अथ पौड़ी कथा – 3: रचनाकारों की भी धरती है पौड़ी
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 13 || 15 फरवरी से 28 फरवरी 2011:: वर्ष :: 34 :March 3, 2011 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/story-of-pauri-part-3/
अथ पौड़ी कथा – 3: रचनाकारों की भी धरती है पौड़ी
लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 13 || 15 फरवरी से 28 फरवरी 2011:: वर्ष :: 34 :March 3, 2011 पर प्रकाशित
पहाड़ का शीतल, शान्त व सुकून भरा वातावरण रचनाधर्मिता के लिये मुफीद माना जाता है। यही कारण है कि हिल स्टेशनों से लगातार लिखा जाता रहा है। ऊटी, डलहौजी, शिलांग, दार्जलिंग, शिमला से अनेक पुस्तकों की रचनायें हुई। कुछ के लेखक स्थानीय थे तो कई के लेखक यहाँ के आकर्षण से खिंच कर इन पहाड़ों में आये। उत्तराखण्ड के हिल स्टेशन भी इसमें पीछे नहीं रहे। यहाँ रहकर अनेक कवियों, लेखकों व इतिहासकारों ने अमूल्य सृजन कार्य किया। आज भी यह सिलसिला अनवरत जारी है। कई लेखक अपने काम से अमर हो गये।
कौसानी सुमित्रानन्दन पन्त की कर्मस्थली थी तो महात्मा गांधी ने भी कौसानी में रह कर 'अनासक्ति योग' के रूप में गीता की टीका लिखी। अल्मोड़ा तो हिन्दी के साहित्यकारों की खान रहा। इसकी धरती ने अनेक लेखकों को राष्ट्रीय फलक तक पहुँचाया। मसूरी की बात करें तो यहाँ से बिल एटकिन व रस्किन बान्ड ने दुनिया भर में भारत व अपने लेखन को पहुँचाया। डूब चुके टिहरी से संस्कृत, हिन्दी व गढ़वाली में लिखी गईं पुस्तकों की लम्बी सूची सबको आश्चर्य में डालती है। ब्रिटिश कमिश्नरी का केन्द्र रहे नैनीताल में आजादी से पहले अनेक फिरंगियों ने अपनी कलम चलाई तो आजादी के बाद भी निजी व संस्थागत रूप से काफी कुछ लिखा गया। आज भी 'पहाड़' का काम बेजोड़ है।
इसी परम्परा में पौड़ी से भी काफी कुछ लिखा गया व लिखा जा रहा है। यहाँ से कई लेखकों, कवियों, पत्रकारों व इतिहासकारों ने पुस्तकें लिखीं। पौड़ी व अल्मोड़ा में लेखन के अलावा गीत, संगीत, कला नाटक आदि अन्य विधायें भी पल्लवित हुई। यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। इसलिये इन नगरों को क्रमशः गढ़वाल व कुमाऊँ की सांस्कृतिक नगरियाँ भी कहा जाता है। यद्यपि ब्रिटिशकाल में बहुत ही कम अधिकारी पौड़ी में स्थायी रूप से रहे, किन्तु इनमें से कुछ ने अपने संस्मरण लिखे। आजादी के बाद यहाँ अपेक्षाकृत अधिक लेखन हुआ, किन्तु वह ज्यादा व्यवस्थित नहीं रहा। मगर छिटपुट रूप से यहाँ पर जो कुछ भी लिखा गया, उसकी सर्वत्र चर्चा हुई। हिन्दी के साथ-साथ गढवाली में भी यहाँ समान रूप से लिखा गया।
अंग्रेज अधिकारियों में असिस्टेंट कमिश्नर कर्नल गास्र्टीन ने गढ़वाल से जुड़ी हर सम्भव जानकारी एकत्र करने व उसको लिपिबद्ध करने का काम किया। कर्नल गास्र्टीन सन् 1867 से 1870 के मध्य पौडी के असिसटेन्ट कमिश्नर थे। उनका लेखन एटकिन्सन के गजेटियर में सहायक बना। इससे गास्र्टीन ने कई रजिस्टर तैयार किये जिनमें से एक पौड़ी कलक्ट्रेट के रिकार्ड रूम में है। 1920 से 1922 व 1935 से 1939 तक पौड़ी के कलेक्टर रहे पी. मेसन ने भी यहाँ पर रहकर लेखन किया जो उनके यहाँ से जाने के बाद सामने आई। पी. मेसन बाद में भारत के रक्षा सचिव भी रहे। 'एन्ड देन गढ़वाल' पुस्तक जोसेफ क्ले, जो 1914 से 1920 तक पौड़ी में कलेक्टर थे, की पुत्री एड्रे वालेस द्वारा लिखी गई। यह पुस्तक बहुत बाद में छपी। 1941 से 1946 के बीच रहे वर्नेडी के द्वारा भी लिखा गया, जो आजादी के बाद इगलैण्ड जा बसे थे।
आजादी से पहले पौड़ी से महत्वपूर्ण लेखन करने वालों में तारादत्त गैरोला एक थे। तब कम लोग ही पढ़े-लिखे थे। वे गढ़वाल से पहले विधान परिषद सदस्य थे। टिहरी रियासत में रहते हुए उन्होंने वकालत भी की। 'गढ़वाली' पत्र को स्थापित करने वालों में से वे एक थे। 1920 के बाद उनका रुझान राजनीति से हट कर साहित्य की ओर हो गया। उनका पहला गढ़वाली कविता संग्रह 'सदेई' काफी चर्चित रहा। यह परम्परागत औजियों द्वारा गाये गये गीतों से प्रेरित होकर लिखा गया। इसमें कुछ गीत मौलिक गीतों का संशोधन थे। उनकी दूसरी पुस्तक 'सांग्स आफ दादू' थी, जो सन्त दादूदयाल की वाणियों का अंग्रेजी में रूपान्तरण था। इसे उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर को समर्पित किया। मगर उनकी अमर कृति संयुक्त रूप से बिशप ओकले के साथ लिखी गई 'हिमालयन फॉकलोर है। इसमें गढ़वाल एवं कुमाऊँ की वीर गाथायें संकलित हैं। बिशप ओकले ने कुमाऊँ से तो तारादत्त गैरोला ने गढ़वाल कथाओं का संकलन किया। इसमें गंगादत्त उपे्रती व ओकले की संकलित कहानियाँ भी हैं। इसे उन्होंने हुड़कियों से सुनने व जानने के बाद लिखा। वे अपने कफलसैण स्थित अपने निवास में हुड़कियों को बुलाते और रात-रात भर सुनते। लोग तब उन्हें सनकी तक कहने लगे थे। इस पुस्तक के अनेक संस्करण निकल चुके हैं और आज भी इसकी माँग है। अधिवक्ता के तौर पर उन्होंने यहाँ के कमिश्नरों के द्वारा भू-कानून व्यवस्था पर किये गये फैसलों पर एक संकलन 'सलेक्टेड रेवन्यू डिसिजन्स' निकाली, जो बाद में न्यायालयों के लिये महत्वपूर्ण सन्दर्भ पुस्तक साबित हुई। उनकी एक पुस्तक 'गढ़वाली कवितावली' भी थी जो गढ़वाली के उस दौर के ख्यात कवियों की कविताओं का संकलन थी।
1930 के दौर में जिला पंचायत पौड़ी के अध्यक्ष रहे डॉ. पातीराम परमार की पुस्तक 'गढ़वाल एन्सियन्ट एन्ड माडर्न' को तैयार करने की प्रेरणा के पीछे भी पौड़ी की धरती रही। आज भी यह पुस्तक एक सन्दर्भ पुस्तक के रूप में प्रयोग होती है। पौड़ी से दिखाई देने वाले हिमाच्छादित हिमालय से प्रेरित कवियों में सबसे महत्वपूर्ण नाम चन्द्रकुँवर बत्र्वाल का है। पिछली शती के तीसरे दशक के दौर में वे जब यहाँ मेसमोर स्कूल के छात्र थे, तो उन्होंने अपनी कविताओं में हिमालय के सौन्दर्य व यहाँ की प्रकृति पर लिखा। वे अल्प आयु ही जिये और उनकी कवितायें उनकी मृत्यु के बहुत बाद संकलन के रूप में सामने आईं। उस समय वे अपने एक सम्बन्धी के यहाँ पर रहते थे, जिनका निवास वर्तमान राजकीय इन्टर कालेज के पास था, जहाँ देवदार के अनेक वृक्ष थे।
संबंधित लेख....
- अथ पौड़ी गाथा-8
नगर में किया गया रचनाकर्म (ग) वर्तमान शताब्दी के प्रथम दशक में नगर में मात्रात्मक दृष्टि से सबसे ... - अथ पौड़ी कथा- 6 : पौड़ी में रची पुस्तकें (क)
आजादी पूर्व के दौर में पौड़ी में रहते हुए जहाँ लेखकों ने इतिहास, संस्कृति पर लिखा वहीं आजादी के बाद ... - अथ पौड़ी कथा-4: लेखन की प्रेरणा रहे जो पत्र
आजादी से पहले के दौर में पौड़ी से जो भी लेखन हुआ वह एक खास वर्ग तक ही सीमित था। इस वर्ग में या तो अधि... - अथ पौड़ी कथा: 1
अनमने ढंग से बसाया अंग्रेजों ने यह शहर पौड़ी नगर ने अपने 170 साल की आयु में कई उतार चढ़ाव देखे हैं।... - अथ पौड़ी कथा.11 , आन्दोलनों की धरती-3
1941 में पौड़ी मात्र 1,834 की आबादी का कस्बा था। इसमें ज्यादातर संख्या सरकारी कर्मचारियों व उनके परि...
No comments:
Post a Comment