवार को कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बन पाने का कोई दुख नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि मनमोहन सिंह बेहतरीन व्यक्तियों में से एक हैं और इस पद को संभालने में सक्षम हैं। मुखर्जी ने कहा कि मुझे इसका पछतावा नहीं है कि मैं प्रधानमंत्री नहीं बन सका। उन्होंने कहा कि मैं इस बात को दोहरा रहा हूं कि मनमोहन सिंह बेहतरीन व्यक्तियों में से एक हैं और प्रधानमंत्री पद के काबिल व्यक्ति हैं।शुक्रवार को अर्थव्यवस्था की स्थिति कुछ सुधरी दिखी। जहां शेयर बाजार में जोरदार तेजी दर्ज की गयी, वहीं रुपये के मूल्य में भी सुधार हुआ। सरकार ने उद्योग के साथ विश्वास की समस्या के समधान का भी आश्वासन दिया है।वैश्विक ब्रोकरेज कंपनी मोर्गन एंड स्टेनले द्वारा घरेलू शेयर बाजार के बारे में सकारात्मक रुख से भी बाजार धारणा पर असर पड़ा। कंपनी मामलों के मंत्री वीररप्पा मोइली ने बेंगलूर में कहा कि मुझे उम्मीद है कि वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभालने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब आर्थिक नीतियों में बड़े सुधार के कदम उठा सकते हैं।सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने उम्मीद जताई है कि देश की अर्थव्यवस्था आगामी अक्टूबर से फिर पटरी पर लौटने लगेगी।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सामान्य कर परिवर्जन नियम (गार) का मसौदा दिशानिर्देश जारी कर विभिन्न पक्षों से इस पर राय आमंत्रित की। इसके साथ ही सरकार ने कहा कि विभिन्न पक्षों की राय मिलने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस पर फैसला लेंगे। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने मसौदा दिशानिर्देश जारी किया।जनरल एंटी एवॉयडेंस रूल्स (गार) के बारे में दिशानिर्देशों का मसौदा निवेशकों और शेयर बाजार की काफी चिंताओं को दूर करता है और इस बात का सीधा असर हमें आज कारोबार में बाजार में आयी उछाल के रूप में दिख रहा है। गार के नियम इस साल बजट में जब घोषित किये गये, तब से भारतीय शेयर बाजार विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की उदासीनता की मार झेलता रहा है। वित्त मंत्रालय के विवादास्पद गार (जनरल एंटी टैक्स अवॉयडेंस रूल) पर दिशानिर्देशों का मसौदा जारी करने के 24 घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने खुद को इस मामले से दूर कर लिया है। पीएमओ ने कहा है कि इन मसौदे को प्रधानमंत्री ने नहीं देखा है। इन्हें अंतिम रूप उनकी मंजूरी के बाद ही दिया जाएगा।पीएमओ के बयान में कहा गया है, 'प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मसौदे को नहीं देखा है। इन्हें प्रधानमंत्री ही अंतिम रूप और मंजूरी देंगे।' प्रणव मुखर्जी के बाद वित्त मंत्रालय का प्रभार प्रधानमंत्री के पास ही है। पीएमओ ने कहा कि प्रधानमंत्री इस प्रस्ताव पर मिली टिप्पणियों के बाद ही इसे अंतिम रूप देंगे।गौरतलब है कि वित्त मंत्रलाय ने गुरुवार रात गार की गाइडलाइंस जारी की थीं। टैक्स पर निवेशकों की चिंता खत्म करने के लिए वित्त मंत्रालय ने विवादास्पद गार पर रकम की सीमा रखी थी। गाइडलाइंस के मसौदे में रकम की सीमा नहीं बताई गई थी। गार के प्रावधान वहीं लागू होंगे, जहां एफआईआई डबल टैक्स अवॉयडेंस संधियों का लाभ लेंगे। अनिवासी निवेशक के मामले में यह नहीं लागू होगा। 1 अप्रैल 2013 के बाद हुई कमाई पर यह प्रावधान लागू होगा।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेकसिंह अहलूवालिया ने संकेत दिया कि निवेशकों का विश्वास बहाल करने के लिए नीतिगत मोर्चे पर उन्हें जल्दी ही कुछ कदम देखने को मिलेगा। जटिल कर मुद्दों को स्पष्ट करने को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तथा वित्त मंत्रालय में गतिविधियों में आई तेजी के बीच उन्होंने नीतिगत कदम उठाए जाने का संकेत दिया है।जबकि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने जनरल एंटी एवॉयडेंस रूल्स या गार (GAAR) के बारे में दिशानिर्देशों का मसौदा पेश कर दिया है, जिसमें विदेशी निवेशकों की कई चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया गया है। सीबीडीटी के इन दिशानिर्देशों के मुताबिक एक तय सीमा से अधिक रकम के सौदों में गार के प्रावधान लागू होंगे। हालाँकि इस मसौदे में यह नहीं लिखा है कि इसकी सीमा कितनी रखी जायेगी। साथ ही पिछली तारीख से नियमों को बदलने के चलते चौतरफा आलोचना के मद्देनजर इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि ये नियम 1 अप्रैल 2013 को या इसके बाद से होने वाली आमदनी पर लागू होंगे। अगर इन दिशानिर्देशों को अंतिम मंजूरी मिलती है तो वोडाफोन और हचिसन के सौदे समेत ऐसे तमाम पुराने सौदे गार के दायरे से बाहर आ जायेंगे, जिनको लेकर विवाद चलता रहा है। सीबीडीटी ने यह भी कहा है कि गार के प्रावधान तभी लागू किये जा सकेंगे, जब किसी विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) ने दोहरे कर से बचाव की किसी संधि (DATT) का लाभ उठाया हो। लेकिन किसी एफआईआई के अनिवासी निवेशकों के मामले में गार के प्रावधान लागू नहीं किये जायेंगे। इस तरह पार्टिसिपेटरी नोट्स (P-Notes) को गार के दायरे से बाहर रखने का इंतजाम किया गया है। इसके अलावा, शेयर बाजार में होने वाले सौदों को गार के दायरे से पूरी तरह बाहर रखने का प्रस्ताव है। इन दिशानिर्देशों में एक समिति बनाने की भी बात कही गयी है, जिसमें कम-से-कम तीन सदस्य होंगे। इस समिति से मंजूरी लेने के बाद ही किसी मामले में गार को लागू किया जा सकेगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये उनके सलाहकारों तथा अधिकारियों की गतिविधियों से कारोबारी धारणा में सुधार हुआ है।कारोबारी सप्ताह के आखिरी दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सूचकांक सेंसेक्स बीएसई ने 439 अंकों की छलांग लगाई और यह बाजार बंद होते समय 17430 पर जा पहुंचा।यह इस साल एक दिन की सबसे ज्यादा बढ़त है। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज इंडेक्स निफ्टी में भी धूम मची नज़र आई। यह 130 अंकों की बढ़त लिए 5279 पर बंद हुआ। बाजार में यह मजबूती रुपए के 56 के स्तर तक पहुंचने और यूरोपीय हालात सुधरने की उम्मीद के कारण नज़र आई है।सेंसेक्स में पूरे दिन भर के कारोबार पर एक नज़र डालें तो उसने अधिकतम 17,033.85 और न्यूनतम 16,918.87 के स्तर को छुआ है। वहीं निफ्टी की बात करें तो यह अधिकतम 5,159.05 पर और न्यूनतम 5,125.30 के स्तर को छुआ है। मिडकैप शेयर्स 1.5 फीसदी और स्मॉलकैप शेयर्स 1.25 फीसदी मजबूत हुए।बीएसई एफएमसीजी इंडेक्स 0.82% ऊपर रहा, बीएसई पावर इंडेक्स में 0.38% की तेजी नज़र आई। वहीं बीएसई आईटी इंडेक्स में 0.22% की बढ़त और बीएसई ऑयल ऐंड गैस इंडेक्स 0.37% की गिरावट नज़र आई। बीएसई बैंक इंडेक्स 0.32% नीचे रहे, जबकि बीएसई कैपिटल गुड्स इंडेक्स 0.17% नीचे रहे।
प्रणब मुखर्जी के जाने के बाद पीएम ने भले ही वित्त मंत्रालय का कामकाज संभाल लिया है लेकिन फिलहाल महंगाई से निजात मिलने की कोई उम्मीद नहीं हैं। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों का कहना है कि कमरतोड़ महंगाई से उबरने में कम से कम और तीन महीने इंतजार करना होगा।राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे प्रणब मुखर्जी के वित्त मंत्री पद छोड़ने के बाद अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्रालय की कमान संभाल ली है। कई बड़ी चुनौतियों के साथ-साथ पीएम के सामने सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती महंगाई पर काबू कर लोगों को राहत दिलाना है और गिरती अर्थव्यवस्था को मजबूती देकर देश को विकास के रास्ते पर ले जाना। नई पहल के तहत वित्त मंत्रालय को सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से जोड़ दिया गया है। अब वित्त मंत्रालय प्रधानमंत्री कार्यालय को रोजाना रिपोर्ट भेजेगा। जिसकी समीक्षा मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु करेंगे। हालांकि सरकार ने अर्थव्यवस्था को काबू में रखने की कवायद शुरू कर दी है, लेकिन बसु का मानना है कि हालात संभलने में अभी कुछ महीने और लगेंगे।
सांख्यिकी दिवस 2012 के मौके पर आयोजित समारोह के दौरान शुक्रवार को कोलकाता में संवाददाताओं से बातचीत में बसु ने कहा कि उद्योग में जो विश्वास का माहौल गड़बड़ाया है, सरकार उसे भी दूर करने पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के फिर से जल्द ही पटरी पर लौटने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि अगले चार-पांच माह अर्थात अक्टूबर से विकास की गति फिर से अपने टाप गियर में वापस आ सकती है।सरकार की सबसे बड़ी चिंता महंगाई के बारे में भी शाजनक नजर आए बसु ने कहा कि यह भी सितम्बर से नीचे आने लगेगी। फिलहाल महंगाई साढ़े सात प्रतिशत से ऊपर है।
उद्योग में विश्वास की समस्या के बारे में बसु ने कहा कि उद्योग से साथ मिलकर इसे दूर करने की शिक्षा में कदम उठाए जा रहे हैं। पिछले कई महीने से सरकार इस पर कदम उठा रही है और हमारा प्रयास है कि जितना जल्दी हो सके इसे हासिल किया जाए।
कौशिक बसु का साफतौर पर कहना है कि फिलहाल 3 महीने तक महंगाई कम होने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि सुधार की रफ्तार काफी धीमी है। उनका कहना है कि आर्थिक विकास दर में सितंबर तक कमजोर रहेगी लोकिन उन्होंने उम्मीद जताई कि अक्टूबर से विकास दर रफ्तार पकड़ेगी। बसु का ये भी कहना है कि सितंबर से महंगाई दर सात फीसदी के नीचे आने की उम्मीद है लेकिन मंदी का खतरा सामने है। बसु रुपये की गिरती कीमत से ज्यादा चिंतित नहीं हैं और उनका कहना है कि रुपया गिरने से नुकसान तो है लेकिन निर्यातकों को फायदा होगा।
उधर प्रधानमंत्री इकॉनोमिक एडवाइजरी कमेटी के अध्यक्ष सी रंगराजन का कहना है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ कड़े कदम उठाने जरुरी हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु की राय है कि तीन महीने में महंगाई कम होने की संभावना नहीं है। सितंबर तक आर्थिक विकास दर कमजोर रहेगा। अक्टूबर से आर्थिक विकास दर में सुधार की उम्मीद है। सितंबर में महंगाई दर सात फीसदी से नीचे आने की उम्मीद है। मंदी का खतरा बरकार है। रुपये की कमजोरी से निर्यातकों को फायदा है।
अध्यक्ष प्रधानमंत्री इकॉनोमिक एडवाइजरी कमेटी सी रंगराजन के मुताबिक अर्थ व्वयवस्था कठिन दौर में हैं। विकास ठप है। महंगाई दर काफी ऊंची है। इस पर नियंत्रण जरूरी है। सूत्रों की मानें तो सरकार ने बीमा और पेंशन सेक्टर में 49 फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी देने का फैसला कर लिया है। मनमोहन के आर्थिक सलाहकार अर्थव्यस्था को पटरी पर लाने के लिए भले ही नए सिरे से जुड़ गए हैं और तीन महीने में हालात सुधरने की बात भी कर रहे हैं, लेकिन विपक्षी पार्टियों को नहीं लगता कि मनमोहन भी इस दिशा में कुछ खास कर पाएंगे। बीजेपी नेता मुरली मनोहर जोशी के मुताबिक उनके तीन महीने आज से नहीं सन् 2005 से सुन रहे हैं। पिछले सात सालों से यही कह रहे हैं, ऐसी बातों से सरकार से भरोसा उठ गया है।
बिजनेस स्टैंडर्ड में एक दिलचस्प कथा आयी है, उस पर जरूर गौर फरमायें। टीएन नाइनन ने लिखा हैः
अधिकांश लोग शायद यह भूल गए होंगे कि वर्ष 2004 में मनमोहन सिंह जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने इस बात को सार्वजनिक हो जाने दिया था कि वह वित्त मंत्रालय अपने पास रखेंगे। उनसे कहा गया कि यह ठीक नहीं होगा। इस संदर्भ में जो तर्क दोहराया गया वह यह था कि उनको अपने नये काम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि पिछले पर। इस तरह पी चिदंबरम को वित्त मंत्रालय का मनचाहा काम मिल गया। वर्ष 2009 में उनके दूसरे कार्यकाल की शुरुआत तो और भी अधिक नाटकीय रही। अंदरूनी जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री वित्त मंत्री के पद पर अपनी पहली पसंद के रूप में सी रंगराजन को नियुक्त करना चाहते थे जिन्होंने कुछ ही महीने पहले प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का अध्यक्ष पद छोड़ा था और उसकेे बाद वह राज्य सभा के लिए मनोनीत किये गए थे। दरअसल, रंगराजन को चेन्नई से दिल्ली आने के लिए भी कह दिया गया था। संभवत: शपथ लेने के लिए। लेकिन अंतिम क्षणों में उनसे अपनी यात्रा रद्द करने को कहा गया। तीन महीने बाद उन्होंने राज्य सभा की अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया और वह दोबारा अपने पुराने काम पर लौट गए यानी उन्होंने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का अध्यक्ष पद एक बार फिर संभाल लिया। इस दरमियान यह पद सुरेश तेंडुलकर के पास था। उन्हें पद से हटा दिया गया, बावजूद इसके कि वह प्रधानमंत्री के दोस्त थे। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि डॉ. सिंह हमेशा से वित्त मंत्रालय का काम खुद संभालना चाहते थे या फिर वह इस पद पर एक ऐसा अर्थशास्त्री चाहते थे जिस पर उन्हें भरोसा हो। एक और बात अब साफ हो चुकी है कि जिन लोगों ने भी सोनिया गांधी की लोक कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता देने और डॉ. सिंह के विकास आधारित दर्शन के अंतर पर ध्यान केंद्रित किया उन्होंने एक और महत्त्वपूर्ण अंतर को नजरअंदाज कर दिया। यह खाई डॉ. सिंह और प्रणव मुखर्जी के बीच मौजूद थी। जिस असामान्य तत्परता के साथ डॉ. सिंह ने अंतरिम वित्त मंत्री का पद संभाला है और जिस तेजी से उन्होंने अपने पूर्ववर्ती मुखर्जी के कुछ विवादास्पद कदमों को बदलने की भूमिका तैयार की है, उससे यही संकेत मिलता है कि उनमें इस बात को लेकर झुंझलाहट थी कि वह मुखर्जी के पद पर रहते वित्त मंत्रालय को सीधे निर्देश नहीं दे पा रहे थे। शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि सन 1980 के दशक में वित्त मंत्री के रूप में मुखर्जी डॉ. सिंह के बॉस थे और उन्होंने 1982 में उनको भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का गवर्नर नियुक्त किया गया था। यह देखते हुए कि डॉ. सिंह आमतौर पर दबाव नहींं बनाते (याद कीजिए कैसे उन्होंने ए राजा को नियमों से खेलने दिया), जाहिर सी बात है कि मुखर्जी को भी पूरी स्वायत्तता प्राप्त थी। 1980 के दशक से अब तक भूमिकाओं में भारी बदलाव आ जाने के बावजूद सिंह अपनी इच्छा उन पर थोप नहीं सकते थे। आखिर, उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखकर वादा किया था कि वोडाफोन पर पुरानी तारीख से कोई कर नहीं लगाया जाएगा लेकिन उनके वित्त मंत्री ने ठीक ऐसा ही किया! इससे पहले भी तीन मौकों पर प्रधानमंत्री वित्त मंत्री की भूमिका निभा चुके हैं और पहले कभी इसके लिए कोई राजकोषीय वजह नहीं रही। 1958 में एक घोटाले के बाद जब टी टी कृष्णमाचारी ने इस्तीफा दे दिया था तब नेहरू ने कुछ समय के लिए पद संभाला था। इंदिरा गांधी ने राजनैतिक लाभ हासिल करने के क्रम में मोरारजी देसाई को वित्त मंत्रालय से हटाने के बाद यह पद संभाला था। आखिरी बार 1987 में राजीव गांधी ने वी पी सिंह को हटाने के बाद 'छापे के युग' का खात्मा किया था जो सिंह ने कारोबारी घरानों के खिलाफ छेड़ रखा था। अब प्रश्न यह है कि क्या मनमोहन सिंह खुद को वास्तव में एक अंतरिम वित्त मंत्री के रूप में देखते हैं या फिर वह 2014 तक पद पर बने रहने की मंशा रखते हैं और आर्थिक प्रबंधन में सीधे तौर पर ऐसे परिवर्तन लाना चाहते हैं जो वह 2004 और 2009 में नहीं ला सके। अगर बाद वाली बात सही है तो पहेलीनुमा सवाल यह है कि क्या श्रीमती गांधी ने अर्थव्यवस्था में व्याप्त गड़बडिय़ों के मद्देनजर प्रधानमंत्री को इतनी छूट प्रदान कर दी है?
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হে মোর চিত্ত, Prey for Humanity!
मनुस्मृति नस्ली राजकाज राजनीति में OBC Trump Card और जयभीम कामरेड
Gorkhaland again?আত্মঘাতী বাঙালি আবার বিভাজন বিপর্যয়ের মুখোমুখি!
हिंदुत्व की राजनीति का मुकाबला हिंदुत्व की राजनीति से नहीं किया जा सकता।
In conversation with Palash Biswas
Palash Biswas On Unique Identity No1.mpg
Save the Universities!
RSS might replace Gandhi with Ambedkar on currency notes!
जैसे जर्मनी में सिर्फ हिटलर को बोलने की आजादी थी,आज सिर्फ मंकी बातों की आजादी है।
#BEEFGATEঅন্ধকার বৃত্তান্তঃ হত্যার রাজনীতি
अलविदा पत्रकारिता,अब कोई प्रतिक्रिया नहीं! पलाश विश्वास
ভালোবাসার মুখ,প্রতিবাদের মুখ মন্দাক্রান্তার পাশে আছি,যে মেয়েটি আজও লিখতে পারছেঃ আমাক ধর্ষণ করবে?
Palash Biswas on BAMCEF UNIFICATION!
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS ON NEPALI SENTIMENT, GORKHALAND, KUMAON AND GARHWAL ETC.and BAMCEF UNIFICATION!
Published on Mar 19, 2013
The Himalayan Voice
Cambridge, Massachusetts
United States of America
BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE 7
Published on 10 Mar 2013
ALL INDIA BAMCEF UNIFICATION CONFERENCE HELD AT Dr.B. R. AMBEDKAR BHAVAN,DADAR,MUMBAI ON 2ND AND 3RD MARCH 2013. Mr.PALASH BISWAS (JOURNALIST -KOLKATA) DELIVERING HER SPEECH.
http://www.youtube.com/watch?v=oLL-n6MrcoM
http://youtu.be/oLL-n6MrcoM
Download Bengali Fonts to read Bengali
Imminent Massive earthquake in the Himalayas
Palash Biswas on Citizenship Amendment Act
Mr. PALASH BISWAS DELIVERING SPEECH AT BAMCEF PROGRAM AT NAGPUR ON 17 & 18 SEPTEMBER 2003
Sub:- CITIZENSHIP AMENDMENT ACT 2003
http://youtu.be/zGDfsLzxTXo
Tweet Please
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA
THE HIMALAYAN TALK: INDIAN GOVERNMENT FOOD SECURITY PROGRAM RISKIER
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
The government of India has announced food security program ahead of elections in 2014. We discussed the issue with Palash Biswas in Kolkata today.
http://youtu.be/NrcmNEjaN8c
Ahead of Elections, India's Cabinet Approves Food Security Program
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By JIM YARDLEY
http://india.blogs.nytimes.com/2013/07/04/indias-cabinet-passes-food-security-law/
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
THE HIMALAYAN VOICE: PALASH BISWAS DISCUSSES RAM MANDIR
Published on 10 Apr 2013
Palash Biswas spoke to us from Kolkota and shared his views on Visho Hindu Parashid's programme from tomorrow ( April 11, 2013) to build Ram Mandir in disputed Ayodhya.
http://www.youtube.com/watch?v=77cZuBunAGk
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
http://youtu.be/7IzWUpRECJM
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICAL OF BAMCEF LEADERSHIP
[Palash Biswas, one of the BAMCEF leaders and editors for Indian Express spoke to us from Kolkata today and criticized BAMCEF leadership in New Delhi, which according to him, is messing up with Nepalese indigenous peoples also.
He also flayed MP Jay Narayan Prasad Nishad, who recently offered a Puja in his New Delhi home for Narendra Modi's victory in 2014.]
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS CRITICIZES GOVT FOR WORLD`S BIGGEST BLACK OUT
THE HIMALAYAN TALK: PALSH BISWAS FLAYS SOUTH ASIAN GOVERNM
Palash Biswas, lashed out those 1% people in the government in New Delhi for failure of delivery and creating hosts of problems everywhere in South Asia.
http://youtu.be/lD2_V7CB2Is
THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS LASHES OUT KATHMANDU INT'L 'MULVASI' CONFERENCE
अहिले भर्खर कोलकता भारतमा हामीले पलाश विश्वाससंग काठमाडौँमा आज भै रहेको अन्तर्राष्ट्रिय मूलवासी सम्मेलनको बारेमा कुराकानी गर्यौ । उहाले भन्नु भयो सो सम्मेलन 'नेपालको आदिवासी जनजातिहरुको आन्दोलनलाई कम्जोर बनाउने षडयन्त्र हो।'
http://youtu.be/j8GXlmSBbbk
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