अथ पौड़ी कथा-4: लेखन की प्रेरणा रहे जो पत्र
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 14 || 01 मार्च से 14 मार्च 2011:: वर्ष :: 34 :April 4, 2011 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/stoty-of-pauri-part-4/
अथ पौड़ी कथा-4: लेखन की प्रेरणा रहे जो पत्र
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 14 || 01 मार्च से 14 मार्च 2011:: वर्ष :: 34 :April 4, 2011 पर प्रकाशित
आजादी से पहले के दौर में पौड़ी से जो भी लेखन हुआ वह एक खास वर्ग तक ही सीमित था। इस वर्ग में या तो अधिकारी थे या वे लोग जो बाहर से शिक्षार्जन कर चुके थे। यदि विद्यालयों ने नई पीढ़ी को पठन-पाठन सिखाया तो जनता में लिखने-पढ़ने की रुचि जगाने में यहाँ आने वाले व यहाँ से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों की भूमिका भी कम न थी।
चालीस के दशक में पौड़ी तक सड़क नहीं थी। तब यहाँ पर समाचार पत्र डाक से आते थे। पहले 1902 में लैंसडौन से 'गढ़वाल समाचार' का प्रकाशन आरम्भ हुआ जिसका प्रकाशन 2 साल बाद बन्द हो गया। इस बीच 1905 में देहरादून से प्रकाशित 'गढ़वाली' पत्र आने लगा। गढ़़वाली ने यहाँ के राजनीनिक व सामाजिक मुद्दों को लगातार उठाया। इस पत्र में जनता को टिहरी रियासत, ब्रिटिश गढ़वाल व देहरादून से जुड़े समाचार पढ़ने को मिलते।
फरवरी 1913 में एक बार बन्द हो चुके 'गढ़वाल समाचार' का प्रकाशन दुगड्ड़ा से होने लगा जो 1914 के अन्त में जाकर एक बार फिर से बन्द हो गया। उस समय तक पौड़ी शिक्षा व राजनीतिक जागरूकता का केन्द्र माना जाता था। यहाँ से 1913 तक कोई भी पत्र नहीं छपता था। ढाँगू निवासी सदानन्द कुकरेती जागरूक व निराले ही स्वभाव के व्यक्ति थे। मिशन स्कूल से शिक्षा ले चुके कुकरेती के मन में आया कि क्यों न पौड़ी से भी मासिक पत्र निकाला जाय। सरकारी नौकरी करते पत्र निकालना इतना आसान न था। लेकिन धुन के पक्के कुकरेती जी ने कोई बाधा न आये इसलिये अपनी नौकरी छोड़ दी। अपना छापाखाना तो था नहीं इसलिये वे अपने मासिक पत्र 'विशाल कीर्ति' को पौड़ी के ब्रह्मानन्द थपलियाल के अपर बाजार स्थित 'बदरी केदारेश्वर प्रेस' से छपवाने लगे। यह पत्र 5 साल के बाद आर्थिक तंगी के कारण बन्द करना पड़ा। तत्पश्चात् सदानन्द कुकरेती चौलूसैण में स्कूल खुलवाने के लिये अभियान पर निकल गये ताकि उनके यहाँ शिक्षा के माध्यम से लोग जाग सकें और उनको अच्छे अवसर मिल सकें। 1917 में दुगड्डा से 'पुरुषार्थ' नामक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ जिसके सम्पादक कोई ओर नहीं 'गढ़वाल समाचार' के प्रकाशक गिरजादत्त नैथानी ही थे। यह पत्र 1921 तक दुगड्ड़ा से छपता रहा। कुछ समय तक नैथाना से भी प्रकाशित हुआ और गिरजादत्त नैथानी के निधन के बाद बन्द हो गया। यह सारे ही पत्र मासिक थे और भूरे कागज पर छोटे आकार की पत्रिका के रूप में छपते थे। इन पत्रों को देख कर कुछ लोग कविता लिखने व समाचार आदि का प्रेषण करने लगे लेकिन कई बार प्रेषक अपना नाम गुप्त रखते। 1915 के बाद 'गढ़वाली' साप्ताहिक के रूप में छपने लगा और सन् 1952 तक छपता रहा।
1920 में कुली ऐजेन्सी की स्थापना करवाने में योगदान देने वाले तहसीलदार जोधसिंह नेगी ने एक पुस्तक 'हिमालयन ट्रैवल्स' इसी बीच कोलकात्ता से प्रकाशित की। सन् 1922 में क्षत्रिय समाज में जागरूकता लाने के लिये नगर से 'क्षत्रिय वीर' का प्रकाशन आरम्भ हुआ जो आगरा से छप कर आता था। इसके आरम्भिक संपादक प्रताप सिंह थे। 1935 से 1938 के बीच यह अधिवक्ता कोतवाल सिंह नेगी एवं शंकर सिंह नेगी के संपादन में निकला। इसका प्रकाशन अनियमित रूप से होता रहा। इसमें भी कई नव लेखक अपनी रचनाओं को भेजते। 1922 में लैंसडौन से 'तरुण कुमाऊँ' मासिक पत्र चर्चित रहा जो बैरिस्टर मुकन्दीलाल के संपादन में निकलता था।
सन् 1930 के बाद पूरे देश में राजनीतिक चेतना बढ़ने का यहाँ भी असर हुआ। स्वाधीनता अन्दोलन में कई लोगों के कूदने के कारण पौड़ी जिले में कांग्रेस संगठन का गठन कर दिया गया। नगर में इसका केन्द्र होने से यहाँ पत्र आने लगे। इनसे ही लोगों को देश -दुनिया की घटनाओं व गतिविधियों की जानकारी हो पाती थी। जब देहरादून से गढ़वाली पत्र बन्द हुआ तो वहाँ से 'युगवाणी' व कोटद्वार से 'कर्मभूमि' जैसे पत्रों ने नवलेखकों को एक मंच दिया। आजादी से पहले ज्यादातर लोगों की रुचि समाचार पत्र को पढने व उनमें छोटे-मोटे समाचार लिखने व कविताओं के प्रकाशन तक ही सीमित थी।
सन् 1937 में पौड़ी से महेशानन्द थपलियाल के संपादकत्व में साप्ताहिक पत्र 'उत्तर भारत' का प्रकाशन आरम्भ हुआ। यह कांगे्रस अध्यक्ष अनुसूयाप्रसाद बहुगणा के काण्डई गाँव स्थित 'स्वर्णभूमि प्रेस' से निकलता था। यह उस दौर में पौड़ी से छपा जब बाकी सारे पत्र बन्द हो गये थे इसलिये जनता की लेखन की रुचि कुछ समय तक इससे जागी। लेकिन बहुगुणा के आजादी के आन्दोलन में सक्रिय होने से यह पत्र बन्द हो गया। उस समय समाचार पत्रों की आर्थिकी का आधार उनकी ग्राहक संख्या होती थी। देहरादून, कोटद्वार से निकलने वाले पत्रों का सर्कुलेशन कई हजार होता था। उस समय सरकारी विज्ञापन नाम की कोई चीज ही नहीं होती थी। सन् 1939 से 1960 के बीच पौड़ी से कोई पत्र नहीं छपा। उस समय कोटद्वार से कर्मभूमि, सत्यपथ जैसे पत्रों से यहाँ के लोगों की जरूरत पूरी होती रही। 1960 के दौर में पौड़ी से लम्बे समय तक पत्र तो नहीं निकला किन्तु यहाँ से एक पत्रिका 'मैती' निकलती थी, जिसमें गढ़वाली कुमाउंनी लेख होते थे। इस पत्र ने उस दौर के गढ़वाली लेखकों को एक मंच दिया। इससे शिवानन्द नौटियाल, हरिदत्त भट्ट 'शैलेष', भगवतीचरण 'निर्मोही', मोहन लाल बाबुलकर, भजनसिंह 'सिंह', गोविन्द चातक जैसे मूर्धन्य लेखक जुड़े थे।
बाद में नगर से कई पत्र निकले किन्तु नियमितता नहीं बना सके। इनमें साप्ताहिक 'पौड़ी टाइम्स' का उल्लेख करना जरूरी होगा जिसे सखा सत्यम निकालते थे। इसका कार्यालय सिविल लाइन में था। इसी पत्र में रहते हुए उमेश डोभाल ने अपनी पत्रकारिता व कविताओं को धार दी। राजेन्द्र रावत 'राजू' के लेखन को इसने एक मंच दिया। इसकी स्थानीय लोगों को बड़ी प्रतीक्षा रहती थी। 'पौड़ी टाइम्स' के अलावा वाचस्पति गैरोला के संपादकत्व में 1976 से निकलने वाला साप्ताहिक 'गढ़वाल मण्डल' एक अन्य पत्र था जिसने नवसर्जकों को प्रोत्साहन देने का काम किया। इन पत्रों में लिखने वाले कुछ अच्छे शोधार्थी व लेखक बने। वर्तमान में यह दोनों पत्र इतिहास की बात बन चुके हैं। इसी तरह से पिछले 33 सालों से नियमित रूप से आ रहे नैनीताल समाचार ने भी लेखकों को पे्ररणा दी।
1986 में कोटद्वार से 'दैनिक जयन्त' आने लगा था। इसके बाद पहले कोटद्वार व बाद में पौड़ी से प्रकाशित रमेश पोखरियाल निशंक के
'सीमान्तवार्ता' से कुछ कवियों व लेखकों को एक मंच मिला। इसके उपरान्त निशंक द्वारा शेाध पत्रिका 'नवराह नव चेतना' त्रैमासिक का पौड़ी से प्रकाशन आरम्भ हुआ जिससे कई लेखक जुड़े किन्तु इसके चार ही अंक प्रकाशित हो सके।
आज पौड़ी में अनेक पत्र व पत्रिकायें जनता को मंच तो दे रहे हैं किन्तु वे प्रेरणा नहीं बन पा रहे हैं। पूंजीवाद की आंधी के कारण उनका जुड़ाव जनता से ज्यादा नहीं है। किन्तु कुछ पत्र मिशन भाव से लगे हैं। इनमें पौड़ी से पिछले 10 साल से बिमल नेगी के संपादन में निकल रहे गढ़वाली पाक्षिक पत्र 'खबर सार' ने नियमितता के कारण गढ़वाली के अनेक लेखकों को एक मंच दिया। यह पत्र भाषाई आन्दोलन का सजग प्रहरी बन कर उभरा है।
यह तो थी नगर के समाचार पत्रों की बात जिन्होंने यहाँ की प्रतिभाओं को लिखने के लिये एक मंच दिया व उनको प्रोत्साहित किया। किन्तु यदि यह कहा जाय कि पौड़ी की धरती से शिक्षार्जन करने वालों ने क्या लिखा यह एक लम्बा विषय हो जायेगा। यहाँ के मेसमोर स्कूल व डी.ए.वी. स्कूलों से पढ़कर जब नवयुवक बाहर गये तो उनमें से दसियों लोगों ने पत्रकारिता व लेखन को चुना। इसमें निकटवर्ती ग्रामों खासतौर पर सुमाडी, बिचली राँई के अनेक लोग थे जिन्हांेने पौड़ी के स्कूलों से शिक्षा ली और उच्च शिक्षा के लिये महानगरों को चले गये। लेकिन कोई ऐसा व्यक्ति न रहा जिसने पौड़ी को अपनी कर्मस्थली बनाया हो। हाँ, भजनसिंह 'सिंह' इसका एक अपवाद रहे जो सेना की नौकरी के बाद जब घर आये तो उन्होंने एक इतिहासकार, कवि व लेखक के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी पुस्तकें आज इतिहास व गढ़वाली साहित्य की प्रमुख कृतियों में गिनी जाती हैं। यहां तक कि गढ़वाली में उनका सृजनकाल 'सिंह युग' कहलाता है। पौड़ी के समीप कोटसाड़ा से उन्होंने लगातार लेखन किया।
……जारी
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